NCERT Solutions Class 10th Social Science Economics Chapter – 5 उपभोक्ता अधिकार (Consumer Rights)
Text Book | NCERT |
Class | 10th |
Subject | Social Science (अर्थशास्त्र) |
Chapter | 5th |
Chapter Name | उपभोक्ता अधिका (consumer Rights) |
Category | Class 10th Social Science Economic Notes In Hindi |
Medium | Hindi |
Source | Last Doubt |
NCERT Solutions Class 10th Social Science Economics Chapter – 5 उपभोक्ता अधिकार (Consumer Rights) Notes in Hindi जिसमे हम सभी उपभोक्ता, उत्पादक, उपभोक्ताओं के अधिकार, उपभोक्ताओं के शोषण के कारण, भारत में उपभोक्ता आंदोलन, उपभोक्ता सुरक्षा अधिनियम 1986 (कोपरा), उपभोक्ताओं के कर्त्तव्य, राष्ट्रीय उपभोक्ता दिवस, उपभोक्ता निवारण प्रक्रिया की सीमाएँ, भारत सरकार द्वारा उपभोक्ताओं की सुरक्षा के लिए उठाए गए कदम आदि के बारे में पढ़ेंगे और समझेंगे। |
NCERT Solutions Class 10th Social Science Economics Chapter – 5 उपभोक्ता अधिकार (Consumer Rights)
Chapter – 5
उपभोक्ता अधिका
Notes
उपभोक्ता – बाजार से अपनी दैनिक आवश्यकताओं के लिए विभिन्न प्रकार की वस्तुएं खरीदने वाले लोग।
उत्पादक – दैनिक आवश्यकताओं की वस्तुओं का निर्माण या उत्पादन करने वाले लोग।
उपभोक्ताओं के अधिकार – उपभोक्ताओं के हितों की सुरक्षा के लिए कानून द्वारा दिए गए अधिकार जैसे-
(i) सुरक्षा का अधिकार।
(ii) सूचना का अधिकार।
(iii) चुनने का अधिकार।
(iv) क्षतिपूर्ति निवारण का अधिकार।
(v) उपभोक्ता शिक्षा का अधिकार।
उपभोक्ताओं के शोषण के कारण –
(i) सीमित सूचना।
(ii) सीमित आपूर्ति।
(iii) सीमित प्रतिस्पर्धा।
(iv) साक्षरता कम होना।
भारत में उपभोक्ता आंदोलन –
(i) भारत के व्यापारियों के बीच मिलावट, कालाबाजारी, जमाखोरी, कम वजन, आदि की परंपरा काफी पुरानी है।
(ii) भारत में उपभोक्ता आंदोलन 1960 के दशक में शुरु हुए थे। 1970 के दशक तक इस तरह के आंदोलन केवल अखबारों में लेख लिखने और प्रदर्शनी लगाने तक ही सीमित होते थे। लेकिन हाल के वर्षों में इस आंदोलन में गति आई है।
(iii) लोग विक्रेताओं और सेवा प्रदाताओं से इतने अधिक असंतुष्ट हो गये थे कि उनके पास आंदोलन करने के अलावा और कोई रास्ता नहीं बचा था।
(iv) एक लंबे संघर्ष के बाद सरकार ने भी उपभोक्ताओं की बात सुन ली। इसके परिणामस्वरूप सरकार ने 1986 में कंज्यूमर प्रोटेक्शन ऐक्ट (कोपरा) को लागू किया।
उपभोक्ता सुरक्षा अधिनियम 1986 (कोपरा) –
(i) उपभोक्ताओं के हितों की रक्षा के लिए बनाया गया कानून।
(ii) कोपरा के अंतर्गत उपभोक्ता विवादों के निपटारे के लिए जिला राज्य और राष्ट्रीय स्तरों पर एक त्रिस्तरीय न्यायिक तंत्रा स्थापित किया गया है।
(iii) जिला स्तर पर 20 लाख राज्य स्तर पर 20 लाख से एक करोड तक तथा राष्ट्रीय स्तर की अदालतें 1 करोड से उपर की दावेदारी से संबंधित मुकदमों को देखती है।
उपभोक्ताओं के कर्त्तव्य –
(i) कोई भी माल खरीदते समय उपभोक्ताओं को सामान की गुणवत्ता अवश्य देखनी चाहिए।
(ii) जहां भी संभव हो गारंटी कार्ड अवश्य लेना चाहिए।
(iii) खरीदे गए सामान व सेवा की रसीद अवश्यक लेनी चाहिए।
(iv) अपनी वास्तविक समस्या की शिकायत अवश्यक करनी चाहिए।
(v) आई.एस.आई. तथा एगमार्क निशानों वाला सामान ही खरीदे।
(vi) अपने अधिकारों की जानकारी अवश्यक होनी चाहिए।
(vii) आवश्यकता पड़ने पर उन अधिकारों का प्रयोग भी करना चाहिए।
राष्ट्रीय उपभोक्ता दिवस –
(i) 24 दिसंबर को राष्ट्रीय उपभोक्ता दिवस के रूप में मनाया जाता है। यह वही दिन है जब भारतीय संसद ने कंज्यूमर प्रोटेक्शन ऐक्ट लागू किया था । भारत उन गिने चुने देशों में से है जहाँ उपभोक्ता की सुनवाई के लिये अलग से कोर्ट हैं।
(ii) आज देश में 2000 से अधिक उपभोक्ता संगठन हैं, जिनमें से केवल 50-60 ही अपने कार्यों के लिए पूर्ण संगठित और मान्यता प्राप्त हैं।
(iii) लेकिन उपभोक्ता की सुनवाई की प्रक्रिया जटिल, महंगी और लंबी होती जा रही है। वकीलों की ऊँची फीस के कारण अक्सर उपभोक्ता मुकदमे लड़ने की हिम्मत ही नहीं जुटा पाता है।
उपभोक्ता निवारण प्रक्रिया की सीमाएँ –
(i) उपभोक्ता निवारण प्रक्रिया जटिल , खर्चीली और समय साध्य साबित हो रही है।
(ii) कई बार उपभोक्ताओं को वकीलों का सहारा लेना पडता है।
(iii) यह मुकदमें अदालती कार्यवाहियों में शामिल होने और आगे बढ़ने आदि में काफी समय लेते है।
(iv) अधिकांश खरीददारियों के समय रसीद नहीं दी जाती हैं। ऐसी स्थिति में प्रमाण जुटाना आसान नहीं होता है।
(v) बाज़ार में अधिकांश खरीददारियाँ छोटे फुटकर दुकानों से होती है।
(vi) श्रमिकों के हितों की रक्षा के लिए कानूनों के लागू होने के बावजूद खास तौर से असंगठित क्षेत्रा में ये कमजोर है।
(vii) इस प्रकार बाज़ारों के कार्य करने के लिए नियमों और विनियमों का प्रायः पालन नहीं होता।
भारत सरकार द्वारा उपभोक्ताओं की सुरक्षा के लिए उठाए गए कदम –
(i) कानूनी कदम – 1986 का उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम।
(ii) प्रशासनिक कदम – सार्वजनिक वितरण प्रणाली।
(iii) तकनीकी कदम – वस्तुओं का मानकीकरण।
(iv) सूचना का अधिकार अधिनियम (2005)।
(v) त्रि – स्तरीय उपभोक्ता अदालतों की स्थापना।
उपभोक्ता संरक्षण परिषद् और उपभोक्ता अदालत में अंतर –
(i) उपभोक्ता संरक्षण परिषद् – ये उपभोक्ता का मार्गदर्शन करती है कि कैसे उपभोक्ता अदालत में मुकदमा दर्ज करायें । यह जनता को उनके अधिकारों के बारे में जागरूक करती है।
(ii) उपभोक्ता अदालत – लोग उपभोक्ता अदालत में न्याय पाने के लिए जाते है। दोषी को दण्ड दिया जाता है । उन पर जुर्माना लगाती है या सज़ा देती है।
(iii) आर टी आई – सूचना का अधिकार सन् 2005 के अक्टूबर में भारत सरकार ने एक कानून लागू किया जो आर टी आई या सूचना पाने का अधिकार के नाम से जाना जाता है। जो अपने नागरिकों को सरकारी विभागों के कार्यकलापों की सभी सूचनाएं पाने का अधिकार सुनिश्चित करता है।
न्याय पाने के लिए उपभोक्ता को कहाँ जाना चाहिए? –
(i) न्याय पाने के लिए उपभोक्ता को उपभोक्ता अदालत जाना चाहिए।
(ii) कोपरा के अंतर्गत उपभोक्ता विवादों के निपटारे के लिए जिला राज्य और राष्ट्रीय
(iii) स्तरों पर एक त्रिस्तरीय न्यायिक तंत्र स्थापित किया गया है।
(iv) जिला स्तर का न्यायालय 20 लाख तक के दावों से संबंधित मुकदमों पर विचार करता है।
(v) राज्य स्तरीय अदालतें 20 लाख से एक करोड़ तक।
(vi) राष्ट्रीय स्तर की अदालतें 1 करोड़ से ऊपर की दावेदारी से संबंधित मुकदमों को देखती हैं।
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