NCERT Solutions Class 10th Social Science Civics Chapter – 3 जाति धर्म और लैंगिक मसले (Gender Religion and Caste)
Text Book | NCERT |
Class | 10th |
Subject | Social Science Civics |
Chapter | 3rd |
Chapter Name | जाति धर्म और लैंगिक मसले (Gender Religion and Caste) |
Category | Class 10th Social Science Civics |
Medium | Hindi |
Source | Last Doubt |
NCERT Solutions Class 10th Social Science Civics Chapter – 3 जाति धर्म और लैंगिक मसले (Gender Religion and Caste)
Chapter – 3
जाति धर्म और लैंगिक मसले
Notes
श्रम का लैंगिक विभाजन-
लिंग के आधार पर काम का बँटवारा – जैसे घर के अंदर के अधिकतर काम औरतें करती हैं। पुरुषों द्वारा बाहर के काम काज किये जाते हैं। एक ओर जहाँ सार्वजनिक जीवन पर पुरुषों का वर्चस्व रहता है वहीं दूसरी ओर महिलाओं को घर की चारदीवारी में समेट कर रखा जाता है।
नारीवादी – नारी और नर (महिला एवं पुरूषों) के लिए एक समान अधिकारों की मांग करना या नारी सशक्तिकरण की माँग।
नारीवादी आंदोलन – महिलाओं के राजीतिक और वैधानिक दर्जे को ऊँचा उठाने, उनके लिए शिक्षा और रोजगार के अवसरों को बढ़ाने की माँग और उनके व्यक्तिगत एवं पारिवारिक जीवन में बराबरी की माँग करने वाले आंदोलन को नारीवादी आंदोलन कहते हैं।
नारीवादी आंदोलन –
• यह आंदोलन महिलाओं के राजनैतिक अधिकार और सत्ता पर उनकी पकड़ की वकालत करता है।
• इसमें महिलाओं को घर की चार दीवारी के भीतर रखने और घर के सभी कामों का बोझ डालने का विरोध सम्मिलित है।
• यह पितृसत्तात्मक परिवार को मातृसत्तात्मक बनाने की ओर अग्रसर है।
• महिलाओं की शिक्षा तथा देश के विभिन्न क्षेत्रों में उनके व्यवसाय, सेवा आदि का समर्थक है।
• यह महिलाओं के हर प्रकार के शोषण का विरोध करता है।
पितृ प्रधान समाज- ऐसा समाज जिसमें परिवार का मुखिया पिता होता है और उन्हें औरतों की तुलना में अधिक अधिकार होता है।
महिलाओं का दमन –
साक्षरता की दर – महिलाओं में साक्षरता की दर 54 प्रतिशत है जबकि पुरुषों में 76 प्रतिशत। ऊँचा वेतन और ऊँची स्थिति के पद, इस क्षेत्र में पुरूष महिलाओं से बहुत आगे हैं।
असमान लिंग अनुपात – अभी भी प्रति 1000 पुरूषों पर महिलाओं की संख्या 919 है। घरेलु और सामाजिक उत्पीड़न। जन प्रतिनिधि संस्थाओं में कम भागीदारी अथवा प्रतिनिधित्व। महिलाओं में पुरूषों की तुलना में आर्थिक आत्मनिर्भरता कम।
महिलाओं का राजनीतिक प्रतिनिधित्व- भारत की विधायिका में महिला प्रतिनिधियों का अनुपात बहुत ही कम है। जैसे, लोकसभा में महिला सांसदों की संख्या पहली बार 2019 में ही 14.36 फ़ीसदी तक पहुँच सकी है। राज्यों की विधान सभाओं में उनका प्रतिनिधित्व 5 फ़ीसदी से भी कम है। इस मामले में भारत का नंबर दुनिया के देशों में काफ़ी नीचे है।
धर्म को राजनीति – गांधी जी के अनुसार धर्म, हिंदू धर्म या इस्लाम जैसे- किसी भी धर्म विशेष से संबंधित नहीं था, लेकिन नैतिक मूल्य जो सभी धर्मों को सूचित करते हैं। राजनीति को धर्म से लिए गए नैतिक मूल्यों द्वारा निर्देशित होना चाहिए।
पारिवारिक कानून – विवाह, तलाक, गोद लेना और उत्तराधिकार जैसे परिवार से जुड़े मसलों से संबंधित कानून।
साम्प्रदायिकता – जब किसी धर्म के मानने वाले लोग अपने धर्म को दूसरों के धर्मों से श्रेष्ठ समझने लगते हैं।
साम्प्रदायिक राजनीति –
• कट्टर पंथी विचारधारा वाले लोग।
• धार्मिक आधार पर मतों का ध्रुवीकरण।
• धर्म के आधार पर लोगों को चुनाव में प्रत्याशी घोषित करना।
• साम्प्रदायिक हिंसा और खून खराबा।
• साम्प्रदायिक दिशा में राजनीति की गतिशीलता।
• साम्प्रदायिकता के आधार पर राजनीतिक दलों का अलग – अलग खेमों में बँट जाना। जैसे- आयरलैंड में नेशलिस्ट और यूनियनिस्ट पार्टी।
साम्प्रदायिकता को दूर करने की विधियाँ-
शिक्षा द्वारा – शिक्षा के पाठ्यक्रम में सभी धर्मों की अच्छा है बताया जाए और विद्यार्थियों को सहिष्णुता एवं सभी धर्मों के प्रति आदर भाव सिखाया जाए।
प्रचार द्वारा – समाचार – पत्र रेडियो टेलीविजन आदि से जनता को धार्मिक सहिष्णुता की शिक्षा दी जाए।
धर्मनिरपेक्षता – ऐसी व्यवस्था जिसमें राज्य का अपना कोई धर्म नहीं होता। सभी धर्मों को एक समान महत्व दिया जाता है तथा नागरिकों को किसी भी धर्म को अपनाने की आजादी होती है।
धर्मनिरपेक्ष शासन –
• भारत का संविधान किसी धर्म को विशेष दर्जा नहीं देता।
• किसी भी धर्म का पालन करने और प्रचार करने की आजादी।
• धर्म के आधार पर किए जाने वाले किसी तरह के भेदभाव को अवैधानिक घोषित।
• शासन को धार्मिक मामलों में दखल देने का अधिकार।
• संविधान में किसी भी तरह के जातिगत भेदभाव का निषेध किया गया है।
भारत को एक धर्म निरपेक्ष राज्य बनाने वाले विभिन्न प्रावधान-
• भारत का कोई राजकीय धर्म नहीं है।
• भारत में सभी धर्मों को एक समान महत्व दिया गया है।
• प्रत्येक नागरिक को अपनी इच्छानुसार किसी भी धर्म को अपनाने की स्वतंत्रता है।
• भारतीय संविधान धार्मिक भेदभाव को असंवैधानिक घोषित करता है।
जातिवाद – जाति के आधार पर लोगों में भेदभाव करना
वर्ण व्यवस्था – विभिन्न जातीय समूहों का समाज में पदानुक्रम
आधुनिक भारत में जाति और वर्ण व्यवस्था के कारण हुए परिवर्तन-
• आर्थिक विकास।
• बड़े पैमाने पर शहरीकरण।
• साक्षरता और शिक्षा का विकास।
• व्यावसायिक गतिशीलता।
• गांव में जमींदारों की स्थिति का कमजोर होना।
राजनीति में जाति –
• चुनाव क्षेत्र के मतदाताओं की जातियों का हिसाब ध्यान में रखना।
• समर्थन हासिल करने के लिए जातिगत भावनाओं को उकसाना।
• देश के किसी भी एक संसदीय चुनाव क्षेत्र में किसी एक जाति के लोगों का बहुमत नहीं है।
• कोई भी पार्टी किसी एक जाति या समुदाय के सभी लोगों का वोट हासिल नहीं कर सकती।
राजनीति जाति व्यवस्था और जाति की पहचान को कैसे प्रभावित – प्रत्येक जाति समूह पड़ोसी जातियों या उपजातियों को अपने भीतर समाहित करके बड़ा बनने का प्रयास करता है, जिन्हें पहले इससे बाहर रखा गया था। अन्य जातियों के साथ गठबंधन में प्रवेश करने के लिए जाति समूह की आवश्यकता होती है। राजनीतिक क्षेत्र में नए तरह के जातियों के समूह जैसे पिछड़े और अगड़े जाति समूह आ गए हैं।
जाति के आधार पर भारत में चुनावी नतीजे तय नहीं किये जा सकते कारण –
• मतदाताओं में जागरूकता – कई बार मतदाता जातीय भावना से ऊपर उठकर मतदान करते हैं।
• मतदाताओं द्वारा अपने आर्थिक हितों और राजनीतिक दलों को प्राथमिकता।
• किसी एक संसदीय क्षेत्र में किसी एक जाति के लोगों का बहुमत न होना।
• मतदाताओं द्वारा विभिन्न आधारों पर मतदान करना।
जाति पर विशेष ध्यान देने से राजनीति में नकारात्मक परिणाम-
• यह गरीबी, विकास और भष्टाचार जैसे अन्य महत्व के मुद्दों से ध्यान हटा सकता है।
• जातीय विभाजन से तनाव, संघर्ष और यहां तक कि हिंसा भी होती है।
जातिगत असामनता – जाति के आधार पर आर्थिक विषमता अभी भी देखने को मिलती है। ऊँची जाति के लोग सामन्यतया संपन्न होते है। पिछड़ी जाति के लोग बीच में आते हैं, और दलित तथा आदिवासी सबसे नीचे आते हैं। सबसे निम्न जातियों में गरीबी रेखा से नीचे रहने वाले लोगों की संख्या बहुत अधिक है।
अनुसूचित जातियाँ- वे जातियाँ जो हिन्दू सामाजिक व्यवस्था में उच्च जातियों से अलग और अछूत मानी जाती हैं तथा जिनका अपेक्षित विकास नहीं हुआ है। अनुसूचित जातियों का प्रतिशत 16.2 प्रतिशत है।
अनुसूचित जनजातियाँ- ऐसा समुदाय जो साधारणतया पहाड़ी और जंगली क्षेत्रों में रहते हैं और जिनका बाकी समाज से अधिक मेलजोल नहीं है। साथ ही उनका विकास नहीं हुआ है। अनुसूचित जनजातियों का प्रतिशत 8.2 प्रतिशत है।
भारत में किस तरह अभी भी जातिगत असमानताएँ –
• आज भी हमारे देश में कुछ जातियों के साथ अछूतों जैसा बर्ताव किया जाता है।
• आज भी अधिकतर लोग अपनी जाति या कबीले में विवाह करते हैं।
• कुछ जातियाँ अधिक उन्नत हैं तो कुछ खास जातियाँ अत्यधिक पिछड़ी हुई।
• कुछ जातियों का अभी भी शोषण हो रहा है।
• चुनाव अथवा मंत्रिमंडल के गठन में जातीय समीकरण को ध्यान में रखना।
NCERT Solution Class 10th Social Science Civics All Chapters Notes In Hindi |
Chapter – 1 सत्ता की साझेदारी |
Chapter – 2 संघवाद |
Chapter – 3 जाति, धर्म और लैंगिक मसले |
Chapter – 4 राजनीतिक दल |
Chapter – 5 लोकतंत्र के परिणाम |
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Chapter – 1 सत्ता की साझेदारी |
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Chapter – 3 जाति, धर्म और लैंगिक मसले |
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Class 10th Social Science Civics All Chapters MCQ In Hindi |
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