NCERT Solutions Class 11th Political Science (भारत का संविधान : सिद्धान्त और व्यवहार) Chapter – 8 स्थानीय शासन (Local Government) Notes In Hindi

NCERT Solutions Class 11th Political Science (भारत का संविधान : सिद्धान्त और व्यवहार) Chapter – 8 स्थानीय शासन (Local Government)

TextbookNCERT
Class11th
SubjectPolitical Science (भारत का संविधान : सिद्धान्त और व्यवहार)
ChapterChapter – 8
Chapter Nameस्थानीय शासन (Local Government)
CategoryClass 11th Political Science Notes in hindi
MediumEnglish
SourceLast Doubt
NCERT Solutions Class 11th Political Science (भारत का संविधान : सिद्धान्त और व्यवहार) Chapter – 8 स्थानीय शासन (Local Government) Notes In Hindi स्थानीय शासन के जनक कौन थे?, स्थानीय शासन का जनक कौन है?, स्थानीय शासन कब लागू हुआ?, स्थानीय शासन कितने प्रकार के होते हैं?, स्थानीय शासन के दो प्रकार कौन से हैं?, स्वशासन शब्द का अर्थ क्या है?, लॉर्ड रिपन की नीति क्या थी?, रिपन का कार्यकाल कब से कब तक है?, पंचायती राज की स्थापना कब हुई थी?, पंचायती राज का गठन कब हुआ?, भारत में कितने पंचायती राज हैं?

NCERT Solutions class 11th Political Science (भारत का संविधान : सिद्धान्त और व्यवहार) Chapter – 8 स्थानीय शासन (Local Government)

Chapter – 8

स्थानीय शासन

Notes

लोकतंत्र का अर्थ है – सार्थक भागीदारी तथा जवाबदेही। जीवंत और मजबूत स्थानीय शासन सक्रिय भागीदारी और उद्देश्यपूर्ण जवाबदेही को सुनिश्चित करता है। जो काम स्थानीय स्तर पर किए जा सकते हैं वे काम स्थानीय लोगों तथा उनके प्रतिनिधियों के हाथ में रहने चाहिए। आम जनता राज्य, सरकार या केन्द्र सरकार से कहीं ज्यादा स्थानीय शासन से परिचित होती है।
मुख्य बिन्दुः
  • राजनीतिक क्या है?
  • राजनीतिक में हम क्या पढ़ते हैं?
  • राजनीतिक सिद्धान्तों को व्यवहार में उतारना।
  • हमें राजनीतिक सिद्धांत क्यों पढ़ना चाहिए?
  • राजनीति बनाम राजनीति सिद्धांत।
  • राजनीति सिद्धांत का महत्त्व।
राजनीति क्या है – राजनीति को परिभाषित करने के लिए विद्वानों के अलग-अलग मत है। सामान्य तौर पर-

(i) राजनीति शासन करने की कला है।
(ii) राजनीति सरकार के क्रियाकलापों को ठीक से चलाने की सीखदेती है।
(iii) राजनीति प्रशासन संचालन के विवादों का हल प्रस्तुत करती है।
(iv) राजनीति भागीदारी करना सिखाती है लेकिन आम व्यक्ति का सामना राजनीति की परस्पर विरोधी छवियों से होता है, आज राजनीति का संबंध निजी स्वार्थ साधने से जुड़ गया है। जनकल्याण से इसका सम्बन्ध है।
(vi) राजनीति किसी भी समाज का महत्वपूर्ण व अविभाज्य अंग है।
राजनीतिक सिद्धान्त – राजनीतिक सिद्धान्त में हम जीवन के विभिन्न पहलुओं का अध्ययन करते है जैसे सामाजिक जीवन, सरकार और संविधान, स्वतंत्रता, समानता, न्याय, लोकतंत्र, धर्म निरपेक्ष आदि।– निश्चित मूल्यों व सिद्धान्तों को पढ़ते है जिनके द्वारा नीतियां निर्देशित होती है।
राजनीतिक सिद्धांतों को व्यवहार में उतारना – राजनीति का स्वरूप समय के साथ साथ बदलता रहा, राजनीतिक सिद्धांतों जैसे कि स्वतंत्रता और समानता को व्यवहार में उतारने का काम बहुत मुश्किल है। हमें अपने पूर्वाग्रहों का त्याग कर, इन्हें अपनाना चाहिए, राजनीतिक सिद्धांत के अध्ययन के द्वारा हम राजनीतिक व्यवस्थाओं के बारे में अपने विचारों तथा भावनाओं का परीक्षण कर सकते है।

हम यह समझ सकते है कि सचेत नागरिक ही देश का विकास कर सकते है, राजनीतिक सिद्धांत कोई वस्तु नहीं है यह मनुष्य से संबधित है उदाहरण के लिए समानता का अर्थ सभी के लिए समान अवसर है फिर भी महिलाओं, वृद्धों या विकलांगों के लिए अलग व्यवस्था की गई है अतः हम कह सकते है कि पूर्ण समानता संभव नहीं है, भेदभाव का तर्क संगत आधार जरूरी है।
हमें राजनीतिक सिद्धांत क्यों पढ़ना चाहिए?

1. भविष्य में आने वाली समस्याओं के समय एक उचित निर्णय लेने वाला नागरिक बनने के लिए।
2. बुनियादी व सामान्य ज्ञान के लिए।
3. एक अधिकार संपन्न एवं जागरूक नागरिक बनने के लिए, राजनीतिक चेतना जागृत करने के लिए।
4. मत देने के लिए।
5. समाज से पूर्वाग्रहों को समाप्त करने एवं एकता कायम करने के लिए।
6. आन्दोलनों को प्रेरणा व सही दिशा देने के लिए।
7. वाद-विवाद, तर्क-वितर्क, लाभ-हानि का आंकलन करने के बाद सही निर्णय लेने की कला सीखने के लिए हमें राजनीतिक सिद्धांत पढ़ना चाहिए।
8. शासन व्यवस्था की जानकारी के लिए।
9. नीति बनाने के लिए।
10. लोकतंत्र की उपयोगिता का ज्ञान प्राप्त करने हेतु।
11. अधिकार एंव कर्त्तव्यों को समझने के लिए।
12. भविष्य की योजनाएं बनाने के लिए।
13. अंतर्राष्ट्रीय शांति व सहयोग को बढ़ावा देने के लिए।
14. विभिन्न शासन प्रणालियों के अध्ययन हेतु।
15. एक छात्र होने के नाते।
राजनीति बनाम राजनीतिक सिद्धांत – राजनीति व राजनीतिक सिद्धान्त दो अलग-अलग धारणाएं है-

राजनीति दो शब्दों से मिलकर बना है। राज + नीति अर्थात नीति पर आधारित शासन, नागरिक या व्यक्तिगत स्तर पर किसी विशेष सिद्धांत अथवा व्यवहार का प्रयोग राजनीत के अंतर्गत आता है। निर्णय लेने की प्रक्रिया सरकार बनाने की प्रक्रिया सत्ता प्राप्त करने की प्रक्रिया आदि।

राजनीतिक सिद्धांत का मुख्य विषय राज्य व सरकार है। यह स्वतंत्रता, समानता, न्याय व लोकतंत्र जैसी अवधारणाओं का अर्थ स्पष्ट करता है । राजनीतिक सिद्धांत का उद्देश्य – नागरिकों को राजनीतिक प्रश्नों के बारे में तर्क संगत ढंग से सोचने और सामाजिक राजनीतिक घटनाओं को सही तरीकें से आंकने का प्रशिक्षण देना है। गणित के विपरीत जहां त्रिभुज या वर्ग की निश्चित परिभाषा होती है- राजनीतिक सिद्धांत में हम ‘समानता’, ‘आजादी’ या न्याय की अनेक परिभाषाओं से रूबरू होते है।

ऐसा इसलिए है कि समानता, न्याय जैसे शब्दों का सरोकार किसी वस्तु के बजाय अन्य मनुष्यों के साथ हमारे संबंधों से होता है। राजनीतिक सिद्धांत हमें राजनीतिक चीजों के बारे में अपने विचार व व्यवहार से भावनाओं के परीक्षण के लिए प्रोत्साहित करता है।

दूसरी ओर राजनीति विज्ञान व राजनीति भी दो अलग-अलग धारणाएं है। राजनीति विज्ञान का जन्म राजनीति से पूर्व हुआ है, यह नैतिकता पर आधारित है जबकि राजनीति अवसर व सुविधा पर आधारित है। इतना होने पर भी इन्हें सिक्के के दो पहलू के रूप में माना जा सकता है।
राजनीतिक सिद्धांत का महत्व
  • न्याय व समानता के बारे में सुव्यवस्थित सोच का विकास।
  • तर्कसंगत व प्रभावी ढंग से सम्प्रेषण।
  • कुशल व प्रभावी राजनीति निर्णय लेने में सहायक।
  • अन्तर्राष्ट्रीय जगत की सूचना प्राप्त करने हेतु।
स्थानीय शासन – गांव और जिला स्तर के शासन को स्थानीय शासन कहते है। यह आम आदमी का सबसे नजदीक का शासन है। इसमें जनता की प्रतिदिन की समस्याओं का समाधान बहत तेजी से तथा कम खर्च में हो जाता है।
स्थानीय शासन का महत्व – स्थानीय शासन का हमारे जीवन में बहुत महत्व है यदि स्थानीय विषय स्थानीय प्रतिनिधियों के पास रहते है तो नागरिकों के जीवन की रोजमर्रा की समस्याओं के समाधान तीव्र गति से तथा कम खर्च में हो जाती है।
भारत में स्थानीय शासन का विकास – प्राचीन भारत में अपना शासन खुद चलाने वाले समुदाय, ”सभा ” के रूप में मैजूद थे। आधुनिक समय में निर्वाचित निकाय सन् 1882 के बाद आस्तित्व में आए। उस वक्त उन्हें ”मुकामी बोर्ड” कहा जाता था। 1919 के भारत सरकार अधिनियम के बनने पर अनेक प्रांतो में गाम पंचायते बनी। जब संविधान बना तो स्थानीय शासन का विषय प्रदेशों को सौंप दिया गया । संविधान के नीति निर्देशक सिद्धांतों में भी इसकी चर्चा है।
स्वतंत्र भारत में स्थानीय शासन – संविधान के 73 वें और 74 वें संशोधन के बाद स्थानीय शासन को मजबूत आधार मिला। इससे पहले 1952 का ” सामुदायिक विकास कार्यक्रम “ इस क्षेत्र में एक अन्य प्रयास था इस पृष्ठभूमि में ग्रामीण विकास कार्यक्रम के तहत एक त्रिस्तरीय पंचायती राज व्यवस्था की शुरूआत की सिफारिश की गई। ये निकाय वित्तीय मदद के लिए प्रदेश तथा केन्द्रीय सरकार पर बहुत ज्यादा निर्भर थे। सन् 1987 के बाद स्थानीय शासन की संस्थाओं के गहन पुनरावलोकन की शुरूआत हुई। सन् 1989 में पी. के. डुंगन समिति ने स्थानीय शासन के निकायों को संवैधानिक दर्जा प्रदान करने की सिफारिश की।
स्थानीय शासन की आवश्यकता 
  • लोकतंत्र को मजबूत करने के लिए हमें स्थानीय शासन की आवश्यकता होती है।
  • लोकतंत्र में अधिक से अधिक भागीदारी के लिए स्थानीय शासन चाहिए।
  • लोगों की सबसे अधिक समस्या स्थानीय स्तर के होते हैं जिसे स्थानीय स्तर पर ही अच्छे ढंग से सुलझाया जा सकता है।
  • अच्छे लोकतंत्र में शक्तियों का बंटवारा जरुरी है।
संविधान का 73 वां और 74 वां संशोधन 

1. सन् 1992 में ससंद ने 73 वां और 74 वां संविधान संशोधन पारित किया।
2. 73 वां संशोधन गांव के स्थानीय शासन से जुड़ा है। इसका संबंध पंचायती राज व्यवस्था से है। 74 वां संशोधन शहरी स्थानीय शासन से जुड़ा है।
73 वां संशोधन – 73 वें संविधान संशोधन के कुछ प्रावधान 

त्रि – स्तरीय ढांचा – अब सभी प्रदेशों में पंचायती राज व्यवस्था का त्रि – स्तरीय ढांचा है।

चुनाव – पंचायती राज संस्थाओं के तीनों स्तरों के चुनाव सीधे जनता करती है । हर निकाय की अवधि पांच साल की होती है।

आरक्षण – महिलाओं के लिए एक तिहाई सीटें आरक्षित अनुसूचित जाति तथा अनुसूचित जन जाति के लिए उनकी जनसंख्या के अनुपात में आरक्षण का प्रावधान है। यदि प्रदेश की सरकार चाहे तो अन्य पिछड़ा वर्ग (ओ. बी. सी.) को भी सीट में आरक्षण दे सकती है। इस आरक्षण का लाभ हुआ कि आज महिलाएं सरपंच के पद पर कार्य कर रही है।

भारत के अनेक प्रदेशों के आदिवासी जनसंख्या वाले क्षेत्रों को 73 वें संविधान के प्रावधानों से दूर रखा गया परन्तु सन् 1996 में एक अलग कानून बना कर पंचायती राज के प्रावधानों में, इन क्षेत्रों को भी शामिल कर लिया गया।
74 वां संशोधन 

1. 74 वें संशोधन का संबंध शहरी स्थानीय शासन से है अर्थात् नगरपालिका से।

2. 74 वाँ संशोधन अधिनियम में प्रमुख शहरों जैसे दिल्ली, कोलकाता, मुंबई, मद्रास और अन्य शहर जहाँ नगरपालिका या नगर निगम का प्रावधान है के लिए किया गया है।

3. प्रत्येक नगर निगम के लिए सभी व्यस्क मतदाताओं द्वारा चुनी गई एक समान्य परिषद् होती है । इन चुने हुए सदस्यों को पार्षद या काउंसिलर कहते है।

4. पुरे नगर निगम के चुने हुए सदस्य अपने एक नगर निगम का अध्यक्ष का चुनाव करते है जिसे महापौर (मेयर) कहते है।

5. 74 वें संशोधन अधिनियम के अनुसार प्रत्येक नगर निगम या नगरपालिका या नगर पंचायत का कार्यकाल 5 वर्ष का होता है।

6. नगर निगम, नगरपालिका या नगर पंचायत के भंग होने पर 6 माह के अंदर चुनाव करवाना अनिवार्य है।

राज्य चुनाव आयुक्त – प्रदेशों के लिए यह जरूरी है कि वे एक राज्य चुनाव आयुक्त नियुक्त करें। इस चुनाव आयुक्त की जिम्मेदारी पंचायती राज संस्थाओं के चुनाव कराने की होगी।

राज्य वित्त आयोग – प्रदेशों की सरकार के लिए जरुरी है कि वो हर पांच वर्ष पर एक प्रादेशिक वित्त आयोग बनायें। यह आयोग प्रदेश में मौजूद स्थानीय शायन की संस्थाओं की आर्थिक स्थिति की जानकारी रखेगा।
शहरी इलाका 

1. ऐसे इलाके में कम से कम 5000 की जनसंख्या हो।

2. कामकाजी पुरूषों में कम से कम 75%खेती बाड़ी से अलग काम करते हो।

3. जनसंख्या का घनत्व कम से कम 400 व्यक्ति प्रति वर्ग किलोमीटर हो । विशेषः अनेक रूपों में 74 वें संविधान संशोधन में 73 वे संशोधन का दोहराव है लेकिन यह संशोधन शहरी क्षेत्रों से संबंधित है।

4. 73 वें संशोधन के सभी प्रावधान मसलन प्रत्यक्ष चुनाव , आरक्षण विषयों का हस्तांतरण , प्रादेशिक चुनाव आयुक्त और प्रादेशिक वित्त आयोग 74 वें संशोधन में शामिल है तथा नगर पालिकाओं पर लागू होते हैं।
73 वें और 74 वें संशोधन का क्रियान्वयन – (1994 – 2016) इस अवधि में प्रदेशों में स्थानीय निकायों के चुनाव कम से कम 4 से 5 बार हो चुके है। स्थानीय निकायों के चुनाव के कारण निर्वाचित जन प्रतिनिधियों की संख्या में निरंतर भारी बढ़ोतरी हुई है। महिलाओं की शक्ति और आत्म विश्वास में काफी वृद्धि हुई है।

विषयों का स्थानांतरण – संविधान के संशोधन ने 29 विषय को स्थानीय शासन के हवाले किया है। ये सारे विषय स्थानीय विकास तथा कल्याण की जरूरतो से संबंधित है।

राजनीतिक सिद्धांत क्या है? समझाइए।

राजनीतिक सिद्धांत उन विचारों और नीतियों के व्यवस्थित रूप को प्रतिबिंबित करता है जिनसे हमारे सामाजिक जीवन, सरकार और संविधान ने आकार ग्रहण किया है।

गांधी जी की पुस्तक ‘हिन्द – स्वराज’ में किस विषय पर प्रकाश डाला गया है?

स्वराज के अर्थ की विवेचना पर।

राजनीति के विषय में आम लोगों की विचारधारा क्या है ?

आम लोग राजनीति को अच्छा नहीं मानते।

राजनीतिक विज्ञान व राजनीति में कोई एक अन्तर लिखें?

राजनीतिक विज्ञान निश्चित आदर्शों पर आधारित है जबकि राजनीति स्वार्थ व अवसरवादिता पर आधारित है।

हमें राजनीतिक सिद्धान्त क्यों पढ़ना चाहिए?

इससे राजनीतिक नियमों / सिद्धांतों, समानता, स्वतंत्रता तथा लोकतंत्र का ज्ञान होता है। जो लोकतंत्र के लिये आवश्यक है।

राजनीतिक सिद्धान्त का मुख्य विषय क्या है?

राज्य व सरकार

राजनीति’ का अर्थ स्पष्ट करें।

राजनीति शब्द की उत्पति ग्रीक शब्द पोलिस से हुई है, जिस का शाब्दिक अर्थ नगर राज्य होता है।

राजनीतिक सिद्धांत के किन्हीं दो क्षेत्रों को समझाइए। वर्णन कीजिए।

(i) राज्य और सरकार का अध्ययन।
(ii) शक्ति और राजनीतिक विचारधाराओं का अध्ययन।

भारत में कितने पंचायती राज हैं?

त्रिस्तरीय पंचायती राज व्यवस्था : ग्राम पंचायत, पंचायत समिति और जिला परिषद।

पंचायत के तीन स्तर कौन से हैं?

ग्राम पंचायत, ब्लॉक पंचायत और जिला पंचायत भारत में पंचायत राज व्यवस्था के 3 स्तर हैं।

गांव में स्थानीय सरकार को क्या कहा जाता है?

पंचायती राज को ग्रामीण स्थानीय सरकार के रूप में भी जाना जाता है। यह भारतीय सरकार की वह शाखा है जिसके अंतर्गत ग्रामीण क्षेत्र के प्रत्येक गांव अपनी गतिविधि एवं विकास के लिए स्वयं जिम्मेदार होते हैं। यह एक प्रकार का स्थानीय निकाय है जो ग्रामीण क्षेत्रों का कल्याण करने का कार्य करती है।

स्थानीय स्वशासन के कितने भाग हैं?

भारतीय संविधान में 74वें संविधान संशोधन अधिनियम द्वारा नगरीय स्थानीय शासन को संवैधानिक दर्जा दिया गया है। राज्य में तीन तरह की शहरी संस्थायें हैं – नगर निगम, नगर परिषद तथा नगर पालिका।

स्थानीय स्वशासन की स्थापना कब की गई?

स्थानीय स्वशासन एक्ट 28 मई 1882 लाकर वो भारत मे स्थानीय स्वशासन का पिता भी बन गया था इस एक्ट द्वारा शहर व गाँव मे स्थानीय बोर्ड बने।

स्थानीय शासन की आवश्यकता क्यों है?

स्थानीय सरकार की प्रणाली को अपनाने का सबसे प्रमुख उद्देश्य यही है कि इसके माध्यम से देश के सभी नागरिक अपने लोकतांत्रिक अधिकारों को प्राप्त कर सकते हैं। विदित है कि लोकतंत्र की सफलता सत्ता के विकेंद्रीकरण पर निर्भर करती है और स्थानीय स्वशासन के माध्यम से ही शक्तियों का सही विकेंद्रीकरण संभव हो पाता है।

भारत में स्थानीय सरकार की क्या भूमिका है?

इसके कार्यों में कृषि के सभी पहलुओं में विकास, स्थानीय उद्योगों और अन्य को बढ़ावा देना शामिल होना चाहिए। सेवाएं जैसे पेयजल, सड़क निर्माण, आदि, और। उच्च स्तरीय निकाय, जिला परिषद, एक सलाहकार की भूमिका निभाएगा।

स्थानीय सरकार की 3 मुख्य जिम्मेदारियां क्या हैं?

योजना और ज़ोनिंग उपनियम। कर लगाना। स्थानीय व्यापार समर्थन। समुदायों के बीच और बड़े क्षेत्र में सहयोग।

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