NCERT Solution Class 8th (Home Science) गृह विज्ञान Chapter – 1 साधारण रोग
Text Book | NCERT |
Class | 8th |
Subject | गृह विज्ञान |
Chapter | 1st |
Chapter Name | साधारण रोग |
Category | Class 8th गृह विज्ञान |
Medium | Hindi |
Source | Last Doubt |
NCERT Solution Class 8th (Home Science) गृह विज्ञान Chapter – 1 साधारण रोग Notes in Hindi कौन सा मंत्र सभी रोगों को ठीक कर सकता है?, रोग मुख्य कितने प्रकार के होते हैं?, रोगों के देवता कौन है?, 10 सामान्य रोग क्या हैं?, सबसे आम मानव रोग क्या है?, संक्रमण के 4 प्रकार क्या हैं?, बचपन की सामान्य बीमारियाँ कौन सी हैं?, आदि इसके बारे में हम विस्तार से पढ़ेंगे। |
NCERT Solution Class 8th (Home Science) गृह विज्ञान Chapter – 1 साधारण रोग
Chapter – 1
साधारण रोग
Notes
साधारण रोग – अच्छे स्वास्थ्य के लिए व्यक्तिगत स्वच्छता एवं वातावरण की स्वच्छता अति आवश्यक है क्योंकि गन्दगी के कारण मनुष्य अनेक रोगों का शिकार होता है। प्रकृति में अनेकानेक जाति के रोग उत्पन्न करने वाले अत्यन्त सूक्ष्म रोगाणु होते हैं। रोगाणु अन्धेरी जगह, नमी तथा गन्दगी में बहुत शीघ्रता से अधिक संख्या में बढ़ते हैं और विभिन्न माध्यमों द्वारा संक्रमण फैलाते हैं।
1. संक्रमण के माध्यम
(i) रोगाणु विभिन्न माध्यमों द्वारा स्वस्थ मनुष्य के शरीर में प्रवेश करके रोग उत्पन्न करते हैं।
(ii) एक विशेष जाति के रोगाणु के कारण एक विशेष रोग होता है।
साधारणत – रोगाणु निम्नलिखित प्रकार से रोगी मनुष्य से स्वस्थ मनुष्य के शरीर में प्रवेश करते हैं।
वायु द्वारा – कुछ रोगाणु धूल आदि के कणों में लिपटे वायु में रहते हैं और वायु के साथ मनुष्य शरीर में पहुंचते हैं। रोगी व्यक्ति के थूक, नाक व अन्य स्त्राव के साथ रोगाणु वायु में फैल जाते हैं और जब स्वस्थ मनुष्य इस दूषित वायु में श्वास लेता है तो उसमें प्रवेश करके उसे रोगी बना देते हैं।
वायु द्वारा फैलने वाले रोग – खांसी, जुकाम, काली खांसी, खसरा, चेचक, कनपेड़, क्षय रोग, कण्ठरोहिणी (डिपथीरिया) आदि।
जल द्वारा – कुछ रोगाणु जल में जीवित रहते हैं और जब मनुष्य सन्दूषित जल का सेवन करता है तो उसे रोगी बना देते हैं।
जल द्वारा फैलने वाले रोग – अतिसार, हैजा, मियादी बुखार आदि।
सम्पर्क द्वारा – कई रोगाणु रोगी मनुष्य से स्वस्थ मनुष्य में सीधे सम्पर्क द्वारा प्रवेश करते हैं।
सम्पर्क द्वारा फैलने वाले रोग – आँख दुखना, रोहे, दाद, खुजली आदि।
कीड़ों द्वारा – कुछ रोगाणु विभिन्न प्रकार के कीड़ों जैसे मच्छर,जूं ,पिस्सु आदि के रक्त पर पलते हैं। जब यह कीड़े स्वस्थ मनुष्य को काटते हैं तो रोगाणु मनुष्य के रक्त में प्रवेश करके उसे रोगी बना देते हैं।
कीड़ों द्वारा फैलने वाले रोग – मलेरिया, प्लेग, डेंगू ज्वर आदि।
सम्प्राप्ति काल – स्वस्थ व्यक्ति के शरीर में प्रवेश करने के पश्चात् रोगाणु शीघ्रता से संख्या में बढ़ने लगते हैं और एक निश्चित काल में यह रोगाणु इतने प्रबल हो जाते हैं कि रोग के लक्षण प्रकट होने लगते हैं। रोगाणु के शरीर में प्रवेश से ले कर रोग के लक्षणों के प्रकट होने तक के समय को सम्प्राप्ति काल कहते हैं।
संक्रामक काल – एक रोगी व्यक्ति एक निश्चित समय तक रोग फैला सकता है। यह काल जिसमें एक रोगी अन्य स्वस्थ व्यक्तियों में रोग फैला सकता है, संक्रामक काल कहते हैं।
2. खसरा (Measles) – खसरा रोग अधिकतर बच्चों में होता है। रोगी के खांसने या छींकने से रोगाणु वायु को दूषित करते हैं और जब कोई व्यक्ति इस दूषित वायु में सांस लेता है तो उसे भी यह रोग हो जाता है।
रोग के लक्षण
1. इस रोग का आरम्भ खांसी, जुकाम से होता है।
2. इसके बाद तेज बुखार चढ़ता है।
3. दो तीन दिन के पश्चात माथे पर छोटे-छोटे लाल दाने निकल आते हैं और बाद में यह दाने सारे शरीर पर फैल जाते हैं।
4. धीरे-धीरे ज्वर कम होने लगता है और दाने सूखने लगते हैं। इस रोग का सम्प्राप्ति काल 7 से 14 दिन तक होता है और संक्रामक काल 3 सप्ताह तक होता है।
परिचर्या एवं उपचार
(1) रोगी को एक अलग स्वच्छ एवं हवादार कमरे में रखना चाहिए। कमरे का फर्श जीवाणुनाशक द्रव्य जैसे फिनाइल से साफ करना चाहिए जिससे जीवाणु वायु में न मिल सकें।
(2) रोगी को हवा के झोंकों एवं ठंड से बचाना चाहिए अन्यथा निमोनिया होने का भय रहता है।
(3) रोगी को फलों का रस व हल्का भोजन खाने को देना चाहिए तथा पीने के लिए हल्का गर्म पानी देना चाहिए।
(4) रोगी के वस्त्र, बर्तन तथा अन्य उपयोग में आने वाली वस्तुएं अलग रखनी चाहिए।
(5) रोगी के थूकादि व दानों से उत्तरी पपड़ी को जला कर नष्ट करना चाहिए जिससे जीवाणु हवा में न फैल सकें।
(6) रोगी को कम से कम तीन सप्ताह तक परिचारक के अतिरिक्त अन्य किसी व्यक्ति के सम्पर्क में नहीं आने देना चाहिए।
(7) खसरे की रोकथाम के लिए बच्चे को नौ से बारह महीने की उम्र के बीच खसरे का बचाव टीका अवश्य लगवाना चाहिए।
अतिसार (Diarrohea) – अतिसार एक साधारण परन्तु गम्भीर रोग है। यह रोग बच्चों को अधिक होता है और जरा सी लापरवाही के कारण बच्चों की मौत का कारण भी बन सकता है।
रोग फैलने के कारण
(1) अतिसार रोग के रोगाणु अस्वच्छ दूध व गले सड़े फलों में पलते हैं। जब बच्चों को ऊपरी दूध पिलाया जाता है और सफाई पर ध्यान नहीं दिया जाता तो बच्चे अतिसार से ग्रस्त हो जाते हैं विशेषकर दूध की बोतल और निप्पल गन्दा होने के कारण बच्चों को यह रोग जल्दी घेरता है।
(2) अस्वच्छ वातावरण के कारण दूषित जल व भोजन से अतिसार के रोगाणु स्वस्थ मनुष्य शरीर में प्रवेश करके रोग उत्पन्न करते हैं।
(3) कुपोषण के कारण व्यक्ति की रोगों से लड़ने की क्षमता कम हो जाती है और पाचन शक्ति भी क्षीण हो जाती है जिससे वह अतिसार से शीघ्र ग्रस्त हो जाते हैं।
रोग के लक्षण
- अतिसार से ग्रस्त रोगी को थोड़ी-थोड़ी देर बाद पतले तथा पीले हरे रंग का शौच आता है।
- पेट में दर्द तथा ऐंठन होती है।
- शौच के साथ कभी-कभी रक्त भी आता है।
- रोगी को कमजोरी आ जाती है, प्यास अधिक लगती है और जीभ सूखने लगती है।
- यदि रोगी को पर्याप्त मात्रा में जल न दिया जाए तो शरीर में पानी और नमक की कमी (निर्जलीकरण की स्थिति) हो जाती है। निर्जलीकरण की स्थिति में रोगी का तापमान कम हो जाता है, नाड़ी कमजोर और धीमी हो जाती है, चमड़ी ढीली हो जाती है और पेशाब आना बन्द हो जाता है।
परिचर्या एवं उपचार
(1) रोगी को सामान्य आहार देते रहना चाहिए तथा भूखा नहीं रखना चाहिए।
(2) छोटे बच्चों को मां का दूध पिलाते रहना चाहिए।
(3) रोगी के शरीर में पानी और नमक की कमी को पूरा करने के लिए बाजार तथा प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्र में उपलब्ध जीवन रक्षक घोल (ओ. आर.एस.) बना कर पिलाना चाहिए। जीवन रक्षक घोल ग्लुकोज, नमक तथा खाने वाले सोडे को मिलाकर बनाया जाता है। घर पर उबले हुए पानी में नमक और चीनी का घोल बनाकर भी रोगी को दिया जा सकता है।
(4) रोगी को भरपूर मात्रा में तरल पदार्थ जैसे शर्बत , शिंकजी, लस्सी, छाछ, हल्की चाय, नारियल पानी, चावल का मांड तथा फटे दूध का पानी देते रहना चाहिए।
(5) रोगी की स्थिति में सुधार होने पर उसे नर्म आहार, जैसे दूध, दही, कस्टर्ड, नर्म उबला चावल, अण्डा, उबली हुई सब्जियां देनी चाहिए।
(6) अतिसार में निम्नलिखित खाद्य पदार्थों से परहेज़ रखना आवश्यक है।
क. हरी पत्तेदार सब्ज़ियाँ,
ख. मोटे छिलके व बीजों वाले फल,
ग. तले हुए खाद्य पदार्थ,
घ. मिर्च मसाले,
ङ. चटनी व आचार,
रोग से बचाव के उपाय
- बच्चों की दूध की बोतल व निप्पल उबाल कर रोगाणुरहित करके ही प्रयोग करनी चाहिए।
- बच्चों को दूध उबाल कर और हर बार साफ़ उबली बोतल में डाल कर पिलाना चाहिए।
- भोज्य पदार्थ को मक्खियों से बचाना चाहिए और सदैव ढककर रखना चाहिए।
- हाथों को हमेशा अच्छे साबुन या राख व स्वच्छ जल से धोना चाहिए।
- अधिक गले हुए फल व सब्जियों का प्रयोग नहीं करना चाहिए।
आँखें दुखना (Sore Eyes ) – यह रोग बच्चों में अधिक होता है और इसका मुख्य कारण व्यक्तिगत एवं वातावरण की अस्वच्छता है। आंखों में धूल व गन्दगी पड़ने से यह रोग होता है और सम्पर्क द्वारा फैलता है।
रोग के लक्षण
- रोगी की आंखें लाल हो जाती है।
- आँखें सूज जाती हैं और उनमें से पानी बहने लगता है और गन्दगी निकलती है।
- आंखों में दर्द होने लगता है और आंखें खोलने में कठिनाई होती है।
परिचर्या एवं उपचार
- रोगी को तेज रोशनी से दूर रखना चाहिए।
- आँखों को बोरिक के घोल से धोना व सेकना चाहिए।
- रोगी को नेत्र – विशेषज्ञ को दिखाकर उसकी परामर्श अनुसार आँखों में दवाई डालनी चाहिए।
रोग से बचाव के उपाय
- रोगी को स्वस्थ व्यक्तियों से अलग रखना चाहिए।
- आँखों को स्वच्छ शीतल जल से धोना चाहिए।
- यदि सम्भव हो तो रोगी को आँखों पर चश्मा लगाना चाहिए।
मलेरिया (Malaria) – मलेरिया एक संक्रामक रोग है जो भारत जैसे गर्म देशों में अधिक होता है। यह रोग एक सूक्ष्म परजीवी के कारण होता है जो एनाफिलीज नामक मादा मच्छर के पेट में पनपते हैं। जब यह मच्छर किसी व्यक्ति को काटते हैं तो इनके लार द्वारा परजीवी उस व्यक्ति के रक्त में प्रवेश करके उसे रोगी बना देते हैं।
रक्त में इनकी संख्या बढ़ती रहती है और जब मच्छर रोगी को काटता है तो यह परजीवी मच्छर के पेट में चले जाते हैं और पनपने लगते हैं। इसी प्रकार सूक्ष्म परजीवी का जीवन चक्र चलता रहता है और इनकी संख्या बढ़ती रहती है।
रोग के लक्षण
- रोगी के शरीर तथा सिर में दर्द होता है।
- रोगी का जी मचलाता है और उसे उल्टी होती है।
- रोगी को सर्दी लगकर तेज ज्वर चढ़ता है।
- ज्वर उतरते समय पसीना आता है।
परिचर्या एवं उपचार
- रोगी को विश्राम की आवश्यकता होती है।
- रोगी को डाक्टर की सलाह से दवाई देनी चाहिए।
- रोगी को हल्का भोजन देना चाहिए।
- ज्वर उतरने पर असावधानी नहीं करनी चाहिए।
रोग से बचाव के उपाय – मलेरिया रोग मच्छरों द्वारा फैलता है अतः, मच्छरों को नष्ट करके इस रोग से बचाया जा सकता है।
(1) मच्छर ठहरे हुए गन्दे पानी में अण्डे देते हैं और पलते हैं। अतः, गन्दे पानी के गढ्ढों को मिट्टी से भरवा देना चाहिए या गन्दे पानी की सतह पर मिट्टी का तेल छिड़क देना चाहिए जिससे मच्छरों के लारवे मर जाएं।
(2) मच्छर अन्धेरी तथा गन्दी जगहों पर निवास करते हैं अतः, घरों में हवा, धूप व प्रकाश की पूर्ण व्यवस्था होनी चाहिए।
(3) रात को सोते समय मच्छरों के काटने से बचने के लिए मच्छर दानी का प्रयोग कर सकते हैं। तथा मच्छर भगाने वाली क्रीम भी शरीर पर लगाई जा सकती है।
(4) मच्छरों को भगाने के लिए नीम, गूगल या बाजार से मिलने वाली टिकियों का धुआं कर सकते हैं।
(5) अधिकतर मच्छर दीवारों के कोनों में अन्धेरे में बैठते हैं। अतः, घर की दीवारों पर मच्छर मारने वाली दवाई का छिड़काव करवाना चाहिए।
(6) घर तथा घर के आसपास सफाई का विशेष ध्यान रखना चाहिए।
बचाव के टीके – कुछ जानलेवा रोगों जैसे क्षय रोग, कण्ठरोहिणी, काली खांसी, टेटनस व खसरा से बचने के लिए बच्चों को बचाव टीके लगवाना अत्यन्त आवश्यक है। इसके अतिरक्ति अपाहिज करने वाला रोग जैसे पोलियो से बचाव के लिए दवाई की खुराक भी बच्चों को पिलाना आवश्यक है।
यह बचाव के टीके सभी सरकारी हस्पतालों, डिस्पेन्सरियों और स्वास्थ्य केन्द्रों में मुफ्त लगाए जाते हैं। प्रत्येक बच्चे को छः रोगों से बचाव के टीके निम्नलिखित तालिका के अनुसार लगवाना आवश्यक है।
टीका कब लगवाएं | टीका कब लगवाएं |
जन्म पर | बी.सी.जी. का टीका |
डेढ़ महीने की उम्र में | • डी. पी. टी. का पहला टीका • पोलियो की पहली खुराक |
ढाई महीने की उम्र में | • डी. पी. टी. का दूसरा टीका • पोलियो की दूसरी खुराक |
साढ़े तीन महीने की उम्र में | • डी. पी. टी. का तीसरा टीका • पोलियो की तीसरी खुराक |
नौ महीने की उम्र में | खसरे का टीका |
डेढ़ साल से दो साल की उम्र के बीच | • डी.पी. टी. का बूस्टर टीका • पोलियो की बूस्टर खुराक |
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