NCERT Solutions Class 12th Home Science Chapter – 6 प्रारंभिक बाल्यावस्था देखभाल और शिक्षा (Early Childhood Care and Education)
Textbook | NCERT |
class | Class – 12th |
Subject | Home Science |
Chapter | Chapter – 6 |
Chapter Name | प्रारंभिक बाल्यावस्था देखभाल और शिक्षा |
Category | Class 12th Home Science Notes In Hindi |
Medium | Hindi |
Source | Last Doubt |
NCERT Solutions Class 12th Home Science Chapter – 6 प्रारंभिक बाल्यावस्था देखभाल और शिक्षा (Early Childhood Care and Education)
Chapter – 6
प्रारंभिक बाल्यावस्था देखभाल और शिक्षा
Notes
प्रारम्भिक बाल्यावस्था जन्म से लेकर 8 वर्ष तक की अवधि को ” प्रारंभिक बाल्यावस्था ” कहते हैं इस अवस्था में मस्तिष्क के विकास के साथ साथ शारीरिक वृद्धि भी तेजी से होती है । इस अवस्था में बच्चे पर्यावरण और अपने आसपास के लोगों से अत्यधिक प्रभावित होते हैं यह अवस्था दो भागों में विभाजित है ।
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प्रारंभिक बाल्यावस्था देखभाल और शिक्षा की मूलभूत संकल्पनाएँ प्रारम्भिक बाल्यावस्था , जीवन की जन्म से लेकर आठ वर्ष तक की आयु की अवस्था है , जिसे दो भागों मे जन्म से 3 वर्ष तक तथा 3 से 8 तक विभाजित किया गया है। शैशवावस्था जन्म से लेकर एक वर्ष / दो वर्ष की आयु तक की अवधि है। जिसमे बच्चा अपनी सब जरूरतों के लिए व्यस्कों पर निर्भर करता है। देखभाल केंद्र (डे केयर ) ओर शिशु केंद्र सामान्यत पूरे दिन के कार्यक्रम होते है। इन कार्यक्रमों में शिक्षक और सहायकों को बहुत छोटे बच्चे की देखभाल, उनकी सुरक्षा, उनके खाने – पीने, शोचलयों आदतों, भाषा विकास, सामाजिक जरूरत समझने और सिखाने के लिए प्रीशिक्षित होना चाहिए। दो से तीन वर्ष के बच्चों को कभी – कभी ” टोड्लर ” कहा जाता है। इस शब्द को बच्चों के फुदक कर चलने के रूप मे समझा जाता है। विद्यालय पूर्व बच्चा नाम इसलिए दिया गया है, क्योंकि वह बच्चा अब किसी ऐसे परिवेश में रहने के लिए तैयार होता है जो परिवार से बाहर का होता है। छोटे बच्चे के लिए कुछ विद्यालय अक्सर मॉटेसरी स्कूल कहलाते है। मोंटेसरी स्कूल ऐसे विद्यालय है जो प्रारम्भिक बाल्यावस्था शिक्षा के उन सिद्धांतों पर आधारित है जो शिक्षाविद मारिया मोंटेसरी द्वारा बनाई गई। विकास मनोवैज्ञानिक पियाजे ने अपना जीवन यह समझने और समझाने में गुज़ार दिया कि छोटे बच्चे के दुनिया को समझने के तरीके भिन्न होते है। |
उद्देशय
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प्रारंभिक बाल्यावस्था देखभाल और शिक्षा का महत्व नन्हें शिशु बहुत छोटी उम्र से ही सीखना शुरू कर देते है । छोटे बच्चे को अपने परिवार के सदस्यों से लगाव होने लगता है। अपने आसपास की दुनिया के बारे में नयी बातें सीखने के साथ ही शिशु को अपने परिवार के सदस्यों खास तौर से अपने माता – पिता और अगर कोई भाई – बहन हों तो उनके साथ लगाव होने लगता है। किसी शिशु के व्यवहार में पहचान की यह क्षमता तब अभिव्यक्त होती है, जब वह लगभग 8-12 माह की आयु के दौरान किसी अनजान व्यक्ति को देखकर भयभीत होकर रोने लगता है। छोटा बच्चा परिवार के अन्य सदस्यों और उन लोगों को भी पहचानने लगता है, जिनसे वह नियमित रूप से मिलता है। बच्चा अपनी माँ से सबसे अधिक लगाव रखता है. क्योंकि वहीं ज़्यादातर उसकी देखभाल करती है और उसके कमरे से बाहर जाने पर बच्चा कई बार रोना भी शुरू कर देता है। एक वर्ष तक की आयु का बच्चा अपनी माँ अथवा देखभाल करने वाले दूसरे व्यक्ति से अधिकतर समय चिपका ही रहता है और हर जगह उसके पीछे – पीछे जाता है। शारीरिक विकास के कारण बच्चा तेजी से बढ़ता है, जिसके कारण पहले वह धीरे – धीरे चलना सीखता है, ठीक से चीजों को पकड़ना तथा अनेक मुद्राओं में अपने शरीर को संतुलित रखना सीखता जाता है। |
वैकल्पिक देख- रेख (Substiute Care) – माता अथवा माता – पिता की अनुपस्थिति में बच्चे की मूल जरूरतों को पूरा करने के लिए उसकी देखभाल करना ” वैकल्पिक देख – रेख कहलाता है। |
वैकल्पिक देख- रेख दो प्रकार से हो सकती है – बच्चे को वैकल्पिक देख- रेख की सुविधा घर में (भाई – बहन तथा संबंधियों द्वारा) व घर से बाहर क्रेच या डे – केयर केन्द्रों द्वारा की जा सकती है। अनौपचारिक देख- रेख (Informai Care) |
ई.सी. सी . ई . के मार्गदर्शी सिद्धांत
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ECCE के अध्ययन का महत्व
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विधालय पूर्व (Preschool education) विधालय पूर्व (Preschool education) एक ऐसा कार्यक्रम है जो बाल केन्द्रित (child centered) और अनोपचारिक (informal) होता है तथा बच्चे को सीखने का अनूकूल परिवेश (environment) प्रदान करता है, जो घर मे सीखने के अच्छे परिवेश के लाभों का पूरक होता है। ऐसी स्थितियों में जहाँ घर के परिवेश मे कोई कमी हो , वहाँ विद्यालय पूर्व केंद्र बच्चे की घर के बाहर वृद्धि और विकास में सहायता करने में मुख्य भूमिका निभाते है। प्रारम्भिक बाल्यावस्था शिक्षा और देखभाल एक ऐसी गतिविधि है जो विभिन्न स्थितियों में बाल्यावस्था को लाभ पहुंचाने के साथ इन मूलभूत कामों में माता – पिता और समाज की सहायता करके परिवारों का लाभ पहुंचाती है। विधालय पूर्व के मूल उद्देशय – इसके मूल उद्देशय निम्न है;
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जीविका के लिए तैयारी 6 वर्ष से कम आयु के बच्चों की दुनिया और संबंधों को समझने के विशिष्ट तरीके होते है, उनकी विकासात्मक जरूरतें भिन्न होती है। अतः बच्चों के लिए काम करने वाले वयस्क का प्रारम्भिक बाल विकास और देखभाल के क्षेत्र मे सुशिक्षित होना आवश्यक है। शिक्षक और देखभाल करने वाले पर उन बच्चों की देखभाल का दायित्व जो उनकी संतान नहीं होते है। साथ ही शिक्षक जिस संस्थान में काम करते है उसकी और समाज की ज़िम्मेदारी उन पर होती है। प्रारम्भिक बाल्यावस्था देखभाल और शिक्षा व्यावसायिक को बच्चों , उनके कल्याण , जरूरतों ओर चुनोतियों की जानकारी और ज्ञान होना चाहिए जिससे वे उनकी वृद्धि और विकास के अवसर प्रदान कर सकें। विधालय पूर्व बच्चों की शारीरिक देखभाल जैसे – सफाई , खान – पान, शोच आदि की निगरानी करने की कम आवश्यकता होती है , क्योंकि बच्चा बोलने, मल और मूत्र विसर्जन और स्वयं के खाने – पीने की क्षमता विकसित कर लेता है। शिक्षक को बच्चों को नयी चीजों को सीखने , प्रकृतिक घटनायों का अनुभव करने और अनेक प्रकार के अनुभवों के दिलचस्प अवसर प्रदान करने पर अधिक ध्यान देना चाहिए। इस समय उसकी रचनात्मक अभिव्यक्ति और खोज बीन करने की प्रवृति को बढ़ावा दिया जाता है |
कुछ कौशल जो प्रारम्भिक बाल्यावस्था के व्यवसायी मे होने चाहिए , वे इस प्रकार है
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कार्यक्षेत्र
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