NCERT Solutions Class 10th Social Science History Chapter – 2 भारत में राष्ट्रवाद (Nationalism in India)
Text Book | NCERT |
Class | 10th |
Subject | Social Science (History) |
Chapter | 2rd |
Chapter Name | भारत में राष्ट्रवाद (Nationalism in India) |
Category | Class 10th Social Science (History) |
Medium | Hindi |
Source | Last Doubt |
NCERT Solutions Class 10th Social Science History Chapter – 2 भारत में राष्ट्रवाद (Nationalism in India) Question & Answer In Hindi इसमें हम भारत में राष्ट्रवाद कैसे हुआ था?, भारत में राष्ट्रवाद से आप क्या समझते हैं?, राष्ट्रवाद क्या है कक्षा 10?, भारत में राष्ट्रवाद उपनिवेशवाद विरोधी आंदोलन से कैसे विकसित हुआ?, राष्ट्रवाद के कारण कौन से हैं?, राष्ट्रवाद की विशेषता क्या है?, राष्ट्रवाद के सिद्धांत क्या हैं?, राष्ट्रवाद और उदाहरण क्या है?, राष्ट्रवाद का उदय कैसे हुआ?, राष्ट्रवाद कहां से शुरू हुआ?, राष्ट्रवाद शुरू करने वाला पहला देश कौन सा है?, राष्ट्रवाद पर निबंध कैसे लिखें?, भारतीय राष्ट्रवाद के उदय के क्या कारण थे?, राष्ट्रवाद का प्रकार कौन है?, राष्ट्रवाद का उदय कब हुआ?, राष्ट्रवाद का महत्व क्या है?, राष्ट्रवाद की नई परिभाषा किसने दी थी वह कौन था?, राष्ट्रवाद क्यों महत्वपूर्ण हो गया?, राष्ट्रवाद का जनक कौन था?, भारत में राष्ट्रवाद का उदय किसने दिया? आदि के बारे में हम पढ़ेंगे। |
NCERT Solutions Class 10th Social Science History Chapter – 2 भारत में राष्ट्रवाद (Nationalism in India)
Chapter – 2
भारत में राष्ट्रवाद
प्रश्न – उत्तर
प्रश्न 1. व्याख्या करें
(क) उपनिवेशों में राष्ट्रवाद के उदय की प्रक्रिया उपनिवेशवाद विरोधी आंदोलन से जुड़ी हुई क्यों थी?
उत्तर – औपनिवेशिक शासकों के विरुद्ध संघर्ष के दौरान लोग अपनी एकता को बचाने लगे थे उनका समान रूप से उत्पीड़न और दमन हुआ था। इस साझा अनुभव ने उन्हें एकता के सूत्र में बांध दिया। वे यह जान गए थे कि विदेशी शासकों को एकजुट होकर ही देश से बाहर निकाला जा सकता है । उनकी इस भावना ने भी राष्ट्रवाद के उदय में सहायता पहुंचाई।
(ख) पहले विश्व युद्ध ने भारत में राष्ट्रीय आंदोलन के विकास में किस प्रकार योगदान दिया?
उत्तर – भारत में राष्ट्रीय आंदोलन के विकास में प्रथम विश्व युद्ध के योगदान का वर्णन इस प्रकार है-
• करों में वृद्धि – पहले विश्व युद्ध के कारण रक्षा खर्च एकाएक बढ़ गया।इस खर्च को पूरा करने के लिए सरकार ने करों में वृद्धि कर दी। इसके अतिरिक्त सीमा शुल्क भी बढ़ा दिया गया। आयकर के रूप में नया कर भी लगा दिया गया।इससे जनता में रोष फैल गया जिसने राष्ट्रवाद को जन्म दिया।
• कीमतों में वृद्धि – पहले विश्व युद्ध के दौरान खाद्य पदार्थों का भारी अभाव हो गया। फल स्वरूप कीमतें लगभग दोगुनी हो गई। आम आदमी का जीवन दुखमय हो गया। अतः लोग विदेशी प्रशासन से मुक्ति के बारे में सोचने लगे यह सोच राष्ट्रीय आंदोलन का आधार बनी।
• सिपाहियों की जबरन भर्ती – विश्व युद्ध में अत्यधिक सैनिकों के मारे जाने के कारण सरकार को ज्यादा से ज्यादा सैनिकों की जरूरत थी। अतः गांव से नौजवानों को जबरदस्ती सेना में भर्ती किया गया। इससे ग्रामीण क्षेत्रों में सरकार के प्रति विशेष गुस्सा था।
• भारतीय उद्योगपतियों में रोष – भारत में अब विदेशी पूंजी बड़े पैमाने पर लगाए जाने लगी। भारतीय उद्योगपति चाहते थे कि सरकार आयातों पर भारी कस्टम ड्यूटी लगाए तथा उन्हें सुविधाएं देकर भारतीय उद्योगों को सुरक्षा प्रदान करें।अब उन्हें भी आभास होने लगा कि केवल एक दृढ़ राष्ट्रवादी आंदोलन तथा एक स्वाधीन भारतीय सरकार के द्वारा ही सुरक्षा के लक्ष्य प्राप्त किए जा सकते हैं।
• मजदूरों तथा दस्तकारों में रोष – आर्थिक शोषण से पीड़ित बेरोज़गारी तथा महंगाई से पीड़ित मजदूर तथा दस्तकार भी राष्ट्रीय आंदोलन में सक्रिय हुए थे। उनके लिए जीवन निर्वाह करना भी कठिन था। वे सोचने लगे कि यदि भूखा ही मरना है तो स्वदेशी सरकार की छाया में ही क्यों न मरा जाए। अतः वे स्वतंत्रा के लिए कोई भी बलिदान देने के लिए तत्पर हो उठे। इस तरह भारतीय समाज के सभी वर्ग अंग्रेजी सरकार की नीतियों से पीड़ित थे। अतः उन्होंने स्वतंत्रता प्राप्ति के लिए राष्ट्रवादी आंदोलन आरंभ कर दिया।
(ग) भारत के लोग रॉलट एक्ट के विरोध में क्यों थे?
उत्तर – रॉलट एक्ट इंपीरियल लेजिस्लेटिव काउंसिल द्वारा 1990 में पारित किया गया। इस एक्ट को काला कानून के नाम से भी जाना जाता है। प्रथम महायुद्ध के कारण भारत को बहुत सी समस्याओं का सामना करना पड़ा। इस समय में भारत में राष्ट्रीय आंदोलन का प्रसार अंग्रेजी साम्राज्य के लिए घातक सिद्ध हो सकता था।
अतः सरकार ने राष्ट्रीय आंदोलन का दमन करने के लिए रॉलट एक्ट पारित कर दिया। इस अधिनियम के अनुसार सरकार को राजनीतिक गतिविधियों को कुचलने और राजनीतिक कैदियों को 2 साल तक बिना कैस चलाए नजरबंद करने का अधिकार मिल गया।इस प्रकार इस अधिनियम ने भारतीयों की स्वतंत्रता पर प्रश्न चिन्ह लगा दिया। वह किसी भी पल राजनीतिक बंदी बनाए जाने के डर से चिंतित रहने लगे। ऐसी अवस्था में इस एक्ट का विरोध होना स्वाभाविक ही था।
(घ) गांधी जी ने असहयोग आंदोलन को वापस लेने का फैसला क्यों लिया?
उत्तर – असहयोग आंदोलन के कार्यक्रम को जनता तक पहुंचाने के लिए महात्मा गांधी तथा मुस्लिम नेताओं ने सारे देश का दौरा किया। परिणाम स्वरूप शीघ्र ही आंदोलन जोर पकड़ने लगा। विद्यार्थियों ने सरकारी विद्यालयों का बहिष्कार कर दिया। जनता ने बीच चौराहों पर विदेशी वस्तुओं की होली जलाई।
यह सभी गतिविधियां शांतिपूर्ण थी कि क्योंकि असहयोग आंदोलन अहिंसा पर आधारित था। दुर्भाग्यवश उत्तर प्रदेश के चौरी चौरा नामक स्थान पर बाज़ार से गुज़र रहा एक शांतिपूर्ण जुलूस पुलिस के साथ हिंसक टकराव में बदल गया और भीड़ ने पुलिस थाने को आग लगा दी। इस हिंसात्मक घटना से दुखी होकर 12 फरवरी, 1922 को गांधी जी ने असहयोग आंदोलन वापस लेने का फैसला कर लिया। आशा है कि यह उत्तर आपकी मदद करेगा।
प्रश्न 2. सत्याग्रह के विचार का क्या मतलब है?
उत्तर – सत्याग्रह के विचार का मूल आधार सत्य की शक्ति पर आग्रह तथा सत्य की खोज करना है। गांधी जी इसके प्रबल समर्थक थे तथा उन्होंने इसकी व्याख्या इस प्रकार की-
• अगर आपका उद्देश्य सच्चा है, यदि आपका संघर्ष अन्याय के खिलाफ है तो उत्पीड़क से मुकाबला करने के लिए आपको किसी शारीरिक बल की आवश्यकता नहीं।
• प्रतिशोध की भावना या आक्रमकता का सहारा लिए बिना सत्याग्रही केवल अहिंसा के सहारे भी अपने संघर्ष में सफल हो सकता है।
• इसके लिए दमनकारी शत्रु की चेतना को झिंझोड़ना चाहिए। उत्पीड़क शत्रु को ही नहीं बल्कि सभी लोगों को हिंसा के जरिए सत्य को स्वीकार करने पर विवश करने की बजाए सच्चाई को देखने और उसे सहज भाव से स्वीकार करने के लिए प्रेरित किया जाना चाहिए।
• इस संघर्ष में अंततः सत्य की ही जीत होती है। गांधी जी का अटूट विश्वास था कि अहिंसा का धर्म सभी भारतीयों को एकता के सूत्र में बाँध सकता है।
प्रश्न 3. निम्नलिखित पर अखबार के लिए रिपोर्ट लिखें
(क) जलियाँवाला बाग हत्याकांड
उत्तर –
संपादक
टॉइम्स ऑफ इंडिया
दिल्ली।
महोदय
आज 13 अप्रैल, 1919 ई० की शाम को जलियाँवाला बाग में भयंकर हत्याकांड हुआ जिसने विश्व मानवता को शर्मिंदा कर दिया। इसमें एक ओर अपने : प को सभ्य कहने वाली अंग्रेजी सरकार थी और दूसरी तरफ असभ्य, अशिक्षित माने जाने वाले भारतीय थे। यह घटना इस प्रकार घटी-डॉ० सैफुद्दीन किचलू और डॉ० सत्यपाल की गिरफ्तारी के विरुद्ध अमृतसर में सार्वजनिक हड़ताल हो गई है तथा हर जगह जनसभाओं का आयोजन हो रहा है।
इसी समय आज 13 अप्रैल को बैसाखी वाले दिन लोग बैसाखी के मेले में सम्मिलित होने के लिए इस बाग में बड़ी संख्या में एकत्र हुए। इसी बाग में एक शांतिपूर्ण जनसभा भी चल रही थी। अचानक जनरल डायर (जालंधर डिविजन का कमांडर) सेना की एक टुकड़ी के साथ यहाँ पहुँचा। उसने बाग के मुख्य द्वारों को बंद कर दिया तथा बिना किसी चेतावनी के निहत्थे लोगों पर गोली चलाने का आदेश दे दिया। यह गोलीबारी 10 मिनट तक चलती रही। चूँकि लोगों को बचाव का कोई मार्ग नहीं मिला इस कारण वे इसमें फँस गए। प्राप्त जानकारी के अनुसार एकत्र लोगों की संख्या 20 हजार के आस-पास थी। इसमें से 1000 लोग मारे गए हैं जबकि सरकारी आँकड़े यह संख्या 379 बता रहे हैं।
इस घटना की जानकारी जैसे ही लोगों को प्राप्त हुई उनमें सरकार के विरुद्ध आक्रोश और गुस्सा भड़क उठा है तथा अमृतसर तथा पंजाब के अन्य भागों में तनाव का माहौल बन गया है। अत: सरकार ने स्थिति पर काबू पाने के लिए सारे पंजाब में मार्शल लॉ लगा दिया है।
अतः मैं निवेदन करती हूँ कि इस समाचार को अपने अखबार के मुख्य पृष्ठ पर छापे, जिससे संपूर्ण विश्व और भारतवर्ष को इसकी जानकारी मिले । जो अंग्रेजी सरकार जनरल डायर को ब्रिटिश साम्राज्य का रक्षक कहकर सम्मानित कर रही है उसको उसके इस अमानवीय कृत्य के लिए दंडित किया जाए।
जय हिंद
भवदीया
क ख ग
(ख) साइमन कमीशन
उत्तर –
संपादक
नवजागरण
कलकत्ता।
महोदय,
3 फरवरी, 1928 ई० को इंग्लैंड की सरकार ने सर जॉन साइमन की अध्यक्षता में सात सदस्यों का एक कमीशन भारत भेजा। इसके मुख्य उद्देश्ये भारत में संवैधानिक व्यवस्था की कार्यशैली का अध्ययन करना तथा उसके बारे में सुझाव देने हैं। इस कमीशन में एक भी भारतीय सदस्य नहीं है। अतः इस कमीशन का घोर विरोध होने लगा है। इसको काले झंडे दिखाए जा रहे हैं और ‘साइमन वापस जाओ’ के नारे लगाए जा रहे हैं।
साइमन विरोधी प्रदर्शन का नेतृत्व लाला लाजपतराय कर रहे हैं। इस कमीशन में जहाँ कोई भी भारतीय सदस्य नहीं हैं वहीं इसकी रिपोर्ट अपूर्ण और अव्यावहारिक है। इसमें औपनिवेशिक साम्राज्य का उल्लेख नहीं किया गया है और न ही इसमें अधिराज्य की स्थिति को स्पष्ट किया गया है। इसमें केंद्र में उत्तरदायी सरकार की स्थापना का कोई उल्लेख नहीं किया गया।
कमीशन ने व्यस्क मताधिकार की मांग को भी अव्यावहारिक बताकर ठुकरा दिया है। अत: यह रिपोर्ट भारतीयों को संतुष्ट नहीं कर पा रही है। इसी कारण चारों ओर इसका विरोध हो रहा है। इस रिपोर्ट द्वारा सांप्रदायिकता को जो बढ़ावा दिया गया है यह सरकार के भारत के प्रति गलत उद्देश्यों को उजागर करता है।
अतः मैं आपसे निवेदन करती हूँ कि इस रिपोर्ट को आप अपने अखबार के मुख्य पृष्ठ पर छापकर भारतीयों की भावनाओं पर आघात करने वाली अंग्रेजी सरकार की आलोचना करें।
जय हिंद
भवदीया
क ख ग
प्रश्न 4. इस अध्याय में दी गई भारत माता की छवि और अध्याय 1 में दी गई जर्मेनिया की छवि की तुलना कीजिए।
उत्तर – भारत माता और जर्मेनिया की छवि की तुलना-
भारत माता की छवि | जर्मेनिया की छवि |
1. इस छवि को अवनींद्रनाथ टैगोर ने 1905 में बनाया। | 1. इस छवि को चित्रकार फिलिप वेट ने 1848 में बनाया। |
2. इसमें भारत माँ को अन्नपूर्णा के रूप में दर्शाया गया है जिसके एक हाथ में माला, एक में पुस्तक, एक में भोजन तथा एक में कपड़ा है जो वह भारतीयों को प्रदान कर रही है। | 2. इसमें जर्मेनिया को राइन नदी पर पहरा देते हुए दर्शाया गया है। |
3. भारत माता की दूसरी छवि में उसे संन्यासिनी के रूप में दर्शाया गया है जिसके एक हाथ में त्रिशूल है, जिस पर झंडा लहरा रहा है। वह हाथी और शेर के बीच खड़ी है। ये दोनों पशु शक्ति और सत्ता के प्रतीक हैं। | 3. जर्मेनिया के हाथ में तलवार है जिसपर खुदा है कि ‘जर्मन तलवार’ जर्मन राइन की रक्षा करती है। |
4. भारत माता की दोनो छवियों में शांत, गंभीर तथा आध्यात्मिक जैसे दैवीय गुणों के भाव प्रकट हो रहे हैं। | 4. जबकि जर्मेनिया की छवि रौद्र गुणों से युक्त राष्ट्रीयता व देशभक्ति का प्रतीक है। |
5. भारत माता की छवि श्रद्धा तथा राष्ट्रवाद के प्रति आस्था का प्रतीक है। | 5. जर्मेनिया की छवि रौद्र गुणों से युक्त राष्ट्रीयता व देशभक्ति का प्रतीक है। |
चर्चा करें
प्रश्न 1. 1921 में असहयोग आंदोलन में शामिल होने वाले सभी सामाजिक समूहों की सूची बनाइए। इसके बाद उनमें से किन्हीं तीन को चुन कर उनकी आशाओं और संघर्षों के बारे में लिखते हुए यह दर्शाइए कि वे आंदोलन में शामिल क्यों हुए?
उत्तर – 1921 में असहयोग आंदोलन में भारत के विभिन्न सामाजिक समूहों ने हिस्सा लिया लेकिन हरेक की अपनी-अपनी आकांक्षाएँ थीं।
आंदोलन में शामिल प्रमुख सामाजिक समूह निम्नलिखित थे-शिक्षित मध्यम वर्ग, भारतीय दस्तकार और मजदूर, भारतीय किसान, पूँजीपति वर्ग, जमींदार वर्ग तथा व्यापारिक वर्ग। सभी ने असहयोग आंदोलन में भाग लिया।
शिक्षित मध्यम वर्ग – शहरों में शिक्षित मध्यम वर्ग ने असहयोग आंदोलन की शुरूआत की। हजारों विद्यार्थियों ने स्कूल कॉलेज छोड़ दिए, शिक्षकों ने इस्तीफे दे दिए। वकीलों ने मुकदमें लड़ने बंद कर दिए।
शिक्षित वर्ग आंदोलन में शामिल इसलिए हुआ क्योंकि उन्होंने देखा कि उनके बराबर पढ़े-लिखे अंग्रेज उनके अफसर बन जाते थे।
भारतीय लोगों को वेतन भी अंग्रेजों के मुकाबले कम मिलता था। वे केवल क्लर्क ही पैदा होते थे और क्लर्क ही मर जाते थे। इस भेदभावपूर्ण नीति के कारण शिक्षित वर्ग अंग्रेज सरकार का विरोधी था।
व्यापारी वर्ग – बहुत से स्थानों पर व्यापारियों ने विदेशी चीजों का व्यापार करने या विदेशी व्यापार में पैसा लगाने से इनकार कर दिया। अंग्रेज सरकार की गलत नीतियों के कारण व्यापारी वर्ग पूरी तरह बरबाद हो चुका था।
अंग्रेज सस्ते दामों पर कच्चा माल ब्रिटेन ले जाते थे और वहाँ से तैयार माल लाकर अधिक कीमत पर भारत में बेचते थे। भारतीय व्यापारियों को इससे बहुत नुकसान होता था।
सामान्य जनता – असहयोग आंदोलन एक जन आंदोलन बन गया था क्योंकि आम जनता ने विदेशी कपड़ों तथा चीजों का बहिष्कार किया, शराब की दुकानों की पिकेटिंग की और विदेशी कपड़ों की होली जलाई।
आम जनता अंग्रेजों के अत्याचार से दुखी हो चुकी थी इसलिए उसने बढ़-चढ़कर असहयोग आंदोलन में भाग लिया।
बाग़ान मजदूर – गांधी जी के विचार और स्वराज की अवधारणा जब मजदूरों को समझ में आई तो वे भी बाग़ानों की चारदीवारियों से बाहर निकलकर राष्ट्रीय आंदोलन में सम्मिलित हो गए।
वे अपने अधिकारियों की अवहेलना करने । लगे। वे बागानों को काम छोड़कर अपने घरों को लौट गए क्योंकि उनको लगने लगा कि गांधी राज आते ही सबको जमीन मिल जाएगी।
प्रश्न 2. नमक यात्रा की चर्चा करते हुए स्पष्ट करें कि यह उपनिवेशवाद के खिलाफ प्रतिरोध का एक असरदार प्रतीक था।
उत्तर – 31 जनवरी 1930 को गांधी जी ने इरविन को एक पत्र लिखा जिसमें उन्होंने 11 माँगों का उल्लेख किया था। इसमें सबसे महत्वपूर्ण माँग नमक कर को खत्म करने के बारे में थी। नमक का अमीर-गरीब सभी प्रयोग करते थे। यह भोजन का अभिन्न हिस्सा था। इसलिए नमक पर कर को ब्रिटिश सरकार का सबसे दमनकारी पहलू बताया था।
11 मार्च तक उनकी माँगें नहीं मानी गई तो 12 मार्च 1930 को गांधी जी ने अपने 56 स्वयंसेवकों के साथ नमक यात्रा शुरू की। यह यात्रा साबरमती से दांडी नामक गुजराती तटीय कस्बे में जाकर खत्म होनी थी। 6 अप्रैल को वे दाँडी पहुँचे और उन्होंने समुद्र का पानी उबालदर नमक बनाना शुरू कर दिया। यह कानून का उल्लंघन था।
यह उपनिवेशवाद के खिलाफ प्रतिरोध का एक असरदार प्रतीक था-
1. इस बार लोगों को न केवल अंग्रेजों को सहयोग न करने के लिए बल्कि औपनिवेशिक कानूनों का उल्लंघन करने के लिए आह्वान किया जाने लगा। हजारों लोगों ने नमक कानून तोड़ा और सरकारी नमक कारखानों के सामने प्रदर्शन किए।
2. यह यात्रा साबरमती से 240 किलोमीटर दूर दाँडी में जाकर समाप्त होनी थी। गांधी जी की टोली ने 23 दिनों तक हर रोज लगभग 10 मील का सफर तय किया। गांधी जी जहाँ भी रूकते हजारों लोग उन्हें सुनने आते। इन सभाओं में गांधी जी ने स्वराज का अर्थ स्पष्ट किया और कहा कि लोग अंग्रेजों की शांतिपूर्ण अवज्ञा करें यानि कि अंग्रेजों को कहा। न मानें।
प्रश्न 3. कल्पना कीजिए कि आप सिविल नाफरमानी आंदोलन में हिस्सा लेने वाली महिला हैं। बताइए कि इस अनुभव का आपके जीवन में क्या अर्थ होता?
उत्तर – सिविल नाफ़रमानी आंदोलन में अनेक औरतों ने बड़े पैमाने पर भाग लिया। गांधी जी की बातों को सुनने के लिए औरतें अपने घरों से बाहर आ जाती थीं। मैंने भी इस समय अनेक जुलूसों में हिस्सा लिया, नमक बनाया, विदेशी कपड़ों व शराब की दुकानों की पिकेटिंग की, मैं भी अन्य महिलाओं के साथ जेल गई। इस आंदोलन के दौरान मैंने यह अनभव किया कि शहरी क्षेत्रों में सभी वर्गों की महिलाओं ने भाग लिया परंतु इसमें उच्च जातियों की महिलाएं अधिक थीं जबकि ग्रामीण क्षेत्रों में सम्पन्न किसान परिवार की महिलाओं ने अधिक भाग लिया। इस दौरान मैंने पाया कि सभी राष्ट्रसेवा को अपना प्रथम कर्तव्य मानने लगे। हम महिलाओं में यह आत्मविश्वास जागा कि वे घर के अतिरिक्त राष्ट्रसेवा का दायित्व भी निभा सकती हैं। परंतु कांग्रेस ने लंबे समय तक महिलाओं को उच्च पद नहीं दिए। उन्हें आंदोलनों में केवल प्रतीकात्मक उपस्थिति तक ही सीमित रखा।
प्रश्न 4. राजनीतिक नेता पृथक निर्वाचिका के सवाल पर क्यों बँटे हुए थे?
उत्तर – पृथक चुनाव प्रणाली का अभिप्राय ऐसे चुनाव क्षेत्रों से है जिनका निर्माण धर्म के आधार पर किया जाए अर्थात् एक धर्म का व्यक्ति केवल अपने धर्म के व्यक्ति को ही वोट देगा।
1. अंग्रेजों ने भारत में फूट डालने के लिए पृथक निर्वाचन क्षेत्रों का निर्माण किया। अपने इस कार्य में अंग्रेज सरकार काफी हद तक सफल रही क्योंकि पृथक निर्वाचन क्षेत्रों पर भारतीय आपस में बँट गए कांग्रेस पृथक निर्वाचन पद्धति का विरोध कर रही थी। पहले अंग्रेजों ने केवल हिंदू और मुसलमानों के लिए अलग निर्वाचन क्षेत्रों की बात कही थी किंतु बाद में जब हरिजनों को भी हिंदुओं से अलग करके पृथक निर्वाचन क्षेत्रों में बाँटने की बात कही जाने लगी तो कांग्रेस ने इसका खुलकर विरोध किया।
2. दलितों के उद्धार में लगे बी.आर. अम्बेडकर दलितों के लिए पृथक निर्वाचन क्षेत्र चाहते थे। उनका मानना था कि उनकी सामाजिक अपंगता केवल राजनीतिक सशक्तिकरण से ही दूर हो सकती है।
3. भारत को मुस्लिम समुदाय भी पृथक निर्वाचन क्षेत्रों के पक्ष में था। मुहम्मद अली जिन्ना का कहना था कि यदि मुसलमानों को केंद्रीय सभा में आरक्षित सीटें दी जाएँ और मुस्लिम बहुल प्रातों में मुसलमानों को आबादी के अनुपात में प्रतिनिधित्व दिया जाए तो वे मुसलमानों के लिए पृथक निर्वाचिका की माँग छोड़ने के लिए तैयार हैं।
इस प्रकार इन बातों से पता चलता है कि पृथक निर्वाचन क्षेत्रों को लेकर भारतीयों में फूट पड़ गई थी। कांग्रेस पृथक निर्वाचन क्षेत्रों के खिलाफ थी जबकि दलित वर्ग तथा मुस्लिम वर्ग इसके पक्ष में थे।
NCERT Solution Class 10th History All Chapters Question Answer in Hindi |
Chapter – 1 यूरोप में राष्ट्रवाद का उदय |
Chapter – 2 भारत में राष्ट्रवाद |
Chapter – 3 भूमंडलीकृत विश्व का बनना |
Chapter – 4 औद्योगीकरण का युग |
Chapter – 5 मुद्रण संस्कृति और आधुनिक दुनिया |
NCERT Solution Class 10th History All Chapter Notes in Hindi |
Chapter – 1 यूरोप में राष्ट्रवाद का उदय |
Chapter – 2 भारत में राष्ट्रवाद |
Chapter – 3 भूमंडलीकृत विश्व का बनना |
Chapter – 4 औद्योगीकरण का युग |
Chapter – 5 मुद्रण संस्कृति और आधुनिक दुनिया |
NCERT Solution Class 10th History All Chapter MCQ in Hindi |
Chapter – 1 यूरोप में राष्ट्रवाद का उदय |
Chapter – 2 भारत में राष्ट्रवाद |
Chapter – 3 भूमंडलीकृत विश्व का बनना |
Chapter – 4 औद्योगीकरण का युग |
Chapter – 5 मुद्रण संस्कृति और आधुनिक दुनिया |
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