NCERT Solution Class 8th (Home Science) गृह विज्ञान Chapter – 4 वस्त्रों की देख रेख
Text Book | NCERT |
Class | 8th |
Subject | गृह विज्ञान |
Chapter | 4th |
Chapter Name | वस्त्रों की देख रेख |
Category | Class 8th गृह विज्ञान |
Medium | Hindi |
Source | Last Doubt |
NCERT Solution Class 8th (Home Science) गृह विज्ञान Chapter – 4 वस्त्रों की देख रेख Notes in Hindi – जिसमे आप सभी को पढ़ने को मिलेगा वस्त्रों की देखभाल के सामान्य नियम क्या है?, वस्त्रों की देखभाल और रखरखाव के दो पहलू क्या है?, वस्त्र का मुख्य कार्य क्या है?, आदि इसके बारे में हम विस्तार से पढ़ेंगे। |
NCERT Solution Class 8th (Home Science) गृह विज्ञान Chapter – 4 वस्त्रों की देख रेख
Chapter – 4
वस्त्रों की देख रेख
Notes
वस्त्रों की धुलाई में सहायक पदार्थ – वस्त्र धोना एक कला है। इस कला को निखार देने के लिए हमें कुछ पदार्थों की आवश्यकता होती है जिसके प्रयोग से वस्त्र अधिक सुन्दर व आकर्षक हो जाते हैं।
इनमें से कुछ प्रमुख पदार्थ हैं- कपड़े धोने का सोडा, रीठे का घोल, जैवल का घोल, सिरका, सफेदी लाने वाले पदार्थ आदि।
कपड़े धोने का सोडा – यह एक क्षार है जो बहुत मैले कपड़ों को धोने के लिए प्रयोग किया जाता है।
इसके निम्नलिखित लाभ हैं–
(i) सूती वस्त्र जैसे झाड़न आदि बहुत मैले हों तो उनको उबालते समय पानी में थोड़ा-सा कपड़े धोने का सोडा डाल कर धोने से इनकी चिकनाई दूर हो जाती है और यह बिल्कुल साफ़ हो जाते हैं।
(ii) यह कठोर जल को मृदु बनाने के काम आता है।
(iii) यह वस्त्र पर गर्म प्रैस से लगे हुए धब्बे छुड़ाने के काम भी आता है।
रीठे का घोल – रीठे पेड़ों से प्राप्त होते हैं। यह प्रायः रंगीन, ऊनी व रेशमी वस्त्रों को धोने के लिए प्रयोग किए जाते हैं। इनको सफेद वस्त्रों के लिए प्रयोग नहीं किया जाता क्योंकि रीठों से धोने से उनका रंग पिला पड़ जाता है।
रीठों का घोल बनाना – सर्वप्रथम रीठों को तोड़कर उनकी गुठली निकाल लें। इसके बाद उनको बारीक पीस लें। किसी बर्तन में रीठे का पाउडर और पानी हल्की आंच पर कुछ समय के लिए उबालें तथा एक पतले कपड़े में से छान लें। रीठे के घोल से वस्त्र भली प्रकार साफ हो जाते हैं और उनका रंग भी नहीं निकलता है क्योंकि यह रंग निकलने को रोकता है।
जैवल का घोल – जैवल का घोल धब्बे छुड़ाने के काम आता है। यह बहुत तेज पदार्थ है। अतः, इसको केवल सफेद सूती वस्त्रों के लिए प्रयोग किया जाता है।
जैवल का घोल बनाना
सामग्री – कपड़े धोने का सोडा – 450 ग्राम
उबलता पानी – 1 लिटर
ब्लीचिंग पाउडर – 225 ग्राम
ठंडा पानी – 2 लिटर
विधि – पहले सोडे तथा उबलते पानी का घोल बना लें। ब्लीचिंग पाउडर को ठंडे पानी में मिलाकर कुछ समय के लिए रख दें। जब ठोस पदार्थ नीचे बैठ जाए तब तरल भाग को अलग करके गहरे रंग की ऐसी बोतलों में भर कर रख दें जिसमें वायु प्रवेश न कर सके। इस घोल का प्रयोग करने के लिए इसमें गुनगुना पानी मिला कर कपड़े के धब्बे वाले भाग को इसमें भिगोएं। धब्बा उतरने पर साबुन से धो लें।
सिरका – रेशमी व ऊनी वस्त्रों की धुलाई में सिरका एक महत्वपूर्ण पदार्थ है।
इसके निम्नलिखित लाभ हैं–
(i) सिरका रंगीन रेशमी व ऊनी वस्त्रों में चमक लाने में बहुत उपयोगी है। रेशमी व ऊनी वस्त्रों को धोने के पश्चात् थोड़े से पानी में कुछ बूंदें सिरके की डाल कर निकाला जाता है।
(ii) सिरके के प्रयोग से वस्त्रों का रंग पक्का हो जाता है।
(iii) वस्त्रों में अधिक नील लग जाने पर सिरके का घोल उसे कम करने में सहायता करता है।
(iv) सिरका घास तथा दवाइयों के धब्बों को दूर करने के काम आता है।
सफेदी लाने वाले पदार्थ – यह सफेद वस्त्रों में सफेदी लाने के लिए लाभकारी है।
(i) इनको प्रयोग करने के लिए पहले थोड़े से पानी में घोल कर फिर पानी में भली प्रकार मिला दिया जाता है।
(ii) इसके पश्चात वस्त्र को कुछ समय के लिए इसमें भिगो देते हैं और फिर अच्छी तरह निचोड़ कर धूप में सुखाते हैं।
धब्बे – प्रायः यह देखने में आता है कि चाहे हम कितनी ही सावधानी क्यों न रखें, कभी न कभी वस्त्रों में धब्बे पड़ ही जाते हैं। कुछ धब्बे तो साबुन से दूर हो जाते हैं परन्तु कुछ धब्बे ऐसे होते हैं जो आसानी से दूर नहीं होते हैं। इन भिन्न-भिन्न प्रकार के धब्बों को अलग-अलग साधनों से दूर किया जाता है। धब्बों को निम्नलिखित भागों में विभाजित किया जाता है।
(1) वनस्पति से – चाय, काफी, कोको, फल, सब्जियां आदि के धब्बे वानस्पतिक धब्बे कहलाते हैं। ये अम्ल-युक्त होते हैं अतः इन धब्बों को हटाने के लिए क्षार प्रयोग किया जाना चाहिए।
(2) प्राणी जगत से – खून, अण्डे, दूध, मांस आदि के धब्बे इस श्रेणी के अन्तर्गत आते हैं। ऐसे धब्बों में प्रोटीन होती है इसलिए इनको दूर करने के लिए धब्बे को ठण्डे पानी से धोना चाहिए। गर्म पानी से धोने से दाग पक्का हो जाता है।
(3) चिकनाई से – इन धब्बों में न केवल चिकनाई, बल्कि कुछ मात्रा में रंगों की भी सम्भावन हो सकती है। ये धब्बे घी, मक्खन, रसेदार सब्जी आदि से होते हैं। इन धब्बों को उतारने के लिए चूसक विधि तथा घोलक विधि का प्रयोग करना चाहिए।
(4) खनिज से – इन धब्बों में स्याही, जंग, दवाईयां तथा कोल-तार के धब्बे आते हैं। ऐसे धब्बों को पहले अम्लं तथा बाद में क्षार से धोना चाहिए।
(5) रंग के धब्बे – ये धब्बे अम्ल-युक्त अथवा क्षारयुक्त होते हैं अतः इनको दूर करने के लिए धब्बे की प्रकृति को जानना आवश्यक है।
(6) अन्य धब्बे – उपरोक्त धब्बों के अतिरिक्त कुछ ऐसे धब्बे भी हैं जो किसी भी समूह के अन्तर्गत नहीं आते, जैसे पसीने के धब्बे, रंग-रगने के धब्बे अथवा बहुत गर्म इस्तरी के धब्बे। इनके अतिरक्ति घास से लगे धब्बे वानस्ततिक धब्बों को दूर करने की विधि से भिन्न है।
धब्बों को दूर करने के नियम
(1) कपड़ों पर धब्बे लगते ही उनको तुरन्त छुड़ा देना चाहिए। ताजा धब्बा जल्दी छूट जाता है परन्तु पुराने होने पर धब्बे पक्के हो जाते हैं।
(2) रंगीन वस्त्रों से धब्बे छुड़ाने के पूर्व उसके किसी कोने को जल में भिगो कर देख लेना चाहिए कि कपड़े का रंग निकलता है अथवा नहीं। यदि रंग कच्चा हो तो उन पर ऐसी वस्तुओं का प्रयोग नहीं करना चाहिए जिससे उन वस्त्रों को किसी प्रकार की हानि पहुंचे।
(3) इस बात का भी ज्ञान होना आवश्यक है कि वस्त्र किस प्रकार का है। इसका कारण है कि धब्बे छुड़ाने के लिए सभी प्रकार के वस्त्रों पर एक जैसी वस्तुओं का प्रयोग नहीं किया जा सकता। उदाहरण के लिए ऊनी और रेशमी वस्त्रों से धब्बे दूर करने के लिए कपड़े धोने का सोडा तथा उबलते हुए पानी का प्रयोग नहीं करना चाहिए।
(4) यदि यह मालूम न हो कि धब्बा किस प्रकार का है तो उसको दूर करने के लिए पहल मृदु विधि का प्रयोग करे फिर आवश्यक हो तो तीव्र। यदि कोई धब्बा साबुन से हट जाए तो तेज क्षार अथवा तेजाब का प्रयोग करने की आवश्यकता नहीं है।
(5) यदि यह ज्ञात न हो सके कि धब्बा किस प्रकार का है तो गर्म जल का प्रयोग भूल कर भी नहीं करना चाहिए। इसका कारण यह है कि गर्म जल के प्रयोग से जीवीय धब्बे पक्के हो जाते हैं।
(6) यदि धब्बा एक दवाई से न छूटे तो दूसरी दवाई प्रयोग करने से पूर्व पहली दवाई को अच्छी प्रकार से धो लेना चाहिए।
(7) यदि धब्बा छुड़ाने के लिए क्षार का प्रयोग किया गया हो तो इसके प्रभाव को दूर करने के लिए बाद में अम्ल का प्रयोग करना चाहिए। इसके विपरीत यदि अम्ल का प्रयोग किया गया हो तो क्षार से उसका प्रभाव दूर करना चाहिए।
(8) धब्बे वाले स्थान को दवाई में उतनी देर ही रखना चाहिए जब तक धब्बा दूर नहीं होता। जब वह दूर हो जाए तो उसको अच्छी तरह से साबुन के घौल में धो लेना चाहिए जिससे सारी दवाई उसमें से निकल जाए और वस्त्र को कोई हानि न पहुंचे।
विभिन्न प्रकार के धब्बों को छुड़ाना
चाय व काफी (सूती व लिनन के वस्त्र)
(i) यदि धब्बा ताजा हो तो उस पर उबलता हुआ पानी डालें।
(ii) यदि धब्बा पुराना हो तो धब्बे पर कपड़े धोने का सोडा अथवा सुहागा फैला कर ऊपर से उबलता हुआ पानी डालें।
(iii) धब्बे को तब तक ग्लिसरीन में भिगोएं जब तक वह उतर न जाए।
चाय व काफी (रेशमी, ऊनी व कृत्रिम वस्त्र)
(i) गुनगुने पानी में भिगोएं अथवा हल्के सुहागे के घोल में कुछ समय के लिए रखें।
(ii) हल्के हाइड्रोजन पैरोक्साइड के घोल का प्रयोग करें।
रसेदार सब्जी (सूती व लिनन के वस्त्र), (घी तथा हल्दी) –
(i) यदि धब्बा ताजा हो तो सर्वप्रथम उसके ऊपर तथा नीचे स्याही चूस रख कर इस्त्री करें। इस प्रकार कुछ चिकनाई स्याही चूस पर आ जाएगी। इसके बाद साबुन तथा गर्म पानी से धो कर धूप में सुखा दें।
(ii) चिकनाई को दूर करने के लिए मैदे अथवा स्टार्च का गाढ़ा घोल धब्बे पर लगाकर छाया में सूखने पर इसको उतार कर फिर से मैदे का घोल लगाएं। एक दो बार में चिकनाई दूर हो जाएगी।
(iii) चिकनाई दूर करने के लिए स्प्रिट, पैट्रोल अथवा मिट्टी का तेल भी प्रयोग कर सकते हैं।
(iv) यदि धब्बा न उतरे तो जैवल के हल्के घोल में भिगो दें। धब्बा दूर होने पर साबुन से धो दें।
रसेदार सब्जी (रेशमी, ऊनी व कृत्रिम वस्त्र)
(i) हल्की गर्म इस्त्री से धब्बे के ऊपर व नीचे स्याही चूस रखकर इस्त्री करें। इसके पश्चात् साबुन से धो दें।
(ii) यदि धब्बा फिर भी न उतरे तो पोटेशियम परमॅंगनेट तथा एमोनिया के घोल में बारी-बारी डुबो दें।
(iii) पोटेशियम परमैंगनेंट के दाग औक्ज़ैलिक अम्ल से दूर किए जा सकते हैं।
(iv) चिकनाई के धब्बे पैट्रोल, स्पिरिट अथवा मिट्टी के तेल के प्रयोग से भी दूर किए जा सकते हैं।
स्याही (सूती व लिनन के वस्त्र)
(i) साबुन और पानी से धो कर -हटाए जा सकते हैं।
(ii) स्याही के ताजे धब्बों को दूर करने के लिए कटे हुए नींबू तथा नमक से रगड़ कर धूप में सुखाएं। सूखने पर यही विधि पुनः दोहराएं जब तक धब्बा दूर न हो जाए। नींबू के स्थान पर टमाटर का प्रयोग भी कर सकते हैं।
(iii) धब्बे को कुछ घंटों के लिए दूध व खट्टे दही में भिगो कर रखने से धब्बा उतर जाता है।
(iv) पोटेशियम परमँगनेट के घोल से धब्बा दूर किया जा सकता है तथा पोटेशियम परमँगनेट के दाग औक्जैलिक अम्ल से दूर किए जा सकते हैं।
(v) जैवल के घोल के प्रयोग से भी स्याही का धब्बा दूर किया जा सकता है।
स्याही (रेशमी, ऊनी व कृत्रिम)
(i) साबुन तथा पानी से धो कर हटाए जा सकते हैं।
(ii) सूती वस्त्रों की भांति नींबू तथा नमक से रगड़ कर धब्बे दूर किए जा सकते हैं।
(iii) हाइड्रोजन पैरोक्साइड के घोल के प्रयोग से धब्बे दूर किए जा सकते हैं।
रंग रोगन (सूती व लिनन के वस्त्र) – मिट्टी के तेल या तारपीन के तेल में धब्बों को भिगोएं अथवा स्पिरिट का प्रयोग करें।
रंग रोगन (रेशमी, ऊनी व कृत्रिम)- सूती व लिनन की भांति।
रक्त (सूती व लिनन के वस्त्र)
(i) ठण्डे पानी में धोएं।
(ii) 50 ग्राम नमक का दो लिटर पानी में घोल बना कर, धब्बे वाले स्थान को इस घोल में धब्बा दूर होने तक भिगोएं।
रक्त (रेशमी, ऊनी व कृत्रिम)
(i) ठण्डे पानी में धोएं।
(ii) ऊनी कपड़ों, कम्बल आदि पर स्टार्च या मैदा फैला कर सुखाएं। तत्पश्चात् धब्बा न छूटने तक ब्रश से रगड़ते रहें।
आयोडीन (सूती व लिनन के वस्त्र)
(i) गर्म पानी और साबुन से धो कर धब्बा दूर कर सकते हैं।
(ii) सोडे को गर्म पानी में घोल – कर धोने से धब्बा दूर किया जा सकता है।
(iii) मैदे या स्टार्च का लेप बनाकर धब्बे पर लगाएं और कुछ समय पश्चात् धो डालें।
आयोडीन (रेशमी, ऊनी व कृत्रिम)- मैदा या स्टार्च का लेप बना कर धब्बे पर लगाएं और कुछ समय पश्चात धो डालें।
कोलतार (सूती व लिनन के वस्त्र) – धब्बे के नीचे स्याही चूस रख कर ऊपर से रूई से तारपीन का तेल लगाकर मलें बाद में स्पिरिट से धो डालें।
कोलतार (रेशमी, ऊनी व कृत्रिम)- तारपीन का तेल, पैट्रोल या बैनजीन के प्रयोग से धब्बा दूर किया जा सकता है।
स्थानिक सफ़ाई
(i) ऊनी व रेशमी वस्त्रों को पानी में धोने से उनका रंग व रूप खराब होने की सम्भावना रहती है। अतः ऐसे वस्त्र बाजार में ड्राईक्लीन करवाए जाते हैं। बाजार से ड्राइक्लीन कराना बहुत महंगा पड़ता है।
(ii) घर में बाजार की ड्राईक्लीनिंग तो हो नहीं सकती क्योंकि इसके लिए एक तो पैट्रोल काफी मात्रा में होना चाहिए तथा दूसरा ड्राईक्लीनिंग मशीन की भी आवश्यकता होती है। हां, यदि वस्त्रों में कहीं-कहीं मैल हो तो उनको घर में ही दूर किया जा सकता है।
(iii) इस प्रकार जब वस्त्र के कुछ मैले भागों को बिना पानी के प्रयोग के साफ किया जाता है तो उसे “स्थानिक-सफाई” कहते हैं।
इस मैल को दूर करने के लिए निम्नलिखित दो विधियों का प्रयोग में लाया जाता है-
1. घोलक विधि- इस विधि को प्रयोग में लाने के लिए प्रायः पैट्रोल, स्याही चूस, एक कपड़ा एवं रूई की आवश्यकता होती है। वस्त्र पर मैल चिकनाई के साथ लगी रहती है। यह चिकनाई पैट्रोल में घुलनशील है,
अतः इस चिकनाई के साथ-साथ वस्त्र की मैल भी उतर जाएगी जिसको स्याही चूस चूस लेगा। इस विधि को ऐसे धब्बे छुड़ाते समय काम में लाया जाता है जो घुलनशील हो।
2. चूसक विधि- इस विधि को प्रयोग में लाने के लिए प्रायः स्टार्च की आवश्यकता होती है। मैले व चिकनाई वाले स्थान पर स्टार्च या उसके गाढ़े लेप को लगाने से यह मैल व चिकनाई को सोख लेता है।
कुछ समय बाद इस स्टार्च को उतार देने से वस्त्र की मैल दूर हो जाती है। यह विधि प्रायः सफेद व हल्के रंग के कपड़ों के लिए प्रयोग की जाती है क्योंकि गहरे रंग के कपड़ों पर स्टार्च दिखाई देने लगती है।
एक ऊनी शाल की स्थानिक सफाई – शाल को साफ करने से पूर्व यह देख लेना चाहिए कि उसका रंग कैसा है।
(i) यदि हल्का व सफेद है तो उसके लिए चूसक विधि का प्रयोग करना चाहिए जिसके लिए स्टार्च की आवश्यकता होती है।
(ii) यदि गहरा रंग है/तो घोलक विधि का प्रयोग किया जाएगा जिसके लिए पैट्रोल की आवश्यकता होती है।
सामग्री- शाल, एक ब्रश, शाल को साफ करने के लिए स्टार्च या पैट्रोल, एक पतला कपड़ा, रूई, एक कटोरी, मेज जिस पर कम्बल तथा चादर बिछी हों और स्याही चूस।
घोलक विधि द्वारा
(i) पहले शाल के ऊपरी मैल को बुश से साफ कर लें।
(ii) शाल को मेज पर फैला कर मैले भाग के नीचे स्याही-चूस रख दें।
(iii) एक कटोरी में अथवा चौड़े मुंह की बोतल में थोड़ा सा पैट्रोल लेकर एक पोटली (पतले कपड़े में रूई डाल कर) से मैले स्थान पर थोड़ा-थोड़ा पैट्रोल लगाते जाएं। मैल धीरे-धीरे घुल कर स्याही चूस द्वारा सोख ली जाएगी। यदि स्याही चूस मैला हो जाए तो बदल कर दूसरा रख लेना चाहिए।
(iv) इसके उपरान्त शाल को कुछ समय के लिए किसी खुले स्थान पर फैला कर रख दें जिससे पैट्रोल की गंध दूर हो जाए।
(v) पैट्रोल की गन्ध दूर होने के पश्चात् ही उसको हल्की गर्म प्रैस करनी चाहिए नहीं तो आग लगने का भय रहता है।
पैट्रोल को प्रयोग करते समय कुछ सावधानियाँ
(i) रूई की पोटली के ऊपर एक बार में थोड़ा सा ही पैट्रोल लगाना चाहिए नहीं तो कपड़े पर पैट्रोल के धब्बे पड़ने की सम्भावना बनी रहती है।
(ii) इसे आग बहुत शीघ्र लग जाती है अतः पैट्रोल से साफ करते समय आग तथा जलती सिगरेट आदि समीप नहीं लाने चाहिए। साफ कर लेने के उपरान्त पैट्रोल की बोतल या डिब्बे को अच्छी तरह बन्द करके किसी सुरक्षित स्थान पर रखना चाहिए।
चूसक विधि द्वारा – यदि शाल हल्के रंग की हो तो उसे ब्रश से साफ कर लें। फिर उस पर स्टार्च का पाउडर अच्छी तरह फैला कर उसको लपेट कर कुछ घन्टों के लिए रख दें। यदि शाल कहीं से अधिक मैली हो तो उस पर स्टार्च का लेप लगा दें और स्टार्च को उतारने के पश्चात् उसे प्रैस करें।
वस्त्रों की रंगाई – कभी किसी वस्त्र का रंग फीका पड़ जाता है तो कभी कोई रंग अच्छा नहीं लगता। ऐसी अवस्था में वस्त्रों को रंगने की आवश्यकता पड़ती है। रंगरेज इनकी रंगाई के काफी पैसे लेते हैं। पैसों की बचत के लिए हम इनको घर में ही रंग सकते हैं।
वस्त्र रंगते समय ध्यान देने योग्य बातें
(i) यदि एक से अधिक वस्त्र रंगने हों जो भिन्न-भिन्न प्रकार के तन्तुओं से बने हों, जैसे सूती, रेशमी, ऊनी आदि तो इन सब को अलग-अलग कर लेना चाहिए।
(ii) रंगने के लिए पानी इतना होना चाहिए कि जो भी वस्त्र रंगना हो उसमें भली-भाँति डूब जाए। बहुत कम पानी में रंगने से धब्बे पड़ जाते हैं।
(iii) रंग का घोल बनाते समय उसमें फुटकियां न पड़ने पाएं, इसके लिए रंग को पीटली में बांध कर पानी में डालना चाहिए अथवा थोड़े से पानी में रंग को भली प्रकार से घोल कर छान लें और फिर सारे पानी में मिला दें।
(iv) घोल तैयार करते समय इस बात का भी ध्यान रखें कि रंग का कोई अंश बर्तन के इधर-उधर न लगा रहे।
(v) यदि एक वस्त्र रंगने के उपरान्त उस जल में दूसरा वस्त्र रंगना हो तो उसी जल में और थोड़ा सारंग तथा पानी मिला लेना चाहिए।
(vi) मैले वस्त्रों को रंगने से पूर्व धो लेना चाहिए जिससे उनमें मैल, नील तथा मांड न लगी हो।
(vii) रंगने से पहले वस्त्र को भली प्रकार सादे पानी में गीला करके घोल में अच्छी तरह से खोल कर डालना चाहिए।
(viii) यह जानने के लिए एक तैयार किये गये घोल में रंग सही मात्रा में है या नहीं कपड़े के एक कोने को या उसी तरह के एक टुकड़े को उस रंग वाले घोल में डुबोएं। यदि इस पर रंग आवश्यकता से अधिक गहरा हो तो समझें कि रंग ठीक है क्योंकि वस्त्र का रंग सूखने पर हल्का हो जाता है।
सूती वस्त्रों की रंगाई
सूती वस्त्र दो प्रकार के रंगे जाते हैं-
1. कच्चे रंग में – सर्वप्रथम रंग को पानी में घोल लें और फिर गीले वस्त्र को उस घोल में डुबो कर निकाल लें। भली प्रकार निचोड़ कर छाया में सूखने के लिए किसी समतल स्थान पर फैला दें। वस्त्र को मांड भी लगाई जा सकती है।
2. पक्के रंग में – बाज़ार से पक्का रंग खरीदने के पश्चात् उसको पानी में उबाल लें। रंग में पक्कापन लाने के लिए पानी में थोड़ा सा साबुत नमक डाल देना चाहिए। वस्त्र को गीला करके रंग वाले घोल में डाल कर कुछ समय के लिए उबाल लें। निचोड़ कर छाया में सूखने के लिए समतल स्थान पर फैला दें। यदि आवश्यकता हो तो वस्त्र में कलफ भी लगाई जा सकती है।
सूती दुपट्टे की रंगाई
सामग्री – दुपट्टा जिसको रंगना हो, रंग, डोल, पानी, बाल्टी, डंडा, साबुत नमक, मांड आदि।
विधि – पानी को उबलने के लिए रखें। फिर रंग को पोटली में बांध कर उबलते पानी में डाल दें। इसको दो-चार मिनट और उबलने दें।
(i) फिर दुपट्टे को गीला करके रंग के घोल में भली प्रकार से खोल कर डाल दें। इसके साथ ही थोड़ा सा नमक भी रंग वाले घोल में डाल दें जिससे दुपट्टे पर रंग पक्का हो जाए।
(ii) जब दुपट्टे को रंग में डालें तो उसे एक डंडे से हिलाते रहें जिससे सारे दुपट्टे पर रंग भली प्रकार से चढ़ जाए। कुछ समय के पश्चात् उसको रंग से निकाल कर सादे पानी में खगारिए तथा दुपट्टे को मांड लगा दें और निचोड़ कर छाया में सुखा दें।
(iii) रंगे हुए दुपट्टे को तार व रस्सी पर नहीं सुखाना चाहिए नहीं तो दुपट्टे में रंग की असमानता आ सकती है। दुपट्टे को हाथों में पकड़ कर अथवा किसी समतल स्थान पर ही सुखाना चाहिए।
ऊनी स्वेटर की धुलाई – ऊनी स्वेटर पर प्रायः बटन लगे रहते हैं। स्वेटर पर यदि फैन्सी बटन लगे हों जिनको धोने से खराब होने की सम्भावना हो तो उन बटनों को उतार लें। यदि स्वेटर कहीं से फटा या उधड़ा हो तो सी लें।
(i) फिर स्वेटर का खाका तैयार कर लें। इसके उपरान्त पानी में आवश्यकतानुसार रीठे का घोल अथवा बाजार में मिलने वाले गर्म कपड़े धोने के घोल मिला कर हल्के हाथ के दबाव से रेशमी वस्त्रों की भांति धो लें। इसके पश्चात् साफ पानी में तब तक धोएं जब तक सारा साबुन न निकल जाए।
(ii) ऊनी वस्त्रों को पानी में अधिक समय के लिए नहीं रखना चाहिए क्योंकि ऐसा करने से इनके सिकुड़ने का भय रहता है। इसके बाद एक रोएंदार तौलिए में रख कर हल्के हाथों से दबाकर पानी निकाल लें। फिर खाके पर रख कर किसी समतल स्थान पर छाया में सुखाएं।
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