NCERT Solutions Class 12th अर्थशास्त्र (Economics) (Part – 2) Chapter – 3 आर्थिक सुधार 1991 से (Economic Reforms of 1991) Notes In Hindi

NCERT Solutions Class 12th अर्थशास्त्र (Economics) (Part – 2) Chapter – 3 आर्थिक सुधार 1991 से (Economic Reforms of 1991)

TextbookNCERT
Class12th
Subjectअर्थशास्त्र (Economics)
Chapter3rd
Chapter Nameआर्थिक सुधार 1991 से (Economic Reforms of 1991)
CategoryClass 12th Economics
Medium Hindi
SourceLast Doubt

NCERT Solutions Class 12th अर्थशास्त्र (Economics) (Part – 2) Chapter – 3 आर्थिक सुधार 1991 से (Economic Reforms of 1991) Notes In Hindi हम इस अध्याय में आर्थिक सुधार की आवश्यकता, उदारीकरण, निजीकरण और वैश्वीकरण (LPG), उदारीकरण आदि। के बारे में पढ़ेंगे।

NCERT Solutions Class 12th अर्थशास्त्र (Economics) (Part – 2) Chapter – 3 आर्थिक सुधार 1991 से (Economic Reforms of 1991)

Chapter – 3

आर्थिक सुधार 1991 से

Notes

आर्थिक सुधार की आवश्यकता 1991 – 1991 के दौरान विदेशी ऋण के कारण भारत के सामने एक आर्थिक संकट उत्पन्न हो गया तथा सरकार विदेशों से लिए गए उधार के पुनर्भुगतान की स्थिति में नहीं थी।

  • विदेशी व्यापार खाते में घाटा बढ़ता जा रहा था।
  • इसी समय विदेशी मुद्रा भंडार तेजी से गिर कर मात्र दो सप्ताह के आयात पर्याप्तता स्तर पर आ गया।
  • 1990-91 में भारत सरकार ने अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष से वित्तीय सुविधा के रूप में एक बहुत
    बड़ी राशि उधार ली।
  • अल्पकालीन विदेशी ऋणों के भुगतान के लिए 47 टन सोना बैंक ऑफ इंग्लैंड के पास गिरवी
    रखना पड़ा।
  • भारतीय अर्थव्यवस्था के सामने मुद्रास्फीति का संकट था जिसकी दर 12% हो गयी थी।
  • मुद्रास्फीति के कारण कृषि उत्पादों के वितरण और बाजार मूल्यों (खरीद मूल्यों) में वृद्धि हुई। परिणामस्वरूप बजट के मौद्रिकृत घाटे में वृद्धि हुई । साथ-साथ आयात मूल्य में वृद्धि हुई तथा विदेशी विनिमय दर में कमी हुई।
  • परिणामस्वरूप भारत के सामने राजकोषीय तथा व्यापार घाटे की समस्या उत्पन्न हुई।
  • इसलिए भारत के सामने केवल दो ही विकल्प बचे हुए थे –
  1. निर्यात में वृद्धि के साथ-साथ विदेशी उधार लेकर विदेशी विनिमय प्रवाह में वृद्धि कर भारतीय
    आर्थिक स्थिति को बेहतर बनाए।
  2. राजकोषीय अनुशासन को स्थापित करें तथा उद्देश्यपरक संरचनात्मक समायोजन लाया जाए।
आर्थिक सुधार की मुख्य विशेषताएँ – अर्थव्यवस्था की समस्या के समाधान के लिए भारत सरकार ने बहुत सारे आर्थिक सुधार किए।

  • सरकार की औद्योगिक नीति का उदारीकरण
  • उद्योगों के निजीकरण द्वारा विदेशी निवेश को प्रोत्साहन।
  • आयात और निर्यात नीति को उदार बनाते हुए आयात और निर्यात वस्तुओं पर आयात शुल्क में कमी जिससे कि औद्योगिक विकास के लिए आवश्यक कच्चे माल का तथा निर्यात जन्य वस्तुओं के उत्पादन के लिए कच्चे माल का आयात तुलनात्मक रूप से आसान होगा।
  • डॉलर के मूल्य के रूप में घरेलू मुद्रा का अवमूल्यन।
  • देश के आर्थिक स्थिति में सुधार और संरचनात्मक समायोजन के लिए अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष तथा विश्व बैंक से बहुत अधिक विदेशी ऋण प्राप्त किया।
  • बैंकिंग प्रणाली और कर संरचना में सुधार।
  • सरकार द्वारा निवेश में कमी करते हुए बाजार अर्थव्यवस्था को स्थापित करना।
उदारीकरण, निजीकरण और वैश्वीकरण (LPG) – आर्थिक सुधार के नए मॉडल को LPG मॉडल भी कहा जाता है। इस मॉडल का प्राथमिक उद्देश्य भारतीय अर्थव्यवस्था को विश्व की बड़ी अर्थव्यवस्थाओं के समक्ष तीव्रतर विकासशील अर्थव्यवस्था के रूप में स्थापित करना।

  1. उदारीकरण – उदारीकरण से तात्पर्य आर्थिक नीतियों में लगाए गए सरकारी नियंत्रण में कमी से है। भारत में 24 जुलाई 1991 से वित्तीय सुधारों के साथ ही आर्थिक उदारीकरण की प्रक्रिया शुरू हुई।
  2. निजीकरण – निजीकरण से तात्पर्य है कि सार्वजनिक क्षेत्र के उद्यमों, व्यवसाय एवम् सेवाओं के स्वामित्व, प्रबंधन व नियंत्रण को निजी क्षेत्र को हस्तान्तरित करने से है।
  3. वैश्वीकरण – वैश्वीकरण का अर्थ सामान्यतया देश की अर्थव्यवस्था का विश्व की अर्थव्यवस्था के साथ एकीकरण से है।
भारत में LPG नीति के कुछ मुख्य बिन्दु निम्न है –

  1. विदेशी तकनीकी समझौता
  2. एम. आर. टी. पी. एक्ट 1969
  3. विदेशी निवेश को बढ़ावा
  4. औद्योगिक लाइसेंस विनियमन
  5. निजीकरण और विनिवेश का प्रारंभ
  6. समुद्रपारीय व्यापार के अवसर
  7. मुद्रास्फीति नियमन
  8. कर सुधार
  9. वित्तीय क्षेत्र सुधार
  10. बैंकिंग सुधार
  11. लाइसेंस और परमिट राज की समाप्ति।
मूल्यांकन – उदारीकरण, निजीकरण व वैश्वीकरण की अवधारणा एक-दूसरे से जुड़ी हुई है और इनके अर्थव्यवस्था पर सकारात्मक व नकारात्मक दोनों प्रभाव दिखते है। कुछ अर्थशास्त्रियों का मानना है कि वैश्वीकरण अर्थव्यवस्था के लिए नए अवसर उपलब्ध कराता है जिससे उनके बेहतर तकनीक और उत्पादन की क्षमता में वृद्धि के साथ नये बाजार के द्वारा खुलते हैं जबकि दूसरे समूह का मानना है कि यह विकासशील देशों के घरेलू उद्योगों को संरक्षण नहीं प्रदान करता है। भारतीय संदर्भ में देखने पर हम पाते हैं कि वैश्वीकरण ने जीवन निर्वहन सुविधाओं को बेहतर किया है तथा मनोरंजन, संचार, परिवहन इत्यादि क्षेत्रों में रोजगार के नए अवसरों का विस्तार किया है।
सकारात्मक प्रभाव और नकारात्मक प्रभाव

सकारात्मक प्रभावनकारात्मक प्रभाव
उच्च अर्थिक समृद्धि दरकृषि की प्रभावहीनता
विदेशी निवेश में वृद्धिरोजगारविहीन आर्थिक संवृद्धि
विदेशी मुद्रा भंडज्ञर में वृद्धिआय के वितरण में असमानता
नियंत्रित मुद्रास्फीतिलाभोन्मुखी समाज
निर्यात संरचना में परिवर्तननिजीकरण पर नकारात्मक प्रभाव
निर्यात की दिशा में परिवर्तनसंसाधनों का अतिशय दोहन
उपभोक्ता की संप्रभुता स्थापितपर्यावरणीय अपक्षय