NCERT Solutions Class 10th science Chapter – 5 जैव प्रक्रम (Life Processes)
Text Book | NCERT |
Class | 10th |
Subject | Science |
Chapter | 5th |
Chapter Name | जैव प्रक्रम (Life Processes) |
Category | Class 10th Science |
Medium | Hindi |
Source | Last Doubt |
NCERT Solutions Class 10th science Chapter – 5 जैव प्रक्रम (biological process) Notes in Hindi जिसमे हम जैव प्रक्रम, जैव प्रक्रम के प्रकार, पोषण जैसे स्वपोषी पोषण और विषमपोषी, अन्य प्रमुख बिंदुएं जो की अमीबा में पोषण, पैरामीशियम में पोषण, प्रकाश संश्लेषण, रंध्र, भोजन ग्रसिका, आमाशय, क्षुद्रांत्र और मनुष्य में पोषण तथा श्वसन वायवीय और अवायवी श्वसन और अन्य ऐसे ही रोचक जानकारी को समझेंगे और इसके बारे में पढ़ेंगे। |
NCERT Solutions Class 10th science Chapter – 5 जैव प्रक्रम (Life Processes)
Chapter – 5
जैव प्रक्रम
Notes
जैव प्रक्रम (Life Processes) – ऐसे सभी प्रक्रम जो सम्मिलित रूप से जीवों के अनुरक्षण का काम करते है, ऐसे कार्य को जैव प्रक्रम के नाम से जानते हैं। तथा जैव प्रक्रम चार प्रकार के होते है।
(i) पोषण – जीवों को कार्य करने की शक्ति प्रदान करना।
(ii) श्वसन – श्वास द्वारा भोजन का विखंडन करके ऊर्जा पहुँचना।
(iii) वहन – जीवों में आपूर्ति होने वाले चीजों को वहन तंत्र से पूर्ति करना।
(iv) उत्सर्जन – जीवों में विशिष्ट पदार्थों को लेना और अपशिष्ट पदार्थ को निकालने के लिए उत्सर्जन तंत्र का प्रयोग करना।
पोषण (Nutrition) – जीवों को किसी भी प्रकार के कार्य करने के लिए भोजन की आवश्यकता होती है। जब जीव भोजन को ग्रहण करने के बाद में पचे हुए भोजन का अवशोषण एवं शरीर द्वारा अनुरक्षण के लिए उसका उपयोग करता है, तो वह पोषण कहलाता है। उदाहरण के लिए, जब हम टहलते हैं या साइकिल की सवारी करते हैं, तो हम ऊर्जा का उपयोग करते हैं। और उस स्थिति में भी जब हम कोई आभासी क्रियाकलाप नहीं कर रहे हैं, हमारे शरीर में क्रम की स्थिति के अनुरक्षण करने के लिए ऊर्जा की आवश्यकता होती है जो पोषण की सहायता से पूरा होता है। पोषण के आधार पर जीवों को दो समूह में बाँटा जा सकता है।
(1) स्वपोषी पोषण – जो जीव अपना भोजन खुद बना कर खाता है।
(2) विषमपोषी पोषण – जो जीव अपने भोजन के लिए दूसरे जीवों पर निर्भर रहता है।
स्वपोषी और विषमपोषी में अंतर
स्वपोषी पोषण | विषमपोषी पोषण |
पोषण का वह तरीका जिसमें जीव अपने आस-पास के वातावरण में उपस्थित सरल अजैव पदार्थों जैसे CO2, पानी और सूर्य के प्रकाश से अपना भोजना स्वयं बनाता है। | पोषण का वह तरीका जिसमें जीव अपना भोजन स्वयं ना बनाके किसी और अन्य जीवों पर निर्भर होता है। |
उदाहरण – हरे पौधे। | उदाहरण – मानव व अन्य जीव। |
प्रकाश संश्लेषण (Photosynthesis) – यह वह प्रक्रम है जिसमें स्वपोषी बाहर से लिए पदार्थों को ऊर्जा संचित रूप में परिवर्तित कर देता है। ये पदार्थ कार्बन डाइऑक्साइड तथा जल के रूप में लिए जाते हैं, जो सूर्य के प्रकाश तथा क्लोरोफिल की उपस्थिति में कार्बोहाइड्रेट में परिवर्तित कर दिए जाते हैं।
6CO2 + 12H2O क्लोरोफिल/सूर्य का प्रकाश = C6H12O6 + 6O2 + 6H2O
प्रकाश संश्लेषण के लिए आवश्यक कच्ची सामग्री
1. सूर्य का प्रकाश।
2. क्लोरोफिल।
3. कार्बन डाइऑक्साइड – स्थलीय पौधे इसे वायुमण्डल से प्राप्त करते हैं।
4. जल – स्थलीय पौधे, जड़ों द्वारा मिट्टी से जल का अवशोषण करते हैं।
प्रकाश संश्लेषण के दौरान की घटनाएँ
(i) क्लोरोफिल द्वारा प्रकाश ऊर्जा को अवशेषित करना।
(ii) प्रकाश ऊर्जा को रासायनिक ऊर्जा में रूपांतरित करना तथा जल अणुओं का हाइड्रोजन तथा ऑक्सीजन में अपघटन।
(iii) कार्बन डाईऑक्साइड का कार्बोहाइड्रेट में अपचयन।
रंध्र (Stomata) – पादप या पेड़ पौधों में जो एक महत्वपूर्ण भूमिक निभाता है यह पत्तियों की सतह पर जो सूक्ष्म छिद्र होते हैं, जो श्वसन गैसों के विनिमय और वाष्पोत्सर्जन के लिए खुलते-बंद होते हैं। जिसे रंध्र (Stomata) कहते हैं।
रंध्र के प्रमुख कार्य
● प्रकाश संश्लेषण के लिए गैसों का अधिकांश आदान-प्रदान इन्हीं छिद्रों के द्वारा होता है।
● वाष्पोत्सर्जन प्रक्रिया में जल (जल वाष्प के रूप में) रंध्र द्वारा निकल जाता है।
चित्र – रंध्र पत्ती की सतह पर सूक्ष्म छिद्र श्वसन गैसों के विनिमय और वाष्पोत्सर्जन के लिए खुलते-बंद होते हैं।
विषमपोषी पोषण (Heterotrophic Nutrition) – जब कोई भी जीव, किसी और अन्य जीव द्वारा बनाये गये भोजन से पोषण प्राप्त करते हैं, तो यह विषमपोषी पोषण कहलाता है। यह पोषण तीन प्रकार के होते है।
(1) प्राणीसमपोषण (Holozoic)
(2) मृतजीवी पोषण (Saprophytic)
(3) परजीवी पोषण (Parasitic)
विषमपोषी पोषण (Hetrotrophic Nutrition) के प्रकार
प्राणीसमपोषण (Holozoic) | मृतजीवी पोषण (Saprophytic) | परजीवी पोषण (Parasitic) |
इसमें जीव संपूर्ण भोज्य पदार्थ का अंतर्ग्रहण करते हैं तथा उनका पाचन शरीर के अंदर होता है। | मृतजीवीअपना भोजन मृतजीवों के शरीर व सड़े-गले कार्बनिक पदार्थों से प्राप्त करते हैं। | परजीवी, अन्य जीवों के शरीर के अंदर या बाहर रहकर, उनको बिना मारे, उनसे अपना पोषण प्राप्त करते हैं। |
उदाहरण – अमीबा, मानव। | उदाहरण – फफूंदी, कवक। | उदाहरण – जोक, अमरबेल, जूँ, फीताकृमि। |
अमीबा में पोषण
(i) अमीबा अपना भोजन खाने के लिए भोजन के सामने पादाभ की सहायता से घेर लेता है।
(ii) घेरा बनाने के बाद पादाभ धीरे-धीरे खाद्य रितिका बना लेता है जिसमे खाद्य कण को घेरा है।
(iii) अमीबा पोषण कर ये खाद्य कण पदार्थ शरीर से बाहर निष्कासित कर दिया जाता है। जिसे विधि से अमीबा अपना पोषण पूरा करता है। वह प्राणीसमपोषण (Holozoic) कहलाता है।
1. पैरामीशियम में पोषण
पैरामीशियम
पक्ष्माभ (कोशिका की पूरी सतह को ढके होते हैं)
भोजन एक विशिष्ट स्थान से ही ग्रहण किया जाता है।
2. मनुष्य में पोषण
(i) अतंग्रहण
(ii) पाचन
(iii) अवशोषण
(iv) स्वांगीकरण
(v) बहि: क्षेपण
मुंह → भोजन का अंतः ग्रहण
दाँत → भोजन को चबाना
जिह्वा → भोजन को लार के साथ पूरी तरह मिलाना
लार ग्रंथि → लार ग्रंथि से निकलने वाले रस को लार रस या लार कहते हैं। स्टार्च लार एमिलेस एंजाइम माल्टोस शर्करा
भोजन ग्रसिका → मुंह से आमाशय तक भोजन, ग्रसिका की क्रमाकुंचक गति (Peristaltic movement) द्वारा ले जाया जाता है। (ग्रसिका की मासपेशियों का संकुचन और शिथिलन)।
3. आमाशय → | जठर ग्रंथियां पेप्सिन – पाचक एंजाइम (प्रोटीन का पाचन करता है) हाइड्रोक्लोरिक अम्ल – (अम्लीय माध्यम तैयार करता है जो कि पेप्सिन की की क्रिया में सहायक होता है।) श्लेष्मा – (आमाशय के आंतरिक अस्तर की अम्ल से रक्षा करता है) |
4. क्षुद्रांत्र → | (i) आंत रस ↓परिवर्तित करता है कार्बोहाइड्र वसा प्रोटीन ↓ ↓ ↓ ग्लूकोज वसा अम्ल अमीनो अम्ल ग्लिसरॉल (ii) यकृत तथा अग्न्याशय से स्रावण प्राप्त करती है। (a) यकृत → पित्तरस → पित्त लवण वसा पित्त लवण वसा (बड़ी गोलिकाओं) इमल्सीकरण (छोटी गोलिकाओं) (b) अग्न्याशय → अग्न्याशयिक रस ऐमिलेस एंजाइम ट्रिपिसन एंजाइम लाइपेज एंजाइम प्रोटीन ट्रिप्पिसन → पेपटोन्स वसा लाइपेज → वसा अम्ल स्टार्च एमिलेस → ग्लूकोज (iii) दीर्घरोम → अवशोषण का सतही (iv) क्षेत्रफल बढ़ा देते हैं। |
5. बृहदांत्र → | जल का अवशोषण, वर्ज्य पदार्थ गुदा द्वारा शरीर से बाहर कर दिया जाता है। |
श्वसन – पोषण प्रक्रम के दौरान ग्रहण की गई खाद्य सामग्री का उपयोग कोशिकाओं में होता हैं, जिससे विभिन्न जैव प्रक्रमों के लिए ऊर्जा प्राप्त होती है। ऊर्जा उत्पादन के लिए कोशिकाओं में भोजन के विखंडन को कोशिकीय श्वसन कहते हैं।
वायवीय और अवायवी श्वसन में अंतर
वायवीय श्वसन | अवायवी श्वसन |
ऑक्सीजन की उपस्थिति में होता है। | ऑक्सीजन की अनुपस्थिति में होता है। |
ग्लूकोज का पूर्ण उपचयन होता है, कार्बनडाइऑक्साइड, पानी और ऊर्जा मुक्त होती है। | ग्लूकोज का अपूर्ण उपचयन होता है, जिसमें एथेनॉल, लैक्टिक अम्ल, कार्बन डाइऑक्साइड और ऊर्जा मुक्त होती है। |
यह कोशिका द्रव्य व माइटोकान्ड्रिया में होता है। | यह केवल कोशिका द्रव्य में होता है। |
अधिक ऊर्जा उत्पन्न होती है। (36 ATP) उदारहण: मानव। | कम ऊर्जा उत्पन्न होती है। (2 ATP) उदाहरण: यीस्ट। |
मानव श्वसन तंत्र
नासाद्वार
↓
ग्रसनी
↓
कंठ
↓
श्वास नली
↓
श्वसनी
↓
श्वसनिका
↓
फुफ्फुस (फेफड़े)
↓
कूपिका कोश
↓
रुधिर वाहिकाएं
अंतः श्वसन और उच्छवसन श्वसन में अंतर
अंतः श्वसन | उच्छवसन |
अंतः श्वसन के दौरान वृक्षीय गुहा फैलती है। | वृक्षीय गुहा अपने मूल आकार में वापिस आ जाती है। |
पसलियों से संलग्न पेशियां सिकुड़ती हैं। | पसलियों की पेशियां शिथिल हो जाती हैं। |
वक्ष ऊपर और बाहर की ओर गति करता है। | वक्ष अपने स्थान पर वापस आ जाता है। |
गुहा में वायु का दाब कम हो जाता है और वायु फेफड़ों में भरती है। | गुहा में वायु का दाब बढ़ जाता है और वायु (कार्बन डाइऑक्साइड) फेफड़ों से बाहर हो जाती है। |
(i) अंत श्वसन – सांस द्वारा वायुमंडल से गैसों को अंदर ले जाना है।
(ii) उच्छवसन – फेफड़ों से वायु या गैसों को बाहर निकालना।
(iii) स्थलीय जीव – श्वसन के लिए वायुमंडल से ऑक्सीजन का उपयोग करते हैं।
(iv) जो जीव जल में रहते हैं – वे जल में विलेय ऑक्सीजन का उपयोग करते हैं।
कूपिका, रक्त व उत्तकों के बीच गैसों का आदान-प्रदान
वायु (O2 से समृद्ध) (कूपिका) → रक्त वाहिका → O2, RBC में हीमोग्लोबिन के साथ मिलकर HbO2 बनाती है।
↓
CO2 का उत्पादन (उत्तक में) ← ग्लूकोज का ऑक्सीकरण (उत्तक में) ← धमनी द्वारा O2 उत्तकों में पहुंचती है।
CO2 (उत्तकों में) → CO2 रक्त वाहिका में → CO2 का रक्त में विसरण ↓
CO2 का मोचन (नासाद्वार द्वारा बाहर) ← CO2 का कूपिका कोश में विसरण ← रक्त वाहिका द्वारा कूपिका में विसरण
संवहन – मनुष्य में भोजन, ऑक्सीजन व अन्य आवश्यक पदार्थों की निरंतर आपूर्ति करने वाला तंत्र, संवहन तंत्र कहलाता है।
मानव संवहन तंत्र के मुख्य अवयव
(i) हृदय
(ii) रक्त नलिकाएं (धमनी व शिरा)
(iii) वहन माध्यम (रक्त व लसीका)
रक्त
कणीय अवयव (रुधिर कणिकाएं)
द्रवीय अवयव (प्लाज्मा)
कणीय अवयव (रुधिर कणिकाएं)
लाल रक्त | श्वेत रक्त | रक्त |
कणिकाएं | कणिकाएं | प्लेटलैट्स |
O2, CO2 का वहन, | शरीर को | रक्त का |
हीमोग्लोबिन (Hb) | रोग-मुक्त | थक्का |
रक्त को लाल | करने में | बनाने में |
रंग देता है। | सहायक | सहायक |
द्रवीय अवयव (प्लाज्मा) – पीले रंग का तरल पदार्थ जिसमें 90% जल होता है तथा शेष अवयव जैविक: प्लाज्मा प्रोटीन जैसे एलब्यूमिन, ग्लोब्यूलिन अजैविक: खनिज तत्व इत्यादि।
रक्त वाहिका
धमनी | शिरा |
ऑक्सीकृत रुधिर को हृदय से शरीर के विभिन्न अंगों तक ले जाती है। अपवाद फुफ्फुस – धमनी। | शिराएं विभिन्न अंगों से अनॉक्सीकृत रुधिर एकत्र करके वापस हृदय में लाती हैं। अपवाद फुफ्फुस – शिरा |
धमनी की भित्ति मोटी व अधिक लचीली होती है। | शिरा की भित्ति कम मोटी व कम लचीली होती है। |
वाल्व नहीं होते। | वाल्व होते हैं। |
ये सतही नहीं होती, उत्तकों के नीचे पाई जाती हैं। (Deep seated) | ये सतही होती हैं। (Superficial) |
लसीका – एक तरल उत्तक है, जो रुधिर प्लाज्मा की तरह ही है; लेकिन इसमें अल्पमात्रा में प्रोटीन होते हैं। लसीका वहन में सहायता करता है।
पादपों में परिवहन – खाद्य प्रदार्थ और अन्य प्रदार्थ को एक जगह से दूसरी जगह लेजाने और वापस लेन के लिए पादपों में परिवहन होता है जो की मुख्य रूप से दो अंग काम करते है।
(i) जाइलम – यह पादपों में जल को नीचे से ऊपर की और लेके जाता है।
(ii) फ्लोएम – यह पत्तियों से खाना लेके ऊपर से नीचे सभी भागों को खाना पहुँचती है।
जाइलम और फ्लोएम – जाइलम पादप तंत्र का एक अवयव है, जो मृदा से प्राप्त जल और खनिज लवणों का वहन करता है जबकि फ्लोएम पत्तियों द्वारा प्रकाश संश्लेषित उत्पादों को पौधे के अन्य भागों तक वहन करता है।
जड़ व मृदा के मध्य आयन सांद्रण में अंतर के चलते जल मृदा से जड़ों में प्रवेश कर जाता है। तथा इसी के साथ एक जल स्तंभ निर्माण हो जाता है, जो कि जल को लगातार ऊपर की ओर धकेलता है। यही दाब जल को ऊँचे वृक्ष के विभिन्न भागों तक पहुचाता है।
यही जल पादप के वायवीय भागों द्वारा वाष्प के रूप में वातावरण में विलीन हो जाता है, यह प्रकम वाष्पोत्सर्जन कहलाता है। इस प्रकम द्वारा पौधों को निम्न रूप से सहायता मिलती है।
जल के अवशोषण एवं जड़ से पत्तियों तक जल तथा विलेय खनिज लवणों के उपरिमुखी गति में सहायक। पौधों में ताप नियमन में भी सहायक है।
भोजन तथा दूसरे पदार्थों का स्थानांतरण (पौधों में)
● प्रकाश संश्लेषण के विलेय उत्पादों का वहन स्थानांतरण कहलाता है जो कि फ्लोएम ऊतक द्वारा होता है।
● स्थानांतरण पत्तियों से पौधों के शेष भागों में उपरिमुखी तथा अधोमुखी दोनों दिशाओं में होता है।
● फ्लोएम द्वारा स्थानातरण ऊर्जा के प्रयोग से पूरा होता है। अतः सुक्रोज फ्लोएम ऊतक में ए.टी.पी. ऊर्जा से परासरण बल द्वारा स्थानांतरित होता है।
मानव में उत्सर्जन – वह जैव प्रकम जिसमें जीवों में उपापचयी क्रियाओं में जनित हानिकारक नाइट्रोजन युक्त पदार्थों का निष्कासन होता है, उत्सर्जन कहलाता है। एक कोशिकीय जीव इन अपशिष्ट पदार्थों को शरीर की सतह से जल में विसरित कर देते हैं।
मानव उत्सर्जन तंत्र में उपसिथत अंग निम्न प्रकार
(1) एक जोड़ा वृक्क (Kidney)
(2) एक जोड़ा मूत्रवाहिनी (Ureter)
(3) एक मूत्राशय (Bladder)
(4) एक मूत्र मार्ग (Urethera)
● वृक्क में मूत्र बनने के बाद मूत्रवाहिनी से होता हुआ मूत्राशय में एकत्रित होता है।
● मूत्र बनने का उद्देश्य रुधिर में से वर्ज्य (हानिकारक अपशिष्ट) पदार्थों को छानकर बाहर करना है।
वृक्क में मूत्र निर्माण प्रक्रिया – वृक्क की संरचनात्मक व क्रियात्मक इकाई वृक्काणु (Nephron ) कहलाती है। वृक्काणु के मुख्य भाग इस प्रकार हैं।
1. केशिका गुच्छ (ग्लोमेरुलस) : यह पतली भित्ति वाला रुधिर कोशिकाओं का गुच्छा होता है।
2. बोमन संपुट।
3. नलिकाकार भाग।
4. संग्राहक वाहिनी।
केशिकागुच्छ निस्यंदन – जब वृक्क-धमनी की शाखा वृक्काणु में प्रवेश करती है, तब जल, लवण, ग्लूकोज, अमीनों अम्ल व अन्य नाइट्रोजनी अपशिष्ट पदार्थ, कोशिका गुच्छ में से छनकर वोमन संपुट में आ जाते हैं।
वर्णात्मक पुन – अवशोषण: वृक्काणु के नलिकाकार भाग में, शरीर के लिए उपयोगी पदार्थों, जैसे ग्लूकोज, अमीनो अम्ल लवण व जल का पुनः अवशोषण होता है।
नलिका स्रावण – यूरिया, अतिरिक्त जल व लवण जैसे उत्सर्जी पदार्थ वृक्काणु के नलिकाकार भाग के अंतिम सिरे में रह जाते हैं व मूत्र का निर्माण करते हैं। वहां से मूत्र संग्राहक वाहिनी व मूत्रवाहिनी से होता हुआ मूत्राशय में अस्थायी रूप से संग्रहित रहता है तथा मूत्राशय के दाब द्वारा मूत्रमार्ग से बाहर निकलता है।
कृत्रिम वृक्क (अपोहन) – यह एक ऐसी युक्ति है जिसके द्वारा रोगियों के रुधिर में से कृत्रिम वृक्क की मदद से नाइट्रोजन युक्त अपशिष्ट पदार्थों का निष्कासन किया जाता है।
प्राय – एक स्वस्थ व्यस्क में प्रतिदिन 180 लीटर आरंभिक निस्यंदन वृक्क में होता है। जिसमें से उत्सर्जित मूत्र का आयतन 1.2 लीटर है। शेष निस्यंदन वृक्कनलिकाओं में पुनअवशोषित हो जाता है।
पादप में उत्सर्जन
● वाष्पोत्सर्जन प्रक्रिया द्वारा पादप अतिरिक्त जल से छुटकारा पाते हैं।
● बहुत से पादप अपशिष्ट पदार्थ कोशिकीय रिक्तिका में संचित रहते हैं।
● अन्य अपशिष्ट पदार्थ (उत्पाद) रेजिन तथा गोंद के रूप में पुराने जाइलम में संचित रहते हैं।
● पादप कुछ अपशिष्ट पदार्थों को अपने आसपास मृदा में उत्सर्जित करते हैं।
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