NCERT Solutions Class 12th Physical Education Chapter – 2 खेल-कूद में बच्चे और महिलाएँ (Children and Women in Sports)
Textbook | NCERT |
class | 12th |
Subject | Physical Education |
Chapter | 2nd |
Chapter Name | खेल-कूद में बच्चे और महिलाएँ (Children and Women in Sports) |
Category | Class 12th Physical Education |
Medium | Hindi |
Source | Last Doubt |
NCERT Solutions Class 12th Physical Education Chapter – 2 खेल-कूद में बच्चे और महिलाएँ (Children and Women in Sports)
Chapter – 2
खेलों में बच्चे तथा महिलाएँ
Notes
भूमिका (Introduction) – खेलना हर बच्चे को जन्मजात प्रवृत्ति है और अपनी इस प्रवृति का प्रदर्शन बच्चे पैदा होने के कुछ ही देर में अपने हाथ-पैर हिलाकर कर लगते हैं। जैसे-जैसे बच्चे बढ़े होते जाते हैं अर्थात् बच्चों की वृद्धि एवं विकास के अनुरूप उनमें विभिन्न प्रकार को शारीरिक क्रियाओं में कौशल सटीकता तथा कुशलता आने लगती है। बच्चों के शारीरिक तथा मानसिक विकास का खेलों से बड़ा गहरा संबंध है। हालांकि यह जरूरी है कि खेल गतिविधियाँ बच्चों के अनुरूप ही होनी चाहिए। यदि खेल क्रियाएँ बच्चों की विकासात्मक क्षमताओं के अनुरूप न हो तो वह क्रियाओं में रुचि नहीं लेंगे और खेलों में भाग भी नहीं लेंगे। इससे उनके शारीरिक एवं मानसिक स्वास्थ्य पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है और उनका गामक विकास भी अवरुद्ध होता है। इसके परिणामस्वरूप बच्चों में भविष्य में कई आसन संबंधी विकृतियाँ होने की संभावना बढ़ जाती हैं। |
आसन संबंधी सामान्य विकृतियाँ तथा उनके सुधारात्मक उपाय (Common Postural Deformities and Their Corrective Measures) – शरीर की बनावट में उत्पन्न ऐसी विकृतियाँ जो अनुचित शरीरिक आसनों द्वारा उत्पन्न होती हैं आसन संबंधी विकृतियाँ कहलाती हैं। |
अनुचित शारीरिक आसन के कारण (Causes of Bad Postures) 1. गुरुत्वाकर्षण शक्ति (Gravitational Force) – अनुचित या दोषयुक्त आसन हम बैठते. लेटतें, खड़े या दौड़ते हैं या कोई भी अन्य कार्य करते हैं तो गुरुत्वाकर्षण शक्ति हमारे शरीर पर हर समय लागू रहती है। ऐसे के लिए गुरुत्वाकर्षण एक प्रमुख कारक है। जब भी में यदि हम इस शक्ति का प्रतिरोध करने में असफल रहते हैं तो हमारा शरीर गुरुत्वाकर्षण शक्ति के अनुसार ही ढल जाता है। 2. चोट (Injury) – कई बार किसी चोट के कारण कोई ऐसी अस्थि, तंतु अथवा पेशी क्षतिग्रस्त या कमजोर पड़ जाती है जो उचित आसन को बनाए रखने में अहम भूमिका निभाती है। ऐसी स्थिति में बना गलत आसन एक आदत सी बन जाती है। 3. बीमारी (Disease) – कई बार किसी बीमारी के कारण भी मांसपेशियों या अस्थिय कमजोर हो जाती जिसके कारण आसन संबंधी विकृतियाँ हो जाती हैं। जैसे कि पोलियों के कारण अस्थियों कमजोर होकर विकृत रूप धारण कर लेती है। 4. आदत (Habit) – अक्सार एक निश्चित मुद्रा में उठने-बैठने, चलने तथा कार्य करने के कारण भी आसन संबंधी विकृतियाँ हो जाती है, जैसे कि- यदि कोई व्यक्ति चलते समय हमेशा अपना सिर और कधे आगे की ओर झुकाकर चलता है तो वह धीरे-धीरे विकृति का रूप धारण कर लेता है। 5. आनुवंशिकता(Heredity) – यदि माता-पिता में से कोई भी किसी आसन संबंधी विकार से ग्रस्त है तो उनके बच्चों में भी इस विकार की संभावना कहीं अधिक बढ़ जाती है। 6. अनुचित परिधान (Improper clothings) – कई बार व्यक्ति ऐसे कपड़े या जूते पहन लेता है जिसके कारण वह असहज महसूस करता है। अपनी असहजता को छुपाने के लिए वह अवसर अनुमित आसन अपनाने लगते है जो धीरे-धीरे एक आसन संबंधी विकृतिका रूप धारण कर लेती है, जैसे कि ऊँची हील पहनने वाली महिलाओं में अनुचित आसन की संभावना सबसे अधिक पाई जाती है। 7. असंतुलित आहार व कुपोषण (Improper diet or malnourishment) – असंतुलित आहार या कुपोषण के कारण शरीर में विटामिनों तथा खनिज लवणों की कमी हो जाती है, जिसके चलते व्यक्ति ऑस्टिओपरोसिस रिकेट्स इत्यादि का शिकार हो जाता है। इन विकारों के कारण भी आसन संबंधी विकृतियाँ हो जाती है। 8. अधिक भार (Over load) – नियमित रूप से पीठ तथा कंधों पर बोझ ढोने से स्पाइन कोर्ड (Spine Chord) दया कथा के आकार में विकृति आने लगती है। इसके कारण व्यक्ति कायफोसिस अथवा स्कोलियोसिस की समस्या से ग्रस्त हो जाता है। 9. व्यायाम की कमी (Lack of exercise) – नियमित रूप से व्यायाम न करने से शरीर की लचक तथा तालमेल संबंधी योग्यताओं में कमी आती है जो आगे चलकर शारीरिक विकृतियों के रूप में दिखने लगती है। 10. मोटापा (Obesity) – मोटापा अर्थात् अत्याधिक शारीरिक भार के कारण मांसपेशियों तथा अस्थि संस्थान पर पड़ने वाले अत्यधिक दबाव के कारण भी आसन संबंधी विकृति आने लगती है। 11. गरीबी (Poverty) – गरीबी तथा मूलभूत सुविधाओं में कमी भी कई आसन संबंधी विकृतियों का महत्वपूर्ण कारण है। 12. व्यवसाय (Occupation) – कई व्यवसाय ऐसे भी होते है जिनमें व्यक्ति को लंबे समय तक असंतुलित तथा अनुचित अवस्था में रहकर कार्य करना पड़ता है। जैसे कि लगातार बैठे या खड़े रहना पड़ता है। इसके कारण भी शारीरिक विकृतियाँ उत्पन्न होने लगती है। 13. थकावट (Fatigue) – थकावट को अवस्था में भी लम्बे समय तक कार्य करने से भी व्यक्ति के आसन में परिवर्तन आने लगता तथा उसका आसन दोषयुक्त होने लगता है। 14. गलत आकार का फर्नीचर (Improper furniture) – यदि व्यक्ति द्वारा नियमित रूप से प्रयोग किए जाने वाला फर्नीचर उसके शारीरिक आकार के अनुरूप नहीं हो तो भी शारीरिक विकृतियाँ उत्पन्न होने लगती है, जैसे कि यदि डेस्क को ऊँचाई ठीक न हो तो पढ़ने-लिखने में अनुचित आसन का प्रयोग होने लगता है जिसके फलस्वरूप बच्चों के आसन दोषयुक्त हो जाते हैं। |
विभिन्न प्रकार की आसन संबंधी सामान्य विकृतियाँ (Various Types of Common Postural Deformities) – विभिन्न प्रकार की आसन संबंधी विकृतियों का संक्षिप्त विवरण निम्नलिखित हैं-
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1. घुटनों का टकराना (Knock Knees) – घुटनों का टकराना एक आसन संबंधी विकृति है जिसमें, सामान्य रूप से खड़ी अवस्था में व्यक्ति के दोनों घुटने आपस में मिलते अर्थात् टकराते प्रतीत होते हैं। इस समस्या से ग्रस्त व्यक्ति की ऐडियों में अंतर बढ़ता जाता है जिसके कारण उन्हें ऐडियाँ आपस में मिलाने में भी कठिनाई होती है। इसके समस्या के कारण व्यक्ति को सही ढंग से चलने व दौड़ने में परेशानी होती है। इस विकृति से ग्रस्त लोगों का डिफेंस सर्विसेज के लिए चयन नहीं किया जाता। |
घुटनों के टकराने के लक्षण (Symptoms of Knock Knees)
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घुटनों के टकराने के कारण (Causes of Knock Knees)
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सावधानियाँ (Precautions)
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उपाय (Remedies)
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घुटनों के आपस में टकराने से संबंधित सुधारात्मक व्यायाम (Corrective Exercises for Knock Knees)
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2. चपटे पैर (Flat Foot) – पैर हर व्यक्ति के लिए खड़े रहने चलने, दौड़ने व कूदने के लिए आधार प्रदान करते हैं। चपटे पैर मुख्य रूप से नवजात शिशुओं में पाए जाते हैं, जो धीरे-धीरे एक आसन संबंधी विकृति का रूप ले लेते हैं। इस समस्या से ग्रस्त व्यक्ति को पैरों में दर्द महसूस होता है। उन्हें खड़े रहने व चलने में भी समस्या का सामना करना पड़ता है। |
चपटे पैरों के लक्षण (Symptoms of Flat Foot)
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चपटे पैरों के कारण (Causes of Flat Foot)
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सावधानियाँ (Precaution)
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उपाय (Remedies)
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चपटे पैरों से संबंधित सुधारात्मक व्यायाम (Corrective Exercises for Flat Foot)
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3. गोल या झुके हुए कंधे (Round Shoulders) – इस प्रकार की आसन संबंधी विकृति में कन्धे गोल होकर आगे की ओर झुके हुए प्रतीत होते हैं।
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गोल या झुके हुए कंधे के लक्षण (Symptoms of Round Shoulders)
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गोल या झुके हुए कंधे के कारण (Causes of Round Shoulders)
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सावधानियाँ (Precautions)
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उपाय (Remedies)
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गोल कंधों से संबंधित सुधारात्मक व्यायाम (Corrective Exercises for Round Shoulders)
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4. आगे की ओर कूबड़ (Lordosis) – आगे की ओर कूबड़ में रीढ़ की हड्डियों का झुकाव आगे की ओर होता है, जिससे शरीर के आकार में विकृति आ जाती है और शरीर अकडा हुआ रहता है। इससे व्यक्ति को खड़े होने एवं चलने में काफी परेशानी होती है। |
आगे की ओर कूबड़ के लक्षण (Symptoms of Lordosis)
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आगे की ओर कूबड़ के कारण (Causes of Lordosis)
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सावधानियाँ (Precautions)
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उपाय (Remedies)
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लोरडोसिस / आगे की ओर कूबड़ से संबंधित सुधारात्मक व्यायाम (Corrective Exercises for Lordosis) • छाती के बल लेटकर दोनों हाथों को पेट पर रखें। फिर कूल्हों तथा कन्धों को नीचे रखें। पेट पर हाथों से ऊपर की ओर जोर डालें तथा पीठ के नीचे के भाग को ऊपर उठाने का प्रयास करें। • आगे की ओर लंबा कदम लें। पिछले पैर का घुटना मैट पर लगाएँ। अगला, पैर, घुटने से आगे रहना चाहिए। दोनों हाथ आगे वाले घुटने पर रखें। पिछली टोंग के कूल्हे आगे की ओर ले जाकर कूल्हे को सीधा करें। इस अवस्था में कुछ समय रुकें। यही क्रिया टाँग को बदल कर करें। • सीधे खड़े होकर कमर से आगे की ओर झुकें। फिर प्रारंभिक अवस्था में आ जाएँ तथा फिर आगे झुकें। इसी व्यायाम को सुबह-शाम कम से कम 10 बार करें। • पीठ के बल लेटकर अपने सिर तथा टाँगों को एक साथ ऊपर उठाएँ। इस व्यायाम को सुबह-शाम कम-से-कम 10 बार अवश्य दोहराएँ। • हलासन को नियमित रूप से करना चाहिए। टाँगों तथा पीठ को धीरे-धीरे ऊपर उठाएँ तथा पंजों को सिर के ऊपर से लाकर जमीन पर टिकाएँ। इस व्यायाम को सुबह-शाम कम-से-कम 5 बार अवश्य दोहराएँ। • पीठ के बल लेटकर अपनी टाँगों को 45° के कोण पर ऊपर उठाकर 10 से 15 मिनट इसी अवस्था में बने रहें। इस व्यायाम को सुबह-शाम कम-से-कम 10 बार अवश्य दोहराएँ। • सीधे खड़े होकर आगे की तरफ झुककर टो टचिंग करना। • टाँगों को आगे की ओर फैलाकर बैठ जाएँ। फिर अपने माथे से अपने घुटनों को स्पर्श करें। यह व्यायाम 10 बार दोहराएँ। |
5. पीछे की ओर कूबड़ (Kyphosis) – इस प्रकार की आसन संबंधी विकृतियों में जिसमें पीठ की मांसपेशियों कमजोर होने के कारण रोड़ की हड्डी पीछे की ओर हो जाती है, जिसके कारण छाती दबी रहती है अर्थात् सीधी नहीं होती। इस स्थिति में सिर और गर्दन आगे की ओर झुक जाते हैं। |
पीछे की ओर कूबड़ के लक्षण (Symptoms of Kyphosis)
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इस विकृति के मुख्य कारण (Causes of Kyphosis)
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सावधानियाँ (Precautions) – पीछे की ओर कूबड़ से बचाव के लिए निम्नलिखित सावधानियाँ अपनाई जानी चाहिए-
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उपाय (Remedies) – पीछे की ओर कूबड़ की स्थिति में निम्नलिखित उपाय करने चाहिए- • कुर्सी पर इस प्रकार बैठें, ताकि पीठ का सबसे निचला भाग कुर्सी की पीठ को पूर्णरूप से स्पर्श कर सके। ऊपर की ओर देखते हुए, अपने दोनों हाथों को पीठ के पीछे इस तरह से पकड़ें ताकि आपके कन्धे पीछे की ओर खिचें हुए रह सकें। कुछ समय के लिए इसी स्थिति में रहें। • सोने के दौरान अपनी पीठ के नीचे हमेशा तकिया (pillow) अवश्य रखें। • खड़ी हुई स्थिति में अपना सिर पीछे की ओर मोड़ें तथा कुछ समय इसी स्थिति को बनाए रखें। • धनुरासन (योग आसन) को नियमित रूप से करें। • छाती के बल लेट जाएँ। अपने हाथों को कन्धे के पास रखें। अब अपनी छाती को, बाजुओं को धीरे-धीरे सीधा करते हुए ऊपर उठाएँ। सिर पूर्णतया पीछे की ओर होना चाहिए। कुछ समय तक इस स्थिति को बनाएँ रखें। • कन्धे के स्तर पर दोनों हाथों को बराबर में फैलाए, फिर कोहनियों से बाजुओं को मोड़ें। फिर कोहनियों को पीछे की ओर थोड़ा झटका लगाएँ तथा वापस प्रारम्भिक दशा में आएँ तथा अच्छे परिणाम हेतु इसी क्रिया को कम-से-कम 8 बार अवश्य दोहराएँ। |
कायफोसिस / पीछे की ओर कूबड़ से संबंधित सुधारात्मक व्यायाम (Corrective Exercises for Kyphosis) • इस विकृति के सुधार के लिए तैराकी बहुत ही लाभकारी रहती है। • पेट के बल जमीन पर लेटकर हथेलियों को कंधे के नीचे रखते हुए धीरे-धीरे धड़ को ऊपर की ओर लाना चाहिए, जब तक कि कोहनियाँ सीधी न हो जाएँ। छत या आसमान की ओर देखते हुए 8-10 सेकेण्ड तक इसी अवस्था में बने रहें और बाद में धीरे-धीरे पहले वाली मुद्रा में वापस आना चाहिए। इस क्रिया को सुबह तथा शाम कम-से-कम 5 बार अवश्य करना चाहिए। • खड़ी हुई स्थिति में अपना सिर पीछे की ओर मोड़ें तथा कुछ समय इसी स्थिति में रहें। • कुर्सी पर इस तरह बैठें की पीठ का सबसे निचला भाग कुर्सी की पीठ को पूरी तरह से स्पर्श करे। अब ऊपर की ओर देखते हुए, अपने दोनों हाथों को पीठ के पीछे इस तरह से पकड़ें कि कन्धे पीछे की ओर खिंचे हुए रह सकें। कुछ समय के लिए इसी स्थिति में रहें। • सोते समय पीठ के नीचे तकिया अवश्य रखें। • छाती के बल लेटकर कंधों को हाथों के पास रखें। फिर सिर को पीछे की ओर रखते हुए छाती तथा बाजुओं को सीधा करते हुए ऊपर उठाएं। कुछ देर के लिए इसी स्थिति में बने रहें। |
6. धनुषाकार / बाहर की ओर मुड़ी हुई टाँगें (Bow Legs) – बाहर की ओर मुड़ी हुई या धनुषाकर टाँगे एक आसन सम्बन्धी विकृति है जिसमें सामान्य स्थिति में दोनों पैरों को एक साथ मिलाकर सीधे खड़े होने पर दोनों घुटनों की बीच में काफी अन्तर पाया जाता है। इस अवस्था में टाँगें बाहर की ओर मुड़ी हुई अर्थात्ध नुषाकार आकार में प्रतीत होती हैं। |
धनुषाकार टाँगों के लक्षण (Symptoms of Bow Legs)
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धनुषाकार टाँगों के कारण (Causes of Bow Legs)
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सावधानियाँ (Precautions)
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उपाय (Remedies)
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धनुषाकार टाँगों से संबंधित सुधारात्मक व्यायाम (Corrective Exercises for Bow Legs) – आसन संबंधित इस विकृति को जीवन की किसी भी अन्य अवस्था की अपेक्षा प्रारंभिक बाल्यावस्था में काफी हद तक सुधारा जा सकता है- • दोनों पैरों को एक साथ मिलाकर खड़े हो जाते हैं तथा किसी नरम कपड़े की पट्टी से दोनों घुटनों को एक साथ अपनी सहनक्षमता के अनुसार कस कर बाँध लेते हैं। फिर धीरे-धीरे जहाँ तक हो सके बैठने का प्रयास करते हैं तथा पुनः पहले वाली मुद्रा में वापस आते हैं। इस क्रिया को सुबह-शाम 5 से 10 बार दोहराना चाहिए। • पैरों के अन्दर के किनारों पर चलने से बाहर की ओर मुड़ी हुई टाँगों की ठीक किया जा सकता है। • पंजों को अन्दर की ओर मोड़कर चलने से भी इस विकृति को ठीक किया जा सकता है। |
7. स्कॉलिओसिस / रीढ़ की अस्थियों का एक ओर झुकना (Scoliosis) – स्कॉलिओसिस भी एक प्रकार की आसन संबंधी विकृति है जिसमें रीढ़ की हड्डी शरीर के बाई अथवा दाई ओर मुड़ जाती है। इसे स्कॉलिओसिस वक्र भी कहते हैं। |
स्कॉलिओसिस के लक्षण (Symptoms of Scoliosis)
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स्कॉलिओसिस के कारण (Causes of Scoliosis)
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सावधानियाँ (Precautions)
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उपाय (Remedies) – रीढ़ की अस्थियों के एक ओर झुकने (स्कॉलिओसिस) की स्थिति में निम्नलिखित उपाय करने चाहिए-
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स्कॉलिओसिस से संबंधित सुधारात्मक व्यायाम (Corrective Exercises for Scoliosis) • हॉरीजेंटल बार पर लटकने से रीढ़ की हड्डी को सीधा करने में काफी मदद मिलती है, इसके लिए हॉरीजेंटल बार पर थोड़ी-थोड़ी देर के लिए लटकना चाहिए। इसके अतिरिक्त हॉरीजेंटल बार को दोनों हाथों से पकड़ें तथा अपने शरीर को दाई तथा बाईं ओर झुलाएँ। • ‘C’ के आकार के वक्र के लिए वक्र की विपरीत दिशा में झुकने का व्यायाम करना चाहिए। • तैरने की ब्रेस्ट स्ट्रोक तकनीक से तैरना इस विकार के लिए सर्वाधिक अनुकूल और लाभदायक व्यायाम है। |
महिला खिलाड़ियों की विशेष परिस्थितियाँ (प्रथम रजोदर्शन तथा असामान्य मासिक धर्म) [Special Consideration of Women Athletes (Menarche and Menstrual Disfunction)] – हम सब जानते है कि पुरुषों तथा महिलाओं में कई लैंगिक भिन्नताएँ होती है। अपने खेल जीवन के दौरान हर महिला खिलाड़ी को कुछ ऐसी प्राकृतिक स्थितियों का सामना करना पड़ता है जो किसी भी पुरुष खिलाड़ी को नहीं करना पड़ता। जैसे कि- |
1. प्रथम रजोदर्शन (Menarche) – प्रथम रजोदर्शन का अर्थ है- लड़कियों का पहली बार मासिक रक्तस्राव होना। किशोरियों/महिलाओं के गर्भारम्भ से अनिषेचित अण्डाणुओं, अतिरिक्त रक्त श्लेष्मा तथा श्वेत रक्त कणिकाओं का हर 26 से 28 दिन के अंतराल पर स्राव मासिक धर्म कहलाता है। आमतौर पर किशोरियों में मासिक धर्म की शुरुआत लगभग 12 से 14 वर्ष की आयु के बीच होती है। किशोरियों में मासिक धर्म की शुरुआत को उनके यौवनावस्था में प्रवेश का सूचक भी माना जाता है। मासिक धर्म की अवधि के दौरान किशोरियाँ/महिलाएँ मानसिक रूप से थोड़ा तनावग्रस्त महसूस करती है। मासिक धर्म की शुरुआत का समय जीन्स संबंधित, सामाजिक, आर्थिक तथा वातावरणीय कारकों इत्यादि से भी प्रभावित होता है। प्रथम मासिक धर्म की अवधि सामान्यतः 3 से 7 दिन की होती है जो आयु बढ़ने के अनुरूप धीरे-धीरे कम होती जाती है तथा 16 वर्ष की आयु तक यह अवधि लगभग 6 दिन तक की हो जाती है। मासिक धर्म की शुरुआत के साथ किशोरियों में कई लौंगिक परिवर्तन आने लगते है, जैसे कि- उनके स्तनों का आकार बढ़ने लगता है तथा कूल्हें अधिक चौड़े होने लगते है। महिलाओं में मासिक धर्म की यह प्रक्रिया लगभग 48 से 50 वर्ष की आयु तक चलती है। हालांकि गर्भावस्था की पूर्ण अवधि के दौरान मासिक धर्म नहीं होता। |
महिला खिलाड़ियों पर मासिक धर्म के प्रभाव (Effect of Menstrual on Human Athletes) 1. महिला खिलाड़ियों पर किए गए विभिन्न अध्ययन यह दर्शाती है कि तीव्र शारीरिक गतिविधियों वाले खेलों में भाग लेने से महिला खिलाड़ियों के प्रजनन संस्थान पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है। महिलाओं का प्रजनन संस्थान शरीर क्रियात्मक दबाव के प्रति संवेदनशील होता है जिसके कारण तीव्र शारीरिक क्रियाकलापों वाले खेलों से जुड़ी महिला खिलाड़ियों में प्रजनन संबंधी अनियमितताएँ देखने को मिलती है। 2. मासिक धर्म की अवस्था के दौरान महिला खिलाड़ियों के प्रदर्शन स्तर में थोड़ी कमी आती है। 3. मासिक धर्म की स्थिति में महिला खिलाड़ी अक्सर घबराहट, बेचैनी तथा तनाव का अनुभव करती है। 4. इस अवस्था के शुरुआती दिनों में महिला खिलाड़ियों के पेट में दर्द तथा उल्टी की शिकायत हो सकती है। |
2. असामान्य मासिक धर्म (Menstrual Disfunction) – असामान्य मासिक धर्म का तात्पर्य मासिक धर्म की अनियमितताओं से है, सरल शब्दों में कहें तो- मासिक धर्म का नियमित अंतराल पर न होकर अनियमित अंतराल पर होना या असाधारण रूप से रक्तस्राव होना। एक सामान्य माहिला के लिए मासिक धर्म चक्र 21 से 35 दिनों तक का हो सकता है जिसमें रक्तस्राव 2 से 7 दिनों तक होता रहता है। मासिक धर्म में अनियमितता अनुवांशिक कारणों, गलत खान-पर के कारण, किसी बीमारी या कमजोरी के कारण तथा कई बार गर्भपात के कारण भी हो सकती है। इसके अतिरिक्त महिला खिलाड़ियों में यह समस्या उच्च तीव्रता वाली ट्रेनिंग की वजह से हार्मोस स्त्रावित न होने के कारण भी हो सकती है। कई बार महिला खिलाड़ियों की तल रक्त कणिकाओं की क्षति होने के कारण भी यह अवस्था आ सकती है। |
असामान्य मासिक धर्म के अंतर्गत अन्य विभिन्न प्रकार के विकार होते हैं, जैसे कि- (a) प्रथम मासिक स्रावरोध (Primary Amenorrhoea) – यदि अनुमानित समय से मासिक धर्म आरंभ नहीं हो तो इसे प्रथम मासिक स्रावरोध कहा जाता है। इस विकार के अंतर्गत मसिक धर्म का प्रारंभ ही नहीं होता। ऐसा कुपोषण, तनाव, चिंता, अत्यधिक परिश्रम अथवा भाग-दौड के कारण हो सकता है। (b) गौण मासिक स्रावरोध (Secondary Amenorrhoea) – प्रजनन करने योग्य महिलाओं में मासिक धर्म न होने की स्थिति गौण मासिक स्रावरोध कहलाती है। आमतौर पर यह स्थिति गर्भावस्था के दौरान, दूध पिलाने वाली माँ, बचपन और रजोनिवृत्ति के पश्चात् देखी जा सकती है। यदि मासिक धर्म आरंभ होने के कुछ समय बाद, एकाएक रूक जाए तो उसे तब विकार माना जाता है। ऐसा हार्मोनों की कमी अथवा कुपोषण आदि के कारण हो सकता है। (c) मासिक स्त्राव कम होना / पोलीमेनोरिया (Polymenorrhoea) – यदि मासिक धर्म 21 दिनों के चक्र अथवा इससे भी कम समय के हों तो यह स्थिति असामान्य मासिक धर्म का लक्षण है। (d) अनियमित मासिक स्राव / मेट्रोरहोरिया (Metrorrhoea) – उसका अर्थ अपेक्षित मासिक धर्म के समय से पहले मासिक स्राव होना है। बार-बार अनियमित मासिक स्राव से शरीर में रक्तहीनता अथवा अनीमिया की समस्या हो जाती है। कुछ महिलाओं को अनियमित मासिक खाव के कारण पेट में दर्द अथवा ऐंठन का अनुभव भी होता है। (e) मासिक स्त्राव बहुत कम होना / हाइपोमेनोरिया (Hypomenorrhoea) – यदि मासिक धर्म 35 अथवा अधिक दिनों के अंतराल पर हो तो यह स्थिति सामान्य नहीं मानी जाती। हालांकि कुछ महिलाओं में यह स्थिति अनुवांशिक होती है। (f) पेट में दर्द अथवा ऐंठन/डाइस्मेनोरिया (Dysmenorrhoea) – यदि मासिक स्राव से पहले अथवा मासिक स्राव के दौरान पेट में अत्यधिक दर्द व ऐंठन हो तो यह भी एक विकार माना जाता है। इस स्थिति में पेट में निचले हिस्से में दर्द अथवा ऐंठन होती है। ऐसा उदर की मांसपेशियों के सिकुड़ने के कारण होता है। आमतौर पर मासिक रक्तस्त्राव के समय मांसपेशियाँ सिकुड़ती है जिससे रक्तवाहिनियाँ संकुचित हो जाती है। किंतु कभी-कभी प्रोस्टाग्लैंडिन (Prostaglandins) नामक रसायन उत्पन्न होता है जो पेट में दर्द अथवा ऐंठन का कारण होता है। |
महिला खिलाड़ियों पर असामान्य मासिक धर्म के प्रभाव (Effects of Menstrual Disfunction on Women Athletes) (a) असामान्य मासिक धर्म के कारण शरीर में खून की कमी हो जाती है जिसके कारण खिलाड़ी की शारीरिक क्षमता में कमी आती है तथा शरीर में कम्पन महसूस होती है। (b) असामान्य मासिक धर्म के कारण खिलाड़ी जल्दी थक जाती है। (c) इसके अतिरिक्त खिलाड़ियों में चिड़चिड़ेपन तथा बेचैनी के लक्षण स्पष्ट दिखाई देते है। (d) अध्ययनों एवं शोधों से यह पता चला है, यदि महिला खिलाड़ी के शरीर का कुल भार सामान्य से कम है अथवा शरीर में वसा की मात्रा आवश्यकता से कम है तो कड़े प्रशिक्षण एवं कठिन व्यायाम से मासिक स्रावरोध (Amenorrhoea) की स्थिति उत्पन्न हो सकती है। (e) इस बात के भी प्रमाण मिलें है जो यह सिद्ध करते हैं कि व्यायाम से मासिक धर्म के दौरान होने वाले उदर-पीड़ा में आराम मिलता है। साथ ही यदि किसी को मासिक स्राव के दौरान उदर-पीड़ा होती है तो उसे भी उदर-पीड़ा से आराम मिलता है। (f) कुछ स्थितियों में यह भी देखा गया है कि मासिक धर्म के तुरंत बाद शारीरिक प्रदर्शनों में काफी सुधार होता है। बल्कि ऐसा देखा गया है कि खेल-कूद में भाग लेने से महिला खिलाड़ियों की न तो क्षमताएँ कम होती है और न ही कोई दुष्प्रभाव पड़ता है। (g) कई महिला खिलाड़ियों ने मासिक धर्म के दौरान भी अन्तर्राष्ट्रीय और ओलंपिक खेलों में रिकार्ड बनाए हैं। |
महिला एथलीट त्रय (ऑस्टियोपोरोसिस, मासिक रजोरोध तथा भोजन संबंधी विकार) [Female Athlete Triad (Osteoporosis, Amenorrhoea and Eating Disorders)] – महिला एथलीट त्रय, एक-दूसरे से संबंधित शारीरिक समस्याओं का एक ऐसा लक्षण समूह है जिसमें एनीमिया (रक्तहीनता). ऑस्टियोपोरोसिस तथा अनार्तव जैसी स्वास्थ्य संबंधी समस्याएँ होती है। यह सभी समस्याएँ बहुत गंभीर होती है जिनका दुष्परिणाम पीड़ित महिला को जीवन भर सहना पड़ता है तथा कई बार इनके कारण पीड़ित महिला की मृत्यु भी हो सकती है। खेल तथा व्यायाम एक स्वस्थ एवं संतुलित जीवनशैली के अभिन्न अंग है। नियमित रूप से खेलने तथा व्यायाम करने वाले व्यक्ति दूसरों की अपेक्षा अधिक स्वस्थ होते है तथा उनमें स्वास्थ्य संबंधी विभिन्न प्रकार की समस्याओं की संभावना भी बहुत ही कम होती है। फिर भी देखा गया है कि जो महिला खिलाड़ी अपने खेल तथा शारीरिक आवश्यकताओं के बीच उचित संतुलन नहीं बना पाती उन्हें कई प्रकार की स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं का सामना करना पड़ता है। विशेषकर वह महिला खिलाड़ी जो अधिक तीव्रता वाले व्यायाम अथवा खेलों में भाग लेते है उनमें इस प्रकार की स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं की संभावना अधिक पाई जाती है। महिला खिलाड़ियों में मुख्य रूप से निम्न समस्याओं को देखा गया- |
1. ऑस्टियोपोरोसिस (Osteoporosis) – ऑस्टियोपोरोसिस अर्थात् अस्थिसुषिरता एक प्रकार का हड्डी संबंधी रोग है जिसमें हड्डियों में अस्थि खनिज का घनत्व कम होने के कारण वह इतनी कमजोर हो जाती है कि हल्का सा झटका लगने पर भी हड्डी के टूटने की संभावना बनी रहती है। महिलाओं में ऑस्टियोपोरोसिस की संभावना पुरुषों की अपेक्षा कहीं अधिक होती है क्योंकि उनमें एस्ट्रोजन नामक हारमोंस कम मात्रा में पाए जाता है। ऑस्टियोपोरोसिस की समस्या हारमोन्स संबंधी विकार, किसी बीमारी, किसी दवाई की क्रिया (reaction) तथा गलत जीवनशैली के फलस्वरूप भी हो सकती है। इस रोग से ग्रस्त होने पर महिला खिलाड़ी का भावी खेल करियर खत्म हो जाता है। महिला खिलाड़ियों में यह समस्या निम्न कारणों से होती है |
ऑस्टियोपोरोसिस के लक्षण (Symptoms of Osteoporosis)
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ऑस्टियोपोरोसिस के कारण (Causes of Osteoporosis) (a) आहार में कैल्शियम की कमी (Insufficiency of Calcium in Diet) – हम सब जानते है कि स्वस्थ एवं मजबूत हड्डियों के लिए कैल्शियम अनिवार्य है। खिलाड़ियों के लिए तो इसका महत्व और भी बढ़ जाता है परंतु यदि खिलाड़ी विशेषकर महिला खिलाड़ी अपने आहार में पर्याप्त मात्रा में कैल्शियम (100 मि. ग्राम प्रतिदिन) न ले तो उनमें ऑस्टियोपोरोसिस रोग की संभावना काफी बढ़ जाती है। (b) मासिक रजोरोध / अनार्तव (Amenorrhoea) – अनार्तव समस्या से पीड़ित महिलाओं में ऑस्टियोपोरोसिस रोग की समस्या और भी बढ़ जाती है। अनार्तव रोग के कारण शरीर में एस्ट्रोजन नामक हारर्मोन का स्राव कम हो जाता है जिसके कारण शरीर में कैल्शियम का अवशोषण नहीं हो पाता। शरीर में कैल्शियम का अवशोषण न होने के कारण उसकी कमी हो जाती है जिसके कारण ऑस्टियोपोरोसिस की संभाव बढ़ जाती है। (c) भोजन संबंधी विकार (Eating disorders) – भोजन संबंधी विकार जैसे कि ऐनोरेक्सिया अथवा बुलिमिया के कारण भी शरीर कैल्शियम की कमी हो जाती है। यदि कैल्शियम की कमी महिलाओं में शुरू से ही हो तो अस्थियाँ कमजोर हो जाती है। ऑस्टियोपोरोसिस का कारण बन जाती है। (d) नशा करना (Addiction) – यदि धूमपान, शराब का सेवन इत्यादि अस्थियों के घनत्व को कम करता है। यदि कोई महिला खिला नशे की आदि हो तो उनमें भी ऑस्टियोपोरोसिस की संभावना रहती है। |
ऑस्टियोपोरोसिस से बचाव के लिए सुझाव (Suggestions for Prevention of Osteoporosis)
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2. मासिक रजोरोध/अनार्तव या ऋतुरोध (Amenorrhoea) – मासिक रजोरोध/अनार्तव किसी महिला की वह अवस्था होती है जिसमें प्रजनन योग्य आयु में होने के बावजूद भी उनमें मासिक स्राव नहीं होता। रजोरोध (Amemorrhoea) के अंतर्गत किसी भी महिला का मासिक धर्म 3 महीने या इससे अधिक समय के लिए रूक जाता है। मासिक रजोरोध महिलाओं में एक प्रकार की बीमारी होती है जिसमें 18 वर्ष या इससे अधिक आयु की महिलाओं को कभी-कभी मासिक धर्म शुरू नहीं होता या मासिक धर्म तीन महीनों या उससे अधिक समय के लिए रूक जाता है। |
रजोरोध के प्रकार (Types of Amenorrhoea) – रजोरोध दो प्रकार के होते हैं- (i) प्राथमिक रजोरोध (Primary Amenorrhoea) – इसमें प्रथम रजोरोध देरी से शुरू होता है, जिसमें यौवन अवस्था के दौरान प्रथम काल का प्रारंभ होता है। (ii) गौण रजोरोध (Secondary Amenorrhoea) – जिस महिला का मासिक धर्म निर्धारित समय पर होता है और फिर उसका मासिक धर्म तीन महीनें या इससे अधिक समय के लिए रूक जाता है, उसे गौण रजोरोध कहते हैं। |
रजोरोध के कारण (Reasons for Amenorrhoea) (a) कम कैलोरी युक्त भोजन (Less Calories Intake) – महिलाओं में इस समस्या के कई शारीरिक तथा मानसिक कारण हो सकते है परंतु महिला खिलाड़ियों में इस समस्या का प्रमुख कारण अधिक तीव्रता वाले व्यायाम तथा शारीरिक आवश्यकताओं के अनुरूप का कैलोरी वाला भोजन लेना होता है। महिला खिलाड़ियों की शारीरिक आवश्यकता से कम कैलोरी युक्त भोजन लेने के कारण उनके मासिक धर्म चक्र (menstrual cycle) को नियंत्रित करने वाले हारमोंस की संख्या में कमी आ जाती है। हारमोंस की इस कमी के कारण महिल खिलाड़ियों का मासिक धर्म या तो अनियमित तथा कई बार रूक भी जाता है। इसके अतिरिक्त कोई पुरानी बीमारी भी इस समस्य का कारण हो सकती है। (b) हारमोन्स में बदलाव (Hormonal Changes ) – गोनाडोट्रोपिक हारमोन्स में परिवर्तन होने के कारण रजोरोध होता है। गोनाडोट्रोपिक हारमोन्स, सैक्स हारमोन्स के स्राव तथा जनन ग्रन्थि की वृद्धि को उत्तेजित करते हैं। यह हारमोन्स अंडाशयों से एस्ट्रोजन के स्राव में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। महिलाओं में यदि एस्ट्रोजन का स्राव नहीं होता तो महिलाओं में मासिक धर्म रूक जाता है जिसे रजोर कहा जाता है। (c) तेज व्यायाम (Intensive Exercise) – महिला एथलीट को दोनों प्रकार के प्राथमिक और गौण रजोरोध हो सकते हैं क्योंकि उनको त गति वाले व्यायाम करने पड़ते हैं जिससे शरीर में एस्ट्रोजन की कमी हो जाती है जो रजोरोध का मुख्य कारण होता हैं। महिला एथली विशेष रूप से लंबी दूरी की धाविकाओं, तैराकों व जिमनास्ट को रजोरोध की समस्या हो सकती है। |
रजोरोध / अनार्तव का महिला खिलाड़ियों पर प्रभाव (Effects of Amenorrhoea on Women Athletes) (a) इस समस्या से ग्रस्त महिला खिलाड़ी अक्सर तनावग्रस्त रहती है जिसके कारण उनके खेल प्रदर्शन के स्तर में गिरावट आती है। कई बार तो वह प्रतियोगिता में भाग भी नहीं ले पाती। (b) गर्भधारण नहीं कर पाती हैं। (c) रक्तहीनता (Anaemia) – महिला एथलीट्स को रक्त की कमी मासिक धर्म के दौरान हो सकती है। रक्त में हीमोग्लोबिन अथवा लाल रक्त कणिकाओं की कमी को रक्तहीनता (Anaemia) कहा जाता है। हीमोग्लोबिन श्वास द्वारा ग्रहण की गई ऑक्सीजन के वाहक (Carrier) का कार्य करता है और ऑक्सीजन को शरीर की विभिन्न कोशिकाओं तक पहुँचाता है। हीमोग्लोबिन की कमी के कारण शरीर के विभिन्न भागों तक ऑक्सीजन की आपूर्ति नहीं हो पाती जिसके कारण रक्तहीनता होती है। महिला खिलाड़ी सबसे अधिक लौह-जनित रक्तहीनता की शिकार होती है जिसका प्रभाव उनके खेलों के प्रदर्शन पर पड़ता है। आयरन का मुख्य कार्य शरीर की मुख्य कोशिकाओं से कार्बन डाई ऑक्साइड को बाहर ले जाना तथा ऑक्सजीन को कोशिकाओं तक ले जाना होता है। महिलाओं में रक्तहीनता, लोहे की मात्रा में कमी, लोहे का गलत अवशोषण, पसीने के द्वारा लोहे की कमी, लाल रक्त कणिकाओं की कमी, अमाशय तथा औत में विकार आदि के कारण हो सकती है। |
रक्तहीनता के कुछ सामान्य लक्षण हैं – थकान का अनुभव होना, व्यायाम अथवा खेल-कूद के दौरान हृदयगति कर बढ़ जाना, चक्कर आना, शरीर का रंग पीला पड़ना, पैरों में ऐंठन आदि। |
रजोरोध / अनार्तव से बचाव के लिए सुझाव (Helps and Suggection of Athletes) (a) महिलाओं को नियमित रूप से हल्के व्यायाम करने चाहिए। |
3. भोजन संबंधी विकार (Eating Disorders) – जब व्यक्ति सामान्य से अत्याधिक मात्रा में या बहुत कम मात्रा में भोजन करने लगे तो इसे भोजन संबंधी विकार कहते हैं। भोजन संबंधी विकार एक प्रकार का मानसिक रोग है जो पीड़ित व्यक्ति की नियमित आहार पद्धति में गड़बड़ी उत्पन्न कर देता है, जिसके कारण व्यक्ति बहुत अधिक या बहुत कम भोजन खाने लगता है भोजन संबंधी समस्या के कारण व्यक्ति के शारीरिक स्वास्थ्य के साथ-साथ उसके मानसिक स्वास्थ्य पर भी नकारात्मक प्रभाव पड़ता है। इस प्रकार की समस्या से ग्रस्त व्यक्ति हर समय अपनी शारीरिक बनावट तथा वजन के विषय में सोचता रहता है। ऐसी स्थिति में जिन लोगों को लगता है कि उनका वजन बहुत ज्यादा है वह भोजन की मात्रा बहुत कम कर देते हैं। वहीं जिन लोगों को लगता है कि उनका वजन बहुत कम है वह भोजन की मात्रा अत्याधिक बढ़ा देते हैं। हालांकि इन दोनों स्थितियों में उनकी वृद्धि एवं विकास की दर बहुत धीमी हो जाती है। इस समस्या के कारण शारीरिक कमजोरी, चिड़चिड़ापन, कब्ज, गैस, एसिडिटी, नींद का कम या अधिक आना, अवसाद तथा कुपोषण का शिकार हो सकते हैं। इस समस्या का समय रहते इलाज न कराने के कारण व्यक्ति की मृत्यु तक हो सकती है। यह विकार पुरुषों की अपेक्षा किशोरियों तथा महिलाओं में अधिक पाया जाता है। भोजन संबंधी विकार मुख्य रूप से दो प्रकार का होता है। |
(i) एनोरेक्सिया नर्वोसा / क्षुधा अभाव (Anorexia Nervosa) – एनोरेक्सिया नर्वोसा भोजन या खान-पान संबंधी डिसऑर्डर/ मानसिक रोग है जो प्रारंभिक या मध्य किशोरावस्था में सबसे अधिक पाया जाता है। इस रोग से पीड़ित व्यक्ति अपना शारीरिक भार कम करने के उद्देश्य से भोजन की मात्रा बहुत कम कर देते हैं जिसके कारण वे बहुत ही दुबले-पतले प्रतीत होने लगते हैं। इस समस्या से ग्रस्त व्यक्ति अपना वजन कम करने के लिए कई प्रकार के अनुचित तरीके भी अपनाने लगते हैं। इस रोग से ग्रस्त व्यक्ति के हृदय तथा गुर्दों को क्षति पहुँचती है तथा समय रहते इलाज न कराने पर यह रोग जानलेवा भी हो सकता है। |
एनोरेक्सिया नर्वोसा के प्रकार (Types of Anorexia Nervosa) – एनोरेक्सिया नर्वोसा को मुख्यतः दो प्रकार से वर्गीकृत किया जा सकता है- (a) प्रतिबंधित एनोरेक्सिया नर्वोसा – इसके अंतर्गत व्यक्ति अपने आहार को प्रतिबंधित करके अपने वजन को नियंत्रित करने का प्रयास करता है। अपने वजन को कम करने के लिए वह उपवास, डायटिंग और जरूरत से ज्यादा व्यायाम आदि करने लगता है। (b) रेचक एनोरेक्सिया नर्वोसा – इस प्रकार के एनोरेक्सिया नर्वोसा में, व्यक्ति मृदुविचेरक अथवा मूत्रवर्द्धक का सेवन करता है। भोजन के पश्चात बलपूर्वक उल्टी करता है। ऐसा करके व्यक्ति अपने वजन को बढ़ने से रोकने का प्रयास करता है। |
एनोरेक्सिया नर्वोसा के कारण (Causes of Anorexia Nervosa) (a) सामाजिक कारक (Social Factors) – कई बार माता-पिता, रिश्तेदारों या मित्रों द्वारा व्यक्ति के शारीरिक आकार को लेकर उपहास किए जाने के कारण वह एनोरेक्सिया नर्वोसा की ओर अग्रसर होते हैं। कई व्यवसाय ऐसे होते हैं जिनमें दुबले-पतले शरीर की आवश्यकता होती है, जैसे कि- मॉडलिंग तथा जिम्नास्टिक इत्यादि। ऐसा व्यवसाय अपनाने की प्रबल इच्छा के कारण भी व्यक्ति अपना वजन तेजी से कम करना चाहते हैं। (b) जैविक कारक (Biological Factors) – यदि इस समस्या से ग्रस्त कोई गर्भवती स्त्री शिशु को जन्म देती है तो उस शिशु की इस समस्या से ग्रस्त होने की संभावना कई गुना बढ़ जाती है। (c) व्यक्तिगत कारक (Personal Factors) – कई बार व्यक्ति अपने समूह में स्वयं को श्रेष्ठ साबित करने के लिए अपनी नियमबद्धताः समयबद्धता व आदर्शों का सख्ती से पालन करने के कारण भी इस समस्या से ग्रस्त हो जाता है। (d) मनोवैज्ञानिक कारक (Psychological Factors) – एनोरेक्सिया नवसा से पीड़ित व्यक्ति प्रायः पूर्णतावादी होते हैं। स्वयं को हर प्रकार से चुस्त-दुरुस्त रखने की मनोभावना के कारण वे हमेशा अपने शरीर के प्रति चिंतित रहते हैं। इसके लिए वे कृत्रिम तौर-तरीको का इस्तेमाल करने से भी परहेज नहीं करते। बहुत कम खाना, अधिक व्यायाम करना, हर समय अपने वजन अथवा शारीरिक सुंदरता के प्रति चितित रहना, एनोरेक्सिया नर्वोसा के प्रमुख कारण बन जाते हैं। |
एनोरेक्सिया नर्वोसा के लक्षण (Symptoms of Anorexia Nervosa)
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एनोरेक्सिया नर्वोसा से बचाव (Prevention of Anorexia Nervosa)
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एनोरेक्सिया नर्वोसा का प्रबंधन एवं उपचार (Management and Treatment of Anorexia Nervosa)
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(ii) बुलिमिया/अति क्षुधा (Bulimia) – बुलिमिया भी भोजन या खानपान संबंधी डिसऑर्डर/मानसिक रोग ही है। इस रोग से पीड़ित व्यक्ति अत्याधिक भोजन करते हैं और दूसरे ही पल वजन कम करने का प्रयास करने लगते हैं। इसके लिए वे भोजन के पश्चात् उल्टी करना, ऐनीमा लेना, दवाइयाँ तथा उपवास जैसे तरीके अपनाते हैं। यह समस्या भी पुरुषों को अपेक्षा किशोरियों तथा महिलाओं में अधिक पाई जाती है। बुलिमिया दो प्रकार का होता है- (a) रेचक बुलिमिया (Purging Bulimia) – इस प्रकार की बुलिमिया में व्यक्ति भोजन के बाद जान बुझकर उल्टी करता है अथवा एनिमा का प्रयोग करता है। इस प्रकार की क्रिया का मुख्य उद्देश्य भोजन के हजम होने से पहले ही उसे निष्कासित करना होता है। (b) गैर-रेचक बुलिमिया (Non-Purging Bulimia) – इस प्रकार की बुलिमिया में व्यक्ति ज्यादा-से-ज्यादा कैलोरी की खपत करने के उद्देश्य से उपवास, सख्त डाइटिंग या फिर अत्याधिक व्यायाम का सहारा लेता है। |
बुलिमिया के कारण (Causes of Bulimia) (a) अनुवांशिक कारक (Hereditary Factors) – यह समस्या ऐसे व्यक्ति में विकसित हो सकती है जिसके माता-पिता, भाई अथवा बहन भी इसी समस्या से ग्रस्त हों। (b) सामाजिक कारक (Social Factors) – आधुनिक जीवनशैली के कारण आज हर युवा शारीरिक रूप से फिट दिखना चाहता है। उनकी यही इच्छा इस समस्या का एक प्रमुख कारण है। कई लोग ऐसा व्यवसाय अपनाना चाहते हैं जिसमें दुबले-पतले शरीर की आवश्यकता होती है जैसे कि बैले डांसर तथा मॉडलिंग इत्यादि। इस कारण भी व्यक्ति इस समस्या से ग्रस्त हो सकते हैं। (c) मनोवैज्ञानिक कारक (Pychological Factors) – चिंता, अवसाद तथा कम आत्म-सम्मान जैसे मनोवैज्ञानिक कारकों के कारण भी व्यक्ति इस समस्या से ग्रस्त हो जाते हैं। (d) अन्य कारक (Other Factors) – कई खेल, जैसे- कुश्ती, विभिन्न प्रकार की दौड़ों तथा जिम्नास्टिक के खिलाड़ी बेहतर प्रदर्शन के लिए शरीर के भार को कम करना चाहते हैं। ऐसे में उचित मार्गदर्शन के अभाव में वह इस समस्या से ग्रस्त हो जाते हैं। |
बुलिमिया के लक्षण (Symptoms of Bulimia)
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बुलिमिया से बचाव के उपाय (Prevention of Bulimia)
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बुलिमिया का उपचार (Treatment of Bulimia)
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