NCERT Solutions Class 12th History (Part – Ⅲ) Chapter – 11 विद्रोही और राज 1857 का आंदोलन और उसके व्याख्यान (Rebel and Raj Movement of 1857 and its lectures)
Text Book | NCERT |
Class | 12th |
Subject | History (Part – ⅠⅠⅠ) |
Chapter | 11th |
Chapter Name | विद्रोही और राज 1857 का आंदोलन और उसके व्याख्यान |
Category | Class 12th History Notes |
Medium | Hindi |
Source | Last Doubt |
NCERT Solutions Class 12th History (Part – Ⅲ) Chapter – 11 विद्रोही और राज 1857 का आंदोलन और उसके व्याख्यान (Rebel and Raj Movement of 1857 and its Lectures) Notes In Hindi 1857 में भारत में क्या हुआ था?, 1857 के विद्रोह के परिणाम क्या थे?, 1857 के महान विद्रोह के पहले शहीद कौन थे?, 1857 के विद्रोह के परिणाम क्या थे?, 1857 के विद्रोह में किसने भाग नहीं लिया था?, 1857 की क्रांति को किसने क्या कहा?, भारत में 1857 की क्रांति की शुरुआत कब हुई?, 1857 के विद्रोह की शुरुआत कैसे हुई?, अंग्रेजों ने 1857 के विद्रोह को कैसे दबा दिया?, क्या महिलाओं ने 1857 के विद्रोह में भाग लिया था?, 1857 के विद्रोह के समय ब्रिटिश प्रधानमंत्री कौन थे?
NCERT Solutions Class 12th History (Part – Ⅲ) Chapter – 11 विद्रोही और राज 1857 का आंदोलन और उसके व्याख्यान (Rebel and Raj Movement of 1857 and its lectures)
Chapter – 11
विद्रोही और राज 1857 का आंदोलन और उसके व्याख्यान
Notes
1857 का विद्रोह
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मेरठ में बगावत – 10 मई 1857 ई० सिपाहियो ने मेरठ की जेल पर धावा बोलकर वहां बंद सिपाहियो को अजाद करा लिया। उन्होने अंग्रेज अफसरों पर हमला करके उन्हें मार गिराया। 10 मई 1857 ई० की दोपहर बाद मेरठ छावनी मे सिपाहियों ने विद्रोह कर दिया। |
दिल्ली में बगावत • सिपाहियों का एक जत्था धोडे पे सवार होकर 11 मई 1857 ई० को तड़के दिल्ली के लाल किले के फाटक पर पहुंच गए। रमजान का महीना था मुगल सम्राट बाहादुर शाह जफर नवाज पढ़कर ओर सहरी (रोजे के दिनी में सूरज उगने से पहले का भोजन) खाकर उठे थे। • कुछ सिपाही लाल किले मे दाखिल होने के लिए दरबार के शिष्टाचार का पालन किये बिना बेधडक किले में धुस गए। उनकी माँग थी कि बादशाह उन्हें अपना आशीर्वाद दे। सिपाहियों से घिरे बहादुर शाह जफर नवाज के पास उनकी बात मानने के अलावा और कोई चारा नही था। इस तरह उस विद्रोह ने एक वेदता हासिल कर ली क्योकि अब उसे मुगल बादशाह के नाम पर चलाया सकता था। • बादशाह को सिपाहियो की ये माँग माननी पड़ी उन्होंने देश भर के मुखियालो, संस्थाओं और शासको को चिट्ठी लिखकर अंग्रेजो से लड़ने के लिए भारतीय राज्यो का एक संघ बनाने का आहवान किया। • जैसे ही यह खबर फैली कि दिल्ली पर विद्रोहियो का कब्जा हो चुका है और बहादुर शाह ने अपना समर्थन दे दिया है। हालात तेजी से बदलने लगे गंगा घाटी के धावनियो ओर दिल्ली के पश्चिम में कुछ धावनियो में विद्रोह के स्तर तेज होने लगे। • विद्रोह मेंं आम लोगो के शामिल हो जाने के साथ-साथ हमलो का दायरा फैल गया। लखनऊ, कानपुर और बरेली जैसे बड़े शहरों में साहूकार और अमीर भी विद्रोहियो के गुस्से का शिकार बने। ज्यादातर जगह अमीरों के धर लूट लिए गए। तबाह कर दिए गए । इसका पता दिल्ली उर्दू अखबार से भी पता चलता है। |
1857 विद्रोह के कारण 1. आर्थिक कारण
निष्कर्ष – इस तरह अग्रेजो की नीति ने भारतीय किसानो को उजाड़ दिया। R.C दत्त के अनुसार रैयतवाड़ी क्षेत्रो मे किसानो की हालत भिखमंगौ जैसी हो गई। शिल्पियो व दस्तकारों को बेरोजगार बना दिया। व्यापारियों का व्यापार चौपट कर दिया। जमींदारिया समाप्त कर दी। देश का धन बाहर जाने लगा और इस तरह व्यापक आर्थिक असन्तोष शासन के खिलाफ विद्रोह पैदा कर दिया। 2 . राजनीतिक कारण
इसी क्रम में 1856 ई० में कैनिग ने यह उदधोषणा की बहादुर शाह की मृत्यु के बाद मुगलो से सम्राट की पदवी छीन ली जाएगी। यह मुगल वंश की प्रतिष्ठा पर एक शरारत पूर्ण आघात था। निष्कर्ष – भारतीय राजाओ वा नवाबो के राज्य पेंशन तथा उपाधी छीने जाने की व्यापक राजनीतिक प्रतिक्रिया हुई। सेना व प्रशासन के क्षेत्र में भारतीयो के साथ भेद-भाव की नीति ने भी असंतोष व क्रोध को जन्म दिया और 1857 की क्रांति के लिए जमीन तैयार की। 3 . सामाजिक व धार्मिक कारण
निष्कर्ष – सती प्रथा पर रोक लगाकर, धर्म परिवर्तन को प्रोत्साहन करके, परंपरागत उत्तराधिकार के नियम में संसोधन करके भारतीयों की सामाजिक, धार्मिक भावनाओं को चोट पहुंचाना अत: उनके मन मे अग्रेजो के प्रति विद्रोह की ज्वाला धधकने लगी और 1857 की क्रांति लाने में सहयोग दिया। 4 . सैनिक कारण
5 . तत्कालिक कारण – (Important) • यह वह काल था जब नए एनफील्ड राइफल का सर्वप्रथम प्रयोग हो रहा था जिसके कारतूसों पर चर्बी लगी होती थी। सैनिको को इन कारतूसों के प्रयोग के समय दाँत से रेपर काटकर लोड करना होता था। • जनवरी 1857 ई० में यह सूचना (कारतूसों की) बंगाल सैना से पहुंच चुकी थी। दमदम तोपखाने में कार्यरत एक खल्लासी ने एक ब्राहमण सिपाही को बताया था कि कारतूस में प्रयुक्त चर्बी सुअर एव गाय की है। इस सूचना से हिन्दू और मुसलमान दोनो ही नाराज होकर इन कारतूसों के प्रयोग से इनकार कर दिया। • सर्वप्रथम कलकत्ता से 22 K.M दूर बैरकपुर में बंगाल सेना की टुकड़ी ने इनकार किया उसके पश्चात कलकत्ता से 180 K.M दूर बरहामपुर के सैनिकों ने इन कारतूसों के प्रयोग करने से इनकार कर दिया। इन कारतूसों के पीछे यह मान्यता थी कि अंग्रेज हिन्दू व मुसलमान दोनों का ये धर्म भ्रष्ट कर ईशाई बनानां चाहते हैं। |
विद्रोह के दौरान संचार के तरीके • विद्रोह के पहले और दौरान विभिन्न रेजिमेंटों के सिपाहियों के बीच संचार के सबूत मिले हैं। उनके दूत एक स्टेशन से दूसरे स्टेशन चले गए। सिपाहियों या इतिहासकारों ने कहा है की, पंचायतें थीं और ये प्रत्येक रेजिमेंट से निकले देशी अधिकारियों से बनी थीं। • इन पंचायतों द्वारा सामूहिक रूप से कुछ निर्णय लिए गए। सिपाहियों ने एक आम जीवन शैली साझा की और उनमें से कई एक ही जाति से आते हैं, इसलिए उन्होंने एक साथ बैठकर अपना विद्रोह किया। |
नेता और अनूयायी • जब दिल्ली में अंग्रेजो के पैर उखड़ गए तो लगभग एक हफते तक कहि कोई विद्रोह नही हुआ। • एक के बाद एक हर रेजिमेंट में सिपाहियों ने विद्रोह कर दिया। वे दिल्ली, कानपुर, लखनऊ जैसे मुख्य बिंदुओं पर दूसरी टुकड़ियों का साथ देने को निकल पड़े। • स्वर्गीय पेशवा बाजीराव के दत्तक पुत्र नाना साहेब कानपुर के पास रहते थे उन्होंने ऐलान किया कि वह बहादुर शाह जफर के तहत गवर्नर है। • लखनऊ की गद्दी से हटा दिए गए नवाब वाजिद अली शाह के बेटे बिरजिस केंद्र को नया नबाव घोषित कर दिया गया। बिरजिस केंद्र ने भी बहादूर शाह जफर को अपना बादशाह मान लिया। उनकी माँ बेगम हजरत महल ने अग्रेजो के खिलाफ विद्रोह को बढ़ावा देने में बढ़ – चढ़कर हिस्सा लिया। • झाँसी की रानी लक्ष्मीबाई भी विद्रोही सिपाहियों के साथ जा मिली और उन्होंने नाना साहब के सेनापति तात्या टोपे के साथ मिलकर अग्रेजो को भारी चुनैती दी। • विद्रोहियो टुकड़ियो के सामने अंग्रेजो की संख्या बहुत कम थी। 6 अगस्त 1857 को लेफिटनेंट करलन टाइलर ने अपने कमांडर इन चीफ को टेलीग्राम भेजा। जिसमे उसने अंग्रेजी के भय को व्यक्त किया और बोला हमारे लोग विरोधियों की संख्या और लगातार लड़ाई से थक गए हैं। एक – एक गाँव हमारे खिलाफ है। जमीदार भी हमारे खिलाफ खड़े हो रहे हैं। इस दौरान बहुत से नेता सामने आए। • उदहारण के लिए फैजाबाद के मौलवी अहमदुल्ला शाह ने भविष्यवाणी की अंग्रेजों का शासन जल्दी ही खत्म हो जाएगा। बरेली के सिपाही बख्त खान ने लड़को की एक विशाल टुकड़ी के साथ दिल्ली की और कूंच कर दिया और वह इस वगावत में एक मुख्य व्यक्ति साबित हुए। |
अफवाएं तथा भविष्यवाणी • मेरठ से दिल्ली आने वाले सिपाहियों ने बहादुर शाह को उन कारतूसो के बारे में बताया था। जिन पर गाय और सुअर की चर्बी का लेप लगा था। • सिपाहियो का इशारा एनफील्ड राइफल के उन कारतूसों की तरफ था जो हाल ही में उन्हें दिये गये थे। अंग्रेजो ने सिपाहियो को लाख समझाया कि ऐसा नहीं है लेकिन यह अफवाए उत्तर भारत की छावनियो मे जंगल की आग की तरह फैलती चली गई। • राइफल इन्स्ट्रक्सन (डिपो) के कमांडर कैप्टन राइट ने अपनी रिपोर्ट में लिखा था कि दमदम स्थित शास्त्रागार मे काम करने वाले नीची जाति के एक खल्लासी ने जनवरी 1857 ई० के तीसरे हफ्ते मेंं एक ब्राह्मण सिपाही से पानी पिलाने के लिए कहा ब्राह्मण सिपाही ने यह कहकर आपने लोटे से पानी पिलाने से इनकार कर दिया कि नीची जाति के छूने से लौटा अपवित्र हो जाएगा। • रिपोर्ट के मुताबिक इस पर खल्लासी ने जवाब दिया कि वेेसे भी तुम्हारी जाति जल्द ही भ्रष्ट होने वाली है क्योकि अब तुम्हें गाय और सुअर की चर्बी लगे करतूसो को मुँह से खीचना पडेगा। इस रिपोर्ट की विश्वसनीयता के बारे मे कहना मुश्किल है। लेकिन इसमे कोई शक नही है कि जब एक बार यह अफवाएं फैलना शुरू हुई थी तो अंग्रेज अफसरो के तमाम आरत आश्वासनों के बावजूद इसे खत्म नही किया जा सका और इसने सिपाहियों में एक गहरा गुस्सा पैदा कर दिया। |
अन्य अफवाह – अफवाएं फैलाने वालों का कहना था कि इसी मकसद को हासिल करने के लिए अंग्रेजो ने बाजार में मिलने वाले आटे मे गाय और सुअर की हड्डियों का चूरा मिलवा दिया सिपाहियो और आम लोगो ने आटे को छूने से भी इन्कार दिया। नोट
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अवध में विद्रोह
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एकता की कल्पना – 1857 ई० में विद्रोहियो द्वारा जारी की गई घोषणाओ में जाति और धर्म का भेद किए बिना समाज के सभी वर्गों का आहवान किया जाता था। बहादुर शाह के नाम से जारी की गई घोषणा से मोहम्मद और महावीर दोनो की दुहाई देते हुए जनता से इस लड़ाई में शामिल होने का आहवान किया गया। दिलचस्प बात यह है कि आंदोलन में कि हिन्दू मुसलमान के बीच खाई पैदा करने की अंग्रेजो द्वारा की गई कोशिशों के बाबजूद ऐसा कोई फर्क नहीं दिखाई दिया अंग्रेज शासन के दिसंबर 1857 ई० में पश्चिमी उत्तर प्रदेश में स्थित बरेली के हिन्दुओ को मुसलमानों के खिलाफ करने के लिए 50,000 रु खर्च किए। उनकी यह कोशिश नाकामयाब रही। बहुत सारे स्थानों पर अंग्रेज़ो के खिलाफ विद्रोह उन तमाम ताकतों के विरुद्ध हमले की सकल ले लेता था जिनको अग्रेजो के हिमायती या जनता का उत्पीड़क समझा जाता था। कई बार विद्रोही शहर के सभ्रांत को जान – बूझकर बेइज्जत करते थे। गाँवो में उन्होंने सूदखोरों के बहीखाते जला दिए और उनके घर बार तोड़ – फोड़ डाले। इससे पता चलता है कि वे ऊँच – नीच को खत्म करना चाहते हैं। |
अंग्रेजों द्वारा दमन
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कला और साहित्य के माध्यम से विद्रोह का विवरण
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अंग्रेजी महिलाओं तथा ब्रिटेन की प्रतिष्ठा – समाचार पत्र की रिपोर्ट विशेष रूप से महिलाओं और बच्चों के खिलाफ हिंसा की घटनाओं से प्रभावित घटनाओं की भावनाओं और दृष्टिकोण को आकार देती हैं। ब्रिटेन में बदला लेने और प्रतिशोध के लिए सार्वजनिक मांगें थीं। ब्रिटिश सरकार ने महिलाओं को निर्दोष महिलाओं के सम्मान की रक्षा करने और असहाय बच्चों की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए कहा। कलाकारों ने आघात और पीड़ा के अपने दृश्य प्रतिनिधित्व के माध्यम से इन भावनाओं को व्यक्त किया। 1859 में जोसेफ नोएल पैटन द्वारा चित्रित ‘ इन मेमोरियम में उस चिंताजनक क्षण को चित्रित किया गया है जिसमें महिलाएं और बच्चे असहाय और निर्दोष व्यक्ति उस घेरे में घिर जाते हैं, प्रतीत होता है कि वे अपरिहार्य अपमान, हिंसा और मृत्यु की प्रतीक्षा कर रहे थे। चित्रकला कल्पना को बढ़ाती है और क्रोध और रोष को भड़काने की कोशिश करती है। ये पेंटिंग विद्रोहियों को हिंसक और क्रूर के रूप में दर्शाती हैं। |