NCERT Solutions Class 12th Home Science Chapter – 2 नैदानिक पोषण और आहारिकी (Clinical Nutrition and Dietetics) Question & Answer In Hindi

NCERT Solutions Class 12th Home Science Chapter – 2 नैदानिक पोषण और आहारिकी (Clinical Nutrition and Dietetics)

TextbookNCERT
class12th
SubjectHome Science
Chapter2nd 
Chapter Nameनैदानिक पोषण और आहारिकी (Clinical Nutrition and Dietetics)
CategoryClass 12th Home Science
MediumHindi
SourceLast Doubt

NCERT Solutions Class 12th Home Science Chapter – 2 नैदानिक पोषण और आहारिकी (Clinical Nutrition and Dietetics) Question & Answer In Hindi पाचन तंत्र का दूसरा नाम क्या है?, मनुष्य की लार में कौन सा एंजाइम पाया जाता है?, मनुष्य के पाचन के लिए विशेष अंग को क्या कहते हैं?, शरीर में सबसे पहले किसका पाचन होता है?, पेट में कितनी परत होती है?, मानव शरीर में प्रोटीन का पाचन कहाँ होता है?, पाचन की दो प्रक्रियाएं क्या हैं?, नैदानिक पोषण का दूसरा नाम क्या है?, नैदानिक पोषण से आप क्या समझते हैं?, नैदानिक ​​पोषण का महत्व क्या है?, नैदानिक ​​पोषण और पोषण में क्या अंतर है?, बीमारी पोषण को कैसे प्रभावित करती है?, पोषण प्रकार का क्या अर्थ है? आदि के बारे में पढ़ेंगे।

NCERT Solutions Class 12th Home Science Chapter – 2 नैदानिक पोषण और आहारिकी (Clinical Nutrition and Dietetics)

Chapter – 2

नैदानिक पोषण और आहारिकी

Question & Answer

प्रश्न 1. नैदानिक पोषण और आहारिकी के अध्ययन का क्या महत्त्व है?
उत्तर नैदानिक पोषण और आहारिकी, बीमारी के समय के पोषण से संबंधित है, जिसे चिकित्सीय पोषण उपचार भी कहते हैं। इसके अध्ययन के महत्त्व को निम्नलिखित बिन्दुओं के अन्तर्गत स्पष्ट किया गया है-

नैदानिक पोषण रोगी की बीमार के अनुरूप उसके पोषण प्रबंधन पर केन्द्रित होता है।

पिछले कुछ वर्षा ऐसे लोगो की संख्या में बहुत वृद्धि हुई है विशेषकर वृद्धजन जिन्हें पोषण संबंधी देखभाल परामर्श  तथा उचित आहार संबंधी मार्गदर्शन की विशेष आवश्यकता होती है।

यह विभिन्न बीमारियों के प्रबंधन के लिए चिकित्सीय आहार सुझाने के अतिरिक्त बीमारियों को रोकथाम और अच्छे स्वास्थ्य बढ़ावा देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।

नैदानिक पोषण और आहारिकी के क्षेत्र में विभिन्न शोधों के करण बहुत सी असाध्य और गंभीर बीमारियों संबंधी नई नई वैज्ञानिक जानकारियाँ सामने आई है जिसकी सहायता से पोषण मूल्यांकन की नई नई विधियाँ विकसित हुई है।

नैदानिक पोषण और आहारिकी के क्षेत्र में विभिन्न शोधों के करण ही विभिन्न पोषण और पादप रसायनों /जैव सक्रिय पदार्थों (phytochemicals bioactive compounds)  की भूमिका  के विषय में महत्वपूर्ण जानकारियाँ सामने आई है।

प्रश्न. 2 आहारी संशोधन क्या है, जो एक चिकित्सीय पोषण विशेषज्ञ कर सकता है?
उत्तर आहारी संशोधन से आशय – आहारी संशोधन एक सामान्य आहार होता है इसको, रोगी की चिकित्सीय आवश्यकताओं के अनुसार भोजन की बनावट में परिवर्तन करके, कैलोरी के अंतर्ग्रहण में कमी या वृद्धि करके तथा एक या अधिक पोषकों को कम या अधिक मात्रा में सम्मिलित करके, संशोधित रूप में तैयार किया जाता है। यह आहारी संशोधन एक चिकित्सीय पोषण विशेषज्ञ ही कर सकता है।

प्रश्न. 3 विभिन्न प्रकार के चिरकालिक रोगों से बचने के लिए हमें आहारी परिवर्तनों की आवश्यकता क्यों होती है? ये जीवन शैली से किस प्रकार संबंधित हैं? आहार चिकित्सा से दीर्घकालिक रोगों का उपचार किस प्रकार किया जा सकता है?
उत्तर उचित आहारिकी परिवर्तनों तथा स्वस्थ्य जीवनशैली के कारण बहुत से चिरकालिक रोगों को नियंत्रित किया जा सकता है या फिर उनके प्रारंभ होने की अवस्था को विलंबित /धीमा किया जा सकता है। उदाहरण के लिए आज देश की शहर जनसंख्या का बड़ा हिस्सा मोटापे, कोलन का कैंसर, मधुमेह, हृदयरोग और उच्च रक्तचाप इत्यादि जैसी जीवनशैली संबंधी किसी न किसी समस्या /बीमारी से पिड़ित है। ऐसे में यदि मधुमेह का रोगी अपने भोजन में चीनी की अपेक्षा गुड़ का सेवन कर दे तो उसके मधुमेहको काफी हद तक नियंत्रित किया जा सकता है। उसी उच्च रक्तचाप से पीड़ित व्यक्ति के आहार में नमक की मात्रा कम कर दी जाए तो उसे रक्तचाप की नियंत्रित करने में काफी सहायता प्राप्त होगी

प्रश्न. 4 एक आहार विशेषज्ञ की भूमिकाएँ क्या होती हैं? एक आहार विशेषज्ञ रोगी के देखभाल के लिए, अन्य स्वास्थ्य देखभाल करने वाले कर्मचारियों के साथ टीम कैसे बनाता है?
उत्तर एक रोगी की पोषण स्थिति का मूल्यांकन करके उसकी पोषण संबंधी आवश्यकताओं का विश्लेषण करना और यह सुनिशिचत करना की रोगी को उचित और पर्याप्त पोषण देखभाल मिले आहार विशेषज्ञ का मूलभूत उतरदायित्व होता है। इसके अतिरिक्त पोषण देखभाल योजना निर्धारित करना और अस्पताल में भर्ती अथवा बाह्र्य रोगी विभाग (ओ.पी.डी) में रोगियों को आवश्यकतानुसार सलाह तथा निशा निर्देश देकर उन्हें लागू करना भी उसी का दायित्व है। एक सामान्य व्यक्ति में अच्छे पोषण स्तर को बनाए रखने के लिए सामान्य तथा डॉक्टर द्वारा सुझाए गए आहारों के अनुरूप आहार योजना बनाई जाती है। यह योजना डॉक्टरी पोषण चिकित्सक /आहार विशेषज्ञ द्वारा बनाई जाती है तथा इसे बनाते समय व्यक्ति की भोजन संबंधी आदतों उसकी भोजन ग्रहण करने की आवृति उसकी बीमारी तथा डॉक्टर द्वारा किए गए इलाज उसकी वर्तमान स्वास्थ्य स्थिति भौतिक दशा शारीरिक एवं मानसिक श्रम का स्तर आर्थिक स्थिति तथा जीवनशैली इत्यादि का विशेष ध्यान रखा जाता है। इसके अतिरिक्त व्यक्ति की भोजन संबंधी पसंद नापसंद सांस्कृतिक और धार्मिक मान्यताओं का भी विशेष ध्यान रखा जाता है।

प्रश्न.5 डॉक्टरी पोषण और आहार विशेषज्ञों की जीविका के लिए हम कैसे तैयारी कर सकते हैं?
उत्तर डॉक्टरी पोषण और आहार विशेषज्ञों की जीविका के लिए तैयारी –

(1) आहारिकी में स्नातकोत्तर डिप्लोमा पास करना – यदि हम आहार विशेषज्ञ बनना चाहते हैं, तो हमें कम से-कम आहारिकी में स्नातकोत्तर डिप्लोमा पास करना होगा और साथ ही इंटर्नशिप करनी होगी, जिससे हम पंजीकृत आहार विशेषज्ञ के योग्य हो सकें। जिनके पास जीव विज्ञान, जैवरसायन, सूक्ष्मजैविकी, या जैव प्रौद्योगिकी में बी.एस.सी. की डिग्री है, वे इस क्षेत्र में स्नातकोत्तर डिप्लोमा स्तर पर प्रवेश पा सकते हैं।

(2) खाद्य विज्ञान और पोषण (आहारिकी) में एम.एस.सी. – खाद्य विज्ञान और पोषण अथवा आहारिकी में एम.एस.सी. किसी भी व्यक्ति को इस क्षेत्र में विशेषज्ञता प्रदान करती है और ऐसे व्यक्ति को कई स्थानों पर नौकरी में वरीयता दी जाती है।

(3) पंजीकृत आहार विशेषज्ञ की योग्यता का प्रमाण पत्र प्राप्त करना – एक आहार विशेषज्ञ अपनी विश्वविद्यालय की शिक्षा पूरी करने के बाद आगे अध्ययन करके ‘पंजीकृत आहार विशेषज्ञ’ की योग्यता का प्रमाण पत्र प्राप्त कर सकता है। बहुत से देशों में इस सम्बन्ध में नियंत्रक कानून हैं।

(4) शिक्षण और शोध पर केन्द्रित जीविका पी.एच.डी. की डिग्री प्राप्त करना – यदि कोई व्यक्ति शिक्षण और ‘शोध पर केन्द्रित जीविका का चयन करता है तो विश्वविद्यालयों, महाविद्यालयों और शोध संस्थानों में बहुत से विकल्प खुल जाते हैं। शिक्षण सम्बन्धी पदों के लिए योग्य होने के लिए अब आवश्यक हो गया है कि व्यक्ति विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यू.जी.सी.) द्वारा आयोजित राष्ट्रीय अथवा राज्य पात्रता परीक्षा पास करे। यह सलाह दी जाती है कि यदि कोई व्यक्ति शैक्षिक या शोध क्षेत्रों में अपनी जीविका चाहता है तो वह पी.एच.डी. की डिग्री प्राप्त करे।

प्रश्न. 6 अस्वस्थता/रोग किस प्रकार किसी व्यक्ति की पोषण स्थिति को प्रभावित करता है?

उत्तर पोषण विभिन्न प्रकार के सक्रंमणो से बचाव में व्यक्ति की रोगप्रतिरोधक क्षमता के विकास में तथा विभिन्न प्रकार की बीमारियों से बचाव एव उनसे उबरने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता हैं।

यदि शरीर को आवश्यकतानुसार पोषण तत्वों की प्राप्ति न हो ऐसी स्थिति में व्यक्ति की रोगप्रतिरोधक क्षमता में कमी आती है घावों को भरने में अपेक्षाकृत अधिक समय लगता है दवाईयों का प्रभाव कम होता है तथा विभिन्न अंगों को सुचारु रूप से कार्य करने में कठिनाई होती हैं। नियमित रूप से ऐसी स्थिति में बने रहने के कारण व्यक्ति और अधिक जटिल बीमारियों का शिकार हो सकता हैं।

इसके अतिरिक्त पोषण बीमारी के दौरान तथा उसके बाद रोगी को उससे उबरने में भी महत्त्वपूर्ण भूमिक निभाता है। कुछ बीमारियों में पोषण रोग की व्यवस्था और उपचार (management and treatment) में प्रमुख भूमिक निभाता है जबकि कुछ बीमारियों में यह चिकित्सीय उपचार में पूरक का कार्य (complements the medical treatment) करता हैं। बीमारी से पहले और बाद में रोगी की पोषण स्थिति उसकी सहायता रोग के पूर्वानुमान, स्वास्थ्यलाभ और अस्पताल में ठहराने के समय निर्धारण में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।