NCERT Solutions Class 10th Science New Syllabus Chapter – 7 जीव जनन कैसे करते हैं (How Do Organisms Reproduce)
Text Book | NCERT |
Class | 10th |
Subject | Science |
Chapter | 7th |
Chapter Name | जीव जनन कैसे करते हैं (How do Organisms Reproduce) |
Category | Class 10th Science New Syllabus |
Medium | Hindi |
Source | Last Doubt |
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NCERT Solutions Class 10th Science New Syllabus Chapter – 7 जीव जनन कैसे करते हैं (How do Organisms Reproduce)
Chapter – 7
जीव जनन कैसे करते हैं
Notes
जनन
(i) जनन वह प्रक्रिया है जिसके द्वारा सजीव अपने जैसे नए जीव उत्पन्न करते हैं। यह पृथ्वी पर जीवन की निरंतरता को बनाए रखने के लिए आवश्यक है।
(ii) कोशिका के केन्द्रक में पाए जाने वाले गुणसूत्रों के डी. एन. ए. (DNA डिऑक्सीराइबो न्यूक्लीक अम्ल) के अणुओं में आनुवंशिक गुण होते हैं।
(iii) डी. एन. ए. (DNA) प्रतिकृति बनाता है तथा नई कोशिकाएँ बनाता है। इससे कोशिकाओं में विभिन्नता उत्पन्न होती है। ये नई कोशिकाएँ एकसमान हैं परन्तु समरूप नहीं।
विभिन्नता का महत्त्व
(i) लम्बे समय तक प्रजाति (स्पीशीज) की उत्तर-जीविता बनाए रखने में उपयोगी।
(ii) जैव विकास का आधार।
प्रजनन के प्रकार – प्रजनन दो प्रकार के होते है।
(i) अलैंगिक प्रजनन
(ii) लैंगिक प्रजनन
(i) अलैंगिक प्रजनन
• एकल जीव नए जीव उत्पन्न करता है।
• युग्मक का निर्माण नहीं होता है।
• नया जीव पैतृक जीव के समान/समरूप होता है।
• सतत् गुणन के लिए यह एक बहुत ही उपयोगी माध्यम है।
• यह निम्न वर्ग के जीवों में अधिक पाया जाता है।
(ii) लैंगिक प्रजनन
• दो एकल जीव (एक नर व एक मादा) मिलकर नया जीव उत्पन्न करते हैं।
• नर युग्मक व मादा युग्मक बनते हैं।
• नया जीव अनुवांशिक रूप से पैतृक जीवों के समान होता है परन्तु समरूप नहीं।
• प्रजाति में विभिन्नताएँ उत्पन्न करने में सहायक होता है।
• उच्च वर्ग के जीवों में पाया जाता है।
अलैंगिक के प्रकार
• विखंडन
• खंडन
• पुनर्जनन
• मुकुलन
• कायिक प्रवर्धन
• बीजाणु समासध
अलैंगिक प्रजनन की विधियाँ
(i) विखंडन – इस प्रक्रम में एक कोशिका दो या दो से अधिक कोशिकाओं में विभाजित हो जाती है।
(क) द्विखंडन – जीव दो कोशिकाओं में विभाजित होता है।
(ख) बहुखंडन – जीव बहुत सारी कोशिकाओं में विभाजित हो जाता है।
उदाहरण – प्लैज्मोडियम
(ii) खंडन – इस प्रजनन विधि में सरल संरचना वाले बहुकोशिकीय जीव विकसित होकर छोटे-छोटे टुकड़ों में खंडित हो जाता है। ये टुकड़े वृद्धि कर नए जीव में विकसित हो जाते हैं।
उदाहरण – स्पाइरोगाइरा
(iii) पुनरुद्रभवन (पुनर्जनन) – इस प्रक्रम में किसी कारणवश, जब कोई जीव कुछ टुकड़ों में टूट जाता है, तब प्रत्येक टुकड़ा नए जीव में विकसित हो जाता है।
उदाहरण – प्लेनेरिया, हाइड्रा
(iv) मुकुलन – इस प्रक्रम में, जीव के शरीर पर एक उभार उत्पन्न होता है जिसे मुकुल कहते हैं। यह मुकुल पहले नन्हें फिर पूर्ण जीव में विकसित हो जाता है तथा जनक से अलग हो जाता है।
उदाहरण – हाइड्रा, यीस्ट (खमीर)
(v) कायिक प्रवर्धन – कुछ पौधों में नए पौधे का निर्माण उसके कायिक भाग जैसे जड़, तना पत्तियाँ आदि से होता है, इसे कायिक प्रवर्धन कहते हैं।
(a) प्राकृतिक विधियाँ
• जड़ द्वारा – डहेलिया, शकरकंदी
• तने द्वारा – आलू, अदरक
• पत्तियों द्वारा – ब्रायोफिलम की पत्तियों की कोर पर कलिकाएँ होती हैं, जो विकसित होकर नया पौधा बनाती है।
(b) कृत्रिम विधियाँ
• रोपण – आम
• कर्तन – गुलाब
• लेयरिंग – चमेली
(vi) बीजाणु समासंघ – कुछ जीवों के तंतुओं के सिरे पर बीजाणु धानी बनती है जिनमें बीजाणु होते हैं। बीजाणु गोल संरचनाएँ होती हैं जो एक मोटी भित्ति से रक्षित होती हैं। अनुकूल परिस्थिति मिलने पर बीजाणु वृद्धि करने लगते हैं।
ऊतक संवर्धन – इस विधि में शाखा के सिरे से कोशिकाएँ लेकर उन्हें पोषक माध्यम में रखा जाता है। ये कोशिकाएँ गुणन कर कोशिकाओं के गुच्छे जिसे कैलस कहते हैं में परिवर्तित हो जाती है। कैलस को हॉर्मोन माध्यम में रखा जाता है, जहाँ उसमें विभेदन होकर नए पौधे का निर्माण होता है जिसे फिर मिट्टी में रोपित कर देते है।
उदहारण – आर्किक, सजावटी पौधे।
कायिक संवर्धन के लाभ
• बीज उत्पन्न न करने वाले पौधे; जैसे – केला, गुलाब आदि के नए पौधे बना सकते हैं।
• नए पौधे आनुवंशिक रूप में जनक के समान होते हैं।
• बीज रहित फल उगाने में मदद मिलती है।
• पौधे उगाने का सस्ता और आसान तरीका है।
लैंगिक
• लैंगिक प्रजनन नर व मादा युग्मक के मिलने से होता है।
• नर व मादा युग्मक के मिलने के प्रक्रम को निषेचन कहते हैं।
• संतति में विभिन्नता उत्पन्न होती है।
पुष्पी पौधों में लैंगिक जनन
• फूल पौधे का जनन अंग है।
• एक फूल के मुख्य भाग – बाह्य दल, पंखुडी, स्त्रीकेसर एवं पुंकेसर होते हैं।
फूल के प्रकार
(i) उभयलिंगी पुष्प – स्त्रीकेसर व पुंकेसर दोनों उपस्थित होते हैं।
उदाहरण – सरसों, गुड़हल।
(ii) एक लिंगी पुष्प – स्त्रीकेसर और पुंकेसर में से कोई एक ही जननांग उपस्थित होता है।
उदाहरण – पपीता, तरबूज।
पुष्प की संरचना – पुष्प, पौधों की वह संरचनाएं हैं जो लैंगिक प्रजनन में शामिल होते हैं। पुष्प के मुखयतः चार भाग होते है पुंकेसर, स्त्रीकेसर, पंखुड़ी और बाह्यदल जिसमे से पंखुड़ी और बाह्यदल जैसे गैर-आवश्यक भागो को छोड़कर बाकि लैंगिक प्रजनन में शामिल या प्रयोग में आते है।
बीज निर्माण की प्रक्रिया
(i) परागकोश में उत्पन्न परागकण, हवा, पानी या जन्तु द्वारा उसी फूल के वर्तिकाग्र (स्वपरागण) या दूसरे फूल के वर्तिकाग्र (परपरागण) पर स्थानांतरित हो जाते हैं।
(ii) परागकण से एक नलिका विकसित होती है जो वर्तिका से होते हुए बीजांड तक पहुँचती है।
(iii) अंडाशय के अन्दर नर व मादा युग्मक का निषेचन होता है तथा युग्मनज का निर्माण होता है,
(iv) युग्मनज में विभाजन होकर भ्रूण का निर्माण होता है। बीजांड से एक कठोर आवरण विकसित होकर बीज में बदल जाता है।
(v) अंडाशय फल में बदल जाता है तथा फूल के अन्य भाग झड़ जाते हैं।
मानव में प्रजनन
• मानवों में लैंगिक जनन होता है।
• लैंगिक परिपक्वता – जीवन का वह काल जब नर में शुक्राणु तथा मादा में अंड-कोशिका का निर्माण शुरू हो जाता है। किशोरावस्था की इस अवधि को यौवनारंभ कहते हैं।
यौवनारंभ पर परिवर्तन
(a) किशोरों में एक समान –
• कांख व जननांग के पास गहरे बालों का उगना।
• त्वचा का तैलीय होना तथा मुँहासे निकलना।
(b) लड़कियों में
• स्तन के आकार में वृद्धि होने लगती है।
• रजोधर्म होने लगता है।
(c) लड़कों में
• चेहरे पर दाढ़ी-मूँछ निकलना।
• आवाज का फटना।
ये परिवर्तन संकेत देते हैं कि लैंगिक परिपक्वता हो रही है।
नर जनन तंत्र
(i) वृषण – वृषण उदर गुहा के बाहर वृषण कोष में उपस्थित होते हैं। वृषण कोष तापमान तुलनात्मक रूप से कम होता है, जो शुक्राणु बनने के लिए आवश्यक है।
• नर युग्मक (शुक्राणु) यहाँ पर बनते हैं।
• वृषण ग्रन्थी, टेस्टोस्टेरॉन हार्मोन उत्पन्न करती है।
टेस्टोस्टेरॉन के कार्य
(a) शुक्राणु उत्पादन का नियंत्रण
(b) लड़कों में यौवनावस्था परिवर्तन
(ii) शुक्रवाहिनी – ये शुक्राणुओं को वृषण से शिश्न तक पहुँचाती है।
(iii) मूत्रमार्ग – यह मूत्र और वीर्य दोनों के बाहर जाने का मार्ग हैं। बाहरी आवरण के साथ इसे शिश्न कहते हैं।
(iv) संबंधित ग्रंथियाँ – शुक्राशय ग्रथि तथा प्रोस्ट्रेट ग्रंथि अपने स्राव शुक्रवाहिनी में डालते हैं।
इससे –
• शुक्राणु तरल माध्यम में आ जाते हैं।
• यह माध्यम उन्हें पोषण प्रदान करता है।
• उनके स्थानांतरण में सहायता करता है। शुक्राणु तथा ग्रंथियों का स्राव मिलकर वीर्य बनाते हैं।
मादा जनन तंत्र
(i) अंडाशय – मादा युग्मक अथवा अंड-कोशिका का निर्माण अंडाशय में होता है।
• लड़की के जन्म के समय ही अंडाशय में हजारों अपरिपक्व अंड होते हैं।
• यौवनारंभ पर इनमें से कुछ अंड परिपक्व होने लगते हैं।
• दो में से एक अंडाशय द्वारा हर महीने एक परिपक्व अंड उत्पन्न किया जाता है।
• अंडाशय एस्ट्रोजन व प्रोजेस्ट्रोन हॉर्मोन भी उत्पन्न करता है।
(ii) अंडवाहिका (फेलोपियन ट्यूब)
• अंडाशय द्वारा उत्पन्न अंड कोशिका को गर्भाशय तक स्थानांतरण करती है।
• अंड कोशिका व शुक्राणु का निषेचन यहाँ पर होता है।
जब अंड – कोशिका का निषेचन होता है।
• निषेचित अंड युग्मनज कहलाता है, जो गर्भाशय में रोपित होता है। गर्भाशय में रोपण के पश्चात् युग्मनज में विभाजन व विभेदन होता है तथा भ्रूण का निर्माण होता है।
• प्लेसेंटा – यह एक विशिष्ट उत्तक हैं जिसकी तश्तरीनुमा संरचना गर्भाशय में धंसी होती है।
इसका मुख्य कार्य
(i) माँ के रक्त से ग्लूकोज ऑक्सीजन आदि (पोषण) भ्रूण को प्रदान करना।
(ii) भ्रूण द्वारा उत्पादित अपशिष्ट पदार्थों का निपटान।
• अंड के निषेचन से लेकर शिशु के जन्म तक के समय को गर्भकाल कहते हैं। इसकी अवधि लगभग 9 महीने होती है।
क्या होता है जब अंड का निषेचन नहीं होता?
• हर महीने गर्भाशय खुद को निषेचित अंड प्राप्त करने के लिए तैयार करता है।
• गर्भाशय की भित्ती मांसल एवं स्पोंजी हो जाती है। यह भ्रूण के विकास के लिए जरूरी है।
• यदि निषेचन नहीं होता है तो इस भित्ति की आवश्यकता नहीं रहती। अतः यह पर्त धीरे-धीरे टूट कर योनि मार्ग से रक्त एवं म्यूकस के रूप में बाहर निकलती है।
• यह चक्र लगभग एक महीने का समय लेता है तथा इसे ऋतुस्राव अथवा रजोधर्म कहते हैं।
• 40 से 50 वर्ष की उम्र के बाद अंडाशय से अंड का उत्पन्न होना बन्द हो जाता है। फलस्वरूप रजोधर्म बन्द हो जाता है जिसे रजोनिवृति कहते हैं।
जनन स्वास्थ्य – जनन स्वास्थ्य का अर्थ है, जनन से संबंधित सभी आयाम जैसे शारीरिक, मानसिक, सामाजिक एवं व्यावहारिक रूप से स्वस्थ्य होना।
• रोगों का लैंगिक संचरण – (STD’s) अनेक रोगों का लैंगिक संचरण भी हो सकता है;
जैसे – (a) जीवाणु जनित – गोनेरिया, सिफलिस
(b) विषाणु जनित – मस्सा (warts), HIV AIDS
कंडोम के उपयोग से इन रोगों का संचरण कुछ सीमा तक रोकना संभव है।
गर्भरोधन – गर्भधारण को रोकना गर्भरोधन कहलाता है।
गर्भरोधन के प्रकार
1. यांत्रिक अवरोध
2. रासायनिक तकनीक
3. IUCD
4. शल्यक्रिया
यांत्रिक अवरोध – शुक्राणु को अंडकोशिका तक नहीं पहुँचने दिया जाता।
(i)कंडोम – शिश्न को ढकने वाले कंडोम
(ii)सरवाइकल कैंप – योनि में रखे जाने वाले सरवाइकल कैंप
2. रासायनिक तकनीक
• मादा में अंड को न बनने देना, इसके लिए दवाई ली जाती है जो हॉर्मोन के संतुलन को परिवर्तित कर देती है।
• इनके अन्य प्रभाव (विपरीत प्रभाव) भी हो सकते हैं।
3. IUCD (Intra Uterine contraceptive device) – लूप या कॉपर-T को गर्भाशय में स्थापित किया जाता है। जिससे गर्भधारण नहीं होता।
• लूप
• टयूबेक्टोमी
4. शल्यक्रिया
(i) नसबंधी – पुरुषों में शुक्रवाहिकाओं को रोक कर, उसमें से शुक्राणुओं के स्थानांतरण को रोकना।
(ii) टयूबेक्टोमी – महिलाओं में अंडवाहिनी को अवरुद्ध कर, अंड के स्थानांतरण को रोकना।
भ्रूण हत्या – मादा भ्रूण को गर्भाशय में ही मार देना भ्रूण हत्या कहलाता है। जैसे एक स्वस्थ समाज के लिए, संतुलित लिंग अनुपात आवश्यक है। यह तभी संभव होगा जब लोगों में जागरूकता फैलाई जाएगी व भ्रूण हत्या तथा भ्रूण लिंग निर्धारण जैसी घटनाओं को रोकना होगा।
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