NCERT Solutions Class 10th Science Chapter – 9 प्रकाश – परावर्तन तथा अपवर्तन (Light – Reflection and Refraction)
Text Book | NCERT |
Class | 10th |
Subject | Science |
Chapter | 9th |
Chapter Name | प्रकाश – परावर्तन तथा अपवर्तन (Light – Reflection and Refraction) |
Category | Class 10th Science |
Medium | Hindi |
Source | Last Doubt |
NCERT Solutions Class 10th Science Chapter – 9 प्रकाश – परावर्तन तथा अपवर्तन (Light – Reflection and Refraction) Notes in Hindi प्रकाश के कितने नियम होते हैं?, प्रकाश का अपवर्तन कितना होता है?, दर्पण कितने प्रकार के होते हैं?, गाड़ी में कौन सा दर्पण लगा होता है?, दर्पण का सूत्र क्या होता है?, कौन सा दर्पण उल्टा बनता है?, कांच कौन सा माध्यम है?, प्रकाश क्यों झुकता है?, अपवर्तन की खोज किसने की थी?, प्रकाश का मात्रक क्या होता है?, प्रकाश किसका बना होता है? |
NCERT Solutions Class 10th Science Chapter – 9 प्रकाश – परावर्तन तथा अपवर्तन (Light – Reflection and Refraction)
Chapter – 9
प्रकाश – परावर्तन तथा अपवर्तन
Notes
प्रकाश – प्रकाश वह ऊर्जा है जिसके द्वारा हम वस्तुओं को देख सकते हैं।
प्रकाश के गुण
• प्रकाश सरल (सीधी) रेखाओं में गमन करता है।
• प्रकाश विद्युत चुंबकीय तरंग है इसलिए इसे संचरण के लिए माध्यम की आवश्यकता नहीं पड़ती।
• प्रकाश अपारदर्शी वस्तुओं की तीक्ष्ण छाया बनाता है।
• प्रकाश की चाल निर्वात में सबसे अधिक है : 3 × 108 m/s
प्रकाश का परावर्तन – उच्च कोटि की पालिश किया हुआ पृष्ठ — जैसे की दर्पण अपने पर पड़ने
वाले अधिकांश प्रकाश को परावर्तित कर देता है।
प्रकाश के परावर्तन के नियम
(i) आपतन कोण, परावर्तन कोण के बराबर होता है।
(ii) आपतित किरण, दर्पण के आपतन बिन्दु पर अभिलंब तथा परावर्तित किरण सभी एक ही तल में होते हैं।
प्रतिबिंब – प्रतिबिंब वहाँ बनता है जिस बिंदु पर कम से दो परावर्तित किरणें प्रतिच्छेदित होती हैं या प्रतिच्छेदित प्रतीत होती हैं।
वास्तविक प्रतिबिंब | आभासी प्रतिबिंब |
1. यह तब बनता है जब प्रकाश की किरणे वास्तव में प्रतिच्छेदित होती है। | 1. यह तब बनता है जब प्रकाश की किरणे वास्तव में प्रतिच्छेदित प्रतित होती है। |
2. इसे परदे पर प्राप्त करते है। | 2. इसे परदे पर प्राप्त नहीं करते है। |
3. वास्तविक प्रतिबिंब उल्टा बनता है। | 3. आभासी प्रतिबिंब सीधा बनता है। |
समतल दर्पण द्वारा प्राप्त प्रतिबिंब
• आभासी एवं सीधा होता है।
• प्रतिबिंब का आकार वस्तु के आकार के बराबर होता है।
• प्रतिबिंब दर्पण के उतने पीछे बनता है जितनी वस्तु की दर्पण से दूरी होती है।
• प्रतिबिंब पार्श्व परिवर्तित होता है।
पार्श्व परिवर्तन – इसमें वस्तु का दायां भाग बायां प्रतीत होता है और बायां भाग दायां।
गोलीय दर्पण – गोलीय दर्पण का परावर्तक तल अंदर की ओर या बाहर की ओर वक्रित होता है। गोलीय दर्पण जिसका परावर्तक पृष्ठ अंदर की ओर अर्थात् गोले के केंद्र की ओर वक्रित है वह अवतल दर्पण कहलाता है। गोलीय दर्पण जिसका परावर्तक पृष्ठ बाहर की और वकृत है।, उत्तल दर्पण कहलाते है।
ध्रुव – गोलीय दर्पण के परावर्तक पृष्ठ के केंद्र को दर्पण का ध्रुव कहते हैं। यह दर्पण के पृष्ठ पर स्थित होता है। ध्रुव की प्राय: P अक्षर से निरूपित करते हैं।
मुख्य अक्ष – गोलीय दर्पण के ध्रुव तथा वक्रता त्रिज्या से गुजरने वाली एक सीधी रेखा को मुख्य अक्ष कहते हैं। मुख्य अक्ष दर्पण के ध्रुव पर अभिलंब हैं।
वक्रता केंद्र – गोलीय दर्पण का परावर्तक पृष्ठ एक गोले का भाग है। इस गोले का केंद्र गोलीय दर्पण का वक्रता केंद्र कहलाता है। यह अक्षर C से निरूपित किया जाता है।
वक्रता त्रिज्या – गोलीय दर्पण का परावर्तक पृष्ठ जिस गोले का भाग है, उसकी त्रिज्या दर्पण की वक्रता त्रिज्या कहलाती है । इसे अक्षर R से निरूपित किया जाता है।
द्वारक (Aperture) – गोलीय दर्पण के परावर्तक पृष्ठतल की वृत्ताकार सीमारेखा का व्यास दर्पण का द्वारक (Aperture) कहलाता है। इसे MN से दर्शाया जाता है।
मुख्य फोकस – मुख्य अक्ष पर वह बिंदु जहाँ मुख्य अक्ष के समांतर किरणें आकर मिलती हैं या परावर्तित किरणें मुख्य अक्ष पर एक बिंदु से आती हुई महसूस होती हैं वह बिंदु गोलीय दर्पण का मुख्य फोकस कहलाता है।
गोलीय दर्पण के ध्रुव तथा मुख्य फोकस के मध्य की दूरी फोकस दूरी कहलाती है। इसे अक्षर If द्वारा निरूपित करते हैं।
छोटे द्वारक के गोलीय दर्पणों के लिए वक्रता त्रिज्या फोकस दूरी से दुगुनी होती है। हम इस संबंध को R = 2f द्वारा व्यक्त करते हैं। f = R/2
अवतल दर्पण द्वारा बिंब की विभिन्न स्थितियों के लिए बने प्रतिबिंब | |||
बिंब की सिथति | प्रतिबिंब की स्थिति | प्रतिबिंब का आकार | प्रतिबिंब की प्रकृति |
(i) अनंत पर | फोकस F पर बिंदु साइज | अत्यधिक छोटा | वास्तविक तथा उल्टा |
(ii) C से परे | F तथा C के बीच | छोटा | वास्तविक तथा उल्टा |
(iii) C पर | C पर | समान साइज | वास्तविक तथा उल्टा |
(iv) C तथा F के बीच | C से परे | बड़ा | वास्तविक तथा उल्टा |
(v) F पर | अनंत पर | अत्यधिक बड़ा | वास्तविक तथा उल्टा |
(vi) P तथा F के बीच | दर्पण के पीछे | विवर्धित बड़ा | आभासी तथा सीधा |
अवतल दर्पणों के उपयोग
(1) सामान्यत : टॉर्च, सर्चलाइट तथा वाहनों की हैडलाइट में प्रकाश का शक्तिशाली समांतर किरण पुंज प्राप्त करने के लिए किया जाता है।
(2) दंत विशेषज्ञ अवतल दर्पणों का उपयोग मरीजों के दाँतों का बड़ा प्रतिबिंब देखने के लिए करते हैं।
(3) इन्हें प्राय: चेहरे का बड़ा प्रतिबिंब देखने के लिए शेविंग दर्पणों के रूप में उपयोग किया जाता है।
(4) सौर भट्टियों में सूर्य के प्रकाश को केंद्रित करने के लिए बड़े अवतल दर्पणों का उपयोग किया जाता है।
उत्तल दर्पण
1. उत्तल दर्पण के मुख्य अक्ष के समांतर प्रकाश किरण परावर्तन के पश्चात दर्पण के मुख्य फोकस से अपसरित होती प्रतीत होगी।
2. उत्तल दर्पण के मुख्य फोकस से गुजरने वाला किरण परावर्तन के पश्चात मुख्य अक्ष के समांतर निकलेगी।
3. उत्तल दर्पण के वक्रता केन्द्र की ओर निर्देशित किरण परावर्तन के पश्चात उसी दिशा में वापस परावर्तित हो जाती है।
4. उत्तल दर्पण के बिंदु P की ओर मुख्य अक्ष से तिर्यक दिशा में आपतित किरण तिर्यक दिशा में ही परावर्तित होती है। आपतित तथा परावर्तित किरणें आपतन बिंदु पर मुख्य अक्ष से समान कोण बनाती है।
उत्तल दर्पण द्वारा बने प्रतिबिंब की प्रकृति, स्तिथि तथा आपेक्षिक आकार
क्रम सः | बिंब की स्तिथि | प्रतिबिंब की स्तिथि | प्रतिबिंब का आकार | प्रतिबिंब का प्रकति |
1. | अनंत पर | फोकस पर दर्पण के पीछे | अत्यधिक छोटा | आभासी तथा सीधा |
2. | अनंत तथा दर्पण के ध्रुव P के बीच | P तथा F के बीचदर्पण के पीछे | छोटा | आभासी तथा सीधा |
किरण आरेख
1. अनंत पर
2. अनंत तथा दर्पण के ध्रुव P के बीच
उत्तल दर्पणों के उपयोग
1. उत्तल दर्पणों का उपयोग सामान्यतः वाहनों में किया जाता है। इनमें ड्राइवर अपने पीछे के वाहनों को देख सकते हैं । उत्तल दर्पणों को इसलिए प्राथमिकता दी जाती हैं क्योंकि ये सदैव सीधा तथा छोटा प्रतिबिंब बनाते हैं और ड्राइवर को अपने पीछे के बहुत बड़े क्षेत्र को देखने में समर्थ बनाते हैं।
2. दुकानों में इनका इस्तेमाल सिक्योरिटी दर्पण के रूप में किया जाता है।
गोलीय दर्पणों द्वारा परावर्तन के लिए चिन्ह परिपाटी
(i) बिंब हमेशा दर्पण के बाईं ओर रखा जाता है। इसका अर्थ है कि दर्पण पर बिंब से प्रकाश बाईं ओर से आपतित होता है।
(ii) मुख्य अक्ष के समांतर सभी दूरियाँ दर्पण के ध्रुव से मापी जाती हैं।
(iii) मूल बिंदु के दाईं ओर (+x- अक्ष के अनुदिश ) मापी गई सभी दूरियाँ धनात्मक मानी जाती हैं जबकि मूल बिंदु के बाईं ओर (-x- अक्ष के अनुदिश) मापी गई दूरियाँ ऋणात्मक मानी जाती हैं।
(iv) मुख्य अक्ष के लंबवत तथा ऊपर की ओर (+y- अक्ष के अनुदिश) मापी जाने वाली दूरियाँ धनात्मक मानी जाती हैं।
(v) मुख्य अक्ष के लंबवत तथा नीचे की ओर (-y- अक्ष के अनुदिश) मापी जाने वाली दूरियाँ ऋणात्मक मानी जाती हैं।
• बिंब की दूरी (u) हमेशा ऋणात्मक होती है ।
• अवतल दर्पण की फोकस दूरी हमेशा ऋणात्मक होती है।
• उत्तल दर्पण की फोकस दूरी हमेशा धनात्मक होती है।
दर्पण सूत्र
1/V + 1/U = 1/FV = प्रतिबिंब की दूरी
U = बिंब की दूरी
F = फोकस दूरी
आवर्धन – गोलीय दर्पण द्वारा उत्पन्न वह आपेक्षिक विस्तार है जिससे ज्ञान होता है कि कोई प्रतिबिंब बिंब की अपेक्षा कितना गुना आवर्धित है, इसे प्रतिबिंब की ऊँचाई तथा बिंब की ऊँचाई के अनुपात रूप में व्यक्त किया जाता है।
m = प्रतिबिंब की उचाई (h’)/बिंब की उचाई (h0)
m = hi/h0
m = -v/u
m = hi/h0 = -v/u
यदि ‘m’ ऋणात्मक है तो प्रतिबिंब वास्तविक होता है।
यदि ‘m’ धनात्मक है तो प्रतिबिंब आभासी बनता है।
यदि hi = h0 तो m = 1 – प्रतिबिंब का आकार बिंब के बराबर है।
यदि hi > h0 तो m > 1 – प्रतिबिंब का आकार बिंब से बड़ा होता है।
यदि hi < h0 तो m < 1 – प्रतिबिंब का आकार बिंब से छोटा होता है।समतल दर्पण का आवर्धन सदैव + 1 होता है (+) साइन आभासी प्रतिबिंब दर्शाता है।
(1) दर्शाता है कि प्रतिबिंब का आकार बिंब के आकार के बराबर है।
• यदि m = + ve और m < 1 तो दर्पण उत्तल है ।
• यदि m = + ve और m> 1 तो दर्पण अवतल है।
• यदि m = – ve और तो दर्पण अवतल है।
प्रकाश – अपवर्तन के कुछ उदाहरण
(i) प्रकाश के अपवर्तन के कारण स्विमिंग पूल का तल वास्तविक स्थिति से विस्थापित हुआ प्रतीत होता है।
(ii) पानी में आंशिक रूप से डूबी हुई पेंसिल वायु तथा पानी के अन्तरपृष्ठ पर टेढ़ी प्रतीत होती है।
(iii) काँच के गिलास में पड़े नीबू वास्तविक आकार से बड़े प्रतीत होते हैं।
(iv) कागज पर लिखे शब्द गिलास स्लैब से देखने पर ऊपर उठे हुए प्रतीत होते हैं।
प्रकाश – अपवर्तन के दो नियम
1.आपतित किरण अपवर्तित किरण तथा दोनों माध्यमों को पृथक करने वाले पृष्ठ के आपतन बिंदु पर अभिलंब सभी एक ही तल में होते हैं।
2. प्रकाश के किसी निश्चित रंग तथा निश्चित माध्यमों के युग्म के लिए आपतन कोण की ज्या (sine) तथा अपवर्तन कोण की ज्या (sine) का अनुपात स्थिर होता है । इस नियम को स्नेल का अपवर्तन का नियम भी कहते हैं।Sin i/Sin r = स्थिरांकअपवर्तनांकn = माध्यम -1 में प्रकाश की चाल/माध्यम -2 में प्रकाश की चालn21 = माध्यम – 2 का माध्यम -1 के सापेक्ष अपवर्तनांक.
n21 = v1/v2
n12 = माध्यम 1 का माध्यम 2 के सापेक्ष अपवर्तनांक n12 से निरूपित करते है।.
n12 = v1/v2
निरपेक्ष अपवर्तनांक – यदि माध्यम – 1 निर्वात या वायु है, तब माध्यम – 2 का अपवर्तनांक
निर्वात के सापेक्ष माना जाता है । यह माध्यम का निरपेक्ष अपवर्तनांक कहलाता है।N = C/V
C = 3 × 108 ms-1हीरे का अपवर्तनांक सबसे अधिक है। हीरे का अपवर्तनांक 2.42 है इसका तात्पर्य यह है कि प्रकाश की चाल 1/2.42 गुणा कम है हीरे में निर्वात की अपेक्षा।
उत्तल लेंस | अवतल लेंस |
• यह किनारों की अपेक्षा बीच से मोटा होता है। • इसे अभिसारी लेंस भी कहते हैं। | • यह बीच की अपेक्षा किनारों से मोटा होता है। • इसे अपसारी लेंस भी कहते हैं। |
उत्तल लेंस के किरण आरेख बनाने के नियम
(1) बिंब से मुख्य अक्ष के समांतर आने वाली कोई प्रकाश किरण उत्तल लेंस से अपवर्तन के पश्चात् लेंस के दूसरी ओर मुख्य फोकस से गुजरेगी।
(2) मुख्य फोकस से गुजरने वाली प्रकाश किरण, उत्तल लेंस से अपवर्तन के पश्चात् मुख्य अक्ष के समांतर निर्गत होगी।
(3) लेंस के प्रकाशिक केंद्र से गुजरने वाली प्रकाश किरण अपवर्तन के पश्चात बिना किसी विचलन के निर्गत होती है।
क्रम संख्या | बिंब की स्तिथि | प्रतिबिंब की स्तिथि | प्रतिबिंब का आपेक्षिक आकार | प्रतिबिंब का प्रकृति |
1 | अनन्त पर | F2 पर | अत्यधिक छोटा | आभासी तथा उल्टा |
2. | 2F1 से परे | 2F2 तथा 2F2 के बीच | छोटा | वास्तविक तथा उल्टा |
3. | 2F1 पर | 2F2 स पर | समान साइज | वास्तविक तथा उल्टा |
4 . | F1 तथा 2F1 के बीच | 2F1 से परे | विवर्धित (बड़ा) | वास्तविक तथा उल्टा |
5 . | फोकस F1 पर | अनन्त पर | अत्यधिक विवर्धित | वास्तविक तथा उल्टा |
6 . | प्रकाशिक केंद्र O के बीच | जिस और बिंब है।लेंस के उसी और | बड़ा विवर्धित | आभासी तथा उल्टा |
अवतल लेंस के किरण आरेख बनाने के नियम – बिंब की विभन्न स्तिथियो के लिए अवतल लेंस द्वारा बने प्रतिबिंब की प्रकृति, स्तिथि तथा आपेक्षिक साइज-
क्रम संख्या | बिंब की स्तिथि | प्रतिबिंब की स्तिथि | प्रतिबिंब का आपेक्षिक आकार | प्रतिबिंब की प्रकृति |
1. | अनन्त पर | फोकस F1 पर | अत्यधिक छोटा | आभासी तथा सीधा |
2. | अनंत तथा लेंस के प्रकाशित केंद्र 0 के बीच | F1 तथा O के बीच | छोटा | आभासी तथा सीधा |
गोलीय लेंसों के लिए चिन्ह – परिपाटी
लेंसों के लिए हम गोलीय दर्पणों जैसी ही चिन्ह परिपाटी अपनाते हैं । किंतु लेंसों में सभी माप उनके प्रकाशिक केन्द्र से लिए जाते हैं।
लेंस सूत्र – 1/v – 1/u = 1/f
आवर्धन – m = प्रतिबिंब की उचाई/बिंब की उचाई = hi/ho.
m = v/u. m = hi/ho = v/u
लेंस की क्षमता – किसी लेंस द्वारा प्रकाश किरणों को अभिसरण या अपसरण करने की मात्रा को उसकी क्षमता के रूप में व्यक्त किया जाता है। लेंस की क्षमता उसकी फोकस दूरी का व्युत्क्रम होती है।
लेंस की क्षमता P = 1/f
लेंस की क्षमता का मात्रक (डाइऑप्टर) (D) है।
1D = 1m-1
• डाइऑप्टर उस लेंस की क्षमता है जिसकी फोकस दूरी 1 मीटर हो।
• उत्तल लेंस की क्षमता धनात्मक होती है। (+ve)
• अवतल लेंस की क्षमता ऋणात्मक होती है। (-ve)
अनेक प्रकाशिक यंत्रों में कई लेंस लगे होते हैं । उन्हें प्रतिबिंब को अधिक आवर्धित तथा सुस्पष्ट बनाने के लिए संयोजित किया जाता है। सम्पर्क में रखे लेंसों की कुल क्षमता (P) उन लेंसों की पृथक-पृथक क्षमताओं का बीजगणितीय योग होती है।
P = P1 + P2 + P3 +…………………
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