NCERT Solutions Class 12th Hindi अंतरा Chapter – 21 कुटज Question & Answer

NCERT Solutions Class 12th Hindi अंतरा Chapter – 21 कुटज

TextbookNCERT
Class Class 12th
Subject Hindi
Chapter21
Grammar Nameकुटज
CategoryClass 12th  Hindi अंतरा 
Medium Hindi
SourceLast Doubt

NCERT Solutions Class 12th Hindi अंतरा Chapter – 21 कुटज Question & Answer कुटज के जीवन से हमें क्या सीख मिलती है? कुटज का मतलब क्या है? कुटज किसकी भाँति घोषणा करता है? कुटज वृक्ष की सबसे सराहनीय क्या बात है? नाम क्यों बड़ा है लेखक के विचार अपने शब्दों में लिखें कुटज को गाढे का साथी क्यों कहा गया है? कुटज वृक्ष की सबसे सराहनीय क्या बात है?

NCERT Solutions Class 12th Hindi अंतरा Chapter – 21 कुटज

Chapter – 21

कुटज

प्रश्न – उत्तर

प्रश्न 1. कुटज को ‘गाढ़े का साथी’ क्यों कहा गया है?
उत्तर – कालिदास ने आषाढ़ माह के पहले दिन रामगिरि पर यक्ष को जब मेघ की उपासना के लिए नियोजित किया, तो उन्हें कुटज के ताजे फूलों की अंजलि देकर संतोष करना पड़ा था। उस पर्वत पर कोई अन्य फूल उन्हें नहीं मिला। कुटज ने उनके संतृप्त चित्तत को सहारा दिया था। वह मुसीबत में काम आया। इसलिए ‘कुटज’ को ‘गाढ़े का साथी’ कहा गया है।
प्रश्न 2. ‘नाम’ क्यों बड़ा है? लेखक के विचार अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर – ‘लेखक ‘नाम’ को बड़ा कहता है। इसके पीछे कारण यह है कि नाम को सामाजिक स्वीकृति मिली ‘नाम’ क्यों बड़ा  है। नाम उस पद का कहा जाता है जिस पर समाज की मुहर लगी होती है। इसी कारण ‘नाम’ को कहा जाता है।
प्रश्न 3.‘कुट’, ‘कुटज’ और ‘कुटनी’ शब्दों का विश्लेषण कर उनमें आपसी संबंध स्थापित कीजिए।
उत्तर – ‘कुट’का अर्थ है-घड़ा। इसे घर भी कहते हैं। ‘कुटज’ का अर्थ है घड़े से उत्पन्न महर्षि अगस्त्य को घड़े से उत्पाता है। इसी कारण उन्हें ‘कुटज ‘भी कहा जाता है। कुटनी शब्द का अर्थ है गलत ढंग की या विषम परिस्थितियों को उत्पन्न करने वाली हमारा मत है कि जिस प्रकार घर में रहने वाला बालक बचपन में दासी को रहता है वही संबंध इनका भी है। हिमालय पर्वत रूपी घर की ऊँचाई पर उगने वाला पौधा है। यह कुपित यमराज के निःश्वास के समान धधकती लू की उपस्थिति में भी जीवित रहता है।
प्रश्न 4. कुटज किस प्रकार अपनी अपराजेय जीवनी-शक्ति की घोषणा करता है?
उत्तर – कुटज’ का नाम हजारों साल से चला आ रहा है। कठिन परिस्थितियों में भी उसके रूप तथा नाम में कोई बदलाव नहीं आया है वह हिमालय की शिलाओं के बीच उगता है तथा लू में भी हरा रहता है। पाषणो से वह अज्ञात जल स्रोत का रस खींचकर सरस बना रहता है। इस प्रकार वह अपनी अपराजेय जीवनी शक्ति की घोषणा करता है।
प्रश्न 5. ‘कुटज’ हम सभी को क्या उपदेश देता है? टिप्पणी कीजिए।
उत्तर – कुटज’ शिवालिक की श्रृंखलाओं में पाया जाता है। वह हमें उपदेश देता है कि जीना एक कला है। जीवन में अनेक बाधाएँ आती हैं। मनुष्य को उनके साथ संघर्ष करना चाहिए तथा हर परिस्थिति में उल्लाससपूंर्ण जीवन जीना चहिए लेखक के शब्दों में जीना चाहते हो। कठोर पाषाण को भेदकर, पाताल की छाती चीरकर, अपना भोग्य संग्रह करो। वायुमंडल को चूसकर झंझा-तूफान को रगड़कर अपना प्राप्य वसूल आकाश को चूमकर आकाश की लहरी में झूमकर उल्लास खींच लो। कुटज का यही उपदेश है।
प्रश्न 6. कुटज के जीवन से हमें क्या सीख मिलती है?
उत्तर – कुटज’ के जीवन से हमें यह सीख मिलती है कि हमें कठिन परिस्थितियों में भी कभी विचलित नहीं होना चाहिए। मनुष्य को कष्टों का साहस के साथ सामना करना चाहिए तथा सदा मस्त रहना चाहिए
प्रश्न 7. कुटज क्या केवल जी रहा है- लेखक ने यह प्रश्न उठाकर किन मानवीय कमज़ोरियों पर टिप्पणी की है?
उत्तर –कुटज’ क्या केवल जी रहा है-लेखक ने यह प्रश्न उठाकर मानवीय कमजोरियों पर टिप्पणी की है। मानव दूसरे से सहायता माँगता है,वह भय से अधमरा हो जाता है। मनुष्य नीति तथा धर्म का उपदेश देता है। वह उन्नति के लिए अफसरों के जूते चाटता है। वह दूसरों को अपमानित करने के लिए ग्रहों की खुशामद करता है। मानव अपनी उन्नति के लिए नीलम, अंगूठियों की लड़ी पहनता है। वह दाँत निपोरता है बगलें झाँकता है।
प्रश्न 8. लेखक क्यों मानता है कि स्वार्थ से भी बढ़कर जिजीविषा से भी प्रचंड कोई न कोई शक्ति अवश्य है? उदाहरण सहित उत्तर दीजिए।
उत्तर – लेखक मानता है कि स्वार्थ से भी बढ़कर जिजीविषा से भी प्रचंड कोई-न-कोई शक्ति अवश्य है। वह तर्क देता है कि संसार में प्रेम भी सिर्फ मतलब के लिए है। दुनिया में प्रेम, परार्थ, त्याग तथा परमार्थ का अभाव है। भीतर की जिजीविषा को जीवित रखने की प्रचंड इच्छा सबसे बड़ी होती है वे सभी बड़ी बातें जिनके बल पर दलों का निर्माण होता है, शत्रुमर्दन का अभिनय होता है आदि, वे सब मिथ्या हैं। इसके माध्यम से हर व्यक्ति अपने स्वार्थ अवश्य सिद्ध करता है।
प्रश्न 9. ‘कुटज’ पाठ के आधार पर सिद्ध कीजिए कि ‘दुख और सुख तो मन के विकल्प हैं।’
उत्तर – लेखक ने सुख-दुख को मानव मन का विकल्प बताया है। मनुष्य जीवन भर सुख और दुख के मध्य जीता है। जिसका मन नियंत्रित है वह स्वयं को सुखी मानता है। जिसका मन पर नियंत्रण नहीं है, वह स्वयं को दुखी समझता रहता है। मानव कभी सुख-दुख के बंधन से मुक्त नहीं हो जाता। पाठ में ‘कुटज’ नामक पौधा कठिन परिस्थितियों में भी जीवित रहता है।
प्रश्न 10: निम्नलिखित गद्यांशों की सप्रसंग व्याख्या कीजिए-
(क) ‘कभी-कभी जो लोग ऊपर से बेहया दिखते हैं, उनकी जड़ें काफ़ी गहरी पैठी रहती हैं। ये भी पाषाण की छाती फाड़कर न जाने किस अतर गह्वर से अपना भोग्य खींच लाते हैं।’
(ख) ‘रूप व्यक्ति-सत्य है, नाम समाज-सत्य। नाम उस पद को कहते हैं जिस पर समाज की मुहर लगी होती है। आधुनिक शिक्षित लोग जिसे ‘सोशल सैक्शन’ कहा करते हैं। मेरा मन नाम के लिए व्याकुल है, समाज द्वारा स्वीकृत, इतिहास द्वारा प्रमाणित, समष्टि-मानव की चित्त-गंगा में स्नात!’
(ग) ‘रूप की तो बात ही क्या है! बलिहारी है इस मादक शोभा की। चारों ओर कुपित यमराज के दारुण निःश्वास के समान धधकती लू में यह हरा भी है और भरा भी है, दुर्जन के चित्त से भी अधिक कठोर पाषाण की कारा में रुद्ध अज्ञात जलस्रोत से बरबस रस खींचकर सरस बना हुआ है।’
(घ) हृदयेनापराजितः! कितना विशाल वह हृदय होगा जो सुख से, दुख से, प्रिय से, अप्रिय से विचलति न होता होगा! कुटज को देखकर रोमांच हो आता है। कहाँ से मिलती है यह अकुतोभया वृत्ति, अपराजित स्वभाव, अविचल जीवन दृष्टि!’
उत्तर – (क) प्रसंग- प्रस्तुत पंक्तियाँ हजारी प्रसाद द्वविवेदी द्वारा रचित निबंध कुटज से लिया गया है। इसमें लेखक कुटज की विशेषता बताते है। दूसरी ओर वह ऐसे लोगों की और संकेत करता है, जो स्वभाव से बेशर्म होते हैं लेकिन ये बेशर्मी उसकी विकट परिस्थितियों से लड़ने का परिणाम होती है।
व्याख्या- लेखक इन पंक्तियों के माध्यम से कुटज तथा ऐसे लोगों के बारे में बात करता है, जो बेहया दिखाई देते हैं। लेखक कहता है कि कुटज ऐसे वातावरण में सिर उठाकर खड़ा है, जहाँ अच्छे-अच्छे धराशायी हो जाते हैं। वह पहाड़ों की चट्टानों पर पनपने के साथ-साथ उनमें विद्यमान जल स्रोतों से अपने लिए पानी की व्यवस्था भी कर लेता है। लोग फिर उसके इस प्रकार के खड़े रहने के स्वभाव को बेहया का उदाहरण ही क्योंन मान लें। यह स्वभाव उनकी विकट परिस्थितियों से लड़ने का परिणाम है। अतः वह उनके स्वभाव में दिखता है। ऐसे ही कुछ लोग होते हैं जीवन में विकट परिस्थितियों से
गुजरते हैं और डटकर खड़े रहते हैं। उनके इस स्वभाव को लोग बेहया होने का प्रमाण मानते हैं। उनका यही स्वभाव उनकी रक्षा करता है और उन्हें मजबूती से खड़े रखने में सहायता करता है। ऐसे लोग अपना रास्ता स्वयं खोजते हैं।

(ख) प्रसंग- प्रस्तुत पंक्तियाँ हजारी प्रसाद द्वविवेदी द्वारा रचित निबंध कुटज से लिया गया है। लेखक इन पंक्तियों में नाम की विशेषता बताते हैं।
व्याख्या- लेखक इन पंक्तियों में नाम की विशेषता बताता है। लेखक कहता है कि यह सत्य है कि मनुष्य अपने ‘रूप’ से पहचाना जाता है। जैसा उसका रूप होता है, वैसी उसकी पहचान होती है। यह व्यक्ति द्वारा दिया गया है और यह एक सच है। इसे झुठलाया नहीं जा सकता है। ऐसे ही ‘नाम’ है। ‘नाम’ समाज में हमारी पहचान होती है। इससे ही हमें जाना जाता है। समाज द्वारा इसे स्वीकृति मिली होती है। आधुनिक भाषा में इसे ‘सोशल सैक्शन’ कहते हैं। इसका अर्थ है कि आपका नाम समाज द्वारा स्वीकार किया गया है। लेखक कहता है कि मेरा मन नाम का अर्थ ढूँढने के लिए परेशान हो रहा है। अर्थात इसे समाज द्वारा कब स्वीकारा गया, इसे इतिहास के माध्यम से कैसे सही साबित किया गया होगा कि यह लोगों के ह्दय में जगह पा गया।

(ग) प्रसंग- प्रस्तुत पंक्तियाँ हजारी प्रसाद द्वविवेदी द्वारा रचित निबंध कुटज से लिया गया है। लेखक इन पंक्तियों में कुटज की विशेषता बताते हैं।
व्याख्या- लेखक प्रस्तुत पंक्तियों में कुटज की शोभा की बात करते हैं। वह कहते हैं कि कुटज देखने में बहुत सुंदर होता है। इसकी शोभा इतनी प्यारी होती है कि उसकी बलाएँ लेने का मन करता है। यदि वातावरण पर दृष्टि डालें तो चारों ओर भयंकर गर्मी पड़ रही है। ऐसा लगता है मानो यमराज साँस ले रहे हों। इतनी प्रचंड गर्मी होने के बाद भी यह झुलसाया नहीं है। इसमें हरियाली छायी हुई है। इसके साथ-साथ यह फल भी रहा है। यह ऐसे पत्थरों के बीच में से भी अपनी जड़ों के लिए रास्ता बनाता है और उनमें विद्यमान ऐसे जलस्रोतों को खोज लाता है, जिसके बारे में किसी को नहीं पता होता। लेखक ने पत्थरों की तुलना दुर्जन व्यक्तियों से की है। अतः वह कहता है कि कुटज अपने जीवन के लिए विकट परिस्थितियों से लड़ता भी है और सिर उठाकर खड़ा भी रहता है।

(घ) प्रसंग- प्रस्तुत पंक्तियाँ हजारी प्रसाद द्वविवेदी द्वारा रचित निबंध कुटज से लिया गया है। लेखक इन पंक्तियों में कुटज की विशेषता बताते हैं।
व्याख्या- प्रस्तुत पंक्तियों में लेखक कुटज की विशेषता बताता है। यह कैसा हृदय है, जो कभी पराजय नहीं होता। वह सुख-दुख, प्रिय-अप्रिय भावों की स्थिति में भी समान भाव से रहता है। अर्थात उसका इन पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता है। उनका हृदय यदि इस गुण से व्याप्त है, तो वह बहुत ही विशाल है। वह दृढ़ होकर खड़ा रहता है। ऐसे उसे कुटज को देखकर लगता है। उसे देखते ही वह रोमांच भाव से भर जाता है। वह विकट परिस्थितियों में भी सिर उठाकर खड़ा है। उसकी स्थिति देखकर पता चलता है कि वह प्रसन्न है। यह उसके हरे-भरे रूप को देखकर ज्ञात हो जाता है। लेखक को उसके निडर, कभी न हारने वाले स्वभाव तथा अविचल स्वभाव से झलकता है। वह विशाल जीवन दृष्टि लिए हुए है, जो उसे कभी हारने नहीं देती

योग्यता विस्तार

प्रश्न 1. ‘कुटज’ की तर्ज पर किसी जंगली फूल पर लेख अथवा कविता लिखने का प्रयास कीजिए।
उत्तर – 1. बुरांस लालिमा लिए खिल रहा है,
2. पर्वतीय प्रदेशों में
3. वहाँ रक्तिमा फैला रहा है,
4. मात्र रंग का सौंदर्य नहीं है इसमें
5. कुछ अपने भी अपूर्व गुण है
6. यही कारण है कि नेपाल का राष्ट्रीय फूल और उत्तराखंड का राज्य फूल है यह
7. मेरे हृदय को भा रहा है, बुरांस का फूल है यहप्रश्न 2: लेखक ने ‘कुटज’ को ही क्यों चुना? उसको अपनी रचना के लिए जंगल में पेड़-पौधे तथा फूलों-वनस्पतियों की कोई कमी नहीं थी।
 यह सही है कि लेखक के पास उदाहरणों की कोई कमी नहीं थी। कुटज की विशेषताएँ ही ऐसी थी कि लेखक को उसके विषय में लिखने के लिए विवश होना पड़ा। प्रायः एक लेखक का कर्तव्य होता है ऐसी रचना करना जो समाज को ज्ञान भी दे और ज्ञान से जीवन के गुढ़ रहस्य के बारे में भी बताए। इस तरह वह जहाँ प्रकृति से लोगों को जोड़ता है, वहीं जीवन से भी उनका संबंध स्थापित करता है। कुटज ऐसा ही उदाहरण है, जिससे लेखक न केवल उसके बारे में बताया साथ ही लोगों के जीवन में आने वाली विकट परिस्थितियों से उसका संबंध स्थापित कर लोगों को मार्ग दिखाया।
प्रश्न 2. कुटज के बारे में उसकी विशेषताओं को बताने वाले दस वाक्य पाठ से छाँटिए और उनकी मानवीय संदर्भ में विवेचना कीजिए।
उत्तर – (1) शिवालिक की सूखी नीरस पहाड़ियों पर मुसकुराते हुए ये वृक्ष द्वंद्वातीत हैं, अलमस्त हैं।
(2) अजीब सी अदा है मुसकुराता जान पड़ता है।
(3) उजाड़ के साथी, तुम्हें अच्छी तरह पहचानता हूँ।
(4) धन्य हो कुटज, तुम ‘गाढ़े के साथी हो।’
(5) कुटज अपने मन पर सवारी करता है, मन को अपने पर सवार नहीं होने देता।
(6) कुटज इन सब मिथ्याचारों से मुक्त है। वह वशी है। वह वैरागी है।
(7) सामने कुटज का पौधा खड़ा है वह नाम और रूप दोनों में अपनी अपराजेय जीवनी शक्ति की घोषण करता है।
(8) मनोहर कुसुम-स्तबकों से झबराया, उल्लास-लोल चारुस्मित कुटज।
(9) कुटज तो जंगल का सैलानी है।
प्रश्न 3.‘जीना भी एक कला है’- कुटज के आधार पर सिद्ध कीजिए।
उत्तर – यह बिलकुल सही है कि जीना भी एक कला है। कुटज ने यह सिद्ध कर दिया है। जो विकट परिस्थितियों में और असामान्य परिस्थितियों में भी स्वयं को जिंदा रखे हुए है, तो उसकी जितनी भी तारीफ की जाए कम है। ऐसे ही मनुष्य को जीना चाहिए। सुख-दुख तो आते रहते हैं। जो मनुष्य सुख-दुख में स्वयं को समान रख सके वही वास्तव में जीना जानता है। सुख में तो सभी सुखी होते हैं, जो दुख में रहकर भी हँसे सही मायने में उसने जीना सीख लिया है। इस कला को हर कोई नहीं जानता है। इस कला को विकसित करने के लिए हमें गंभीरता से विचार करना पड़ेगा। अगर हमने सीख लिया तो यह जीवन स्वर्ग हो जाएगा।

काव्य खंड

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