NCERT Solutions Class 9th Science Chapter – 6 ऊतक (Tissue)
Textbook | NCERT |
Class | 9th |
Subject | विज्ञान (Science) |
Chapter | 6th |
Chapter Name | ऊतक (Tissue) |
Category | Class 9th Science |
Medium | Hindi |
Source | Last Doubt |
NCERT Solutions Class 9th Science Chapter – 6 ऊतक (Tissue) Notes In Hindi विभज्योतक ऊतक क्या है कक्षा 9?, लघु उत्तरीय प्रश्न 1 ऊतक क्या है?, पैरेन्काइमा ऊतक कक्षा 9वीं क्या है?, सबसे कठोर ऊतक कौन सा है?, 1 ऊतक क्या है?, मस्तिष्क में पाए जाने वाले उत्तक का क्या नाम है?, ऊतक के अध्ययन को क्या कहते हैं?, शरीर में सबसे बड़ा संयोजी उत्तक क्या है?, दिमाग में कितनी नस होती है?, दिमाग के कितने भाग होते हैं?, सबसे बड़ा मस्तिष्क किसका होता है?, ब्लड कौन सा टिश्यू है?, कोशिका कितने प्रकार के होते हैं?, मानव शरीर में कितने बंधन होते हैं?, ऊतक का मुख्य कार्य क्या है?, जाइलम और फ्लोएम क्या है? |
NCERT Solutions Class 9th Science Chapter – 6 ऊतक (Tissue)
Chapter – 6
ऊतक
Notes
ऊतक
पादप ऊतक
जंतु ऊतक
पादप ऊतक
विभज्योतक
प्राथमिक विभज्योतक ( Primary Meristem)
शीर्षस्थ (मेरिस्टम Apical Meristerm)
पार्श्वीय विभज्योतक (Lasteral Masristen)
अंतर्विष्ट विभज्योतक (Inter calary Meristem)
स्थायी ऊतक
- सरल स्थायी ऊतक (Simple Permanent Tissue) –
- एपिडर्मिसपैरेन्काइमा (Parenchyma)
- कोलेनकाइमा (Collenchyma)
- स्कलेरेनकाइमा (Sclerenchyma)
गोल अण्डाकार, लम्बी खम्बाकार जीवित लम्बी संकरी लिग्निफाइड (मृत)
स्थायी ऊतक
- सरल स्थायी ऊतक (Simple Permanent Tissue) –
- एपिडर्मिसपैरेन्काइमा (Parenchyma)
- कोलेनकाइमा (Collenchyma)
- स्कलेरेनकाइमा (Sclerenchyma)
गोल अण्डाकार, लम्बी खम्बाकार जीवित लम्बी संकरी लिग्निफाइड (मृत)
जटिल स्थायी ऊतक (Complex Permanent Tissue) –
- जाइलम (Xylem)
- फ्लोएम (Phloem)
- वाहिनिका (Tracheids)
- वाहिका (Vessels)
- जाइलम पेरेनकाइमा ( Xylem Parenchyma)
- जाइलम रेशे (Xylem Fibre)
- चालनी नलिकाएँ ieve Tubes)
- फ्लोएम रेशे (Phloem Fibre)
- सहचरी कोशिकाएँ (Companion cell)
- फ्लोएम पैरेनकाइमा (Phloem Parenchyama)
Animal Tissues (जंतु ऊतक)
- एपीथिलियल संरक्षी ऊतक (Epithelial Tissue)
- संयोजी ऊतक (Connective tissue)
- पेशीय ऊतक (Muscular Tissue)
- तन्त्रिका ऊतक (Nervous Tissue)
एपीथिलियल संरक्षी ऊतक (Epithelial Tissue)
- एपिथेलियल संरक्षी ऊतक (Epithelial Tissue)
- शल्की एपिथीलियम (Squamous epithelium)
- घनाकार एपीथिलियम (Cuboidal Epithalium)
- स्तम्भी एपीथिलियम (Columnar Epithalium)
- (पक्ष्माभी) एपीथिलियम (Ciliated epithalium)
- (ग्रन्थिल) एपीथिलियम (Grandular Epithalium)
संयोजी ऊतक (Connective tissue)
- रेशेदार या अवकाश Areolar
- वसामय (Adipose)
- कंकाल (Skeletal)
द्रव (Fluid)
- रक्त (Blood)लसिका (Lymph)
कंकाल (Skeletal)
- कण्डरा (Tendon)स्नायु (Ligament)अस्थि (Bone)उपास्थि (Cartilage)
पादप ऊतक – विभज्योतक ऊतक मूल के आधार – प्राथमिक विभज्योतक और द्वितीय विभज्योतक
उपस्थिति के आधार पर – शीर्षस्थ विभज्योतक (जड़ व तने के शीर्ष पर )
- पार्श्वीय विभज्योतक (जड़ व तने की परिधि में)अंतविष्ट विभज्योतक (पत्तियों के आधार या टहनियों के पर्व के दोनो ओर)
पार्श्वीय विभज्योतक
- संवहन कैम्बियमकार्क कैम्बियम
ऊतक – एक कोशिकाओं का समूह जो उद्भव व कार्य की दृष्टि ससमान होता है उसे ऊतक कहते है । एक कोशिकीय जीवों में सामान्यः एक ही कोशिका के अन्दर सभी महत्वपूर्ण क्रियाए जैसे – पाचन , श्वसन व उत्सर्जन क्रियाएँ होती हैं ।
बहुकोशिकीय जीवों में सभी महत्वपूर्ण कार्य कोशिकाओं के विभिन्न समूहों द्वारा की जाती है । कोशिकाओं का विशेष समूह जो संरचनात्मक कार्यात्मक व उत्पत्ति में समान होते हैं, ऊतक कहलाते हैं ।
पादप ऊतक
विभज्योतिकी ऊतक (Meristematic Tissue)
सरल स्थायी ऊतक (Permanent Tissue)
विभज्योतकी ऊतक
(i) शीर्षस्थ विभज्योतक (Apical meristematic Tissue)
(ii) पार्श्व विभज्योतक (Lateral meristematic Tissue)
(iii) अंतर्विष्ट विभज्योतक (Intercalary meristemetic Tissue)
विभज्योतकी ऊतक (Meristematic Tissue) – विभज्योतकी ऊतक वृद्धि करते हुए भागों में पाए जाते हैं जैसे- तने व जड़ों के शीर्ष और कैम्बियम (Cambium) में स्थिति के आधार पर विभज्योतिकी उत्तक तीन प्रकार के होते हैं:
(i) शीर्षस्थ विभज्योतक (Apical meristematic Tissue) – शीर्षस्थ विभेद तने व जड़ के शीर्ष पर स्थित होता और पादपो की लम्बाई में वृद्धि करता है।
(ii) पार्श्व विभज्योतक (Lateral meristematic Tissue) – पार्श्व विभज्योतक क्या कैम्बियम तने व जड़ की परिधि में स्थित होता है और उनकी मोटाई में वृद्धि करता है।
(iii) अंतर्विष्ट विभज्योतक (Intercalary meristemetic Tissue) – अंतर्विष्ट विभज्योतक पत्तियों के आधार या टहनियों के पर्व ( Internode) के दोनों ओर स्थित होता है। यह इन भागों की वृद्धि करता है।
पादप ऊतक – कोशिकाओं का ऐसा समूह जिसमें समान अथवा असमान कोशिकाएँ उत्पत्ति, कार्य, संरचना में समान होती हैं, पादप ऊतक कहलाती हैं।
जंतु ऊतक – यह जन्तुओं के शरीर में पाया जाने वाला सबसे सामान्य ऊतक है, जो लगभग सभी अंगों के ऊपर एक पर्त के रूप में उपस्थित होता है। इस ऊतक की कोशिकाएँ एक-दूसरे से जुड़ी होती हैं, और अनवरत सतह का निर्माण करती हैं जिसके कारण इन्हें पेवमेन्ट ऊतक भी कहा जाता है।
पादप ऊतक के प्रकार – पादप ऊतक दो प्रकार के होते हैं।
- विभज्योतकीय ऊतकस्थायी ऊतक विभज्योतिकी ऊतक विभज्योतिकी ऊतक वृद्धि करते हुए भागों में पाए जाते हैं जैसे तने व जड़ों के शीर्ष और कैम्बियम।
विभज्योतकी ऊतक की विशेषताएँ –
- सेलुलोज की बनी कोशिका भित्तिकोशिकाओं के बीच में स्थान अनुपस्थित, सटकर जुड़ी कोशिकाएँकोशिकाएँ गोल, अंडाकार या आयताकारकोशिका द्रव्य सघन (गाढ़ा), काफी मात्रा में,नाभिक, एक व बड़ासंचित भोजन अनुपस्थित
विभज्योतिकी ऊतक के कार्य – लगातार विभाजित होकर नई कोशिकाएँ पैदा करना और पादपों की लम्बाई और चौड़ाई में वृद्धि करना है।
- ये उन विभज्योतकी ऊतक (Meristematic tissue) से उत्पन्न होते हैं जो कि लगातार विभाजित होकर विभाजन की क्षमता खो देते हैं।
- इनका आकार, आकृति व मोटाई निश्चित होती है। ये जीवित या मृत दोनों हो सकते हैं। स्थायी ऊतक की कोशिकाओं के कोशिका द्रव्य में रिक्तिकाएँ (Vacuole ) होती हैं।
- जब एक सरल कोशिका एक विशिष्ट कार्य करने के लिए एक स्थायी रुप और आकार प्राप्त करती है उसे विभेदीकरण कहते है।
- आकृति व संरचना के आधार पर स्थायी ऊतक दो प्रकार के होते हैं।
(i) सरल ऊतक – यह केवल एक ही प्रकार की कोशिकाओं का समूह होता ये दो प्रकार के होते है।
(a) संरक्षी ऊतक (Protective Tissue) (b) सहायक ऊतक (Supporting Tissue ) संरक्षी ऊतक का मुख्य कार्य सुरक्षा करना होता है।
(1) एपिडर्मिस (Epidermis ) – पौधे के सभी भाग जैसे पत्तियाँ, फूल, जड़ व तने की सबसे बाहरी परत Epidermis कहलाती है। यह क्यूटिकल (cuticle) से ढकी होती है । क्यूटिन एक मोम जैसा, जल प्रतिरोधी पदार्थ होता है, जो कि एपीडर्मिस कोशिकाओं द्वारा स्रावित किया जाता है। अधिकतर पौधों में Epidermis के साथ-साथ पत्तियों पर सूक्ष्म छिद्र रंध्र (स्टोमेटा ) भी पाए जाते हैं। स्टोमेटा में दो गार्ड कोशिकाएँ पाई जाती हैं।
ऊतक के विभज्योतकी कार्य – लगातार विभाजित होकर नई कोशिकाएँ पैदा करना और पादपों की लम्बाई और चौड़ाई में वृद्धि करना है।
विभेदीकरण – एक सरल कोशिका एक विशिष्ट कार्य करने के लिए स्थायीरुप और आकार प्राप्त करती है उसे विभेदीकरण कहते है।
स्थायी ऊतक – ये उन विभज्योतिकी ऊतक से उत्पन्न होते हैं जो कि लगातार विभाजित होकर विभाजन की क्षमता खो देते हैं। इनका आकार, आकृति व मोटाई निश्चित होती है। ये जीवित या मृत दोनों हो सकते हैं। स्थायी ऊतक की कोशिकाओं के कोशिका द्रव्य में रिक्तिकाएँ होती हैं।
स्थायी ऊतक के प्रकार – आकृति व संरचना के आधार पर स्थायी ऊतक दो प्रकार के होते हैं।
(i) सरल स्थायी ऊतक
(ii) जटिल स्थायी ऊतक
(i) सरल ऊतक – यह केवल एक ही प्रकार की कोशिकाओं का समूह होता है।
(ii) जटिल स्थायी ऊतक – जटिल ऊतक एक ही प्रकार के विशेष कार्य करने वाले विभिन्न प्रकार के कोशिकाओं का समूह जटिल ऊतक कहलाता है।
जटिल स्थायी ऊतक – जटिल स्थायी ऊतक दो प्रकार के होते है।
(i) संरक्षी ऊतक
(ii) सहायक ऊतक
(i) संरक्षी ऊतक – संरक्षी ऊतक का मुख्य कार्य सुरक्षा करना होता है।
(ii) सहायक ऊतक – सहायक ऊतक केवल एक प्रकार की कोशिकाओं से बनते हैं।
एपीडर्मिस – पौधे के सभी भाग जैसे पत्तियाँ, फूल, जड़ व तने की सबसे बाहरी परत कहलाती है। यह क्यूटिकल से ढकी होती है, क्यूटिन एक मोम जैसा जल प्रतिरोधी पदार्थ होता है जो कि एपीडर्मिस कोशिकाओं द्वारा स्रावित किया जाता है।
अधिकतर पौधों में Epidermis के साथ-साथ पत्तियों पर सूक्ष्म छिद्र रंध्र स्टोमेटा भी पाए जाते हैं। स्टोमेटा में दो गार्ड कोशिकाएँ पाई जाती हैं।
एपिडर्मिस का कार्य –
(i) पौधों को सुरक्षा प्रदान करना।
(ii) एपिडर्मिस की क्युटिकल वाष्पोत्सर्जन को रोकती है जिससे पौधा झुलसने से बच जाता है।
(iii) स्टोमेटा द्वारा गैसों के आदान प्रदान में सहायता व वाष्पोत्सर्जन में सहायक।
कार्क (Cork) – पौधे की लगातार वृद्धि के कारण जड़ व तने की परिधि में उपस्थित ऊतक कार्क में बदल जाती है। इन कोशिकाओं की भित्ति सुबेरिन के जमाव के कारण मोटी हो जाती है, कार्क कोशिकाएँ जल व गैस दोनों के प्रवाह को रोक देती है।
कार्क का कार्य – कार्क, झटकों व चोट से पौधे को बचाता है। यह बहुत हल्का, जलरोधक, संपीडित होता है। कार्क का उपयोग कुचालक व झटके सहने वाले पदार्थ के रूप में किया जाता है।
स्टोमेटा | कार्क |
पत्तियों के एपिडर्मिस में बहुत से सूक्ष्मदर्शीय छिद्र होते हैं जो कि वृक्क के आकार की गार्ड कोशिकाओं से घिरी होती है । ये स्टोमेटा कहलाते हैं ।कार्य – कार्बन डाई ऑक्साइड (CO2) व ऑक्सीजन (O2) का आदान प्रदान व जल का वाष्परूप में ह्यस। | जब जड़ें व तने वृद्ध होते जाते हैं तो द्वितीयक मेरिस्टेम एपीडर्मिस को बाहर की ओर धकेल देती है। ये पौधे के तने के बाहरी भाग में कई स्तरों में कार्क या पौधे की छाल के रूप में इटट्ठे हो जाते हैं। इनके बीच में किसी भी प्रकार का अन्तरावकाश नहीं होता ये कोशिकाओं में सुबेरिन के जमने से होता है। |
(i) पैरेन्काइमा (Parenchyma Teissue) – इन्हें पैकिंग ऊतक कहा जाता है ।
- समान व्यास वाली जीवित कोशिकाएँ
- गोल, अण्डाकार, बहुभुजीय या लम्बी
- कोशिका भित्ति पतली व कोशिका द्रव्य सघन
- कोशिका के मध्य में केन्द्रीय रिक्तिका
स्थिति – पौधे के सभी भागों में उपस्थित (जड़, तना, पत्ती, फूल)
पैरेंकाइमा ऊतक के कार्य
- भोजन को संचित कर इक्ट्ठा करना
- यान्त्रिक मजबूती प्रदान करना
- भोजन को एकत्रित करना
- पौधे के अपशिष्ट पदार्थ गोंद, रेजिन, क्रिस्टल, टेनिन इकट्ठा करना ।
पैरेन्काइमा कोशिकाओं का रूपांतरण – जब पैरेन्काइमा कोशिकाओं में क्लोरोप्लास्ट (Chloroplast) पाया जाता है तो वे हरे रंग की क्लोरेन काइमा कहलाती है। तब ये प्रकाश संश्लेषण करके भोजन बनाती है। ये कोशिकाएँ पत्तियों व नवजात तनों के बाह्य आवरण में पाई जाती है। जब पैरेकाइमा कोशिकाओं के बीच अन्तः कोशिकीय स्थान बढ़ जाता है तो इन अन्तकोशिकीय स्थान में वायु (air) भर जाती है तब ये ऐरेन्काइमा ( Aerenchyma) कहलाती है। जिससे पौधे हल्के हो जाते हैं। यह गुण पौधे को उत्प्लावन बल प्रदान करता है। ये अधिकतर जलीय पौधों में पाई जाती है।
(ii) कोलेन्काइमा (CollenchymaTissue)
- पैरेन्काइमा के समान जीवित कोशिका, कुछ क्लोरोफिल युक्त
- पतली कोशिका भित्ति
- लम्बी, स्थूल, लचीली सेलुलोज व पेक्टिन का कोनों में जमाव
- अंतः कोशिकीय स्थान अनुपस्थित
- बाह्य त्वचा (Epidermis) के नीचे उपस्थित
कोलेन्काइमा का कार्य – यांत्रिक शक्ति प्रदान करना व क्लोरोफिल के कारण शर्करा व स्टार्च का निर्माण करना।
(iii) स्क्लेरेन्काइमा (Sclerenchyma Tissue)
(iii) स्क्लेरेन्काइमा (Sclerenchyma Tissue)
स्थिति – स्कलेरेनकाइमा कोशिकाएँ कोर्टेक्स, मोटी फ्लोएम व कठोर बीज वाले फलों जैसे- आम, नारियल, बादाम आदि में पाई जाती है। इसके साथ स्कलेरेनकाइमा कोशिकाएँ लम्बी, संकरी, लिग्निन युक्त होती है।
पैरेन्काइमा | कोलेन्काइमा | स्कलेरनकाइमा |
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(ii) जटिल स्थायी ऊतक – वे ऊतक जो दो या दो से अधिक प्रकार की कोशिकाओं से मिलकर बने होते हैं जटिल स्थायी ऊतक कहलाते हैं। ये दो प्रकार के होते हैं- जाइलम व फ्लोएम (Xylem s Pholem) ये दोनों मिलकर संवहन ऊतक (Vascular Tissue) बनाते है।
जटिल स्थायी ऊतक के प्रकार – ये दो प्रकार के होते हैं –
- जाइलम
- फ्लोएम ये दोनों मिलकर संवहन ऊतक बनाते हैं।
जाइलम (Xylem) – यह ऊतक पादपों में मृदा से जल व खनिज का सवहन करता है यह चार प्रकार की कोशिकाओं से मिलकर बना है
(i) वाहिनिका (Xylem tracheids) – काष्ठीय कोशिका भित्ति, एकल कोशिकाएँ, लम्बी नली के रूप में व मतृ
(ii) वाहिका (Xylem vessels) – एक दूसरे से जुड़ी लम्बी कोशिकाएँ जड़ से जल व खनिजों का पौधे के विभिन्न भागों में संवहन।
(iii) जाइलम पैरेन्काइमा – पार्श्वी संवहन में सहायक जीवित ऊतक, भोजन को इकट्ठा करने में भी सहायक।
(iv) जाइलम फाइबर (स्क्लेरेनकाइमा ) – पौधों को दृढ़ता प्रदान करता (मृत)
फ्लोएम (Phloem) – यह ऊतक पादपों में निर्मित भोज्य पदार्थों का संवहन करता है। चार प्रकार की कोशिकाओं से मिलकर बना होता है।
(i) चालनी नलिकाएँ (Sieve tube ) – लम्बी व छिद्रितभित्ति वाली नलिकाकार कोशिकाएँ, चालनी प्लेट के छिद्रों द्वारा अन्य चालनी नलिका कोशिका के सम्पर्क में।
(ii) सहचरी कोशिकाएँ (Companion cell) – विशेष पैरेन्काइमा कोशिकाएँ , लम्बी , संकरी सघन जीव द्रव्य व बड़े केन्द्रक वाली।
(iii) फ्लोएम पैरेन्काइमा (phloem parenchyma) – सरल पैरेन्काइमा कोशिकाएं, भोजन का संग्रहण एवं धीमी गति से उनका संवहन।
(iv) फ्लोएम रेशे (phloem fibers) – ये स्कलेरेन्काइमा के रेशे दृढ़ता प्रदान करते हैं , मृत कोशिकाएँ
जाइलम एवं फ्लोएम में अन्तर –
जाइलम | फ्लोएम |
मृत कोशिकाएं कोशिका भित्ति मोटी होती है। लिग्निन कोशिका भित्ति को मोटी कर देती है। वाहिनिका और वाहिका पाई जाती है। कोशिका द्रव्य नहीं होता। यह खनिज और जल का संवहन करता है। संवहन केवल एक दिशा में होता है। | जीवित कोशिकाएं कोशिका भित्ति सामान्यतः पतली होती है। कोशिका भित्ती सल्युलोज की बनी होती है। चालनी नलिकाऐं और सहचरी कोशिकाएँ पाई जाती है। कोशिका द्रव्य होता है। यह पादप में निर्मित भोजन का संवहन करता है। संवहन ऊपर – नीचे दोनों दिशाओं में होता है। |
जन्तु ऊतक (Animal tissue)
- (संरक्षी ऊतक ) एपिथीलियमी ऊतक (Epithelial Tissue)
- पेशीय ऊतक (Muscular Tissue)
- तन्त्रिका ऊतक (Nervous Tissue)
- संयोजी ऊतक (connective Tissue) एपीथिलियल ऊतक (Epithelial Tissue) – संरक्षी ऊतक (Protective Tissue) जो शरीर की गुहिकाओं
के आवरण, त्वचा, मुँह की बाह्य परत ( अस्तर) में पाए जाते हैं।
कार्य व स्थिति के आधार पर ये निम्न प्रकार के होते हैं-
जंतुओं में ये चार प्रकार के ऊतक पाये जाते हैं –
- एपीथिलियल ऊतक ( संरक्षी ऊतक )
- पेशीय ऊतक
- तन्त्रिका ऊतक
- संयोजी ऊतक
एपीथिलियल ऊतक (E pithelial tissue)
- शल्की एपीथिलियम (Squamous)
- घनाकार एपिथिलियम (Cuboidal)
- स्तम्भाकार स्तम्भी एपिथिलियम (Columnar)
- ग्रन्थिल एपीथिलियम (Glandular)
शल्की एपीथिलियम (Squamous) – अनियमित सीमाओं वाली चपटी कोशिकाओं की एक पतली परत से बना होता है।
साधारण शल्की (Simple squamous) – सतही, पतली कमजोर सतह बनती है। जैसे रक्तवाहिनी, फेफड़ों की कूपिकाओं की विसरण करने वाली सतह
स्तरित शल्की (Stratified squamous) – ये सतहों पर क्रमानुसार लगी होती है। जैसे त्वचा जो हमारे शरीर का रक्षी ऊतक है। स्तम्भाकार एपीथिलियम
घनाकार एपीथिलियम (Cuboidal Epitheliem) – घनाकार कोशिकाएँ जो वृक्क की नलिकाओं की सतह व लार ग्रन्थि के अस्तर का निर्माण व यान्त्रिक मजबूती प्रदान करती है।
स्तम्भाकार (Columnar) – जो श्लेण्या झिल्ली के रूप में पाई जाती हैं। यह मुख्यतः अवशोषण एवं स्त्राव में सहायक होती हैं।
ग्रन्थिल एपीथिलियम (Glandular) – ये ग्रन्थिल होती है। अर्थात् पदार्थ का स्रावण करती है ये एपीथिलियम सतह पर होती है, जैसे- त्वचा कभी-कभी अन्दर की ओर मुड़ कर बहुकोशीय ग्रन्थि बनाती है।
पक्ष्माभी एपीथिलियम (Ciliated) – ये खम्बाकार । स्तम्भाकार घनाकार कोशिकाओं के साथ कुछ धागे जैसी रचनाओं के रूप में उपस्थित रहते हैं। ये ऊतक श्वसन नली की सतह पर पाए जाते हैं जो पदार्थ के चालन में सहायक होते हैं।
एपीथिलियल ऊतक (संरक्षी ऊतक)
रक्त – तरल संयोजी ऊतक
- कोशिका (45%)
- मैट्रिक्स (55% )
(प्लाज्मा)
(90-92%) जल
(7%) प्रोटीन
(0.9%) अकार्बनिक
लवण, हार्मोन
रक्त का तरल
आघात्री भाग
तंत्रिकाएं कोशिका के तीन भाग होते हैं –
(i) प्रवर्ध या डेन्ड्राइटस
(ii) स्टोन
(iii) एक्सॉन
प्रवर्ध या डेन्ड्राइटस (Dendrite) – धागे जैसी संरचना जो स्थान से जुड़ी रहती है ।
साइटॉन (Cyton) – कोशिका जैसी संरचना जिससे केन्द्रक व कोशिका द्रव्य पाया जाता है यह संवेग को विद्युत आवेग में बदलती है।
एक्सॉन (Axon) – पतले धागे जैसी संरचना जो एक सिरे पर स्टोन व दूसरे सिरे पर संवेगी अंग से जुड़ी रहती है।
किसी एक तंत्रिका कोशिका न्यूरोन का अंतिम शिरा, किसी दूसरी तंत्रिका कोशिका न्यूरोन के प्रवर्ध या डेन्ड्राइट्स के समीत होता है, और एक साइनेप्स नाम का क्षेत्र बनाता है, जहां से विद्युत आवेग एक न्यूरोन से दूसरे न्यूरोन में प्रवाह करता है।
प्रश्न 1. एपिथीलियमी ऊतक क्या है ?
प्रश्न 2. सरल स्थायी ऊतक किसे कहते है ?
प्रश्न 3. स्थायी ऊतक किसे कहते है ?
प्रश्न 4. पेशीय ऊतक क्या है ?
प्रश्न 5. पेशीय ऊतक किसे कहते है ?
प्रश्न 6. पेशीय ऊतक कितने प्रकार के है ?
( i ) रेखित पेशीय ऊतक , ( ii ) अरेखित पेशीय ऊतक , ( iii ) हृदय पेशीय ऊतक ।
प्रश्न 7. तंत्रिकाएं किसे कहते है ?
प्रश्न 8. हृदय पेशी क्या है ?
प्रश्न 9. हृदय में पाई जाने वाली पेशी का नाम क्या है ?
प्रश्न 10. साइटॉन (Cyton) क्या है ?
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