NCERT Solutions Class 10th Social Science History Chapter – 8 उपन्यास, समाज और इतिहास (Novels, Society and History)
Text Book | NCERT |
Class | 10th |
Subject | Social Science (History) |
Chapter | 8th |
Chapter Name | उपन्यास, समाज और इतिहास (Novels, Society and History) |
Category | Class 10th Social Science History |
Medium | Hindi |
Source | Last Doubt |
NCERT Solutions Class 10th Social Science History Chapter – 8 मुद्रण संस्कृति उपन्यास, समाज और इतिहास (Novels, Society and History)
?Chapter – 8?
✍उपन्यास, समाज और इतिहास✍
?Question Answer?
NCERT Solution Class 10th Social Science इतिहास ( Chapter – 8) Q. 1 प्रश्न 1. इनकी व्याख्या करें (क) ब्रिटेन में आए सामाजिक बदलावों से पाठिकाओं की संख्या में इजाफा हुआ। ?♂️उत्तर – (क) अठारहवीं सदी में मध्यवर्ग और संपन्न हुए। इससे महिलाओं को उपन्यास पढ़ने और लिखने का अवकाश मिल सका। उपन्यासों में महिला जगत को, उसकी भावनाओं, उसके तजुर्बो, मसलों और उसकी पहचाने से जुड़े मुद्दों को समझा-सराहा जाने लगा। कई सारे उपन्यास घरेलू जिंदगी पर केंद्रित थे। इनमें महिलाओं को अधिकार के साथ बोलने का अवसर मिला। बदलती मान्यताओं व परिस्थितियों के बीच महिलाएँ भी लिखने लगीं। उनकी लेखनी ने गृहस्थिन चरित्रों को लोकप्रिय बनाया और ऐसी औरतों के किरदार गढ़े जो सामाजिक मान्यताओं को मानने से पहले उनसे लड़ती हैं। इन सब बदलावों व कारणों से महिलाओं में पढ़ने की रुचि बढ़ी और पाठिकाओं की संख्या में इज़ाफ़ा हुआ। (ख) डैनियल डेफ़ो कृत रॉबिन्सन क्रूसो एक साहसिक यात्री है लेकिन उसके बहुत-से कृत्य ऐसे हैं, जिससे वह ठेठ उपनिवेशवादी दिखाई देता है। जैसे वह दास व्यापार करता है तथा गैर गोरे लोगों को बराबरी का इंसान नहीं मानता बल्कि अपने से हीनतर जीव मानता है। एक ‘देसी’ को मुक्त कराकर उसे वह अपना गुलाम बना लेता है। वह उससे उसका नाम भी नहीं पूछता और अपनी तरफ़ से उसे फ्राइडे कह कर पुकारता है। क्रूसो का यह व्यवहार उस समय के उपनिवेशवादी व्यवहार का एक उदाहरण है जो उसे एक ठेठ उपनिवेशवादी बनाता है। (ग) समाज के गरीब तबके काफ़ी समय तक पुस्तकों व प्रकाशन के बाजार से बाहर रहे। शुरू-शुरू में उपन्यास काफ़ी महँगे थे तथा गरीब लोगों की पहुँच से दूर थे। 1740 मे किराए पर चलने वाले पुस्तकालयों की स्थापना के बाद लोगों के लिए किताबें सुलभ हो गईं, तकनीकी सुधार से भी छपाई के खर्चे में कमी आई और मार्केटिंग के नए तरीकों से किताबों की बिक्री बढ़ी और गरीब लोग भी उपन्यास पढ़ने लगे। (घ) भारत में आधुनिक उपन्यास लेखन 19वीं सदी में प्रारंभ हुआ। प्रारंभ से ही औपनिवेशिक इतिहासकारों द्वारा लिखे गए इतिहास में हिंदुस्तानियों को आमतौर पर कमजोर, आपस में विभाजित और अंग्रेज़ों पर निर्भर बताया जाता था। ऐसे इतिहास से भारत के बौद्धिकों को असंतोष था।
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NCERT Solution Class 10th Social Science इतिहास ( Chapter – 8) Q. 2 प्रश्न 2. तकनीक और समाज में आए हुए बदलावों के बारे में बतलाइए जिनके चलते अठारहवीं सदी के यूरोप में उपन्यास पढ़ने वालों की संख्या में वृद्धि हुई।
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NCERT Solution Class 10th Social Science इतिहास ( Chapter – 8) Q. 3 प्रश्न 3. निम्नलिखित पर टिप्पणी लिखें (क) उड़िया उपन्यास ?♂️उत्तर – (क) उड़िया उपन्यास – उड़िया उपन्यास की शुरुआत 1877-78 में नाटककार रामशंकर राय द्वारा रचित सौदामिनी के नाम से हुई। उन्होंने इसका धारावाहिक प्रकाशन शुरू किया। 30 साल के अन्दर उड़ीसा में फकीर मोहन सेनापति एक प्रमुख उपन्यासकार के रूप में उभरे। उन्होंने एक उपन्यास ‘ छ: माणो आठौ गुंठो’ (1902) लिखा जिसका शाब्दिक अर्थ है-छह एकड़ और बत्तीस कट्टे ज़मीन। इस उपन्यास के साथ एक नए किस्म के उपन्यास की धारा शुरू हुई, जिसमें ज़मीन और उस पर हक के सवाल को उठाया जाने लगा। इस उपन्यास में रामचंद्र मंगराज की कहानी है जो एक जमीदार के यहाँ मैनेजर की नौकरी करता है। यह मैनेजर अपने आलसी और पियक्कड़ मालिक को ठगता है और नि:संतान बुनकर पति-पत्नी भगिया और सरिया की उपजाऊ जमीन को हथियाने की तरकीब सोचता रहता है। यह उपन्यास मील का पत्थर साबित हुआ और इसने साबित कर दिया कि उपन्यास के ज़रिये ग्रामीण मुद्दों को भी गहरी सोच का अहम हिस्सा बनाया जा सकता है। उड़िया के इस उपन्यास ने उड़ीसा के अलावा बंगाल व अन्य स्थानों के लेखकों के लिए रास्ता खोल दिया था। (ख) जेन ऑस्टिन द्वारा औरतों का चित्रण – जेन ऑस्टिन के उपन्यासों में हमें उन्नीसवीं सदी के ब्रिटेन के ग्रामीण कुलीन समाज की झाँकी मिलती है। हमें ऐसे समाज के बारे में सोचने की प्रेरणा मिलती है जहाँ महिलाओं को धनी या जायदाद वाले वर खोजकर ‘अच्छी’ शादियाँ करने के लिए उत्साहित किया जाता था। जेन ऑस्टिन के उपन्यास ‘प्राइड एंड प्रेज्युडिस’ की पहली पंक्ति में लिखा गया-‘यह एक सर्वस्वीकृत सत्य है कि कोई अकेला आदमी अगर मालदार है तो उसे एक अदद बीवी की तलाश होगी।’ इस बयान से हम ऑस्टिन के समाज को समझ सकते हैं कि उनके उपन्यासों की औरतें क्यों हमेशा अच्छी शादी और पैसे की फ़िराक में रहती हैं। (ग) उपन्यास ‘परीक्षा-गुरु’ में नए मध्यवर्ग की तस्वीर – उपन्यास ‘ परीक्षा-गुरु’ में नए मध्यवर्ग की तस्वीर को दर्शाया गया है।
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चर्चा करें
प्रश्न 1. उन्नीसवीं सदी के ब्रिटेन में आए ऐसे कुछ सामाजिक बदलावों की चर्चा करें, जिनके बारे में टॉमस हार्डी और चार्ल्स डिकेन्स ने लिखा है। टॉमस हार्डी – हाड इंग्लैंड के 19वीं सदी के उपन्यासकार थे। उन्होंने यहाँ पर तेजी से नष्ट होते ग्रामीण समुदायों के बारे में लिखा। उनके समय में बड़े किसानों ने अपनी जमीनों को बाड़ाबंद करके मजदूरों को मशीनों पर लगाकर बाज़ार के लिए उत्पादन करना प्रारंभ कर दिया था। इस बदलाव की झलक उनके उपन्यास ” मेयर ऑफ कास्टरब्रिज” (1886) में मिलती है। यह कहानी माइकल हेंचर्ड की है, जो पहले अनाज व्यापारी था, बाद में कैस्टरब्रिज नामक ग्रामीण क्षेत्र का मेयर बनता है। वह एक स्वतंत्र विचारों वाला व्यक्ति है जो अपने तरीके से व्यापार करता है। परन्तु अपने कर्मचारियों के प्रति उसका व्यवहार अनिश्चित-कभी दयालु, कभी निर्दयी होता है। अतः वह अपने प्रबंधक व प्रतिद्वंदी के सामने टिक नहीं पाता। उसका प्रतिद्वंदी डॉनल्ड फ़ारफ्रे की प्रबंधन तकनीक सक्षम थी और लोगों का मानना था सभी के साथ उसका व्यवहार शालीन था। इस उपन्यास में जहाँ हार्डी नष्ट होती प्राचीन व्यवस्था के प्रति चिंतित थे, वहीं पुरानी व्यवस्था की कमियों व नई अच्छाइयों के प्रति सचेत हैं। उनकी भाषा शैली आम लोगों की भाषा है तथा उन्होंने अलग-अलग बोलियों से निकटता बनाकर अपने उपन्यास में एक राष्ट्र के विविध समुदायों की साझा दुनिया रची है। अत: इस उपन्यास की भाषा के लिए तत्कालीन प्रचलित भाषाओं की अलग-अलग शैलियों से सामग्री ली। इस प्रकार उन्होंने अपने शास्त्रीय तथा सड़क छाप दोनों तरह की भाषाओं को मिलाकर अपने उपन्यास की रचना की। इस तरह से उनके उपन्यास ने कई संस्कृतियों को एकत्र करने का कार्य किया। चार्ल्स डिकेन्स – (1812-70)-डिकेन्स भी इंग्लैंड के उपन्यासकार थे। उनके समय में यूरोप औद्योगिक युग में प्रवेश कर रहा था, फैक्ट्रियों का निर्माण तथा व्यवसाय में मुनाफे की वृद्धि के कारण अर्थव्यवस्थाओं का विस्तार हो रहा था। परंतु इसी के साथ कई समस्याएँ जैसे मजदूरों की समस्याएँ, अधिक काम और कम मजदूरी (शहरों में), गरीबी, बेरोजगारी, इनका वर्कहाउस या रैन बसेरों में शरण लेना आदि उजागर होने लगी थीं। औद्योगिक प्रगति के साथ-साथ मुनाफाखोरों को सही व मजदूरों को कमतर इन्सान मानने की प्रवृत्ति बढ़ गई थी। चार्ल्स डिकेन्स ने इसी प्रवृत्ति की निंदा करते हुए लिखा। उनके उपन्यास ‘हार्ड टाइम्स’ (1854) में कोकटाउन, जो कि एक उदास काल्पनिक औद्योगिक शहर है, का वर्णन है। यहाँ मशीनों की भरमार है, धुआँ उगलती चिमनियाँ, प्रदूषण और मकान सब उदासीन हैं। मजदूरों को यहाँ ‘हाथ’ की संज्ञा दी जाती है, जिनका अस्तित्व मशीनों को चलाने तक सीमित है। इस उपन्यास में उन्होंने ‘लाभ के मोह’ तथा इंसान को मशीन मानने की प्रवृति की कड़ी निंदा की है। अपने उपन्यास ओलिवर ट्विस्ट’ (1838) में उन्होंने एक अनाथ बच्चे ओलिवर की कहानी को लिखा है, जिसे परिस्थितिवश छोटे-मोटे अपराधियों व भिखारियों के साथ रहना पड़ता है। वह एक निर्मम वर्कहाउस में पलता और बढ़ता है तथा बाद में एक अमीर उसे गोद ले लेता है। इसके बाद उसका जीवन सुखद हो जाता है। इस प्रकार उन्होंने अपने उपन्यासों के माध्यम से औद्योगिक युग के दौरान सभी पक्षों की समस्याओं का चित्रण बड़े ही प्रभावशाली ढंग से किया है जिस कारण आज भी उनके उपन्यास बड़ी उत्सुकता से पढ़े जाते हैं। |
प्रश्न 2. उन्नीसवीं सदी के यूरोप और भारत, दोनों जगह उपन्यास पढ़ने वाली औरतों के बारे में जो चिंताएँ पैदा हुई उसे संक्षेप में लिखें। इन चिंताओं से इस बारे में क्या पता चलता है कि उस समय औरतों को किस तरह देखा जाता था? उन्नीसवीं सदी के भारत में भी अनेक लोगों को यह चिंता थी कि पता नहीं उपन्यासों के कल्पना-लोक का औरतों के जेहन पर क्या असर पड़े। उन्हें लगता था कि इससे वे भटक जाएँगी। इसलिए कुछ लोगों ने पत्र-पत्रिकाओं में लेख लिखकर यह अपील की कि वे उपन्यासों के नैतिक दुष्प्रभाव से बचें। यह निर्देश खासतौर पर महिलाओं व बच्चों के लिए था। ऐसा माना जाता था कि उन्हें आसानी से बहकाया जा सकता है। यूरोप व भारत के परंपरागत लोगों में महिलाओं द्वारा उपन्यास पढ़ने को लेकर चिंता से पता चलता है कि उस समय महिलाओं को आश्रित और मर्दो के मुकाबले कमतर बुद्धिमान माना जाता था। यह माना जाता था कि उन्हें आसानी से बहकाया जा सकता है, इसलिए वे पढ़-लिखकर या उपन्यासों की कल्पनाशीलता से प्रभावित होकर बिगड़ जाएँगी । इससे उस काल की महिलाओं की बंदिशों का भी पता चलता है कि वे अपने निर्णय स्वयं लेने की स्थिति में नहीं थीं। |
प्रश्न 3. औपनिवेशिक भारत में उपन्यास किस तरह औपनिवेशकारों और राष्ट्रवादियों, दोनों के लिए लाभदायक था? 1. उपनिवेशिकों के लिए –
2. भारतीय राष्ट्रवादियों के लिए –
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प्रश्न 4. इस बारे में बताएँ कि हमारे देश में उपन्यासों में जाति के मुद्दे को किस तरह उठाया गया। किन्हीं दो उपन्यासों का उदाहरण दें और बताएँ कि उन्होंने पाठकों को मौजूदा सामाजिक मुद्दों के बारे में सोचने को प्रेरित करने के लिए क्या प्रयास किए? 1. चंदू मेनन कृत ‘इंदुलेखा’ –
2. पोथेरी कुंजांबु द्वारा रचित ‘सरस्वती विजयम्’ –
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प्रश्न 5. बताइए कि भारतीय उपन्यासों में एक अखिल भारतीय जुड़ाव का अहसास पैदा करने के लिए किस तरह की कोशिशें की गईं?
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परियोजना कार्य
प्रश्न 1. कल्पना कीजिए कि आप सन् 3035 के इतिहासकार हैं। अभी आपने दो ऐसे उपन्यास देखे हैं जो बीसवीं सदी में लिखे गए थे। उन उपन्यासों से आपको उस जमाने के समाज और रीति-रिवाज के बारे में क्या पता चलता है? चन्द्रमा पर बसी हुई बस्तियों पर भी मानव का आना जाना है तथा सूदूर अंतरिक्ष की कई बुद्धिमान सभ्यताओं से भी मानव का सम्पर्क बना हुआ है। फिर भी मानव के सामने नई-नई समस्याएँ अंतरिक्ष की लड़ाका सभ्यताओं के आक्रमण से उत्पन्न होती रहती हैं। समाज में सभी साइवोर्ग (मशीनी मानव) समानता एवं एकता के साथ रहते हैं। सभी औद्योगिक व उत्पादन के कार्य मशीनी रोबोटों द्वारा किये जाते हैं यद्यपि इनमें मानवीय मस्तिष्क की कुछ क्षमताओं को डाला जाता है फिर भी साइवोर्ग (मशीनी मानव) इन्हें नियंत्रण में रखने के लिए इनके रिमोट फ्यूज अपने पास में रखते हैं। सभी कुछ स्वतः होता रहता है। मानव आज भी अपने भविष्य को लेकर चिंतित है और इसीलिए अपने विकास को अपने इतिहास के परिप्रेक्ष्य में समझने का प्रयत्न करता है। इसी संदर्भ में इतिहास को अपने सुपर कंप्यूटरों की मदद से खोजते हुए मुझे बीसवीं शताब्दी के भारत नामक देश के एक उपन्यासकार मुंशी प्रेमचंद के लिखे दो उपन्यास गोदान और रंगभूमिदेखने को मिले। इन दोनों उपन्यासों से उस जमाने के बारे में बड़ी ही रोचक जानकारी मिलती है : 1. इन उपन्यासों से पता चलता है कि उस काल में विश्व देशों में बँटा हुआ था तथा देश राज्यों में। भारतीय समाज में विभिन्न वर्ग थे। कुछ लोगों का जमीनों पर आधिपत्य था तथा कुछ लोग उनकी जमीनों पर कार्य करते थे। समाज में सत्ता के मालिक लोग-जमींदार, महाजन, पुजारी और औपनिवेशिक नौकरशाह थे। ‘गोदान’ में किसान होरी और उसकी पत्नी धनिया को ये लोग अपने दमन चक्र में ऐसा फाँसते हैं कि वे भूमिहीन मज़दूर बन जाते हैं। पर सबके बावजूद होरी और धनिया अपनी गरिमा बनाए रखते हैं। 2. इस तरह दूसरे उपन्यास रंगभूमि का केन्द्रीय चरित्र, सूरदास तथाकथित अछूत जाति का ज्योतिहीन भिखारी है। इस चरित्र को तम्बाकू फैक्ट्री के लिए अपनी जमीन को कब्जा होने से बचाने के लिए संघर्ष करते हुए प्रस्तुत किया गया है। उस जमाने में मानव की औद्योगीकरण की शुरूआत और उसके मानव के जीवन पर पड़ने वाले प्रभाव को बताया। गया है। इससे हम यह सोचने पर मजबूर होते हैं कि इस औद्योगीकरण से किसको फायदा हुआ। क्या मानव विकास सही दिशा में हुआ है? आज 3035 के एक इतिहासकार होने के नाते बीसवीं सदी के उपन्यासों से प्राप्त जानकारी से जहाँ यह पता चलता है उस समय मानव किस तरह वर्गों, जातियों, अमीरी-गरीबी के संघर्षों में फँसा रहता था। वहीं यह तथ्य भी निकलता है। कि मानव शुरू से ही संघर्षशील रहा है तथा हर काल व समय में वह अपनी समस्याओं का मुकाबला करने में सक्षम रहता है। जैसे औद्योगीकरण की शुरूआत मानव के लिए फायदे व नुकसान दोनों लेकर आई वैसे ही हम 3035 ई० की अपनी मशीनी समस्याओं को भी उसी परिप्रेक्ष्य में समझ सकते हैं कि आखिर मानव ने क्या पाया है और क्या पाना चाहता है? |
NCERT Solution Class 10th इतिहास Question Answer in Hindi