NCERT Solutions Class 10th Science New Syllabus Chapter – 10 मानव नेत्र तथा रंग-बिरंगा संसार (The Human Eye and The Colorful World) Notes in Hindi

NCERT Solutions Class 10th Science New Syllabus Chapter – 10 मानव नेत्र तथा रंग-बिरंगा संसार (The Human Eye and The Colorful World)

Text BookNCERT
Class10th
SubjectScience
Chapter10th
Chapter Nameमानव नेत्र तथा रंग-बिरंगा संसार
CategoryClass 10th Science
MediumHindi
SourceLast Doubt
NCERT Solutions Class 10th Science Chapter – 10 मानव नेत्र तथा रंग-बिरंगा संसार (the human eye and the colorful world) Notes in Hindi हम इस अध्याय में मानव नेत्र किसे कहते है?, मानव नेत्र के विभिन्न भाग एवं उनके कार्य, दृष्टि दोष तथा उनका संशोधन, प्रिज्म से प्रकाश अपवर्तन, काँच के प्रिज्म द्वारा श्वेत प्रकाश का विक्षेपण, वायुमंडलीय अपवर्तन, प्रकाश का प्रकीर्णन, मानव नेत्र तथा रंगबिरंगा संसार क्या है?, मानव नेत्र लेंस का रंग कैसा होता है?, मानव नेत्र कक्षा 10 क्या है?, मानव नेत्र रंग किस सिद्धांत का पालन करता है?, मनुष्य कितने रंग नहीं देख सकता है?, मनुष्य की आंखें रंगों को क्यों समझती हैं? आदि के बारे में पढ़ेंगे।

NCERT Solutions Class 10th Science New Syllabus Chapter – 10 मानव नेत्र तथा रंग-बिरंगा संसार (The Human Eye and The Colorful World)

Chapter – 10

मानव नेत्र तथा रंग-बिरंगा संसार

Notes

मानव नेत्र

मानव नेत्र एक अत्यंत मूल्वान एवं सुग्राही ज्ञानेंद्रिय है यह हमें चारों ओर के रंगों और इस अद्भुद संसार को देखने योग्य बनता है। अगर हम अपनी आँखें बंद कर ले तो हम वस्तुओं को उनकी गंध, स्वाद, उनके द्वारा उतपन्न ध्वनि या उनको स्पर्श करके, कुछ सीमा तक पहचान सकते है  

• आँखों को बंद करके रंगों को पहचान पाना असंभव है।
• समस्त ज्ञानेंद्रिय में मानव नेत्र सबसे अधिक महत्वपूर्ण है।

मानव नेत्र के विभिन्न भाग एवं उनके कार्य

रेटिना – मानव नेत्र में एक कमरे की भाँति होता है इसका लेंस-निकाय एक प्रकाश सुग्राही परदे, जिसे रोटीना या द्रिष्टपटल कहते है। यह एक कोमल सूक्ष्म झिल्ली है

कॉर्निया – जब रोटीना पर प्रतिबिंब बनता है। तो प्रकाश की एक पतली झिल्ली से होकर नेत्र में प्रवेश करता है इस झिल्ली को कॉर्निया या स्वच्छ मंडल कहते हैं।

दृष्टपटल – मानव नेत्र जिस भाग पर किसी वस्तु का प्रतिबिंब बनाता है उसे दृष्टपटल कहते है।

नेत्र गोलक – नेत्र गोलक की आकृति गोलाकार होती है तथा इसका व्यास 2.3 cm होता है।

क्रिस्टलीय लेंस – क्रिस्टलीय लेंस केवल विभिन्न दूरियों पर रखी वस्तुओं को रोटीना पर फोकसित करने के लिए आवश्यक फोकस दुरी में सूक्ष्म समयोजन करता है।

परितारिका – कॉर्निया के पीछे एक गहरा पेशीय संरचना होती है जिसे परितारिका कहते है।

पुतली – पुतली आँख में प्रवेश करने वाले प्रकाश की मात्रा को नियंत्रित करती है।

अभिनेत्र लेंस – रोटीना पर किसी वस्तु का उलटा तथा वास्तविक प्रतिबिबं बनता है।

पक्ष्भामी पेशियां – अभिनेत्र लैंस की वक्रता में परिवर्तन होने पर इसकी फोकस दूरी भी परिवर्तित हो जाती है ताकि हम वस्तु का स्पष्ट प्रतिबिंब देख सकें।

समंजन क्षमता – अभिनेत्र लेंस की वह क्षमता जिसके कारण वह अपनी फोकस दूरी को समायोजित कर लेता है समंजन कहलाती है, लेंस की वक्रता पक्ष्माभी पेशियों द्वारा निमांत्रित की जाती है।

मोतियाबिंद – अधिक उम्र के कुछ व्यक्तियों के नेत्र का क्रिस्टलीय लेंस दूधिया तथा धुँधला हो जाता है। इस स्थिति को मोतियाबिंद कहते हैं। इसके कारण नेत्र की दृष्टि में कमी या पूर्ण रूप से दृष्टि क्षय हो जाती है। मोतियाबिंद की शल्य चिकित्सा के बाद दृष्टि का वापस लौटना संभव होता है।

दृष्टि दोष तथा उनका संशोधन

(a) निकट-दृष्टि दोष – इस दोष में व्यक्ति निकट रखी वस्तुओं को तो स्पष्ट देख सकता है परंतु दूर रखी वस्तुओं को वह सुस्पष्ट नहीं देख पाता। ऐसे दोषयुक्त व्यक्ति का दूर बिंदू अनंत पर न होकर नेत्र के पास आ जाता है।

दोष उत्पन्न होने के कारण
(i) अभिनेत्र लेंस की वक्रता का अत्यधिक होना
(ii) नेत्र गोलक का लंबा हो जाना।

निवारण – इस दोष को किसी उपयुक्त क्षमता के अवतल लेंस के उपयोग द्वारा संशोधित किया जा सकता है।

(a) निकट-दृष्टि दोषयुक्त नेत्र का दूर-बिन्दु
(b) निकट-दृष्टि दोषयुक्त नेत्र
(c) निकट-दृष्टि दोष का संशोधन

(b) दीर्घ-दृष्टि दोष – दीर्घ-दृष्टि दोषयुक्त कोई व्यक्ति दूर की वस्तुओं को तो स्पष्ट देख सकता है परंतु निकट रखी वस्तुओं को सुस्पष्ट नहीं देख पाता। ऐसे दोषयुक्त व्यक्ति का निकट-बिंदु सामान्य निकट बिंदु (25cm) से दूर हट जाता है।

दोष उत्पन्न होने के कारण

• अभिनेत्र लेंस की फोकस दूरी का अत्यधिक हो जाना।
• नेत्र गोलक का छोटा हो जाना।

निवारण – इस दोष को उपयुक्त क्षमता के उत्तल लेंस का इस्तेमाल करके संशोधित किया जा सकता है।

(a) दीर्घ-दृष्टि दोषयुक्त नेत्र का दूर-बिन्दु
(b) दीर्घ-दृष्टि दोषयुक्त नेत्र
(c) दीर्घ-दृष्टि दोष का संशोधन

(c) जरा-दूरदृष्टिता – आयु में वृद्धि होने के साथ-साथ मानव नेत्र में समंजन-क्षमता घट जाती है। अधिकांश व्यक्तियों का निकट-बिंदू दूर हट जाता है। इस दोष को जरा-दूरदृष्टिता कहते हैं।

कारण – यह पक्ष्माभी पेशियों के धीरे-धीरे दुर्बल होने तथा क्रिस्टलीय लेंस के लचीलेपन में कमी आने के कारण उत्पन्न होता है।

निवारण – कभी-कभी किसी व्यक्ति के नेत्र में दोनों ही प्रकार के दोष निकट दृष्टि तथा दूर-दृष्टि दोष होते हैं ऐसे व्यक्तियों के लिए प्राय: द्विफोकसी लेंसों की आवश्यकता होती ऊपरी भाग अवतल लेंस और निचला भाग उत्तल लेंस होता है।

दोनों नेत्रों का सिर पर सामने की ओर स्थित होने का लाभ

• इससे हमें त्रिविमीय चाक्षुकी (three dimension vision) का लाभ मिलता है।
• इससे हमारा दृष्टि-क्षेत्र विस्तृत हो जाता है।
• इससे हम धुंधली चीजों को भी देख पाते हैं।

प्रिज्म से प्रकाश अपवर्तन – प्रिज्म के दो त्रिभुजाकार आधार तथा तीन आयताकार पार्श्व-पृष्ठ होते हैं।

प्रिज्म कोण – प्रिज्म के दो पार्श्व फलकों के बीच के कोण को प्रिज्म कोण कहते हैं।
विचलन कोण – आपतित किरण एवं निर्गत किरण के बीच के कोण को विचलन कोण कहते हैं।

काँच के प्रिज्म द्वारा श्वेत प्रकाश का विक्षेपण – सूर्य का श्वेत प्रकाश जब प्रिज्म से होकर गुजरता है तो प्रिज्म श्वेत प्रकाश को सात रंगों की पट्टी में विभक्त कर देता है। यह सात रंग है बैंगनी, जामुनी, नीला, हरा, पीला, नारंगी तथा लाल। प्रकाश के अवयवी वर्णों के इस बैंड को स्पेक्ट्रम (वर्णक्रम) कहते हैं। प्रकाश के अवयवी वर्णों में विभाजन को विक्षेपण कहते हैं।

इंद्रधनुष – इंद्रधनुष वर्षा के पश्चात आकाश में जल के सूक्ष्म कणों में दिखाई देने वाला प्राकृतिक स्पेक्ट्रम है। यह वायुमंडल में उपस्थित जल की बूँदों द्वारा सूर्य के प्रकाश के परिक्षेपन के कारण प्राप्त होता है। इंद्रधनुष सदैव सूर्य के विपरीत दिशा में बनता है।

जल की सूक्ष्म बूँदें छोटे प्रिज्मों की भाँति कार्य करती है। सूर्य के आपतित प्रकाश की ये बूँदें अपवर्तित तथा विक्षेपित करती हैं, तत्पश्चात इसे आंतरिक परावर्तित करती हैं, अंततः जल की बूँद से बाहर निकलते समय प्रकाश को पुनः अपवर्तित करती है। प्रकाश के परिक्षेपण तथा आंतरिक परावर्तन के कारण विभिन्न वर्ण प्रेक्षक के नेत्रों तक पहुँचते हैं।

VIBGYOR : आपको वर्णों के क्रम याद रखने में सहायता करेगा।
• किसी प्रिज्म से गुजरने के पश्चात, प्रकाश के विभिन्न वर्ण, आपतित किरण के सापेक्ष अलग-अलग कोणों पर झुकते हैं।
• लाल प्रकाश सबसे कम झुकता है जबकि बैंगनी प्रकाश सबसे अधिक झुकता है।

आइज़क न्यूटन ने सर्वप्रथम सूर्य का स्पेक्ट्रम प्राप्त करने के लिए काँच के प्रिज्म का उपयोग किया। एक दूसरा समान प्रिज्म उपयोग करके उन्होंने श्वेत प्रकाश के स्पेक्ट्रम के वर्णों को और अधिक विभक्त करने का प्रयत्न किया। किंतु उन्हें और अधिक वर्णों नहीं मिल पाए। फिर उन्होंने एक दूसरा सर्वसम प्रिज्म पहले प्रिज्म के सापेक्ष उल्टी स्थिति में रखा। उन्होंने देखा कि दूसरे प्रिज्म से श्वेत प्रकाश का किरण पुंज निर्गत हो रहा है। इससे न्यूटन ने यह निष्कर्ष निकाला कि सूर्य का प्रकाश सात वर्णों से मिलकर बना है।

वायुमंडलीय अपवर्तन – वायुमंडलीय अस्थिरता के कारण प्रकाश का अपवर्तन वायुमंडलीय अपवर्तन कहलाता है।

वायुमंडलीय अपवर्तन के प्रभाव

(i) गरम वायु में से होकर देखने पर वस्तु की आभासी स्थिति का परिवर्तित होना।
(ii) तारों का टिमटिमाना
(iii) तारों की आभासी स्थिति
(iv) अग्रिम सूर्योदय तथा विलम्बित सूर्यास्त

1. गरम वायु में से होकर देखने पर वस्तु की आभासी स्थिति का परिवर्तित होना – आग के तुरंत ऊपर की वायु अपने ऊपर की वायु को तुलना में अधिक गरम हो जाती है। गरम वायु अपने ऊपर की ठंडी वायु की तुलना में कम सघन होती है तथा इसका अपवर्तनांक ठंडी वायु की अपेक्षा थोड़ा कम होता है। क्योंकि अपवर्तक माध्यम (वायु) की भौतिक अवस्थाएँ सिथर नहीं हैं। इसलिए गरम वायु में से होकर देखने पर वस्तु की आभासी स्थिति परिवर्तित होती रहती है।

2तारों का टिमटिमाना – दूर स्थित तारा हमें प्रकाश के बिंदु स्रोत के समान प्रतीत होता है। चूँकि तारों से आने वाली प्रकाश किरणों का पथ थोड़ा-थोड़ा परिवर्तित होता रहता है, अतः तारे की आभासी स्थिति विचलित होती रहती है तथा आँखों में प्रवेश करने वाले तारों के प्रकाश की मात्रा झिलमिलाती रहती है। जिसके कारण कोई तारा कभी चमकीला प्रतीत होता है तो कभी धुँधला, जो कि टिमटिमाहट का प्रभाव है।

3. तारों की आभासी स्थिति – पृथ्वी के वायुमंडल में प्रवेश करने के पश्चात् पृथ्वी के पृष्ठ पर पहुँचने तक तारे का प्रकाश निरंतर अपवर्तित होता जाता है। वायुमंडलीय अपवर्तन उसी माध्यम में होता है जिसका क्रमिक परिवर्ती (gradually changing) अपवर्तनांक हो। क्योंकि वायुमंडल तारे के प्रकाश को अभिलंब की ओर झुका रहता है अत: क्षितिज के निकट देखने पर कोई तारा अपनी वास्तविक स्थिति से कुछ ऊँचाई पर प्रतीत होता है।

4. अग्रिम सूर्योदय तथा विलम्बित सूर्यास्त – वायुमंडलीय अपवर्तन के कारण सूर्य हमें वास्तविक सूर्योदय से लगभग 2 मिनट पूर्व दिखाई देने लगता है तथा वास्तविक सूर्यास्त के लगभग 2 मिनट पश्चात् तक दिखाई देता रहता है।

प्रकाश का प्रकीर्णन

टिंडल प्रभाव – जब कोई प्रकाश किरण का पुंज वायुमण्डल के महीन कणों जैसे धुआँ, जल की सूक्ष्म बूंदें, धूल के निलंबित कण तथा वायु के अणु से टकराता है तो उस किरण पुंज का मार्ग दिखाई देने लगता है। कोलाइडी कणों के द्वारा प्रकाश के प्रकीर्णन की परिघटना टिंडल प्रभाव उत्पन्न करती है। उदाहरण – जब धुएँ से भरे किसी कमरे में किसी सूक्ष्म छिद्र से कोई पतला प्रकाश किरण पुंज प्रवेश करता है तो हम टिंडल प्रभाव देख सकते हैं।

Rayleigh का नियम – प्रकीर्णन α 1/λ4

λ प्रकाश किरण की तरंग दैर्ध्य

प्रकीर्णित प्रकाश का वर्णन प्रकीर्णन न करने वाले कणों के आकार पर निर्भर करता है।

(i) अत्यंत सूक्ष्म कण मुख्य रूप से नीले प्रकाश को प्रकीर्ण करते हैं।
(ii) बड़े आकार के कण अधिक तरंगदैर्ध्य के प्रकाश को प्रकीर्ण करते हैं।
(iii) यदि प्रकीर्णन करने वाले कणों का साइज बहुत अधिक है तो प्रकीर्णित प्रकाश श्वेत भी प्रतीत हो सकता है।

आपने क्या सीखा

• नेत्र की वह क्षमता जिसके कारण वह अपनी फोकस दूरी को समायोजित करके निकट तथा दूरस्थ वस्तुओं को फोकसित कर लेता है, नेत्र की समंजन क्षमता कहलाती है।

• वह अल्पतम दूरी जिस पर रखी वस्तु को नेत्र बिना किसी तनाव के सुस्पष्ट देख सकता है, उसे नेत्र का निकट बिंदु अथवा सुस्पष्ट दर्शन की अल्पतम दूरी कहते हैं। सामान्य दृष्टि के वयस्क के लिए यह दूरी लगभग 25 cm होती है।

• दृष्टि के सामान्य अपवर्तक दोष हैं- निकट दृष्टि, दीर्घ- दृष्टि तथा जरा दूरदृष्टिता । निकट दृष्टि (निकट दृष्टिता – दूर रखी वस्तु का प्रतिबिंब दृष्टिपटल के सामने बनता है।) को उचित क्षमता के अवतल लेंस द्वारा संशोधित किया जाता है। दीर्घ-दृष्टि (दूरदृष्टिता – पास रखी वस्तुओं के प्रतिबिंब दृष्टिपटल के पीछे बनते हैं।) को उचित क्षमता के उत्तल लेंस द्वारा संशोधित किया जाता है। वृद्धावस्था में नेत्र की समंजन क्षमता घट जाती है।

• श्वेत प्रकाश का इसके अवयवी वर्णों में विभाजन विक्षेपण कहलाता हैं।

• प्रकाश के प्रकीर्णन के कारण आकाश का रंग नीला तथा सूर्योदय एवं सूर्यास्त के समय सूर्य रक्ताभ प्रतीत होता है।

NCERT Solution Class 10th Science All Chapter Notes in Hindi
Chapter – 1 रासायनिक अभिक्रियाएँ एवं समीकरण
Chapter – 2 अम्ल, क्षारक एवं लवण
Chapter – 3 धातु एवं अधातु
Chapter – 4 कार्बन एवं उसके यौगिक
Chapter – 5 जैव प्रक्रम
Chapter – 6 नियंत्रण एवं समन्वय
Chapter – 7 जीव जनन कैसे करते हैं
Chapter – 8 अनुवांशिकता
Chapter – 9 प्रकाश-परावर्तन तथा अपवर्तन
Chapter – 10 मानव नेत्र तथा रंग-बिरंगा संसार
Chapter – 11 विद्युत
Chapter – 12 विद्युत धारा के चुंबकीय प्रभाव
Chapter – 13 हमारा पर्यावरण
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Chapter – 11 विद्युत
Chapter – 12 विद्युत धारा का चुम्बकीय प्रभाव
Chapter – 13 हमारा पर्यावरण

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