NCERT Solutions Class 11th Political Science (भारत का संविधान : सिद्धान्त और व्यवहार) Chapter – 9 संविधान : एक जीवन्त दस्तावेज (Constitution as a Living Document)
Textbook | NCERT |
Class | 11th |
Subject | Political Science |
Chapter | Chapter – 9 |
Chapter Name | संविधान : एक जीवन्त दस्तावेज |
Category | Class 11th Political Science Question & Answer In Hindi |
Medium | Hindi |
Source | Last Doubt |
NCERT Solutions Class 11th Political Science (भारत का संविधान : सिद्धान्त और व्यवहार) Chapter – 9 संविधान एक जीवंत दस्तावेज़ (Constitution as a Living Document) Notes In Hindi कुल कितने संविधान हैं?, भारत में कुल कितने संविधान है?, संविधान को पवित्र किसने कहा?, 2024 में भारतीय संविधान में कितने अनुच्छेद हैं?, संविधान में कितने अंग होते हैं?, भारतीय संविधान में 2023 तक कितने संशोधन हैं?, संविधान का जनक कौन है?, संविधान के पिता का नाम क्या था?, संविधान दिवस के जनक कौन है?, अनुच्छेद 356 में क्या है?, अनुच्छेद 1 में क्या कहा गया है?, अनुच्छेद 355 में क्या है? |
NCERT Solutions Class 11th Political Science (भारत का संविधान : सिद्धान्त और व्यवहार) Chapter – 9 संविधान : एक जीवन्त दस्तावेज (Constitution as a Living Document)
Chapter – 9
संविधान : एक जीवन्त दस्तावेज
प्रश्न – उत्तर
अभ्यास
प्रश्न 1. निम्नलिखित में से कौन-सा वाक्य सही है? संविधान में समय-समय पर संशोधन करना आवश्यक होता है; क्योंकि (क) परिस्थितियाँ बदलने पर संविधान में उचित संशोधन करना आवश्यक हो जाता है। (ख) किसी समय विशेष में लिखा गया दस्तावेज कुछ समय पश्चात् अप्रासंगिक हो जाता (ग) हर पीढ़ी के पास अपनी पसन्द का संविधान चुनने का विकल्प होना चाहिए। (घ) संविधान में मौजूदा सरकार का राजनीतिक दर्शन प्रतिबिम्बित होना चाहिए। उत्तर – (क) परिस्थितियाँ बदलने पर संविधान में उचित संशोधन करना आवश्यक हो जाता है। |
प्रश्न 2. निम्नलिखित वाक्यों के सामने सही/गलत का निशान लगाएँ- (क) राष्ट्रपति किसी संशोधन विधेयक को संसद के पास पुनर्विचार के लिए नहीं भेज सकता। (ख) संविधान में संशोधन करने का अधिकार केवल जनता द्वारा चुने गए प्रतिनिधियों के पास ही होता है। (ग) न्यायपालिका संवैधानिक संशोधन का प्रस्ताव नहीं ला सकती परन्तु उसे संविधान की व्याख्या करने का अधिकार है। व्याख्या द्वारा वह संविधान को काफी हद तक बदल सकती है। (घ) संसद संविधान के किसी भी खंड में संशोधन कर सकती है। उत्तर – (क) (✓) सही (ख) (✗) गलत (ग) (✓) सही (घ) (✓) सही |
प्रश्न 3. निम्नलिखित में से कौन भारतीय संविधान की संशोधन प्रक्रिया में भूमिका निभाते हैं? इस प्रक्रिया में ये कैसे शामिल होते हैं? (क) मतदाता (ख) भारत का राष्ट्रपति (ग) राज्य की विधानसभाएँ (घ) संसद (ङ) राज्यपाल (च) न्यायपालिका। उत्तर – (क) मतदाता लोकसभा व विधानसभाओं में अपने चुने हुए प्रतिनिधि भेजता है। ये चुने हुए प्रतिनिधि ही मतदाता की राय को संसद में या विधानसभा में व्यक्त करते हैं। इसलिए अप्रत्यक्ष रूप से मतदाता ही संविधान में भाग लेता है। (ख) कोई भी संविधान संशोधन बिल राष्ट्रपति की स्वीकृति के बाद ही प्रभावी माना जाता है। (ग) राज्य विधानमण्डलों को भी संविधान संशोधनों में भागीदारी दी गई है। बहुत-सी धाराओं में संशोधन का प्रस्ताव संसद के दोनों सदनों में 2/3 बहुमत से पास होकर राज्यों के पास जाना आवश्यक है और कम-से-कम आधे राज्यों में विधानमण्डल द्वारा साधारण बहुमत से सहमति मिलने पर ही वह प्रस्ताव संशोधन कानून का रूप ले लेता है। (घ) संसद को ही संविधान में संशोधन प्रस्तावित कानूनी अधिकार है और कुछ धाराएँ तो संसद के दोनों सदनों द्वारा साधारण बहुमत से पारित प्रस्ताव में संशोधित हो सकती है। (ङ) राज्यपाल की संविधान संशोधन प्रक्रिया में कोई भूमिका नहीं है। (च) न्यायपालिका की संविधान संशोधन प्रक्रिया में कोई भूमिका नहीं है। |
प्रश्न 4. इस अध्याय में आपने पढ़ा कि संविधान का 42वाँ संशोधन अब तक का सबसे विवादास्पद संशोधन रहा है। इस विवाद के क्या कारण थे? (क) यह संशोधन राष्ट्रीय आपातकाल के दौरान किया गया था। आपातकाल की घोषणा अपने आप में ही एक विवाद का मुद्दा था। (ख) यह संशोधन विशेष बहुमत पर आधारित नहीं था। (ग) इसे राज्य विधानपालिकाओं का समर्थन प्राप्त नहीं था। (घ) संशोध्न के कुछ उपबन्ध विवादास्पद थे। उत्तर – (क) यह संशोधन राष्ट्रीय आपातकाल के दौरान किया गया था। आपातकाल की घोषणा अपने आप में ही एक विवाद का मुद्दा था। (घ) संशोधन के कुछ उपबन्ध विवादास्पद थे। |
प्रश्न 5. निम्नलिखित वाक्यों में कौन-सा वाक्य विभिन्न संशोधनों के सम्बन्ध में विधायिका और न्यायपालिका के टकराव की सही व्याख्या नहीं करता? (क) संविधान की कई तरह से व्याख्या की जा सकती है। (ख) खंडन-मंडन/बहस और मदभेद लोकतंत्र के अनिवार्य अंग होते हैं। (ग) कुछ नियमों और सिद्धांतों को संविधान में अपेक्षाकृत ज्यादा महत्त्व दिया गया है। कतिपय संशोधनों के लिए संविधान में विशेष बहुमत की व्याख्या की गई है। (घ) नागरिकों के अधिकारों की रक्षा की जिम्मेदारी विधायिका को नहीं सौंपी जा सकती। (ङ) न्यायपालिका केवल किसी कानून की संवैधानिकता के बारे में फैसला दे सकती है। वह ऐसे कानूनों की वांछनीयता से जुड़ी राजनीतिक बहसों का निपटारा नहीं कर सकती। उत्तर – (घ) नागरिकों के अधिकारों की रक्षा की जिम्मेदारी विधायिका को नहीं सौंपी जा सकती। |
प्रश्न 6. बुनियादी ढाँचे के सिद्धांत के बारे में सही वाक्य को चिह्नित करें। गलत वाक्य को सही करें। (क) संविधान में बुनियादी मान्यताओं का खुलासा किया गया है। (ख) बुनियादी ढाँचे को छोड़कर विधायिका संविधान के सभी हिस्सों में संशोधन कर, सकती है। (ग) न्यायपालिका ने संविधान के उन पहलुओं को स्पष्ट कर दिया है जिन्हें बुनियादी ढाँचे के अन्तर्गत या उसके बाहर रखा जा सकता है। (घ) यह सिद्धांत सबसे पहले केशवानंद भारती मामले में प्रतिपादित किया गया है। (ङ) इस सिद्धांत से न्यापालिका की शक्तियाँ बढ़ी हैं। सरकार और विभिन्न राजनीतिक दलों ने भी बुनियादी ढाँचे के सिद्धांत को स्वीकार कर लिया है। उत्तर – उपर्युक्त सभी कथन सही हैं। |
प्रश्न 7. सन् 2000-2003 के बीच संविधान में अनेक संशोधन किए गए। इस जानकारी के आधार पर आप निम्नलिखित में से कौन-सा निष्कर्ष निकालेंगे? (क) इस काल के दौरान किए गए संशोधन में न्यायपालिका ने कोई ठोस हस्तक्षेप नहीं किया। (ख) इस काल के दौरान एक राजनीतिक दल के पास विशेष बहुमत था। (ग) कतिपय संशोधनों के पीछे जनता का दबाव काम कर रहा था। (घ) इस काल में विभिन्न राजनीतिक दलों के बीच कोई वास्तविक अन्तर नहीं रह गया था। (ङ) ये संशोधन विवादास्पद नहीं थे तथा संशोधनों के विषय को लेकर विभिन्न राजनीतिक दलों के बीच सहमति पैदा हो चुकी थी। उत्तर – (i) इस काल के दौरान किए गए संशोधन में न्यायपालिका ने कोई ठोस हस्तक्षेप नहीं किया। (ii) इस काल में किए गए संविधान संशोधन विवादरहित थे, सभी राजनीतिक दल संशोधनों के विषयों पर सहमत थे। |
प्रश्न 8. संविधान में संशोधन करने के लिए विशेष बहुमत की आवश्यकता क्यों पड़ती है? व्याख्या करें। उत्तर – संविधान संशोधन प्रक्रिया को कठिन बनाने के लिए विशेष बहुमत का प्रावधान रखा गया है। जिससे संशोधन की सुविधा का दुरुपयोग न किया जा सके। विशेष बहुमत में सर्वप्रथम संशोधन बिल के प्रवेश पर सदन की कुल संख्या के बहुमत के सदस्यों द्वारा वह बिल पारित होना चाहिए। इसके अलावा उपस्थित व वोट करने वाले सदन के सदस्यों के 2/3 बहुमत से बिल पास होना चाहिए। इस प्रकार से संविधान बिल दोनों सदनों में अलग-अलग पारित होना चाहिए। इस प्रावधान का यह लाभ है कि बिल को पारित करने के लिए आवश्यक बहुमत होता है। |
प्रश्न 9. भारतीय संविधान में अनेक संशोधन न्यायपालिका और संसद की अलग-अलग व्याख्याओं का परिणाम रहे हैं। उदाहरण सहित व्याख्या करें। उत्तर – यह बिल्कुल सत्य है कि संविधान में अनेक संशोधन इस कारण से किए गए कि निश्चित विषय पर न्यायपालिका ने संविधान की व्याख्या करते हुए संसद से अलग दृष्टिकोण रखा। जब भी किसी विषय पर संसद को न्यायालय का कोई निर्णय राजनीतिक दृष्टि से अनुकूल नहीं लगा तो उसे निरस्त करने के लिए संविधान में संशोधन कर दिया। गोलकनाथ बनाम पंजाब सरकार के मुकदमे में सर्वोच्च न्यायालय ने यह निर्णय दिया है कि संसद को मूल अधिकारों में कटौती करने का अधिकार नहीं है और इस बात का निर्णय करने का अधिकार न्यायालय को है कि मूल अधिकारों में कटौती की है, अथवा नहीं। इसी न्यायालय ने शंकरप्रसाद बनाम भारत सरकार के मुकदमे में यह निर्णय दिया है कि संविधान में परिवर्तन एक विधायी प्रक्रिया है और संसद द्वारा साधारण विधायी प्रक्रिया के लिए अनुच्छेद 118 के अन्तर्गत बनाए गए नियम संविधान में संशोधन के विधेयकों के लिए भी लागू किए जाएँ। इन सबको संसद ने बाद में बदल दिया। |
प्रश्न 10. अगर संशोधन की शक्ति जनता के निर्वाचित प्रतिनिधियों के पास होती है तो न्यायपालिका को संशोधन की वैधता पर निर्णय लेने का अधिकार नहीं दिया जाना चाहिए। क्या आप इस बात से सहमत हैं? 100 शब्दों में व्याख्या करें। उत्तर – नहीं, हम इस बात से सहमत नहीं हैं। न्यापालिका को संशोधन की वैधता पर निर्णय लेने का अधिकार होना चाहिए। हमारे यहाँ सर्वोच्च न्यायालय संविधान की सर्वोच्चता एवं पवित्रता की सुरक्षा करता है; अत: संविधान द्वारा सर्वोच्च न्यायालय को संविधान के संरक्षण का कार्य भी प्रदान किया गया है, जिसका अर्थ है कि सर्वोच्च न्यायालय को संसद अथवा राज्य विधानमण्डलों द्वारा निर्मित कानून की वैधानिकता की जाँच कराने का अधिकार प्राप्त है। अनुच्छेद 131 और 132 सर्वोच्च न्यायालय को संघीय तथा राज्य सरकारों द्वारा निर्मित विधियों के पुनरावलोकन का अधिकार प्रदान करते हैं; अतः यदि संसद अथवा राज्य विधानमण्डल, संविधान का अतिक्रमण करते हैं या संविधान के विरुद्ध विधि का निर्माण करते हैं, तो संसद या राज्य विधानमण्डल द्वारा निर्मित ऐसी प्रत्येक विधि को सर्वोच्च न्यायालय अवैधानिक घोषित कर सकता है। सर्वोच्च न्यायालय की इस शक्ति को ‘न्यायिक पुनरवलोकन की शक्ति (Power of Judicial Review) कहा जाता है। इसी प्रकार, वह संघ सरकार अथवा राज्य सरकार के संविधान का अतिक्रमण करने वाले समस्त कार्यपालिका आदेशों को भी अवैध घोषित कर सकता है। सर्वोच्च न्यायालय संविधान की व्याख्या करने वाला (Interpreter) अन्तिम न्यायालय है। उसे यह घोषित करना पड़ता है कि किसी विशेष अनुच्छेद का क्या अर्थ है। भारत का सर्वोच्च न्यायालय अमेरिका के सर्वोच्च न्यायालय की भाँति कानून की उचित प्रक्रिया (Due Process of the Law) के आधार पर न्यायिक पुनरवलोकन की शक्ति का प्रयोग न कर कानून के द्वारा स्थापितं प्रक्रिया (Procedure Established by the Law) के आधार पर करता है। इस दृष्टि से भारत का सर्वोच्च न्यायालय केवल संवैधानिक आधारों पर ही संसद अथवा विधानमण्डल के द्वारा पारित कानूनों को अवैध घोषित कर सकता है। इस दृष्टिकोण से भारत के सर्वोच्च न्यायालय की स्थिति अमेरिका के सर्वोच्च न्यायालय से कमजोर है। भारत के सर्वोच्च न्यायालय को न्यायिक पुनरवलोकन की शक्ति के आधार पर संसद का तीसरा सदन नहीं कहा जा सकता है। |
You Can Join Our Social Account
Youtube | Click here |
Click here | |
Click here | |
Click here | |
Click here | |
Telegram | Click here |
Website | Click here |