NCERT Solutions Class 12th Hindi अंतरा Chapter – 6 तोड़ो Question & Answer

NCERT Solutions Class 12th Hindi अंतरा Chapter – 6 तोड़ो

TextbookNCERT
Class Class 12th
Subject Hindi
ChapterChapter – 6
Grammar Nameतोड़ो
CategoryClass 12th Hindi अंतरा
Medium Hindi
SourceLast Doubt

NCERT Solutions Class 12th Hindi अंतरा Chapter – 6 तोड़ो Question & Answer इस में हम पढेंगें मनुष्य का जन्म क्यों होता है?, मनुष्य का स्वभाव क्या है?, जीवन का अंतिम सत्य क्या है?, सूर्य का जीवनकाल कितना है?, पूरे विश्व में कितने सूर्य हैं?, सूर्य में कितने तत्व हैं?, रंग कितने प्रकार के होते हैं?, कौन सा रंग स्वस्थ है?, रंग के कितने गुण होते हैं?, मनुष्य मरने के बाद कितने दिन में जन्म लेता है?, सत्य से कितने होते हैं?, मनुष्य सत्य से क्यों भागते हैं?, रंगों की खोज कब हुई थी?

NCERT Solutions Class 12th Hindi अंतरा Chapter – 6 तोड़ो

Chapter – 6

तोड़ो

प्रश्न – उत्तर

अभ्यास प्रश्न – उत्तर

प्रश्न 1. ‘पत्थर’ और ‘चट्टान’ शब्द किसके प्रतीक हैं?
उत्तर – तोड़ो कविता में ‘पत्थर’ और ‘चट्टान’ बंधनों तथा बाधाओं के प्रतीक हैं। बंधन और बाधाएँ मनुष्य को आगे बढ़ने से रोकती है इसलिए कवि मनुष्य को इनको हटाने के लिए प्रेरित करता है। उसके अनुसार यदि इनसे पार पाना है, तो इन्हें तोड़कर अपने रास्ते से हटाना पड़ेगा। तभी मंजिल पायी जा सकती है।

प्रश्न 2. कवि को धरती और मन की भूमि में क्या-क्या समानताएँ दिखाई पड़ती हैं?
उत्तर – कवि के अनुसार धरती और मन में बहुत प्रकार की समानताएँ विद्यमान हैं। वे इस प्रकार हैं-
(क) धरती में मिट्टी विद्यमान होती है। उसमें पत्थर और चट्टानें व्याप्त हो तो वह बंजर हो जाती है,
जिससे उसमें किसी भी प्रकार की फसल पैदा नहीं हो सकती है। इसी प्रकार मन की भूमि बंधनों
और बाधाओं के कारण बंजर हो जाती है अर्थात बंधन और बाधाएँ उसकी सृजन शक्ति को
कमजोर बनाते हैं।

(ख) धरती के भीतर पत्थर और कठोरता का समावेश हैं, ऐसे ही मन में ऊबाउपन और खीझ
विद्यमान हैं।

(ग) धरती के भीतर यदि पत्थर और चट्टान विद्यमान होगें, तो उसकी पैदावार शक्ति घट जाएगी।
इसी तरह यदि मन में शंकाएँ तथा खीझ विद्यमान रहेगी, तो उसकी सृजन शक्ति घट जाएगी।

(घ) धरती में हल चलाकर उसके भीतर व्याप्त चट्टानों और पत्थरों को बाहर निकाला जाता है तथा
उसे कृषि योग्य बनाया जाता है, वैसे ही मन में व्याप्त शंकाओं, बाधाओं तथा खीझ को निकालकर
उसकी सृजन शक्ति को बढ़ाया जा सकता है।

प्रश्न 3. भाव-सौंदर्य स्पष्ट कीजिए- मिट्टी में रस होगा ही जब वह पोसेगी बीज को हम इसको क्या कर डालें इस अपने मन की खीज को? गोड़ो गोड़ो गोड़ो
उत्तर – भाव यह है कि मिट्टी का उपजाऊपन ही बीज का पोषण करता है और उसे फसल रूप में आकार देता है। मिट्टी में यदि उपजाऊपन (रस) नहीं होगा, तो वह बीज का पोषण नहीं कर पाएगी। ऐसे ही मन की स्थिति भी होती है। जब तक उसके अंदर खीझ विद्यमान रहेगी, उसकी सृजन शक्ति उससे प्रभावित होती रहेगी। अत: सृजन के लिए खीझ को मन से बाहर निकाल करना होगा। इन पंक्तियों में कवि धरती के माध्यम से मनुष्य की खीझ को बाहर निकालने के लिए प्रेरित करता है।
प्रश्न 4. कविता का आरंभ ‘तोड़ो तोड़ो तोड़ो’ से हुआ है और अंत ‘गोड़ो गोड़ो गोड़ो’ से। विचार कीजिए कि कवि ने ऐसा क्यों किया?
उत्तर – ऐसा करने के पीछे कवि का विशेष उद्देश्य है, ‘तोड़ो तोड़ो तोड़ो’ से कविता आरंभ करके कवि मनुष्य को विघ्न, बाधाएँ, खीझ इत्यादि को चकनाचूर करने के लिए प्रेरित करता है। इस तरह मनुष्य संकट से बाहर आ जाता है और उसके मन की सोचने-समझने की शक्ति का विकास होता है। विघ्न-बाधाएँ तथा खीझ मनुष्य के विचारों को प्रभावित किए रहती हैं और वह कुछ भी करने में असमर्थ होता है। ‘गोड़ो गोड़ो गोड़ो’ से वह मन को मज़बूत बनाकर सृजन शक्ति को बढ़ाने के लिए प्रेरित करता है। जैसे धरती के अंदर व्याप्त चट्टान और पत्थरों को तोड़ने से उसका बंजरपन समाप्त होता है तथा गुड़ाई करके उसे खेती करने योग्य बनाया जाता है। ऐसे ही इन शब्दों के द्वारा कवि मन को विशेष बल देने का प्रयास करता है ताकि वह अपने सम्मुख खड़ी कठिनाइयों से लड़ सके तथा सृजन शक्ति को और बलशाली बना सके। इस प्रकार ही मनुष्य का विकास संभव है।
प्रश्न 5. ये झूठे बंधन टूटें तो धरती को हम जानें यहाँ पर झूठे बंधनों और धरती को जानने से क्या अभिप्राय हैं?
उत्तर – कवि का निम्नलिखित पंक्ति में झूठे बंधनों से अभिप्राय है कि झूठे बंधन मनुष्य को अपने मार्ग से विचलित करते हैं। उसकी शक्ति को जकड़ देते हैं। जैसे धरती में व्याप्त पत्थर तथा चट्टानें उसे बंजर बना देते हैं, वैसे ही मन में व्याप्त झूठे बंधन उसकी सृजन शक्ति को विकसित नहीं होने देते।
धरती को जानने से अभिप्राय है कि धरती में इतनी शक्ति होती है कि वह समस्त संसार का भरण-पोषण कर सके। परन्तु उसमें व्याप्त पत्थर और चट्टानें उसे बंजर बना देती हैं। अतः हमें उसकी शक्ति तथा उसके महत्व को समझकर उसे खेती योग्य बनाने की आवश्यकता है। मनुष्य का मन भी इसी धरती के समान है, यदि वह शंकाओं, झूठे बंधनों के जाल में फंसा रहेगा, तो अपनी सृजन शक्ति का नाश ही करेगा। अत: अपने मन का अवलोकन कर उसे अपनी शक्ति को पहचानना चाहिए और सभी प्रकार की बांधाओं को उखाड़ फेंकना चाहिए।
प्रश्न 6. ‘आधे-आधे गाने’ के माध्यम से कवि क्या कहना चाहता है?
उत्तर – ‘आधे-आधे गाने’ के माध्यम से कवि कहना चाहता है कि मनुष्य जब तक अपने मन में व्याप्त खीझ तथा ऊब को बाहर निकाल नहीं करता, तब तक उसका गान अधूरा ही रहेगा। मन जब उल्लास तथा आनंद को महसूस करेगा तभी वह पूरा गाना गा सकता है। यह इस बात की ओर संकेत करता है कि मन के अंदर खीझ तथा ऊबाउपन नहीं होगा, तो वह सृजन करने में सक्षम होगा। इस तरह ही उसका कल्याण संभव है।

योग्यता विस्तार

प्रश्न 1. वसंत ऋतु पर किन्हीं दो कवियों की कविताएँ खोजिए और इस कविता से उनका मिलान कीजिए?
उत्तर – नज़ीर अकबराबादी – कहाँ रहेगी चिड़ियाआलम में जब बहार की आकर लगंत होफिर आलम में तशरीफ लाई बसंतजहां में फिर हुई ऐ यारो आश्कार बसंतगुलशने-आलम में जब तशरीफ़ लाती है बहारमिलकर सनम से अपने हंगाम दिल कुशाईजब फूल का सरसों के हुआ आके खिलन्ताजोशे निशातो ऐश है हर जा बसंत कानिकले हो किस बहार से तुम ज़र्द पोश होकरके बसंती लिबास सबसे बरस दिन के दिनआने को आज घूम इधर है बसंत कीचम्पे का इत्र मलकर मौके़ से फिर खुशी हो

सूर्यकांत त्रिपाठी “निराला” – वसन्त की परी के प्रतिसखि, वसन्त आयारँग गई पग-पग धन्य धराहँसी के तार के होते हैं ये बहार के दिनअलि की गूँज चली द्रुम कुँजोंआज प्रथम गाई पिक पंचमफूटे हैं आमों में बौरवरद हुई शारदा जी हमारीकूची तुम्हारी फिरी कानन में

प्रश्न 2. भारत में ऋतुओं का चक्र बताइए और उनके लक्षण लिखिए।
उत्तर – भारत ऋतुओं का देश कहा जाता है। भारत में ग्रीष्म ऋतु, वर्षा ऋतु, शरद् ऋतु, हेमंत ऋतु, शिशिर ऋतु व वसंत ऋतु मिलाकर कुल छ: ऋतुएँ होती हैं। इन ऋतुओं का समय दो-दो महीने का होता है। हिन्दी तिथि के अनुसार वैशाख व जेठ का महीना ग्रीष्म ऋतु का कहलाता है। वर्षा ऋतु का आषाढ़ व सावन का महीना होता है। शरद् ऋतु का भाद्र व आश्विन का महीना होता है। हेमंत का कार्तिक व अगहन। पूस व माघ का शिशिर का महीना होता है। फाल्गुन व चैत्र का महीना वसंत ऋतु का माना जाता है।ग्रीष्म ऋतु अपने नाम के अनुसार गर्म व तपन से भरी मानी जाती है। इस ऋतु में रातें छोटी व दिन लम्बे होते हैं। ग्रीष्म ऋतु में मौसमी फलों; जैसे- जामुन, शहतूत, आम, खरबूजे, तरबूज आदि फलों की बहार आई होती है। ग्रीष्म ऋतु के समाप्त होते-होते वर्षा ऋतु अपनी बौछारों के साथ प्रवेश करती है। ग्रीष्म ऋतु के बाद इस ऋतु का महत्व अधिक देखने को मिलता है क्योंकि गरमी से बेहाल लोग इस ऋतु में आराम पाते हैं। वर्षा कि बौछार तपती धरती को शीतलता प्रदान करती है। जहाँ एक ओर लोगों के लिए यह मस्ती से भरी होती हैं, वहीं दूसरी ओर किसानों के लिए बुआई का अवसर लाती है। चावलों की खेती के लिए तो यह उपयुक्त मानी जाती है। यह ऋतु प्रेम व रस की अभिव्यक्ति के लिए अच्छी मानी जाती है। इसे ऋतुओं की रानी कहा जाता है।वर्षा ऋतु के समाप्त होते-होते शरद ऋतु अपना प्रभाव दिखाना आरंभ कर देती है। वातावरण में ठंडापन आने लगता है। इसमें करवाचौथ, नवरात्रें, दुर्गा-पूजा, दशहरा व दीपावली आदि त्यौहारों का ताँता लग जाता है। इस ऋतु में दिन छोटे होने लगते हैं।शरद् के तुरंत बाद हेमंत ऋतु अपना रूप दिखाना आरंभ करती है। सरदी बढ़ने लगती है। दिन और छोटे होने लगते हैं।हेमंत के समाप्त होते-होते शिशिर ऋतु का प्रकोप आरंभ हो जाता है। कड़ाके कि ठंड पड़ने लगती है। लोगों का सुबह-सवेरे काम पर निकलना कठिन होने लगता है। अत्यधिक ठंड से व कोहरे से जन-जीवन अस्त-व्यस्त होने लगता है। इस ऋतु में धनिया, मेथी, पालक, मटर, गाजर, बैंगन, गोभी, मूली, सेब, अंगूर, अमरूद, संतरे इत्यादि सब्जियों व फलों की बहार आ जाती है। धूप का असली मज़ा इसी ऋतु में लिया जा सकता है।nशिशिर ऋतु के जाते ही सबके दरवाजों पर वसंत ऋतु दस्तक देने लगती है। इस ऋतु से वातारण मोहक व रमणीय बन जाता है। यह ऋतु रसिकों की ऋतु कहलाती है। प्राकृतिक की आभा इसी ऋतु में अपने चरम सौंदर्य पर देखी जा सकती है। चारों तरफ फल व फूलों की बहार देखते ही बनती है। यह ऋतु हर जन-मानस का मन हर लेती है। इसकी ऋतु की सुंदरता के कारण ही इस ऋतु को ऋतुओं का राजा भी कहा जाता है।

प्रश्न 3. मिट्टी और बीज से संबंधित और भी कविताएंँ हैं, जैसे सुमित्रानंदन पंत की ‘बीज’ | अन्य कवियों की ऐसी कविताओं का संकलन कीजिए और भित्ति पत्रिका में उनका उपयोग कीजिए।
उत्तर – मिट्टी और बीज से संबंधित कविताएं-

सृष्टि – सुमित्रानंदन पंत

मिट्टी का गहरा अंधकार,
डूबा है उस में एक बीज
वह खो न गया, मिट्टी न बना
कोदों, सरसों से शुद्र चीज!
उस छोटे उर में छुपे हुए
हैं डाल–पात औ’ स्कन्ध–मूल
गहरी हरीतिमा की संसृति
बहु रूप–रंग, फल और फूल!
वह है मुट्ठी में बंद किये
वट के पादप का महाकार
संसार एक! आशचर्य एक!
वह एक बूंद, सागर अपार!
बंदी उसमें जीवन–अंकुर
जो तोड़ निखिल जग के बंधन
पाने को है निज सत्त्व, मुक्ति!
जड़ निद्रा से जग, बन चेतन
आः भेद न सका सृजन रहस्य
कोई भी! वह जो शुद्र पोत
उसमे अनंत का है निवास
वह जग जीवन से ओत प्रोत!
मिट्टी का गहरा अंधकार
सोया है उसमें एक बीज
उसका प्रकाश उसके भीतर
वह अमर पुत्र! वह तुच्छ चीज?

बीज मिट्टी में जा मिला/कैलाश पण्डा

बीज मिट्टी में जा मिला
श्रद्धा का पात्र बन गया
तुमने जाना
बलिदान दिया उसने
सत्य ही तो है
किन्तु मैं तो यही कहूंगा
मिट्टी को पहचान लिया
उसके सानिध्य को पाकर
वह वृक्ष बन गया
मंगल करता सर्वत्र
फल देता मधुर
रसास्वादन लेता जन-जन
तप्त धूप में
पथिक लेता विश्राम
सूक्ष्म कीट पतंग
कितने ही पलते
पंछी बनाते नीड़
वन वाटिका विकसती
बीज मिट्टी में जा मिला
तुम्हारे लिए।

NCERT Solutions Class 12th Hindi अंतरा Chapter – 6 रघुवीर सहाय

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