NCERT Solutions Class 10th science New Syllabus Chapter – 13 हमारा पर्यावरण (Our Environment)
Text Book | NCERT |
Class | 10th |
Subject | Science |
Chapter | 13th |
Chapter Name | हमारा पर्यावरण (Our Environment) |
Category | Class 10th Science |
Medium | Hindi |
Source | Last Doubt |
NCERT Solutions Class 10th Science New Syllabus Chapter – 13 हमारा पर्यावरण (Our Environment) Notes in Hindi जिसमे हम हमारे पर्यावरण का क्या महत्व है?, पर्यावरण क्या है इस पर निबंध लिखिए?, पर्यावरण पर निबंध कैसे लिखते हैं?, पर्यावरण पर क्या लिखें?, पर्यावरण को बचाना क्यों जरूरी है?, पर्यावरण 10 अंक क्या है?, हमारा पर्यावरण क्या बनाता है?, हम पर्यावरण को कैसे रखते हैं?, पर्यावरण के 5 लाभ क्या हैं?, पर्यावरण की रक्षा के क्या लाभ हैं?, पर्यावरण प्रदूषण को कैसे रोका जा सकता है?, हम प्रकृति को कैसे बचा सकते हैं?, हमें प्रदूषण क्यों रोकना चाहिए?, पर्यावरण कैसे प्रदूषित होता है? आदि इसके बारे में हम विस्तार से पढ़ेंगे। |
NCERT Solutions Class 10th Science New Syllabus Chapter – 13 हमारा पर्यावरण (Our Environment)
Chapter – 13
हमारा पर्यावरण
Notes
पर्यावरण
• पर्यावरण का मतलब वह सभी चीजें होती हैं जो हमें घेरे रहती हैं। सभी जैविक एवं अजैविक घटक शामिल हैं।
• जैविक व अजैविक घटकों के पारस्परिक मेल से पारितंत्र बनता है।
• एक पारितंत्र में जीव भोजन के लिए एक-दूसरे पर निर्भर होते हैं, जिससे आहार श्रृंखला व आहार जाल बनते हैं।
• मनुष्य की गतिविधियों के कारण हमारे पर्यावरण में गिरावट आ रही हैं व समस्याएँ उत्पन्न हो रही हैं; जैसे – ओजोन परत का ह्रास व कचरे का निपटान।
पारितंत्र – एक क्षेत्र के सभी जैविक व अजैविक घटक मिलकर एक पारितंत्र का निर्माण करते हैं। इसलिए एक पारितंत्र जैविक (जीवित जीव) व अजैविक घटक; जैसे – तापमान, वर्षा, वायु, मृदा आदि से मिलकर बनता है।
पारितंत्र के प्रकार – इसके दो प्रकार होते हैं।
(a) प्राकृतिक पारितंत्र – पारितंत्र जो प्रकृति में विद्यमान हैं।
उदाहरण – जंगल, सागर, झील।
(b) मानव निर्मित पारितंत्र – जो पारितंत्र मानव ने निर्मित किए हैं, उन्हें मानव निर्मित पारितंत्र कहते हैं।
उदाहरण – खेत, जलाशय, बगीचा।
पारितंत्र के घटक
• अजैविक घटक (हवा, पानी, भूमि)
• जैविक घटक (पौधे, जानवर)
जैविक घटक
• उत्पादक
• उपभोक्ता
• अपघटक
उपभोक्ता
• शाकाहारी
• माँसाहारी
• सर्वाहारी
• परजीवी
(a) अजैविक घटक – सभी निर्जीव घटक, जैसे- हवा, पानी, भूमि, प्रकाश और तापमान आदि मिलकर अजैविक घटक बनाते हैं।
(b) जैविक घटक – सभी सजीव घटक; जैसे – पौधे, जानवर, सूक्ष्मजीव, फफूंदी आदि मिलकर जैविक घटक बनाते हैं।
• आहार के आधार पर जैविक घटकों को निम्न में बाँटा गया है-
1. उत्पादक – सभी हरे पौधे, नील हरित शैवाल अपना भोजन (शर्करा व स्टार्च) अकार्बनिक पदार्थों से सूर्य की रोशनी का प्रयोग करके बनाते हैं। (प्रकाश संश्लेषण)2. उपभोक्ता – ऐसे जीव जो अपने निर्वाह के लिए परोक्ष या अपरोक्ष रूप से उत्पादकों पर निर्भर करते हैं।
उपभोक्ताओं को निम्न प्रकार में बाँटा गया है
(i) शाकाहारी – पौधे व पत्ते खाने वाले; जैसे- बकरी, हिरण।
(ii) माँसाहारी – माँस खाने वाले; जैसे- शेर, मगरमच्छ।
(iii) सर्वाहारी – पौधे व माँस दोनों खाने वाले; जैसे- कौआ, मनुष्य।
(iv) परजीवी – दूसरे जीव के शरीर में रहने व भोजन लेने वाले; जैसे- जूँ, अमरबेल।
अपघटक – फफूँदी व जीवाणु जो कि मरे हुए जीव व पौधे के जटिल पदार्थों को सरल पदार्थों में विघटित कर देते हैं। इस प्रकार अपघटक स्रोतों की भरपाई में मदद करते हैं।
आहार श्रृंखला
• आहार श्रृंखला एक ऐसी शृंखला है जिसमें एक जीव दूसरे जीव को भोजन के रूप में खाते हैं; उदाहरण – घास → हिरण → शेर
• एक आहार श्रृंखला में, उन जैविक घटकों को जिनमें ऊर्जा का स्थानांतरण होता है, पोषीस्तर कहलाता है।
• एक आहार श्रृंखला में ऊर्जा का स्थानांतरण एक दिशा में होता है।
• हरे पौधे सूर्य की ऊर्जा का 1% भाग (जो पत्तियों पर पड़ता है), अवशोषित करते हैं।
• 10% नियम – एक पोषी स्तर से दूसरे पोषी स्तर में केवल 10% ऊर्जा का स्थानांतरण होता है। जबकि 90% ऊर्जा वर्तमान पोषी स्तर में जैव क्रियाओं में उपयोग होती है। और मुख्यतः ऊर्जा का पर्यावरण में ह्रास हो जाता है।
• उपभोक्ता के अगले स्तर के लिए ऊर्जा की बहुत ही कम मात्रा उपलब्ध हो पाती है, अतः आहार श्रृंखला में सामान्यत: तीन अथवा चार चरण ही होते हैं।
जैव आवर्धन – आहार श्रृंखला में हानिकारक रसायनों की मात्रा में एक पोषी स्तर से दूसरे पोषी स्तर में जाने पर वृद्धि होती है। इसे जैव आवर्धन कहते हैं।
• ऐसे रसायनों की सबसे अधिक मात्रा मानव शरीर में होती है।
आहार जाल – आहार श्रंखलाएं आपस में प्राकृतिक रूप से जुड़ी होती हैं, जो एक जाल का रूप धारण कर लेती है, उसे आहार जाल कहते हैं।
पर्यावरण की समस्याएं – पर्यावरण में बदलाव हमें प्रभावित करता है और हमारी गतिविधियाँ भी पर्यावरण को प्रभावित करती हैं। इससे पर्यावरण में धीरे-धीरे गिरावट आ रही है, जिससे पर्यावरण की समस्याएँ उत्पन्न होती हैं; जैसे- प्रदूषण, वनों की कटाई।
ओजोन परत – ओजोन परत पृथ्वी के चारों ओर एक रक्षात्मक आवरण है जो कि सूर्य के हानिकारक पराबैंगनी प्रकाश को अवशोषित कर लेती हैं। इस प्रकार से यह जीवों की स्वास्थय संबंधी हानियाँ; जैसे- त्वचा, कैंसर, मोतियाबिंद, कमजोर परिरक्षा तंत्र, पौधों का नाश आदि से रक्षा करती है।
• मुख्य रूप से ओजोन परत समताप मंडल में पाई जाती है जो कि हमारे वायुमंडल का हिस्सा है। जमीनी स्तर पर ओजोन एक घातक जहर है।
ओजोन का निर्माण
(i) ओजोन का निर्माण निम्न प्रकाश-रासायनिक क्रिया का परिणाम है।
02 पराबैंगनी विकिरण, 0 +0 (अणु)
02 + 0 → 03 (ओजोन)
ओजोन परत का ह्रास – 1985 में पहली बार अंटार्टिका में ओजोन परत की मोटाई में कमी देखी गई, जिसे ओजोन छिद्र के नाम से जाना जाता है।
• ओजोन की मात्रा में इस तीव्रता से गिरावट का मुख्य कारक मानव संश्लेषित रसायन क्लोरोफ्लुओरो कार्बन (CFC) को माना गया। जिनका उपयोग शीतलन एवं अग्निशमन के लिए किया जाता है।
• 1987 में संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम (यूएनईपी) में सर्वानुमति बनी की सीएफसी के उत्पादन को 1986 के स्तर पर ही सीमित रखा जाए (क्योटो प्रोटोकोल)।
कचरा प्रबंधन – आज के समय में अपशिष्ट निपटान एक मुख्य समस्या है जो कि हमारे पर्यावरण को प्रभावित करती है। हमारी जीवन शैली के कारण बहुत बड़ी मात्रा में कचरा इकट्ठा हो जाता है।
कचरे में निम्न पदार्थ होते हैं
(a) जैव निम्नीकरणीय पदार्थ – पदार्थ जो सूक्ष्मजीवों के कारण छोटे घटकों में बदल जाते हैं।
उदाहरण – फल तथा सब्जियों के छिलके, सूती कपड़ा, जूट, कागज आदि।
(b) अजैव निम्नीकरण पदार्थ – पदार्थ जो सूक्ष्मजीवों के कारण घटकों में परिवर्तित नहीं होते हैं।
उदाहरण – प्लास्टिक, पॉलिथीन, संश्लिष्ट रेशे, धातु, रेडियोएक्टिव अपशिष्ट आदि । सूक्ष्मजीव एंजाइम उत्पन्न करते हैं जो पदार्थों को छोटे घटकों में बदल देते हैं एंजाइम अपनी क्रिया में विशिष्ट होते हैं। इसलिए सभी पदार्थों का अपघटन नहीं कर सकते हैं।
कचरा प्रबंधन की विधियाँ
जैवमात्रा संयंत्र – जैव निम्नीकरणीय पदार्थ (कचरा) इस संयंत्र द्वारा जैवमात्रा व खाद में परिवर्तित किया जा सकता है।
सीवेज (sewage) उपचार तंत्र – नाली के पानी को नदी में जाने से पहले इस तंत्र द्वारा संशोधित किया जाता है।
कूड़ा भराव क्षेत्र – कचरा निचले क्षेत्रों में डाल दिया जाता है और दबा दिया जाता है।
कम्पोस्टिंग – जैविक कचरा कम्पोस्ट गड्ढे में भर कर ढक दिया जाता है (मिट्टी के द्वारा) तीन महीने में कचरा खाद में बदल जाता है।
पुनःचक्रण – अजैव निम्नीकरणीय पदार्थ कचरा पुनः इस्तेमाल के लिए नए पदार्थों में बदल दिया जाता है।
पुन: उपयोग – यह एक पारंपारिक तरीका है जिसमें एक वस्तु का पुन:-पुन: इस्तेमाल कर सकते हैं। उदाहरण अखबार से लिफाफे बनाना।
भस्मीकरण – यह एक अपशिष्ट उपचार प्रक्रिया है जिसे थर्मल उपचार के रूप में वर्णित किया जाता है जो कचरे को राख में बदल देता है। मुख्य रूप से इसका उपयोग अस्पतालों से जैविक कचरे के निपटान के लिए उपयोग किया जाता है।
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