NCERT Solutions Class 11th Political Science (राजनीतिक सिद्धांत) Chapter – 7 राष्ट्रवाद (Nationalism) Notes In Hindi

NCERT Solutions Class 11th Political Science (राजनीतिक सिद्धांत) Chapter – 7 राष्ट्रवाद (Nationalism)

TextbookNCERT
Class11th
SubjectPolitical Science (राजनीतिक सिद्धांत)
ChapterChapter – 7
Chapter Nameराष्ट्रवाद
CategoryClass 11th Political Science
MediumHindi
SourceLast Doubt
NCERT Solutions Class 11th Political Science (राजनीतिक सिद्धांत) Chapter – 7 राष्ट्रवाद (Nationalism) Notes In Hindi राष्ट्रवाद की विशेषताएं क्या हैं?, राष्ट्रवाद की शुरुआत कैसे हुई?, राष्ट्रवाद का मुख्य कारण क्या है?, राष्ट्रवाद का उदय कब हुआ?, राष्ट्रवाद के लक्ष्य क्या हैं?, राष्ट्रवाद के कितने तत्व हैं?, भारत में राष्ट्रवाद किसकी देन है?, राष्ट्रवाद का स्रोत क्या है?, राष्ट्रवाद के प्रभाव क्या हैं?, राष्ट्रवाद का उदय कहाँ हुआ?, राष्ट्रवाद से पहले क्या था?

NCERT Solutions Class 11th Political Science (राजनीतिक सिद्धांत) Chapter – 7 राष्ट्रवाद (Nationalism)

Chapter – 7

राष्ट्रवाद

Notes

राष्ट्र (Nation) शब्द की उत्पति – राष्ट्र शब्द का अंग्रेजी भाषा में नेशन (Nation) कहते है और इसका हिंदी अर्थ ”राष्ट्र” है। नेशन शब्द लैटिन भाषा के दो शब्दों ‘नेशियों‘ (Natio) और नेट्स (Natus) से निकला है, जिनका अर्थ क्रमश: है – ‘जन्म या नस्ल‘ और ‘पैदा हुआ।
राष्ट्रवाद क्या है – सामान्यतः यदि जनता की राय ले तो इस विषय में राष्ट्रीय ध्वज, देश भक्ति देश के लिए बलिदान जैसी बाते सुनेंगे। दिल्ली में गणतंत्र दिवस की परेड़ भारतीय राष्ट्रवाद का विचित्र प्रतीक है।

• राष्ट्रवाद पिछली दो शताब्दियों के दौरान एक ऐसे सम्मोहक राजनीतिक सिद्धांत के रूप में उभरकर सामने आया है कि जिसने इतिहास रचने में महत्वपूर्ण भूमिका अदा की है। इसने अत्याचारी शासन से आजादी दिलाने में सहायता की है तो इसके साथ ही यह विरोध, कटुता और युद्धों की वजह भी रहा है।

• राष्ट्रवाद बड़े – बडे साम्राज्यों के पतन में भागीदार रहा है। बीसवीं शताब्दी की शुरूआत में यूरोप में आस्ट्रेयाई हंगेरियाई और रूसी साम्राज्य तथा इसके साथ एशिया और अफ्रीका में फ्रांसीसी, ब्रिटिश, डच और पुर्तगाली साम्राज्य के बंटवारे के मूल में राष्ट्रवाद ही था।

• इसी के साथ राष्ट्रवाद ने उन्नीसवीं शताब्दी के यूरोप में कई छोटी – छोटी रियासतों के एकीकरण से वृहदत्तर राष्ट्र राज्यों की स्थापना का मार्ग दिखाया है।
राष्ट्र तथा राष्ट्रवाद 

राष्ट्र – राष्ट्र के सदस्य के रूप में हम राष्ट्र के अधिकतर सदस्यों को प्रत्यक्ष तौर पर न कभी जान पाते है और न ही उनके साथ वंशानुगत संबंध जोड़ने की जरूरत पड़ती है। फिर भी राष्ट्रों का वजूद है, लोग उनमें रहते हैं और उनका सम्मान करते हैं।

राष्ट्रवाद – राष्ट्र काफी हद तक एक काल्पनिक समुदाय है जो अपने सदस्यों के सामूहिक यकीन, इच्छाओं, कल्पनाओं विश्वास आदि के सहारे एक धागे में गठित होता है। यह कुछ विशेष मान्यताओं पर आधारित होता है जिन्हें लोग उस पूर्ण समुदाय के लिए बनाते हैं जिससे वह अपनी पहचान बनाए रखते हैं।
राष्ट्र के विषय में मान्यताएं

साझे विश्वास –  एक राष्ट्र का आस्तित्व तभी बना रहता है जब उसके सदस्यों को यह विश्वास हो कि वे एक – दूसरे के साथ है।

इतिहास – व्यक्ति अपने आपको एक राष्ट्र मानते हैं उनके अंदर अधिकतर स्थाई ऐतिहासिक पहचान की भावना होती है देश की स्थायी पहचान का ढांचा पेश करने हेतु वे किवंदतियों, स्मृतियों तथा ऐतिहासिक इमारतों तथा अभिलेखों की रचना के जरिए स्वयं राष्ट्र के इतिहास के बोध की रचना करते हैं।

भू – क्षेत्र – किसी भू क्षेत्र पर काफी हद तक साथ – साथ रहना एवं उससे संबंधित साझे अतीत की स्मृतियां जन साधारण को एक सामूहिक पहचान का अनुभाव कराती है। जैसे कोई इसे मातृभूमि या पितृभूमि कहता है तो कोई पवित्र भूमि।

सांझे राजनीतिक विश्वास – जब राष्ट्र के सदस्यों की इस विषय पर एक सांझा दृष्टि होती है कि वे कैसे राज्य बनाना चाहते हैं शेष तथ्यों के अतिरिक्त वे धर्म निरपेक्षता, लोकतंत्र और उदारवाद जैसे मूल्यों और सिद्धांतों को स्वीकार करते हैं तब यह विचार राष्ट्र के रूप में उनकी राजनीतिक पहचान को स्पष्ट करता है।

साझी राजनीतिक पहचान – व्यक्तियों को एक राष्ट्र में बांधने के लिए एक समान भाषा, जातीय वंश परंपरा जैसी सांस्कृतिक पहचान भी आवश्यक है। ऐसे हमारे विचार, धार्मिक विश्वास, सामाजिक परंपराए सांझे हो जाते हैं। वास्तव में लोकतंत्र में किसी खास नस्ल, धर्म या भाषा से संबद्धता की जगह एक मूल्य समूह के प्रति निष्ठा की आवश्यकता होती है।
राष्ट्रवाद के मार्ग में आने वाली कठिनाइयाँ
  • सांप्रदायिकता
  • जातिवाद
  • क्षेत्रवाद
  • भाषावाद
  • नस्लवाद
राष्ट्रवाद के दायरें (सीमाएं)
  • क्षेत्रवाद
  • नैतिक मूल्यों का पतन
  • धार्मिक विविधता
  • आर्थिक विषमता
  • भाषायी विषमता
राष्ट्रीय आत्म निर्णय – सामाजिक समूहों से राष्ट्र अपना शासन स्वंय करने और अपने भविष्य को तय करने का अधिकार चाहते हैं दूसरे शब्दों मे वे आत्म निर्णय का अधिकार चाहते हैं। इस अधिकार के तहत राष्ट्र अंतर्राष्ट्रीय समुदाय से मांग करता है कि भिन्न राजनीतिक इकाई या राज्य के दर्जे को मान्यता एंव स्वीकृति दी जाएं।

• उन्नीसवीं सदी में यूरोप में एक संस्कृतिः एक राज्य की मान्यता ने जोर पकड़ा। फलस्वरूप वर्साय की संधि के बाद विभिन्न छोटे एवं नव स्वतंत्र राज्यों का गठन हुआ। इस के कारण राज्यों की सीमाओं में भी परिवर्तन हुए, बड़ी जनसंख्या का विस्थापन हुआ, कई लोग सांप्रदायिक हिंसा के भी शिकार हुए।

• इसलिए यह निश्चित करना मुमकिन नहीं हो पाया कि नव निर्मित राज्यों में मात्र एक ही जाति के लोग रहें क्योंकि वहां एक से ज्यादा नस्ल और संस्कृति के लोग रहते थे।

• आश्चर्य की बात यह है कि उन राष्ट्र राज्यों ने जिन्होंने संघर्षों के बाद स्वाधीनता प्राप्त की, किंतु अब वे अपने भू – क्षेत्रों में राष्ट्रीय आत्म निर्णय के अधिकार की मांग करने वाले अल्पसंख्यक समूहों का खंडन करते है।
आत्मनिर्णय के आंदोलनों से कैसे निपटें – समाधान नए राज्यों के गठन में नहीं बल्कि वर्तमान राज्यों को ज्यादा लोकतांत्रिक और समतामूलक बनाने में है। समाधान है कि भिन्न – भिन्न सांस्कृतिक और नस्लीय पहचानों के लोग देश में समान नागरिक तथा मित्रों की तरह सहअस्तित्व पूर्वक रह सकें।
राष्ट्रवाद तथा बहुलवाद – ”एक संस्कृति – एक राज्य” के विचार को त्यागने के बाद लोकतांत्रिक देशों ने सांस्कृतिक रूप से अल्पसंख्यक समुदायों की पहचान को स्वीकार करने तथा सुरक्षित करने के तरीकों की शुरूआत की है। भारतीय संविधान में भाषायी, धार्मिक एंव सांस्कृतिक अल्पसंख्यकों की सुरक्षा के लिए व्यापक प्रावधान हैं।

• यद्यपि अल्पसंख्यक समूहों को मान्यता एवं सरंक्षण प्रदान करने के बावजूद कुछ समूह पृथक राज्य की मांग पर अड़े रहें, ऐसा हो सकता है। यह विरोधाभासी तथ्य होगा कि जहां वैश्विक ग्राम की बातें चल रही हैं वहां अभी भी राष्ट्रीय आकांक्षाएं विभिन्न वर्गों और समुदायों को उद्वेलित कर रही है। इसके समाधान के लिए संबंधित देश को विभिन्न वर्गों के साथ उदारता एवं दक्षता का परिचय देना होगा साथ ही असहिष्णु एक जातीय स्वरूपों के साथ कठोरता से पेश आना होगा।

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