NCERT Solution Class 6th Social Science इतिहास Chapter – 9 व्यापारी, राजा और तीर्थयात्री (Traders kings and pilgrims)
Textbook | NCERT |
Class | 6th |
Subject | इतिहास Social Science |
Chapter | 9th |
Chapter Name | व्यापारी, राजा और तीर्थयात्री (Traders kings and pilgrims) |
Category | Class 6th Social Science (इतिहास) |
Medium | Hindi |
Source | Last Doubt |
NCERT Solution Class 6th Social Science इतिहास Chapter – 9 व्यापारी, राजा और तीर्थयात्री (Traders kings and pilgrims) Notes in Hindi व्यापार, रोम के साथ व्यापार संबंध, भारत से होकर प्राचीन समुद्री मार्ग, तटीय क्षेत्रों के नये राज्य, दक्षिण के महत्वपूर्ण व्यापार केंद्र, टैक्स, सातवाहन आदि के बारे में पढ़ेंगे। |
NCERT Solution Class 6th Social Science इतिहास Chapter – 9 व्यापारी, राजा और तीर्थयात्री (Traders kings and pilgrims)
Chapter – 9
व्यापारी, राजा और तीर्थयात्री
Notes
व्यापार (Business) – एक व्यापारी चीजों को खरीदने और बेचने का काम करता है। प्राचीन काल से ही मनुष्य व्यापार करता आ रहा है। चीजों को बेचने और खरीदने के लिए व्यापारी लंबी यात्राएँ किया करते थे। साथ में वे संस्कृति और विचारों के आदान प्रदान में भी मददगार होते थे।
व्यापार से जुडी एक कविता – व्यापार के प्रमाण हमें संगम कविताओं में भी मिलते हैं।
नीचे लिखी कविता में पूर्वी समुद्र तट पर स्थित पुहार पत्तन पर लाए जाने वाले माल का वर्णन मिलता है।
“समुद्री जहाज़ों पर लाए गए तेज़ तर्रार घोड़े,
गाड़ियों पर काली मिर्च की गठरियाँ,
हिमालय से मिले रत्न और सोना
दक्षिण की पहाड़ियों से चंदन की लकड़ियाँ
दक्षिणी – सागर के मोती और
पूर्वी सागर के मूंगे
गंगा और कावेरी की फ़सलें
श्रीलंका से आए खाद्यान्न,
म्यांमार के बने मिट्टी के बर्तन और दुर्लभ कीमती आयात।”
समुद्र तटों से लगे राज्य – इस उपमहाद्वीप के दक्षिणी भाग में बड़ा तटीय प्रदेश है। इनमें बहुत से पहाड़, पठार और नदी के मैदान हैं। नदियों के मैदानी इलाकों में कावेरी का मैदान सबसे उपजाऊ है। मैदानी इलाकों तथा तटीय इलाकों के सरदारों और राजाओं के पास धीरे-धीरे काफी सम्पत्ति और शक्ति हो गई।
संगम कविताओं में मुवेन्दार की चर्चा मिलती है। यह एक तमिल शब्द है, जिसका अर्थ तीन मुखिया है। इसका प्रयोग तीन शासक परिवारों के मुखियाओं के लिए किया गया है। ये थे – चोल, चेर तथा पांड्य, जो करीब 2300 साल पहले दक्षिण भारत में काफी शक्तिशाली माने जाते थे।
चोल, चेर तथा पांड्य – इन तीनों मुखियाओं के अपने दो-दो सत्ता केंद्र थे। इनमें से एक तटीय हिस्से में और दूसरा अंदरूनी हिस्से में था। इस तरह छह केंद्रों में से दो बहुत महत्वपूर्ण थे। एक चोलों का पत्तन पुहार या कावेरीपट्टिनम, दूसरा पांड्यों की राजधानी मदुरै।
ये मुखिया लोगों से नियमित कर के बजाय उपहारों की माँग करते थे। कभी-कभी ये सैनिक अभियानों पर भी निकल पड़ते थे और आस-पास के इलाकों से शुल्क वसूल कर लाते थे। इनमें से कुछ धन वे अपने पास रख लेते थे, बाकी अपने समर्थकों, नाते-रिश्तेदारों, सिपाहियों तथा कवियों के बीच बाँट देते थे। अनेक संगम कवियों ने उन मुखियाओं की प्रशंसा में कविताएँ लिखी हैं जो उन्हें कीमती जवाहरात, सोने, घोड़े, हाथी, रथ या सुंदर कपड़े दिया करते थे।
सातवाहन शासक दक्षिणापथ – इसके लगभग 200 वर्षों के बाद पश्चिम भारत में सातवाहन नामक राजवंश का प्रभाव बढ़ गया। सातवाहनों का सबसे प्रमुख राजा गौतमी पुत्र श्री सातकर्णी था। उसके बारे में हमें उसकी माँ, गौतमी बलश्री द्वारा दान किए एक अभिलेख से पता चलता है।
वह और अन्य सभी सातवाहन शासक दक्षिणापथ के स्वामी कहे जाते थे। दक्षिणापथ का शाब्दिक अर्थ दक्षिण की ओर जाने वाला रास्ता होता है। पूरे दक्षिणी क्षेत्र के लिए भी यही नाम प्रचलित था। श्री सातकर्णी ने पूर्वी, पश्चिमी तथा दक्षिणी तटों पर अपनी सेनाएँ भेजीं।
रेशम मार्ग की कहानी – कीमती, चमकीले रंग और चिकनी, मुलायम बनावट की वजह से रेशमी कपड़े अधिकांश समाज में बहुमूल्य माने जाते हैं। रेशमी कपड़ा तैयार करना एक जटिल प्रक्रिया है। रेशम के कीड़े से कच्चा रेशम निकालकर, सूत कताई होती है, और फिर उससे कपड़ा बुना जाता है। रेशम बनाने की तकनीक का आविष्कार सबसे पहले चीन में करीब 7000 साल पहले हुआ।
इस तकनीक को उन्होंने हज़ारों साल तक बाकी दुनिया से छुपाए रखा। पर चीन से पैदल, घोड़ों या ऊँटों पर कुछ लोग दूर- दूर की जगहों पर जाते थे और अपने साथ रेशमी कपड़े भी ले जाते थे। जिस रास्ते से ये लोग यात्रा करते थे वह रेशम मार्ग (सिल्क रूट) के नाम से प्रसिद्ध हो गया।
शासको, व्यापारियों को बचने कारण – कुछ शासक इसके बड़े-बड़े हिस्सों पर अपना नियंत्रण करना चाहते थे क्योंकि इस रास्ते पर यात्रा कर रहे व्यापारियों से उन्हें कर, शुल्क तथा तोहफ़ों के ज़रिए लाभ मिलता था। इसके बदले, ये शासक इन व्यापारियों को अपने राज्य से गुज़रते वक्त लुटेरों के आक्रमणों से सुरक्षा देते थे।
कुषाण – सिल्क रूट पर नियंत्रण रखने वाले शासकों में सबसे प्रसिद्ध कुषाण थे। करीब 2000 साल पहले मध्य – एशिया तथा पश्चिमोत्तर भारत पर इनका शासन था। पेशावर और मथुरा इनके दो मुख्य शक्तिशाली केंद्र थे। तक्षशिला भी इनके ही राज्य का हिस्सा था।
इनके शासनकाल में ही सिल्क रूट की एक शाखा मध्य एशिया से होकर सिंधु नदी के मुहाने के पत्तनों तक जाती थी। फिर यहाँ से जहाज़ों द्वारा रेशम, पश्चिम की ओर रोमन साम्राज्य तक पहुँचता था। इस उपमहाद्वीप में सबसे पहले सोने के सिक्के जारी करने वाले शासकों में कुषाण थे। सिल्क रूट पर यात्रा करने वाले व्यापारी इनका उपयोग किया करते थे।
बौद्ध धर्म का प्रसार – कुषाणों का सबसे प्रसिद्ध राजा कनिष्क था। उसने करीब 1900 साल पहले शासन किया। उसने एक बौद्ध परिषद् का गठन किया, जिसमें एकत्र होकर विद्वान महत्वपूर्ण विषयों पर विचार-विमर्श करते थे। बुद्ध की जीवनी बुद्धचरित के रचनाकार कवि अश्वघोष, कनिष्क के दरबार में रहते थे। अश्वघोष तथा अन्य बौद्ध विद्वानों ने अब संस्कृत में लिखना शुरू कर दिया था।
इस समय बौद्ध धर्म की एक नई धारा महायान का विकास हुआ। इसकी दो मुख्य विशेषताएँ थी। पहले, मूर्तियों में बुद्ध की उपस्थिति सिर्फ़ कुछ संकेतों के माध्यम से दर्शाई जाती थी। मिसाल के तौर पर उनकी निर्वाण प्राप्ति को पीपल के पेड़ की मूर्ति द्वारा दर्शाया जाता था पर अब बुद्ध की प्रतिमाएँ बनाई जाने लगीं। इनमें से अधिकांश मथुरा में, तो कुछ तक्षशिला में बनाई जाने लगीं।
बोधिसत्त्व – बोधिसत्त्व उन्हें कहते है जो ज्ञान प्राप्ति के बाद एकांत वास करते हुए ध्यान साधना कर सकते थे लेकिन ऐसा करने के बजाए, वे लोगों को शिक्षा देने और मदद करने के लिए सांसारिक परिवेश में ही रहने ठीक समझने लगे। धीरे धीरे पूजा काफी लोगप्रिये हो गई। और पुरे मध्य एशिया, चीन और बाद में कोरिया तथा जापान तक भी फेल गई।
बौद्ध भिक्खुओं के रहने के गुफाएँ – बौद्ध धर्म का प्रसार पश्चिमी और दक्षिणी भारत में हुआ, जहाँ बौद्ध भिक्खुओं के रहने के लिए पहाड़ों में दर्जनों गुफाएँ खोदी गईं। इनमें से कुछ गुफाएँ राजा और रानियों के आदेश पर बनाई गईं तो कुछ व्यापारियों तथा कृषकों द्वारा । इनमें से ज़्यादातर गुफाएँ पश्चिमी घाट के दर्रों के पास बनाई गई थीं।
दक्कन के शहरों और तटों के समृद्ध बंदरगाहों और इन्हें जोड़ने वाली सड़कें भी इन्हीं दर्रों से होकर गुजरती थीं। ऐसा लगता है कि यात्रा करने वाले व्यापारी इन गुफाओं वाले मठों में विश्राम के लिए रुकते थे।
तीर्थयात्री – वे स्त्री-पुरुष होते हैं, जो प्रार्थना के लिए पवित्र स्थानों की यात्रा किया करते हैं।
तीर्थयात्रियों की जिज्ञासा – व्यापारी काफ़िलों में तथा जहाज़ों पर दूर-दूर जाया करते थे। बहुत-से तीर्थयात्री भी उनके साथ यात्रा पर निकल पड़ते थे। इसी तरह भारत की यात्रा पर आया चीनी बौद्ध तीर्थयात्री फा – शिएन काफी प्रसिद्ध है। वह करीब 1600 साल पहले आया । श्वैन त्सांग 1400 साल पहले भारत आया और उसके करीब 50 साल बाद इत्सिंग आया। वे सब बुद्ध के जीवन से जुड़ी जगहों और प्रसिद्ध मठों को देखने के लिए भारत आए थे।
फा-शिएन चीन वापस कैसे लौटा – फा-शिएन ने अपने घर चीन वापस लौटने के लिए अपनी यात्रा बंगाल से शुरू की। वह व्यापारियों के एक जहाज़ पर चढ़ा। मुश्किल से वे दो दिन ही चल पाए थे कि एक समुद्री तूफ़ान में फँस गए। व्यापारी अपने जहाज़ को डूबने से बचाने के लिए उसमें से अपने माल को फेंककर जहाज को हल्का करने की कोशिश करने लगे।
फा-शिएन ने भी अपने सामान को तो फेंक दिया, पर अपनी उन पाण्डुलिपियों और बुद्ध की मूर्तियों को नहीं फेंका, जिन्हें उसने अपनी भारत यात्रा के दौरान संकलित की थी। अंततः तेरह दिनों के बाद आँधी रुकी। उसने समुद्र का वर्णन इस प्रकार किया है-
‘समुद्र असीम है – सूर्य, चाँद या तारों की गति को देखे बिना यह पता लगा पाना असंभव है कि पूर्व किधर है, या पश्चिम किस दिशा में है। अगर बरसात और अंधेरा हो, तो जहाज़ को हवा की रुख में ले जाने के अलावा और कोई चारा नहीं।’
जावा पहुँचने में उसे 90 दिन से भी ज़्यादा लगे । वहाँ वह पाँच महीने के लिए रुका। इसके बाद दूसरे व्यापारी जहाज़ में चढ़कर वह चीन पहुँचा।
चीन आते समय वापिस श्वैन त्सांग को क्या-क्या मिला – श्वैन त्सांग भू-मार्ग से ( उत्तर – पश्चिम और मध्य- एशिया होकर) चीन वापस लौटा। उसने सोने, चाँदी और चंदन की लकड़ी की बनी बुद्ध की मूर्तियाँ तथा 600 से भी ज्यादा पाण्डुलिपियाँ एकत्र की थीं। इन्हें वह लगभग 20 घोड़ों पर लादकर ले गया। पर इसमें से 50 पाण्डुलिपियाँ उस समय खो गईं, जब सिंधु नदी पार करते हुए उसकी नाव उलट गई। अपने जीवन का बाकी हिस्सा उसने बची हुई पाण्डुलिपियों का संस्कृत से चीनी अनुवाद करने में लगा दिया।
नालंदा – शिक्षा का एक विशिष्ट केंद्र – श्वैन त्सांग तथा अन्य तीर्थयात्रियों ने उस समय के सबसे प्रसिद्ध बौद्ध विद्या केंद्र नालंदा (बिहार) में अध्ययन किया। उसने नालंदा के बारे में इस प्रकार लिखा है-
यहाँ के शिक्षक योग्यता तथा बुद्धि में सबसे आगे हैं। बुद्ध के उपदेशों का वह पूरी ईमानदारी से पालन करते हैं। मठ के नियम काफी सख्त हैं, जिन्हें सबको मानना पड़ता है। पूरे दिन वाद-विवाद चलते ही रहते हैं। जिससे युवा और वृद्ध दोनों ही एक-दूसरे की मदद करते हैं। विभिन्न शहरों से विद्वान लोग अपनी शंकाएँ दूर करने यहाँ आते हैं। नए आगन्तुकों से पहले द्वारपाल ही कठिन प्रश्न पूछते हैं। उन्हें अंदर जाने की अनुमति तभी मिलती है, जब वे द्वारपाल को सही उत्तर दे पाते हैं। दस में से सात – आठ सही उत्तर नहीं दे पाते हैं।
भक्ति की शुरुआत – इन्हीं दिनों देवी-देवताओं की पूजा का चलन भी शुरू हुआ। बाद में हिन्दू धर्म की यह प्रमुख पहचान बन गई। इनमें शिव, विष्णु और दुर्गा जैसे देवी – देवता शामिल हैं। इन देवी-देवताओं की पूजा भक्ति परम्परा के माध्यम से की जाती थी।भक्ति उस समय काफी लोकप्रिय परम्परा बन गई। किसी देवी या देवता के प्रति श्रद्धा को ही भक्ति कहा जाता है। भक्ति का पथ सबके लिए खुला था, चाहे वह धनी हो या गरीब, ऊँची जाति का हो या नीची जाति का, स्त्रीहो या पुरुष।
भक्ति मार्ग – भक्ति मार्ग की चर्चा हिन्दुओं के पवित्र ग्रंथ भगवद्गीता में की गई है। भगवद्गीता महाभारत का एक हिस्सा है। इसमें भगवान कृष्ण अपने भक्त और मित्र अर्जुन को सभी धर्मों को छोड़कर उनकी शरण में आने का उपदेश देते हैं। क्योंकि केवल कृष्ण ही अर्जुन को सारी बुराइयों से मुक्ति दिला सकते हैं। पूजा का यह रूप धीरे-धीरे देश के विभिन्न में फ़ैलने लगा। भक्ति मार्ग अपनाने वाले लोग आडंबर के साथ पूजा-पाठ करने के बजाए ईश्वर के प्रति लगन और व्यक्तिगत पूजा पर ज़ोर देते थे।
भक्ति मार्ग अपनाने का मानना – भक्ति मार्ग अपनाने वालों का यह मानना है कि अगर अपने आराध्य देवी या देवता की सच्चे मन से पूजा की जाए, तो वह उसी रूप में दर्शन देंगे, जिसमें भक्त उसे देखना चाहता है। इसलिए आराध्य देवी या देवता मानव के रूप में भी हो सकते हैं या फिर सिंह, पेड़ या अन्य किसी भी रूप में। जैसे-जैसे इस विचार को समाज द्वारा स्वीकृति मिलती गई, कलाकार, देवी-देवताओं की एक से बढ़कर एक खूबसूरत मूर्तियाँ तैयार करने लगे।
भक्ति – भक्ति भज् शब्द से बना है, जिसका अर्थ ‘विभाजित करना या हिस्सेदारी’ होता है। इसका अर्थ यह है कि भक्ति, भगवान और भक्त के बीच परस्पर एक अंतरंग संबंध है। भक्ति, भगवत् या भगवान के प्रति झुकाव है। भगवत्का एक अर्थ यह भी है जो अपने ऐश्वर्य तथा सुख को भक्तों के साथ बाँटता है। यानी भक्त या भागवत् अपने देवी-देवता के भग का हिस्सेदार होता है।
एक भक्त द्वारा लिखी गई एक कविता – अधिकांश भक्ति साहित्य हमें यही बताते हैं कि धन, ऐश्वर्य या ऊँचे पद के ज़रिए कभी ईश्वर से आत्मीयता नहीं बन सकती। करीब 1400 साल पहले शिवभक्त अप्पार द्वारा तमिल में लिखी एक कविता का यह एक अंश है। अप्पार एक वेल्लाल था।
‘नष्ट होते अंगों वाला कुष्ठ रोगी
ब्राह्मणों की नज़र में निचली जाति का व्यक्ति।
कूड़ा करकट बटोर कर अपनी जीविका चलाने वाला इंसान,
अगर ये लोग भी गंगा को अपनी जटाओं में छिपा लेने वाले
शिव के दास बन जाएँ, तो मैं उनकी आराधना करूँगा।
क्योंकि वे मेरे ईश्वर समान हैं।’
मंदिर – देवी-देवताओं का विशेष सम्मान होता था। इसलिए विशेष जगहों पर ही इनकी मूर्तियों को रखा जाता था। इन स्थानों को ही मंदिर कहते हैं।
हिन्दू – ‘हिन्दू’ शब्द ‘इण्डिया’ शब्द की तरह ही सिंधु या इण्डस से निकला है। यह शब्द अरबों तथा ईरानियों द्वारा उन लोगों के लिए उपयोग किया जाता था, जो सिंधु नदी के पूर्व में रहते थे। यही शब्द उनके धार्मिक विश्वास तथा सांस्कृतिक परम्पराओं के लिए भी प्रयुक्त होता था।
कुछ महत्वपूर्ण तिथियाँ
• रेशम बनाने की कला की खोज (लगभग 7000 साल पहले)
• चोल, चेर तथा पांड्य (लगभग 2300 साल पूर्व)
• रोमन साम्राज्य में रेशम की बढ़ती मांग (लगभग 2000 साल पहले)
• कुषाण शासक कनिष्क (लगभग 1900 साल पहले)
• फा-शिएन का भारत आगमन (लगभग 1600 वर्ष पहले)
• श्वैन त्सांग की भारत यात्रा, अप्पार की शिव स्तुति की रचना (लगभग 1400 साल पहले)
प्रश्न 1. व्यापार किसे कहते है
प्रश्न 2. मुवेन्दार का अर्थ क्या होता है?
प्रश्न 3. रास्ता या मार्ग किसे कहते है।
प्रश्न 4. रेशम किसे कहते है।
प्रश्न 5. कुषाण कौन थे।
प्रश्न 6. महायान किसे कहते है।
प्रश्न 7. बोधिसत्व किसे कहते है?
प्रश्न 8. थेरवाद का क्या अर्थ क्या है?
प्रश्न 9. तीर्थयात्री किसे कहते है
प्रश्न 10. मंदिर क्या होता है?
प्रश्न 11. चोल, चेर तथा पांड्य कौन थे?
प्रश्न 12. रेशम मार्ग की कहानी क्या थी?
प्रश्न 13. भक्ति किसे कहते है?
प्रश्न 14. भारत किस चीज (सामान) के व्यापार के लिए प्रसिद्ध था?
प्रश्न 15. चोलों का महत्वपूर्ण सत्ता केंद्र कहाँ था?
प्रश्न 16. पांड्यों की राजधानी कहाँ थी?
प्रश्न 17. सिल्क रूट किसे कहते हैं?
प्रश्न 18. किसके शासन काल में सिल्क रूट की एक शाखा मध्य एशिया से होकर सिंधु नदी के मुहाने के पत्तनों तक जाती थी?
प्रश्न 19. कुषाणों का सबसे प्रसिद्ध राजा कौन था?
प्रश्न 20. भारत की यात्रा पर कौन कौन से चीनी बौद्धयात्री कब कब आए थे?
प्रश्न 21. भक्ति मार्ग की चर्चा हिन्दुओं के किस पवित्र ग्रंथ में की गई है?
प्रश्न 22. रेशम बनाने की तकनीक का सबसे पहले आविष्कार कहाँ और कब हुआ?
प्रश्न 23. बुद्धचरित के रचयिता कवि अश्वघोष किसके दरबार में रहते थे।
प्रश्न 24. सातवाहनों का सबसे प्रमुख राजा कौन था? उनकी माता का क्या नाम था?
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