NCERT Solutions Class 12th Economics (Part– I) Chapter – 6 रोजगार (Employment) Notes In Hindi

NCERT Solutions Class 12th Economics (Part – I) Chapter – 6 रोजगार (Employment) 

TextbookNCERT
class 12th
SubjectEconomics (Part – I)
Chapter6th
Chapter Nameरोजगार (Employment)
CategoryClass 12th Economics
Medium Hindi
SourceLast doubt

NCERT Solutions Class 12th Economics (Part – I) Chapter – 6 रोजगार (Employment) 

Chapter – 6

 रोजगार 

Notes

कार्य – हमारे व्यक्तिगत तथा सामाजिक जीवन में बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है ।
श्रमिक – वह व्यक्ति जो अपनी आजीविका अर्जित करने के लिये किसी उत्पादक क्रियाओं में लगा है ।
उत्पादक क्रियाएँ – वे क्रियाएँ हैं जिन्हें वस्तुओं और सेवाओं के उत्पादन के लिए किया जाता है और जिससे आय का सृजन होता है ।
सकल घरेलु उत्पाद (GDP) – किसी देश में एक वर्ष में उत्पादित सभी वस्तुओं और सेवाओं का कुल मौद्रिक मूल्य इसका ‘सकल घरेलू उत्पाद’ कहलाता है।
श्रमिकों के प्रकार –

  • स्वनियोजित
  • भाड़े के मजदूर
  • अनियमित मजदूरी
  • नियमित मजदूर
स्वनियोजित श्रमिक – वह व्यक्ति है जो अपने ही व्यापार में कार्य करता है तथा स्वनियोजन पुरस्कार के रूप में उन्हें लाभ प्राप्त है , स्वनियोजित श्रमिक कहलाता है ।
भाड़े के मजदूर – वे लोग जो भाड़े पर दूसरों का काम करते है तथा अपनी सेवाओं के पुरुस्कार के रूप में मजदूरी/वेतन प्राप्त करते हैं, भाड़े के मजदूर कहलाते है ।
नियमित मजदूर – जब किसी श्रमिक को कोई व्यक्ति या उद्यमी नियमित रूप से काम पर रख उसे मजदूरी (वेतन) देता है, तो वह श्रमिक नियमित मजदूर अथवा नियमित वेतन भोगी कर्मचारी कहलाता है ।
अनियमित मजदूर – वे व्यक्ति जिन्हें उनके नियोजक , नियमित रूप से कार्य में नहीं लगाते तथा उन्हें सामाजिक सुरक्षा के लाभ प्राप्त नहीं होते अनियमित मजदूर कहलाते हैं । श्रम बल -श्रम बल से अभिप्राय श्रमिकों की उस संख्या से है । जो वास्तव में कार्य कर रहे हैं और कार्य करने के इच्छुक हैं ।
कार्यबल – कार्यबल से अभिप्राय वास्तव में कार्य करने वाले व्यक्तियों की संख्या से है । इसमें इन व्यक्तियों को शामिल नहीं किया जाता जो कार्य करने के इच्छुक तो हैं परन्तु बेरोजगार हैं ।
सहभागिता की दर – इसका अर्थ है उत्पादन क्रिया में वास्तव में भाग लेने वाली जनसंख्या का प्रतिशत ।
श्रम आपूर्ति – इससे अभिप्राय विभिन्न मजदूरी दरों के अनुरूप श्रम की आपूर्ति से है । इसे मनुष्य दिनों के रूप में मापा जाता है । एक मनुष्य दिन से अभिप्राय 8 घंटे का काम है । देश की जनसंख्या के पाँच में से दो व्यक्ति विभिन्न आर्थिक क्रियाओं में लगे हैं । मुख्यतः ग्रामीण पुरूष देश के श्रमबल का सबसे बड़ा वर्ग है ।

भारत में अधिकांश श्रमिक स्वनियोजक हैं । अनियमित दिहाड़ी मजदूर तथा नियमित वेतनभोगी कर्मचारी मिलकर भी भारत की समस्त श्रमशक्ति के अनुपात के आधे से भी कम रह जाते हैं ।

भारत में कुल श्रम बल का लगभग पाँच में से तीन श्रमिक कृषि और संबंद्ध कार्यों से ही अपनी आजीविका का प्राप्त करता है ।

रोजगार रहित संवृद्धि – इससे अभिप्राय उस स्थिति से है जिसमें सकल घरेलू उत्पाद की संवृद्धि दर में तो वृद्धि होती है परन्तु रोजगार में उसी अनुपात में वृद्धि नही होती ।
श्रम बल का अनियमतिकरण – इससे अभिप्राय उस स्थिति से है जिसमें समय के साथ कुल श्रमबल में भाड़े पर लिए गए आकस्मिक श्रमिकों के प्रतिशत में बढ़ने की प्रवृत्ति पाई जाती है ।
श्रमबल का अनौपचारीकरण – इसका अभिप्राय उस स्थिति से है जब लोगों में अर्थव्यवस्था के औपचारिक क्षेत्र के स्थान पर अनौपचारिक क्षेत्र में रोजगार के अवसर अधिक पाने की प्रवृति पाई जाती है ।
बेरोजगार – जब कोई सक्षम व्यक्ति प्रचलित मजदूरी दर पर कार्य करने को इच्छुक हो, परन्तु उसे काम नहीं मिलता हो तो उस व्यक्ति को बेरोजगार कहते हैं ।
बेरोजगारी – बेरोजगारी से अभिप्राय उस स्थिति से है जिसमें योग्य एंव इच्छित व्यक्ति को प्रचलित मजदूरी पर कार्य नहीं मिलता है ।
बेरोजगारी के प्रकार –

ग्रामीण बेरोजगारी

  • मौसमी बेरोजगारी
  • प्रच्छन्न बेरोजगारी
  • शहरी बेरोजगारी
  • औद्योगिक बेरोजगारी
  • शैक्षिक बेरोजगारी
मौसमी बेरोजगारी – यह बेरोजगारी ग्रामीण भारत में पाई जाती है । इसमें श्रमिक वर्ष के कुछ ही महीने काम पाता है और वर्ष के शेष महीने बेरोजगार रहता है । इस प्रकार की बेरोजगारी कृषि क्षेत्र में लगे लोगों में पाई जाती है । इसके अलावा अन्य मौसमी कार्य करने वाले शादियों में कार्य करने वाले पुरोहित एवं नाई, शादियों में काम करने वाले, बैंड बजाने वाले, ईंट भट्ठे वाले, गन्ना पिराई वाले ।
मौसमी बेरोजगारी के कारण – बहुत से लोगों का काम मौसमी होता है और पुस्तैनी होता है जिन्हें वे छोड़ना नहीं चाहते है ।
वैकल्पिक रोजगार का आभाव । ऐसे लोगों को अन्य दूसरा काम करने का अनुभव नहीं है ।
प्रच्छन्न बेरोजगारी – प्रच्छन्न बेरोजगारी वह स्थिति है जहाँ श्रमिक कार्य करते हुए नजर आते हैं परन्तु उनकी सीमांत उत्पादकता शून्य ऋणात्मक होती है ।
प्रच्छन्न बेरोजगारी के कारण –

  • कृषि पर आश्रित श्रमिकों की बड़ी संख्या ।
  • गांवों में कृषि के अलावा अन्य वैकल्पिक रोजगारों की आभाव ।
  • व्यावसायिक कृषि के बजाय जीवन निर्वाह कृषि का होना ।
औद्योगिक बेरोजगारी – इस श्रेणी में उन निरक्षर व्यक्तियों को शामिल किया जा सकता है जो उद्योगों, खनिज, यातायात, व्यापार तथा निर्माण आदि व्यवसायों में काम करने के इच्छुक हैं । औद्योगिक बेरोजगारी जनसँख्या में वृद्धि के साथ बढती जाती है ।
शिक्षित बेरोजगारी – ऐसी बेरोजगारी में कोई शिक्षित व्यक्ति अन्य श्रमिकों से अधिक कार्यकुशलता होते हुए भी उनकों अपनी योग्यतानुसार काम नहीं मिलता है और वे बेरोजगारी से ग्रसित रहते हैं ।
भारत में शिक्षित बेरोजगारी के प्रमुख कारण –

  • देश में सामान्य शिक्षा का तीव्र प्रसार ।
  • दोषपूर्ण शिक्षा पद्धति जो कि रोजगार-उन्मुख नहीं हैं।
  • रोजगार अवसरों का अपर्याप्त सृजन।
अन्य प्रकार की बेरोजगारी –

  • संघर्षात्मक बेरोजगारी
  • चक्रीय बेरोजगारी
  • संरचनात्मक बेरोजगारी
  • खुली बेरोजगारी
बेरोजगारी के कारण –

  • धीमी आर्थिक विकास दर
  • जनसंख्या में तीव्र वृद्धि
  • दोषपूर्ण शिक्षा प्रणाली
  • अल्प विकसित कृषि क्षेत्र
  • धीमा औद्यागिक क्षेत्र का विकास
  • लघु एंव कुटीर उद्योगों का अभाव अपर्याप्तता
  • दोषपूर्ण रोजगार नियोजन
  • धीमी पूँजी निर्माण दर
बेरोजगारी की समस्या को हल करने के उपाय –

  • सकल घरेलू उत्पाद में वृद्धि
  • जनसंख्या वृद्धि पर नियंत्रण
  • कृषि क्षेत्र का विकास
  • लघु व कुटीर उद्योगों का विकास
  • .आधारिक संरचना में सुधार
  • विशेष रोजगार कार्यक्रम
  • तीव्र औद्योगीकरण