NCERT Solution Class 6th Social Science (इतिहास) Chapter – 8 गाँव, शहर और व्यापार (Villages, Towns And Trade)
Textbook | NCERT |
Class | 6th |
Subject | इतिहास Social Science |
Chapter | 8th |
Chapter Name | गाँव, शहर और व्यापार (Villages, Towns And Trade) |
Category | Class 6th Social Science (इतिहास) |
Medium | Hindi |
Source | Last Doubt |
NCERT Solution Class 6th Social Science (इतिहास) Chapter – 8 गाँव, शहर और व्यापार (Villages, Towns And Trade) Notes in Hindi लोहे के औजार?, लोहे के औजारों से लाभ?, कृषि पर सिंचाई का प्रभाव?, गांव का समाज, दक्षिण भारतीय गांव?, वेल्लला?, उणवार?, संगम साहित्य?, उत्तर भारतीय गांव?, ग्रामभोजक?, गृहपति?, दास कर्मकार शिव से बड़ा भगवान कौन है?, भगवान से बड़ा कौन है?, पृथ्वी पर पहली महिला कौन है?, मनुष्य का जन्म कितनी बार होता है?, मनुष्य को किसने बनाया?, पहले हिंदू कौन थे?, क्या गौतम बुद्ध हिन्दू थे?, असली हिन्दू कौन है?, कौन सा कर्म करने से स्त्री का जन्म मिलता है?, कुत्ता मरने के बाद कौन सा जन्म लेता है?, हिंदू धर्म में कितने योनि हैं?, आदि के बारे में पढ़ेंगे। |
NCERT Solution Class 6th Social Science (इतिहास) Chapter – 8 गाँव, शहर और व्यापार (Villages, Towns And Trade)
Chapter – 8
गाँव, शहर और व्यापार
Notes
लोहे के औजार और खेती – लोहे का प्रयोग आज एक आम बात है। लोहे की चीजें हमारी रोज़मर्रा की ज़िंदगी का हिस्सा बन गई हैं। इस उपमहाद्वीप में लोहे का प्रयोग लगभग 3000 साल पहले शुरू हुआ। महापाषाण कब्रों में लोहे के औज़ार और हथियार बड़ी संख्या में मिले हैं। करीब 2500 वर्ष पहले लोहे के औज़ारों के बढ़ते उपयोग का प्रमाण मिलता है। इनमें जंगलों को साफ़ करने के लिए कुल्हाड़ियाँ और जुताई के लिए हलों के फाल शामिल हैं।
लोहे के औजारों से लाभ – लोहा पत्थर से हल्का लेकिन मजबूत होता है। लोहे को बड़ी आसानी से मनचाहे आकार में ढ़ाला जा सकता है। पत्थर की तुलना में लोहे से बने हथियार अधिक हल्के और धारदार होते थे। लोहे ने कारीगरों का काम आसान कर दिया। हल में लोहे के फाल के इस्तेमाल से कृषि लायक भूमि का आकार बढ़ाने में काफी मदद मिली। खेती को आसान बनाने के लिए लोहे के कई अन्य हथियार भी बनाये गये, जैसे कि हँसिया, कुल्हाड़ी और कुदाल। इससे पैदावार बढ़ाने में मदद मिली।
कृषि उत्पादन बढ़ाने के लिए उठाए गए कदम सिंचाई – समृद्ध गाँवों के बिना राजाओं तथा उनके राज्यों का बने रहना मुश्किल था। जिस तरह कृषि के विकास में नए औज़ार तथा रोपाई एक महत्वपूर्ण कदम थे, उसी तरह सिंचाई भी काफी उपयोगी साबित हुई। इस समय सिंचाई के लिए नहरें, कुएँ, तालाब तथा कृत्रिम जलाशय बनाए गए।
कृषि पर सिंचाई का प्रभाव – लौह युग की शुरुआत में लोगों ने धान की रोपनी शुरु कर दी थी। इससे चावल की पैदावार बढ़ाने में मदद मिली। लौह युग के लिए धान की रोपनी एक महत्वपूर्ण नई खोज थी। उसी जमाने में लोगों ने सिंचाई के लिए विशेष व्यवस्था बनानी शुरु कर दी थी। सिंचाई के लिए नहर, कुंए और तालाब बनवाये गये। इससे कृषि पैदावार बढ़ाने में काफी मदद मिली। अब राज्यों का आकार बड़ा होने लगा था।
राजा को अब लोगों से अधिक कर वसूलने की जरूरर पड़ने लगी थी। कर का सबसे बड़ा भाग किसानों द्वारा दिया जाता था। इसलिए कृषि पैदावार बढ़ाने के लिए कुछ न कुछ तरीका निकालना जरूरी था। इसलिए राजाओं ने नहरें, कुंए और तालाब आदि बनवाने की दिशा में काम किये। इससे किसानों को काफी मदद मिली। इससे राजा के कर राजस्व में भी वृद्धि हुई।
गांव का समाज (Village Society) – उस जमाने के गांव के सामाजिक ढांचे को समझने के लिए दो उदाहरण लेते हैं। एक उदाहरण एक दक्षिण भारतीय गांव का है तो दूसरा एक उत्तर भारतीय गांव का है।
दक्षिण भारतीय गांव (South Indian Village) – दक्षिण भारत के गांव के लोगों को निम्न वर्गों में बाँटा गया था-
1. वेल्लला – बड़े भू-स्वामियों को वेल्लोर कहा जाता था।
2. उणवार – साधारण हलवाहे को उणवार कहा जाता था। कडैसियार और आदी मई: भूमिहीन मजदूरों को कडैसियार और दास को अदिमई कहते थे।
प्राचीनतम तमिल रचनाएँ – तमिल की प्राचीनतम रचनाओं को संगम साहित्य कहते हैं। इनकी रचना करीब 2300 साल पहले की गई। इन्हें संगम इसलिए कहा जाता है क्योंकि मदुरै के कवियों के सम्मेलनों में इनका संकलन किया जाता था। गाँव में रहने वालों के जिन तमिल नामों का उल्लेख यहाँ किया गया है, वे संगम साहित्य में पाए जाते हैं।
एक निर्धन की चतुराई – एक शहर में एक गरीब युवक रहता था। उसके पास एक मरे चूहे के अलावा कुछ नहीं था। उसने उस चूहे को एक सिक्के में एक भोजनालय वाले की बिल्ली के लिए बेच दिया। फिर एक दिन बड़ी जोर की आँधी आई। राजा का बगीचा टूटी टहनियों और पत्तों से भर गया। उनका माली इसे साफ़ करने की बात से परेशान हो उठा। युवक ने माली से कहा कि अगर लकड़ियाँ और पत्ते उसे मिल जाएँ तो वह बगीचे की सफ़ाई कर सकता है। माली तुरंत मान गया।
युवक ने पास खेल रहे बच्चों को यह कह कर इकट्ठा कर लिया कि प्रत्येक टहनी और पत्ते के बदले में उन्हें एक-एक मिठाई मिलेगी। देखते ही देखते उन्होंने बगीचे से एक-एक तिनका चुनकर गेट के पास इकट्ठा कर दिया। तभी उधर से राजा का कुम्हार बर्तनों को पकाने के लिए ईंधन की तलाश में गुजरा। उसने पूरे ढेर को खरीद लिया। इस तरह युवक के पास कुछ और पैसे हो गए।
अब उस युवक ने एक और योजना बनाई। एक बड़े बर्तन में पानी भरकर वह नगर के द्वार पर गया और वहाँ उसने घास काटने वाले 500 लोगों को पानी पिलाया। खुश होकर उन लोगों ने कहा, “तुमने हमारे लिए इतना अच्छा काम किया बताओ अब हम तुम्हारे लिए क्या कर सकते हैं?” उसने कहा, “मैं आपको यह तब बताऊँगा जब मुझे आपकी सहायता की ज़रूरत होगी।” उसके बाद उसने एक व्यापारी से दोस्ती की। एक दिन उस व्यापारी ने बताया, “कल एक घोड़े का व्यापारी 500 घोड़ों के साथ शहर में आ रहा है।”
यह सुनकर उस युवक ने उन घास काटने वालों के पास जाकर कहा, “कृपया, तुम सब एक-एक घास का गट्टर मुझे दो और अपनी घास तब तक मत बेचो, जब तक मेरी न बिक जाए।” उन्होंने उसे घासों के 500 गट्ठर दे दिए। जब घोड़े के व्यापारी को कहीं भी घास न मिली तो उसने इस युवक की घास एक हज़ार सिक्के में खरीद ली।
बेरिगाज़ा (भरूच का यूनानी नाम) की कहानी – बेरिगाजा की संकरी खाड़ी में समुद्र से आने वालों के लिए नाव चला पाना बहुत मुश्किल होता है। राजा के द्वारा नियुक्त कुशल और अनुभवी स्थानीय मछुआरे ही यहाँ जहाज़ ला सकते थे। बेरिगाजा में शराब, ताँबा, टिन, सीसा, मूँगा, पुखराज, कपड़े, सोने और चाँदी के सिक्कों का आयात होता था।
हिमालय की जड़ी-बूटियाँ, हाथी-दाँत, गोमेद, कार्नीलियन, सूती कपड़ा, रेशम तथा इत्र यहाँ से निर्यात किए जाते थे। राजा के लिए व्यापारी विशेष उपहार लाते थे। इनमें चाँदी के बर्तन, गायक-किशोर, सुंदर औरतें, अच्छी शराब तथा उत्कृष्ट महीन कपड़े शामिल थे।
संगम साहित्य (Sangam literature) – तमिल भाषा में आज से 2300 वर्ष पहले रची गई रचनाओं को संगम साहित्य का नाम दिया गया है। इनका संकलन मदुरै में होने वाले कवि सम्मेलनों में किया जाता था, इसलिए इन्हें संगम का नाम दिया गया है। संगम और सम्मेलन एक दूसरे के पर्यायवाची हैं। संगम साहित्य से उस जमाने के दक्षिण भारतीय गांवों की सामाजिक रचना का पता चलता है।
ग्राम-भोजक (Village Eater) – गांव के प्रधान (मुखिया) को ग्राम भोजक कहते थे। ग्राम भोजक का पद आनुवंशिक था, यानि एक ही परिवार के लोग कई पीढ़ियों तक इस पद पर बने रहते थे। ग्रामभोजक ही गांव का सबसे बड़ा भूमिपति होता था। वह खेतों में काम करवाने के लिए दासों और मजदूरों को रखता था। वह बहुत ही शक्तिशाली होता था। उसे किसानों से कर वसूलने का अधिकार भी मिला हुआ था। वह जज का काम भी करता और कभी कभी पुलिस का भी।
आहत सिक्के – आहत सिक्के सामान्यत: आयताकार और कभी-कभी वर्गाकार या गोल होते थे। ये या तो धातु की चादर को काटकर या धातु के चपटे गोलिकाओं से बनाये जाते थे। इन सिक्कों पर कुछ लिखा हुआ नहीं था, बल्कि इन पर कुछ चिन्ह ठप्पे से बनाये जाते थे। इसीलिए ये आहत सिक्के कहलाए।
नगर: अनेक गतिविधियों के केंद्र – भूमिहीन मजदूरों को दास कर्मकार कहते थे। ये किसानों के खेतों में काम करते थे। गांवों में शिल्पकार भी रहते थे, जैसे कि बढ़ई, कुम्हार, बुनकर, आदि। गांव ही भोजन उत्पादन के केंद्र हुआ करते थे। नगर के लोगों के लिए अनाज और अन्य कृषि उत्पाद गांव से ही आते थे।
व्यापार और व्यापारी – हमने उत्तरी काले पॉलिश वाले बर्तनों के बारे में पढ़ा है। ये खूबसूरत बर्तन इस उपमहाद्वीप के अनेक पुरास्थलों से मिले हैं। सवाल उठता है कि इन जगहों पर ये बर्तन कैसे पहुंचे होंगे? ऐसा अनुमान लगाया जाता है कि जहाँ ये बनते थे, वहाँ से व्यापारी इन्हें ले जाकर अलग-अलग जगहों पर बेचते थे।
दक्षिण भारत सोना, मसाले खासतौर पर काली मिर्च तथा कीमती पत्थरों के लिए प्रसिद्ध था। काली मिर्च की रोमन साम्राज्य में इतनी अधिक मांग थी कि इसे काले सोने के नाम से बुलाते थे। व्यापारी इन सामानों को समुद्री जहाजों और सड़कों के रास्ते से रोमन पहुँचाते थे। दक्षिण भारत में ऐसे अनेक रोमन सोने के सिक्के मिले हैं जिससे यह अंदाजा लगाया जाता है कि उन दिनों रोम के साथ बहुत अच्छा व्यापार चल रहा था।
व्यापारियों ने कई समुद्री रास्ते खोज निकाले थे। ये व्यापारी मानसूनी हवा का फायदा उठाकर अपनी यात्रा जल्दी पूरी कर लेते थे। वे आफ्रीका या अरब के पूर्वी तट से इस उपमहाद्वीप के पश्चिमी तट पर पहुँचने के लिए दक्षिण-पश्चिमी मानसून का सहारा लेना पसंद करते थे। इन लंबी यात्राओं के लिए मजबूत जहाजों का निर्माण किया जाता था।
व्यापार के प्रमाण हमें संगम कविताओं से मिलते हैं।
सिक्के – उस समय सिक्कों का भी उपयोग किया जाता था। चांदी या ताँबे के सिक्कों पर विभिन्न आकृतियों को आहत कर बनाये जाने के कारण इन्हे आहत सिक्का कहा जाता था।
उत्तरी काले चमके पात्र (NBPW) – ये एक कठोर, चाक निर्मित, धातु की तरह दिखने वाले तथा चमकदार काली सतह वाले पात्र हैं। इसे बनाने के लिए कुम्हार मिट्टी के बर्तनों को भट्टों पर उच्च तापमान पर रखते थे जिसके परिणामस्वरूप इन बर्तनों की बाहरी सतह काली हो जाती थी। इन पर एक पतली काली लेप भी लगायी जाती थी जो इस बर्तन को शीशे जैसी चमक प्रदान करता था।
शिल्प तथा शिल्पकार – पुरास्थलों से शिल्पों के नमूने मिले हैं। इनमें मिट्टी के बहुत ही पतले और सुंदर बर्तन मिले हैं, जिन्हें उत्तरी काले चमकीले पात्र कहा जाता है क्योंकि ये ज़्यादातर उपमहाद्वीप के उत्तरी भाग में मिले हैं।
सूत कातने और बुनने के नियम – ये नियम अर्थशास्त्र के हैं। इसमें वर्णन किया गया है कि किस प्रकार एक विशेष पदाधिकारी की देखरेख में कारखानों में सूत की कताई और बुनाई की जाती थी।
ऊन, पेड़ों की छाल, कपास, पटुआ तथा सन को तैयार करने के काम में विधवाओं, सक्षम-अक्षम महिलाओं, भिक्खुणियों, वृद्धा वेश्याओं, राजा की अवकाशप्राप्त दासियों, सेविकाओं और अवकाशप्राप्त देवदासियों को लगाया जा सकता है।
इन्हें इनके काम के और गुणवत्ता के अनुसार पारिश्रमिक देना चाहिए। जिन महिलाओं को बाहर निकलने की अनुमति नहीं है, वे अपनी दासियों को भेजकर कच्चे माल को मंगवा सकती हैं और फिर तैयार माल उन्हें भिजवा सकती हैं।
वे औरतें, जो कारखाने तक जा सकती हैं, उन्हें अपना माल कारखाने तक तड़के ले जाना पड़ता था, जहाँ उन्हें पारिश्रमिक मिलता था। इस समय माल को अच्छी तरह जाँचने के लिए रोशनी रहती है। अगर निरीक्षक उस औरत की तरफ़ देखता है या इधर-उधर की बातें करता है, तो उसे सजा मिलनी चाहिए।
अगर औरत ने अपना काम पूरा नहीं किया, तो उसे जुर्माना देना होगा, इसके लिए उसका अंगूठा भी काटा जा सकता है।
सूक्ष्म निरीक्षण: अरिकामेडु – लगभग 2200 से 1900 साल पहले अरिकामेडु एक पत्तन था, यहाँ दूर-दूर से आए जहाज़ों से सामान उतारे जाते थे। यहाँ ईंटों से बना एक ढाँचा मिला है जो संभवतः गोदाम रहा हो। यहाँ भूमध्य-सागरीय क्षेत्र के एंफोरा जैसे पात्र मिले हैं। इनमें शराब या तेल जैसे तरल पदार्थ रखे जा सकते थे। इनमें दोनों तरफ़ से पकड़ने के लिए हत्थे लगे हैं। साथ ही यहाँ ‘एरेटाइन’ जैसे मुहर लगे लाल-चमकदार बर्तन भी मिले हैं। इन्हें इटली के एक शहर के नाम पर ‘एरेटाइन’ पात्र के नाम से जाना जाता है।
समुद्र तटों से लगे राज्य – इस उपमहाद्वीप के दक्षिणी भाग में बड़ा तटीय प्रदेश है। इनमें बहुत-से पहाड़, पठार और नदी के मैदान हैं। नदियों के मैदानी इलाकों में कावेरी का मैदान सबसे उपजाऊ है। मैदानी इलाकों तथा तटीय इलाकों के सरदारों और राजाओं के पास धीरे-धीरे काफी सम्पत्ति और शक्ति हो गई। संगम कविताओं में मुवेन्दार की चर्चा मिलती है। यह तमिल शब्द है। जिसका अर्थ 3 मुखिया है। इसका प्रयोग 3 शासक परिवारों के लिए किया गया है। ये थे- चोल, चेर तथा पांड्य जो करीब 2300 वर्ष पूर्व दक्षिण भारत में काफी शक्तिशाली माने जाते थे।
इन तीनों मुखियाओं के अपने-अपने दो-दो सत्ता केन्द्र थे। इनमें से एक तटीय हिस्से में और दूसरा अंदरूनी हिस्से में था। इस तरह छः केन्द्रों में से दो बहुत महत्वपूर्ण थे। एक था चोलों का पत्तन पुहार या कावेरीपत्तनम और दूसरा पांड्यों की राजधानी मदुरै।
ये तीनों मुखिया (चोल, चेर तथा पांड्य) लोगों से नियमित कर के बजाय उपहारों की मांग करते थे। कभी-कभी सैनिक अभियानों के दौरान आसपास के इलाकों से शुल्क वसूल कर लाते थे। इनमें से कुछ धन वे अपने पास रख लेते थे, बाकी अपने समर्थकों, नाते रिश्तेदारों सिपाहियों तथा कवियों के बीच बाँट देते थे। अनेक संगम कवियों ने उन मुखियाओं की प्रशंसा में कविताएँ लिखी हैं जो उन्हें कीमती जवाहरात, सोने, घोड़े, हाथी, रथ या सुंदर कपड़े दिया करते थे।
इसके लगभग 200 वर्ष बाद (2100 वर्ष पूर्व) पश्चिम भारत में सातवाहन नामक राजवंश का प्रभाव बढ़ गया। शातवाहनों का सबसे प्रमुख राजा गौतमीपुत्र श्री सातकर्णी था। उसके बारे में हमें उसकी माँ, गौतमी बलश्री के एक अभिलेख से पता चलता है। वह और अन्य सभी सातवाहन शासक ‘दक्षिणापथ के स्वामी’ कहे जाते थे। दक्षिणापथ का शाब्दिक अर्थ दक्षिण की ओर जाने वाला रास्ता होता है। पूरे क्षेत्र के लिए यही नाम प्रचलित था।
भिलेखित मिट्टी के बर्तन – कई बर्तनों पर ब्राह्मी लिपि में अभिलेख मिले हैं। प्रारंभ में तमिल भाषा के लिए इसी लिपि का प्रयोग किया जाता था। इसीलिए इन्हें तमिल ब्राह्मी अभिलेख भी कहा जाता है।
कुछ महत्वपूर्ण तिथियाँ
• उपमहाद्वीप में लोहे के प्रयोग की शुरुआत (करीब 3000 साल पहले)
• लोहे के प्रयोग में बढ़ोतरी, नगर, आहत सिक्के (करीब 2500 साल पहले)
• संगम साहित्य की रचना की शुरुआत (करीब 2300 साल पहले)
• अरिकामेडु का पत्तन (करीब 2200 तथा 1900 साल पहले)
प्रश्न 1. नगर किसे कहते है?
प्रश्न 2. पत्तन से आप क्या समझते है?
प्रश्न 3. दास कर्मकार कहाँ काम करते थे?
प्रश्न 4. दास कर्मकार उदाहरण क्या है?
प्रश्न 5. भिलेखित मिट्टी के बर्तनसे आप क्या समझते है?
प्रश्न 6. दक्षिण भारत के गांव के लोगों को निम्न वर्गों में बाँटा गया था-
2. उणवार – साधारण हलवाहे को उणवार कहा जाता था। कडैसियार और आदी मई: भूमिहीन मजदूरों को कडैसियार और दास को अदिमई कहते थे।
प्रश्न 7. शिल्प तथा शिल्पकार किसे कहा जाता है?
प्रश्न 8. लोहा किसे मिलकर बना होता है?
प्रश्न 9. सिंचाई से आप क्या समझते हैं?
प्रश्न 10. लोहे के प्रयोग की शुरुआत कब हुई?
प्रश्न 11. संगम साहित्य की रचना की शुरुआत कब हुई?
प्रश्न 12. सूक्ष्म निरीक्षण: अरिकामेडु पत्तन कब था?
प्रश्न 13. यातायात और व्यापार के दो मुख्य रास्ता कोन सा है?
प्रश्न 14. खेतों के सफ़ेद धान गाड़ियों पर लादे जा रहे हैं ये कोनसा कबिता है?
प्रश्न 15. तमिल की प्राचीनतम रचनाएं कहलाती है ?
प्रश्न 16. सबसे पुराने सिक्कों को क्या कहा जाता है ?
प्रश्न 17. वलयकूप किसके लिए प्रयुक्त था ?
प्रश्न 18. 2500 वर्ष पहले प्रयोग किए जाने वाले लोहे के औजारों में क्या शामिल थे ?
प्रश्न 19. महापाषाण काल में उत्तर भारत में कपड़ा उत्पादन का मुख्य केन्द्र था ?
प्रश्न 20. लोहे का प्रयोग कब आरंभ हुआ ?
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