NCERT Solutions Class 12th History (Part – 2) Chapter – 9 शासक और इतिवृत्त (Kings and chronicles) Notes In Hindi जिसमे हम अकबर को किसने मारा था, अंतिम मुस्लिम शासक कौन था, अकबर कौन से राजा से डरता था, अकबर की बीवी कितनी थी, अकबर की बेटी, मुसलमान का पहला सम्राट कौन था, सबसे क्रूर मुस्लिम शासक कौन था, पहला मुस्लिम योद्धा कौन था, अकबर की प्रेमिका कौन थी, अनारकली किसकी पत्नी थी, भारत में किस राजा की पत्नियां ज्यादा हैं, मेहरुनिसा कौन थी, नूरजहां के पहले पति का क्या हुआ, अकबर ने अनारकली को क्यों मारा, आदि के बारे में पढ़ेंगे।
NCERT Solutions Class 12th History (Part – 2) Chapter – 9 शासक और इतिवृत्त (Kings and Chronicles)
Chapter – 9
शासक और इतिवृत्त:
Notes
मुगल कौन थे
ये दो महान शासक वंशो के वंशज थे। इनकी माता की ओर से वे चीन और मध्य एशिया के मंगोल शासक चंगेज खान (जिनकी मृत्यु 1227 ई० में हुई) के उतराधिकारी थे। वे पिता की ओर से ईरान एव वर्तमान तुर्की के शासक तैमूर (जिनकी मृत्यु 1404 ई० में हुई) के वंशज थे।
परन्तु मुगल अपने को मुगल या मंगोल कहलवाना पसंद नहीं करते थे। ऐसा इसलिए था क्योकि चंगेज खान से जुड़ी स्मृतियाँ मुगलो के प्रतियोगियो उजवेग से भी संबधित थी। दुसरी तरफ़ मुगल, तैमूर के वंशज होने पर गर्व का अनुभव करते थे। ऐसा इसलिए क्योकि उनके इस महान पूर्वज ने 1398 ई० में दिल्ली पर कब्जा कर लिया था।
मुगलो ने अपनी वंशावली का प्रर्दशन चित्र बनाकर किया। प्रत्येक मुगल शासक ने तैमूर के साथ अपना चित्र बनवाया। पहला मुगल शासक बाबर मातृपक्ष से चंगेज़ खान का संबधी था। वो तुर्की बोलता था और उसने मंगोलों का उपहास करते हुए उन्हें बर्बर गिरोह के रूप में उल्लेखित किया।
16वीं शताब्दी के दौरान यूरोपियों ने परिवार की इस शाखा के भारतीय शासको का वर्णन करने के लिए मुगल शब्द का प्रयोग किया। यहाँ तक कि रुडयार्ड किपलिंग की (जंगल बुक) के युवा नायक मोगली का नाम भी इससे व्युत्पन्न हुआ है। साम्राज्य के संस्थापक ज़हीरुद्दीन मुहम्मद बाबर को उसके मध्य ऐशियाई स्वदेश फरगना के प्रतिद्वंद्वी उज्बेगो ने भगा दिया था। नासिरुद्दीन हुमायूँ, शेरशाह सूर से पराजित होकर इरान के सफावी शासक के दरवार में निर्वासित होने पर बाध्य हुआ। चगताई तुर्क स्वयं को चंगेज खान के सबसे बड़े पुत्र का वंशज मानते थे।
बाबर 1526 ई० – 1530 ई०
प्रथम मुगल शासक बाबर (1526 ई० – 1530 ई०) ने जब 1494 ई० मे फरगाना राज्य का उत्तराधिकार प्राप्त किया तो उनकी उम्र केवल 12 बर्ष की थी। मंगोलो की दूसरी शाखा, उजबेगो के आक्रमण के कारण उसे अपनी पैतृक गगद्दी छोड़नी पड़ी।
अनेक वर्षों तक भटकने के बाद उसने 1504 ई० में काबुल पर कब्जा कर लिया।
उसने 1526 ई० मे दिल्ली के सुल्तान इब्राहिम लोदी को पानीपत मे हराया और दिल्ली, आगरा, को अपने कब्जे मे कर लिया।
1527 ई० में खानुवा में राणा सांगा राजपूत राजाओ और उनके समर्थकों को हराया।1528 ई० में चंदेरी में राजपूतो को हराया।
16 वी शताब्दी के युद्धों में तोप और गोलाबारी का पहली बार इस्तेमाल हुआ। बाबर ने इनका पानीपत की पहली लड़ाई में प्रभावी ढंग से प्रयोग किया।
हुमायूँ
हुमायूँ ने अपने पिता की वसीयत के अनुसार जायदाद का बंटवारा किया। प्रत्येक भाई को एक प्रांत मिला। उसके भाई मिर्जा कामरान की महत्वकांक्षाओं के कारण हुमायूँ अपने अफगान प्रतिद्वंद्वियों ने सामने फीका पड़ गया।
शेर खान ने हुमायूँ को दो बार हराया, 1539 ई० में चौसा में एवं 1540 ई० कन्नौज में इन पराजयों ने हुमायूँ को ईरान की ओर भागने को बाध्य किया। ईरान में हुमायूँ ने सफ़ाविद शाह की मदद ली उसने 1555 ई० में दिल्ली पर पुनः कब्जा कर लिया परन्तु उससे अगले वर्ष इस इमारत में एक दुर्घटना में उसकी मृत्यु हो गई।
अकबर
अकबर 13 वर्ष की अल्पायु में सम्राट बन गया था और 1568 ई० में सिसिदयो की राजधानी चितौड़ और 1569 ई० में रणथम्भौर पर कब्जा कर लिया। 1579 ई० – 1580 ई० के बीच मिर्जा हाकिम के पक्ष में विद्रोह हुए। सफविदों को हराकर कंधार पर कब्जा किया और कश्मीर को भी जोड़ लिया। मिर्जा हाकिम की मृत्यु के पश्चात काबुल को भी अपने राज्य में मिला लिया। दक्कन के अभियानों की शुरुआत हुई।
जहाँगीर
मेवाड़ के सिसोदिया शासक अमर सिंह ने मुगलों की सेवा स्वीकार की इसके बाद सिक्खों, अहामो और अहमदनगर के खिलाफ अभियान चलाए गए, जो पूर्णत: सफल नही हुए। जहाँगीर के शासन के आंतिम वर्षों में राजकुमार खुर्रम जो बाद में सम्राट शाहजहाँ कहलाया, ने विद्रोह किया।
शाहजहाँ
अफगान अभिजात खान जहान लोदी ने विद्रोह किया और वह हार गया। अहमदनगर के विरुद्ध अभियान हुआ, जिसमे बुंदेलों की हार हुई और ओरछा पर कब्जा कर लिया गया। उत्तर – पश्चिम में बल्ख पर कब्जा करने के लिए उज्बेगो के विरुद्ध अभियान हुआ, जो असफल रहा परिणामस्वरूप कांधार सफविदों के हाथ मे चला गया।
1632 ई० में अतः अहमदनगर को मुगलो के राज्य में मिला लिया गया और बीजापुर की सेना ने सुलह के लिए निवेदन किया। 1657 ई० – 1658 ई० में शाहजहाँ के पुत्रों के बीच उत्तराधिकार को लेकर झगड़ा शुरू हो गया। इसमे औरंजेब की विजय हुई और दाराशिकोह समेत तीनो भइयो को मौत के घाट उतार दिया गया। शाहजहाँ को उसकी शेष जिदंगी के लिए आगरा में कैद कर दिया गया।
औरंगजेब
1663 ई० में उत्तर-पूर्व में अहोमो की पराजय हुई, परन्तु उन्होंने 1690 ई० में पुनः विद्रोह कर दिया। उत्तर – पश्चिम मे यूसफजई और सिक्खों ने विद्रोह किया। इसका कारण था उनकी आंतरिक राजनीति और उत्तराधिकार के मसलों में मुगलो का हस्तक्षेप।
मराठा सरदार शिवाजी के विरुद्ध मुगल अभियान आरंभ में सफ़ल रहे, परंतु ओरंगजेब ने शिवाजी का अपमान किया और शिवाजी आगरा स्थित मुगल कैदखाने से भाग निकले।
राजकुमार अकबर ने औरंगजेब के दक्कन के शासको के विरुद्ध विद्रोह किया। जिसमें उसे मराठो और दक्कन की सल्तनत का सहयोग मिला। अतः वह ईरान (सफविद के पास) से भाग गया।
अकबर के विद्रोह के पश्चात औरंगजेब ने दक्कन के शासको के विरुद्ध सेनाएँ भेजी। 1685 ई० में बीजपुर और 1687 में गोलकुंडा को मुगलो ने आपने राज्य में मिला लिया। 1668 ई० में औरंगजेब ने दक्कन में मराठों (जो छापामार पद्धति का उपयोग कर रहे थे) के विरुद्ध अभियान का प्रबध किया।
1707 में औरंगजेब की मृत्यु के बाद भी कई शासक आए परंतु कोई भी अपने पूर्वजों जितना ताकतवर नहीं था धीरे धीरे मुगल शासन अपने पतन की ओर बढ़ने लगा और इसका एक मुख्य कारण अंग्रेजी शासन का बढ़ता हुआ प्रभाव था मुगल शासन का अंतिम शासक बहादुर शाह जफर द्वितीय था।
मुगल राजधानी
16वीं – 17वीं शताब्दीयो के दौरान मुगलो की राजधानियाँ बड़ी ही तेजी से स्थानांतरित होती रही। बाबर ने लोदियो की राजधानी आगरा पर अधिकार किया तथापि उसके शासन काल के दौरान राजसीदरबार भिन्न – भिन्न स्थानों पर लगाये जाते रहे। 1560 के दशक में अकबर ने लाल बलुये पत्थर से आगरे में किले का निर्माण किया।
1570 के दशक में अकबर ने फतेहपुर सीकरी को राजधानी बनाया। इसका एक कारण था कि सीकरी अजमेर को जाने वाली सीधी सड़क पर स्थित था जहाँ ख्वाजा मुइनुद्दीन चिश्ती की दरगाह एक महत्वपूर्ण तीर्थ स्थल बन चुकी थी।
मुगल बादशाहों के चिश्ती सूफियों के साथ घनिष्ठ सम्बध बने। अकबर ने सीकरी में जमा मस्जिद के बगल में ही शेख सलीम चिश्ती के लिए सगमरमर का मकबरा बनवाया। फतेपुर सीकरी में बुलंद दरवाजा (विशाल मेहराबी प्रवेश द्वार) बनवाने का उद्देश्य वहाँ के लोगो को गुजरात मे मुगल विजय की याद दिलाना था।
1885 ई० में उत्तर – पश्चिम की ओर अधिक नियंत्रण में लाने के लिए राजधानी को लाहौर स्थानांतरित कर दिया गया। इस तरह अकबर ने 13 बर्षो तक (1548 ई०) सीमा पर गहरी चौकसी बनाये रखी। 1648 ई० में राजधानी शाहजहानाबाद स्थानांतरित हो गयी।
इतिवृत्त (इतिहास का वृतांत) – वह लेख जिनसे किसी क्षेत्र के इतिहास के बारे में पता चलता है इतिवृत्त कहलाते हैं। मुग़ल साम्राज्य के सभी इतिवृत पांडुलिपियों के रूप में मिले है।
पांडुलिपियां
वह सभी लेख जो हाथो से लिखे जाते है पांडुलिपियां कहलाते है। मुगल राजाओं द्वारा कई इतिवृत्त तैयार करवायें गए। इन इतिवृत्तों की रचना मुगल राजाओं द्वारा इसीलिए करवाई गई ताकि आने वाली पीढ़ी को मुग़ल शासन के बारे में जानकारी मिल सके। इन सभी इतिवृत्तों से मुगल साम्राज्य के बारे में महत्वपूर्ण जानकारियां मिलती हैं।
इतिवृत्त की रचना
मुगल बादशाहो द्वारा तैयार करवाए गए इतिवृत्त साम्राज्य और उसके दरबार के अध्यन के महत्वपूर्ण स्रोत है। ये इतिवृत्त साम्राज्य के अंतर्गत आने वाले सभी लोगो के सामने एक प्रबुद्ध राज्य के दर्शन के उद्देश्य से लाए गए थे। शासक यह भी सुनिश्चित कर लेना चाहते थे कि भावी पीढ़ियों के लिए उनके शासक का विवरण उपलब्ध हो।
मुगल इतिवृत्त के लेखक निरपवाद से दरबारी ही रहे। उन्होंने जो इतिहास लिखे उनके केंद्र बिंदु में थी – शासक पर केंद्रित घटनाए, शासक का परिवार, दरबार व अभिजात, युद्ध और प्रशासनिक व्यवस्थाएं। इनके लेखको की निगाह में सम्राज्य व दरबार का इतिहास और बादशाह का इतिहास एक ही था। मुगल भारत की सभी पुस्तकें पांडुलिपियों के रूप में थी आर्थात वे हाथ से लिखी होती थी। इन रचनाओं का मुख्य केंद्र शाही कितबखाना था।
भाषा
मुगल दरबारी इतिहास फारसी भाषा में लिखे गए थे। चूँकि मुगल चगताई मुल के थे अतः तुर्की उनकी मातृभाषा थी। इनके पहले शासक बाबर ने कविताए और आपने संस्मरण इसी भाषा मे लिखे। अकबर ने फ़ारसी को दरबार की मुख्य भाषा बनाया। फ़ारसी को दरबार की भाषा का ऊँचा स्थान दिया गया तथा उन लोगो को शक्ति व प्रतिष्ठा प्रदान की गई जिनकी इस भाषा पर अच्छी पकड़ थी। यह सभी स्तरों के प्रशासन की भाषा बन गई। जिससे लेखाकारों, लिपिकों तथा अन्य अधिकारियों ने भी इसे शिख लिया। फ़ारसी के हिन्दवी के साथ पारस्परिक सम्पर्क से उर्दू के रूप में एक नई भाषा निकल आई।
अकबरनामा जैसे मुगल इतिहास फ़ारसी में लिखे गए थे। जबकि अन्य जैसे बाबर के संस्मरणों का बाबरनामा के नाम से तुर्की से फ़ारसी में अनुवाद किया गया था। मुगल बादशाहों ने महाभारत और रामायण जैसे संस्कृत ग्रथो को फ़ारसी में अनुवादित किए जाने का आदेश दिया। महाभारत का अनुवाद रज्मनामा (युद्धों की पुस्तक) के रूप में हुआ।
मुगल चित्रकला
अबुल फजल ने चित्रकारी का एक जादुई कला के रूप में वर्णन किया है। अबुल फजल चित्रकारी को बहुत सम्मान देता था। 17 वी सदी में मुगल बादशाहों को प्रभामंडल के साथ चित्रित किया जाने लगा। ईश्वर के प्रतीक रूप में इन प्रभामंडल को उन्होंने ईसा और वर्जिन मेरी के यूरोपीय चित्रो से लिया था।
अकबर को एक चित्र में सफेद पोशाक में दिखाया गया है। यह सफेद रंग सूफी परम्परा की और सकेत करता है। बादशाह उसके दरबार तथा उसमें हिस्सा लेने वाले लोगो का चित्रण करने वाले चित्रो की रचना को लेकर शासको और मुसलमान रूढ़िवादी वर्ग के प्रतिनिधियो आर्थात उमला के बीच निरतर तनाव बना रहा।
उमला ने कुरान के साथ – साथ हदीस, (जिससे पैगम्मर मुहम्मद के जीवन से एक ऐसा ही प्रसंग वर्जित है) में प्रतिष्ठिता मानव रूप के चित्रण पर इस्लामी प्रतिबंध का आह्वान किया।
ईरान के सफावी राजाओं ने दरबार मे स्थापित कार्यशालाओं में प्रशिक्षित उत्कष्ट कलाकारों को सरक्षण दिया, उदहारण – बिहजाद जैसे चित्रकार। मीर सैय्यद अली और अब्दुल समद नामक कलाकारों को हुमायूँ ईरान से अपने साथ दिल्ली लाया। नोट –
• पयाग शाहजहाँ कालीन चित्रकार था। • अब्दुल हसन जहाँगीर कालीन चित्रकार था।
अकबरनामा और अइन – ए – अकबरी
महत्वपूर्ण चित्रित मुगल इतिहासों से सर्वाधिक ज्ञात अकबरनामा और बादशाहनामा राजा का इतिहास है।
प्रत्येक पांडुलिपि में औसतन 150 पूरे अथवा दोहरे पृष्टों पर लड़ाई, घेराबंदी, शिकार, इमारत निर्माण, दरबारी दृश्य आदि के चित्र है।
अकबरनामा के लेखक अबुल फजल का चालान पोषण मुगल राजधानी आगरा में हुआ।
अकबर के करीबी मित्र और दरबारी अबुल फजल ने उसके शासनकाल के इतिहास लिखा।
अबुल फजल ने यह इतिहास तीन जिल्दों में लिखा और इसका शीर्षक था – अकबरनामा।
पहली जिल्द में अकबर के पूर्वजों का बयान है और दूसरी अकबर के शासनकाल की घटनाओं का विवरण देती है।
तीसरी जिल्द (अइन – ए – अकबरी) है। इसमें अकबर के प्रशासन, घराने, सेना, राजस्व और सम्राज्य के भूगोल का ब्यौरा मिलता है। इसमें समकालीन भारत के लोगो की परम्पराओ ओर संस्कृतियों का भी विस्तृत वर्णन है।
अइन – ए – अकबरी का सबसे रोचक आयाम है, विविध प्रकार की चीजों, फसलो, कीमतों, मजदूरी और राजस्व का सांख्यिकीय विवरण।
मेहरुनिनसा ने 1611 ई० में जहाँगीर से विवाह किया और उसे नूरजहाँ का खिताब मिला। नूरजहाँ हमेशा जहाँगीर के प्रति अत्यधिक वफादार रही। नूरजहाँ के सम्मान में जहाँगीर ने चाँदी के सिक्के जारी किए।
बादशाहनामा
बादशाहनामा सरकारी इतिहास है। इसकी तीन जिल्दें (दफ्तर) है और प्रत्येक जिल्द चंद्र वर्षों का ब्यौरा देती है।लाहौरी ने शाहजहाँ के शासन (1627 ई० – 1647 ई०) के पहले दो दशको पर पहला व दूसरा दफ्तर लिखा। इन जिल्दों में बाद में शाहजहाँ के वजीर सादुल्लाह खाँ ने सुधार किया। सुहारवर्दी दर्शन के मूल में प्लेटो की रिपब्लिक है। जहाँ ईश्वर को सूर्य के प्रतीक द्वारा निरूपित किया गया है। सुहारवर्दी कि रचनाओं को इस्लामी दुनिया मे व्यापक रूप से पढ़ा जाता है। शेख मुबारक ने इसका अध्यन किया था।
मुगल साम्राज्य की धार्मिक स्थिति
1563 ई० में अकबर ने तीर्थ यात्रा कर समाप्त किया। 1564 ई० में अकबर ने जजिया समाप्त किया।
सभी मुगल बादशाहों ने उपासना स्थलों के निर्माण व रखरखाव के लिए अनुदान दिए।
यहाँ तक कि युद्ध के दौरान जब मंदिरो को नष्ट कर दिया जाता था तो बाद में उसकी मरमत के लिए अनुदान जारी किए जाते थे। ऐसा हमे शाहजहाँ एव ओरंगजेब के शासन काल मे पता चलता है।
मुगल दरबार
दरबार मे किसी की हैसियत इस बात से निर्धारित होती थी कि वह शासक के कितने पास या दूर बैठा है।
किसी भी दरबारी को शासक द्वारा दिया गया स्थान बादशाह की नजर में उसकी महत्ता का प्रतीक था।
कोर्निश ओपचारिक अभिवादन का तरीका था।
शासक को किये गए अभिवादन के तरीके से उस व्यक्ति की हैसियत का पता चलता था। जैसे – जैसे व्यक्ति के सामने ज्यादा झुककर अभिवादन किया जाता था उस व्यक्ति की हैसियत ज्यादा ऊँची मानी जाती थी।
शाहजहाँ ने इस तरीके के स्थान पर तस्लीम तथा जमीबोस के तरीके अपनाए।
बादशाह का दिन
बादशाह का जीवन की सुरुआत सूर्योदय के समय के कुछ धार्मिक प्रथाओं से होती थी। इसके बाद वह झरोखा दर्शन देता था (पूर्व की ओर मुंह करके) अकबर द्वारा शुरू किए गए झरोखा दर्शन का उद्देश्य जन विश्वास के रूप में शाही सत्ता को स्वीकृति व विस्तार देना था।
तख्त-ए-ताउस
तख्त-ए-ताउस शाहजहाँ का रत्नजड़ित सिंहासन था। इसकी साजो – सज्जा में 7 वर्ष लगे। इसकी सजावट में बहुमुल्य पत्थर रूबी का प्रयोग किया गया। जिसे शाह अब्बास सफवी ने दिवंगत बादशाह जहाँगीर को भेजा था। इस रूबी पर तैमूर मिर्जा उलुग बेग शाह अब्बास, अकबर, जहाँगीर व शाहजहाँ का नाम अंकित है।
दीवाने – ए – आम और दीवाने – ए – खास में अंतर
दीवाने – ए – आम दीवाने – ए – खास दीवाने – ए आम में बादशाह सरकार के प्राथमिक कार्यों का संचालन करता था। वहां पर राज्य के अधिकारी रिपोर्ट प्रस्तुत करते थे और निवेदन करते थे। इसके विपरीत दीवाने – ए – खास में बादशाह निजी सभाएं और गोपनीय विषय पर चर्चा करते थे और वहां के वरिष्ठ मंत्री अपनी याचिकाएं प्रस्तुत करते थे कर अधिकारी हिसाब का ब्यौरा देते थे।
पदवियां, उपहार ओर भेट
एक दरबारी बादशाह के पास कभी खाली हाथ नही जाता था या तो वह नज़्र के रूप में थोड़ा धन या तो पेशकस के रूप में मोटी रकम बादशाह के सामने पेश करता था। राजनयिक संबधो में उपहारो को सम्मान व आदर का प्रतीक माना जाता था। टॉमस रो को इस बात से बहुत निराशा हुई कि उसने आसफ खाँ का जो अंगूठी भेट की थी। वह उसे केवल इसलिए वापस कर दी गई क्योंकि वह मात्र 400 रुपये की थी।
शाही परिवार
हरम शब्द का प्रयोग मुगलो की घरेलू दुनिया की ओर सकेत करने के लिए होता है। यह फ़ारसी शब्द से निकलता है। जिसका अर्थ है – पवित्र स्थान। इसमे शामिल थे – बादशाह की पत्नियां, उपपत्नियॉ, उनके नजदीकी व दूर के रिश्तेदार (महिलाये तथा बच्चे) महिला परिचारिकायें तथा गुलाम।
बहुविवाह प्रथा शासक वर्गों में व्यापक रूप से प्रचलित थी राजपूतो एव दोनो के लिए विवाह राजनीतिक सम्बंध बनाने का एक तरीका था। बेगम मुगल परिवार में शाही परिवार से आने वाली स्त्रियां थी।
अगहा मुगल परिवार में आने वाली ऐसी स्त्रियां थी जिनका सम्बंध शाही या कुलीन परिवार से नही था। मेहर (दहेज) शाही परिवार से अत्यधिक मात्रा में आता था। स्वाभाविक था कि हरम में बेगमो का सम्मान अगहा की तुलना में अधिक था।
नूरजहाँ के बाद मुगल रानियों और राजकुमारीयो ने महत्वपूर्ण वित्तिय स्रोतों पर नियंत्रण रखना शुरू कर दिया। शाहजहाँ की पुत्रियों जहाआरा ओर रोशनआरा को ऊँचे शाही मनसबदारों के समान वार्षिक आय होती थी। जहाआरा के सूरत के व्यपार से भी राजस्व प्राप्त होता था।
मुगल अभिजात वर्ग
अभिजात वर्ग में भर्ती विभिन्न नृजातीय तथा धार्मिक समूहो से होती थी। इससे वह सुनिश्चित हो जाता था कि कोई भी दल इतना बड़ा न हो कि राज्य की सत्ता को चुनोती दे सके।
मुगलो के अधिकारी वर्ग को गुलदस्ते के रूप में वर्णित किया जाता था, अर्थात जो वफादार से बादशाह के साथ जुड़े हुये थे।
प्रारम्भ में तुरानी व ईरानी अभिजात अकबर की शाही सेवा में उपस्थित थे। 1560 ई० के बाद राजपूतो व भारतीय मुसलमानों (शेखजादाओ) ने शाही सेवा में प्रवेश किया।
सेवा में आने वाला प्रथम राजपूत मुखिया आंबेर का राजा शासक कच्छवाहा था जिसकी पुत्री से अकबर ने विवाह किया था।
जहाँगीर के शासन में ईरानियों को उच्च पद प्राप्त हुए। नूरजहाँ (जहाँगीर की प्रिय पत्नी) ईरानी थी
औरंगजेब ने राजपूतो को उच्च पदों पर नियुक्त किया फिर भी औरंगजेब के समय गैर – मुसलमान अधिकारियो में मराठों की बहुतायत थी।
चार चमन चंद्रभान ब्राह्मण द्वारा शाजहाँ के समय किया गया ग्रंथ है जिसमे मुगल अभिजात वर्ग का वर्णन है।
अकबर ने आपने अभिजात वर्ग के कुछ लोगो को शिष्य (मुरीद) की तरह मानते हुये उनके साथ आध्यत्मिक रिश्ते कायम किये।
मुगल दरबार मे जेसुइट धर्म प्रचारक
अकबर ईसाई धर्म के बारे में जानने को बहुत उत्सुक था। उसने जेसुइट पादरियों को आमंत्रित करने के लिए एक दूतमण्डल गोवा भेजा।
पहला जेसुइट शिष्टमंडल फतेपुर सीकरी के मुगल दरबार मे 1580 ई० में पहुँचा ओर वह वहाँ लगभग दो वर्ष रहा।
लाहौर के मुगल दरबार मे दो और शिष्यमंडल 1591 ई० और 1595 ई० में भेजे गए।
सर्वाधिक सभाओ में जेसुइट लोगो को अकबर के सिंहासन के काफी नजदीक स्थान दिया जाता था। वे उसके साथ अभियानों में जाते, उसके बच्चो को शिक्षा देते तथा उसके फुरसत के समय मे वे अक्सर उसके साथ होते थे।
NCERT Solution Class 12th History भारतीय इतिहास के कुछ विषय भाग – Ⅰ Notes In Hindi