NCERT Solutions Class 11th Sociology (समाज का बोध) Chapter – 3 पर्यावरण और समाज (Environment and Society)
Textbook | NCERT |
class | Class – 11th |
Subject | Sociology |
Chapter | Chapter – 3 |
Chapter Name | पर्यावरण और समाज |
Category | Class 11th Sociology |
Medium | Hindi |
Source | Last Doubt |
NCERT Solutions Class 11th Sociology (समाज का बोध) Chapter – 3 पर्यावरण और समाज (Environment and Society) Question & Answer In Hindi पर्यावरण का अर्थ क्या है?, पर्यावरण का दूसरा नाम क्या है?, पर्यावरण के कितने घटक हैं?, पर्यावरण का महत्व क्या है?, पर्यावरण का जनक कौन है?, पर्यावरण किससे बना है?, पर्यावरण से क्या लाभ होता है?, पर्यावरण संरक्षण क्यों जरूरी है?, पर्यावरण मनुष्य के लिए क्यों महत्वपूर्ण है?, पर्यावरण एक शब्द है?, प्रकृति और पर्यावरण में क्या अंतर है?, पर्यावरण और उसके घटक क्या है?, पर्यावरण शब्द का प्रत्यय क्या है?, पर्यावरण का उदाहरण क्या है?, आसपास और पर्यावरण में क्या अंतर है? |
NCERT Solutions Class 11th Sociology (समाज का बोध) Chapter – 3 पर्यावरण और समाज (Environment and Society)
Chapter – 3
पर्यावरण और समाज
प्रश्र उत्तर
अभ्यास
प्रश्न 1. पारिस्थितिकी से आपका क्या अभिप्राय है? अपने शब्दों में वर्णन कीजिए। उत्तर – पारिस्थितिकी प्रत्येक समाज का आधार होती है। ‘पारिस्थितिकी’ शब्द से अभिप्राय एक ऐसे जाल से है जहाँ भौतिक और जैविक व्यवस्थाएँ तथा प्रक्रियाएँ घटित होती हैं और मनुष्य भी इसका एक अंग होता है। पर्वत तथा नदियाँ, मैदान तथा सागर और जीव-जंतु ये सब पारिस्थितिकी के अंग हैं। किसी स्थान की पारिस्थितिकी पर वहाँ के भूगोल तथा जलमंडल की अंत:क्रियाओं का भी प्रभाव पड़ता है। उदाहरण के लिए मरुस्थलीय प्रदेशों में रहने वाले जीव-जंतु अपने आपको वहाँ की पारिस्थितियों के अनुरूप; जैसे कम वर्षा, पथरीली अथवा रेतीली मिट्टी तथा अत्यधिक तापमान में अपने आप ढाल लेते हैं। पारिस्थितिकीय कारक इस बात का निर्धारण करते हैं कि किसी स्थान विशेष पर लोग कैसे रहेंगे। |
प्रश्न 2. पारिस्थितिकी सिर्फ प्राकृतिक शक्तियों तक ही सीमित क्यों नहीं है? उत्तर – मनुष्य की क्रियाओं द्वारा पारिस्थितिकी में परिवर्तन आया है। पर्यावरण के प्राकृतिक कारक; जैसे-अकाल या बाढ़ की स्थिति आदि की उत्पत्ति भी मानवीय हस्तक्षेप के कारण होती है। नदियों के ऊपरी क्षेत्र में जंगलों की अंधाधुध कटाई नदियों में बाढ़ की स्थिति को और बढ़ा देती है। पर्यावरण में मनुष्य के हस्तक्षेप का एक अन्य उदाहरण विश्वव्यापी तापमान वृद्धि के कारण जलवायु में आनेवाला परिवर्तन भी है। समय के साथ पारिस्थितिकीय परिवर्तन के लिए कई बार प्राकृतिक तथा मानवीय कारणों में अंतर करना काफ़ी कठिन होता है। हमारे चारों ओर कुछ ऐसे तत्व भी हैं जो पूरी तरह से मनुष्य द्वारा निर्मित है। कृषि भूमि जहाँ मिट्टी तथा पानी के बचाव के कार्य चल रहे हों, खेत और पालतू पशु, कृत्रिम खाद तथा कीटनाशक का प्रयोग, यह सब स्पष्ट रूप से मनुष्य द्वारा प्रकृति में किया गया परिवर्तन है। शहर के निर्माण में प्रयुक्त सीमेंट, ईंट, कंक्रीट, पत्थर, शीशा और तार हालाँकि प्राकृतिक संसाधन हैं, परंतु फिर भी ये मनुष्य की कलाकृति के उदाहरण हैं। |
प्रश्न 3. उस दोहरी प्रक्रिया का वर्णन करें जिसके कारण सामाजिक पर्यावरण का उद्भव होता है? उत्तर – जैवभौतिक पारिस्थितिकी तथा मनुष्य के हस्तक्षेप की अन्त:क्रिया के द्वारा सामाजिक पर्यावरण का उद्भव होता है। जिस प्रकार से प्रकृति समाज को आकार देती है। ठीक उसी प्रकार से समाज भी प्रकृति को आकार देता है। अतः यह दो-तरफा प्रक्रिया है। उदाहरण के तौर पर, सिंधु-गंगा की उपजाऊ भूमि गहन कृषि के लिए उपयुक्त है। इसकी उच्च उत्पादक क्षमता के कारण यहाँ घनी आबादी का क्षेत्र बसा है और अतिरिक्त उत्पादन से गैर कृषि क्रियाकलाप आगे चलकर जटिल अधिक्रमिक समाज तथा राज्य को जन्म देते हैं। ठीक इसके विपरीत, राजस्थान के मरुस्थल केवल पशुपालकों को ही सहारा दे पाते हैं। वे अपने पशुओं के चारे की खोज में इधर-उधर भटकते रहते हैं ताकि उनके पशुओं को चारा मिलता रहे। ये पारिस्थितिकी के उदाहरण हैं जो मानव के जीवन और संस्कृति को आकार देते हैं। दूसरी तरफ, पूँजीवादी सामाजिक संगठनों ने भी विश्वभर की प्रकृति को आकार दिया है। निजी परिवहन पूँजीवादी उपयोगी वस्तु का एक ऐसा उदाहरण है जिसने जीवन तथा भू-दृश्य दोनों को बदल दिया है। शहरों में वायु प्रदूषण तथा भीड़भाड़, क्षेत्रीय अगड़े, तेल के लिए युद्ध और विश्वव्यापी तापमान में वृद्धि, गाड़ियों के पर्यावरण पर होने वाले प्रभावों के कुछ एक उदाहरण हैं। |
प्रश्न 4. सामाजिक संस्थाएँ कैसे तथा किस प्रकार से पर्यावरण तथा समाज के आपसी रिश्तों को आकार देती हैं? उत्तर – पर्यावरण तथा समाज के बीच अंत:क्रिया को सामाजिक संगठन द्वारा आकार दिया जाता है। यदि वनों पर सरकार का आधिपत्य है तो यह निर्णय लेने का अधिकार भी सरकार का ही होगा कि क्या वनों को पट्टे पर किसी लकड़ी के कारोबार करने वाली कंपनी को देनी चाहिए अथवा ग्रामीणों को जंगलों से प्राप्त होने वाले वन्य उत्पादों को संग्रहित करने का अधिकार हो। भूमि तथा जल संसाधन का व्यक्तिगत स्वामित्व इस बात का निर्णय करेंगे कि अन्य लोगों को किन नियमों तथा शर्तों के अधीन इन संसाधनों के उपयोग का अधिकार प्राप्त हो। उत्पादन प्रक्रिया के अंतर्गत संसाधनों पर नियंत्रण श्रम विभाजन से संबंधित है। पुरुषों की तुलना में कृषिहीन मजदूरों एवं स्त्रियों का प्राकृतिक संसाधनों से संबंध भिन्न होता है। सामाजिक संगठन इस तथ्य को प्रभावित करता है। कि विभिन्न सामाजिक समूह किस प्रकार अपने आपको पर्यावरण से जोड़ते हैं। प्रासंगिक ज्ञान की व्यवस्था के अतिरिक्त पर्यावरण तथा समाज के संबंध उसके सामाजिक मूल्यों तथा प्रतिमानों में भी प्रतिबिंबित होते हैं। पूँजीवादी मूल्यों ने प्रकृति के उपयोगी वस्तु होने की विचारधारा को पोषित किया है। इस संदर्भ में प्रकृति को एक वस्तु के रूप में परिवर्तित कर दिया गया है और इसे लाभ के लिए खरीदा अथवा बेचा जा रहा है। उदाहरण के लिए, किसी नदी के बहुविकल्पीय सांस्कृतिक अर्थों; जैसे-पारिस्थितिकीय, उपयोगितावादी, धार्मिक तथा सौंदर्यपरकता के महत्व को समाप्त कर किस उद्यमकर्ता के लिए पानी को हानि या लाभ की दृष्टि से बेचने का करोबार बना दिया गया है। कई देशों ने समानता तथा न्याय के समाजवादी-मूल्यों को स्थापित करने हेतु बड़े-बड़े जमींदारों से उजड़ी ज़मीनों को छीनकर उन्हें पुनः भूमिहीन किसानों में बाँट दिया है। धार्मिक मूल्यों ने कई सामाजिक समूहों का नेतृत्व किया है ताकि धार्मिक हितों और विभिन्न किस्मों को संरक्षण हो सके। और अन्य यह मान सकें कि उन्हें अपने हितों के लिए पर्यावरण में परिवर्तन करने का दैवीय अधिकार प्राप्त है। |
प्रश्न 5. पर्यावरण व्यवस्था समाज के लिए एक महत्वपूर्ण तथा जटिल कार्य क्यों हैं? उत्तर – हालाँकि पर्यावरण प्रबंधन एक कठिन कार्य है। इसकी प्रक्रियाओं को पूर्वानुमान तथा उसे रोकना भी कंठिन है। पर्यावरण के साथ मनुष्य के संबंध और अधिक जटिल हो गए हैं। बढ़ते औद्योगीकरण के कारण संसाधनों का दोहन अत्यंत तीव्र गति से हो रहा है। यह पारिस्थितीकी तंत्र को विभिन्न प्रकार से प्रभावित किया है। जटिल औद्योगिक तकनीक तथा संगठन की व्यवस्थाएँ बेहतरीन प्रबंधन के लिए अनिवार्य हैं। ये अधिकांशतः गलतियों के प्रति कमजोर तथा सुभेद्य होते हैं। हम जोखिम भरे समाज में रहते हैं। हम ऐसी तकनीकों तथा वस्तुओं का प्रयोग करते हैं, जिनके संबंध में हमें पूरी जानकारी नहीं है। औद्योगिक पर्यावरण में घटित नाभिकीय विपदा; जैसे-चेरनोबिल, भोपाल की औद्योगिक दुर्घटना, यूरोप में फैली ‘मैड काऊ’ बीमारी इसके खतरों को दर्शाते हैं। |
प्रश्न 6. प्रदूषण संबंधित प्राकृतिक विपदाओं के मुख्य रूप कौन-कौन से हैं? उत्तर – ग्रामीण तथा शहरी क्षेत्रों में वायु प्रदूषण एक मुख्य समस्या मानी जा रही है। इससे श्वास और सेहत संबंधी अन्य बीमारियाँ तथा मृत्यु भी हो सकती है। उद्योगों तथा वाहनों से निकलने वाली जहरीली गैसे तथा घरेलू उपयोग के लिए लकड़ी तथा उद्योगों से होने वाले प्रदूषण वायु प्रदूषण के मुख्य स्रोत हैं। खाना बनाने वाले ईंधन से आंतरिक प्रदूषण भी एक जोखिम भरा स्रोत है। यह विशेषकर ग्रामीण घरों के लिए सच है। यहाँ खाना बनाने के लिए हरी-भरी लकड़ियों का प्रयोग, अनुपयुक्त चूल्हे तथा हवा के निष्कासन की अव्यवस्था ग्रामीण महिलाओं के सेहत पर बुरा असर डालते हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुमान के अनुसार तकरीबन 600,000 लोग भारत में 1998 के दौरान घरेलू प्रदूषण से मरे। यह भी सत्य है कि अकेले ग्रामीण क्षेत्रों में मरने वाले लोगों की संख्या 500,000 के करीब थी। नदी और जलाशय से संबंधित प्रदूषण भी एक महत्वपूर्ण समस्या है। शहर ध्वनि प्रदूषण से भी ग्रसित है। कई शहरों में यह विवाद न्यायालय के अधीन है। धार्मिक तथा सामाजिक अवसरों पर उपयोग किए जाने वाले लाउडस्पीकर, राजनीतिक प्रचार, वाहनों के होने और यातायात एवं निर्माण कार्य इसके प्रमुख स्रोत हैं। |
प्रश्न 7. संसाधनों की क्षीणता से संबंधित पर्यावरण के प्रमुख मुद्दे कौन-कौन से हैं? उत्तर – संसाधनों की क्षीणता का अर्थ है-अस्वीकृत प्राकृतिक संसाधनों का प्रयोग करना, और यह पर्यावरण की एक गंभीर समस्या है। सम्पूर्ण भारत में विशेषकर पंजाब, हरियाणा और उत्तर प्रदेश में भूजल के स्तर में लगातार कमी होना एक गंभीर समस्या है। नदियों पर बाँध बना दिए गए हैं और इसके बहाव को मोड़ दिया गया है। इस कारण पर्यावरण के जल बेसिन को जो क्षति पहुँची है उसकी भरपाई करना असंभव है। शहरों में पाये जाने वाले जलाशय भर दिए गए हैं। और उस पर निर्माण कार्य सम्पन्न होने के कारण प्राकृतिक जल निकासी के साधनों को नष्ट किया जा रहा है। भूजल के समान मृदा की ऊपरी परत का निर्माण हजारों सालों के बाद होता है। पर्यावरण के कुप्रबंधन। जैसे-भू कटाव, पानी का जमाव तथा खारेपन इत्यादि के कारण कृषि संसाधन भी नष्ट होते जा रहे हैं। मृदा की ऊपरी सतह के विनाश के लिए भवन-निर्माण के लिए ईटों का उत्पादन भी जिम्मेदारी है। जंगल, घास के मैदान और आर्द्रभूमि जो कि जैविक विविध आवासों के उदाहरण हैं, ऐसे अन्य मुख्य संसाधन हैं, जो बढ़ती कृषि के कारण समाप्ति के कगार पर खड़े हैं। |
प्रश्न 8. पर्यावरण की समस्याएँ समाजिक समस्याएँ भी हैं। कैसे? स्पष्ट कीजिए। उत्तर – पर्यावरण की समस्याएँ विभिन्न समूहों को प्रभावित करती हैं। सामाजिक परिस्थिति और शक्ति इस बात पर निर्भर करती है कि व्यक्ति अपने आपको पर्यावरण की आपदाओं से बचाने या उस पर विजय प्राप्त करने के लिए किस हद तक जा सकता है। गुजरात राज्य के कच्छ (Kutch) में जहाँ पानी की अत्यधिक कमी है, वहाँ संपन्न किसानों ने अपने खेतों में नकदी फसलों की सिंचाई के लिए नलकूपों की गहरी खुदाई पर काफी धन खर्च किया है। जब वर्षा नहीं होती है तब गरीब ग्रामीणों के कुएँ सूख जाते हैं तथा उन्हें पीने तक के लिए पानी नहीं मिलता है। ऐसे समय में संपन्न किसानों के लहलहाते खेत मानो उनका मजाक उड़ा रहे होते हैं। कुछ पर्यावरण संबंधी चिंतन कभी-कभी विश्वव्यापी चिंतन बन जाते हैं। परंतु यह सत्य है कि इसका संबंध किसी विशेष सामाजिक समूह से नहीं रहता है। समाजशास्त्रीय अध्ययन से यह जाहिर होता है। कि किस प्रकार सार्वजनिक प्राथमिकताएँ तय की जाती हैं और किस प्रकार इन्हें आगे बढ़ाया जाता है। सार्वभौमिक रूप से उनका लाभदायक होना कठिन है। साथ ही, जनहित के कार्यों की रक्षक नीतियाँ राजनीतिक तथा आर्थिक रूप से शक्तिशाली वर्गों के लाभ की रक्षा करती हैं, या गरीब एवं राजनीतिक रूप से कमजोर वर्गों को नुकसान पहुँचाती हैं। |
प्रश्न 9. सामाजिक पारिस्थितिकी से क्या अभिप्राय है? उत्तर – सामाजिक पारिस्थितिकी यह जाहिर करती है। कि सामाजिक संबंध विशेष रूप से संपत्ति तथा उत्पादन के संगठन पर्यावरण से संबंधित सोच और प्रयास को आकार देते हैं। विभिन्न सामाजिक वर्गों के लोग पर्यावरण संबंधित मामलों को भिन्न प्रकार से परखते और समझते हैं। वन्य विभाग उद्योग के लिए अधिक मात्रा में बाँस का निर्माण करेगा। इसका उद्देश्य अधिक से अधिक राजस्व प्राप्त करना होगा। साथ ही वन्य विभाग बाँस का निर्माण बाँस के टोकरे बनाने वाले कारीगर के लिए बाँस के उपयोग से अलग रूप में देखेगा। उनकी रुचियाँ और विचारध राएँ पर्यावरण संबंधी मतभेदों को जन्म देती हैं। इस प्रकार पर्यावरण संकट की जड़े सामाजिक असमानताओं में देखी जा सकती हैं। पर्यावरण और समाज के आपसी संबंधों में परिवर्तन पर्यावरण संबंधित समस्याओं को सुलझाने का एक उपाय है। इसका अर्थ है विभिन्न समूहों के बीच संबंधों में परिवर्तन अर्थात पुरुष और स्त्री, ग्रामीण और शहरी लोग, जमीदार तथा मजदूर के संबंधों में परिवर्तन। सामाजिक संबंधों में परिवर्तन से पर्यावरण प्रबंधन के लिए विभिन्न ज्ञान व्यवस्थाओं और ज्ञानतंत्र का जन्म होगा। |
प्रश्न 10. पर्यावरण संबंधित कुछ विवादास्पद मुद्दे जिनके बारे में आपने पढ़ा या सुना हो उनका वर्णन कीजिए। (अध्याय के अतिरिक्त) उत्तर – भारत में पर्यावरण से जुड़े कुछ प्रसिद्ध संघर्ष निम्नलिखित हैं- 1. चिपको आंदोलन – यह एक सामाजिक-पारिस्थितिक आंदोलन था, जिसे उत्तराखंड के गढ़वाल क्षेत्र में पेड़ों की सुरक्षा के लिए 1970 के दशक में गढ़वाल, उत्तराखंड में शुरू किया गया था, जो बाद में देश भर में फैल गया। 2. नर्मदा बचाओ आंदोलन- यह नर्मदा नदी पर सरदार सरोवर बांध के निर्माण, और हरियाणा, पंजाब और राजस्थान के बीच नदियों के वितरण का विरोध था। |
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