NCERT Solutions Class 9th Science Chapter – 7 जीवों में विविधता (Diversity in Living Organisms) Notes In Hindi

NCERT Solutions Class 9th Science Chapter – 7 जीवों में विविधता (Diversity in Living Organisms)

TextbookNCERT
Class9th
SubjectScience
Chapter7th
Chapter Nameजीवों में विविधता (Diversity in Living Organisms)
CategoryClass 9th Science 
MediumHindi
SourceLast Doubt

NCERT Solutions Class 9th Science Chapter – 7 जीवों में विविधता (Diversity in Living Organisms) Notes In Hindi  जिसमे हम नाम पद्धति, जीवों में विविधता, टैक्सोनोमी, वर्गीकरण, जीव जगत के भाग, कोशिकीय स्तर, ऊतक स्तर, अंगस्तर आदि के बारे में बारे में पढ़ेंगे।

NCERT Solution Class 9 Science Chapter – 7 जीवों में विविधता (Diversity in Living Organisms)

Chapter – 7

 जीवों में विविधता

Notes

जीवधारी

  • प्रोकैरियोटिक जीव एक कोशिकीय जीव (e.g. Bateria) मोनेरा
  • यूकैरियोटिक जीव
यूकैरियोटिक जीव

  • एक कोशिकीय जीव (e.g. Amoeba, Euglena)
  • बहुकोशिकीय जीव
बहुकोशिकिय जीव

  • कोशिका भित्ति सहित
  • एनिमेलिया (जन्तु जगत)
कोशिका भित्ति सहित

  • प्रकाश संश्लेषण नहीं करने वाले

    कवक (फंजाई)
  • प्रकाश संश्लेषण में सक्षम

    पादप जगत (प्लांटी)
  • कोशिका भित्ति रहित

    एनिमेलिया (जन्तु जगत)
पादप जगत (प्लांटी)

  • क्रिप्टोगैम (बिना फूलों तथा बीजों वाले)
  • फैरोगेम (फूलो तथा बीजों वाले)
क्रिप्टोगैम (बिना फूलों तथा बीजों वाले)

  • पादप शरीर बिना
    विभेदन के

    थैलोफाइटा
  • विभेदिज पादप शरीर
फैरोगेम (फूलो तथा बीजों वाले)

  • जिम्नोस्पर्म (अनावृत नम्नबीजी बीज)
  • (आर्वत ढके हुए बीज बीजी) एंजियोस्प
(आर्वत ढके हुए बीज बीजी) एंजियोस्प

  • एक बीजपत्री
    (गेहूँ, चावल मक्का आदि)
  • द्विबीजपत्री
    (दाल, चना, आम)
विभेदिज पादप शरीर

  • बिना संवहन ऊतक के
  • ब्रायोफिाट
  • संवहन ऊतक सहित बीज टेरिडोफाइटा
जीवों में विविधता (Diversity in living organism) – पृथ्वी पर जीवन की असीमित विविधता और असंख्य जीव हैं। इनके विषय में जानने के लिए हमें जीवों को समानता व असमानता के आधार पर वर्गीकृत करना पड़ेगा। क्योंकि लगभग 20 लाख प्रकार के जीव जन्तु का बाह्य, आन्तरिक, कंकाल / डाँटा पोषण का तरीका व आवास का अध्ययन करना सुगम नहीं है।
वर्गीकरण (Classification ) – सभी जीवों को उनके समान व विभिन्न गुणों के आधार पर
बाँटना, वर्गीकरण कहलाता है।
नाम पद्धति – विभिन्न देशों में विभिन्न नामों से विभिन्न जंतुओं को बुलाया जाता है, जिससे परेशानी होती है। इसलिए द्वि नाम पद्धति कार्ल लिनियस द्वारा दी गयी। जीव वैज्ञानिक नाम लिखते समय निम्नलिखत बातों का ध्यान रखा जाता है।

  • जीनस (Genus) का नाम जाति (species) से पहले लिखा जाता है। 
  • जीनस का पहला अक्षर हमेशा बड़ा होता है। जबकि प्रजाति (species) का नाम हमेशा small alphabet से लिखा जाता है। 
  • छपे हुए रूप में जीनस व जाति हमेशा Italic में लिखे जाते हैं व हाथ से लिखते समय जीनस व जाति को अलग-अलग रेखांकित किया जाता है।

उदाहरण – मनुष्य (Human) Sapiens, चीता (Tiger) panthera tigris

टैक्सोनोमी – यह जीव विज्ञान का वह भाग है जिसमें नाम पद्धति पहचान व जीवों का वर्गीकरण करते हैं। कार्ल लिनियस को टैक्सोनोमी का जनक कहा जाता है। 

वर्गीकरण (Classsification)

  • जीवों को लक्षणों की समानता एवं असमानता के आधार में समुहों में बांटना वर्गीकरण कहला है।
  • सबसे पहले 1758 में कार्ल लिनियस ने जीव जगत को दो भागों में बाँटा (i) पौधे व (ii) जन्तु
  • सन् 1959 में राबर्ट व्हिटेकर ने जीवों को पाँच वर्गों (जगत) (Kingdom) में बाँटा
    (i) मोनेरा (Monera)
    (ii) प्रोटिस्टा (Protista)
    (iii) फंजाई (Fungai)
    (iv) प्लांटी (Plantae)
    (v) एनीमेलिया (Anemalia)|

सन् 1977 में कार्ल वोस (Carl wose) ने मोनेरा को आर्किबैक्टिरिया (Archi Bacteria) व
गबैतितरिया (Eshastri0) में बाँटा ।

वर्गीकरण – जीवों को लक्षणों की समानता एवं असमानता के आधार में समूहों में वातन वर्गीकरण कहलाता है। 
जीव जगत के भाग – सबसे पहले 1758 में कार्ल लिनियस ने जीव जगत को दो भागों में बाँटा  पौधे और जन्तु।
सन् 1959 में राबर्ट व्हिटेकर ने जीवों को पाँच वर्गों (जगत) में बाँटा –

  • मोनेरा
  • प्रोटिस्टा 
  • फंजाई 
  • प्लांटी 
  • एनीमेलिया
वर्गीकरण के लाभ

  • असंख्य जीवों के अध्ययन को आसान व सुगम बनाता है।
  • विभिन्न समूहों के मध्य संबंध प्रदर्शित करता है।
  • यह जीवन के सभी रूपों को एक नजर में प्रदर्शित करता है।
  • जीव विज्ञान के कुछ अनुसंधान वर्गीकरण पर आधारित हैं।
  • जीवों को विविधता को स्पष्ट करने में सहायक होता है।
वर्गीकरण लिखने के लिए निम्न प्रारूप का प्रयोग किया जाता है जिसे वर्गीकरण का पदानुक्रम कहते हैं-

  • जगत (Kingdom) – फाइलम (Phylum) वर्ग (Class) गण ( Order) कुल (Family) → वंश (Genus) जाति ( species)
वर्गीकरण का पदानुक्रम – वर्गीकरण लिखने के लिए निम्न प्रारूप का प्रयोग किया जाता है जिसे वर्गीकरण का पदानुक्रम कहते हैं।
पाँच जगत वर्गीकरण मे मुख्य रूप से जीवों के वर्गीकरण करने के लिए निम्न आधार का ध्यान रखा गया हैं ।
पाँच जगत वर्गीकरण मे मुख्य रूप से जीवों के वर्गीकरण करने के लिए निम्न आधार का ध्यान रखा गया हैं ।

कोशिका का प्रकार

  • प्रोकैरियोटिक कोशिका
  • यूकैरियोटिक कोशिका
प्रोकैरियोटिक कोशिका (Prokaryotic cell) – ये प्राथमिक अल्प विकसित कोशिकाएँ हैं, जिनमें केन्द्रक बिना झिल्ली के होता है।
यूकैरियोटिक कोशिका (Eukaryotic cell) – ये विकसित कोशिकाएँ जिनमें अंगक व पूर्ण रूप से विकसित केन्द्रक युक्त होती है।
संगठन का स्तर (Level of organisation)

कोशिका स्तर – सभी जीव कोशिका के बने होते हैं, जो जीवन की मौलिक संरचनात्मक एवम् क्रियात्मक इकाई होती है।

ऊतक स्तर – कोशिकाएँ संगठित होकर ऊतक का निर्माण करती है। ऊतक कोशिकाओ का
समुह होता है, जिसमें कोशिकाओं की संरचना तथा कार्य का एक समान होते हैं।
अंग स्तर – विभिन्न ऊतक मिलकर अंग का निर्माण करते हैं जो किसी के कार्य को पूर्ण करते
है।
अंग तंत्र स्तर – विभिन्न अंग मिलकर अंग तंत्र का निर्माण करते हैं, जो जटिल वहुकोशिय जीवों
में विभिन्न जैव क्रियाएँ करते है। जैसे पाचन तंत्र भोजन के पाचन का कार्य करता है।
शरीर संरचना (Body Structure)

एककोशिकीय जीव – ऐसे जीव जो एक ही कोशिका के बने होते है और सभी जैविक क्रियाएँ इसमें सम्पन्न होती है ।

बहुकोशिकीय जीव – ऐसे जीव जो कि एक से अधिक कोशिका के बने होते हैं तथा जिनमें विभिन्न कार्य विभिन्न कोशिकाओं के समूह द्वारा किए जाते हैं।
भोजन प्राप्त करने का तरीका (Mode of Nutrition)
(a) स्वपोषी (Autotrophs ) – वे जीव जो प्रकाश संश्लेषण (Photosynthesis) द्वारा अपना भोजन
स्वयं बनाते हैं।
(b) परपोषी (Heterotrophs ) – वे जीव जो अपने भोजन के लिए दूसरे जीवों पर निर्भर रहते है।
पाँच जगत वर्गीकरण
लक्षणमॉनेराप्रोटिस्टाफंजाईप्लांटीऐनिमेलिया

कोशिका

कोशिका भित्ति

केंन्द्रक झिल्ली

कार्य संरचना

पोषण की विधि

प्रजनन की विधि

प्रोकैरियोटिक

सेलूलोज रहित (बहुशर्कराइड) + एमीनो अम्ल

अनुपस्थित

कोशिकीय

स्वपोषी (रसायन संश्लोषी एवं स्वपोषी
(प्रकाश संश्लेषी)

संयुग्मन

यूकैरियोटिक

कुछ में
उपस्थित

उपस्थित

कोशिकीय

स्वपोषी (प्रकाश संश्लेषी)
तथा  परपोषी

युग्मक संलयन

यूकैरियोटिक

उपस्थित

बहुकोशिका/अदृढ़ ऊतक

परपोषी
(मृतपोषी एवं
परजीवी)

निषेचन

यूकैरियोटिक

उपस्थित (सेल्युलोस रहित)

उपस्थित

ऊतक/अंग

स्वपोषी (प्रकाश संश्लेषी)

निषेचन

यूकैरियोटिक

अनुपस्थित

उपस्थित

ऊतक / अंग /अंग तंत्र

विषमपोशी (प्राणि समभोजी
प्रकाशसंश्लेषी) तथा परपोषी

निषेचन

पाँच जगत वर्गीकरण :

जगत – मोनेरा (Kingdom Monera)

  • प्रोकैरियोटिक, एक कोशिकिय
  • स्वपोषी या विषमपोषी
  • कोशिका भित्ति उपस्थित या अनुपस्थित

उदाहरण – एनाबिना, बैक्टीरिया, सायनोबैक्टीरिया, (नील हरित शैवाल), माइकोप्लाज्मा

जगत – प्रोटिस्टा (Kingdom – Protista)

  • यूकैरियोटिक एक कोशिकिय
  • स्वपोषी या विषमपोषी
  • गमन के लिए सीलिया, फ्लैजेला, कूटपाद संरचनाएँ पाई जाती है।
  • शैवाल, डायएटम, अमीबा, पैरामीशियम, युग्लीना

जगत – फंजाई / कवक (Kingdom Fungi)

  • यूकैरियोटिक व विषमपोषी, बहुकोशिकिय ( यीस्ट को छोड़कर)
  • यीस्ट एक कोशिकिय कवक है, जो आवायवीय श्वसन करता है।
  • कोशिका भित्ति कठोर, जटिल शर्करा व काईटिन की बनी होती है।
  • अधिकांश सड़े गले पदार्थ पर निर्भर – मृतजीवी, कुछ दूसरे जीवों पर निर्भर – परजीवी।
  • कुछ शैवाल व कवक दोनों सहजीवी सम्बन्ध बनाकर साथ रहते हैं । शैवाल कवक को भोजन
    प्रदान करता है व कवक रहने का स्थान प्रदान करते हैं ये जीव लाइकेन कहलाते हैं और इस
    अंर्तसंबंध को सहजीविता कहते हैं।

उदाहरण – पेनिसीलियम, एस्पेरेजिलस, यीस्ट, मशरूम

पादप जगत (Kingdom – Plantae) – पादप जगत का मुख्य लक्षण प्रकाश संश्लेषण का होना
है।- यूकैरियोटिक, बहुकोशिकिय
– स्वपोषी
– कोशिका भित्ती सेल्युलोज की बनी होती है।
पादप

  • पादप शरीर बिना विभेदन के (थैलोफाइटा)
  • विभेदित पादप शरीर
विभेदित पादप शरीर

  • (ब्रायोफाइटा ) बिना सवहनी ऊतक के
  • संवहनी ऊतक सहित
संवहनी ऊतक सहित

  • बीज रहित (टेरिडोफाइटा)
  • बीज उत्पादित करने वाले (फैनरोगेम)
बीज उत्पादित करने वाले (फैनरोगेम)

  • नग्न बीजी (जिम्नोस्पर्म)
  • आवृतबीजी (एंजियोस्पर्म)
आवृतबीजी (एंजियोस्पर्म)

  • एक बीजपत्र वाले बीज (एक बीज पत्री)
  • दो बीज पत्र वाले बीज (द्विबीजपत्री)

(i) उपजगत (क्रिप्टोगैम (Cryptogam) – जिन पौधों में फूल या जननांग बाहर प्रकट नहीं होते हैं । (ढके होते हैं)
(ii) उपजगत फैनरोगैम (Phenerogam) – इन पौधों में फूल या जननांग स्पष्ट दिखाई देते हैं। तथा बीज उत्पन्न करते है।

क्रिप्टोगैम (Cryptogam)

  • थैलोफाइटा (Thallophyta)
  • ब्रायोफाइटा (Bryophyta)
  • टेरिडोफाइटा (Pteridophyta)
थैलोफाइटा (Thallophyta)

  • पौधे का शरीर जड़ तथा पत्ती में विभाजित नहीं होता बल्कि एक थैलस है
  • सामान्यतः शैवाल कहते हैं।
  • कोई संवहन ऊतक उपस्थित नहीं।
  • जनन बीजाणुओं (spores) के द्वारा
  • मुख्यतः जल में पाए जाते हैं।

उदाहरण – अल्वा, स्पाइरोगाइरा क्लेडोफोरा, यूलोथ्रिक्स

ब्रायोफाइटा (Bryophyta)

  • सरलतम पौधे, जो पूर्ण रूप से विकसित नहीं होता।
  • कोई संवहन ऊतक उपस्थित नहीं। बीजाणुओं (spores) द्वारा जनन।
  • भूमि व जल दोनों स्थान पर पाए जाते हैं। इसलिए इन्हें पादपों का एम्फीबिया / उभयचर” भी कहते हैं।

उदाहरण – फ्यूनेरिया, रिक्सिया, मार्केशिया

टेरिडोफाइटा (Pteridophyta)

  • पादप का शरीर तना, जड़ व पत्तियों में विभक्त होता है।
  • सवहन ऊतक उपस्थित होता है।
  • हुकोशिकीय, बीजाणु द्वारा जनन।

उदाहरण – मार्सिलिया, फर्न, होर्सटेल

फैनरोगैम (Phanerogam)

  • जिम्नोस्पर्म (अनावृतबीजी) (Gymnosperm)
  • एंजियोस्पर्म ( आवृतबीजी) (Angiosperm)
जिम्नोस्पर्म (Gymnosperm)

  • बहुवर्षीय, सदाबहार, काष्ठीय।
  • शरीर जड़, तना व पत्ती में विभक्त।
  • संवहन ऊतक उपस्थित।
  • नग्न बीज, बिना फल व फूल।

उदाहरण पाइनस (Pinus ), साइकस (Cycus)

एंजियोस्पर्म (Angiosperm)

(i) एक बीज पत्री (Monocotyleden) या
द्वि-बीजपत्री (Dicototyleden) – फूलों वाले पौधे

  • फूल बाद में फल में बदल जाता है।
  • बीज फल के अंदर।
  • भ्रूण के अन्दर पत्तियों जैसे बीजपत्र पाए जाते हैं। जब पौधा जन्म लेता है तो वे हरी हो जाती
    हैं, जो प्रकाश संश्लेषण द्वारा भोजन का निर्माण करती है।
  • पूर्ण संवहन ऊतक उपस्थित।
क्र.सं. गुणगुण एक. बीज पत्री द्वि बीज पत्री

1.
2.
3.
4.
5.
6.

बीज
जड़
तना
पत्ती
फूल (पंखुड़ियाँ)
उदाहरण
एक बीज पत्री
रेशेदार (Fibrous) जड़
खोखला या अपूर्ण
समान्तर शिरा विन्यास
तीन या तीन के गुणन में
चावल, गेहूँ, मक्का आदि
दो बीज पत्र
मूसला जड़
मजबूत काष्ठीय
जालिकावत शिरा विन्यास
पाँच या पाँच के गुणन में
मूँगफली, चना, दालें, आम आदि
जगत -जंतु (Kingdom Animalia)
जन्तु जगत में वर्गीकरण का आधार-

संगठन का स्तर
(i) कोशिकीय स्तर – इस स्तर पर जीव की कोशिका बिखरे समुह में होती है

(ii) ऊत्तक स्तर – इस स्तर पर कोशिकाँए अपना कार्य संगठित होकर ऊतक के रुप में करती है।

(iii) अंग स्तर – ऊत्तक संगठित होकर अंग निर्माण करता है, जो एक विशेष कार्य करता है।

(iv) अंगतंत्र स्तर – अंग मिलकर तंत्र के रुप में शारिरिक कार्य करते है, और प्रत्येक तंत्र एक
विशिष्ट कार्य करता है।

सममिति

(i) असममिति – किसी भी केंद्रीत अक्ष से गुजरने वाली रेखा इन्हे दो बराबर भागों में विभाजित नहीं करती है।

(ii) अरीय सममिति – किसी भी केंद्रीत अक्ष से गुजरने वाली रेखा इन्हे दो बराबर भागों में
विभाजित करती है।

(iii) द्विपार्श्व सममिति – जब केवल किसी एक ही अक्ष से गुजरनी वाली रेखा द्वारा शरीर दो समरुप दाएँ व बाएँ भाग में बाटाँ जा सकता है।

द्विकोरिक तथा त्रिकोरकी संगठन (Diploblastic & Triploblastic )

(i) द्विकोरिक – जिन प्राणियों में कोशिकाएँ दो भ्रूणीय स्तरों में व्यवस्थित होती है बाह (एक्टोडर्म) तथा आंतरिक (एंडोडर्म)

(ii) त्रिकोरिकी – वे प्राणी जिनके विकसित भ्रूण में तृतीय भ्रूणीय स्तर मीजोडर्म भी होता है।

प्रगुहा (सीलोम) (शरीर भित्ति तथा आहार नाल के बीच में गुहा)

(i) प्रगुही प्राणी – मीजोडर्म से आच्छादित शरीर गुहा को देहगुहा कहते है । प्रगुही प्राणी
देहगुहा उपस्थित होती है।

(ii) कूट – गुहिक प्राणी – कुछ प्रणियों में यह गुहा मीसोडर्म से आच्छादित ना होकर बल्कि
मीसोडर्म एक्टोडर्म एवं एन्डोडर्म के बीच बिखरी हुई थैली के रुप में पाई जाती है ।

(iii) अगुहीय – जिन प्राणियों में शरीर गुहा नही पाई जाती है।

पृष्ठरज्जु (नोटोकॉर्ड)
नोटोकार्ड (Notochord ) – नोटोकार्ड छड़ की तरह एक लंबी संरचना है जो जन्तुओं के पृष्ठ भा पर पाई जाती है। यह तंत्रिका ऊतक का आहार नाल से अलग करती है।
(i) कार्डेट (कशेरूकी ) – पृष्ठरज्जू युक्त प्राणी को कशेरूकी कहते हैं (ii) नॉन कार्डेट (अकशेरूकी ) – पृष्ठरज्जू रहित प्राणी
फाइलम – पोरीफेरा (Phylum Porifera)

  • कोशिकीय स्तर संगठन
  • अचल जन्तु ।
  • पूरा शरीर छिद्रयुक्त ।
  • बाह्य स्तर स्पंजी तन्तुओं का बना ।

उदाहरण – स्पंज जैसे: साइकॉन, यूप्लेक्टेला, स्पांजिला इत्यादि।

फाइलम सीलेन्टरेटा (Phylum Colentrata)

  • अगुही (देहगुहा अनुपस्थित) |
  • ऊतकीय स्तर।
  • अरीय सममित, द्विस्तरीय।
  • खुली गुहा।

उदाहरण – हाइड्रा, समुद्री एनीमोन, जैलीफिश।

 

फाइलम प्लेटीहेल्मिन्थीज (Phylum Platyhelminthes)

  • चपटे पत्ती या फीते जैसे इन्हें चपटे कृमि भी कहा जाता है।
  • परजीवी व स्वतंत्र दोनों। शरीर द्विपार्श्व सममित व त्रिकोरक।
  • सीलोम उपस्थित नहीं। नर व मादा जननांग एक जीव में उपस्थित | 

उदाहरण- लिवरफ्लूक, ब्लडफ्लूक, टेपवर्म।

एस्केलमिन्थीज (Aschelminthes) or निमेटोडा (Nematoda)

  • शरीर सूक्ष्म से कई सेमी. तक।
  • त्रिकोरक, द्वि पार्श्वसममित।
  • वास्तविक देह गुहा का अभाव।
  • कूट सीलोम उपस्थित |
  •  समान्यतः परजीवी

उदाहरण- गोलकृमि, पिनकृमि

एनीलिडा (Annelida)

  • द्विपार्श्व सममित एवं त्रिकोरिक।
  • नम भूमि, जल व समुद्र में पाए जाने वाले । वास्तविक देह गुहा वाले ।
  • उभयलिंगी, लैंगिक या स्वतंत्र।
  • शरीर खण्ड युक्त ।

उदाहरण-केंचुआ, जोंक, नेरीस

आर्थ्रोपोडा (Arthropoda)

  • जन्तु जगत के 80% जीव इस फाइलम से (सबसे बड़ा जगत) संम्बंधित |
  • पैर खंड युक्त व जुड़े हुए और सामान्यतः कीट कहलाते है ।
  • शरीर सिर, वक्ष व उदर में विभाजित ।
  • अग्र भाग पर संवेदी स्पर्शक उपस्थित |
  • बाह्य कंकाल काइटिन का ।
  • खुला परिसंचरण तंत्र |

उदाहरण – झींगा, तितली, मकड़ी, बिच्छू, कॉकरोच इत्यादि ।

मोलस्का (Mollusca)

  • दूसरा बड़ा फाइलम 90,000 जातियाँ |
  • शरीर मुलायम द्विपार्श्वसममित ।
  • शरीर सिर, उदर व पाद में विभाजित ।
  • बाह्य भाग कैल्शियम के खोल से बना ।
  • नर व मादा अलग।
  • खुला संवहनों तत्र पाया जाता है।

उदाहरण – सीप, घोंघा, ऑक्टोपस, काइटॉन |

इकाइनोडर्मेटा (Echinodermeta)

  • समुद्री जीव ।
  • शरीर तारे की तरह, गोल या लम्बा ।
  • शरीर की बाह्य सतह पर कैल्शियम कार्बोनेट का कंकाल एवं काँटे पाए जाते हैं ।
  • शरीर अंखडित त्रिकोरक व देहगुहायुक्त ।
  • लिंग अलग-अलग |

उदाहरण – समुद्री अर्चिन, स्टारफिश इत्यादि ।

कॉर्डेटा (Chordeta)

  • द्विपार्श्व सममित, त्रिकोरकी, देहगुहा वाले ।
  • सीलोम उपस्थित, अंगतंत्र स्तर संगठन ।
  • मेरुरज्जु उपस्थित |
  • पूँछ जीवन की किसी अवस्था में उपस्थित ।
कशेरूक दंड उपस्थित 

  • कॉर्डेटा (Chordeta)
  • वर्टीब्रेटा (Vertebrata)
  • प्रोटोकार्डेटा (Protochordeta)
a) प्रोटोकार्डेटा (Prochordeta)

  • कृमि की तरह के जन्तु, समुद्र में पाए जाने वाले
  • द्विपार्श्व सममित, त्रिकोरकी एवं देहगुहा युक्त ।
  • श्वसन गिल्स द्वारा ।
  • लिंग अलग-अलग ।
  • जीवन की अवस्था में नोटोकार्ड की उपस्थिति नहीं ।

उदाहरण – बेलेनोग्लासस, हर्डमेनिया ।

b) वर्टीब्रेटा (Vertebrata) कशेरूकी

  • द्विपार्श्वसममित, त्रिकोश्की, देहगुहा वाले जंतु है ।
  • अंग तंत्र स्तर का संगठन ।
  • नोटोकॉर्ड (व्यास्क में) मेरूरज्जु में परिवर्तित |
  • युम्मित क्लोम थैली ।

वर्टीब्रेटा (कशेरूकी) को पाँच वर्गों में विभाजित किया गया है – मत्स्य, एम्फीविया, सरीसृप, पक्षी एवं
स्तनधारी ।

वर्ग मत्स्य (Pisces)

  • जलीय जीव ।
  • त्वचा शल्क अथवा प्लेटों से ढकी होती है।
  • गिल उपस्थित |
  • दिपार्श्व सममित, धारा रेखीय शरीर जो तैरने में मदद करता है ।
  • हृदय दो कक्ष युक्त, ठंडे खून वाले ।
  • अंडे देने वाला, जिनसे नए जीव बनते हैं।
  • कुछ का कंकाल उपास्थि का व कुछ का हड्डी से बना ।
  • उपस्थिकंकाल मछलि – जैसे शार्क, अस्थि कंकाल मछली – जैसे रोहू, ट्युना

उदाहरण – शार्क, रोहू, टारपीडो आदि ।

जलस्थल चर

  • एम्फीबिया (Amphibia) (जलस्थलचर)
  • भूमि व जल में पाए जाने वाले या रहने वाले
  • जनन के लिए जल आवश्यक ।
  • त्वचा पर श्लेष्मग्रन्थियाँ उपस्थित ।
  • शीत रुधिर, हृदय तीन कोष्ठक वाला ।
  • श्वसन गिल या फेफड़ों द्वारा ।
  • पानी में अंडे देने वाले ।

उदाहरण – टोड, मेढक, सेलामेन्डर ।

सरीसृप (Reptilia)

  • अधिकांश थलचर।
  • शरीर पर शल्क, श्वसन फेफड़ों द्वारा।
  • शीत रूधिर असमतापी।

  • हृदय त्रिकक्षीय, लेकिन मगरमच्छ का हृदय चार कक्षीय
  • कवच युक्त अण्डे देते हैं।

उदाहरण – साँप, कछुआ छिपकली, मगरमच्छ आदि ।

पक्षी वर्ग (Aves)

  • गर्म खून वाले जन्तु । (समतापी)
  • चार कक्षीय हृदय होता है ।
  • श्वसन फेफड़ों द्वारा । इनकी अस्थियाँ खोखली होती है ।
  • शरीर पर पंख पाए जाते हैं ।
  • शरीर सिर, गर्दन, धड़ व पूँछ में विभाजित ।
  • अग्रपाद पंखों में रूपान्तरित ।
  • नर व मादा अलग ।

उदाहरण – कौआ, कबूतर, मोर आदि ।

स्तनपायी स्तनधारी (Mammalia)

  • त्वचा बाल खेद और तेल ग्रथि युक्त, गर्म रुधिर वाले (समतापी)
  • स्तन (दुग्ध) ग्रन्थियाँ, बाह्य कर्ण उपस्थित ।
  • श्वसन फेफड़ों द्वारा ।
  • शिशुओं को जन्म (इकिडना और प्लेटिपस अंडे देते है।
  • निषेचन क्रिया आंतरिक
  • हृदय चार कक्षीय ।
  • माँ-बाप द्वारा शिशु की देखभाल ।

उदाहरण – मनुष्य, कंगारू, हाथी, बिल्ली, चमगादड़ आदि ।

जन्तु जगत

  • कोशिकीय स्तर (पोरिफेरा)
  • ऊतकीय स्तर
ऊतकीय स्तर

  • बाह्य त्वचा एवं जठर गुहा के बीच कोई देह गुहा नहीं  (सीलेन्टरेटा, प्लैटिहेल्मन्थीज)
  • कूट देह गुहाधारी (निमेटोडा)
  • देहगुहाधारी
देहगुहाधारी

  • भ्रूण के विकास के समय एक कोशिका से मीसोडर्म की कोशिका का विकास (एनीलिडा, मोलस्का आर्थोपोडा)
  • अंतः स्तर की एक थैली से देह गुहा बनना
अंतः स्तर की एक थैली से देह गुहा बनना

  • नोटोकार्ड विहिन (इकाइनोडर्मेटा) ।
  • नोटोकार्डयुक्त कॉर्डेटा
नोटोकार्डयुक्त कॉर्डेटा

  • लार्वा में अवशेषी नोटोकार्ड की उपस्थिति (प्रोटोकार्डेटा)
  • वयस्क में मेरूदंड द्वारा नाटोकार्ड का प्रतिस्थापन
वयस्क में मेरूदंड द्वारा नाटोकार्ड का प्रतिस्थापन

  • मत्स्य – शल्क का बाह्य कंकाल, अस्थि व उपास्थि का अंतः कंकाल, क्लोम द्वारा श्वसन ।
  • सरीसृप – शलक का बाह्य कंकाल, जल के बाहर अंडे देना । स्तनधारी (स्तनपायी) बाल उपस्थित बाह्य कर्ण, शिशुओं को जन्म देने वाले।
  • स्तनधारी (स्तनपायी) – बाल उपस्थित बाह्य कर्ण, शिशुओं को जन्म देने वाले।
  • पक्षी – पंखों का बाह्य कंकाल, जल के बाहर अंडे देना, उड़ने की क्षमता ।
  • जल स्थल चर – लार्वा में श्वसन के लिए क्लोम, श्लेष्मा युक्त त्वचा, श्वसन फेफड़ों द्वारा ।

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