NCERT Solutions Class 12th Physical Education Chapter – 5 खेल तथा पोषण (Sports and Nutrition) Notes In Hindi

NCERT Solutions Class 12th Physical Education Chapter – 5 खेल तथा पोषण (Sports and Nutrition)

TextbookNCERT
class12th
SubjectPhysical Education
Chapter5th
Chapter Nameखेल तथा पोषण (Sports and Nutrition)
CategoryClass 12th Physical Education
Medium Hindi
SourceLast Doubt

NCERT Solutions Class 12th Physical Education Chapter – 5 खेल तथा पोषण (Sports and Nutrition)

Chapter – 5

खेल तथा पोषण

Notes

भूमिका (Introduction)

वे सभी तरल या ठोस पदार्थ जिन्हें मनुष्य खाता है और अपनी पाचन क्रिया द्वारा अवशोषित करके विभिन्न शारीरिक कार्यों के लिए प्रयोग करता है, भोजन कहलाता है।

हवा और पानी की तरह भोजन भी मानव के अस्तित्व की एक मूल आवश्यकता है। मनुष्य को भोजन की आवश्यकता केवल जीवित रहने के लिए ही नहीं बल्कि विकास एवं वृद्धि तथा एक स्वस्थ एवं सक्रिय जीवन बिताने के लिए होती है। भोजन को केवल ग्रहण करना, पचाकर अवशोषित करना ही पर्याप्त नहीं है, बल्कि भोजन का शरीर के लिए उपयोगी होना भी आवश्यक है। अतः हम कह सकते हैं कि भोजन ऐसे खाद्य पदार्थ को कहा जाता है जो शरीर में पचकर, अवशोषित होकर विभिन्न शारीरिक क्रियाओं के लिए ऊर्जा प्रदान करें।

संतुलित आहार तथा पोषण की अवधारणा (Concept of Balanced Diet and Nutrition)

संतुलित आहार का अर्थ (Meaning of Balanced Diet)

संतुलित आहार का तात्पर्य भोजन में सम्मिलित ऐसे खाद्य पदार्थों से है जो शरीर की वृद्धि, विकास एवं रख-रखाव के लिए सभी आवश्यक पोषक तत्त्वों की पूर्ति कर सकें। अर्थात्

ऐसा आहार जिसमें सभी पोषक तत्त्व उचित मात्रा व उचित अनुपात में हों तथा वे शरीर की दैनिक आवश्यकताओं की पूर्ति करें, संतुलित आहार कहलाता है।

दूसरे शब्दों में कहें तो, विभिन्न खाद्य पदार्थों के उचित अनुपात में सम्मिश्रण से तैयार वह आहार जो शरीर की न्यूनतम आवश्यकताओं के अनुरूप सभी पौष्टिक तत्व प्रदान करता है, संतुलित आहार कहलाता है।

आहार तब संतुलित कहलाता है जब-

  • उसमें सभी पोषक तत्व उचित मात्रा एवं अनुपात में हों।
  • भोजन कीटाणुरहित हो तथा आसानी से पचाया जा सकें।

हम जानते है कि, हर व्यक्ति की आहार संबंधी आवश्यकताएँ एक जैसी नहीं होती है। यह व्यक्ति की आयु, लिंग, व्यवसाय तथा जलवायु इत्यादि के अनुसार अलग-अलग होती है। इसलिए यह कहना भी गलत नहीं होगा कि “संतुलित आहार वह आहार या भोजन है जिससे भक्ति की आयु. लिंग, शरीर, व्यवसाय तथा वातावरणीय परिस्थिति की आवश्यकता के अनुसार सभी आवश्यक तत्त्व उचित मात्रा में प्राप्त होते हैं।”

पोषण का अर्थ (Meaning of Nutrition)

“भोजन में उपस्थित विभिन्न पोषक तत्त्वों का शारीरिक क्रियाओं तथा शारीरिक आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए उपयोग पोषण कहलाता है।”

हम सब जानते हैं कि- जो भोजन हम करते हैं वह हमारे शरीर का पोषण करता है तथा शरीर को स्वस्थ बनाए रखता है। भोजन हमारे शरीर विभिन्न प्रक्रियाओं से होकर गुजरता है। जैसे कि- पाचन, अवशोषण और फिर शरीर के विभिन्न भागों में रक्त संचालन द्वारा प्रयुक्त होता है। भोजन के जिस अंश का पाचन व अवशोषण नहीं हो पाता, वह शरीर द्वारा मल के रूप में निष्कासित कर दिया जाता है। सरल शब्दों में कहें तो कार्य करता हुआ भोजन पोषण कहलाता है।

वैज्ञानिक रूप से कहा जाए तो- पोषण एक ऐसी प्रक्रिया है जिसमें आहार अथवा पोषक पदार्थों को ग्रहण कर उनको पचाया जाता है। इस प्रक्रिया में भोजन में उपस्थित पौष्टिक पदार्थों को सोख (Absorb) कर, उपयोग के लिए दूसरे अंगों अथवा ऊतकों में वितरित कर दिया जाता है।

व्यक्ति द्वारा ग्रहण किए गए भोजन तथा उस भोजन में उपस्थित पोषक तत्त्व एवं उनकी मात्रा ही व्यक्ति के पोषण स्तर को निर्धारित करती है।

वृहत् (मैक्रो) तथा सूक्ष्म (माइक्रो) पोषक तत्व (Macro and Micro Nutrients)

पोषक तत्व (Nutrients)

पोषक तत्व (Nutrients) वह जटिल रासायनिक तत्व (जैविक अथवा अजैविक) होते हैं, जो हमें भोजन से प्राप्त होते हैं। पोषक तत्व हमारे शरीर की कई शारीरिक क्रियाओं के संचालन में सहायता करते हैं। हमारे भोजन में लगभग पचास पोषक तत्व पाए जाते हैं, जिन्हें दो भागों में बाँटा जा सकता है-

आहार (भोजन) के तत्व

  • पोषक तत्व
  • गैर-पोषक तत्व

पोषक तत्व

  • वृहत् (मैक्रो ) पोषक तत्व
  • सूक्ष्म (माइक्रो ) पोषक तत्व

वृहत् (मैक्रो) पोषक तत्व

  • काबोहाइड्रेट
  • प्रोटीन
  • वसा
  • जल

काबोहाइड्रेट

  • साधारण काबोहाइड्रेट
  • जटिल कार्बोहाइड्रेट्स

वसा

  • संतृप्त वसा
  • असंतृप्त वसा

सूक्ष्म (माइक्रो) पोषक तत्व

  • खनिज
  • विटामिन

खनिज

  • अधिक मात्रा में पाए जाने वाले खनिज (कैल्शियम, मैग्नीशियम, फॉस्फोरस, सोडियम और पोटैशियम)
  • कम मात्रा में पाए जाने वाले खनिज (लोहा, आयोडीन, तांब क्रोमियम और कोबाल्)

विटामिन

  • वसा में घुलनशील विटामिन (विटामिन-ए विटामिन-डी. विटामिन-ई. विटामिन-के)
  • जल में घुलनशील विटामिन
  • जल में घुलनशील विटामिन
    • ‘बी’ समूह के विटामिन (विटामिन बी1, विटामिन-बी2, विटामिन बी3, विटामिन-बी4, विटामिन बी5, विटामिन-बी6, विटामिन-बी7)
    • विटामिन-सी

गैर-पोषक तत्व

  • फाइबर
  • जल
  • स्वाद यौगिक
  • रंग यौगिक
  • पादप यौगिक

1. वृहत् (मैक्रो) पोषक तत्त्व (Macro Nutrients)

ऐसे पोषक तत्व जो व्यक्ति के आहार का मुख्य भाग होते हैं अर्थात् अधिक मात्रा में लिए जाते हैं बृहत् पोषक तत्त्व कहलाते हैं। इन पोषक तत्त्वों का मुख्य कार्य ऊर्जा प्रदान करना, शरीर की वृद्धि तथा तंतुओं की मरम्मत करना होता है। कार्बोहाईट, प्रोटीन, वसा तथा का वृहत् पोषक तत्त्वों के उदाहरण हैं। विभिन्न वृहत् पोषक तत्त्वों का संक्षिप्त विवरण निम्न है-

1. कार्बोहाइड्रेट्स (Carbohydrates)

शरीर को विभिन्न कार्यों के लिए ऊर्जा प्रदान करने वाले सबसे महत्त्वपूर्ण तत्त्व कार्बोहाइड्रेट्स/कार्बोज ही हैं। दूसरे शब्दों में कहें तो- कार्बोहाइड्रेट्स हमारे शरीर में ईंधन की तरह कार्य करते है। कार्बोहाइड्रेट्स ऐसे रासायनिक यौगिक हैं जिनका निर्माण कार्बन, हाइड्रोजन व ऑक्सीजन के मिश्रण से होता है। सभी कार्बोहाइड्रेट्स में कार्बन, हाइड्रोजन व ऑक्सीजन के परमाण 1: 2:1 के अनुपात में होते हैं। इन तीनों तत्त्वों के संयोजन से शर्करा (Sugar) इकाइयों का निर्माण होता है, जो कार्बोहाइड्रेट्स की मूल इकाई है। 1 ग्राम कार्बोहाइड्रेट शरीर को 4.1 किलो कैलोरी ऊर्जा प्रदान करता है। कार्बोहाइड्रेट्स दो प्रकार के होते हैं-

(i) साधारण कार्बोहाइड्रेट्स (Simple carbohydrates) – कार्बोहाइड्रेट्स के इस सरलतम रूप में शर्करा की केवल एक इकाई होती है। ग्लूकोज, फ्रेक्टोज, सुक्रोज, माल्टोज तथा लैक्टोज साधारण कार्बोहाइड्रेट्स के उदाहरण हैं। इस प्रकार के कार्बोहाइड्रेट्स स्वाद में मीठे तथा जल में घुलनशील होते हैं। हमारे शरीर में अवशोषण से पहले इन्हें किसी भी तरह के पाचन की आवश्यकता नहीं होती है तथा खाने के बाद यह तत्काल रक्त में अवशोषित हो जाते हैं। इसी कारण से रोगियों को ऊर्जा प्राप्ति के लिए ग्लूकोज दिया जाता है। साधारण कार्बोहाइड्रेट्स अनाज, रसीले फल, गन्ना, चकुन्दर, अनानास तथा गाजर इत्यादि में पाए जाते है।
(ii) जटिल कार्बोहाइड्रेट्स (Complex carbohydrates) – स्टार्च, डैक्ट्रिन्स, ग्लाइकोजन तथा सेल्यूलोज इत्यादि को जटिल कार्बोहाइड्रेट्स कहा जाता है। इस प्रकार के कार्बोहाइड्रेट्स का स्वाद मीठा नहीं होता तथा यह जल में अघुलनशील होते हैं। जटिल कार्बोहाइड्रेट्स आतू, शलगम, मक्का, गेहूँ तथा चावल इत्यादि में पाए जाते हैं।

2. प्रोटीन (Protein)

प्रोटीन शरीर के लिए सम्भवतः सबसे जरूरी पोषक तत्त्व है। मनुष्य के शरीर का निर्माण करने वाली इकाई को कोशिका (cell) कहते हैं। इ सूक्ष्म कोशिकाएँ जीवद्रव्य (protoplasm) से बनती हैं। यह पदार्थ प्रोटीन ही हैं, जिसके बिना कोशिका तथा कोशिका के बिना मानव श की रचना असंभव है। ग्रीक भाषा में इसे प्रोटिऑस (proteoas) (सर्वप्रथम स्थान ग्रहण करना) कहते हैं। इसी शब्द के आधार पर इस त का नाम प्रोटीन रखा गया है। प्रोटीन को बॉडी बिल्डिंग पोषक तत्व भी कहा जाता है।

प्रोटीन के अणु सैंकड़ों प्रकार की रासायनिक इकाईयों से बने होते हैं जिन्हें अमीनो एसिड कहते हैं। ये कुल 23 होते हैं, जिनमें से ऐसे होते हैं जो हमारे शरीर द्वारा निर्मित नहीं हो सकते। अतः इन्हें आवश्यक अमीनो एसिड कहते हैं और इन्हें भोजन द्वारा ही प्राप्त किय जा सकता है बाकी अन्य सभी अमीनो एसिड हमारा शरीर स्वयं ही बना लेता है। । ग्राम प्रोटीन से 4.1 किलो कैलोरी प्राप्त होती है।

प्रोटीन के कार्य (Functions of Protein)

(a) प्रोटीन शरीर में रक्त, रक्त में हीमोग्लोबिन, मांसपेशियों, नाखूनों त्वचा, बालों व आंतरिक अंगों के निर्माण के लिए उत्तरदायी होता है
(b) प्रोटीन नए ऊतकों का निर्माण तथा टूटे हुए ऊतकों की मरम्मत करता है।
(c) प्रोटीन शरीर में जल तथा अम्लों के संतुलन को नियमित करता है।
(d) प्रोटीन ऑक्सीजन व पोषक तत्त्वों को कोशिकाओं तक ले जाता है तथा एंटीबॉडीज उत्पन्न करता है।

प्रोटीन की कमी या अधिकता से हानियाँ (Problems due to Lack or Excess of Protein)

(a) आहार में पशुजन्य प्रोटीन के अत्याधिक प्रयोग से हृदय रोग, ऑस्टिओपोरोसिस, स्ट्रोक व गुदों में पथरी हो सकती है। महिलाओं में एनीमिया की समस्या भी उत्पन्न हो सकती है।
(b) बच्चों के आहार में प्रोटीन की कमी से मरास्मस तथा क्वाशीयरकर जैसे रोग हो जाते हैं।

शरीर को आदर्श शरीर भार के प्रति पौंड के अनुसार केवल 0.36 ग्राम प्रोटीन की आवश्यकता होती है।

3. वसा (Fats)

कार्बोहाइड्रेट्स तथा प्रोटीन की तरह ही वसा भी हमारे भोजन का महत्वपूर्ण भाग है। वसा कार्बन, ऑक्सीजन तथा हाइड्रोजन परमाणुओं के सममिश्रण (क्रमश: 76. 12 तथा 12 प्रतिशत) से बनता है। 1 ग्राम वसा से लगभग 9.1 किलो कैलोरी प्राप्त होती है। वसा निम्न प्रकार की होती है-

(i) संतृप्त वसा (Saturated fats) – संतृप्त वसा में संतृप्त वसा अम्ल होते हैं। यह सरल बन्ध में पाए जाते हैं जिसके कारण इनमें हाइड्रोजन ग्रहण करने की क्षमता नहीं होती। इसे पशु वसा भी कहते हैं। संतृप्त वसा का अधिक मात्रा में सेवन करने से मोटापा तथा रक्त में कोलेस्ट्रोल का स्तर बढ़ जाता है जिसके कारण हृदय रोग की संभावना बढ़ जाती है। इस प्रकार की वसा फास्ट-फूड्स, बेकरी उत्पादों आईसक्रीम, पनीर मक्खन तथा घी इत्यादि में भी पाई जाती है।
(ii) असंतृप्त वसा (Unsaturated fats) – असंतृप्त वसा में दो या दो से अधिक बन्ध हो सकते हैं व इनमें हाइड्रोजन ग्रहण करने की क्षमता होती है। ये साधारण ताप पर तरल रूप में होते हैं। कुछ ऐसे भी असंतृप्त वसा अम्ल होते हैं जो शरीर में निर्मित नहीं होते। उत्तम स्वास्थ्य व शरीर की वृद्धि के लिए इनको आहार द्वारा लेना आवश्यक होता है। इन्हें अनिवार्य वसा अम्ल भी कहते हैं। ये विभिन्न खाद्यों तेलों जैसे- मूँगफली, तिल, सरसों में पाए जाते हैं।

उपरोक्त वसा के अतिरिक्त मोनो सैच्युरेटेड वसा तथा पोली अनसैच्युरेटेड वसा भी होती है जो रक्त में कोलेस्ट्रोल के स्तर को कम करने में सहायता करती हैं। पोली अनसैच्युरेटिड वसा, मोनो सैच्युरेटेड वसा की अपेक्षा कुछ हद तक बेहतर होती है।

वसा के कार्य (Functions of Fats)

(a) वसा शरीर की अनेक क्रियाओं के लिए अत्यंत आवश्यक होती है।
(b) वसा शरीर के तापमान को नियमित तथा कोमल अंगों को सुरक्षा प्रदान करती
(c) वसा हारमोन्स के उत्पादन में भी सहायता करती है।
(d) यह त्वचा को खुरदरा होने से बचाती है तथा गर्मी व सर्दी के बाहरी प्रभाव से भी शरीर की रक्षा करती है।
(e) वसा की सही मात्रा शरीर की सुंदरता को भी बनाए रखती है।

4. जल (Water)

जल एक ऐसा यौगिक है जो हाइड्रोजन तथा ऑक्सीजन के क्रमशः 2:1 के अनुपात में मिलने से बनता है। हमारे शरीर की विभिन्न आन्तरिक क्रियाएँ तरल माध्यम में ही होती हैं इसलिए जल को वृहत् (मेक्रो) पोषक तत्त्वों की श्रेणी में रखा गया है। हालांकि कुछ विद्वान इसी कारण से इसे ‘पोषक तत्त्व’ न मानकर ‘आवश्यक तत्त्व’ भी मानते हैं। 

जल के कार्य (Functions of Water)

(a) हमारे रक्त का 90% भाग जल ही होता है।
(b) जल पोषक तत्त्वों को शरीर की कोशिकाओं तक ले जाने में सहायता करता है।
(c) यह अपशिष्ट पदार्थों के शरीर से निष्कासन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
(d) यह शरीर के तापमान को नियंत्रित करता है।
(e) यह शरीर की आंतरिक रासायनिक क्रियाओं के लिए भी अनिवार्य होता है।
(f) यह शरीर के उपापचय हेतु अत्याधिक आवश्यक होता है।

II. सूक्ष्म (माइक्रो) पोषक तत्त्व (Micro Nutrients)

सूक्ष्म पोषक तत्त्व वह पोषक तत्त्व होते हैं जिनकी आवश्यकता बहुत कम मात्रा में पड़ती है परंतु यह शरीर के सामान्य रूप से काम करने के लिए अत्यंत आवश्यक होते हैं।

इन पोषक तत्त्वों का प्रमुख कार्य शरीर में विभिन्न रासायनिक प्रक्रियाओं तथा शरीर के सुचारु रूप से कार्य करने में सहायता प्रदान करना है खजिन तथा विटामिन सूक्ष्म पोषक तत्त्वों के उदाहरण हैं। इन सूक्ष्म पोषक तत्त्वों का संक्षिप्त विवरण निम्न है-

1. खनिज (Minerals)

हमारे शरीर में खनिज तत्व बहुत कम मात्रा में पाए जाते हैं। हमारे कुल शारीरिक भार का लगभग 4% खनिज तत्वों से ही बनता है। फिर भी विभिन्न शारीरिक क्रियाओं के लिए ये अत्यंत आवश्यक होते है। चूंकि इनका संश्लेषण शरीर में नहीं हो पाता इसलिए इन्हें अपने आहार में लेना अति आवश्यक हो जाता है।

हमारे शरीर में कुल 24 खनिज तत्त्व पाए जाते हैं जिनमें से 19 खनिज तत्त्व अत्यंत महत्त्वपूर्ण माने जाते है। यह तत्त्व हमारे शरीर की कई महत्वपूर्ण क्रियाओं में सहायक होते है। शरीर में पाई जाने वाले इनकी मात्रा के आधार पर इन्हें दो वर्गों में बांटा गया है-

(I) अधिक मात्रा में पाए जाने वाले खनिज (मेक्रो खनिज)

कैल्शियम (Calcium) – किसी भी अन्य खनिज तत्व की तुलना में शरीर में कैल्शियम की मात्रा सबसे अधिक होती है। शरीर में जितने भी खनिज तत्त्व पाए जाते हैं उनका लगभग 50% भाग कैल्शियम ही होता है। कैल्शियम का अधिकतर भाग (लगभग 95%) हड्डियों व दांतों में ही पाया जाता है। शेष भाग तरल द्रव्य और कोमल तन्तुओं में रहता है।

कैल्शियम दांतों व हड्डियों का निर्माण करता है व उन्हें मजबूती प्रदान करता है। कैल्शियम का कार्टिलेज में जमाव अस्थियों को विकसित व ठोस बनाता है। यह रक्त का थक्का जमाने (blood clotting) में सहायता प्रदान करता है। यह हृदय की गति को नियंत्रित करता है। तंत्रिका तंत्र की क्रियाएँ कैल्शियम द्वारा ही नियंत्रित होती है। दूध तथा दूध से बने पदार्थ, हरी पत्तेदार सब्जियाँ, अण्डे तथा अनाज कैल्शियम के मुख्य स्रोत हैं।

मैग्नीशियम (Magnesium) – यह शरीर की कोशिकाओं के रख-रखाव तथा टूट-फूट की मरम्मत का कार्य करता है। यह साबुत अनाज, ब्राउन राईस मीट तथा फलियों में पाया जाता है।
फॉस्फोरस (Phosphorus) – यह अस्थियों तथा दांतों के निर्माण के लिए उत्तरदायी होता है. इसके अतिरिक्त यह मांसपेशियों तथा तंत्रिका तंत्र की क्रियाओं को भी सामान्य बनाए रखता है। यह मछली, दूध, चावल तथा अण्डे इत्यादि में पाया जाता है।
सोडियम (Sodium) – यह कोशिकाओं के द्रव्यों में संतुलन बनाए रखने तथा मांसपेशीय क्रियाओं में सहायक होता है। आयोडाइन्ड नमक इसका मुख्य स्त्रोत है।
पोटैशियम (Potassium) – यह भी कोशिकाओं के द्रव्यों में संतुलन बनाए रखने के लिए उत्तरदायी होता है। इसके अतिरिक्त यह स्नायु तंत्र को स्वस्थ तथा सक्रिय रखता है। यह केला, हरी पत्तेदार सब्जियाँ, खट्टे फलों तथा टमाटर इत्यादि में पाया जाता है।
(ii) कम मात्रा में पाए जाने वाले खनिज (माइक्रो खनिज)

लोहा (Iron) – शरीर के लिए लोहा कम मात्रा पाए जाने वाले खनिज तत्त्वों में से सबसे महत्त्वपूर्ण है। शरीर के भार का 004% वाँ भाग लोहा ही होता है। शरीर में मौजूद सम्पूर्ण लोहे का लगभग 75-80% अंश होमोग्लोबिन में पाया जाता है। बाकी अंश अस्थि मज्जा (bone marrow), यकृत (liver), गुर्दों (kidneys) तथा लोहे का कुछ अंश रक्त के तरल भाग (blood plasma) और कोशिकाओं के एन्जाइम में भी होता है। यह यकृत, मीट, अंडे, सूखे मेवों, पालक, केले व हरी पत्तेदार सब्जियों आदि में पर्याप्त मात्रा में पाया जाता है। शरीर में लोहे की कमी से रक्तक्षीणता (Anaemia) नामक रोग हो जाता है।

आयोडीन (Iodine ) – यह खनिज थॉयरोक्सिन नामक हॉरमोन का उत्पादन करता है। थॉइराइड ग्रन्थि (thyroid gland) के सुचारु रूप से काम करने के लिए अत्यंत आवश्यक है। यह उचित वृद्धि व विकास के लिए भी महत्वपूर्ण होता है। आयोडीन के अभाव के कारण घेंघा रोग तथा मानसिक दुर्बलता हो सकती है। यह आयोडीन युक्त नमक मछली व समुद्री भोजन में पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध होता है।
ताँबा (Copper) – तांबा कई शारीरिक एवं मानसिक गतिविधियों के लिए अनिवार्य होता है। हमारे शरीर में ताँबे के भण्डारण की कोई व्यवस्था न होने के कारण इसे हमें प्रतिदिन भोजन के द्वारा ग्रहण करना होता है। ताँबा हमारे शरीर की विभिन्न उपापचय क्रियाओं के लिए तथा कई एंजाइम्स के उत्तप्रेरण के लिए अनिवार्य होता है। इसकी कमी से रोग प्रतिरोधक क्षमता में कमी, घाव भरने में ज्यादा समय, आँखों की रोशनी का कमजोर होना तथा कैंसर जैसा रोग हो सकता है। यह अंडों, दालों व हरी पत्तेदार सब्जियों में पाया जाता है।
क्रोमियम (Chromium) – यह इन्सुलिन की क्रिया को उत्तेजित करता है। इसकी कमी मधुमेह (Diabetes) का कारण हो सकती है। यह सोयाबीन, काले चने, गाजर, टमाटर, मूँगफली, बाजरा व ज्वार में पाया जाता है।
कोबाल्ट (Cobalt) – यह रक्तहीनता से बचाव करता है तथा यह दूध, मीट एवं हरे पत्तेदार सब्जियों में पाया जाता है।

हमारे शरीर को माइक्रों खनिजों की अपेक्षा मेको खनिजों की आवश्कता अधिक होती है।

2. विटामिन (Vitamins)

विटामिन ऐसा पोषक तत्त्व है जो शारीरिक वृद्धि एवं क्रियाओं के लिए तथा रोगों से बचाव एवं लड़ने के लिए अत्यन्त आवश्यक है। हालांकि विटामिन हमारे शरीर में बहुत कम मात्रा में पाया जाता है, परन्तु यदि इसे उचित मात्रा में नहीं खाया जाए तो इसकी कमी से कई रोग उत्पन्न हो सकते हैं। हमारा शरीर इन्हें अपनी आवश्यकतानुसार स्वयं निर्मित नहीं कर सकता। इसलिए इन्हें आहार में लेना आवश्यक हो जाता है। विटामिन हमारी शारीरिक क्रियाओं को नियमित करने का भी कार्य भी करता है। इसलिए इन्हें ‘जीवन तत्त्व’ भी कहा जाता है। विटामिन, जल अथवा कम में घुलनशील होते हैं। इसी घुलनशीलता के आधार पर इन्हें दो वर्गों में बांटा गया है-

(i) वसा में घुलनशील विटामिन (Fat soluble vitamins) – यह विटामिन वसा में घुलनशील तथा जल में अघुलनशील होते हैं। अधिक मात्रा में लिए जाने पर यह तसा में घुल कर हमारे शरीर में ही शारीरिक वसा के साथ एकत्रित हो जाते हैं। इस श्रेणी में विटामिन-ए विटामिन-डी, विटामिन ई तथा विटामिन के आते हैं।
विटामिन-ए (Vitamin-A) – विटामिन-ए हल्के पीले रंग का दानेदार पदार्थ होता है। यह पशुजन्य खाद्य पदार्थों में रेटीनॉल के रूप में तथा वनस्पतिक खाद्य पदार्थों में कैरोटीन के रूप में पाया जाता है।

विटामिन-ए स्वस्थ नेत्र दृष्टि बनाए रखने के लिए अत्यंत आवश्यक होता है। यह खून में लाल रक्त कोशिकाओं का निर्माण करता है। शरीर में हार्मोन्स का संतुलन बनाए रखने में विटामिन ए का महत्वपूर्ण योगदान है। शरीर में फैटी एसिड को संतुलित करने का काम भी विटामिन-ए ही करता है। विटामिन-ए दांतों के दन्त एनेमल (Enamel) को सही रखता है। इसके अभाव के कारण दांत आसानी से टूट भी सकते हैं। यह त्वचा को कोमल व चिकना बनाए रखता है उचित मात्रा में विटामिन-ए के प्रयोग से शरीर की रोग-निरोधक क्षमता में वृद्धि होती है। नवजात शिशुओं में इसकी कमी से एनिमिया नामक बीमारी हो सकती है।

विटामिन-ए कॉड लिवर ऑयल, यकृत, अंडे, दूध तथा दूध से बने उत्पादों, पीले फलों तथा सब्जियों में पाया जाता है।

विटामिन-डी (Vitamin-D) – यह सफेद रवेदार पदार्थ है जो वसा में घुलनशील होता है। यह विटामिन शरीर के फास्फोरस तथा कैल्शियम के साथ मिलकर दांतों व हड्डियों का निर्माण करता है। यह कैल्शियम फॉस्फेट को जमाकर उन्हें मजबूती प्रदान करता है। इसलिए इसे कैल्सीफाइंग विटामिन भी कहते हैं। यह रक्त में कैल्शियम एवं फॉस्फोरस की मात्रा को नियंत्रित करता है। शरीर में कैल्शियम एवं फॉस्फोरस का उपयोग विटामिन-डी की उपस्थिति में ही होता है। विटामिन-डी का मुख्य कार्य शारीरिक वृद्धि व विकास में सहायता करना है। गर्भस्थ शिशु के पूर्ण विकास व अस्थि निर्माण के लिए गर्भवती को अतिरिक्त विटामिन-डी की आवश्यकता होती है। स्तनपान काल के दौरान माता को शिशु के लिए दुग्ध निर्माण के लिए विटामिन-डी की अधिक मात्रा की अवश्यकता होती है। शरीर में इस विटामिन की कमी से रिकेट्स, ओस्टिओमलेसिया, टिटेनी, दाँतों की गुहिकाएँ व ओस्टिओपोरोसिस हो जाता है। इसे रिकेट्-रोधी (Anti-ricket) विटामिन की संज्ञा भी दी गयी है। यह विटामिन सूर्य की किरणों, दूध, मक्खन तथा मछली के तेल में प्रचुर मात्रा में पाया जाता है।
विटामिन-ई (Vitamin-E) – यह विटामिन रक्त के जमाव के लिए अनिवार्य होता है। यह कोशिका झिल्ली को सशक्त तथा त्वचा को स्वस्थ रखता है। यह जननांगों के कार्य को सामान्य बनाए रखता है। यह हृदयाघात से बचाव करने तथा कैंसर व अल्जाइमर रोग का उपचार करने में सहायक होता है। इसकी कमी से मांसपेशियों का पतन होने लगता है तथा पक्षाघात हो जाता है। इसकी कमी से वृद्धि दर भी धीमी हो जाती है। हरी पत्तेदार सब्ज्यिाँ, दालें यकृत, अंडा तथा साबुत अनाज इसके मुख्य स्रोत हैं।
विटामिन-के (Vitamin-K) – इस विटामिन का मुख्य कार्य रक्त को थक्के के रूप में जमाना है। यह रक्तस्राव में तथा घावों से अत्याधिक रक्त के बहने में बचाव करता है। इसकी कमी से रक्तहीनता हो सकती है। टमाटर, पालक, बंदगोभी, सोयाबीन, मछली, फूलगोभी, गेहूँ, अंडे तथा मीट इसके मुख्य स्रोत हैं।
(ii) जल में घुलनशील विटामिन (Water soluble vitamins) – जल में घुलनशील विटामिनों को मुख्यतः दो वर्गों में बांटा गया है-
(a) ‘बी’ समूह के विटामिन (Vitamin-B complex) – ये केवल एक विटामिन न होकर कई विटामिनों के समूह हैं जो जल में घुलनशील होते हैं तथा शरीर में एकत्रित नहीं किए जा सकते। अतः इनकी अधिक मात्रा से शरीर को कोई हानि नहीं पहुँचती। थायमिन, (विटामिन-बी), रायबोफ्लेविन (विटामिन बी.) और नियासिन बी-समूह के विटामिन के उदाहरण हैं।
• विटामिन बी, या थायमिन (Vitamin B or Thiamin) – इस विटामिन की कमी से कब्ज की शिकायत, चक्कर आना, आँखों के आगे अँधेरा छा जाना, चिड़चिड़ा हो जाना, एकाग्रता का न होना व झगड़ालू हो जाना आदि लक्षण दिखाई देने लगते हैं। इसकी कमी से बेरी-बेरी रोग हो जाता है। थायमिन की कमी से वृद्धि रुक जाती है व भूख में कमी आ जाती है।
• विटामिन बी, (Vitamin B.) – यह विटामिन आँख, नाक, मुँह, होंठ और जीभ को स्वस्थ रखने के लिए अति आवश्यक है। इस विटामिन की कमी से श्वेत रक्त कणिकाओं की रोग निवारण क्षमता में कमी आ जाती है।
विटामिन बी, (Vitamin B) – यह विटामिन शरीर की वृद्धि में सहायक होता है। यह विटामिन व्यक्तियों के बाल स्लेटी होने से बचाव करता है।
विटामिन बी, (Vitamin B) – इस विटामिन की कमी से पैलेग्रा (Pellagra) रोग हो जाता है। यह विटामिन व्यक्ति के भार को संतुलित रखने में सहायक होता है।
विटामिन बी (Vitamin B) – यह विटामिन हीमोग्लोबिन के निर्माण में सहायक होता है।
विटामिन बी, (Vitamin B) – इस विटामिन की कमी से अवसाद, मांसपेशीय खिंचाव तथा वृद्धि में रुकावट उत्पन्न होती है।
विटामिन बी, (Vitamin B) – यह पीले रंग का गन्धहीन, रवेदार तथा स्वादहीन विटामिन होता है। भोजन को पकाने से यह विटामिन नष्ट हो जाता है। यह विटामिन शारीरिक वृद्धि व विकास तथा प्रजनन के लिए आवश्यक तत्त्व है। यह विटामिन रक्त निर्माण में सहायक होता है। इसकी कमी से श्वेताणु शक्तिहीन हो जाते हैं।
विटामिन बी,2 (Vitamin B12) – इस विटामिन की कमी से अनीमिया रोग हो जाता है। इन विटामिन्स के मुख्य स्रोत-मीट, आलू, केले, लीवर ऑयल, फलियाँ तथा खमीर होते हैं।
(b) विटामिन-सी (Vitamin-C) – यह विटामिन सफेद दानेदार रूप में होता है। भोजन पकाने के दौरान यह सबसे जल्दी व्यर्थ हो जाता है व शरीर में इसका संचय नहीं किया जा सकता। अतः आहार में इसे प्रतिदिन लेना आवश्यक है।
विटामिन-सी के कार्य (Functions of Vitamin-C) – विटामिन-सी शरीर के विकास एवं वृद्धि के लिए बहुत उपयोगी है। विटामिन-सी कोलेजन को सुदृढ़ बनाए रखता है और उसका पुनः निर्माण भी करता है। कोलेजन शरीर की विभिन्न कोशिकाओं को आपस में दृढ़ता से जोड़ने वाला पदार्थ है जो लम्बी हड्डियों के सिरे तथा दांतों के अंदर का सीमेंट वाला भाग बनाता है। घाव भरने के लिए भी कोलेजन की बहुत आवश्यकता होती है। विटामिन-सी दांतों को स्वस्थ रखने के लिए अति आवश्यक है। इससे दांतों के निर्माण एवं विकास में बहुत सहायता मिलती है। विटामिन-सी के द्वारा रक्त वाहिनियाँ स्वस्थ तथा सुदृढ़ अवस्था में रहती हैं। विटामिन-सी व्यक्ति को रोगों से लड़ने की शक्ति देता है। इसका मुख्य कार्य विशिष्ट ऊतकों व अंगों के कोशाणुओं को संगठित करना है। इस विटामिन से अस्थियों का स्वरूप, विकास और निर्माण उचित ढंग से होता है। विटामिन-सी की कमी से स्कर्वी (Scurvy) नामक रोग होने की संभावना सबसे ज्यादा रहती है।
विटामिन-सी के स्त्रोत (Sources of Vitamin C) – यह विटामिन खट्टे फलों (नींबू, आँवला), अनानास, अमरूद, बेर, संतरा, टमाटर, हरी मिर्ची तथा सेब में प्रचुर मात्रा में पाया जाता है।

आहार के पोषक तथा गैर-पोषक घटक (Nutritive and Non-Nutritive Components of Diet)

I. आहार के पोषक घटक (Nutritive Components of Diet) – आहार के वह घटक जो ऊर्जा तथा कैलोरी प्रदान करते है आहार के पोषक घटक कहलाते हैं। आहार के विभिन्न पोषक घटक निम्न हैं-

1. प्रोटीन (Protein) – प्रोटीन जीवन का आधार है। इससे जीवद्रव्य का निर्माण होता है जो कि जीव कोशिकाओं की आधारभूत संरचना है। पानी के बाद प्रोटीन है शरीर में सबसे अधिक मात्रा में पाया जाता है। स्रोत के आधार पर प्रोटीन को दो भागों में विभाजित किया गया है-
(i) पशुजन्य प्रोटीन (Animal protein) –  पशु उत्पादों से प्राप्त होने वाले प्रोटीन को पशुजन्य प्रोटीन कहा जाता है। यह प्रोटीन अंडा, दूध तथा दूध से बने उत्पादों, मांस तथा मछली आदि में पाया जाता है।
(ii) वनस्पति प्रोटीन (Vegetable protein) – वनस्पतियों से प्राप्त होने वाली प्रोटीन को वनस्पति प्रोटीन कहते हैं। यह प्रोटीन अनेक प्रकार की दालों, सोयाबीन, तिल, सरसों, मूँगफली, सूखे मेवों और अनाजों में पाई जाती है। पशुजन्य प्रोटीन को वनस्पति प्रोटीन की अपेक्षा बेहतर माना जाता है।

प्रोटीन एक पोषक तत्त्व के रूप में कई कार्य करता है, जैसे कि-

(a) प्रोटीन का नाइट्रोजन शारीरिक अंगों की वृद्धि एवं नई कोशिकाओं के निर्माण में सहायता प्रदान करता है।
(b) शरीर की क्रियाओं को नियंत्रित रूप से चलाने में सहायता प्रदान करना भी प्रोटीन का एक महत्त्वपूर्ण कार्य है।
(c) शरीर के विभिन्न रासायनिक कार्य एन्जाइम के द्वारा होते हैं। इन एन्जाइम्स का निर्माण मुख्यतः प्रोटीन से ही होता है।
(d) कई हार्मोन जैसे- इन्सूलिन, एड्रीनेलिन तथा थायराक्सिन आदि भी प्रोटीन से बने होते हैं।
(e) रक्त में उपस्थित प्रोटीन, हीमोग्लोबिन तथा आक्सीजन को हमारे शरीर के तन्तुओं तक पहुँचाता है।
(f) (Antibodies) शरीर में रोगों से बचाव के लिए कुछ प्रतिरोधी प्रोटीन द्वारा निर्मित होते हैं।
(g) यदि भोजन में वसा की कमी हो जाए तो प्रोटीन ही हमारे शरीर की विभिन्न क्रियाओं के लिए ऊर्जा प्रदान करता है।
(h) प्रोटीन के चयापचय क्रिया के दौरान जो ऊर्जा उत्पन्न होती है उससे शरीर के तापमान को स्थिर बनाए रखने में सहायता प्राप्त होती है।यह बढ़ती उम्र के बच्चों तथा खिलाड़ियों के लिए विशेष रूप से उपयोगी एवं आवश्यक पोषक तत्त्व है। यह कोशिकाओं व ऊतकों की मरम्मत के कार्य में भी प्रयुक्त होती है। इसलिए बड़े लोगों (वयस्कों) के लिए भी समान रूप से आवश्यक है। इसके उपयोग को देखते हुए प्रोटीन को संभवतः सभी खाद्य पदार्थों में से सर्वोत्तम खाद्य पदार्थ समझा जाता है। इसकी कमी से शारीरिक वृद्धि तथा मानसिक विकास में कमी आती है। इसके अतिरिक्त सुखा रोग तथा क्वाशियोकर रोग भी हो सकता है।

2. कार्बोहाइड्रेट्स (Carbohydrates)

कार्बोहाइड्रेट्स हमारे भोजन का सबसे प्रमुख भाग हैं। यह शरीर के लिए ईंधन का काम करता है। यह शरीर को ऊर्जा व ऊष्मा प्रदान करत है। अतिरिक्त मात्रा में ग्रहण किया गया कार्बोहाइड्रेट शरीर के द्वारा वसा व ग्लाइकोजन के रूप में परिवर्तित करके कोशिकाओं व यकृत में (रिजर्व) संग्रहित कर लिया जाता है, जो कि समय पड़ने पर शरीर के द्वारा उपयोग किया जाता है। शरीर में इनकी कमी से थकान व सुस्ती महसूस होती है तथा शरीर के निर्माण कार्यों में कमी आती है। इसके अतिरिक्त कब्ज तथा मधुमेह की शिकायत भी हो सकती है।

कार्बोहाइड्रेट्स के स्रोत – सभी प्रकार के अनाज, अंकुरित दालें, सोयाबीन, आलू, गाजर, शलगम, केला, अंगूर, चुकन्दर, गन्ना व मीठे रसदार फल, गुड़, चाना, खजूर, शहद तथा दूध आदि कार्बोहाइड्रेट के प्रमुख स्रोत हैं।

3. वसा (Fats) – बसा भी भोजन का एक अत्यन्त आवश्यक वृहत् पोषक तत्त्व है। कार्बोहाइड्रेट्स की तरह वसा भी एक रासायनिक यौगिक है जो कार्बन,mहाइड्रोजन तथा आक्सीजन से मिलकर बनी होती है।

वसा शरीर की अनेक क्रियाओं के लिए अत्यंत आवश्यक होती है। वसा हमें गर्म रखती है तथा कोमल अंगों को सुरक्षा प्रदान करती है। वसा हारमोन्स के उत्पादन में भी सहायता करती है। वसा शरीर के तापमान को नियमित रखने में मदद करती है। यह त्वचा को खुरदरा होने से बचाती है तथा गर्मी व सर्दी के बाहरी प्रभाव से भी शरीर की रक्षा करती है। वसा की सही मात्रा शरीर की सुंदरता को भी बनाए रखती है।

वसा के स्रोत – प्राप्ति के आधार पर वसा के दो स्रोत निम्नलिखित है-
पशुओं से प्राप्ति (Animal sources) – वसा की प्राप्ति हमें पशुओं से भी होती है। जैसे कि मक्खन, घी, चर्बी, संपूर्ण दूध और इसके उत्पादन, मांस, मछली, मुर्गी और अण्डा आदि वसा के अच्छे स्रोत होते हैं।
वनस्पति से प्राप्ति (Vegetable sources) – वनस्पतियों से भी हमें वसा की प्राप्ति होती है। जैसे कि तेल मूंगफली, अदरक, सरसों, बिनौला, सूरजमुखी और गोले आदि के तेल समिमलित हैं। इनमें जमी हुई वसा, कृत्रिम मक्खन, गिरी और काजू, अखरोट, मूंगफली. बादाम, अदरक और सरसों आदि तिलहनों के बीज आदि।
आहार में वसा का होना जरूरी होता है। लेकिन इसकी मात्रा सीमित ही रहनी चाहिए।
4. विटामिन (Vitamins) – विटामिन भी भोजन का मुख्य तत्त्व होते हैं। हालांकि शरीर में इन विटामिन की कम मात्रा में ही आवश्यकता होती है, लेकिन फिर भी ये स्वस्थ जीवन के लिए बहुत आवश्यक होते हैं। विटामिन विभिन्न प्रकार की बीमारियों से हमारे शरीर का बचाव करते हैं तथा रोग प्रतिरोधक क्षमता को भी बढ़ाते हैं। ये शरीर के सामान्य विकास में अपना महत्त्वपूर्ण योगदान देते हैं। विटामिन को दो भागों में बाँटा जाता है-

(i) वसा में घुलनशील (Fat Soluble Vitamins)

• विटामिन-ए (Vitamin-A) – विटामिन-ए की कमी से आँखों के रोग, जैसे- रतौंधी तथा जीरोसिस कॉर्निया आदि रोग हो सकते हैं। यह विटामिन शरीर की सामान्य वृद्धि के लिए आवश्यक हैं। यह संक्रामक रोगों से भी हमारी रक्षा करता है। इस विटामिन की कमी से त्वचा सूख जाती है तथा उसमें दरारें पड़ जाती हैं। इस विटामिन की कमी से दाँतों की चमक खत्म हो जाती है। तथा वे पीले पड़ जाते हैं। इसकी कमी से पथरी भी बन सकती है। विटामिन-ए मुख्य रूप से घी, मक्खन, दूध, दही, अंडे की जर्दी, मछली, टमाटर, पपीता, हरी सब्जियाँ, संतरा, पालक, गाजर तथा सीताफल आदि में पाया जाता है।
• विटामिन-डी (Vitamin-D) – यह विटामिन स्वस्थ दाँतों तथा अस्थियों के निर्माण में सहायता करता है। इसके द्वारा शरीर की उचित वृद्धि होती है। इस विटामिन की कमी से अस्थि विकृति रोग हो जाता है तथा दाँतों की बनावट भी खराब हो जाती है। विटामिन-डी अधिकतर अंडे की जर्दी, मछली, सूर्य का प्रकाश, हरी सब्जियाँ, पीली गाजर, टमाटर तथा दूध में पाया जाता है।
• विटामिन-ई (Vitamin-E) – इस विटामिन की कमी से स्त्रियों में बाँझपन तथा पुरुषों में नपुंसकता आ जाती है। इसकी कमी से मांसपेशियों के विकास में कमी आ जाती है तथा हृदय भी ठीक प्रकार से कार्य नहीं करता। इसकी कमी से गर्भपात भी हो सकता है। यह विटामिन सभी प्रकार के अनाजों में, विशेषकर मक्का में अधिक पाया जाता है। इनके अलावा अंकुर वाले बीजों में, बिनौले व ताड़ के तेल में, हरी पत्तेदार सब्जियों में, गुर्दे, यकृत तथा दिल में पाया जाता है।
• विटामिन के-(Vitamin-K) – इस विटामिन का रक्त को जमाने में मुख्य योगदान होता है। शरीर में यदि इस विटामिन की कमी हो जाती है, तो बहते हुए रक्त को जमने में बहुत अधिक समय लगता है। इस विटामिन की कमी से अनीमिया रोग हो जाता है। यह विटामिन अधिकतर पत्तागोभी, बंदगोभी, पालक, टमाटर, आलू, हरी सब्जियों, गेहूँ, अंडा तथा मांस आदि में पाया जाता है।

(b) जल में घुलनशील विटामिन (Water Soluble Vitamins) – इस विटामिन के अंतर्गत 12 विटामिन होते हैं, जिन्हे विटामिन-बी संयोजित भी कहा जाता है। इन विटामिन का संक्षिप्त विवरण निम्न है-

• विटामिन बी या थायमिन (Vitamin B or Thiamin) – यह विटामिन शरीर में कार्बोहाइड्रेट्स के उपापचयन में सहायक हो है। तंत्रिका तंत्र को क्रियाशील करने के लिए यह विटामिन सक्रिय रूप से कार्य करता है। इस विटामिन की कमी से कब्ज की के आगे अँधेरा छा जाना, चिड़चिड़ा हो जाना, एकाग्रता का न होना व झगड़ालू हो जाना जैसे दिखाई देने लगते हैं। इसकी कमी से बेरी-बेरी रोग हो जाता है। थायमिन की कमी से शारीरिक वृद्धि भी धीमी हो जाती है। यह विटामिन गेहूँ, मूँगफली, हरे मटर, संतरे, खमीर, यकृत, सूअर के मांस, अंडे, हरी सब्जियों, चावल तथा अंकुर वाले बीजों में पाया जाता है।
• विटामिन-बी, (Vitamin B) – यह विटामिन आँख, नाक, मुँह, होंठ और जीभ को स्वस्थ रखने के लिए अति आवश्यक है। इस विटामिन की कमी से मुँह और होंठ फटने लगते हैं या उनमें दरारें पड़ने लगती है। इस विटामिन की कमी से रोग निवारण क्षमता में कमी आती है। यह विटामिन अधिकतर अंडे की जर्दी, मछली, दालों, मांस, मटर, चावल, खमीर व गेहूँ में पाया जाता है। हमें पत्तेदार सब्जियों में यह विटामिन प्रचुर मात्रा में मिलता है। जाता है।
• विटामिन बी (Vitamin B) – यह विटामिन शरीर की वृद्धि में सहायक होता है तथा बालों के सलेटी रंग के होने में बचाव करता। है। यह विटामिन दूध, अंडे की जर्दी, मेवा तथा अखरोट में पाया जाता है।
• विटामिन-बी, (Vitamin B.) – यह विटामिन व्यक्ति के भार को संतुलित रखने में सहायक होता है। इस विटामिन की कमी से पैलेग्रा रोग हो जाता है। यह विटामिन खमीर, दूध, मक्खन, पिस्ता, पॉलिशदार चावल तथा दाल आदि में पाया जाता है।
• विटामिन-बी, (Vitamin B.) – यह विटामिन हीमोग्लोबिन के निर्माण में सहायक होता है तथा त्वचा को भी स्वस्थ रखता है। यह विटामिन, मांस, मछली, अंडे की जर्दी, खमीर, चावल, गेहूँ तथा मटर में पाया जाता है।
• विटामिन-बी, (Vitamin B.) – इस विटामिन की कमी से अनीमिया रोग हो जाता है। मांस, मछली और अंडों में यह विटामिन भरपूर मात्रा में पाया जाता है। फोलिक एसिड (Folic Acid): शारीरिक वृद्धि व विकास तथा प्रजनन के लिए यह आवश्यक तत्त्व है। यह विटामिन रक्त निर्माण में सहायक होता है। इसकी कमी से श्वेताणु शक्तिहीन हो जाते हैं। यह विटामिन खमीर, पालक व यकृत में पाया जाता है।
• विटामिन-सी (Vitamin C) – शरीर में इस विटामिन की उपस्थिति से घाव जल्दी भर जाता है। इस विटामिन से उपापचयात्मक दर की गति बढ़ जाती है। इसकी कमी से स्कर्वी रोग हो जाता है। इस विटामिन की कमी से मसूढ़ों से खून निकलना शुरू हो जाता है। विटामिन-सी नारंगी, नींबू, अनानास, अमरूद, आँवला, बेर, संतरा, हरी पत्तेदार सब्जियों, सलाद, टमाटर, गोभी, तथा पालक आदि में पाया जाता है। टमाटर, बेर और आँवले में यह विटामिन सर्वाधिक मात्रा में पाया जाता है।

5. खनिज लवण (Minerals)
शलगम खनिज लवण शरीर की वृद्धि एवं विकास तथा उसे स्वस्थ रखने, दाँतों के निर्माण में, अम्ल व क्षार के संतुलन को ठीक रखने में विशेष योगदान देते हैं। इन खजिन लवणों का संक्षिप्त विवरण निम्न है-
(a) कैल्शियम (Calcium) – कैल्शियम दाँतों और अस्थियों के निर्माण का कार्य करता है। यह रक्त को जमाने में भी मदद करता है। मानव शरीर के कुल शारीरिक भार का 2% कैल्शियम होता है। कैल्शियम दूध व उससे बने उत्पादों में, अंडे की जर्दी, संतरा, हरी सब्जियों में पर्याप्त मात्रा में पाया जाता है।
(b) फॉस्फोरस (Phosphorus) – फॉस्फोरस भी दाँतों और अस्थियों के निर्माण में सहायता करता है। फॉस्फोरस अंडों, मछली, मांस, दूध, यकृत तथा बिना पॉलिश के चावलों में प्रचुर मात्रा में उपलब्ध होता है।
(c) लोहा (Iron) – शरीर में लोहे का मुख्य कार्य हीमोग्लोबिन का निर्माण करना होता है। शरीर में लोहे की अनुपस्थिति से अनीमिया हो सकता है। लोहा, यकृत, मीट, अंडे, सूखे मेवे व हरी पत्तेदार सब्जियों में पर्याप्त मात्रा में पाया जाता है।
(d) आयोडीन (lodine) – आयोडीन थाइराइड ग्रंथि की क्रियाशीलता के लिए आवश्यक है। आयोडीन की कमी से घेंघा (goitre) रोग जाता है। आयोडीन की कमी से वृद्धि व विकास रुक जाता है जिसके कारण बच्चा बौना रह सकता है। आयोडीन की कमी के कारण त्वचा मोटी व खुरदरी हो जाती है। आयोडीन समुद्री मछलियों में काफी मात्रा में पाया जाता है। इसकी पूर्ति के लिए आयोडीनयुक्त नमक लेना चाहिए।
(e) सोडियम (Sodium) – यह शरीर में पानी के संतुलन को बनाए रखता है। सोडियम मांसपेशियों के संकुचन में भी सहायता करता है। सोडियम साधारण नमक, दूध व उससे बने पदार्थों, मांस तथा अंडे आदि में पाया जाता है।
(f) पोटैशियम (Potassium) – पोटेशियम की कमी से मांसपेशियाँ कमजोर हो जाती हैं तथा शरीर में फुर्तीलापन नहीं रहता है। इसकी कमी से एडीसन रोग भी हो जाता है। यह गाजर, चुकंदर, अंजीर, प्याज, टमाटर, आम, संतरा, केला तथा सेब इत्यादि में पर्याप्त मात्रा में पाया जाता है।
(g) सल्फर (Sulphur) – सल्फर बालों व नाखून के निर्माण में सहायक होता है। यह अंडों, मूली, दालों, गाजर, मटर, पालक तथा टमाटर आदि में काफी मात्रा में पाया जाता है।

11. आहार के गैर-पोषक घटक या तत्त्व (Non- Nutritive Components of Diet)

आहार के ऐसे घटक जो कैलोरी/ऊर्जा उपलब्ध नहीं कराते, गैर-पोषक घटक कहलाते हैं।

गैर-पोषक घटक होने के बावजूद भी यह हमारे लिए आवश्यक है। जैसे कि जल व फाइबर जैसे गैर-पोषक तत्त्व तो पोषक तत्त्वों से भी ज्यादा महत्त्वपूर्ण व आवश्यक हैं। गैर-पोषक तत्त्वों का प्रयोग किसी खाद्य पदार्थ को विशिष्ट स्वाद या रंग देने के लिए किया जाता है। जैसे कि- मधुमेह (डायबिटीज) रोगियों के लिए मिठाईयों या पेय पदार्थों (चाय, कॉफी आदि) को मीठा करने के लिए, जिससे कि वह पदार्थ मीठा भी हो जाए तथा उसकी कैलोरी भी समाप्त हो जाए। आहार के विभिन्न गैर-पोषक घटक निम्न हैं-

1. फोक/फाइबर (Roughage/Fibre) – फोक भोजन का वह भाग होता है जिसे मनुष्य की आँतों द्वारा पचाया नहीं जा सकता अर्थात् यह भोजन का अपचित भाग होता है। फोक से भोजन का परिमाण बढ़ता है जिससे आँतों के विकार दूर होते हैं तथा उनकी कार्यक्षमता में सुधार आता है। आँतों में इस सुधार के कारण व्यक्ति को कब्ज की समस्या भी नहीं रहती। इसके अतिरिक्त फोक के नियमित उपभोग से हृदय संबंधी रोगों की संभावना में भी कमी आती है तथा कई प्रकार के कैंसर का खतरा भी कम होता है। फोक दो प्रकार के होते हैं-
(a) जल में घुलनशील फोक – इससे मधुमेह का स्तर नियमित रहता है तथा कोलेस्ट्रोल कम होता है।
(b) जल में अघुलनशील फोक – इससे मल मुलायम होता है जिसके कारण कब्ज की समस्या नहीं रहती। फोक के स्त्रोत : गेहूँ, ताजे फल, जड़ वाली सब्जियाँ, जौ तथा मछली फोक के अच्छे स्रोत हैं।

2. जल (Water) – जल हमारे जीवन का मूल आधार है। मानव शरीर का 65-70% भाग जल से ही बना होता है। हमारे शरीर में जितनी भी जैविक और रासायनिक क्रियाएं होती हैं वे तरल माध्यम में ही होती हैं जिसमें जल की प्रधानता होती है। जल ही हमारे शरीर के तंतुओं को नर्म और कोमल रखता है। शरीर में जल की कमी के कारण यकृत अपना काम सुचारु रूप से नहीं कर पाता, जिससे पसीना भी कम निकलता है। फलतः शरीर का तापमान बढ़ जाता है और शरीर के विकार नहीं निकल पाते, इससे रक्त विषाक्त हो जाता है। ऐसी स्थिति में मृत्यु भी हो सकती है। शरीर में अवशोषित ग्लूकोज का शरीर के विभिन्न अंगों में वितरण जल के द्वारा ही होता है।

जल शरीर के रक्त को संतुलित अवस्था में रखता है। जल की कमी से रक्त गाढ़ा हो जाता है। जिसके कारण इसका परिवहन धीमा पड़ जाता है। शरीर में उपस्थित जल का 5% भाग प्रतिदिन हमें प्रतिस्थापित करना होता है।

3. स्वाद यौगिक (Flavour Compounds) – कुछ यौगिक ऐसे होते हैं जो भोज्य पदार्थों में विशेष स्वाद या गंध के लिए प्रयोग किए जाते हैं। जैसे कि- दूध में चाय पत्ती या कॉफी डालने से उसका स्वाद व गन्ध बदल जाती है। इसी प्रकार से मधुमेह के मरीज की चाय को मीठा करने के लिए बिना कैलोरी वाली मीठी चीनी का प्रयोग करते हैं। अर्थात् स्वाद यौगिक न ऊर्जा और न ही पोषण देते हैं, बल्कि ये पदार्थ केवल भोजन में हमारी रुचि व स्वाद बढ़ाते हैं। खाने-पीने की चीजों में स्वाद व गन्ध के लिए मिलाए गए ये यौगिक हमारे स्वास्थ्य के लिए हानिकारक भी सिद्ध हो सकते हैं। इसलिए भोज्य पदार्थों की प्राकृतिक गन्ध व स्वाद ही बेहतर होता है।
4. रंग यौगिक (Colour Compounds) – हर प्राकृतिक खाद्य पदार्थ फिर चाहे वह फल हो या सब्जियाँ, अनाज हो या दालें सभी का कोई-न-कोई रंग होता है। इन पदार्थों को बाजार में अच्छे भाव में बेचने के लिए कई बार इन पर रासायनिक रंग भी चढ़ा दिये जाते हैं, जोकि स्वास्थ्य के लिए घातक हो सकते हैं। जबकि ये प्राकृतिक रंग यौगिकों से हमें कोई पोषण संबंधी नुकसान या लाभ नहीं होता है।
5. पादप यौगिक (Plant Compounds) – रंग तथा स्वाद यौगिकों के अतिरिक्त भी कुछ पादप यौगिक ऐसे होते हैं जिनमें गैर-पोषक तत्त्व पाए जाते हैं। कई पादप यौगिक ऐसे है जिन्हें खाने पर उनके लाभदायक अथवा हानिकारक प्रभाव हो सकते हैं। विभिन्न शोधों से यह सिद्ध हुआ है कि- बहुत-से ऐसे पादप यौगिक हैं जो कैंसर की रोकथाम करते हैं। पादपों में कई ऐसे हानिकारक पदार्थ भी होते हैं जिन्हें यदि अधिक मात्रा में जाए तो उनके हानिकारक प्रभाव सकते हैं, जैसे कि- कैफीन, इसे यदि अधिक मात्रा में लिया जाए तो हृदय गति में, आमाशय से स्रावित होने वाले अम्ल में तथा मूत्र में वृद्धि होती है।