NCERT Solutions Class 12th अर्थशास्त्र (Part-Ⅰ) Chapter – 5 खुली अर्थव्यवस्था भुगतान शेष (Open Economy Payment Is Due) Notes In Hindi

NCERT Solutions Class 12th अर्थशास्त्र (Part-Ⅰ) Chapter – 5 खुली अर्थव्यवस्था भुगतान शेष

TextbookNCERT
Class 12th
Subject Economics (भाग – Ⅰ)
Chapter5th
Chapter Nameखुली अर्थव्यवस्था भुगतान शेष (Open Economy Payment Is Due)
CategoryClass 12th Economics 
Medium Hindi
SourceLast Doubt

NCERT Solutions Class 12th अर्थशास्त्र (Part-Ⅰ) Chapter – 1 खुली अर्थव्यवस्था भुगतान शेष (Open Economy Payment Is Due) Notes In Hindi भुगतान शेष की संरचना क्या है?, भुगतान शेष में घाटे से क्या अभिप्राय है?, खुली अर्थव्यवस्था और बंद अर्थव्यवस्था क्या है?, पूजी खाता क्या होता है?, खाता शेष क्या है?, खाता कितने प्रकार का होता है?, भुगतान से क्या तात्पर्य है?, बैंक में खाता कैसे कुलंग?, एक बैंक में दो खाते हो सकते हैं क्या?, एक आदमी कितने बैंक में खाता खुल सकता है?, खाता कितने दिन में बंद हो जाता है?, बैंक में टैक्स कब लगता है?, बैंक खाता अपने आप कब बंद होता है?, सेविंग अकाउंट में 1 साल में कितना पैसा जमा कर सकते हैं?

NCERT Solutions Class 12th अर्थशास्त्र (Part-Ⅰ) Chapter – 5 खुली अर्थव्यवस्था भुगतान शेष

अध्याय – 5

खुली अर्थव्यवस्था भुगतान शेष

Notes

स्मरणीय बिन्दु

भुगतान शेष एक वर्ष की अवधि में किसी देश के सामान्य निवासियों और शेष विश्व के बीच समस्त आर्थिक लेन-देनों का एक विस्तृत एवं व्यवस्थित विवरण होता हैं। इसे विदेशी विनिमय के वार्षि अन्तः प्रवाह तता बाह्य प्रवाह का लेख भी कहा जाता हैं।

चालू खाते देंपूँजीगत खाते की दें
1. दृश्य मदें (वस्तुओं का आयात – निर्यात )1. प्रत्यक्ष विदेशी निवेश पोर्टफोलियो निवेश
2. अदश्य मदें (सेवाओं का आदान-प्रदान)2. विदेशी ऋण
3. एक पक्षीय अन्तरण 3. विदेशी मुद्रा कोष में परिवर्तन

चालू खाते की मदें किसी अर्थव्यवस्था के निवासियों या उसकी सरकार की परिसंपत्तियों दायित्वों में कोई परिवर्तन नहीं लाती

पूजीगत खाते की मदे संपत्ति व दायित्व में परिवर्तन लाती हैं।

 

व्यापार शेष – किसी देश के सामान्य निवासियों और शेष विश्व के बीच दृश्य मदों (वस्तुओं) के आयात तथा निर्यात का अन्तर होता हैं।
स्वायत्त सौदों  – से अभिप्राय उन आर्थिक लेन देनों से हैं जिन्हें लाभ के उद्देश्य से किया जाता है। इनका उद्देश्य भुगतान शेष खाते में सन्तुलन बनाए रखना नहीं होता। इन्हे रेखा के ऊपर की मदें कहा जाता हैं।
समायोजक मदें – का आर्थिक सौदे  हैं जिन्हें किसी देश की सरकार द्वारा भुगतान शेष को सन्तुलित बनाए रखने के लिए किया जाता है, इनका उद्देश्य भुगतान शेष खाते के असन्तुलन को दूर करना होता हैं, इन्हें रेखा के नीचे की मदें भी कहा जाता हैं।
भुगतान शेष में घाटे – जब स्वायत प्राप्तिओं का मूल्य स्वायत प्राप्ति से कम हो जाता हैं तो उसे भुगतान शेष में घाटा कहतें हैं। इसकी व्यवस्था आधिकारिक आरक्षित लेनदेन द्वारा की जाती हैं।
विनिमय दर – एक देश की करेंसी का जिस दर पर दूसरे देश्या की करेंसी में विनिमय किया जाता है उसे विदेशी विनिमय दर कहते हैं।
विनिमय दर के प्रयत

1 स्थिर दर
2 लोचशील विनिमय दर
3 प्रबंधित विनिमय दर

लोचशील या नम्य विनिमय दर का निर्धारण विदेशी विनिमय की मांग तथ्ता पूर्ति की मांग तथा पूर्ति की शक्तियों पर निर्भर करता हैं। विदेशी मुद्रा की मांग तथा नम्य विनिमय दर में विपरीत संबंध होता हैं। यदि विनिमय दर ऊँची हैं तो विदेशी मुद्रा की मांग कम होगी और विलमोश : इसके विपरीत विदेशी विनिमय दर व विदेशी मुद्रा की पूर्ति में प्रत्यक्ष सम्बन्ध होता है ।। यदि विदेशी विनिमय दर अधिक है, तो विदेशी मुद्रा की पूर्ति अधिक होगी ।

विदेशी मुद्रा मांग के स्रोतः

1 आयात तथा शेष विश्व से प्रत्यक्ष खरीद
2 विदेश में निवेश
3 सट्टेबाजी के लिए
4 विदेश में भ्रमण करने के लिए

विदेश मुद्रा के पूर्ति के स्रोत

1 निर्यात तथा विदेशी पर्यटकों द्वारा प्रत्यक्ष क्रय
2 विदेशी निवेश
3 विदेशों से प्राप्त अंतरण
4 सट्टेबाजी के लिए

नम्य विनिमय दर का निर्धारण

नम्य विनिमय दर प्रणाली के अन्तर्गत विदेशी विनिमय दर का निर्धारण विदेशी मुद्रा की माँग तथा पूर्ति द्वारा होता है

विदेशी विनिमय की मांग तथा विनिमय दर में विपरीत संबन्ध होता है, इसलिए विदेशी विनिमय की मांग वक्र ऋणात्मक ढाल की होती हैं। विदेशी विनिमय की पूर्ति तथा विनिमय दर में धनात्मक (प्रत्यक्ष ) सम्बन्ध हेता हैं। इसलिए विदेशी विनिमय का पूर्ति वक्र धनात्मक ढाल की होती हैं। दोनो वक्रों के अतः क्रिया द्वारा संतुलन विदेशी विनिमय दर का निर्धारण होता है।

सन्तुलन विनिमय दर – वह विदेशी विनिमय दर जिस पर विदेशी विनिमय की मांग और पूर्ति दोनों बराबर होते हैं उसे सन्तुलन विदेशी विनिमय दर कहते है । चित्र में OR संतुलन विनिमय दर हैं।
प्रबंधित तरणशीलता – एक ऐसी प्रणाली हैं, जिसमें केन्द्रीय बैंक विदेशी विनिमय दर के निर्धारण को बाजार शक्तियों पर छोड़ देता हैं परन्तु समय-समय पर आवश्यकता के अनुसार दर को प्रभावित करने के लिए हस्तक्षेप भी करता हैं। जब विदेशी विनिमय की दर अत्यधिक निम्न हो केन्द्रीय बैंक विदेशी विनिमय का क्रय करना शुरू कर देता हैं और जब विदेशी विनिमय की दर अधिक हो तो विदेशी विनिमय का विक्रय शुरू कर देता हैं।
अवमूल्यन – जब देश की सरकार अथवा केन्द्रीय बैंक घरेलू मुद्रा का बाह्य मूलरू घटाती हैं तो उसे अवमूल्यन कहते हैं। अससे आयात महंगी तथा निर्यात सस्ती हो जाती हैं। सामान्यतः यह स्थिर विनियम दर प्रणाली में होता हैं।
अधिमूल्यन – जब सरकार अथवा केन्द्रीय बैंक घरेलू मुद्रा के बाह्य मूल्य को बढ़ाती हैं तो मुद्रा काअधिमूल्यन कहलाता है। सामान्यतः यह स्थिर विनिमय दर में होता हैं ।
मुद्रा का मूल्यह्रास – जब अंतरराष्ट्रीय बाजार में मुद्रा की माँग तथा पूर्ति के फलस्वरूप घरेलू मुद्रा केमूल्य में विदेशी मुद्रा के मूल्य के सापेक्ष गिरावट आती है तो यह मूद्रा को मूल्यहास कहलाता हैं।
मुद्रा की मूल्य वृद्धि – अंतरराष्ट्रीय बाजार में, मुद्रा की मांग तथा पूर्ति के फलस्वरूप घरेलू मुद्रा के मूल्य में विदेशी मुद्रा के सापेक्ष बढ़ोतरी होती है तो मुद्रा की मूल्यवृद्धि कहलाती हैं।