NCERT Solutions Class 12th History (Part – 2) Chapter – 5 यात्रियों के नजरिए (Through the eyes of Travellers) Question & Answer In Hindi

NCERT Solutions Class 12th History (Part – 2) Chapter – 5 यात्रियों के नजरिए (Through the eyes of Travellers)

TextbookNCERT
Class 12th
Subject History (Part – 2)
Chapter5th
Chapter Nameयात्रियों के नजरिए (Through the eyes of Travellers)
CategoryClass 12th History
Medium Hindi
SourceLast Doubt

Class 12 History (Part – 2) Chapter – 5 यात्रियों के नजरिये (Through the Eyes of Travellers) Question & Answer In Hindi इस अध्याय में हम विभिन्न लोगों द्वारा यात्रा करने का उदेश्य, प्राचीन दौर में यात्राएं करने की समस्याएं, भारत की यात्रा करने वाले मुख्य यात्री, मार्को पोलो, निकितिन, सायदि अली रेइस, फादर मांसरेत, पीटर मुंडी, अब्दुर रज्जाक, शेख आली हाजिन, अल-बिरूनी, अल-बिरूनी का जीवन, अल-बिरूनी का भारत आना, किताब (उल –हिन्द), इब्न बतूता, फ्रांस्वा बर्नियर, इत्यादि के बारे में पढ़ेंगे।

NCERT Solution Class 12th History (Part – 2) Chapter – 5 यात्रियों के नजरिए (Through the eyes of Travellers)

Chapter – 5

यात्रियों के नजरिए 

प्रश्न – उत्तर

अभ्यास -प्रश्न उत्तर

प्रश्न 1. ‘किताब-उल-हिन्द’ पर एक लेख लिखिए।
उत्तर – अरबी में लिखी गई अल-बिरूनी की कृति ‘किताब-उल-हिन्द’ की भाषा सरल और स्पष्ट है। यह एक विस्तृत ग्रंथ है जो धर्म और दर्शन, त्योहारों, खगोल-विज्ञान, कीमिया, रीति-रिवाजों तथा प्रथाओं, सामाजिक-जीवन, भार-तौल तथा मापन विधियों, मूर्तिकला, कानून, मापतंत्र विज्ञान आदि विषयों के आधार पर अस्सी अध्यायों में विभाजित है। सामान्यतः अल-बिरूनी ने प्रत्येक अध्याय में एक विशिष्ट शैली का प्रयोग किया जिसमें आरंभ में एक प्रश्न होता था, फिर संस्कृतवादी परंपराओं पर आधारित वर्णन और अंत में अन्य संस्कृतियों के साथ एक तुलना आज के कुछ विद्वानों को तर्क है कि इस लगभग ज्यामितीय संरचना, जो अपनी स्पष्टता तथा पूर्वानुमेयता के लिए उल्लेखनीय है, का एक मुख्य कारण अल-बिरूनी का गणित की ओर झुकाव था। अल-बिरूनी जिसने लेखन में भी अरबी भाषा का प्रयोग किया था, ने संभवतः अपनी कृतियाँ उपमहाद्वीप के सीमांत क्षेत्रों में रहने वाले लोगों के लिए लिखी थीं। वह संस्कृत, पाली तथा प्राकृत ग्रंथों के अरबी भाषा में अनुवादों तथा रूपांतरणों से परिचित था। इनमें दंतकथाओं से लेकर खगोल विज्ञान और चिकित्सा संबंधी कृतियाँ सभी शामिल थीं, पर साथ ही इन ग्रंथों की लेखन-सामग्री शैली के विषय में उसका दृष्टिकोण आलोचनात्मक था और निश्चित रूप से वह उनमें सुधार करना चाहता था।
प्रश्न 2. इब्न बतूता और बर्नियर ने जिन दृष्टिकोणों से भारत में अपनी यात्राओं के वृत्तांत लिखे थे, उनकी तुलना कीजिए तथा अंतर बताइए।
उत्तर – जहाँ इब्न बतूता ने हर उस चीज़ का वर्णन करने का निश्चय किया जिसने उसे अपने अनूठेपन के कारण प्रभावित किया और उत्सुक किया, वहीं बर्नियर एक भिन्न बुद्धिजीवी परंपरा से संबंधित था। उसने भारत में जो भी देखा, वह उसकी सामान्य रूप से यूरोप और विशेष रूप से फ्रांस में व्याप्त स्थितियों से तुलना तथा भिन्नता को उजागर करने के प्रति अधिक चिंतित था, विशेष रूप से वे स्थितियाँ जिन्हें उसने अवसादकारी पाया। उसका विचार नीति-निर्माताओं तथा बुद्धिजीवी वर्ग को प्रभावित करने का था ताकि वे ऐसे निर्णय ले सकें जिन्हें वह ‘सही’ मानता था। बर्नियर के ग्रंथ ‘ट्रैवल्स इन द मुगल एम्पायर’ अपने गहन प्रेक्षण, आलोचनात्मक अंतर्दृष्टि तथा गहन चिंतन के लिए उल्लेखनीय है। उसके वृत्तांत में की गई चर्चाओं में मुगलों के इतिहास को एक प्रकार के वैश्विक ढाँचे में स्थापित करने का प्रयास किया गया। वह निरंतर मुगलकालीन भारत की तुलना तत्कालीन यूरोप से करता रहा, सामान्यतया यूरोप की श्रेष्ठता को रेखांकित करते हुए। उसका भारत का चित्रण द्वि-विपरीतता के नमूने पर आधारित है, जहाँ भारत को यूरोप के प्रतिलोम के रूप में दिखाया गया है, या फिर यूरोप का ‘विपरीत’ जैसा कि कुछ इतिहासकार परिभाषित करते हैं। उसने जो भिन्नताएँ महसूस कीं, उन्हें भी पदानुक्रम के अनुसार क्रमबद्ध किया, जिससे भारत, पश्चिमी दुनिया को निम्न कोटि का प्रतीत हो।
प्रश्न 3. बर्नियर के वृत्तांत से उभरने वाले शहरी केंद्रों के चित्र पर चर्चा कीजिए।
उत्तर – बर्नियर मुगलकालीन शहरों को ‘शिविर नगर’ कहता है, जिससे उसका आशय उन नगरों से था जो अपने अस्तित्व और बने रहने के लिए राजकीय शिविर पर निर्भर थे। उसका विश्वास था कि ये राजकीय दरबार के आगमन के साथ अस्तित्व में आते थे और इसके कहीं और चले जाने के बाद तेजी से पतनोन्मुख हो जाते थे। उसने यह भी सुझाया कि इनकी सामाजिक और आर्थिक नींव व्यवहार्य नहीं होती थी और ये राजकीय प्रश्रय पर आश्रित रहते थे।

वास्तव में, सभी प्रकार के नगर अस्तित्व में थे- उत्पादन केंद्र, व्यापारिक नगर, बंदरगाह नगर, धार्मिक केंद्र, तीर्थ स्थान आदि। इनका अस्तित्व समृद्ध व्यापारिक समुदायों तथा व्यावसायिक वर्गों के अस्तित्व का सूचक है। अहमदाबाद जैसे शहरी केंद्रों में सभी महाजनों का सामूहिक प्रतिनिधित्व व्यापारिक समुदाय के मुखिया द्वारा होता था जिसे नगर सेठ कहा जाता था। अन्य शहरी समूहों में व्यावसायिक वर्ग;, जैसे-चिकित्सक (हकीम तथा वैद्य), अध्यापक (पंडित या मुल्ला), अधिवक्ता (वकील), चित्रकार, वास्तुविद्, संगीतकार, सुलेखक आदि सम्मिलित थे।
प्रश्न 4. इब्न बतूता द्वारा दास प्रथा के संबंध में दिए गए साक्ष्यों का विवेचन कीजिए।
उत्तर – इब्न बतूता के अनुसार, बाजारों में दासे किसी भी अन्य वस्तु की तरह खुलेआम बेचे जाते थे और नियमित रूप से भेंटस्वरूप एक-दूसरे को दिए जाते थे। जब इब्न बतूता सिंध पहुँचा तो उसने सुल्तान मुहम्मद बिन तुगलक के लिए भेंटस्वरूप ‘घोड़े, ऊँट तथा दास’ खरीदे। जब वह मुल्तान पहुँचा तो उसने गवर्नर को ‘किशमिश बादाम के साथ एक दास और घोड़ा’ भेंट के रूप में दिए। इब्न बतूता बताता है कि मुहम्मद-बिन-तुगलक नसीरुद्दीन नामक धर्मोपदेशक के प्रवचन से इतना प्रसन्न हुआ कि उसे ‘एक लाख टके (मुद्रा) तथा दो सौ दास’ दे दिए। इब्न बतूता के विवरण से प्रतीत होता है कि दासों में काफी विभेद था। सुल्तान की सेवा में कार्यरत कुछ दासियाँ संगीत और गायन में निपुण थीं। सुल्तान अपने अमीरों पर नज़र रखने के लिए दासियों को भी नियुक्त करता था। दासों को सामान्यतः घरेलू श्रम के लिए ही इस्तेमाल किया जाता था, और इब्न बतूता ने इनकी सेवाओं को, पालकी या डोले में पुरुषों और महिलाओं को ले जाने में विशेष रूप से अपरिहार्य पाया। दासों की कीमत, विशेष रूप से उन दासियों की, जिनकी आवश्यकता घरेलू श्रम के लिए थी, बहुत कम होती थी और अधिकांश परिवार जो उन्हें रख पाने में समर्थ थे, कम-से-कम एक या दो दास तो रखते ही थे।

प्रश्न 5. सती प्रथा के कौन-से तत्वों ने बर्नियर का ध्यान अपनी ओर खींचा?
उत्तर – उल्लेखनीय है कि यूरोपीय यात्रियों एवं लेखकों ने उन बातों का विस्तृत वर्णन करने में अधिक रुचि दिखाई थी, जो उन्हें आश्चर्यजनक अथवा यूरोपीय समाजों से भिन्न दृष्टिगोचर हुई थीं। महिलाओं से किए जाने वाले व्यवहार को पूर्वी और पश्चिमी समाजों के मध्य भिन्नता का एक महत्त्वपूर्ण परिचायक समझा जाता था। अत: बर्नियर भारत में प्रचलित सती प्रथा के प्रति अत्यधिक आकर्षित हुआ और उसने इसके वर्णन को अपने वृत्तान्त का एक महत्त्वपूर्ण भाग बनाया। सती प्रथा मध्यकालीन हिन्दू समाज में व्याप्त कुप्रथाओं में सर्वाधिक घृणित प्रथा थी। ‘सती’ शब्द का अर्थ है-‘पतिव्रता और चरित्रवती स्त्री’, किंतु सामान्यतया इसका अर्थ पत्नी के अपने मृत पति के शरीर के साथ जल जाने की प्रथा से लिया जाता था। बर्नियर ने लिखा है कि कुछ महिलाएँ स्वेच्छापूर्वक खुशी-खुशी अपने पति के शव के साथ सती हो जाती थीं। किंतु अधिकांश को ऐसा करने के लिए विवश कर दिया जाता था।

लाहौर में एक बालिका के सती होने की घटना का अत्यधिक मार्मिक विवरण देते हुए उसने लिखा है, “लाहौर में मैंने एक बहुत ही सुन्दर अल्पवयस्क विधवा जिसकी आयु मेरे विचार में बाहर वर्ष से अधिक नहीं थी, की बलि होते देखी। उस भयानक नर्क की ओर जाते हुए वह असहाय छोटी बच्ची जीवित से अधिक मृत प्रतीत हो रही थी; उसके मस्तिष्क की व्यथा का वर्णन नहीं किया जा सकता; वह काँपते हुए बुरी तरह से रो रही थी; लेकिन तीन-चार ब्राह्मण, एक बूढ़ी औरत, जिसने उसे अपनी आस्तीन के नीचे दबाया हुआ था, की सहायता से उस अनिच्छुक पीड़िता को घातक स्थल की ओर ले गए। उसे लकड़ियों पर बैठाया; उसके हाथ-पाँव बाँध दिए ताकि वह भाग न जाए और इस स्थिति में उस मासूम प्राणी को जिन्दा जला दिया गया। मैं अपनी भावनाओं को दबाने में असमर्थ था” इस विवरण से स्पष्ट होता है कि सती प्रथा के अन्तर्गत सती होने वाली महिलाओं की अल्पवयस्कता, अनीच्छा, व्यथा, विवशता एवं असहायता जैसे तत्वों ने बर्नियर का ध्यान विशेष रूप से आकर्षित किया था।

प्रश्न 6. जाति व्यवस्था के संबंध में अल-बिरूनी की व्याख्या पर चर्चा कीजिए।
उत्तर – सुप्रसिद्ध अरब लेखक अल-बिरूनी ने भारत के विषय में अपनी विभिन्न पुस्तकों में लिखा, जिनमें सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण स्थान। ‘किताब-उल-हिन्द’ का है, जिसे ‘तहकीक-ए-हिन्द’ के नाम से भी जाना जाता है। अल-बिरूनी ने भारत की सामाजिक दशा, रीति-रिवाजों, भारतीयों के खान-पान, वेशभूषा, उत्सव त्योहार, आमोद-प्रमोद आदि के विषय में विस्तारपूर्वक लिखा है।

जाति व्यवस्था – 
जाति व्यवस्था का वर्णन करते हुए अल-बिरूनी ने लिखा है, “सबसे ऊँची जाति ब्राह्मणों की है, जिनके विषय में हिन्दुओं के ग्रंथ हमें बताते हैं कि वे ब्रह्मा के सिर से उत्पन्न हुए थे और क्योंकि ब्रह्मा प्रकृति नामक शक्ति का ही दूसरा नाम है और सिर शरीर का सबसे ऊपरी भाग है, इसलिए ब्राह्मण पूरी प्रजाति के सबसे चुनिंदा भाग हैं। इसी कारण से हिन्दू उन्हें मानव जाति में सबसे उत्तम मानते हैं।

अगली जाति क्षत्रियों की है जिनका सृजन ऐसा कहा जाता है, ब्रह्मा के कन्धों और हाथों से हुआ था। उनका दर्जा ब्राह्मणों से अधिक नीचे नहीं है। उनके पश्चात् वैश्य आते हैं, जिनका उद्भव ब्रह्मा की जंघाओं से हुआ था। शूद्र, जिनका सृजन चरणों से हुआ था। अंतिम दो वर्गों के बीच अधिक अंतर नहीं है। किंतु इन वर्गों के बीच भिन्नता होने पर भी ये एक साथ एक ही शहरों और गाँवों में रहते हैं; समान घरों और आवासों में मिल-जुलकर।

जाति व्यवस्था की तुलना प्राचीन फारस की सामाजिक व्यवस्था से अल-बिरूनी ने भारत में विद्यमान जाति व्यवस्था को अन्य समुदायों में प्रतिरूपों की खोज के द्वारा समझने का प्रयास किया। उसने इस व्यवस्था की व्याख्या करने में भी अन्य समुदायों के प्रतिरूपों का आश्रय लिया। उसने भारत में विद्यमान वर्ण-व्यवस्था की तुलना प्राचीन फारस की सामाजिक व्यवस्था से करते हुए लिखा कि प्राचीन फारस के समाज में भी घुड़सवार एवं शासक वर्ग; भिक्षु, आनुष्ठानिक पुरोहित और चिकित्सक; खगोलशास्त्री एवं अन्य वैज्ञानिक और अंत में कृषक एवं शिल्पकार, ये चार वर्ग अस्तित्व में थे। इस प्रकार, अल-बिरूनी यह स्पष्ट कर देना चाहता था कि ये सामाजिक वर्ग केवल भारत तक ही सीमित नहीं थे। इसके साथ-ही-साथ अल-बिरूनी ने यह भी स्पष्ट किया कि इस्लाम में इस प्रकार का कोई वर्ग विभाजन नहीं था; सामाजिक दृष्टि से सभी लोगों को समान समझा जाता था; उनमें भिन्नताएँ केवल धार्मिकता के पालन के आधार पर विद्यमान थीं।

प्रश्न 7. क्या आपको लगता है कि समकालीन शहरी केंद्रों में जीवन-शैली की सही जानकारी प्राप्त करने में इब्न बतूता का वृत्तांत सहायक है? अपने उत्तर के कारण दीजिए।
उत्तर –इब्न बतूता ने उपमहाद्वीप के शहरों को उन लोगों के लिए व्यापक अवसरों से भरपूर पाया जिनके पास आवश्यक इच्छा, साधन तथा कौशल था। ये शहर घनी आबादी वाले तथा समृद्ध थे सिवाय कभी-कभी युद्धों तथा अभियानों से होने वाले विध्वंस के। इब्न बतूता के वृत्तांत से ऐसा प्रतीत होता है कि अधिकांश शहरों में भीड़-भाड़ वाली सड़कें तथा चमक-दमक वाले रंगीन बाज़ार थे जो विविध प्रकार की वस्तुओं से भरे रहते थे। इब्न बतूता दिल्ली को एक बड़ा शहर, विशाल आबादी वाला तथा भारत में सबसे बड़ा बताता है। दौलताबाद (महाराष्ट्र में) भी कम नहीं था। वह आकार में दिल्ली को चुनौती देता था। वस्तुतः इब्न बतूता की शहरों की समृद्धि का वर्णन करने में अधिक रुचि नहीं थी।

उसके अनुसार, कृषि का अधिशेष उत्पादन ही वह मूलभूत आधार था, जिसने शहरी जीवन-शैली को गम्भीर रूप से प्रभावित किया।अतः इसमें कोई संदेह नहीं कि इब्न बतूता का वृत्तान्त समकालीन शहरी जीवन-शैली की सही जानकारी देने में हमारी सहायता करता है। जब 19वीं शताब्दी में इब्न बतूता दिल्ली आया था, उस समय तक पूरा भारतीय महाद्वीप एक ऐसे वैश्विक संचार तंत्र का हिस्सा बन चुका था जो पूर्व में चीन से लेकर पश्चिम में उत्तर-पश्चिमी अफ्रीका तथा यूरोप तक फैला हुआ था। इब्न बतूता ने स्वयं इन क्षेत्रों की यात्राएँ कीं, विद्वानों एवं शासकों के साथ समय बिताया तथा शहरी केंद्रों की विश्ववादी संस्कृति को काफी नजदीक से देखा और समझा।

इन्हीं अनुभवों एवं ज्ञान के आधार पर उसने भारतीय शहरी जीवन-शैली की तुलनात्मक विवरण प्रस्तुत किया जो अधिक तर्कसंगत प्रतीत होता है। इब्न बतूता ने लिखा है कि भारतीय माल की मध्य और दक्षिण-पूर्व एशिया में बड़ी माँग थी जिससे शिल्पकारों तथा व्यापारियों को भारी मुनाफा होता था। भारतीय कपड़ों, विशेष रूप से सूती कपड़ा, महीने मखमल, रेशम, जरी तथा साटन की अत्यधिक माँग थी। महीन मखमल की कई किस्में इतनी महँगी थीं कि उन्हें अमीर वर्ग या बहुत धनाढ्य लोग ही पहन सकते थे। इस प्रकार कृषि, विश्ववादी संस्कृति तथा व्यापार ने समकालीन शहरी केंद्रों की जीवन-शैली में आमूलचूल परिवर्तन ला दिया था।

प्रश्न 8. चर्चा कीजिए कि बर्नियर का वृत्तांत किस सीमा तक इतिहासकारों को समकालीन ग्रामीण समाज को पुनर्निर्मित करने में सक्षम करता है?
उत्तर – बर्नियर के अनुसार भारत और यूरोप के बीच मूल भिन्नताओं में से एक भारत में निजी भू-स्वामित्व का अभाव था। उसका निजी स्वामित्व के गुणों में दृढ़ विश्वास था और उसने भूमि पर राजकीय स्वामित्व को राज्य तथा उसके निवासियों, दोनों के लिए हानिकारक माना। उसे यह लगा कि मुगल साम्राज्य में सम्राट सारी भूमि का स्वामी था जो इसे अपने अमीरों के बीच बाँटता था, जिससे अर्थव्यवस्था और समाज के लिए अनर्थकारी परिणाम सामने आते थे। इस प्रकार का अवबोधन बर्नियर तक ही सीमित नहीं था बल्कि सोलहवीं तथा सत्रहवीं शताब्दी के अधिकांश यात्रियों के वृत्तांतों में मिलता है। राजकीय भू-स्वामित्व के कारण बर्नियर तर्क देता है कि भू-धारक अपने बच्चों को भूमि नहीं दे सकते थे।

इसलिए वे उत्पादन के स्तर को बनाए रखने और उसमें बढ़ोत्तरी के दिए दूरगामी निवेश के प्रति उदासीन थे। इस प्रकार निजी भू-स्वामित्व के अभाव ने ‘बेहतर’ भू-धारकों के वर्ग के उदय (जैसा कि पश्चिमी यूरोप में) को रोका जो भूमि के रख-रखाव व बेहतरी के प्रति सजग रहते। इसी के चलते कृषि का समान रूप से विनाश, किसानों का उत्पीड़न तथा समाज के सभी वर्गों के जीवन स्तर में अनवरत पतन की स्थिति उत्पन्न हुई है, सिवाय शासक वर्ग के। बर्नियर भारतीय समाज को दरिद्र लोगों के समरूप जनसमूह से बना वर्णित करता है, जो एक बहुत अमीर तथा शक्तिशाली शासक वर्ग, जो अल्पसंख्यक होते हैं, के द्वारा गुलाम बनाया जाता है। गरीबों में सबसे गरीब तथा अमीरों में सबसे अमीर व्यक्ति के बीच किसी भी प्रकार का सामाजिक समूह या वर्ग नहीं था।

बर्नियर बहुत विश्वास से कहता है, “भारत में मध्य की स्थिति के लोग नहीं हैं।” बर्नियर के विवरणों ने अठाहरवीं शताब्दी के पश्चिमी विचारकों को काफी प्रभावित किया। उदाहरण के लिए, फ्रांसीसी दार्शनिक मॉन्टेस्क्यू ने उसके वृत्तांत का प्रयोग प्राच्य निरंकुशवाद के सिद्धांत को विकसित करने में किया, जिसके अनुसार एशिया में शासक अपनी प्रजा के ऊपर निर्बाध प्रभुत्व का उपभोग करते थे। प्रजा को दासता और गरीबी की स्थितियों में रखा जाता था। इस तर्क का आधार यह था कि सारी भूमि पर राजा का स्वामित्व होता था तथा निजी संपत्ति अस्तित्व में नहीं थी। इस दृष्टिकोण के अनुसार राजा और उसके अमीर वर्ग को छोड़कर प्रत्येक व्यक्ति मुश्किल से गुजर-बसर कर पाता था। कार्ल मार्क्स ने यह तर्क दिया कि भारत तथा अन्य एशियाई देशों में उपनिवेशवाद से पहले अधिशेष का अधिग्रहण राज्य द्वारा होता था। इससे एक ऐसे समाज का उद्भव हुआ जो बड़ी संख्या में स्वायत्त तथा (आंतरिक रूप से) समतावादी ग्रामीण समुदायों से बना था।

प्रश्न 9. यह बर्नियर से लिया गया एक उद्धरण है –
ऐसे लोगों द्वारा तैयार सुंदर शिल्पकारीगरी के बहुत उदाहरण हैं, जिनके पास औजारों का अभाव है, और जिनके विषय में यह भी नहीं कहा जा सकता कि उन्होंने किसी निपुण कारीगर से कार्य सीखा है। कभी-कभी वे यूरोप में तैयार वस्तुओं की इतनी निपुणता से नकल करते हैं कि असली और नकली के बीच अंतर कर पाना मुश्किल हो जाता है। अन्य वस्तुओं में, भारतीय लोग बेहतरीन बंदूकें और ऐसे सुंदर स्वर्णाभूषण बनाते हैं कि संदेह होता है कि कोई यूरोपीय स्वर्णकार कारीगरी के इन उत्कृष्ट नमूनों से बेहतर बना सकता है। मैं अकसर इनके चित्रों की सुंदरता, मृदुलता तथा सूक्ष्मता से आकर्षित हुआ हूँ। उसके द्वारा अलिखित शिल्प कार्यों को सूचीबद्ध कीजिए तथा इसकी तुलना अध्याय में वर्णित शिल्प गतिविधियों से कीजिए।
उत्तर – प्रस्तुत उद्धरण से पता लगता है कि बर्नियर की भारतीय कारीगरों के विषय में अच्छी राय थी। उसके मतानुसार भारतीय कारीगर अच्छे औज़ारों के अभाव में भी कारीगरी के प्रशंसनीय नमूने प्रस्तुत करते थे। वे यूरोप में निर्मित वस्तुओं की इतनी कुशलतापूर्वक नकल करते थे कि असली और नकली में अंतर कर पाना मुश्किल हो जाता था। बर्नियर भारतीय चित्रकारों की कुशलता से अत्यधिक प्रभावित था। वह भारतीय चित्रों की सुंदरता, मृदुलता एवं सूक्ष्मता से विशेष रूप से आकर्षित हुआ था। इस उद्धरण में बर्नियर ने बंदूक बनाने, स्वर्ण आभूषण बनाने तथा चित्रकारी जैसे शिल्पों की विशेष रूप से प्रशंसा की है। अलिखित शिल्प कार्य।

बर्नियर द्वारा अलिखित शिल्पों या शिल्पकारों को इस प्रकार सूचीबद्ध किया जा सकता है-बढ़ई, लोहार, जुलाहा, कुम्हार, खरादी, प्रलाक्षा रस का रोगन लगाने वाले, कसीदकार दर्जी, जूते बनाने वाले, रेशमकारी और महीन मलमल का काम करने वाले, वास्तुविद, संगीतकार तथा सुलेखक आदि। प्रस्तुत उद्धरण में बर्नियर ने लिखा है कि भारतीय कारीगर औजार एवं प्रशिक्षण के अभाव में भी कारीगरी के प्रशंसनीय नमूने प्रस्तुत करने में सक्षम थे। अध्याय में वर्णित शिल्प गतिविधियों से पता चलता है कि कारखानों अथवा कार्यशालाओं में कारीगर विशेषज्ञों की देख-रेख में कार्य करते थे। कारखाने में भिन्न-भिन्न शिल्पों के लिए अलग-अलग कक्ष थे। शिल्पकार अपने कारखाने में प्रतिदिन सुबह आते थे और पूरा दिन अपने कार्य में व्यस्त रहते थे।

मानचित्र कार्य

प्रश्न 10. विश्व के सीमारेखा मानचित्र पर उन देशों को चिह्नित कीजिए जिनकी यात्रा इन बतूता ने की थी। कौन-कौन से  समुद्रों को उसने पार किया होगा?
उत्तर – संकेत – 1332-33 में भारत के लिए प्रस्थान करने से पहले इब्न बतूता ने मक्का की तीर्थयात्रा की और सीरिया, इराक, फारस, यमन, ओमान और पूर्वी अफ्रीका के तटीय व्यापारिक बंदरगाहों की यात्राएँ कर चुका था। 1342 में दिल्ली के सुल्तान मोहम्मद बिन तुगलक के आदेश पर वह सुल्तान के दूत के रूप में चीन गया। भारत में उसने मालाबार तट से महाद्वीप की यात्रा की। उसके वृत्तांत की तुलना 13वीं शताब्दी के अंत में वेनिस से चीन तक यात्रा करने वाले मार्कोपोलो के यात्रा-वृत्तांत से की जाती है।

• उपर्युक्त संकेत के आधार पर विद्यार्थी स्वयं करें।

परियोजना कार्य (कोई एक)

प्रश्न 11. अपने ऐसे किसी बड़े संबंधी (माता-पिता/दादा-दादी तथा नाना-नानी/चाचा-चाची) का साक्षात्कार कीजिए जिन्होंने आपके नगर अथवा गाँव के बाहर यात्राएँ की हों। पता कीजिए-

(क) वे कहाँ गए थे
(ख) उन्होंने यात्रा कैसे की
(ग) उन्हें कितना समय लगा
(घ) उन्होंने यात्रा क्यों की
(ङ) क्या उन्होंने किसी कठिनाई का सामना किया।
ऐसी समानताओं और भिन्नताओं को सूचीबद्ध कीजिए जो उन्होंने अपने रहने के स्थान और यात्रा किए गए स्थानों के बीच देखीं, विशेष रूप से भाषा, पहनावा, खानपान, रीति-रिवाज, इमारतों, सड़कों तथा पुरुषों और महिलाओं की जीवन-शैली के संदर्भ में। अपने द्वारा हासिल जानकारियों पर एक रिपोर्ट तैयार कीजिए।
उत्तर – मैं – नाना जी क्या आप प्रेस कैम्ब्रिज कैम्ब्रिज यूनिवर्सिटी गये है।
नाना – हाँ मैं प्रेस कैम्ब्रिज कैम्ब्रिज यूनिवर्सिटी में गया हूँ।
मैं – आप वहाँ कैस गये।
नाना – मैं पानी के जहाज से गया। पहले हम सिंगापुर गये फिर वहां से जापान गये और फिर अमेरिका गये।
मैं –  आपको वहाँ तक जाने में कितना समय लगा।
नाना – मुझे पानी के जहाज से पहुँचने में तीन महीने लगे।
मैं – क्या आपने फ्रांस्वा बर्नियर, ट्रैवल्य इन द मुगल की यात्रा की है।
नाना – हाँ मैंने वहाँ की भी यात्रा की।
मैं – क्या आपने इस यात्रा में किसी कठिऩाई का सामना किया
नाना – हाँ कठिनाई तो बहुत आयी। कभी खाना सड़ जाता था। कभी तबीयत बहुत खराब हो जाती थी। ऐसा लगता था कि यह मर जाएँगे। समुद्री लुटेरों का हमेशा  डर बना रहता था। लंबे समय तक जहाज में रहने के कारण तनाव बहुत ज्यादा हो जाया करता था।
मैं – धन्यवाद नाना मुझे इतनी सारी बातें बताने के लिए।
नाना – धन्यवाद तुम्हारा करना चाहिए जो पुरानी यादों को फिर से ताजा कर दिया और तुम्हें बहुत सारा आर्शीवाद।

प्रश्न 12. इस अध्याय में उल्लिखित यात्रियों में से एक के जीवन तथा कृतियों के विषय में और अधिक जानकारी हासिल कीजिए। उनकी यात्राओं पर एक रिपोर्ट तैयार कीजिए विशेष रूप से इस बात पर जोर देते हुए कि उन्होंने समाज का कैसा विवरण किया है तथा इनकी तुलना अध्याय में दिए गए उद्धरणों से कीजिए।
उत्तर – अल बिरूनी का जन्म आधुनिक उज्बेकिस्तान में स्थित ख्वारिज़्म में सन् 973 में हुआ था। ख़वारिज्म शिक्षा का एक  महत्वपूर्ण केंद्र था और अल बिरूनी ने उस समय उपलब्ध सबसे अच्छी सिक्षा प्राप्त की थी। वह कई भाषाओं का ज्ञाता था जिनमें सीरियाई, फ़ारसी, हिब्रू तथा संस्कृत शामिल हैं। हालाँकि वह यूनानी भाषा का जानकार नहीं था पर फिर भी वह प्लेटों तथा अन्य यूनानी दार्शनिकों के कार्यों से पूरी तरह परिचित था। किताब-उल-हिन्द एक विस्तृत ग्रंथ है जो धर्म और दर्शन, त्योहारों, खगोल-विज्ञान, कीमिया, रीति-रिवाजों तथा प्रथाओँ, सामाजिक-जीवन, भार-तौल तथा मापन विधियों, मूर्तिकला, कानून, मापतंत्र विज्ञान आदि विषयों के आधाप पर अस्सी अध्यायों में विभाजित है।

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