NCERT Solution Class 6th Social Science (इतिहास) Chapter – 10 इमारतें, चित्र तथा किताबें ( Buildings, Pictures & Books)
Textbook | NCERT |
Class | 6th |
Subject | इतिहास (Social Science) |
Chapter | 10th |
Chapter Name | इमारतें, चित्र तथा किताबें (Buildings, Pictures & Books) |
Geography | Class 6th Social Science (इतिहास) |
Medium | Hindi |
Source | Last Doubt |
Class 6th Social Science इतिहास Chapter – 10 इमारतें, चित्र तथा किताबें Notes in Hindi दिल्ली का लौह स्तंभ, स्तूप, हिंदू मंदिर की संरचना, स्तूप या मंदिर बनाने का काम, चित्रकला, किताबें, विज्ञान, ईंटो और पथरों की इमारतें, सिलप्पदिकारम से लिया गया एक वर्णन, मेघदूत का एक श्लोक, पुरानी कहानियों का संकलन तथा संरक्षण, आम लोगों द्वारा कही जाने वाली कहानियाँ, बंदर राजा की कहानी, शून्य, कुछ महत्वपूर्ण तिथियाँ, स्तूप निर्माण की शुरुआत, अमरावती, कालिदास, लौह स्तंभ, भितरगाँव का मंदिर, दुर्गा मंदिर, अजंता की चित्रकारी, आर्यभट्ट, महरौली का लौह स्तम्भ कहाँ स्थित है?, प्रदक्षिणापथ किसे कहते हैं?,। आदि के बारे में पढ़ेंगे। |
NCERT Solution Class 6th Social Science (इतिहास) Chapter – 10 इमारतें, चित्र तथा किताबें (Buildings, Pictures & Books)
Chapter – 10
इमारतें, चित्र तथा किताबें
Notes
लौह स्तंभ – जब आप कुतुबमीनार घूमने जाएंगे तो आपको इसके नजदीक एक लौह स्तंभ दिखेगा। यह कोई साधारण स्तंभ नहीं है। यह स्तंभ पिछले 1500 वर्षों से वहाँ खड़ा है और इसमें आज तक जंग नहीं लगा है। इससे पता चलता है कि उस जमाने में धातुशोधन की तकनीक कितनी विकसित थी। इस स्तंभ पर एक अभिलेख है जिससे पता चलता है कि इसे गुप्त साम्राज्य के चंद्रगुप्त के काल में बनवाया गया था।
ईंटो और पथरों की इमारतें – इसे धातु-मंजूषा कहते हैं। प्रारंभिक स्तूप, धातु-मंजूषा के ऊपर रखा मिट्टी का टीला होता था। बाद में टीले को ईंटों से ढक दिया गया और बाद के काल में उस गुम्बदनुमा ढाँचे को तराशे हुए पत्थरों से ढक दिया गया। प्रायः स्तूपों के चारों ओर परिक्रमा करने के लिए एक वृत्ताकार पथ बना होता था, जिसे प्रदक्षिणा पथ कहते हैं। इस रास्ते को रेलिंग से घेर दिया जाता था जिसे वेदिका कहते हैं। वेदिका में प्रवेशद्वार बने होते थे। रेलिंग तथा तोरण प्रायः मूर्तिकला की सुंदर कलाकृतियों से सजे होते थे।
हिंदू मंदिर की संरचना – हिंदू मंदिर के सबसे महत्वपूर्ण भाग को गर्भ गृह कहते हैं। यहीं पर मुख्य देवी या देवता की मूर्ति रखी जाती है। इसी स्थान पर पुरोहित अनुष्ठान करते हैं और लोग पूजा करते हैं। गर्भ गृह के ऊपर अक्सर एक ऊँचा स्तंभ (टावर) बना दिया जाता था। इस टावर को शिखर कहते हैं। शिखर से गर्भ गृह के महत्व का पता चलता है।
अधिकतर मंदिरों में एक बड़ा सा हॉल होता था जिसे मंडप कहते हैं। मंडपम में ढ़ेर सारे लोग इकट्ठा हो सकते हैं। शुरु शुरु में मंदिरों को पत्थर और ईंटों से बनाया जाता था। लेकिन बाद में कई ऐसे मंदिर बने जिन्हें केवल पत्थरों से बनाया गया। कुछ मंदिरों को तो केवल एक ही विशाल पत्थर को तराशकर बनाया गया, जैसे कि महाबलिपुरम का मंदिर।
स्तूप (Stupa) – ‘स्तूप’ शब्द का मतलब होता है टीला। स्तूपों का निर्माण अक्सर बुद्ध के अनुयायियों द्वारा करवाया गया था। स्तूप की संरचना में निम्नलिखित विशेषताएँ होती हैं। स्तूप के बीच में अक्सर एक बक्सा रखा जाता है। इस बक्से में बुद्ध या उनके शिष्यों के शरीर के अवशेष रखे जाते थे। उस बक्से को मिट्टी से ढ़क दिया जाता था। उसके बाद इसे कच्ची ईंटों से और फिर पकी ईंटों से ढ़का जाता था। आखिर में कभी कभी इसे पत्थर की सिल्लियों से ढ़का जाता था जिसपर नक्काशी की जाती थी।
स्तूप के चारों ओर एक प्रदक्षिणा मार्ग बनाया जाता था। बुद्ध के भक्त इस मार्ग पर घड़ी की सुई की दिशा में प्रदक्षिणा करते हैं। प्रदक्षिणा मार्ग के चारों ओर रेलिंग से घेर दिया जाता था, जिसे वेदिका कहते हैं। वेदिका में एक प्रवेशद्वार भी बना दिया जाता था। रेलिंग और प्रवेश द्वार पर सुंदर नक्काशी की जाती है। स्तूप के बेहतरीन संरचना और उस पर की गई सुंदर नक्काशी से उस जमाने के वास्तुशिल्प का अंदाजा मिलता है।
स्तूप या मंदिर बनाने का काम कैसे शुरू होता था?
किसी मंदिर या स्तूप को बनाना बहुत महंगा पड़ता था। इसके लिए धन जुटाने का काम बहुत ही महत्वपूर्ण होता होगा। यह धन अक्सर राजा या रानी द्वारा दिया जाता था। धन की व्यवस्था हो जाने के बाद अच्छी किस्म के पत्थरों को खोजा जाता था। फिर उन पत्थरों को खोदने के बाद निर्माण स्थल पर पहुँचाया जाता था।
निर्माण स्थल पर पत्थरों को तराशकर खंभे, वाल पैनल, छत के पैनल और फर्श की टाइलें बनाई जाती थीं। पत्थर के बड़े टुकड़े बहुत भारी होते थे। इसलिए उन्हें किसी जगह पर पहुँचाने के लिए खास व्यवस्था करनी पड़ती थी। कई बार मंदिर निर्माण के लिए अन्य लोग भी दान करते थे। उदाहरण: व्यापारी, किसान, फूल विक्रेता, आदि।
चित्रकला (Drawing) – महाराष्ट्र में स्थित अजंता की गुफाओं की चित्रकला बहुत मशहूर हैं। आज भी इन चित्रों के रंग चमकदार और चटख लगते हैं। किसी को भी देखकर आश्चर्य होता है कि इन अंधेरी गुफाओं में चित्रकारों ने अपना काम कैसे किया होगा। दूसरी बड़ी बात ये है कि उन कलाकारों का नाम कोई भी नहीं जानता है।
पुस्तकों की दुनिया
• लगभग 1800 वर्ष पूर्व एक प्रसिद्ध तमिल महाकाव्य सिलप्पदिकारम की रचना इलांगो कवि ने की। इसमें कोवलन नाम के व्यापारी की कहानी है जो पुहार में रहता था।
• एक और तमिल महाकाव्य, मणिमेखलई को लगभग 1400 वर्ष पूर्व तमिल के एक व्यापारी सीतलै सत्तनार द्वारा लिखा गया। इसमें कोवलन तथा माधवी की बेटी की कहानी है।
• प्रसिद्ध महाकाव्य मेघदूतम् कालिदास द्वारा रचित है। इसमें एक विरही प्रेमी बरसात के बादल को अपना संदेशवाहक बनाने की कल्पना करता है कालिदास अपनी रचनाएँ संस्कृत में लिखते थे।
• प्रसिद्ध संस्कृत महाकाव्य ‘रामायण’ की रचनाकार वाल्मीकि है। इसमें कोशल के राजकुमार राम की कथा वर्णित है।
किताबें (Books) – यह वह समय था जब भारत के कुछ बेहतरीन महाकाव्यों की रचना हुई थी। जो साहित्यिक किताब हजारों पन्नों में रहती है उसे महाकाव्य कहते हैं। लगभग 1800 वर्ष पहले इलांगो नामक कवि ने मशहूर तमिल महाकाव्य सिलप्पदिकारम की रचना की थी। सत्तनार ने तमिल महाकाव्य मणिमेकलई की रचना लगभग 1400 वर्ष पहले की थी।
कालिदास ने कई महाकाव्यों और नाटकों की रचना की। इसी काल में पुराणों की रचना हुई थी। महिलाओं और शूद्रों को भी पुराण पढ़ने की अनुमति थी। पुराणों को सरल संस्कृत में लिखा गया था। इसी समय में महाभारत और रामायण की रचना हुई थी। महाभारत को वेदव्यास ने और रामायण को वाल्मीकि ने लिखा था। आम लोगों की कई कहानियों को संकलित करके पुस्तक का रूप दिया गया। जातक कथाएँ और पंचतंत्र ऐसी ही किताबें हैं।
सिलप्पदिकारम से लिया गया एक वर्णन – यहाँ कवि ने कन्नगी के दुःख का इस तरह वर्णन किया है:“ओ मेरा दुःख तो देखो, तुम मुझे साँत्वना तक नहीं दे सकते। क्या यह सही है कि विशुद्ध सोने से भी सुंदर तुम्हारा शरीर बिना धुला, धूल से सना यूँ ही पड़ा है? यह कहाँ का न्याय है कि गोधूलि की इस स्वर्णिम आभा में फूलमाला से ढके सुन्दर वक्षःस्थल वाले तुम ज़मीन पर गिरे पड़े हो। मैं अकेली, असहाय और हताश होकर खड़ी हूँ। क्या ईश्वर नहीं है? क्या इस देश में ईश्वर नहीं हैं? पर क्या उस स्थान पर ईश्वर रह सकते हैं जहाँ के राजा की तलवार निर्दोष नवागंतुक के प्राण ले लेती है? क्या ईश्वर नहीं है?”
मेघदूत का एक श्लोक – यहाँ उनकी सबसे प्रसिद्ध रचना मेघदूत से एक अंश दिया गया है। यहाँ एक विरही प्रेमी बरसात के बादल को अपना संदेशवाहक बनाने की कल्पना करता है। देखो इसमें किस तरह कवि ने बादलों को उत्तर की ओर ले जाती ठंडी हवा का वर्णन किया है-
“तुम्हारे बौछारों से मुलायम हो उठी मिट्टी की भीनी खुशबू से भरे,
हाथियों की सांस में बसी
जंगली गूलर को पकाने वाली,
शीतल बयार तुम्हारे साथ धीरे-धीरे बहेगी।”
पुरानी कहानियों का संकलन तथा संरक्षण – दो संस्कृत महाकाव्य महाभारत और रामायण लंबे अर्से से लोकप्रिय रहे हैं। तुममें से भी कुछ बच्चे इन कहानियों से परिचित होंगे।
महाभारत – कौरवों और पांडवों के बीच युद्ध की कहानी है। इस युद्ध का उद्देश्य पुरु-वंश की राजधानी हस्तिनापुर की गद्दी प्राप्त करना था। यह कहानी तो बहुत ही पुरानी है, पर आज इसे हम जिस रूप में जानते हैं, वह करीब 1500 साल पहले लिखी गई। माना जाता है कि पुराणों और महाभारत दोनों को ही ‘व्यास’ नाम के ऋषि ने संकलित किया था। महाभारत में ही भगवद गीता भी है।
रामायण – कोसल के राजकुमार राम के बारे में है। उनके पिता ने उन्हें वनवास दे दिया था। वन में उनकी पत्नी सीता का लंका के राजा रावण ने अपहरण कर लिया था। सीता को वापस पाने के लिए राम को लड़ाई लड़नी पड़ी। वे विजयी होकर कोसल की राजधानी अयोध्या लौटे। महाभारत की तरह ही रामायण भी एक प्राचीन कहानी है, जिसे बाद में लिखित रूप दिया गया। संस्कृत रामायण के लेखक ‘वाल्मीकि’ माने जाते हैं।
आम लोगों द्वारा कही जाने वाली कहानियाँ – आम लोग भी कहानियाँ कहते थे, कविताओं और गीतों की रचना करते थे, गाने गाते थे, नाचते थे और नाटकों को खेलते थे। इनमें से कुछ तो इस समय के आस-पास जातक और पंचतंत्र की कहानियों के रूप में लिखकर सुरक्षित कर लिए गए। जातक कथाएँ तो अक्सर स्तूपों की रेलिंगों तथा अजंता के चित्रों में दर्शायी जाती थीं।
विज्ञान की पुस्तकें – आर्यभट एक गणितज्ञ और ज्योति षशास्त्री थे। उनकी पुस्तक आर्यभटिय में गणित और ज्योतिष के कई सिद्धांत हैं। उन्होंने गणित और विज्ञान के क्षेत्र में महत्वपूर्ण योगदान दिया। वह उन अग्रणी वैज्ञानिकों में से थे जिन्होंने बताया कि पृथ्वी अपनी धुरी पर घूमते है जिसके कारण दिन और रात होते हैं। उन्होंने ग्रहणों का सही वैज्ञानिक कारण बताया।
आर्यभट ने वृत्त की परिधि ज्ञात करने का सही तरीका भी निकाला। यह विधि आज भी इस्तेमाल होती है। इस समय की एक और महत्वपूर्ण खोज है शून्य की खोज। शून्य की खोज के बाद ही दशमलव प्रणाली का विकास संभव हो पाया। दशमल प्रणाली अरबी देशों से होते हुए यूरोप तक पहुँचा। इसलिए इसे अरबी संख्या या हिंदू-अरबी संख्या कहते हैं।
शून्य का विस्तार – अंकों का प्रयोग पहले से होता रहा था, पर अब भारत के गणितज्ञों ने शून्य के लिए एक नए चिह्न का आविष्कार किया। गिनती की यह पद्धति अरबों द्वारा अपनाई गई और तब यूरोप में भी फैल गई। आज भी यह पूरी दुनिया में प्रयोग की जाती है। रोम के निवासी शून्य का प्रयोग किए बगैर गिनती करते थे।
आयुर्वेद – आयुर्वेद चिकित्सा विज्ञान की एक विख्यात पद्धति है जो प्राचीन भारत में विकसित हुई। प्राचीन भारत में आयुर्वेद के दो प्रसिद्ध चिकित्सक थे- चरक (प्रथम – द्वितीय शताब्दी ईस्वी) और सुश्रुत (चौथी शताब्दी ईस्वी)। चरक द्वारा रचित चरकसंहिता औषधिशास्त्र की एक उल्लेखनीय पुस्तक है। अपनी रचना सुश्रुतसंहिता में सुश्रुत ने शल्य चिकित्सा की विधियों का विस्तृत वर्णन किया है।
कुछ महत्वपूर्ण तिथियाँ
• स्तूप निर्माण की शुरुआत (2300 साल पहले)
• अमरावती (2000 साल पहले)
• कालिदास (1600 साल पहले)
• लौह स्तंभ, भितरगाँव का मंदिर, अजंता की चित्रकारी, आर्यभट्ट (1500 साल पहले)
• दुर्गा मंदिर (1400 साल पहले)
प्रश्न 1. कुतुबमीनार का निर्माण कब हुआ था?
प्रश्न 2. प्रदक्षिणा पथ किसे कहते है?
प्रश्न 3. कुतुबमीनार के पास जो लौह-स्तम्भ है, उसे किस शासक ने बनवाया था?
प्रश्न 4. एक ऐसे मंदिर का नाम बताओ जो एक ही पत्थर को तराश कर बनाया गया है?
प्रश्न 5. प्रसिद्ध तमिल महाकाव्य सिलप्पदिकारम की रचना किसने की?
प्रश्न 6. पुराण और महाभारत को किसने संकलित किया?
प्रश्न 7. आर्यभट्टीयम नामक किताब कसने लिखी?
प्रश्न 8. शून्य की खोज किसने की?
प्रश्न 9. कागज का आविष्कार कब और किसने किया?
प्रश्न 10. आम लोगों द्वारा कही कहानियों को किस किताब में संग्रहित किया गया है?
प्रश्न 12. वेदिका किसे कहते हैं?
प्रश्न 12. प्रदक्षिणा पथ किसे कहते हैं?
प्रश्न 13. गर्भ गृह किसे कहते हैं?
प्रश्न 14. महाकाव्य किसे कहते हैं?
प्रश्न 15. स्तूप निर्माण करने शुरुआत कब हुई?
प्रश्न 16. महाभारत और रामायण की रचना किस भाषा में की गई?
प्रश्न 17. मण्डप किसे कहते थे?
प्रश्न 18. सांची स्तूप का निर्माण किसने करवाया था?
प्रश्न 19. सांची स्तूप किस राज्य में स्थित है?
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