NCERT Solution Class 9th Science Chapter – 13 हम बीमार क्यों होते हैं (Why Do We Fall ill) Notes In Hindi

NCERT Solution Class 9th Science Chapter 13 हम बीमार क्यों होते हैं (Why Do We Fall ill)

TextbookNCERT
Class9th
Subjectविज्ञान (Science)
ChapterChapter – 13
Chapter Nameहम बीमार क्यों होते हैं (Why Do We Fall ill)
CategoryClass 9th विज्ञान (Science) Notes
MediumHindi
SourceLast Doubt

NCERT Solution Class 9th Science Chapter – 13 हम बीमार क्यों होते हैं (Why Do We Fall ill) Notes In Hindi – हम इस अध्याय में हम बीमार क्यों होते हैं, स्वास्थ, अच्छे स्वास्थ्य के लिए आवश्यक परिस्थितियाँ, रोग, उपचार के नियम, लेश्मानिया आदि के बारे में पढ़ेंगे।

NCERT Solution Class 9th Science Chapter 13 हम बीमार क्यों होते हैं (Why Do We Fall ill)

Chapter – 13

हम बीमार क्यों होते हैं

Notes

रोग – व्यक्तिगत तथा सामुदायिक समस्याएँ, स्वास्थ्य को प्रंभावित करती है, स्रोत – आन्तरिक कारक, वाहय कारक।
वाहय कारक

  • भौतिक
  • सक्रमण
  • अनुवशिक
  • अभावजन्य
रोग के प्रकार

  • तीव्र रोग
  • दीर्घकालिक रोग
  • जन्मजात रोग
  • उपार्जित रोग
उपार्जित रोग

  • संक्रामक रोग
  • असंक्रामक रोग
संक्रामक रोग कारण और नियंत्रण

  • रोगो के कारण जैसे – जीवाणु, कवक, विषाणु, प्रोटोजोआ, कृमि जनित रोग।
  • रोग फैलने  साधन जैसे – वायु (हवा) द्वारा जैसे T.B. क्षय रोग, पानी जैसे हैजा, सम्पर्क द्वारा (AIDS) सिफलिस, रोग वाहक द्वारा।
  • निवारण का सिद्धांत जैसे सामान्य विधियाँ और विशिष्ट विधियाँ।
  • उपचार के नियम जैसे रोग प्रभाव और रोगाणु के मारने।

स्वास्थ (Health) – किसी व्यक्ति की सामान्य शारीरिक एवं मानसिक अवस्था ही उसका स्वास्थ्य है।
WHO (विश्व स्वास्थ्य संगठन) के अनुसार “स्वास्थ्य व्यक्ति की शारीरिक, मानसिक तथा सामाजिक अवस्था है।”लोगों को स्वस्थ एवं रोग मुक्त रखने के प्रति जागरूक करने के लिए हम प्रतिवर्ष 7 अप्रैल को विश्व स्वास्थ्य दिवस मनाते है।अच्छे स्वास्थ्य के लिए आवश्यक परिस्थितियाँ हैं –

(i) अच्छा भौतिक और सामाजिक वातावरण
(ii) सन्तुलित आहार एवम सक्रिय दिनचर्या
(iii) अच्छी आर्थिक स्थिति और रोजगारव्यक्तिगत तथा समूदायिक समस्यएँ दोनों स्वास्थ को प्रभावित करती है।

सामुदायिक स्वास्थ्य

  • स्वास्थ्य व्यक्तिगत नहीं एक सामुदायिक (Community) समस्या है और व्यक्तिगत (Personal) स्वास्थ्य के लिए सामुदायिक स्वच्छता महत्वपूर्ण एवं आवश्यक है।
  • जीवों का स्वास्थ्य उनके पास-पड़ोस या पर्यावरण पर निर्भर करता है ।
  • रोग मुक्त और स्वस्थ रहने के लिए अच्छा भौतिक और सामाजिक वातावरण अनिवार्य है। इसलिए व्यक्तिगत और सामुदायिक स्वास्थ्य दोनों ही समन्वयित अवस्था है।
स्वस्थ रहने तथा रोगमुक्त में अन्तर –

स्वस्थरोगमुक्त
मनुष्य शारीरिक , मानसिक एवं सामाजिक रूप से अपनी क्षमताओं का भरपूर उपयोग करें। ऐसी अवस्था है जिसमें बीमारी का अभाव होता है। 
व्यक्तिगत , भौतिक एवं सामाजिक वातावरण।व्यक्तिगत 
व्यक्ति का अच्छा स्वास्थ्य है।इसमें व्यक्ति का स्वास्थ्य अच्छा या निर्बल हो सकता है।
रोगों के कारण –

  • वायरस, बैक्टीरिया, कवक, प्रोटोजोआ और कृमि आदि
  • कुपोषण
  • आनुवांशिक विभिन्नता
  • पर्यावरण प्रदूषण (हवा, पानी आदि)
  • टीकाकरण का अभाव
रोग तथा इसके कारण – रोग शरीर की वह अवस्था जो शरीर के सामान्य कार्य में बाधा या प्रभावित करें।
रोग किस तरह के दिखाई देते हैं?

  • जब व्यक्ति को कोई रोग होता है तो शरीर के एक या अधिक अंगों का कार्य और रूप-रंग प्रभावित खराब हो जाता है।
  • किसी अंग या तंत्र की संरचना में परिवर्तन परिलक्षित होना रोग का लक्षण (Symptoms) कहलाता है।
  • लक्षणों के आधार पर चिकित्सक विशेष रोग को पहचानता है और रोग की पुष्टि के लिए कुछ टैस्ट करवाता है।
  • रोग के लक्षण – रोग के लक्ष्ण हमे खरावी का संकेत देते है जो रोगी द्वारा महसूस होते है।
  • रोग के चिह्न – लक्षणों के आधार पर विभिन्न प्रकार के परीक्षण रोग के सही कारण जानने में मदद करते है।
रोग के प्रकार –

  • तीव्र रोग
  • दीर्घकालीन रोग
  • संक्रामक रोग
  • असंक्रामक रोग
तीव्र रोग – वे रोग जो कम समय के लिए होते हैं, जैसे – सर्दी, जुकाम।
दीर्घकालीन रोग – अधिक समय तक चलने वाले रोगों को दीर्घकालिक (Chronic disease) रोग कहते हैं जैसे – कैंसर, क्षय रोग (TB), फील पाँव (Elephantitis)
संक्रामक रोग – रोगाणु या सूक्ष्मजीवों द्वारा होने वाले रोगों को संक्रामक रोग कहते हैं। ऐसे रोग संक्रमित व्यक्ति से स्वस्थ व्यक्तियों में फैलते हैं। संक्रामक रोग के उत्पन्न करने वाले विभिन्न कारक हैं जैसे – बैक्टीरिया, फंजाई, प्रोटोजोआ और कृमि (वर्ग)
असंक्रामक रोग – ये रोग पीड़ित व्यक्ति तक ही सीमित रहते हैं और अन्य व्यक्तियों में नहीं फैलते हैं जैसे – हृदय रोग, एलर्जी।

(i) आभाव जन्य रोग – यह रोग पोषक तत्वों के आभाव से होते है जैसे घेघा, थाईरोइड आदि
(ii) अपक्षयी रोग जैसे गठिया
(iii) एलर्जी, शुगर, थायरोइड
(iv) कैंसर

जन्मजात रोग – वह रोग जो व्यक्ति में जन्म से ही होते है यह आनुवांशिक आधार पर होते है जैसे – हिमोफिलीयया etc.
संक्रामक रोग और असंक्रामक रोग में अंतर –

संक्रामक रोग असंक्रामक रोग
यह संक्रमित व्यक्ति से स्वस्थ व्यक्ति में फैलता है। यह संक्रमित व्यक्ति से स्वस्थ में नहीं फैल सकता।
यह रोगाणुओं के आक्रमण के कारण उत्पन्न होता है। यह जीवित रोगाणु को छोड़कर अन्य कारकों के कारण फैलता है।
यह धीरे – धीरे पूरे समुदाय में फैल सकता है। यह समुदाय में नहीं फैलता।
इसका उपचार एंटीबायोटिक्स के प्रयोग द्वारा किया जा सकता है। उदाहरण – सामान्य सर्दी – जुकामइसका उपचार एंटीबायोटिक्स के द्वारा नहीं किया जा सकता है। उदाहरण – उच्च रक्तचाप
रोगाणु – ये बीमारी और संक्रमण पैदा करने वाले सूक्ष्म जीव होते है इन्हे संक्रामक कारक भी कहते है
रोगाणुओं के प्रकार-

  1. जीवाणु
  2. विषाणु
  3. कवक
  4. प्रोटोजोआ
  5. कृमि
महामारी बीमारी – कुछ रोग एक जगह या समुदाय मे बड़ी तीव्रता से फैलते है और बड़ी आवादी को संक्रमित करते है इसे महामारी कहते है जैसे हैजा, कारोना
संक्रामक कारक और रोग में अंतर 

संक्रामक कारक (Infection agents)रोग (Diseases)
यह संक्रमित व्यक्ति से स्वस्थ व्यक्ति में फैलता है।यह रोगी व्यक्ति से स्वस्थ व्यक्ति में नहीं फैल सकता।
यह रोगाणुओं के संक्रमण के कारण उत्पन्न होता है।यह जीवित रोगाणु को छोड़कर अन्य कारकों के कारण फैलता है।
यह धीरे-धीरे पूरे समुदाय में फैल सकता है।यह समुदाय में नहीं फैलता।
इसका उपचार एंटीबायोटिक्स, एंटीवायरल आदि जैसी उचित दवाईयाँ के प्रयोग द्वारा किया जा सकता है उदाहरण – सामान्य सर्दी-जुकामइसका उपचार एंटीबायोटिक्स, जैसी दवाईयाँ द्वारा नहीं किया जा सकता है। उदाहरण – उच्च रक्तचाप
रोग फैलने के साधन – संक्रामक रोग पीड़ित व्यक्ति के सम्पर्क में आने से स्वस्थ व्यक्ति में फैल जाते हैं। सूक्ष्मजीव या संक्रामक कारक हमारे शरीर में निम्न साधनों द्वारा प्रवेश करते हैं – वायु , भोजन , जल , रोग वाहक द्वारा , लैंगिक सम्पर्क द्वारा।

NCERT Solution Class 9th Science Chapter - 13 हम बीमार क्यों होते हैं (Why Do We Fall ill) Notes In Hindi

वायु द्वारा – छींकने और खाँसने से रोगाणु वायु में फैल जाते हैं और स्वस्थ व्यक्ति के शरीर में प्रवेश कर जाते हैं। जैसे – निमोनिया, क्षयरोग, सर्दी – जुकाम आदि।
जल और भोजन द्वारा – रोगाणु (संक्रामक कारक) हमारे शरीर में संक्रमित जल व भोजन द्वारा प्रवेश कर जाते हैं जैसे – हैजा, अमीबिय पेचिश आदि।
रोग वाहक द्वारा – मादा एनाफिलीज मच्छर भी बीमारी में रोग वाहक का कार्य करती है। जैसे – मलेरिया, डेंगू आदि।
रैबीज संक्रमित पशु द्वारा – सक्रमित कुता, बिल्ली, बन्दर के काटने से रैबीज संक्रमण होता है।
लैंगिक सम्पर्क द्वारा – कुछ रोग जैसे सिफलिस और एड्स (AIDS) रोगी के साथ लैंगिक सम्पर्क द्वारा संक्रमित व्यक्ति में प्रवेश करता है।
एड्स का विषाणु – संक्रमित रक्त के स्थानान्तरण द्वारा फैलता है, अथवा गर्भावस्था में रोगी माता से या स्तनपान कराने से शिशु का एड्सग्रस्त होना।
एड्स (AIDS) – शरीर की प्रतिरोधक क्षमता या प्रतिरक्षा का कम हो जाना या बिल्कुल नष्ट हो जाना एड्स (AIDS) कहलाता है। यह एक भयानक रोग है। इस का रोगाणु HIV (Human infecting) अपतनेद्ध है।
संचरण के माध्यम – संचरण के कारण निम्न प्रकार हैं-

  • संक्रमित व्यक्ति का रक्त स्थानान्तरण करने से।
  • यौन सम्पर्क द्वारा।
  • AIDS से पीड़ित माँ से शिशु में गर्भावस्था में या स्तनपान द्वारा।
  • सक्रमित इंजेक्शन की सूई का प्रयोग कई व्यक्तियों के लिए करना।
निवारण

  • अनजान व्यक्ति से यौन सम्बन्ध से बचे
  • संक्रमित रक्त कभी भी न चढ़ाये रक्त चढ़ाने से पहले उसकी जाँच आवश्यक है।
  • दाड़ी बनाने के लिए नया ब्लेड इस्तेमाल करना।
अंग विशिष्ट तथा ऊतक – विशिष्ट अभिव्यक्ति – रोगाणु विभिन्न माध्यमों से शरीर में प्रवेश करते हैं।

  • किसी ऊतक या अंग में संक्रमण उसके शरीर में प्रवेश के स्थान पर निर्भर करता है।
  • यदि रोगाणु वायु के द्वारा नाक से प्रवेश करता है तो संक्रमण फेफड़ों में होता है, जैसे कि क्षयरोग (TB) में।
  • यदि रोगाणु मुँह से प्रवेश करता है , तो संक्रमण आहार नाल में होता है जैसे कि खसरा का रोगाणु आहार नाल में और हेपेटाइटिस का रोगाणु (Liver) यकृत में संक्रमण करता है।
  • AIDS का विषाणु (Virus) जनन अंगों से प्रवेश करता है लेकिन पूरे शरीर की लसिका ग्रन्थियों में फैल जाता है और शरीर के प्रतिरक्षी संस्थान को हानि पहुँचाता है।
  • इसी तरह मलेरिया का रोगाणु त्वचा के द्वारा प्रवेश करता है, रक्त की लाल रुधिर कोशिकाओं को नष्ट करता है।
  • इसी प्रकार जापानी मस्तिष्क ज्वर का विषाणु मच्छर के काटने से त्वचा से प्रवेश करता है और मस्तिष्क (Brain) को संक्रमित करता है।
उपचार के नियम – रोगों के उपचार के उपाय दो प्रकार के हैं –

  • रोग के लक्षणों को कम करने के लिए उपचार
  • रोगाणु को मारने के लिए उपचार (Treatment)

रोगाणु को मारने के लिए उपचार – रोगाणु को मारने के लिए एंटीबायोटिक दिया जाता है।

उदाहरण – जीवाणु (Bacteria) को मारने के लिए एंटीबायोटिक या मलेरिया परजीवी को मारने के लिए सिनकोना वृक्ष की छाल से प्राप्त कुनैन का प्रयोग किया जाता है।

एंटीबायोटिक – एंटीबायोटिक वे रासायनिक पदार्थ हैं , जो सूक्ष्म जीव (जीवाणु , कवक एवं मोल्ड) के द्वारा उत्पन्न किये जाते हैं और जो जीवाणु की वृद्धि को रोकते हैं या उन्हें मार देते हैं। जैसे पेनिसिलीन, टेट्रासाइक्लीन।

  • सभी जीवाणु (Bacterial) कोशिका विभाजन के दौरान एक प्रक्रम से कोशिका भित्ति बनाते हैं। एंटीबायोटिक
  • कोशिका भित्ति बनने के प्रक्रम में रूकावट उत्पन्न कर इस प्रक्रिया को रोक देते हैं और जीवाणु मर जाता है। पेनिसिलीन एंटीबायोटिक जीवाणु की कई स्पीशिज में कोशिका भित्ति बनाने की प्रक्रिया को रोक देता है और उन सभी स्पीशीज को मारने के लिए प्रभावकारी है।
निवारण के सिद्धान्त – रोगों के निवारण रोकथाम के लिए दो विधियाँ हैं

  • सामान्य विधियाँ
  • रोग विशिष्ट विधियाँ
सामान्य विधियाँ – सामुदायिक एवम् व्यक्तिगत स्वास्थ्य, संतुलित आहार एवम्स क्रिय दिन चचा।

  • संक्रमित व्यक्ति से संपर्क के दौरान सावधानी बरतना।
  • वायु से फैलने वाले संक्रमण या रोगों से बचने के लिए हमें भीड़ वाले स्थानों पर नहीं जाना चाहिए ।
  • पानी से फैलने वाले रोगों से बचने के लिए पीने से पहले पानी को उबालना चाहिए। इसी प्रकार, रोगवाहक सूक्ष्मजीवों द्वारा फैलने वाले रोगों, जैसे मलेरिया, से बचने के लिए अपने आवास के पास मच्छरों को पनपने नहीं देना चाहिए।
रोग विशिष्ट विधियाँ – रोगों के रोकथाम का उचित उपाय है – प्रतिरक्षीकरण या टीकाकरण इस विधि में रोगाणु स्वस्थ व्यक्ति के शरीर में डाल दिये जाते हैं। रोगाणु के प्रवेश करते ही प्रतिरक्षा तंत्र ‘धोखे‘ में आ जाता है और उस रोगाणु से लड़ने वाली विशिष्ट कोशिकाओं का उत्पादन आरम्भ कर देता है  इस प्रकार रोगाणु को मारने वाली विशिष्ट कोशिकाएँ शरीर में पहले से ही निर्मित हो जाती हैं और जब रोग का रोगाणु वास्तव में शरीर में प्रवेश करता है तो रोगाणु से ये विशिष्ट कोशिकाएँ लड़ती है और उसे मार देती हैं।

  • टेटनस , डिप्थीरिया , पोलियो , चेचक , क्षयरोग के लिए टीके उपलब्ध है।
  • बच्चों को DPT का टीका डिफ्थीरिया (Diphtheria) , कुकर खाँसी और टिटेनस (Tetanus) के लिए दिया जाता है।
  • हिपेटाइटिप ‘ A ‘ के लिए टीका उपलब्ध है। पाँच वर्ष से कम उम्र के बच्चों को यह दिया जाना चाहिए।
  • रैबीज का विषाणु (वायरस) कुत्ते , बिल्ली , बन्दर तथा खरगोश के काटने से फैलता है। रैबीज का प्रतिरक्षी (Vaccine) मनुष्य तथा पशु के लिए उपलब्ध है।
बीमारियाँ

बीमारियाँ (Disease)सूक्ष्म जीव (Pathogen)वाहक (Vector)
1. मलेरियाप्रोटोजोआमादा ऐनफिलीज मच्छरकंपकपी ज्वर
2. टाइफाइडबैक्टीरियाकॉकरोचतेज बुखार
3. एड्सवायरस -HIV—-आँतों में संक्रमण
4. डेंगूँवायरस—-लसिका ग्रन्थियाँ को प्रभावित करती है
5. वर्म (Worms)आँत मेंसिरदर्द और बुखार
6. कालाजारप्रोटोजोआमच्छरपेट दर्द
7. कृमिआँत में एसके रस—-दिमागी बुखार
8. SARSबैक्टीरिया—-पेट दर्द
9. स्वाइन फ्लू—-सुअर + मानव—-
10. Bird flu—-पक्षी बुखार फैलता है।—-
11. इबोला (Ebola)वायरसबुखार फैलता है।बुखार फैलता है
अलग-अलग सूक्ष्मजीव

SARS बैक्टीरिया – संक्रमित कोशिका से बाहर निकलते हुए SARS बैक्टीरिया चित्र में तीर द्वारा इंगित किए गए हैं। चित्र में सफेद रेखा 500 नैनोमीटर माप को दर्शाती है, जो एक माइक्रोमीटर का आधा है, एक माइक्रोमीटर एक मिलीमीटर के एक हजारवें भाग के बराबर है यह मापचित्र इस बात को दर्शाता है कि हम कितनी सूक्ष्म वस्तुओं को देख रहे हैं।

लेश्मानिया – कालाजार व्याधिकारक प्रोटोजोआ। यह जीव अंडाकार तथा प्रत्येक में एक चाबुकनुमा संरचना होती है। विभाजित होते जीव को तीर द्वारा दर्शाया गया है।
स्टेफाइलोकोकाई बैक्टीरिया – स्टेफाइलोकोकाई बैक्टीरिया जो मुँहासे का कारक है। ऊपर बाईं ओर की रेखा 5 माइक्रोमीटर माप को प्रदर्शित करती है।
प्रोटोजोआ ट्रिपनोसोमा – प्रोटोजोआ ट्रिपनोसोमा यह निंद्रालु व्याधि का कारक है। ट्रिपनोसोमा को तस्तरीनुमा लाल रक्त कोशिका के साथ प्रदर्शित किया गया है। जिससे उसके आकार का पता चल सकें।
गोलकृमि – गोलकृमि (एस्केरिस लुब्रीकॉयडिस) छोटी आँत में पाया जाता है। 4 cm के स्केल के माप एक व्यस्क गोलकृमि के आकार के अनुमान के लिए है।

महत्वपूर्ण  बातें

  • स्वास्थ्य व्यक्ति की शारीरिक, मानसिक तथा सामाजिक जीवन की एक समग्र समन्वयित अवस्था है।
  • किसी का स्वास्थ्य उसके भौतिक पर्यावरण तथा आर्थिक अवस्था पर निर्भर करता है।
  • रोगों की अवधि के आधार पर इसे तीव्र तथा दीर्घकालिक दो वर्गों में विभाजित कर सकते हैं।
  • रोग के कारक संक्रामक अथवा असंक्रामक हो सकते हैं।
  • संक्रामक कारक जीवों के विभिन्न वर्ग से हो सकते हैं। ये एककोशिक सूक्ष्मजीव अथवा बहुकोशिक हो सकते हैं।
  • रोग का उपचार उसके कारक रोगाणु के वर्ग के आधार पर किया जाता है।
  • संक्रामक कारक वायु, जल, शारीरिक संपर्क अथवा रोगवाहक द्वारा फैलते हैं।
  • रोगों का निवारण सफल उपचार की अपेक्षा अच्छा है।
  • संक्रामक रोगों का निवारण जन स्वास्थ्य स्वच्छता विधियों द्वारा किया जा सकता है जिससे संक्रामक कारक कम हो जाते हैं।
  • टीकाकरण द्वारा संक्रामक रोगों का निवारण किया जा सकता है।
  • संक्रामक रोगों के निवारण को प्रभावशाली बनाने के लिए आवश्यक है कि सार्वजनिक स्वच्छता तथा टीकाकरण की सुविधा सभी को उपलब्ध हो।

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