NCERT Solutions Class 11th History Chapter – 2 तीन महाद्वीपों में फैला हुआ साम्राज्य (An Empire Across Three Continents)
Text Book | NCERT |
Class | 11th |
Subject | History |
Chapter | 2nd |
Chapter Name | तीन महाद्वीपों में फैला हुआ साम्राज्य (An Empire Across Three Continents) |
Category | Class 11th History Notes In Hindi |
Medium | Hindi |
Source | Last Doubt |
NCERT Solutions Class 11th History Chapter – 2 तीन महाद्वीपों में फैला हुआ साम्राज्य (An Empire Across Three Continents) Notes In Hindi जिसमे हम रोम की स्थापना किसने की थी?, रोम का पुराना नाम क्या है?, रोम का वर्तमान नाम क्या है?, रोम का दूसरा नाम क्या है?, रोम की भाषा क्या है?, रोम के राजा का नाम क्या था?, रोम का भगवान कौन था?, RAM का पूरा नाम क्या है?, रोम कहाँ की राजधानी है?, रोम का अर्थ क्या है?, राम कौन सा मेमोरी है?, रोम का कार्य क्या है?, रोम कौन से देश में है?, लैटिन कौन बोलता था?, लैटिन कौन सा देश बोलता है? आदि के बारे में पढेंगें। |
NCERT Solutions Class 11th History Chapter – 2 तीन महाद्वीपों में फैला हुआ साम्राज्य (An Empire Across Three Continents)
Chapter – 2
तीन महाद्वीपों में फैला हुआ साम्राज्य
Notes
रोम साम्राज्य – आज का अधिकांश यूरोप पश्चिमी एशिया और उत्तरी अफ्रीका का हिस्सा शामिल था।
रोमन साम्राज्य का फैलाव तीन महाद्वीपों में हैं
- यूरोप
- पश्चिमी एशिया
- उत्तरी अफ्रीका
रोमन साम्राज्य की जानकारी के स्रोत – सामग्री जिसे तीन वर्गों में विभाजित किया गया है-
पाठ्य सामग्री
- वर्ष वृत्तान्त
- पत्र
- व्याख्यान
- प्रवचन
- कानून
प्रलेख या दस्तावेज – पैपाइरस पर लिखे गए
भौतिक अवशेष
- इमारतें
- बर्तन
- सिक्के
वर्ष वृतांत – समकालीन व्यक्तियों द्वारा प्रतिवर्ष लिखे जाने वाले इतिहास के ब्यौरे को वर्ष – वृतांत कहा जाता है।
पैपाइरस – पैपाइरस एक सरकंडे जैसा पौधा था जो नील नदी के किनारे उगा करता था, इस से लेखन सामग्री तैयार की जाती थी।
रोमन साम्राज्य का आरंभिक काल – रोम साम्राज्य में 509 ई. पू. से 27 ई. पू. तक गणतंत्र शासन व्यवस्था चली।
प्रथम सम्राट ऑगस्टस – 27 ई . पू . में ऑगस्टस ने गणतंत्र शासन व्यवस्था का तख्ता पलट दिया और स्वयं सम्राट बन गया, उसके राज्य को प्रिंसिपेट कहा गया। वह एक प्रमुख नागरिक के रूप में था, निरंकुश शासक नहीं था।
रोमन साम्राज्य के राजनीतिक इतिहास के तीन प्रमुख खिलाड़ी – सम्राट, अभिजात वर्ग और सेना।
• प्रांतों की स्थापना।
• सार्वजनिक स्नानगृह।
मध्य का काल (तीसरी शताब्दी का संकट)
• प्रथम और द्वितीय शताब्दियां – शांति, समृद्धि और आर्थिक विस्तार की प्रतीक थी।
• तीसरी शताब्दी में तनाव उभरा। जब ईरान के ससानी वंश के बार – बार आक्रमण हुए। इसी बीच जर्मन मूल की जनजातियों (फ्रेंक, एलमन्नाइ और गोथ) ने रोमन साम्राज्य के विभिन्न प्रांतों पर कब्जा कर लिया जिससे साम्राज्य में अस्थिरता आई।
• 47 वर्षों में 25 सम्राट हुए। इसे तीसरी शताब्दी का संकट कहा जाता है।
परवर्ती पुरा काल
- चौथी से सातवीं शताब्दी
- डायोक्लीशियन का शासन 284 – 305 ई.
- कॉन्स्टैनटाइन शासक
- इसाई धर्म राज धर्म
- सॉलिडस सोने का सिक्का
- कुस्तुनतुनियाँ राजधानी
- व्यापार विकास
- स्थापत्य कला
- जस्टीनियन शासक
रोमन साम्राज्य में लिंग, साक्षरता, संस्कृति
- एकल परिवार का समाज में चलन।
- महिलाओं की अच्छी स्थिति, संपत्ति में स्वामित्व व संचालन में कानूनी अधिकार होना।
- कामचलाऊ साक्षरता होना।
- सांस्कृतिक विविधता होना।
रोमन साम्राज्य का विस्तार
- रोम साम्राज्य का आर्थिक आधारभूत ढाँचा काफी मजबूत था।
- बंदरगाह, खानें, खदानें, ईंट के भट्टे जैतून का तेल के कारखाने अधिक मात्रा में व्याप्त होना।
- असाधारण उर्वरता के क्षेत्र होना।
- सुगठित वाणिज्यिक व बैंकिंग व्यवस्था तथा धन का व्यापक रूप से प्रयोग।
- तरल पदार्थों की दुलाई जिन कन्टेनरों में की जाती थी उन्हें एम्फोरा कहा जाता था।
- स्पेन में उत्पादित जैतून का तेल ‘ड्रेसल – 20‘ नामक कन्टेनरों में ले जाया जाता था।
रोमन साम्राज्य में श्रमिकों पर नियंत्रण
- दासता की मजबूत जड़ें पूरे रोमन समाज मे फैली हुई थी।
- इटली में 75 लाख की आबादी में से 30 लाख दासो की संख्या थी।
- दासों को पूंजी निवेश का दर्जा प्राप्त था।
- ऊँच वर्ग के लोगों द्वारा श्रमिकों एवं दासों से क्रूरतापूर्ण व्यवहार किया जाता था।
- ग्रामीण लोग ऋणग्रसता से जूझ रहे थे।
- दासों के प्रति व्यवहार सहानुभूति पर नहीं बल्कि हिसाब – किताब पर आधारित था।
रोमन साम्राज्य में सामाजिक श्रेणियाँ प्रारंभिक राज्य
- सैनेटर, अश्वारोही, जनता का सम्मानित वर्ग, फूहड़ निम्नतर वर्ग, दास।
- परवर्ती काल, अभिजात वर्ग, मध्यम वर्ग और निम्नतर वर्ग।
- भ्रष्टाचार और लूट – खसोट।
रोमन साम्राज्य में पुराकाल की विशेषतायें
• रोमवासी बहुदेववादी थे। लोग जूपिटर, जूनो, मिनर्वा तथा मॉर्स जैसे देवी – देवताओं की पूजा करते थे।
• यहूदी धर्म रोमन साम्राज्य का एक अन्य बड़ा धर्म था।
• सम्राट डायोक्लीशियन द्वारा सीमाओं पर किले बनवाना।
• सम्राट कॉन्स्टैनटाइन ने ईसाई धर्म को राजधर्म बनाने का निर्णय लिया।
• साम्राज्य के पश्चिमी भाग में उत्तर से आने वाले समूहों – गोथ, बैंडल तथा लोम्बार्ड आदि ने बड़े प्रांतों पर कब्जा करके रोमोत्तर राज्य स्थापित कर लिए।
• प्रांतों का पुनर्गठन करना।
• सैनिक और असैनिक कार्यों को अलग करना।
• इस्लाम का विस्तार – ‘प्राचीन विश्व इतिहास की सबसे बड़ी राजनीतिक क्रान्ति।
रोमन साम्राज्य में सैनिक प्रबंध की विशेषताएं
- रोम सेना राजनीति की महत्वपूर्ण संस्था।
- व्यावसायिक सेना।
- सेवा करने की अवधि निश्चित होना।
- सबसे बड़ा एकल निकाय।
- सैनेट में सेना का डर।
- मतभेद होने पर गृहयुद्ध।
- आंदोलन व विद्रोह।
- शासक अथवा सम्राटों का भाग्य निर्धारित करने की शक्ति।
दास प्रजजन – गुलामों की संख्या बढ़ाने की एक ऐसी प्रथा थी जिसके अंतर्गत दासियों और उनके साथ मर्दो को अधिकाधिक बच्चे पैदा करने के लिए प्रोत्साहित किया जाता था। उनके बच्चे भी आगे चलकर दास ही बनते थे।
दास श्रमिकों के साथ समस्याएँ – रोम में सरकारी निर्माण कार्यों पर स्पष्ट रूप से मुक्त श्रमिकों का व्यापक प्रयोग किया जाता था क्योंकि दास – श्रम का बहुतायत प्रयोग बहुत मँहगा पड़ता था। भाड़े के मजदूरों के विपरीत गुलाम श्रमिकों को वर्ष भर रखने केए भोजन देना पड़ता था और उनके अन्य खर्चे भी उठाने पड़ते थे, जिससे इन गुलाम श्रमिकों को रखने की लागत बढ़ जाती थी। वेतनभोगी मजदुर सस्ते तो पड़ते ही थे उन्हें आसानी से छोड़ा और रखा जा सकता था।
रोमन साम्राज्य में श्रम – प्रबंधन की विशेषताएँ
• दास श्रम महंगा होने के कारण दासों को मुक्त किया जाने लगा।
• अब इन दासों या मुक्त व्यक्तियों को व्यापार प्रबंधक के रूप में नियुक्त किया जाने लगा।
• मालिक गुलामों अथवा मुक्त हुए गुलामों को अपनी ओर से व्यापार चलाने के पूँजी यहाँ तक की पूरा कारोबार सौप देते थे।
• मुक्त तथा दास दोनों प्रकार के श्रमिकों के लिए निरीक्षण सबसे महत्त्वपूर्ण पहलू था। निरीक्षण को सरल बनाने के लिए कामगारों को कभी – कभी छोटे दलों में विभाजित कर दिया जाता था।
• श्रमिकों के लिए छोटे – छोटे समूह बनाये गए थे जिससे ये पता लग सके कि कौन काम कर रहा है और काम चोरी।
अश्वारोही (इक्वाइट्स) – अश्वारोही (इक्वाइट्स) या नाइट वर्ग परंपरागत रूप से दूसरा सबसे अधिक शक्तिशाली और धनवान समूह था। मूल रूप से वे ऐसे परिवार थे जिनकी संपत्ति उन्हें घुड़सेना में भर्ती होने की औपचारिक योग्यता प्रदान करती थी, इसीलिए इन्हें इक्वाइट्स कहा जाता था।
अश्वारोही (इक्वाइट्स) या नाइट वर्ग की विशेषताएँ
• सैनेटरों की तरह अधिकतर नाइट जमींदार होते थे।
• ये सैनेटरों के विपरीत उनमें से कई लोग जहाजों के मालिक व्यापारी और साहूकार (बैंकर) भी होते थे यानी वे व्यापारिक क्रियाकलापों में संलग्न रहते थे।
• इन्हें जनता का सम्माननीय वर्ग माना जाता था जिनका संबंध महान घरानों से था।
You Can Join Our Social Account
Youtube | Click here |
Click here | |
Click here | |
Click here | |
Click here | |
Telegram | Click here |
Website | Click here |