NCERT Solutions Class 12th Home Science Chapter – 4 खाद्य प्रसंस्करण और प्रौद्योगिकी (Food Processing and Technology) Notes In Hindi

NCERT Solutions Class 12th Home Science Chapter – 4 खाद्य प्रसंस्करण और प्रौद्योगिकी (Food Processing and Technology) 

TextbookNCERT
class12th
SubjectHome Science
Chapter4th
Chapter Nameखाद्य प्रसंस्करण और प्रौद्योगिकी
CategoryClass 12th Home Science
Medium Hindi
SourceLast Doubt

NCERT Solutions Class 12th Home Science Chapter – 4 खाद्य प्रसंस्करण और प्रौद्योगिकी (Food Processing and Technology) Notes In Hindi खाद्य प्रसंस्करण का अर्थ क्या है?प्रसंस्करण की क्या परिभाषा है?खाद्य प्रसंस्करण कितने प्रकार के होते हैं?, भारत में खाद्य प्रसंस्करण क्या है?, खाद्य प्रसंस्करण मंत्रालय का क्या काम है?, खाद्य प्रसंस्करण की चुनौतियां क्या हैं?, खाद्य पदार्थ से क्या तात्पर्य है?, भारत के खाद्य मंत्री का नाम क्या है?, कृषि मंत्री कौन है?, खाद्य उद्योग के क्षेत्र में कौन से कार्य सम्मिलित है?, खाद्य प्रसंस्करण से आप क्या समझते भोजन का संरक्षण क्यों आवश्यक है?, खाद्य संरक्षण कितने प्रकार के होते हैं?, खाद्य संरक्षण विधियों का महत्व क्या है?, खाद्य संरक्षण का अर्थ क्या है?, भोजन के खराब होने के मुख्य कारण क्या है?, खाद्य विषाक्तता क्या है खाद्य संरक्षण के कुछ तरीके लिखिए? आदि के बारे में पढ़ेंगे।

NCERT Solutions Class 12th Home Science Chapter – 4 खाद्य प्रसंस्करण और प्रौद्योगिकी (Food Processing and Technology) 

Chapter – 4

खाद्य प्रसंस्करण और प्रौद्योगिकी

Notes

खाद्य प्रसंस्करण का अर्थ – खाद्य प्रसंस्करण का अर्थ है खाद्य पदार्थों की जीवन अवधि को बढ़ाने के लिए उन्हें अलग अलग प्रक्रियाओं से गुजारा जाना जिसमें उनकी shelf – life बढ़ने के साथ साथ उनके मूल गुणों को भी लंबे समय तक बनाए रखा जा सके। ऐसी प्रक्रियाएं खाद्य प्रसंस्करण कहलाती हैं।
प्रौदयोगिकी का अर्थ – प्रौदयोगिकी का अर्थ है विज्ञान द्वारा विकसित नई-नई तकनीकों के प्रयोग द्वारा ‘खाद्य उत्पादन, गुणवत्ता, भंडारण, संरक्षण, एवं shelf-Life को बढ़ाना एवं आसान बनाना।

खाद्य प्रसंस्करण और प्रौद्योगिकी का इतिहास – प्राचीन काल से भारत में फसल कटने पर अनाजों को सुखाया जाता है। जिनसे उनका जीवनकाल बढ़ जाता हैं। प्रारंभ में खाद्य पदार्थों का संसाधन उनकी सुपाच्यता, स्वाद सुधारने और निरंतर आपूर्ति बनाए रखने के लिए किया जाता था। भारत में अचार मुरब्बा और पापड़ संरक्षित उत्पादन के उदाहरण हैं जो कुछ फलों और सब्जियों या अनाजों से बनाए जाते हैं।

 समय बीतने के साथ – साथ उन्नत परिवहन, संचार और बढ़ते औद्योगीकरण ने ग्राहकों की आवश्यकताओं को और विविधता पूर्ण बना दिया और अब सुविधाजनक खाद्य पदार्थों, ताजे, अधिक प्राकृतिक, सुरक्षित और स्वाद स्वास्थ्यवर्धक खाद्य तथा पर्याप्त सुरक्षा काल वाले खाद्य पदार्थों की माँग बढ़ती जा रही है। ग्राहकों की इस माँग ने विज्ञान और तकनीक को खाद्य पदार्थों से जोड़ दिया।

खाद्य पदार्थों के प्रसंस्करण और प्रौद्योगिकी का महत्व 

  • भारत का कृषि उत्पादन बढ़ने के कारण भंडारण और प्रसंस्करण की आवश्यकता।
  • भारतीय खाद्य उद्योग संसाधित खाद्य के प्रमुख उत्पादन के रूप में जीडीपी का 6 %।
  • जीवनशैली में परिवर्तन आवागमन में वृद्धि और वैश्वीकरण के कारण विभिन्न उत्पादों की बढ़ती हुई मांग।
  • आहार में पोषक तत्वों की कमी को प्रबलीकरण या फूड फोर्टिफिकेशन के द्वारा पूरा करना। आयोडीन युक्त नमक, फोलिक अम्ल युक्त आटा, विटामिन E युक्त तेल या घी।
  • खाद्य पदार्थों में ऊर्जा की मात्रा को कम करने के लिए एवं कार्बोहाइड्रेट की मात्रा कम करने के लिए चीनी की जगह पर कृत्रिम मिठास का प्रयोग एवं आइसक्रीम में वसा की जगह उच्चारित प्रोटीन का प्रयोग।
खाद्य विज्ञान – यह एक विशेष क्षेत्र है जिसमें आधारभूत विज्ञान विषयों जैसे रसायन और भौतिकी, पाककला, कृषि विज्ञान और सूक्ष्म जीव विज्ञान के अनुप्रयोग शामिल हैं। इसमें फसल काटने से लेकर, भोजन पकाने एवं खाने की सभी तकनीकी पहली जुड़े हुए हैं। खाद्य वैज्ञानिक खाद्य के भौतिक रसायन पहलुओं से संबंध रखते हैं अतः हमें खाद्य की प्रकृति और गुणों को समझने में मदद करते हैं।
खाद्य संसाधन – यह ऐसी विधियों और तकनीकों का समूह है जो कच्ची सामग्री को तैयार या आधे तैयार उत्पाद में बदल देता है। यह खाद्य पदार्थों को आकर्षक विपणन योग्य और अक्सर लंबे सुरक्षा काल वाले खाद्य उत्पादों में बदल देता है।
खाद्य उत्पादन – इसमें खाद्य पदार्थों को बढ़ती हुई जनसंख्या की मांगे पूरी करने के लिए खाद्य प्रौद्योगिकी के सिद्धांतों का उपयोग करते हुए बड़े पैमाने पर तैयार किया जाना।
खाद्य प्रौद्योगिकी – एक ऐसा विज्ञान है जिसमें वैज्ञानिक अनुप्रयोगों के साथ-साथ सामाजिक, आर्थिक ज्ञान और उत्पादन के लिए कानूनी नियम व व्यावहारिक उपयोग होता है। सुरक्षित पोषण संपूर्ण वांछनीय के साथ साथ सस्ते, सुविधाजनक खाद्य पदार्थों के चयन, भंडारण एवं संरक्षण, संसाधन एवं पैक करने के कौशलों को विकसित करता है।

खाद्य संसाधन और प्रौद्योगिकी का विकास  – वर्ष 1810 में निकोलस एप्पर्ट द्वारा खाद्य पदार्थों को डिब्बों में बंद करने की प्रक्रिया को विकसित करना एकमहत्वपूर्ण घटना थी। खाद्य पदार्थों की डिब्बाबंदी का खाद्य संरक्षण तकनीकों पर गहरा प्रभाव पड़ा।

इसके बाद वर्ष 1864 में लुई पास्चर द्वारा अंगूरी शराब के खराब होने पर शोध अर्थात उसे खराब होने से कैसे बचाएं का वर्णन खाद्य प्रौद्योगिकी को वैज्ञानिक आधार देने की शुरूआत थी। अँगुरी शराब जे खराब होने के अतिरिक्त पाश्चर ने ऐल्कोहल, सिरका, अँगुरी शराब और बीयर के अतिरिक्त दूध के खटटा होने पर शोध कार्य किए। 

लुई पाश्चर ने रोग उत्पन्न करने वालेजीवाणुओं को नष्ट करने के लिए पाश्चरीकरण (निर्जीवीकरण) प्रक्रम को विकसित किया। पाश्चरीकरण खाद्य की सूक्ष्मजीवों से सुरक्षा प्रदान करने कीदिशा में महत्वपूर्ण कदम था।

समय के साथ – साथ 20 वीं सदी में कामकाजी महिलाओं के लिए, इसके साथ ही खाद्य उद्योग पोषण संबंधी मुद्दों पर ध्यान देने के लिए बाध्य हुआ। भोजन से जुड़ी मान्यताएं रुचियां बदली,। खाद्य प्रौद्योगिकीविदों ने नई तकनीकों का उपयोग कर सुरक्षित और ताजे खाद्य उपलब्ध कराने का प्रयत्न शुरू किया खाद्य प्रौद्योगिकी ने विविध प्रकार के सुरक्षित और सुविधाजनक खाद्य पदार्थ उपलब्ध कराए हैं। तेजी से विकसित हो रहे इस क्षेत्र ने सभी स्तरों पर रोजगार क रास्ते भी खोल दिए हैं।

खाद्य संसाधन और संरक्षण का महत्व

  • विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी के उपयोग द्वारा खाद्य पदार्थों को रेडीमेड पदार्थों में बदला जाना।
  • पदार्थों को अधिक उपयोगी सामग्री और लंबे समय तक स्थाई रहने योग्य और स्वादिष्ट खाद्य पदार्थों एवं पेय पदार्थों में बदलना।
  • खाद्य पदार्थों के संसाधन करने से भंडारण, लाने ले जाने, स्वाद और सुविधा में बढ़ोतरी।
  • खाद्य पदार्थों भोज्य और सुरक्षित रूप से संरक्षित करने के लिए खाद्य संसाधन और संरक्षण की आवश्यकता।
  • सूक्ष्म जीवो से खराब होने से बचाना और उनकी SHELF LIFE बढ़ाना।
खाद्य पदार्थों को अलग-अलग रूप देना – खाद्य संसाधन (food processing), खाद्य विनिर्माण (food production) प्रक्रिया में वैज्ञानिक ज्ञान तथा प्रौद्योगिकी का उपयोग करके कच्चे माल को मध्यवर्ती स्तर पर तैयार खाद्य पदार्थों semi-finished food items) अथवा तुरंत खाने के लिए तैयार खाद्य उत्पादों में परिवर्तित किया जाता है।

खाद्य पदार्थों का नष्ट होने से बचाने – खाद्य पदार्थों को नष्ट होने से बचाने के लिए निम्न विधियाँ को अपनाया जाता है-

  • CO2, 02 को नियंत्रित करना
  • पीएच (PH) कम करना
  • भंडारण के समय ताप कम करना
  • ऊष्मा का अनुप्रयोग
  • जल को हटाना
खाद पदार्थ के खराब होने के लिए उत्तरदायी कारक – खाद पदार्थ के खराब या नष्ट होने के लिए बहुत से कारक उत्तरदायी होते हैं, जैसे कि-

  1. भौतिक परिवर्तन (Physical change)
  2. रासायनिक परिवर्तन (Chemical change)
  3. जीवाणुओं द्वारा परिवर्तन (Changes Due to microbes)
  4. एन्जाइम द्वारा (Changes Due to Enzymes)
भौतिक परिवर्तन (Physical change) – भोजन में भौतिक कारणों से आए परिवर्तनों से भोजन का रंग-रूप, स्वाद खराब हो जाता है हो जाता है जैसे कि – भार या दबाव के कारण फल अथवा सब्जियों का ढीला/पिलपिला पड़ जाना। कई बार फलों एवं सब्जियों के छिलके पर झुर्रियां एवं उनके सिकुड़ जाने के कारण स्वाद में कमी आ जाती है। भोजन का जलना भी एक भौतिक परिवर्तन ही है।
रासायनिक परिवर्तन (Chemical change) – कई बार गर्मियों में दूध बाहर पड़े रहने से फट जाता है। ऐसा एक रासायनिक परिवर्तन के कारण होता है जिसमें दूध की प्रोटीन जम जाती है। कुछ पदार्थों में प्रोटीन और कार्बोज की आपसी क्रिया के कारण भोजन थोड़ी देर पड़े रहने पर भूरा हो जाता है। जैसे की – सेब को थोड़ी देर काटकर छोड़ देने पर वह भूरा पड़ जाता है।

जीवाणुओं द्वारा परिवर्तन (Changes Due to microbes) – भोजन में उपस्थित कुछ  जीवाणुओं द्वारा भी खाद्य पदार्थ बहुत जल्दी खराब हो जाते हैं। खमीर, फफूंदी व बैक्टीरिया ऐसे कुछ जीवाणु हैं।

(a) खमीर (Yeast) – ऑक्सीजन की उपस्थिति तथा अम्लीय वातावरण में खमीर (एक कोशिकीय जीव) भोजन की शर्करा को कार्बन डाइऑक्साइड में अल्कोहल में बदल देते हैं, खाद पदार्थ फुलकर खट्टा हो जाता है। जैसे – आटे में खमीर उठना।

(b) फफूंदी (Fungus) – फफूंदी ऐसे वातावरण में पनपती है जहां अमल तथा क्षार में संतुलन कम होता है नींबू, स्क्वैश, अचार आदि पर पनपने वाली फफूंदी हानिकारक नहीं होती परंतु मटर, मूंगफली, गेहूं, राई, जौं आदि पर होने वाली खाद्य पदार्थ को विषाक्त कर देती है।

(c) बैक्टीरिया (Bacteria) – कई बैक्टीरिया बहुत जल्दी बढ़ते हैं तथा खाद्य पदार्थों में विष उत्पन्न कर देते हैं जो हानिकारक हो सकता है। यह अधिकतर दूध एवं दूध से बने पदार्थ, मांस, मछली तथा पके हुए भोजन को दूषित करते हैं।

एन्जाइम द्वारा (Changes Due to Enzymes) – वानस्पति व पशुजन्य भोज्य पदार्थों में पाए जाने वाले एन्जाइम रासायनिक प्रक्रियाओं को गतिशील बनाते हैं और भोजन में जल्दी परिवर्तन ला देते हैं। इससे पदार्थ गलने लगता है और उसमें दुर्गन्ध आने लगती है, जैसे – देर तक कटे रखे हुए फलों व सब्जियों का रंग, स्वाद, सुगंध व संरचना में अंतर आ जाता है। मीट और मछली पड़े-पड़े सड़ने लगता है।
कीड़े मकोड़े, चूहे द्वारा (Changes Due to Insect and Rodents) – कीड़े खाद्य-पदार्थों को खाकर नष्ट कर देते हैं जिससे वह खाने लायक नहीं रहते जैसे – अनाज व दालें। कुछ कीड़े अपने अंडे छोड़ देते हैं और भोजन को खाने लायक नहीं रहने देते ,जैसे – गोल कृमि, फीता कृमि, बिना धुले फल, सब्जी व मीट में अपने अंडे छोड़ते हैं। झींगुर की लार से अनाज के दाने चिपके हुए दिखाई देते हैं इससे अनाज  में बदबू पैदा हो जाती है। चूहे के मूत्र से भी खाद्य पदार्थों व अनाज में संक्रमण फैलता है। यह सब मनुष्य को रोगी बना सकता है।
खाद्य संरक्षण की विधियां (Methods of Food Preservation) – खाद्य पदार्थों को नष्ट होने से बचाने के लिए विभिन्न विधियों का प्रयोग इतिहास पूर्व काल से चला आ रहा है फिर चाहे वह कटी हुई फसल हो या कटा हुआ पशु। आमतौर पर खाद्य संरक्षण के लिए जो विधियां अपनाई जाती थी उनमें  प्रमुख विधियां थी धूप में सुखाना नियंत्रित किण्वन, नमक लगाना/अचार बनाना, सेकना, भूनना, धूमन, चूल्हे में पकाना और मसालों का परिरक्षी के रूप में उपयोग करना ऐसी ही कुछ विधियों का विवरण निम्नलिखित है –
धूप में सुखाना अथवा निर्जलीकरण (Sun Drying or Dehydration) – भोजन पदार्थों में उपस्थित नमी को सुखाकर भोजन को संरक्षित करना निर्जलीकरण कहलाता है। जीवाणुओं की वृद्धि के लिए नमी की आवश्यकता होती है खाद्य-पदार्थों को सुखाने पर उनकी नमी समाप्त हो जाने के कारण उन्हें काफी समय तक सुरक्षित रखा जा सकता है। खाद्य-पदार्थों को संरक्षित करने की यह बहुत पुरानी विधि है आजकल खाद पदार्थों को मशीनों द्वारा उपयुक्त ताप पर सुखाया जाता है, जिसमें कम समय लगता है। जिसे पौष्टिक तत्व भी कम नष्ट होते हैं तथा अतिरिक्त पौष्टिक तत्व आवश्यकतानुसार डाले भी जा सकते हैं।

प्राकृतिक पदार्थों के द्वारा खाद्य संरक्षण – 

  1. नमक
  2. चीनी
  3. तेल
  4. मसाले
  5. अम्लीय पदार्थ

नमक – यह लगभग सभी संरक्षित पदार्थों में डाला जाता है यह निम्न रूप से सहायक होता है-

  • नमक खाद्य पदार्थों का पानी निकाल कर उसकी नमी को कम कर देता है
  • नमक के कारण खाद्य पदार्थों में ऑक्सीजन नहीं धुल पाती जो कि जीवाणुओं के जीवित रहने में सहायक होती है जिससे भोजन खराब होने से बच जाता है
  • नमक के घोल में पाए जाने वाले क्लोराइड आयन संरक्षण में सहायता करते हैं
  • नमक की उपस्थिति से एन्जाइमस की गति मंद पड़ जाती है।

नमक, अचार , चटनी, सॉस, तथा डिब्बा बंद खाद्य पदार्थों में प्रयोग किया जाने वाला मुख्य संरक्षक है।

चीनी – यह फल सब्जियों, जैम, तथा मुरब्बे के संरक्षण में प्रयोग की जाती है। यह खाद्य पदार्थों के जल में घुल जाती है जिससे जीवाणुओं को पनपने के लिए उचित नमी नहीं मिलती।
तेल – यह मुख्य रूप से अचार को संरक्षित करने के लिए प्रयोग किया जाता है। अचार के ऊपर तेल की सतह हवा के साथ जीवाणुओं को पनपने से रोकती है जिससे अचार संरक्षित रहता है।
मसाले – कुछ मसाले जैसे लौंग, काली मिर्च, दाल-चीनी, सरसों इत्यादि खाद्य संरक्षण में सहायता करते हैं। राई का स्थान तो संरक्षण में विशेष स्थान है। यह खाद्य पदार्थों को खमीरीकृत करती है, जिससे अम्लीय माध्यम उत्पन्न हो जाता है जो खाद्य संरक्षण सहायक होता है जैसे – गाजर की कांजी।
अम्लीय पदार्थ – अम्लीय माध्यम जीवाणुओं की गतिविधियों और वृद्धि को रोकता है जैसे – नींबू का रस और सिरका।

खाद्य पदार्थों का वर्गीकरण – संसाधन की सीमा और प्रकार के अनुसार खाद्य पदार्थों का वर्गीकरण इस प्रकार है-

  • कार्य मुल्क खाद्य पदार्थ
  • संश्लेषित खाद्य पदार्थ
  • खाद्य व्युत्पन्न पदार्थ
  • फॉर्मूला बद्य खाद्य पदार्थ
  • विनिर्मित खाद्य पदार्थ
  • संरक्षित खाद्य पदार्थ
  • चिकित्सीय खाद्य पदार्थ

करियर बनाने के लिए खाद्य प्रसंस्करण एवं प्रौद्योगिकी की शाखाएं

  • पेय पदार्थ, मद्य निर्माण कारखाना
  • अनाज और योजक पदार्थ
  • समुद्री खाद्य
  • वसा और तेल
  • स्थायिकारी, परिरक्षक/रंग
  • डेयरी उत्पाद, फल सब्जी संसाधन

करियर के लिए आवश्यक ज्ञान एवं कौशल 

  • खाद्य उद्योग में संसाधन एवं निर्माण का ज्ञान।
  • उपभोक्ता बाजारों में शोध का ज्ञान।
  • नई प्रौद्योगिकी का विकास।
  • वर्तमान खाद्य उत्पादों में सुधार एवं नए उत्पादों का विकास।
  • खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करना।
  • सुरक्षा मॉनिटर करना।
  • गुणवत्ता को नियंत्रित करना।
  • गुणवत्ता नियंत्रण करने की पद्धतियों में सुधार करना।
  • लाभप्रद उत्पादन के लिए लागत निकालने का गुण।
  • नियामक मामले।
  • खाद्य प्रसंस्करण एवं प्रौद्योगिकी की विभिन्न शाखाओं में भिन्नता अनुसार संबंधित कौशल।

जीविका (Career) के अवसर 

  • उत्पादन प्रबंधक
  • परियोजना कार्यान्वयन
  • विपणन और विक्रय अधिकारी
  • संवेदी मूल्यांकन
  • गुणवत्ता आश्वासन
  • शोध और विकास, उत्पादन विकास
  • परियोजना की वित्तीय व्यवस्था
  • परियोजना का मूल्यांकन
  • शिक्षण और शोध
  • उद्यमशीलता विकास
  • परामर्श
  • उत्पादों का तकनीकी विपणन

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