NCERT Solutions Class 11th Hindi अंतरा Chapter – 14 संध्या के बाद
Textbook | NCERT |
Class | Class 11th |
Subject | Hindi |
Chapter | Chapter – 14 |
Grammar Name | संध्या के बाद |
Category | Class 11th Hindi अंतरा अभ्यास प्रश्न – उत्तर |
Medium | Hindi |
Source | Last Doubt |
NCERT Solutions Class 11th Hindi अंतरा Chapter – 14 संध्या के बाद
?Chapter – 14?
✍संध्या के बाद✍
?प्रश्न – उत्तर ?
अभ्यास प्रश्न – उत्तर
प्रश्न: 1. संध्या के समय प्रकृति में क्या-क्या परिवर्तन होते हैं, कविता के आधार पर लिखिए।
?♂️उत्तर – संध्या के समय सूर्य का प्रकाश लाल आभा लिए हो जाता है। पीपल के पत्ते ताम्र वर्ण के हो जाते हैं। वे पेड़ से गिरते ऐसे लगते हैं मानो सुनहरी आभा लिए झरने विभिन्न धारा में बह रहे हैं। सूर्य रूपी खंभा धरती में जाता हुआ लगता है। क्षितिज में सूरज गायब हो जाता है। गंगा का जल चितकबरा लगने लगता है।
प्रश्न: 2. पंत जी ने नदी के तट का जो वर्णन किया है, उसे अपने शब्दों में लिखिए।
?♂️उत्तर – नदी के तट पर ध्यान में मगन वृद्ध औरतें ऐसे प्रतीत हो रही हैं, मानो शिकार करने के लिए नदी किनारे खड़े बगुलें हों। पंत जी ने कविता में वृद्ध औरतों की बहुत सुंदर उपमा दी है। उनके दुख को भी बहुत सुंदर ढंग से प्रस्तुत किया है। नदी की मंथर धारा को वृद्ध औरतों के मन में बहने वाले दुख के समान बताया गया है। इस तरह से वृद्ध औरतें और बगुले दोनों ही नदी किनारे में मिलते हैं। उनके सफेद रंग के कारण कवि ने बहुत सुंदर उपमा देकर दोनों को एक कर दिया है।
प्रश्न: 3. बस्ती के छोटे से गाँव के अवसाद को किन-किन उपकरणों द्वारा अभिव्यक्त किया गया है?
?♂️उत्तर – बस्ती में विद्यमान छोटे से गाँव के अवसाद को इनके माध्यम से अभिव्यक्त किया गया है-
• गाँव में घरों के अंदर प्रकाश करने के लिए तेल की ढिबरी का प्रयोग किया जाता है। यह प्रकाश बहुत कम देती है मगर इससे धुआँ अधिक होता है।
• लोगों के मन का अवसाद उनकी आँखों में जालों के रूप में विद्यमान रहता है।
• उनके दिल का क्रंदन तथा मूक निराशा दीए की लौ के साथ कांपती है।
• गाँव का बनिया ग्राहकों का इंतज़ार करके ऊँघ जाता है।
प्रश्न: 4. लाला के मन में उठनेवाली दुविधा को अपने शब्दों में लिखिए।
?♂️उत्तर – लाला यह सोचता है कि उसे ही दुख, गरीबी और उत्पीड़न क्यों झेलना पड़ रहा है? उसे सुख क्यों नहीं प्राप्त है? वह अपने नाते-रिश्तेदारों को साफ़-सुथरा घर क्यों नहीं दे पाता? वह शहर में रहने वाले बनियों के समान उठ क्यों नहीं पाता? वह उनके जैसा ही महाजन क्यों नहीं बन पाता? उसकी तरक्की के साधन किसके द्वारा रोके गए हैं? वह सोचता है कि कुछ ऐसा नहीं हो सकता है, जिससे उसे भी उन्नति करने के अवसर प्राप्त हों। ये दुविधाएँ उसके मन में उठ रही हैं।
प्रश्न: 5. सामाजिक समानता की छवि की कल्पना किस तरह अभिव्यक्त हुई है?
?♂️उत्तर – सामाजिक समानता की छवि की कल्पना इस प्रकार अभिव्यक्त हुई है-
• कर्म तथा गुण के समान ही सकल आय-व्यय का वितरण होना चाहिए।
• सामूहिक जीवन का निर्माण किया जाए।
• सब मिलकर नए संसार का निर्माण करें।
• सब मिलकर सभी प्रकार की सुख-सुविधाओं का भोग करें।
• समाज को धन का उत्तराधिकारी बनाया जाए।
• सभी व्याप्त वस्त्र, भोजन तथा आवास के अधिकारी हों।
• श्रम सबमें समान रूप से बँटें।
प्रश्न: 6. ‘कर्म और गुण के समान …….. हो वितरण’ पंक्ति के माध्यम से कवि कैसे समाज की ओर संकेत कर रहा है?
?♂️उत्तर – इस पंक्ति में कवि ऐसे समाज की कल्पना कर रहा है, जहाँ का वितरण मनुष्य के कर्म और गुणों के आधार पर होना चाहिए। ऐसे में प्रत्येक मनुष्य को उसके गुणों और कार्य करने की क्षमता के आधार पर कार्य मिलेगा, इससे आय का सही प्रकार से बँटवारा हो सकेगा। ये समाजवाद के गुण हैं, जिसमें किसी एक वर्ग का आय-व्यय पर अधिकार नहीं होता है। सबको समान अधिकार प्राप्त होते हैं।
प्रश्न: 7. निम्नलिखित पंक्तियों का काव्य-सौंदर्य स्पष्ट कीजिए-
(क) तट पर बगुलों-सी वृद्धाएँ
विधवाएँ जप ध्यान में मगन,
मंथर धारा में बहता
जिनका अदृश्य, गति अंतर-रोदन!
?♂️उत्तर – प्रस्तुत पंक्तियों में कवि ने बहुत ही सुंदर और मार्मिक रूप में प्रकृति का चित्रण किया है। कवि कहता है जिस तरह तट पर बगुले शिकार प्राप्त करने के उद्देश्य से मंथर धारा में खड़े रहते हैं, ऐसे ही गाँव की वृद्ध औरतें ध्यान करने हेतु नदी के किनारे पर खड़ी हैं। उनके हृदय में दुख की मंथन धारा बह रही है। इस काव्यांश की प्रत्येक पंक्ति में काव्य सौंदर्य अद्भुत जान पड़ता है। पहली पंक्ति में ‘बगुलों-सी वृद्धाएँ’ में उपमा अलंकार है। कवि ने तत्सम शब्दों का प्रयोग करके अपनी बात को बहुत सुंदर रूप में चित्रित किया है।
प्रश्न: 8. आशय स्पष्ट कीजिए-
(क) ताम्रपर्ण, पीपल से, शतमुख/झरते चंचल स्वर्णिम निर्झर!
(ख) दीप शिखा-सा ज्वलित कलश/नभ में उठकर करता नीराजन!
(ग) सोन खगों की पाँति/आर्द्र ध्वनि से नीरव नभ करती मुखरित!
(घ) मन से कढ़ अवसाद श्रांति/आँखों के आगे बुनती जाला!
(ङ) क्षीण ज्योति ने चुपके ज्यों/गोपन मन को दे दी हो भाषा!
(च) बिना आय की क्लांति बन रही/सके जीवन की परिभाषा!
(छ) व्यक्ति नहीं, जग की परिपाटी/दोषी जन के दुःख क्लेश की।
?♂️उत्तर –
(क) पीपल के सूखे पत्ते ऐसे लग रहे हैं मानो ताँबे धातु से बने हों। वह पेड़ से गिरते हुए ऐसे लग रहे हैं मानो सैंकड़ों मुँह वाले झरनों से सुनहरे रंग की धाराएँ गिर रही हों।
(ख) मंदिर के शिखर पर लगा कलश सूर्य की रोशनी के प्रभाव से दीपक की जलती लौ के समान लग रहा है। ऐसा लग रहा है मानो संध्या आरती में वह भी लोगों के समान आरती कर रहा है।
(ग) आकाश में व्याप्त खग नामक पक्षी पंक्ति में उड़ रहे हैं। उनकी गुंजार शांत आकाश को गुंजार से भर देती है।
(घ) मनुष्य के मन में व्याप्त दुख तथा कष्ट उसकी आँखों में यादों के रूप में उभर आते हैं।
(ङ) घरों में विद्यमान दीपक जल उठे हैं। इस अंधकार में उसकी रोशनी अवश्य कमज़ोर है। उस कमज़ोर ज्योति ने लगता है गोपों के मन को एक आशा दे दी है।
(च) गाँव में लोगों के पास आय का साधन विद्यमान नहीं है। अतः उसके जीवन में बहुत दुख विद्यमान हैं। ऐसा लगता है कि मानो यह अभाव उसकी कहानी बनकर रह जाएँगे।
(छ) दोष से युक्त सामाजिक व्यवस्था ही मनुष्य के दुख का कारण है। धन के असमान बँटवारे के कारण ही समाज में अंतर व्याप्त है।
योग्यता-विस्तार
प्रश्न: 1. कविता में निम्नलिखित उपमान किसके लिए आए हैं, लिखिए-
(क) ज्योति स्तंभ-सा – …………
(ख) केंचुल-सा – …………
(ग) दीपशिखा-सा – ………..
(घ) बगुलों-सी – ………..
(ङ) स्वर्ण चूर्ण-सी – ………..
(च) सनन् तीर-सा – …………
?♂️उत्तर –
(क) ज्योति स्तंभ-सा – सूरज
(ख) केंचुल-सा – गंगा का जल
(ग) दीपशिखा-सा – कलश
(घ) बगुलों-सी – वृद्ध औरतें
(ङ) स्वर्ण चूर्ण-सी – गायों के पाँव से उड़ने वाली गोधूलि
(च) सनन् तीर-सा – कंठों का स्वर
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