NCERT Solution Class 8th (Home Science) गृह विज्ञान Chapter – 5 बच्चों के वस्त्र
Text Book | NCERT |
Class | 8th |
Subject | गृह विज्ञान |
Chapter | 5th |
Chapter Name | बच्चों के वस्त्र |
Category | Class 8th गृह विज्ञान |
Medium | Hindi |
Source | Last Doubt |
NCERT Solution Class 8th (Home Science) गृह विज्ञान Chapter – 5 बच्चों के वस्त्र Notes in Hindi जिसमे हम शिशुओं के वस्त्र कैसे होने चाहिए?, बच्चों को कौन सा कपड़ा पहनना चाहिए?, छोटे बच्चों के कपड़े कैसे रखें?, पुराने कपड़ों को कैसे बेचे?, बच्चे के कितने कपड़े होने चाहिए?, आदि इसके बारे में हम विस्तार से पढ़ेंगे। |
NCERT Solution Class 8th (Home Science) गृह विज्ञान Chapter – 5 बच्चों के वस्त्र
Chapter – 5
बच्चों के वस्त्र
Notes
वस्त्रों का चुनाव – हमारे जीवन में वस्त्रों का एक विशेष स्थान है। हम वस्त्र केवल शरीर को ढकने व सर्दी-गर्मी से बचने के लिए ही नहीं अपितु व्यक्तित्व को निखारने व सौन्दर्य को बढ़ाने के लिए भी पहनते हैं। किसी भी व्यक्ति का पहनावा उसकी अभिरूचि को दर्शाता है तथा उसके व्यक्तित्व को प्रभावी अथवा प्रभावहीन बना सकता है।
• प्रभावशाली व्यक्तित्व के लिए वस्त्रों का चुनाव करते समय निम्नलिखित बातों का ध्यान रखना चाहिए:-
(क) रंग योजना – हमारे व्यक्तित्व का रंगों के साथ अटूट सम्बन्ध है। रंगों का सही या गलत चुनाव हमारे आकर्षण को बढ़ा या घटा सकता है।
वस्त्रों के रंगों का चुनाव करते समय ध्यान देने योग्य बातें-
1. त्वचा का रंग – वस्त्रों का चुनाव करते समय सर्वप्रथम व्यक्ति की त्वचा के रंग का ध्यान रखना आवश्यक है। गोरी त्वचा पर हल्का गुलाबी, आसमानी व स्लेटी रंग अन्य चटक रंगों की अपेक्षा अधिक खिलते हैं। गेहुए रंग की त्वचा पर काला, नीला व चटक रंगों के साथ-साथ हल्के रंग भी आकर्षक लगते हैं।
2. शरीर का आकार – रंग शरीर के आकार को प्रभावित करते हैं। गर्म रंग जैसे लाल, सन्तरी व पीला शारीरिक रचना को उभारते हैं और आकार के बड़े होने का आभास देते हैं। अतः मोटे व्यक्तियों पर हल्के ठण्डे रंग जैसे नीला, हरा, फिरोजी आदि आकर्षक लगते हैं क्योंकि यह रंग शरीर के मोटापे को दबाने वाले होते हैं।
3. समय एवं अवसर – रंगों का चुनाव करते समय यह ध्यान रखना चाहिए कि वस्त्र किस समय और किस अवसर पर पहनना है। रात के समय जो चटकदार एवं भड़कीले रंग अच्छे लगते हैं वे दिन के समय बेचैनी उत्पन्न करते हैं। इसी प्रकार विवाह एवं त्यौहारों के उल्लासपूर्ण वातावरण में चटकीले रंग के वस्त्र आकर्षक लगते हैं तो स्कूल, कालेज अथवा दफ्तर जाते समय चटकीले रंग बिल्कुल अच्छे नहीं लगते हैं।
4. आयु – रंगों का चुनाव करते समय वस्त्र पहनने वाले की आयु का ध्यान रखना आवश्यक है। बच्चों पर हर प्रकार के रंग अच्छे लगते हैं तो वयस्कों पर हल्के रंग अच्छे लगते हैं। वृद्ध व्यक्तियों पर सफेद रंग अच्छे लगते हैं तो किशोरों पर न ही बहुत चटक वाले रंग और न ही बहुत हल्के रंग आकर्षक लगते हैं। किशोरों को अपने शरीर के आकार, त्वचा के रंग व व्यक्तित्व को ध्यान में रखते हुए रंगों का चुनाव करना चाहिए।
5. लिंग – रंगों का चुनाव करते समय लिंग को ध्यान में रखना भी आवश्यक है क्योंकि कुछ रंग जैसे लाल, पीला, हरा स्त्रियों पर पुरुषों की अपेक्षा अधिक आकर्षक लगते हैं तथा पुरुषों पर हल्के रंग जैसे सफेद, बादामी, भूरा, स्लेटी, नीला आदि अच्छे लगते हैं।
6. ऋतु – सर्दियों में गर्म रंग जैसे लाल, पीला, नारंगी आकर्षक लगते हैं तो गर्मियों में हल्के ठण्डे रंग जैसे नीला, हरा, फिरोज़ी अधिक आकर्षक लगते हैं।
7. डिज़ाइन – रंग का चुनाव करते समय वस्त्र के डिज़ाइन का ध्यान रखना भी आवश्यक है। वस्त्र के डिज़ाइन के अनुरूप परस्पर मेल खाते रंगों या परस्पर विरोधी रंगों का प्रयोग किया जा सकता है। उदाहरण के लिए सलवार के रंग से मेल खाते रंग से कमीज़ पर कढ़ाई, पाइपिंग अथवा डिज़ाइन बनाया जाए तो सूट का आकर्षण अधिक हो जाता है।
8. फैशन – आज का युग फैशन का युग है। फैशन के अनुसार कभी हल्के रंग बहुत लोकप्रिय होते हैं तो कभी चटकीले रंग लोकप्रिय होते हैं। अतः, वस्त्रों के लिए रंग का चुनाव करते समय फैशन को ध्यान में रखना आवश्यक है परन्तु फैशन का अन्धा अनुकरण भी ठीक नहीं है क्योंकि रंग चुनते समय अन्य बातों का ध्यान रखना भी अति आवश्यक है।
(ख) कपड़े का डिज़ाइन – बाज़ार में अनेक डिज़ाइनों के कपड़े मिलते हैं परन्तु हर डिज़ाइन हर व्यक्ति पर आकर्षक नहीं लगता है। अतः, बाज़ार से कपड़ा खरीदते समय या सिलवाते समय निम्नलिखित बातों का ध्यान रखना चाहिए –
(1) खड़ी रेखाओं वाले डिज़ाइन – खड़ी रेखाओं वाले डिज़ाइन के वस्त्रों में व्यक्ति अधिक लम्बा प्रतीत होता है अतः, लम्बे व्यक्तियों की अपेक्षा छोटे व्यक्तियों को ऐसे डिज़ाइन आकर्षक लगते हैं।
(2) आड़ी रेखाओं वाले डिज़ाइन – आड़ी रेखाएं लम्बाई कम होने का आभास देती है तथा इनसे शरीर का आकार भी टेड़ा दिखता है अतः, लम्बे व पतले व्यक्तियों पर आड़ी रेखाओं वाले डिज़ाइन आकर्षक लगते हैं।
(3) तिरछी रेखाओं वाले डिज़ाइन – तिरछी रेखाएं चौड़ाई को कम करने तथा लम्बाई को थोड़ा सा बढ़ाने वाली होती हैं। लम्ब बद्ध तिरछी रेखाएं लम्बाई बढ़ाती प्रतीत होती हैं तो आड़ी तिरछी रेखाएं लम्बाई कम होने का आभास देती हैं।
(4) वक्र रेखाओं वाले डिज़ाइन – यदि डिज़ाइन में वक्र रेखाओं का घुमाव लम्ब बद्ध होता है तो यह लम्बाई के बड़े होने का आभास देती हैं और इसके विपरीत घुमाव आड़ा हो तो लम्बाई कम होने का आभास देती हैं।
(5) V आकार की रेखाओं वाले डिज़ाइन – डिज़ाइन में V अक्षर की लम्बाई अधिक हो तो लम्बाई के बड़े होने का आभास होता है और V अक्षर का ऊपरी भाग चौड़ा हो तो चौड़ाई अधिक होने का आभास होता है।
(6) फूल वाले डिज़ाइन – बड़े-बड़े फूलों वाले डिज़ाइनों के कपड़े मोटापे का आभास देते हैं अतः, पतले व्यक्तियों को बड़े-बड़े डिज़ाइनों तथा मोटे व्यक्तियों को छोटे-छोटे डिज़ाइनों के कपड़े आकर्षक लगते हैं।
(ग) कपड़े की किस्म – बाज़ार में विभन्न किस्मों के कपड़े उपलब्ध है तथा हमें अपनी आवश्यकतानुसार इनका चयन करना चाहिए। मोटे व्यक्तियों को अधिक मोटे सूती कपड़े जैसे खादी की अपेक्षा पतले सूती कपड़े जैसे पॉपलीन, रेशमी अथवा टेरीकॉट के कपड़े आकर्षक लगते हैं तो पतले व्यक्ति मोटे कपड़े भी पहन सकते हैं।
2. बच्चों के फ्राक की चोली
आयु के अनुसार जैसे-जैसे बच्चों की शारीरिक वृद्धि होती है वैसे-वैसे उनके शरीर का आकार भी बदलता रहता है। ऐसे समय उनके कपड़ों के ठीक नाप की ओर अधिक ध्यान देना चाहिए। इस खंड में हम बच्चे के फ्राक की चोली के विषय में पढ़ेंगे। इसी के आधार पर कमीज, प्राक, ब्लाउज, रोम्पर आदि की सिलाई भी की जा सकती है। यदि कपड़ा बड़ा या छोटा बनाना हो तो नाप के अनुपात से बढ़ाया या घटाया जा सकता है।
खाका
आयु …….. 4 से 6 वर्ष तक
नाप
लम्बाई ……… 26 सेमी
(गले से कमर तक)
छाती ………. 60 सेमी
(चारों ओर की)
कागज का नाप
लम्बाई ……….. 26 सेमी
चौड़ाई। ……….. 30 सेमी
(छाती का आधा)
3. ए-लाइन फ्राक
खाका
आयु। ……….. 4 से 6 वर्ष तक
नाप
लम्बाई ……… 56 सेमी
छाती ………. 56+10 = 66 सेमी
(10 सेमी ढीला रखने के लिए)
तीरा ……… 28 सेमी
हिप ……… 26 समी
विधि
1. 56 सेमी लम्बे तथा 66 सेमी चौड़े दो अलग-अलग खाकी कागज़ में कागज़ों को चौड़ाई की ओर से आधा मोड़ दें। मोड़ को अपनी बाई ओर रखें।
2. चारों कोनों का नाम क, ख, ग, घ रखें। क ग तथा ख घ लम्बाई 56 सेमी है। क ख तथा ग घ चौड़ाई 33 सेमी है।
3. पिछले हिस्से के लिए खाकी कागज़ का एक टुकड़ा लें। उस पर बच्चे की चोली का पिछला भाग इस प्रकार रखें कि चोली के गले का बिन्दु क ख लाइन पर आए। फिर गले, कंधे बांह तथा कमर के लिए निशान लगाएं।
4. दूसरे कागज़ पर चोली का अगला भाग रखकर पिछले हिस्से की भांति निशान लगाएं।
5. दोनों कागज़ों पर बाहों की गोलाई को 5 सेमी दायें हाथ की तरफ़ बाहर की ओर बढ़ा दें। इस बिन्दु का नाम च रखें।
6. कमर की रेखा से नीचे की ओर 15 सेमी लें। यह हिप लाइन है। इस लाइन को छाती की लाइन जितना बढ़ा लें। अन्तिम बिन्दु का नाम छ रखें।
7. घ से ऊपर की ओर 2 सेमी लें। इस बिन्दु का नाम ज रखें। च, छ और ज को सीधी रेखा से मिला दें।
8. ज को ग घ रेखा पर गोलाई से मिला दें।
कटाई
• अगले तथा पिछले भाग की कटाई के लिए निशान लगे हुए भागों को काटें।
फ्राक का काटना (कपड़े पर) – अगली तथा पिछली ओर की ड्राफ्टिंग को कपड़े के टुकड़ों पर आलपिनों से टिका दें। गले, कंधे तथा बांह की सिलाई के लिए सेमी अधिक कपड़ा लें और किनारों की सिलाई तथा नीचे के मोड़ के लिए 25 सेमी अधिक कपड़ा लेकर निशान लगाएं। इन्हीं निशान लगे हुए भागों से कपड़ा काट दें। फ्राक की पिछली तरफ दो भागों में काट दें, क्योंकि फ्राक पीछे से खुली रहेगी।
फ्राक की सिलाई
1. कंधे तथा किनारों की सिलाई पर केवल मशीन की बखिया करें।
2. गले तथा बांह पर पाइपिंग लगा कर तुरपाई करें।
3. फ्राक के पिछले हिस्से को खुला रखने के लिए एक ओर की पट्टी को बढ़ा कर तथा दूसरी ओर सारी मुड़ी हुई पट्टी लगाएं। इन पट्टियों पर तुरपाई करें। पट्टियों पर हुक व टिच बटन का प्रयोग करें।
4. नीचे के मोड़ पर तुरपाई करें। फ्राक को आकर्षक बनाने के लिए इस पर लेस लगाई जा सकती है या अगले हिस्से पर सुन्दर कढ़ाई भी की जा सकती है। तैयार फ्राक पर इस्तरी कर के रखें।
फ्राक बनाने में प्रयोग आने वाले आवश्यक टांके
ए-लाइन फ्राक बनाते समय तिरछी पट्टी, बटनों की पट्टी, बटन, काज आदि लगाने की आवश्यकत होती है जिन्हें बनाने की विधियां नीचे दी गई है-
तिरछी पट्टियां बनाना – सिले हुए कपड़ों के किनारों को कई प्रकार से मोड़ा जा सकता है। सीधे हिस्सों को तो बीच से मोड़ सकते हैं क्योंकि वे आसानी से मुड़ जाते हैं। परन्तु गोलाई के किनारों को बीच से नहीं मोड़ सकते क्योंकि उनमें झोल आ जाता है।
इसलिए उन हिस्सों पर तिरछी पट्टियों का प्रयोग करते हैं। तिरछी पट्टियों को आसानी से सींचकर किसी भी आकार में लगा सकते हैं क्योंकि इनमें लचक होती है। तिरछी पट्टी को पाइपिंग के रूप में या पूरा अन्दर मोड़ कर भी लगा सकते हैं।
तिरछी पट्टी बनाने की विधि – तिरछी पट्टियां बनाने के लिये कपड़े का टुकड़ा लेकर उसके एक कोने को दूसरे कोने पर इस प्रकार रखते हैं कि त्रिकोण बन जाए। त्रिकोण की लम्बी रेखा तिरछी होगी। जितनी चौड़ी पट्टी की आवश्यकता होती है, तिरछी रेखा के समानान्तर उतनी ही चौड़ी पट्टियों के लिए नाप कर निशान लगा कर काट देते हैं। इस प्रकार जितनी पट्टियां चाहिए उनके लिए पहली पट्टी के नाप के अनुसार ही निशान लगा कर चित्र (1) के अनुसार काट लेते हैं।
तिरछी पट्टियां बनाने के लिए किसी भी आकार के छोटे-छोटे टुकड़ों को जोड़ कर एक चौकोर टुकड़ा बना लिया जाता है। इस प्रकार कपड़े की बचत हो जाती है। बड़ा कपड़ा लेने से अधिक कपड़ा व्यर्थ जाता है।
पट्टियों को जोड़ने की विधि – पट्टियों को जोड़ने से पहले उनके किनारों को बराबर कर लेते हैं। इनको सदा ताने के धागों की दिशा में जोड़ना चाहिए। चित्र (2) के अनुसार जोड़ने वाली दोनों पट्टियों को इस प्रकार रखते हैं कि उनकी सीधी ओरएक-दूसरे के ऊपर आगे तथा एक पट्टी का नुकीला किनारा और दूसरी पट्टी का चपटा किनारा परस्पर मिल जायें। फिर जोड़ कर पिन लगा कर सिलाई कर देते हैं और चित्र (3) की भांति जोड़ को खोलकर चपटा कर देते हैं।
2 बटनों की पट्टी बनाना
वस्त्रों में इस पट्टी को इसलिए बनाया जाता है कि कपड़ा आसानी से पहना व उतारा जा सके।
विधि
1. पट्टी बनाने के लिए आवश्यकतानुसार उस कपड़े को चित्र के अनुसार काट लें।
2. जितनी लम्बी पट्टी बनानी है उससे दुगना कपड़ा में पट्टी की लम्बाई ताने की दिशा में होनी चाहिए।
3. यदि 1 सेमी चौड़ी पट्टी बनानी हो तो 2.5 सेमी चौड़ा कपड़ा लें।
4. इस पट्टी को कटे हुए कपड़े के सिरे से लगाना आरम्भ करें। पहले छोटे-छोटे कच्चे टांकों द्वारा सी लें। जैसे-जैसे नीचे की ओर आते हैं कच्चे टांकों को किनारे के समीप करते जाते हैं और बीच में थोड़ी सी गोलाई पर बखिया करें। इसी प्रकार दूसरे हिस्से को भी सीं लें।
5. जिस पट्टी को नीचे की ओर रखना है उसे आधा मोड़ें जिससे वह बाहर की ओर बढ़ी रहें। उसके किनारों पर तुरपाई करते हैं। यह तुरपाई बाहर की ओर नहीं दिखाई देनी चाहिए। जिस पट्टी को ऊपर की ओर रखना है उसकी चौड़ाई नीचे वाली पट्टी के बराबर होनी चाहिए। इसलिए पट्टी की चौड़ाई व मोड़ने के लिए कपड़ा रखकर शेष कपड़े को काट दें।
अब इस पट्टी को बिल्कुल अन्दर मोड़ कर तुरपाई करें। फिर पट्टी को खोल कर बीच वाले हिस्से में अन्दर की ओर बखिया करें। अब यह पट्टी बटन लगाने के लिए तैयार हो गई। चित्र में तैयार बटनों की पट्टी दिखाई गई है।
काज व बटन – काज का टांका काज के किनारों को मजबूत तथा सुन्दर बनाने के लिए किया जाता है। काज दो प्रकार के होते हैं-
गोल तथा चौकोर। गोल किनारों के काज चौकोर की अपेक्षा अधिक मजबूत होते हैं।
काज बनाने की विधि – काज की लम्बाई बटन की चौड़ाई से 65 सेमी अधिक होनी चाहिए। पेंसिल से कपड़े पर निशान लगा कर तेज कैंची से काज काट लें। काज सदा दोहरे कपड़े पर बनाना चाहिए। काज का टांका बायें से दायें हाथ की ओर चलता है। इसको आरम्भ करते समय गांठ नहीं लगाते हैं।
सुई को दोहरे कपड़े के बीच में से ऐसे निकालते हैं कि थोड़ा धागा पीछे बचा रहे। चित्र की भांति काज के टांके से काज बनाना आरम्भ करें। बचे हुए धागे को शुरू के तीन चार टांके बनाते समय बीच में करते जायें। काज के किनारे अलग-अलग आकार के बनाएं जाते हैं। गोल किनारों को सादे टांके से तथा चौकोर को काम के टांके से बनाते हैं। काज को पीछे की ओर बखिए केटांके से समाप्त करते हैं।
बटन – कपड़ों को सुन्दर व आकर्षक बनाने के लिए भिन्न-भिन्न प्रकार के बटनों का प्रयोग किया जाता है जैसे – कपड़े, सीप, नाइलोन, प्लास्टिक व रंगीन बटन।
बटन लगाने की विधि – बटनों को ठीक स्थान पर भली प्रकार से लगाना चाहिए। जहां बटन लगाना हो उस स्थान पर बखिए का टांका बना कर उस पर बटन रखें और फिर उसके छिद्रों में से सुई को निकाल कर चित्र के अनुसार बटन सी लें। बटन को ढीला लगाना चाहिए और फिर धागे को चित्र के अनुसार उसके नीचे की ओर चारों तरफ 4-5 बार कस कर लपेटना चाहिए जिससे बटन पक्का हो जाए।
कढ़ाई के विभिन्न टांके – कढ़ाई करना एक कला है। भारत में प्राचीन काल से ही यह कला प्रचलित है। बच्चों को कढ़ाई करके अधिक आकर्षक बनाया जाता है। कढ़ाई के लिए भिन्न-भिन्न प्रकार के टांके प्रयोग में लाए जाते हैं। कढ़ाई के कुछ मूल टांके निम्नलिखित हैं-
(1) बखिया – इस टांके को हम कढ़ाई के लिए भी प्रयोग करते हैं। बखिया टांका बारीक फूल पत्तियाँ तथा नाम के अक्षर काढने में प्रयोग किया जाता है।
(2) छोटा कच्चा – छोटे कच्चे टांके को भी कढ़ाई के लिए प्रयोग किया जाता है। इसमें जगह टांके से थोड़ी कम या बराबर ली जाती है। इस छोटे कच्चे में दूसरे रंग का धागा डालने से सुन्दर लेस बनाई जा सकती है। लेस बनाते हुए इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि सुई में कपड़ा नहीं आए।
(3) डण्डी टांका – यह टांका उल्टी बखिया की भांति बनाया जाता है। इसे बाई तरफ से शुरू करते हुए थोड़ा तिरछा टांकरें हैं। इसमें धागा सदैव पहले टांके की बाई तरफ से निकलता है।तथा एक टांका दूसरे टांके से बिल्कुल मिला हुआ होता है। इसमें जहां एक टांका समाप्त होता है वहीं से दूसरा टांका शुरू होता है। इस टांके का प्रयोग फूलों की इण्डियां बनाने के लिए किया जाता है।
(4) भराई का टांका – इस टांके का प्रयोग फूल, पत्तियों तथा खाली स्थान को भरने के लिए किया जाता है। इस टांके को दाहिनी ओर से बाई ओर लिया जाता है। इसके टांके एक दूसरे से सटे हुए तथा सीधे या कुछ तिरछे लिए जा सकते हैं।
(5) जंजीरी टांका – यह टांका दाहिनी ओर से बाई ओर बनाया जाता है। टांका बनाने के लिए धागे को कपड़े की दाहिनी ओर से लाकर बाएं हाथ के अंगूठे से पकड़ते हैं। सूई को नमूने के एक बिन्दु पर से निकालकर एक फन्दा बनाते हुए फिर उसी बिन्दु में से निकालते हैं। इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि धागा सदैव सुई के नीचे रहे।
(6) लेज़ी डेजी का यह टांका – जंजीरी टांका की भांति बनाया जाता है परन्तु इसमें टांकास क्रम में एक दूसरे से गुथा हुआ नहीं होता है और अलग-अलग बनाया जाता है। हर फन्दे को अपनी जगह स्थिर रखने के लिए एक और टांका बनाया जाता है। इस टांके से अधिकतर फूलों की पंखुड़ियां तथा पत्तियां बनाई जाती है।
(7) काज का टांका और कम्बल टांका – काज का टांके तथा कम्बल टांके में यह अन्तर है कि काज का टांका पास-पास लिया जाता है। इस टांके में धागा नीचे की रेखा पर निकाला जाता है। और सुई को ऊपर की रेखा से नीचे की ओर चित्र में दी गई विधि के अनुसार निकाला जाता है। इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि धागा सुई की नोक के नीचे रहे। यह टांका छोटे फूलों, पत्तियों, कट वर्क, पैच वर्क तथा बड़े फूलों की भराई में काम आता है।
(8) हेरिगोन टांका – इस टांके को बनाने के लिए धागे को नीचे की लाइन पर थोड़ा बाई ओर निकाला जाता है फिर सुई को ऊपर की लाइन पर थोड़ा दाहिनी तरफ से घुसाकर बाई ओर एक छोटा सा टांका लिया जाता है। फिर नीचे की लाइन पर दाहिनी तरफ से निकाल कर बाई ओर एक छोटा टांका लेते हैं।
(9) फ्रेंच नॉट – इसे बनाने के लिए सुई को कपड़े के नीचे से थोड़ा ऊपर निकाल कर सूई पर बाई ओर से धागे के दो तीन बल देते हैं और ऊपर से सुई डाल कर जहां दूसरी गांठ बनानी हो, वहां से निकालते हैं।
बच्चे का मोजा बुनना
सामग्री
ऊन (चार प्लाई) – 50 ग्राम
सलाईयां – 12 नं. व 10 नं.
आयु – 2 से 3 वर्ष
नाप
लम्बाई – 20 सेमी
चौड़ाई (एक कान से दूसरे कान तक) – 35 सेमी
विधि
12 नं. की सलाइयों पर 144 फन्दे चढ़ाएं। एक फन्दा सीधा व एक फन्दा उल्टा की लाइन बुनें। इसी लाइन का 4 सेमी की लम्बाई तक दोहराएं। यह बार्डर बन गयाप्रारम्भ के 36 फन्दे बन्द करके, शेष फन्दों को एक सीधा व एक उल्टा बुनें। अगली सलाई में पुनः प्रारम्भ के 36 बन्द करें और शेष 72 फन्दों को एक सीधा व एक उल्टा बुनें।
इन 72 फन्दों को 10 नं. की सलाइयों पर चढ़ाएं और एक लाइन सीधी व एक लाइन उल्टी तब तक बुनते जाएं जब तक बार्डर सहित लम्बाई 20 सेमी हो जाए। इन फन्दों को बन्द कर दें। (सादी बुनाई की जगह कोई डिज़ाइन भी डाला जा सकता है।
सिलाई करना – प्रारम्भ व अन्त के 18 फन्दों को बीच की ओर मोड़ कर उल्टी तरफ से सिलाई कर दें।अब चित्र 3 के अनुसार बीच का एक फन्दा उठाएं और बुनें। प्रत्येक लाइन के अन्त में एक फन्दा उठाते जाएं और बुनते जाएं तक 21 फन्दे हो जाएं। इन फन्दों को बन्द कर दें। इस बीच के तिकोने भाग को अलग से बन कर भी टोपी में सिला जा सकता है।
एड़ी बुनना
• अगली सलाई में 20 फन्दे बुनें तथा शेष 20 फन्दे एक अलग सलाई पर उतार लें। आरम्भ के 20 फन्दों को बुनें व प्रत्येक सलाई के प्रारम्भ में एक-एक फन्दा घटाते जाएं। अन्त में 6 फन्दे शेष बचेंगे।
• घटाई 5 सेमी लम्बी होनी चाहिए। अब अगली लाइन बुनें, प्रत्येक लाइन के प्रारम्भ में एक-एक फन्दा उठाते जाएं (जिन फन्दों को घटाया था) और अन्त में फिर 20 फन्दे हो जाने चाहिए। यह एडी तैयार हो गई है।
तलुए बुनना
अलग रखे 20 फन्दों को दूसरे फन्दों के साथ मिलाकर एक सलाई में मिला दें। अब 5 सेमी तक एक लाइन सीधी व एक लाइन उल्टी बुनें।
पंजा बुनना – पंजा बिल्कुल एड़ी के सामान बनाया जाता है। 40 फन्दों को दो सलाइयों में आधा-2 बांट लें। इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि जिस तरफ के फन्दों से एड़ी बनाई थी उसकी दूसरी तरफ के फन्दों से पंजा बनाना है।
प्रत्येक सलाई के प्रारम्भ में एक-एक फन्दा घटाते जाएं। इसे 5 सेमी लम्बा बुनें तथा अन्त में 6 फन्दे शेष रह जाएंगे। अगली प्रत्येक लाइन में एक-एक फन्दा उठाते जाएं। अन्त में पुनः 20 फन्दे हो जाने चाहिए।
इन फन्दों को तथा दूसरी सलाई में रखे 20 फन्दों को मिला कर सुई द्वारा सिलाई करके जोड़ दें। यह पंजा बन गया। यह एक मोजा तैयार हो गया है। इसी प्रकार दूसरा मोजा बुनें। बुने हुए मोजों पर गीला कपड़ा बिछा कर इस्त्री करें और सिलाई कर दें।
बच्चे के ऊनी जूते बुनना
सामग्री
ऊन (चार प्लाई) – 25 ग्राम
सलाइयां – 12 नं. व 10 नं.
आयु – 1 वर्ष तक
नाप
ऊपर से पांव तक लम्बाई – 10 सेमी
पांव की लम्बाई – 10 सेमी
विधि
• 12 नं. की सलाइयों पर 33 फन्दे चढ़ाएं। सीधी-सीधी 10 लाइनें बुनें। यह बार्डर बन गया। इन 33 फन्दों को 10 नं. की सलाइयों पर चढ़ाएं। इसके पश्चात् 6 सेमी तक एक लाइन सीधी और एक लाइन उल्टी दोहराते जाएं। डोरी डालने के लिए छेद बनाने के लिए दो फन्दे सीधे बुनें। धागा आगे करके दो फन्दे जोड़ा बुनें, दो फन्दे सीधे बुनें और फिर धागा आगे करके दो फन्दे जोड़ा बुनें। इसी प्रकार सारी सलाई बुन लें। उल्टी सलाई सारी उल्टी बुनें।
• 33 फन्दों को तीन भागों में बांट कर, आरम्भ व अन्त के 11.11 फन्दों को अलग करके बीच के 11 फन्दों को 6 सेमी लम्बाई तक सीधा-सीधा बुनें। बीच के बुने हुए भाग के दोनों तरफ से फन्दे उठाकर तथा आरम्भ व अन्त के अलग किए हुए 11, 11 फन्दे मिलाकर (कुल 52 फन्दे) 14 सलाइयां सीधी-सीधी बुनें।
पहले 26 फन्दे बन कर जूते को मोड़ कर, तीसरी सलाई की सहायता से फन्दे बन्द कर दें। जूते की सिलाई कर लें तथा छेदों में डोरी या रिबन डाल दें। यह एक जूता तैयार हो गया है। इसी प्रकार दूसरा जूता बुनें।
NCERT Solution Class 8th Home Science All Chapters Notes |
NCERT Solution Class 8th Home Science All Chapters Questio & Answer |
NCERT Solution Class 8th Home Science All Chapters MCQ |
You Can Join Our Social Account
Youtube | Click here |
Click here | |
Click here | |
Click here | |
Click here | |
Telegram | Click here |
Website | Click here |