NCERT Solutions Class 12th Economics (Part – 2) Chapter – 1 स्वतंत्रता के समय भारत की अर्थव्यवस्था (Indian economy on the eve of independence)
Textbook | NCERT |
Class | 12th |
Subject | अर्थशास्त्र (Economics) |
Chapter | 1st |
Chapter Name | स्वतंत्रता के समय भारत की अर्थव्यवस्था |
Category | Class 12th Economics |
Medium | Hindi |
Source | Last Doubt |
NCERT Solutions Class 12th Economics (Part – 2) Chapter – 1 स्वतंत्रता के समय भारत की अर्थव्यवस्था (Indian economy on the eve of independence) Notes in Hindi जिसमें हम आर्थिक विकास, कृषि का पिछड़ापन, अविकसित औद्योगिक क्षेत्र, अविकसित आधारभूत ढाँचा, सकारात्मक कदम, विदेशी व्यापार की विशेषताएं आदि इसके बारे में हम विस्तार से पढ़ेंगे।
NCERT Solutions Class 12th Economics (Part – 2) Chapter – 1 स्वतंत्रता के समय भारत की अर्थव्यवस्था (Indian economy on the eve of independence)
Chapter – 1
स्वतंत्रता के समय भारत की अर्थव्यवस्था
Notes
स्वतंत्रता के समय भारतीय अर्थव्यवस्था की स्थिति (क) आर्थिक विकास की निम्न दर – औपनिवेशिक सरकार ने कभी भी भारत की राष्ट्रीय तथा प्रति व्यक्ति आय के अनुमान के लिए काई प्रयास नहीं किए। राष्ट्रीय आय तथा प्रति व्यक्ति आय के मापन का प्रथम प्रयास व्यक्तिगत स्तर पर 1876 में भारत के “ग्रेण्ड ओल्डमैन” दादा भाई नौरोजी ने किया। डॉ. वी.के.आर.वी. राव के अनुसार सकल देशीय उत्पद में वार्षिक वृद्धि दर केवल 2% तथा प्रति व्यक्ति आय में वार्षिक वृद्धि केवल 0.5% थी। 1947 में प्रति व्यक्ति आय मात्र 280 रूपये थी। तत्तकालीन राष्ट्रीय आय के अन्य अनुमानकत्ताओं में प्रमुख थे – विलियम डिग्बी, फिण्डले सिराज, आर. डी. सी. देशाई आदि। |
(ख) कृषि का पिछड़ापन – जिसके निम्न कारण थे जमींदारी, महलवाड़ी तथा रैयतवाड़ी प्रथा व्यवसायीकरण का दबाव – नील आदि का उत्पादन 1947 में 85% से अधिक जनसंख्या कृषि क्षेत्र पर निर्भर थी। देश के विभाजन के कारण पश्चिम बंगाल में जूट मिल और पूर्वी पाकिस्तान में उत्पादक भूमि चली गयी तथा विनिर्मित निर्यात में कमी और आयात में वृद्धि हुई। |
(ग) अविकसित औद्योगिक क्षेत्र वि-औद्योगिकीकरण नीति तथा भारतीय हस्तकला उद्योग का पतन वि-औद्योगिकीकरण नीति के दोहरे (जुड़वाँ ) उद्देश्य थे (i) भारत को कच्चे माल का निर्यातक बनाना |
सकारात्मक कदम 1. उद्योग कपास तथा जूट मिल तक ही सीमित रहें। |
विदेशी व्यापार की विशेषताएं 1. कच्चे माल का शुद्ध निर्यातक तथा तैयार माल का आयातक |
(छ) प्रतिकूल तत्कालीन जनांकिकीय दशाएँ ब्रिटेन द्वारा लड़े जा रहे युद्धों का भारत पर दबाव। भारत को पहली नियमित जनगणना 1881 में प्रारम्भ हुई। 1981 से 1919 तक भारत की जनांकिकीय दशा को जनांकिकीय संकमण सिद्धांत के प्रथम चरण में रखा जाता है। 1921 को जनसंख्या महाविभाजक वर्ष कहा जाता है। जिसके बाद जनांकीकीय संक्रमण के अगले चरण शुरू हुए है। ऊँची मृत्युदर – 45 प्रति हजार उच्च शिशु जन्म दर 218 प्रति हजार सामूहिक निरक्षरता 84 निरक्षरता निम्न जीवन प्रत्याशा 32 वर्ष जीवन-यापन का निम्न स्तर – आय का 80-90% आधारभूत आवश्यकता पर व्यय |
(ज) अविकसित आधारभूत ढाँचा अच्छी सड़कें, विद्युत उत्पादन, स्वास्थ्य, शिक्षा तथा संचार सुविधाओं का अभाव। यद्यपि अंग्रेज प्रशासकों द्वारा आधारभूत ढाँचे के विकास के लिए प्रयास किए गए जैसे सड़कें, रेलवे, बंदरगाह, जल यातायात और डाक व तार विभाग। लेकिन इनका उद्देश्य आम जनता को सुविधाऐं देना नहीं था बल्कि साम्राज्यवादी प्रशासन के हित में था। |
(झ) प्राथमिक (कृषि) क्षेत्र पर अधिक निर्भरता कार्यबल का अधिकतम भाग लगभग 72% कृषि एवं संबंधित क्षेत्र में लगा था । 10% विनिर्माण क्षेत्र में लगा था। 18% कार्यबल सेवा क्षेत्र में लगा था। |
अंग्रेजी साम्राज्यवाद के भारतीय अर्थव्यवस्था पर कुछ सकारात्मक प्रभाव क) यातायात की सुविधाओं में वृद्धि – विशेषकर रेलवे में |
अंग्रेजी साम्राज्यवाद के भारतीय अर्थव्यवस्था पर कुछ नकारात्मक प्रभाव क) भारतीय हस्तकला उद्योग का पतन |
(ज) अविकसित आधारभूत ढाँचा अच्छी सड़कें, विद्युत उत्पादन, स्वास्थ्य, शिक्षा तथा संचार सुविधाओं का अभाव। यद्यपि अंग्रेज प्रशासकों द्वारा आधारभूत ढाँचे के विकास के लिए प्रयास |
(झ) प्राथमिक (कृषि) क्षेत्र पर अधिक निर्भरता क) भारतीय हस्तकला उद्योग का पतन |