NCERT Solution Class 9th Science Chapter – 14 प्राकृतिक संपदा (Natural Resources) Notes In Hindi

NCERT Solution Class 9th Science Chapter – 14 प्राकृतिक संपदा (Natural Resources)

TextbookNCERT
Class9th
Subjectविज्ञान (Science)
Chapter14
Chapter Nameप्राकृतिक संपदा (Natural Resources)
CategoryClass 9th विज्ञान (Science) Notes
MediumHindi
SourceLast Doubt

Class 9th Science Chapter – 14 प्राकृतिक संपदा (Natural Resources) Notes In Hindi  जिसमे हम प्राकृतिक संपदा का अर्थ क्या है?, हमारी प्राकृतिक संपदा कौन सी है?, प्राकृतिक संपदा कौन कौन सी है और उनकी बचत करना क्यों आवश्यक है?, प्राकृतिक, सम्पदा के बारे में लोगों की क्या सोच है?, प्राकृतिक स्रोत कितने प्रकार के होते हैं?, प्राकृतिक संपदा कितने प्रकार के होते हैं?, हमारे वन संपदा का क्या महत्व है?, प्राकृतिक संपदा संसाधन कब कहलाता है?, संपोषित विकास क्यों जरूरी है? आदि के बारे में पड़ेंगे। Class 9th Science Chapter – 14 प्राकृतिक संपदा (Natural Resources) Notes In Hindi करेंगे 

NCERT Solution Class 9th Science Chapter – 14 प्राकृतिक संपदा (Natural Resources)

Chapter – 14

प्राकृतिक संपदा

Notes

जैवमंडल

  • सजीव
  • निर्जीव
सजीव – जैविक घटक जैसे – पौधे और जंतु
निर्जीव – अजैविक घटक जैसे – हवा, पानी और मिट्टी।
प्रदूषण – प्रकृतिक संसाधनों का दूषित होना
वायु प्रदूषण प्रभाव

  • ग्रीन हाउस प्रभाव
  • ओजोन प्ररत
  • अम्लीय वर्षा
वायु प्रदूषण स्रोत

  • जैविक एवं अजैविक पदार्थो का दहन
  • तूफान
  • जंगलों में आग लगना
  • ज्वालामुखी
जल प्रदूषण स्रोत

  • रासायनिक अपशिष्ट
  • घरेलू अपशिष्ट
  • तापीय
भूमि प्रदूषण स्रोत

  • उघोगोंक कचना (अपशिष्ट)
  • कृषि
कृषि

  • कीटनाशक
  • पीड़कनाशक
प्राकृतिक संपदा – पृथ्वी के सभी प्रकार के जीवों की मूल आवश्यकताओं की पूर्ति पृथ्वी की सम्पदा और सूर्य की ऊर्जा से होती है। वायु, पानी, मृदा, खनिज, प्राणी और पौधे, मनुष्य जाति के लिए कई प्रकार से उपयोगी है।
पृथ्वी पर यह संपदा कौन सी है – पृथ्वी की सबसे बाहरी परत को स्थलमण्डल कहते हैं। पृथ्वी की सतह से लगभग 75% भाग पर पानी है। यह भूमिगत रूप में भी पाया जाता है। यह समुद्र, नदियों, झीलों, तालाबों आदि के रूप में है। इन सब को मिलाकर जलमण्डल कहते हैं। वायु जो पृथ्वी पर एक कम्बल की तरह कार्य करता है। वायुमण्डल कहलाता है। यह तीन मण्डल आपस में मिलकर जैवमंडल का निर्माण करते है।
जैवमंडल – जीवन का भरण पोषण करने वाला पृथ्वी का क्षेत्र, जहाँ वायुमण्डल, जलमण्डल और स्थलमण्डल एक दूसरे से मिलकर जीवन को सम्भव बनाते हैं, उसे जैवमण्डल कहते हैं। यह दो प्रकार के घटकों से मिलकर बनता है-

  • जैविक घटक – पौधे एवं जन्तु।
  • अजैविक घटक – हवा, पानी और मिट्टी।

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जीवन की श्वास-हवा – वायु कई गैसों जैसे नाइट्रोजन, ऑक्सीजन, कार्बन डाइऑक्साइड और जलवाष्प का मिश्रण है। वायु में नाइट्रोजन 78% और ऑक्सीजन 21% होते हैं। कार्बन डाइऑक्साइड बहुत कम मात्रा 0.04% में वायु में होती है। हीलियम, नियान, ऑर्गन और क्रिप्टान जैसे उत्कृष्ट गैसें अल्प मात्रा में होती हैं ।
वायुमण्डल की भूमिका – वायु ऊष्मा की कुचालक है वायुमण्डल दिन के समय और वर्ष भर पृथ्वी के औसत तापमान को लगभग नियत रखता है। यह दिन के समय तापमान में अचानक वृद्धि को रोकता है और रात के समय ऊष्मा को बाहरी अन्तरिक्ष में जाने की दर को कम करता है जिससे रात अत्यधिक ठण्डी नहीं हो पाती। पृथ्वी की इस स्थिति की तुलना चन्द्रमा की स्थिति से कीजिए जहाँ कोई वायुमण्डल नहीं है वहा रात का तापमान –90°C और दिन का तापमान, 110°C साथ ही वहाँ हवा एवं पानी का अभाव रहता है ।
वायु की गति पवनें – 

  • दिन के समय हवा की दिशा समुद्र से स्थल की ओर होती है क्योंकि स्थल के ऊपर की हवा जल्दी गर्म हो जाती है और ऊपर उठने लगती है।
  • रात के समय हवा की दिशा स्थल से समुद्र की ओर होती है क्योंकि रात के समय स्थल और समुद्र ठण्डे होने लगते हैं।
  • एक क्षेत्र से दूसरे क्षेत्र में हवा की गति पवनों का निर्माण करती है।
वर्षा – (जलाशयों से होने वाले जल का वाष्पीकरण तथा संघनन हमें वर्षा प्रदान करता है।) 

दिन के समय जब जलाशयों का पानी लगातार सूर्य किरणों के द्वारा गर्म होता है और जल वाष्पित होता रहता है। वायु जल वाष्प को ऊपर ले जाती है जहाँ यह फैलती और ठण्डी होती है। ठण्डी होकर जल वाष्प जल की बूँदों के रूप में संघनित हो जाती है। जब बूँदें आकार में बढ़ जाती हैं तो नीचे गिरने लगती हैं। इसे वर्षा कहते हैं।

  • हमें वर्षा जल संरक्षण करना चाहिए इसे बांध, तलाब, वृक्षारोपण द्वारा किया जा सकता है।
वायु प्रदूषण (Air Pollution) – वायु स्थित हानिकारक पदार्थों की वृद्धि जैसे – कार्बन डाइऑक्साइड, कार्बन मोनोऑक्साइड, | सल्फर और नाइट्रोजन के ऑक्साइड, फ्लोराइड, सीसा, धूल के कण, वायु प्रदूषण कहलाता है।, इससे-

मनुष्यों में श्वसन और एलर्जी, उच्च रक्तचाप आँखों में जलन, कैंसर।
पौधों में कम वृद्धि, क्लोरोफिल की गिरावट पत्तियों पर रंग के धब्बे।

अम्लीय वर्षा – जीवाश्मी ईंधन जब जलते हैं यह ऑक्सीकृत होकर सल्फर डाइऑक्साइड (SO2) और नाइट्रोजन डाइ-ऑक्साइड गैसें बनाती हैं। ये गैसें वायुमण्डल में मिल जाती हैं। वर्षा के समय यह गैसें पानी में घुल कर सल्फ्यूरिक अम्ल और नाइट्रिक अम्ल बनाती हैं, जो वर्षा के साथ पृथ्वी पर आता है, जिसे अम्लीय वर्षा कहते हैं।

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ग्रीन हाउस प्रभाव – वायु में जलवाष्प, CO2, CH4, NO2 ग्रीन हाउस गैसों के उदाहरण है

वायुमण्डल में कार्बन डाइऑक्साइड, जलवाष्प आदि पृथ्वी से परावर्तित होने वाले अवरक्त किरणों को अवशोषित कर लेते हैं जिससे वायुमण्डल का ताप बढ़ जाता है। और सूर्य की अनुपस्थिति में पृथ्वी का ताप सामान्य बने रहता है इसे ग्रीन हाउस प्रभाव कहते है

कार्बन डाइऑक्साइड का प्रतिशत बढ़ने के कारण दुष्प्रभाव –

  • ग्रीन हाउस प्रभाव बढ़ जाता है। 
  • वैश्विक ऊष्मीकरण होता है।
  • पृथ्वी के औसत तापमान में वृद्धि होती है। 
  • चोटियों पर जमी बर्फ ग्रीन हाउस प्रभाव के कारण वर्ष भर पिघलती रहती है।

(CO2) पृथ्वी को गर्म रखता है जैसे कि शीशे द्वारा ऊष्मा को रोक लेने के कारण शीशे के अन्दर का तापमान बाहर के तापमान काफी अधिक जाता है।

ओजोन –

  • ओजोन ऑक्सीजन का एक अपररूप है जिसमें ऑक्सीजन के तीन परमाणु पाये जाते हैं। ( O₃) 
  •  यह वायुमण्डल में 16 किमी. से 60 किमी. की ऊँचाई पर उपस्थित है । 
  •  यह सूर्य से आने वाली पराबैंगनी विकिरण ( Ultra violet rays ) को अवशोषित कर लेते है। इस प्रकार पृथ्वी पर जीवों के लिए ओजोन परत एक सुरक्षात्मक आवरण के रूप में कार्य करती है।
  •  यह पराबैंगनी विकिरण से हानिकारक विकार जैसे मोतियाबिन्दु, त्वचा कैंसर एवं अन्य आनुवंशिक रोगों से बचाती है।
  •  1985 के आस – पास वैज्ञानिकों ने अण्टार्टिक भाग के पास ओजोन छिद्र की उपस्थिति ज्ञात की।
ओजोन परत के हास होने के कारण (Reason of Ozone depletion)

  • क्लोरो-फ्लोरो कार्बन (CFC) का ऐरोसोल, अग्निशामक, रेफ्रीजरेशन आदि के अत्यधिक उपयोग से।
  • सुपरसोनिक विमानों में ईंधन के दहन से उत्पन्न पदार्थ व नाभिकीय विस्फोट भी ओजोन परत के ह्रास होने के कारण है-

(CFC) के अणु ओजोन से अभिक्रिया कर उसका ह्रास करते है।

जल: एक अद्भुत द्रव –

  • पृथ्वी की सतह के लगभग 75 % भाग पर पानी विद्यमान है। यह भूमि के अन्दर भूमिगत जल के रूप में भी पाया जाता है। 
  • अधिकांशतः जल के स्रोत हैं सागर, नदियाँ, झरने एवं झील! जल की कुछ मात्रा जलवाष्प के रूप में वायुमण्डल में भी पाई जाती है।
जल की आवश्यकता

  • यह शरीर का ताप नियंत्रित करता है।
  • जल मानव शरीर की कोशिकाओं, कोशिका-सरंचनाओं तथा ऊतकों में उपस्थित जीव द्रव्य का महत्वपूर्ण संघटक है। सभी कोशकीय प्रक्रियाएँ जल माध्यम में होती है
  • जल जन्तु/पौधे हेतु आवास का कार्य करता है। सभी कोशिकीय प्रक्रियाएँ जल माध्यम में होती है।
जल प्रदूषण – जब पानी पीने योग्य नहीं होता तथा पानी को अन्य उपयोग में लाते हैं, उसे जल प्रदूषण कहते हैं। (जल में अवांछनीय अतिरिक्त पदार्थों का सिमित मात्रा से अधिक मात्रा में उपस्थित जल प्रदूषण कहलाता है।)
जल प्रदूषण के कारण-

  • जलाशयों में उद्योगों का कचरा डालना।
  • जलाशयों के नजदीक कपड़े धोना एवं मूर्ति विसर्जन आदि।
  • जलाशयों के अवांछित पदार्थ डालना। (घरेलू कचरा, नालों का मल)
  • कृषि से कीटनाशक और उर्वरक का जलशयो तक पहुचना

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मृदा – भूमि की ऊपरी सतह पौधों के लिए आवश्यक पोषक तत्वों से भरपूर है। इसमें कार्बनिक पदार्थ है एवं वायु प्रचुर मात्रा में उपस्थित होती है। यह सतह मृदा कहलाती है। 
 मिट्टी का निर्माण -निम्नलिखित कारक मृदा बनाती है –

  • सूर्य
  • पानी
  • वायु
  • जीवित जीव
सूर्य – दिन के समय सूर्य चट्टानों को गर्म करता है और वे फैलती हैं। रात को ठण्डी होने से चट्टानें सिकुड़ती हैं और फैलने-सिकुड़ने से उनमें दरारें पड़ जाती हैं। इस प्रकार बड़ी-बड़ी चट्टानें छोटे-छोटे टुकड़ों में टूट जाती हैं। 
पानी – तेजी से बहता पानी भी चट्टानों को तोड़-फोड़कर टुकड़े-टुकड़े कर देता है, जो आपस में टकरा कर छोटे-छोटे कणों में बदल जाते हैं, जिनसे मृदा बनती है ।
वायु – तेज हवाएं भी चट्टानों को काटते हैं और मृदा बनाने के लिए रेत को एक स्थान से दूसरे स्थान पर ले जाती है।
जीवित जीव – लाइकेन और मॉस चट्टानों की सतह पर उगती है और उनको कमजोर बनाकर महीन कणों में बदल देते हैं।
मृदा के घटक – मृदा में पत्थर के छोटे छोटे टुकड़े, सडे-गले जीवों के टुकडे, जिन्हें ह्यमस कहते है और विभिन्न प्रकार के सजीव उपस्थित होते हैं। ह्यमस मृदा को सरंध्र बनाता है ताकि वायु और पानी भूमि के अंदर तक जा सके।
मृदा की उपयोगिता – मृदा एक आवश्यक प्राकृतिक संसाधन है हम भोजन, कपडा तथा आश्रय पौधों से प्राप्त करतें हैं जो मृदा में उगते हैं। जंतु मृदा मे उगने वाले पौधों पर आश्रित रहते हैं। 
विभिन्न प्रकार की मृदाएँ –

  • जलोढ़ मिट्टी (Alluvial Soil)
  • काली मिट्टी (Black Soil)
  • बलुई मिट्टी (Sandy Soil)
  • लेटेराइट मिट्टी (Laterite Soil)
मृदा अपरदन – मृदा की ऊपरी सतह वायु, जल, बर्फ एवं अन्य भौगोलिक कारकों द्वारा लगातार हटायी जाती है। भूमि की ऊपरी सतह या मृदा का हटाना, मृदा का अपरदन कहलाता है।
मृदा अपरदन के कारण –

  • भूमि को पशुओं द्वारा अधिक मात्रा में चराना।
  • तेज हवाओं तथा पानी की बजह से मिट्टी की ऊपरी सतह का हटना।
  • पेड़ों की कमी होने के कारण भी मिट्टी की ऊपरी परत का हटना।
  • अधिक समय तक जमीन पर खेती नहीं करना
जैव रासायनिक चक्रण –

  • जीवमण्डल के जैव और अजैव घटकों में लगातार अन्तः क्रिया होती रहती है।
  • पौधों को (C, N, O, P, S) आदि तत्व और इनके खनिज की आवश्यकता होती है। ये खनिज जल ,भूमि या वायु से पौधों (उत्पादक स्तर) में प्रवेश करते हैं और दूसरे स्तरों से होते हुए अपने मुख्य स्रोत में स्थानान्तरित होते रहते हैं। इस प्रक्रम को जैव रासायनिक चक्र कहते हैं।
जल चक्र –

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  • वह पूरी प्रक्रिया, जिसमें पानी, जलवाष्प बनता है और वर्षा के रूप में जमीन पर गिरता है और फिर नदियों के द्वारा समुद्र में पहुँच जाता है, जल चक्र कहलाता है। 
  • महासागरों, समुद्रों, झीलों तथा जलाशयों का जल सूर्य की ऊष्मा के कारण वाष्पित होता रहता है।
  • पौधे मिट्टी से पानी को अवशोषित करते हैं और प्रकाश संश्लेषण की प्रक्रिया के दौरान इस्तेमाल करते हैं। वे वायु में वाष्पोत्सर्जन द्वारा जल मुक्त करते हैं।
  • जन्तुओं में श्वसन तथा जन्तुओं के शरीर द्वारा वाष्पीकरण की क्रिया से जलवाष्प वातावरण में जाती है।
  • जलाशयों से होने वाले जल का वाष्पीकरण तथा संघनन हमें वर्षा प्रदान करती है।
  • जल, जो वर्षा के रूप में जमीन पर गिरता है, तुरन्त ही समुद्र में नहीं बह जाता है। इसमें से कुछ जमीन के अन्दर चला जाता है और भूजल का भाग बन जाता है।
  • पौधे भूजल का उपयोग बार – बार करते हैं और यह प्रक्रिया चलती रहती है।
कार्बन-चक्र –

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  • कार्बन सभी पोषक तत्वों का अहम तत्व हैं।
  • कार्बन-चक्र वायुमण्डल में कार्बन तत्व का सन्तुलन बनाए रखता है।
  • कार्बन पृथ्वी पर ज्यादा अवस्थाओं में पाया जाता है । जैसे कोयला, चूना पत्थर, शलकी आदि में।
  • यौगिक के रूप में यह वायुमण्डल में कार्बन डाइऑक्साइड के रूप में, अलग-अलग प्रकार के खनिजों में कार्बोनेट और हाइड्रोजन कार्बोनेट के रूप में पाया जाता है।
  • प्रकाश संश्लेषण में पौधे कार्बन डाइऑक्साइड ग्रहण करते हैं। और O, वातावरण में निष्काशित करते है।
  • उत्पादक स्तर (पौधों) से कार्बन उपभोक्ता स्तर ( जन्तुओं) तक स्थानान्तरित होता है। इसका कुछ भाग श्वसन क्रिया द्वारा कार्बन डाइआक्साइड के रूप में वायुमण्डल में चला जाता है।
  • जैविक कचरे के अपघटन और दहन क्रिया से कार्बन वायुमण्डल में पहुँचता है।
 नाइट्रोजन चक्र –

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  • इस प्रक्रिया में वायुमण्डल की नाइट्रोजन सरल अणुओं के रूप में मृदा और पानी में आ जात है। ये सरल अणु पादपो द्वारा जटिल अणुओं में बदल जाते हैं और अन्य जीवों द्वारा फिर से सरल अणुओं के रूप में वायुमण्डल में वापिस चले जाते है। इस पूरी प्रक्रिया का नाइट्रोजन-चक्र कहते हैं।

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  • वायुमण्डल का 78 % भाग नाइट्रोजन गैस है। 
  • प्रोटीन, न्यूक्लीक अम्ल, (RNA , DNA,) विटामिन का आवश्यक घटक नाइट्रोजन है। 
  • पौधे और जन्तु वायुमण्डलीय नाइट्रोजन को आसानी से ग्रहण नहीं कर सकते हैं अतः इसका नाइट्रोजन के यौगिकों में बदलना आवश्यक है।
  • नाइट्रोजन का स्थिरीकरण करने वाले बैक्टीरिया जैसे राइजोबियम, फलीदार पौधों के जड़ों में मूल ग्रथिका नामक विशेष संरचनाओं में पाए जाते हैं। 
  • वायुमण्डल में उपस्थित नाइट्रोजन को नाइट्रोजन यौगिकों में परिवर्तित करने का प्रक्रम नाइट्रोजन स्थिरीकरण कहलाता है।
  • बिजली चमकने के समय वायु में पैदा हुआ उच्च ताप तथा दाब नाइट्रोजन को नाइट्रोजन के ऑक्साइड में बदल देता है। 
  • ये ऑक्साइड जल में घुल कर नाइट्रिक तथा नाइट्रस अम्ल बनाते हैं, जो वर्षा के पानी के साथ जमीन पर गिरते हैं। 
  • पौधे नाइट्रेटस और नाइट्राइट्स को ग्रहण करते हैं तथा उन्हें अमीनों अम्ल में बदल देते हैं। जिनका उपयोग प्रोटीन बनाने में होता है। पादप को जन्तु ग्रहण करते है। इस प्रकार नाइट्रोजन जीव जगत में प्रवेश करती हें इनका जैव विघटन होता है जो N2 पुनः वायुमण्डल का भाग बन जाती है।
नाइट्रोजन चक्र के विभिन्न चरण – 

  • अमोनिकरण
  • नाइट्रीकरण
  • विनाइट्रीकरण
अमोनिकरण –  यह मृत जैव पदार्थों को अमोनिया में अपघटन करने की प्रक्रिया है । यह क्रिया मिट्टी में रहने वाले सूक्ष्म जीवों या बैक्टीरिया द्वारा होती है।
नाइट्रीकरण – अमोनिया को पहले नाइट्राइट और फिर नाइट्रेट में बदलने की प्रक्रिया नाइट्रीकरण है। 
विनाइट्रीकरण – वह प्रक्रम जिसमें भूमि में पाये जाने वाले नाइट्रेट स्वतन्त्र नाइट्रोजन गैस में परिवर्तित होते हैं , विनाइट्रीकरण कहलाता है।
ऑक्सीजन चक्र –

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  • ऑक्सीजन का मुख्य स्रोत वायुमण्डल है। यह वायुमण्डल में लगभग 21% उपस्थित है। यह
    पानी में घुले हुए रूप में जलाशयों में उपस्थित है और जलीय जीवों की जीवित रहने में सहायता करती
    है ।
  • वायुमण्डल की ऑक्सीजन का उपयोग तीन प्रक्रियाओं में होता है जो श्वसन, दहन और
    नाइट्रोजन के ऑक्साइड का निर्माण है।
  • ऑक्सीजन सब जीवधारियों के श्वसन के लिए अनिवार्य है । ये CO, निष्कासित करते है ।
  • प्रकाश संश्लेषण द्वारा CO, उपयोग हो ऑक्सीजन वायुमण्डल में मुक्त होती है।
  • आक्सीजन चक्र में दो महत्वपूर्ण क्रियाएँ है:- प्रकाश संश्लेषण और श्वसन

महत्वपूर्ण  बातें

  • पृथ्वी पर जीवन मृदा, वायु, जल तथा सूर्य से प्राप्त ऊर्जा जैसी संपदाओं पर निर्भर करता है।
  • स्थल और जलाशयों के ऊपर विषम रूप में वायु के गर्म होने के कारण पवनें उत्पन्न होती हैं।
  • जलाशयों से होने वाले जल का वाष्पीकरण तथा संघनन हमें वर्षा प्रदान करता है।
  • किसी क्षेत्र में पहले से विद्यमान वायु के रूप पर होने वाली वर्षा का पैटर्न निर्भर करता है।
  • विभिन्न प्रकार के पोषक तत्व चक्रीय रूपों से पुन: उपयोग किए जाते हैं जिसके कारण जैवमंडल के विभिन्न घटकों में एक निश्चित संतुलन स्थापित होता है।
  • वायु, जल तथा मृदा का प्रदूषण जीवन की गुणवत्ता और जैव विविधताओं को हानि पहुँचाता है।
  • हमें अपनी प्राकृतिक संपदाओं को संरक्षित रखने की आवश्यकता है और उन्हें संपूषणीय रूपों में उपयोग करने की आवश्यकता है।

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