NCERT Solutions Class 11th Political Science (राजनीतिक सिद्धान्त) Chapter – 5 अधिकार (Rights) Question & Answer In Hindi

NCERT Solutions Class 11th Political Science (राजनीतिक सिद्धान्त) Chapter – 5 अधिकार (Rights)

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Class11th
SubjectPolitical Science (राजनीतिक सिद्धान्त)
ChapterChapter – 5
Chapter Nameअधिकार
CategoryClass 11th Political Science
MediumHindi
SourceLast Doubt
NCERT Solutions Class 11th Political Science (राजनीतिक सिद्धांत) Chapter – 5 अधिकार (Rights) Question & Answer In Hindi अधिकार शब्द का अर्थ क्या है?, भारत में कितने मौलिक अधिकार हैं?, अधिकार की विशेषताएं क्या हैं?, भारत में कितने प्रकार के अधिकार हैं?, सबसे महत्वपूर्ण अधिकार कौन से हैं?, महत्वपूर्ण अधिकार कौन सा है?, अधिकार के आवश्यक तत्व कौन कौन से हैं?, मानवाधिकार क्यों महत्वपूर्ण हैं?, अधिकार और शक्ति में क्या अंतर है?, अधिकार क्या हैं और वे क्यों महत्वपूर्ण हैं?, संविधान में कितने अधिकार हैं?, संविधान का अधिकार क्या है?, संविधान में कितने मानव अधिकार है?, मौलिक अधिकार के जनक कौन है?, अनुच्छेद 12 क्या कहता है?, मौलिक अधिकार कहाँ से लिया गया है?, शिक्षा का अधिकार क्या है?

NCERT Solutions Class 11th Political Science (राजनीतिक सिद्धान्त) Chapter – 5 अधिकार (Rights)

Chapter – 5

अधिकार

प्रश्न उत्तर

अभ्यास प्रश्न – उत्तर

प्रश्न 1. अधिकार क्या हैं और वे महत्त्वपूर्ण क्यों हैं? अधिकारों का दावा करने के लिए उपयुक्त आधार क्या हो सकते हैं?
उत्तर – ‘अधिकार शब्द की उत्पत्ति संस्कृत भाषा के दो शब्दों अधि और कार से मिलकर हुई है। जिनका क्रमशः अर्थ है ‘प्रभुत्व’ और ‘कार्य’। इस प्रकार शाब्दिक अर्थ में अधिकार का अभिप्राय उस कार्य से है, जिस पर व्यक्ति का प्रभुत्व है। मानव एक सामाजिक प्राणी होने के नाते समाज के अन्तर्गत ही व्यक्तित्व के विकास के लिए उपलब्ध सुविधाओं का उपभोग करता है।

इन सुविधाओं अथवा अधिकारों के उपयोग से ही व्यक्ति, अपने शारीरिक, मानसिक एवं नैतिक विकास का अवसर प्राप्त करता है। संक्षेप में, अधिकार मनुष्य के जीवन की यह अनिवार्य परिस्थिति है, जो विकास के लिए आवश्यक है तथा जिसे राज्य और समाज द्वारा मान्यता प्रदान की जाती है। अधिकारों का दावा करने के लिए उपयुक्त आधार निम्नलिखित हो सकते हैं-
  1. सम्मान और गरिमापूर्ण जीवन बसर करने के लिए अधिकारों का दावा किया जा सकता है।
  2. अधिकारों की दावेदारी का दूसरा आधार यह है कि वे हमारी बेहतरी के लिए आवश्यक हैं।
प्रश्न 2. किन आधारों पर यह अधिकार अपनी प्रकृति में सार्वभौमिक माने जाते हैं?
उत्तर – 17 वीं और 18वीं सदी में राजनीतिक सिद्धान्तकार तर्क प्रस्तुत करते थे कि हमारे लिए अधिकार प्रकृति या ईश्वर प्रदत्त हैं। हमें जन्म से वे अधिकार प्राप्त हैं। परिणामस्वरूप कोई व्यक्ति या शासक उन्हें हमसे छीन नहीं सकता। उन्होंने मनुष्य के तीन प्राकृतिक अधिकार चिह्नित किए। थे-जीवन को अधिकार, स्वतन्त्रता का अधिकार और सम्पत्ति का अधिकार।

अन्य विभिन्न अधिकार इन बुनियादी अधिकारों से ही निकले हैं। हम इन अधिकारों का दावा करें या न करें, व्यक्ति होने के कारण हमें यह प्राप्त हैं। यह विचार कि हमें जन्म से ही कुछ विशिष्ट अधिकार प्राप्त हैं, बहुत शक्तिशाली अवधारणा है, क्योंकि इसका अर्थ है जो ईश्वर प्रदत्त है और उन्हें कोई मानव शासक या राज्य हमसे छीन नहीं सकता।
प्रश्न 3. संक्षेप में उन नए अधिकारों की चर्चा कीजिए, जो हमारे देश में सामने रखे जा रहे हैं। उदाहरण के लिए, आदिवासियों के अपने रहवास और जीन के तरीके को संरक्षित रखने तथा बच्चों के बँधुआ मजदूरी के खिलाफ अधिकार जैसे नए अधिकारों को लिया जा सकता है।
उत्तर – वर्तमान में कुछ नए अधिकारों की चर्चा होने लगी है। उनमें प्रमुख हैं-

1. अपनी मातृभाषा में प्राथमिक शिक्षा पाने का अधिकार – यह अधिकार सांस्कृतिक अधिकारों के अन्तर्गत रखा जा सकता है। अब विभिन्न भाषा-भाषी राज्यों में यह माँग उठने लगी है कि बच्चों को प्राथमिक शिक्षा उनकी मातृभाषा में दी जाए, क्योंकि मातृभाषा को सीखने और उसके माध्यम से शिक्षा पाने का उन्हें पूर्ण अधिकार है।

2. अल्पसंख्यकों को शिक्षण संस्थाएँ खोलने का अधिकार – अपनी भाषा और संस्कृति की रक्षा और उसके विकास के लिए कुछ अल्पसंख्यक इस प्रकार की शिक्षण संस्थाओं को प्रारम्भ करने के लिए इसे अधिकार के रूप में मानने लगे हैं। भारत में यह सुविधा प्रदान की गई है।
प्रश्न 4. राजनीतिक, आर्थिक और सांस्कृतिक अधिकारों में अन्तर बताइए। हर प्रकार के अधिकार के उदाहरण भी दीजिए।
उत्तर – राजनीतिक, आर्थिक और सांस्कृतिक अधिकारों में अन्तर-
क्र० सं०राजनीतिक अधिकारआर्थिक अधिकारसांस्कृतिक अधिकार
1.राजनीतिक अधिकार नागरिकों को कानून के समक्ष बराबरी तथा राजनीतिक प्रक्रिया में भागीदारी का हक देते हैं। आर्थिक अधिकार व्यक्ति को उसकी बुनियादी आवश्यकताएँ पूर्ति करने का हक देते हैं।सांस्कृतिक अधिकारों द्वारा व्यक्ति अपनी भाषा और संस्कृति की रक्षा
कर सकता है और उसका विकास कर सकता है।
2.राजनीतिक अधिकार में वोट देने, चुनाव लड़ने, राजनीतिक पार्टी का गठन करने जैसे अधिकार सम्मिलित हैं।आर्थिक अधिकार में बेरोजगारी भत्ता पाने, रोजगार की न्यूनतम गारण्टी पाने का अधिकार शामिल है।सांस्कृतिक अधिकार में अपनी मातृभाषा में शिक्षा ग्रहण करने, शिक्षण संस्थाएँ प्रारम्भ करने का अधिकार प्राप्त है।
3.राजनीतिक अधिकार राज्य द्वारा प्राप्त होते हैंआर्थिक अधिकार भी राज्य द्वारा प्राप्त होते हैंसांस्कृतिक अधिकार हमें प्रकृति से प्राप्त हैं
प्रश्न 5. अधिकार राज्य की सत्ता पर, कुछ सीमाएँ लगाते हैं। उदाहरण सहित व्याख्या कीजिए।
उत्तर – अधिकार राज्य को कुछ विशिष्ट तरीकों से कार्य करने के लिए वैधानिक दायित्व सौंपते हैं। प्रत्येक अधिकार निर्देशित करता है कि राज्य के लिए क्या करने योग्य है और क्या नहीं। उदाहरण के लिए, किसी व्यक्ति के जीवन जीने का अधिकार राज्य को ऐसे कानून बनाने के लिए बाध्य करता है। जो दूसरों के द्वारा क्षति पहुँचाने से उसे बचा सके। यह अधिकार राज्य से माँग करता है कि वह व्यक्ति को चोट या नुकसान पहुँचाने वालों को दण्डित करे।

यदि कोई समाज अनुभव करता है कि जीने के अधिकार को आशय अच्छे स्तर के जीवन का अधिकार है, तो वह राज्य से ऐसी नीतियों के अनुपालन की अपेक्षा करता है, जो स्वस्थ जीवन के लिए स्वच्छ पर्यावरण और अन्य आवश्यक निर्धारकों का प्रावधान करे। अधिकार केवल यह ही नहीं बताते कि राज्य को क्या करना है, वे यह भी बताते हैं कि राज्य को क्या कुछ नहीं करना है।

उदाहरणार्थ, किसी व्यक्ति की स्वतन्त्रता का अधिकार कहता है कि राज्य केवल। अपनी मर्जी से उसे गिरफ्तार नहीं कर सकता। अगर वह गिरफ्तार करना चाहता है तो उसे इस। कार्यवाही को उचित ठहराना पड़ेगा, उसे किसी न्यायालय के समक्ष इस व्यक्ति की स्वतन्त्रता में कटौती करने का कारण स्पष्ट करना होगा। इसलिए किसी व्यक्ति को पकड़ने के लिए पहले गिरफ्तारी का वारण्ट दिखाना पुलिस के लिए आवश्यक होता है, इस प्रकार अधिकार राज्य की सत्ता पर कुछ सीमाएँ लगाते हैं।

दूसरों शब्दों में, कहा जाए तो हमारे अधिकार यह सुनिश्चित करते हैं कि राज्य की सत्ता वैयक्तिक जीवन और स्वतन्त्रता की मर्यादा का उल्लंघन किए बिना काम करे। राज्य सम्पूर्ण प्रभुत्वसम्पन्न सत्ता हो सकता है, उसके द्वारा निर्मित कानून बलपूर्वक लागू किए जा सकते हैं, लेकिन सम्पूर्ण प्रभुत्वसम्पन्न राज्य का अस्तित्व अपने लिए नहीं बल्कि व्यक्ति के हित के लिए होता है।

इसमें जनता का ही अधिक महत्त्व है औ सत्तात्मक सरकार को उसके ही कल्याण के लिए काम करना होता है। शासक अपनी कार्यवाहियों के लिए जबावदेह है और उसे यह नहीं भूलना चाहिए कि कानून लोगों की भलाई सुनिश्चित करने के लिए ही होते हैं।

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