NCERT Solution Class 11th Home Science Chapter – 6 संचार माध्यम और संचार प्रौद्योगिकी (Media and Communication Technology) Notes In Hindi

NCERT Solution Class 11th Home Science Chapter – 6 संचार माध्यम और संचार प्रौद्योगिकी (Media and Communication Technology)

TextbookNCERT
class11th
SubjectHome Science
Chapter6th
Chapter Nameसंचार माध्यम और संचार प्रौद्योगिकी
CategoryClass 11th Home Science Notes in hindi
Medium Hindi
SourceLast Doubt
NCERT Solution Class 11th Home Science Chapter – 6 संचार माध्यम और संचार प्रौद्योगिकी (Media and Communication Technology) Notes In Hindi अधिगम उद्देश्य इस अध्याय को पढ़ने के बाद आप निम्न को समझ पाएँगे- संचार की संकल्पना और परिभाषा, दैनिक जीवन में संचार का महत्त्व, संचार के विभिन्न रूप, संचार प्रक्रिया का वर्णन, संचार माध्यमों के वर्गीकरण और कार्यकलापों की व्याख्या, तथा विभिन्न संचार प्रौद्योगिकियों का विश्लेषण।

NCERT Solution Class 11th Home Science Chapter – 6 संचार माध्यम और संचार प्रौद्योगिकी (Media and Communication Technology)

Chapter – 6

संचार माध्यम और संचार प्रौद्योगिकी

Notes

भूमिका ( Introduction)

संचार माध्यम / मीडिया तथा संचार अध्ययन / संप्रेषण (media and communication) संभवत: एकमात्र ऐसा महत्वपूर्ण क्षेत्र है, जो किशोरों के विकास के लगभग सभी आयामों (all dimensions of development) को प्रभावित करता है। इस पाठ में हम यह समझने का प्रयास करेंगे कि संचार माध्यम तथा संचार अध्ययन कैसे हमारे दैनिक जीवन का अभिन्न अंग बन गए हैं तथा यह दोनों पहलू कैसे हमारे जीवन की गुणवत्ता को बढ़ाने में सहायक सिद्ध हो रहे हैं।

आइए पहले हम संचार की संकल्पना से शुरू करते हैं। संचार और संचार प्रौद्योगिकी (Communication and Communication Technology) हम सभी जानते हैं कि मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है। वह अकेले अपने जीवन का निर्वाह नहीं कर सकता। उसे जीवन की विभिन्न आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए दूसरों पर निर्भर रहना पड़ता है। इन आवश्यकताओं की पूर्ति तभी हो सकती है जब वह दूसरे व्यक्ति के समक्ष अपनी भावनाओं, विचारों, आवश्यकताओं को इस प्रकार व्यक्त करे कि वह उन्हें सही ढंग से समझ लें। दो या दो से अधिक व्यक्तियों के बीच सूचना, विचार तथा अनुभवों के इसी आदान-प्रदान को संचार संप्रेषण कहते हैं।

मनुष्य के सुगम जीवनयापन के लिए भोजन, जल तथा ऑक्सीजन के साथ-साथ संचार भी आधारभूत आवश्यकता (basic requirement) बन गई है। ऐसा माना जाता है कि धरती पर जीवन की शुरूआत के साथ ही संचार की भी शुरूआत हो गई थी। आज के आधुनिक दौर में, नित नई प्रौद्योगिकियों के आविष्कार के कारण हर कुछ समय में बाजार में नयी संचार विधियाँ और उपकरण आ रहे हैं। इनमें से कुछ तो अपनी गुणवत्ता और उपयोग के कारण काफी लोकप्रिय हो गए हैं और काफी समय से लोगों के बीच में अपनी लोकप्रियता और उपयोगिकता बनाए हुए हैं, जैसे कि टेलीविजन, मोबाइल फोन, इंटरनेट इत्यादि।
संचार क्या है? (What is Communication?)

संचार के अर्थ को निम्न परिभाषाओं द्वारा समझा जा सकता है- किसी परिस्थिति/विषय / मुद्दे से संबंधित किसी भी प्रकार की जानकारी/सूचना अथवा विचारों को दूसरों तक विभिन्न संचार माध्यमों द्वारा संप्रेषित करने की प्रक्रिया को संचार कहते है। अथवा संचार दो या दो से अधिक व्यक्तियों के बीच तथ्यों, विचारों, सोच और सूचनाओं का मौखिक, लिखित अथवा संकेतों या मुद्राओं के माध्यम से आदान-प्रदान की प्रक्रिया है।

संचार शब्द अँग्रेजी भाषा के शब्द ‘कम्युनिकेशन’ (communication) का पर्याय है जो लैटिन भाषा के शब्द ‘कॉम्यूनिस’ (communis) से निकला है, इसका अर्थ है ‘साधारण या सामान्य ‘ (common) । संप्रेषण का मुख्य उद्देश्य आपसी समझ व सहयोग स्थापित करना, ज्ञानशक्ति व बुद्धि के विकास को विस्तृत करना है। संचार प्रक्रिया में संदेश का होना आवश्यक है, जिसमें संदेश एक पक्ष से दूसरे पक्ष तक पहुँचाया जाता है।
प्रभावी संचार (Effective Communication)

प्रभावी संचार, न केवल विचारों, मतों को व्यक्त करने या ज्ञान और सूचना प्रदान करने से संबंधित है, बल्कि इसमें संप्रेषित विषय को बिल्कुल उसी अर्थ में समझना भी शामिल है, जो संप्रेषक (communicator) और ग्राही (receiver) के लिए एक समान हो। इसके अतिरिक्त संचारक और प्राप्तकर्त्ता के बीच विषय के संबंध में पूर्ण समझ का विकसित होना भी जरूरी है। संचार एक सतत् प्रक्रिया (continuous process) जो व्यक्ति के जीवन से जुड़े सभी क्षेत्रों में निरंतर रूप से चलता रहता है, अर्थात् यह घर, स्कूल, समुदाय इत्यादि जैसे जीवन के सभी क्षेत्रों में व्याप्त है।
संचार के तत्व (Elements of Communication)

किसी भी प्रकार की संचार प्रक्रिया में तीन मूल तत्व होते हैं-

(a) प्रेषक: जो संदेश भेजता है उसे प्रेषक कहते हैं।
(b) संवेश: कोई भी लिखित या मौखिक सूचना अथवा जानकारी जो एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति तक प्रेषित की जाए, संदेश कहलाती है।
(c) प्राप्तकर्ता: जो संदेश प्राप्त करता है उसे प्राप्तकर्ता कहते हैं।

आमतौर पर संचार को तब पूरा समझा जाता है जब प्राप्तकर्ता संदेश को समझ कर उस पर प्रतिक्रिया व्यक्त करता है।
संचार का महत्व (Importance of Communication)

(i) संचार का प्रयोग विभिन्न संस्थाओं तथा लोगों में विचारों, नियमों एवं तथ्यों के आदान-प्रदान के लिए किया जाता है।

(ii) किसी संस्था के कर्मचारियों के कार्य और विभागों में समन्वय करने और कर्मचारियों को प्रोत्साहित करने के लिए संचार/सम्प्रेषण का प्रयोग किया जाता है।

(iii) यह विक्रेता, ग्राहक तथा आपूर्तिकर्ता के बीच में संपर्क स्थापित करने में सहायक होता है।

(iv) संचार / सम्प्रेषण, व्यापार को कुशल रूप से चलाने के साथ-साथ लोगों पर अच्छा प्रभाव छोड़ने में सहायक होता है।

(v) सम्प्रेषण लोगों को शिक्षित करता है, उनके ज्ञान में वृद्धि करता है तथा उनकी सोच को विस्तृत करता है।

(vi) यह भाषा तथा व्यक्तिगत सम्प्रेषण को सुलझाता है।

(vii) यह नई तकनीक, नई खोजों, नई उपलब्धियों तथा नये उत्पादों के सम्बन्ध में व्यक्तियों की सहायता करता है।

(viii) संचार की सहायता से अधिक से अधिक व्यक्ति नई-नई तकनीकों के बारे में जानकारी प्राप्त कर सकते हैं।
संचार का वर्गीकरण (Classification of Communication)

संचार को स्तरों, प्रकारों, रूपों और माध्यमों के आधार पर निम्नलिखित रूपों में वर्गीकृत किया जा सकता है-

संचार का वर्गीकरण (Classification of Communication)

1. पारस्परिक क्रिया के आधार पर वर्गीकरण (Classification on the basis of type of interaction)

(i) एकतरफा संचार
(ii) दुतरफा संचार

2. संचार के स्तरों के आधार पर वर्गीकरण (Classification on the basis of levels of communication)

(i) अंतरा वैयक्तिक संचार
(ii) अंतवैयक्तिक संचार
(iii) समूह संचार
(iv) जनसंचार
(v) अंतरा संस्था संचार
(vi) अंत: संस्था संचार

3. संचार के साधन अथवा विधि के आधार पर वर्गीकरण (Classification on the basis of means or modes of communication)

(i) शाब्दिक या मौखिक संचार
(ii) गैर-शाब्दिक संचार

4. एक से अधिक इंद्रियों से काम लेने के आधार पर वर्गीकरण (Classification on the basis of involvement of number of human senses)
1. पारस्परिक क्रिया के आधार पर वर्गीकरण (Classification on the Basis of Type of Interaction) :

(i) एकतरफा संचार (One-way Communication) : एकतरफा संचार में ग्राही/प्राप्तकर्त्ता (receiver) सूचना प्राप्त तो करता है, पर वह प्रेषक (sender) को बदले में कुछ लौटा नहीं पाता, या तत्काल कोई प्रतिक्रिया नहीं दे पाता। भाषण, व्याख्यान, प्रवचन, रेडियो या म्यूजिक सिस्टम पर संगीत सुनना, टेलीविजन पर कोई भी मनोरंजक कार्यक्रम देखना, वेबसाइट पर सूचना ढूँढ़ने के लिए इंटरनेट का उपयोग करना आदि, एकतरफा संचार के उदाहरण हैं।

(ii) दुतरफा संचार (Two-way Communication) : दुतरफा संचार में संचार दो या दो से अधिक व्यक्तियों के बीच होता है, दुतरफा संचार में एक-दूसरे से संप्रेषण करने वाले सभी पक्ष एक-दूसरे के मतों, विचारों, सूचनाओं आदि का आदान-प्रदान मौखिक, लिखित या संकेतिक रूप में करते हैं।

(ii) दुतरफा संचार (Two-way Communication) : दुतरफा संचार में संचार दो या दो से अधिक व्यक्तियों के बीच होता है, दुतरफा संचार में एक-दूसरे से संप्रेषण करने वाले सभी पक्ष एक-दूसरे के मतों, विचारों, सूचनाओं आदि का आदान-प्रदान मौखिक, लिखित या संकेतिक रूप में करते हैं। मोबाइल फोन पर बात करना, माता-पिता के साथ भविष्य की योजनाओं पर विचार-विमर्श करना, व्हाट्स एप (WhatsApp) चैटिंग करना आदि करना दुतरफा संचार के ही उदाहरण हैं। दुतरफा संचार को निम्न उदाहरण द्वारा और बेहतर ढंग से भी समझा जा सकता है-

भूख लगने पर जब कोई शिशु रोता है तो उसकी अनुक्रिया में उसकी माँ उसका पेट भरती है। शिशु द्वारा रोकर अपनी भूख जताना शिशु द्वारा संप्रेषित संदेश होता जिसकी अनुक्रिया में उसे दूध या अन्य आहार दिया जाता है। इस प्रकार के संचार को दुतरफा संचार कहा जा सकता है।
संचार के स्तरों के आधार पर वर्गीकरण (Classification on the Basis of Levels of Communication) :

(i) अंतरा-वैयक्तिक संचार (Intra-personal Communication) : अंतरा वैयक्तिक संचार का तात्पर्य व्यक्ति द्वारा स्वयं से मन-ही-मन में संवाद करने से है। अंतरा वैयक्तिक संचार एक प्रकार की मानसिक प्रक्रिया है जिसमें व्यक्ति मन-ही-मन में किसी परिस्थिति या मुद्दे के विभिन्न पहलुओं का अवलोकन तथा विश्लेषण कर किसी ऐसे निष्कर्ष पर पहुँचने का प्रयास करता है जो उसके वर्तमान या भविष्य के व्यवहार और जीवन के लिए अर्थपूर्ण हो। अंतरा वैयक्तिक संचार एक सतत् प्रक्रिया (continuous process) है जो हर किसी व्यक्ति के भीतर चलती रहती है, उदाहरण के लिए, किसी साक्षात्कार/परीक्षा से पहले उसका मन-ही-मन पूर्वाभ्यास करना।

(ii) अंतर्वैयक्तिक संचार (Inter-personal Communication) : अंतर्वैयक्तिक संचार का तात्पर्य दो या उससे अधिक लोगों के बीच आमने-सामने (face- to-face) की स्थिति में विचारों और मतों की साझेदारी (sharing) से है। अंतर्वैयक्तिक संचार औपचारिक अथवा अनौपचारिक स्थितियों में संपन्न हो सकता है। इस प्रकार के संचार के लिए संचार के विभिन्न साधनों जैसे कि- शारीरिक संचालन, मुखमुद्राएँ, हाव-भाव, भंगिमाएँ, लिखित पाठ एवं शब्द और ध्वनि जैसे मौखिक तरीकों का प्रयोग किया जा सकता है। उदाहरण के लिए, पढ़ाई-लिखाई संबंधी समस्याओं के बारे में अपने किसी मित्र से बातचीत करना या फिर किसी संवाद कार्यक्रम (discussion programme) में भाग लेना, जिसमें किसी मुद्दे/मुद्दों के संबंध में चर्चा की जाती है।

अंतर्वैयक्तिक संचार निम्न कारणों से सर्वाधिक प्रभावी और आदर्श माना जाता है-

(a) इस प्रकार के संचार में ग्राही (receiver/communicatee) और संचारक (communicator) के बीच हमेशा निकटता और प्रत्यक्ष संपर्क (direct contact) बना रहता है जिसके कारण ग्राही को किसी प्रस्तावित विचार या मत को स्वीकार करने के लिए मनाने/प्रेरित करने/राजी करने में आसानी (easy to convince) होती है।
(b) इस प्रकार के संचार में प्रस्तावित विचार या मत के प्रति ग्राही की प्रत्यक्ष तथा तुरंत प्रतिक्रिया प्राप्त करना आसान होता है।

(iii) समूह संचार (Group Communication) : समूह संचार भी अंतर्वैयक्तिक संचार की भाँति प्रत्यक्ष और वैयक्तिक (direct and personal) प्रकार का ही संचार है, फर्क केवल इतना है कि समूह संचार प्रक्रिया में दो से अधिक व्यक्ति शामिल होते हैं। समूह संचार, उसमें भाग ले रहे लोगों के बीच परस्पर-स्वीकृत दृष्टिकोण और सामूहिक निर्णय लेने में सहायता करता है।

इसके अतिरिक्त यह समूह के प्रत्येक सदस्य को आत्म-अभिव्यक्ति का अवसर देता है जिससे व्यक्ति को अपने प्रभाव को बढ़ाने में सहायता मिलती तथा समूह में उसका स्थान सुदृढ़ / ऊँचा होता है। भारत के ग्रामीण क्षेत्रों में के सदस्यों द्वारा आपसी सहमति तथा सामूहिक निर्णय लेने की प्रक्रिया समूह संचार का ही उदाहरण है। समूह संचार के लाभ : समूह संचार, व्यक्ति को मनोविनोद (recreation) और तनावमुक्त (relax and stress free) होने में, समाजीकरण और प्रेरित (socialising and motivate) करने में सहायक होता है। आजकल समूह संचार को बढ़ाने/प्रभावी बनाने के लिए कई प्रकार के दृश्य तथा श्रव्य साधनों का प्रयोग किया जाता है।

(iv) जनसंचार (Mass Communication) : किसी यांत्रिक युक्ति (mechanical device) की सहायता से संदेशों को बहुगुणित (multiply) करके उन्हें अधिक-से-अधिक लोगों तक पहुँचाने की प्रक्रिया को जनसंचार कहा जाता है। वर्तमान समय में प्रौद्योगिकी के विकास के परिणामस्वरूप किसी भी मुद्दे/समस्या से संबंधित मतों, विचारों और नव-प्रवर्तनों या नए विचारों को समाज के हर स्तर तक पहुँचाना काफी आसान हो गया है। रेडियो, टी.वी., इंटरनेट, अखबार और पत्रिकाएँ इत्यादि जनसंचार के कुछ प्रसिद्ध तथा प्रचलित साधन और माध्यम हैं।

जनसंचार के विभिन्न माध्यमों के दर्शकों/ पाठको तथा श्रोताओं की संख्या बहुत ही विशाल तथा विविधतापूर्ण होती है। आमतौर पर जनसंचार माध्यमों के उपभोक्ता अलग-अलग पृष्ठभूमियों से संबंध रखने वाले सामान्य नागरिक होते है जो किसी देश देशों में दूर-दूर तक फैले हुए होते है, इसके अतिरिक्त वह संदेश के संप्रेषक से भी दूर स्थित होते हैं। इन्हीं कारणों से उनसे किसी संदेश के प्रति सही, पूर्ण, प्रत्यक्ष और तत्कालिक प्रतिपुष्टि / फीडबैक (feedback) पाना संभव नहीं है। जनसंचार के विभिन्न माध्यमों द्वारा प्रसारित किसी संदेश या कार्यक्रम संबंधी प्रतिपुष्टि अक्सर काफी समय बाद संचित रूप से ही प्राप्त होती है।

(v) अंतरा-संस्था संचार (Intra-organisational Communication) : अंतरा-संस्था संचार का तात्पर्य किसी सुव्यवस्थित संगठन (highly structured organisation) के विभिन्न विभागों के बीच होने वाले आपसी संचार से है। जब भी बहुत से लोग किसी सुव्यवस्थित संगठन या संस्था के विभिन्न विभागों में अलग-अलग पदो पर कार्य करते है तो उन्हें संगठन के सामान उद्देश्यों (common goals) की प्राप्ति के लिए दूसरे विभागों के साथ समन्वय स्थापित करके कार्य करना होता है।

ऐसे में विभिन्न विभागों के बीच होने वाले संचार को अंतरा संस्था संचार कहा जाता है। अंतरा संस्था संचार प्रक्रिया में सूचना का प्रवाह एक सामान स्तर पर दुतरफा (two-way at same level) जबकि विभिन्न स्तरों के बीच एकतरफा (one way across levels) होता है, जैसे कि- संगठन के एक विभाग के प्रबंधक (manager) का दूसरे विभाग के प्रबंधक के साथ संदेशों का आदान-प्रदान करना दुतरफा संचार होता है जबकि संगठन के प्रबंध निदेशक (managing director) का संगठन के सभी विभागों के प्रबंधकों को जानकारी या आदेश देना एकतरफा संचार होता है।

(vi) अंतःसंस्था संचार (Inter-organisational Communication) : अंतःसंस्था संचार का तात्पर्य अलग-अलग संगठन / संगठनों के बीच होने वाले आपसी संचार से है। अंतःसंस्था संचार का मुख्य उद्देश्य विभिन्न संगठनों के बीच आपसी सहयोग और समन्वय प्राप्त करना होता है। उदाहरण के लिए, कोरोना वायरस जैयो वैश्विक महामारी से निपटने के लिए विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) तथा विभिन्न देशों की सरकारें एक-दूसरे के साथ मिलकार्य कर रहे है ताकि इस महामारी से छुटकारा पाया जा सकें। विभिन्न देशों एवं संगठनों के बीच सूचनाओं एवं जानकारियां आदान-प्रदान अंत:संस्था संचार का ही उदाहरण है। अंतरा संस्थागत और अंतः संस्थागत संगठनों में, विभागों अथवा संस्थाओं के बीच संचार नहीं होता; बल्कि इन संस्थाओं में कार्य करने वाले व्यक्ति ही एक-दूसरे से संचार करते हैं।
संचार के साधन अथवा विधि के आधार पर वर्गीकरण (Classification on the Basis of Means or Modes of Communication):

(i) शाब्दिक या मौखिक संचार (Verbal Communication) : दो या दो से अधिक लोगों के बीच संचार के लिए मौखिक रूप से बोले गए शब्दों और वाक्यों के उच्चारण को मौखिक/शाब्दिक संचार कहते है। बोलना, गाना, भाषण देना, फोन पर बातचीत करना इत्यादि मौखिक संचार के उदाहरण हैं। विभिन्न अनुसंधान यह दर्शाते है कि सभी व्यक्ति अपने सक्रिय समय का लगभग 70 प्रतिशत समय मौखिक रूप से संचार करने, अर्थात् सुनने, बोलने और जोर से पढ़ने में बिताते हैं।

(ii) गैर-शाब्दिक संचार (Non-Verbal Communication) : गैर-शाब्दिक संचार का तात्पर्य ऐसी संचार विधि से है जिसमें बिना शब्दों का प्रयोग किए मात्र शारीरिक हाव-भाव एवं संकेतों इत्यादि के प्रयोग द्वारा दूसरों तक अपनी बात/संदेश/जानकारी इत्यादि पहुँचाई जाती है। विभिन्न प्रकार के शारीरिक हाव-भाव, मुखमुद्राएँ, स्वभाव, भगिमाएँ, नेत्र संपर्क, स्पर्श, परा-भाषा, लिखाई. पहनावा, केश-सज्जा इत्यादि गैर-शाब्दिक संचार के माध्यम हैं।

इसके अतिरिक्त विभिन्न प्रकार की वास्तुकला, प्रतीक और संकेत भी गैर-शाब्दिक संचार के हो उदाहरण है। प्राचीनकाल में बहुत से जनजातीय लोग संकेतों के माध्यम से ही एक-दूसरे से संचार संस्थापित करते थे। इसके अतिरिक्त टेलीविजन पर मूक-बधिरों के लिए प्रसारित होने वाले समाचार/कार्यक्रम भी संकेतों के रूप में प्रदर्शित होते हैं।
4. एक से अधिक इंद्रियों से काम लेने के आधार पर वर्गीकरण (Classification on the Basis of Involvement of Number of Human Senses) : हम सब ने कभी-न-कभी यह जरूर महसूस किया है कि किताबों से पढ़ाने की तुलना में यदि किसी पाठ को टीवी पर या जीवंत रूप में दिखाकर पढ़ाया जाए तो बच्चों के मस्तिष्क पर वह पाठ लम्बे समय तक अपनी छाप छोड़ता है अर्थात् पाठक या श्रोता की अपेक्षा दर्शक लम्बे समय तक याद रखते है। ऐसा इसलिए होता है क्योंकि केवल पढ़ने या सुनने के दौरान जितनी इंद्रियों कार्य करती है उससे ज्यादा इंद्रियाँ एक ही समय पर पढ़ने देखने के साथ-साथ सुनने के लिए कार्य करती है। यह तथ्य निम्न आँकड़ों द्वारा सत्यापित होता है-

हमारी इंद्रियाँ और संचार

लोग जो पढ़ते हैं, उसका 10 प्रतिशत याद रखते हैं।पढ़नादृश्य
लोग जो सुनते हैं, उसका लगभग 20-25 प्रतिशत याद रखते हैं।सुननाश्रव्य
लोग जो देखते हैं, उसका लगभग 30-35 प्रतिशत उनके दिमाग में रहता है।देखनादृश्य
लोग जो देखते, सुनते और करते हैं, उसका 20-25 प्रतिशत या उससे अधिक याद रखते हैं (देखा, सुना)।दृश्यदृश्य-श्रव्य
लोग जो देखते और सुनते हैं, उसका 50 प्रतिशत या उससे अधिक वे याद रखते हैं, (देखा और सुना)।दृश्यश्रव्य
उपरोक्त आँकड़ों से सिद्ध होता है कि अधिक इंद्रियों से काम लेने पर अध्ययन अधिक स्पष्ट रूप से समझ में आता है।
संचार का प्रकार

सम्बन्ध इन्द्रियों की संख्या के आधार पर संचार का वर्गीकरण:-

(1) श्रव्य (सुनना) : उदाहरण, रेडियो, श्रव्य रिकॉर्डिंग, सीडी प्लेयर, व्याख्यान, लैंड लाइन या मोबाइल फोन।
(2) दृश्य (देखना) : उदाहरण, संकेत या प्रतीक, मुद्रित सामग्री, चार्ट, पोस्टर।
(3) श्रव्य-दृश्य (सुनना-देखना) : उदाहरण, टेलीविज़न, वीडियो फिल्में, मल्टी-मीडिया, इंटरनेट।
संचार कैसे होता है? (How Does Communication Take Place?)

संचार की प्रक्रिया (The Process of Communication)

किसी भी माध्यम द्वारा प्रेषक से प्राप्तकर्त्ता तक सूचनाओं/जानकारियों का आदान-प्रदान संचार प्रक्रिया कहलाता है। संचार प्रक्रिया में विभिन्न माध्यमों एवं विधियों से सूचनाओं/जानकारियों का आदान-प्रदान इस प्रकार से किया जाता है, ताकि प्रेषक और प्राप्तकर्त्ता दोनों ही सूचना/जानकारी को भली-भाँति, स्पष्ट तथा पूर्ण रूप से समझ सकें। इसके अतिरिक्त भविष्य में संचार की योजना बनाने के लिए श्रोताओं/दर्शकों की प्रतिपुष्टि (feedback) भी प्राप्त किया जाता है।
संचार प्रक्रिया का क्रम (Sequence of Communication Process)

सामान्यतः संचार प्रक्रिया निम्न क्रम में चलती है- किसने, क्या, किससे, कब, किस प्रकार, किन परिस्थितियों में कहा और उसका क्या प्रभाव रहा। आमतौर पर, किसी भी संचार प्रक्रिया के आधारभूत घटकों का चक्र पूरा करने के लिए इसे एक निश्चित क्रम में व्यवस्थित किया जाता है। फिर भी प्रभावी और सफल संचार के लिए निम्नलिखित पाँच घटकों का कुशलता से नियंत्रण किया जाना चाहिए। इसे संचार के ‘एस.एम. सी.आर.ई. मॉडल’ (SMCRE Model) कहा जाता है।
संचार का एस.एम.सी.आर.ई. मॉडल : संचार का प्रभाव (Effect of Communication) (प्रतिपुष्टि या दर्शकों की अनुक्रिया या प्रत्युत्तर)

1. स्रोत (Source)

• संचारक
• उद्भावक
• प्रेषक

2. संदेश (Message)

• सूचना
• साधन
• विषय

3. चैनल (Channel)

• साधन
• माध्यम

4. ग्राही/प्राप्तकर्त्ता (Receiver)

• दर्शक/श्रोता
1. स्रोत (Source) : स्रोत का तात्पर्य उस व्यक्ति से है जो किसी संदेश संबंधी संचार प्रक्रिया को शुरू करता है। किसी भी संचार प्रक्रिया का सोत ही उस पूरी प्रक्रिया को प्रभावी और सफल बनाने के लिए मुख्य रूप से उत्तरदायी होता है। किसी भी सूचना/जानकारी के प्रदान करना चाहिए जिससे की प्राप्तकर्त्ता को संदेश स्पष्ट और पूर्ण रूप से समझ आमित्र सहपाठी, सगे-संबंधी, राजनीतिज्ञय, प्रशासक, लेखक इत्यादि जैसा कोई भी व्यक्ति किसी संदेश का स्रोत हो सकता/सकती है।
2. संदेश (Message) : संदेश को उस विषय, जानकारी या सूचना के रूप में परिभाषित किया जा सकता है, जिसे कोई संचारक प्राप्त करना, स्वीकारना या उस पर कार्रवाई करना चाहता है। संदेश कोई भी तकनीकी, वैज्ञानिक या सामान्य जानकारी या किसी व्यक्ति, समूह अथवा जनसमुदाय की रोज़मर्रा की जिंदगी से जुड़ी जानकारियाँ या ज्ञान के किसी क्षेत्र से संबंधित सामान्य या विशिष्ट विचार हो सकता है। एक अच्छा संदेश सरल, आकर्षक और स्पष्ट होता है। इसे अपनाए गए चैनलों और प्राप्तकर्त्ता समूह की प्रकृति और स्वरूप की दृष्टि से भी बहुत ही विशिष्ट, प्रामाणिक, समयोचित, उपयुक्त और प्रयोज्य (specific, authentic, timely, appropriate and applicable) होना चाहिए।
3. चैनल (Channel) : चैनल, संचार का वह माध्यम होता है जिसके द्वारा कोई जानकारी प्रेषक से प्राप्तकर्त्ताओं तक पहुँचती है। आमने-सामने (face-to-face) बैठकर किया गया संचार / मौखिक संचार, आज भी संचार के सबसे सहज और प्रभावी साधनों में से एक माना जाता है। इसी कारण से यह वैश्विक स्तर पर भी सर्वाधिक प्रचलित संचार का माध्यम है। हालांकि पिछले कुछ समय से सामाजिक एवं प्रौद्योगिकीय परिवर्तनों के कारण बहुत से लोग संचार के लिए आधुनिक एवं उन्नत जनसंचार माध्यमों (मोबाइल, इंटरनेट इत्यादि) के प्रयोग को प्राथमिकता देने लगे है।

सामान्यतः चैनल दो प्रकार के होते हैं-

(i) अंतर्वैयक्तिक संचार चैनल, जैसे कि- अलग-अलग व्यक्ति और समूह।
(ii) जनसंचार माध्यम द्वारा संचार के चैनल, जैसे कि- उपग्रह, बेतार और ध्वनि तरंगें।
4. ग्राही/प्राप्तकर्त्ता (Recciver) : ग्राही या श्रोता दर्शक/ पाठक वह व्यक्ति होता है जो संदेश प्राप्तकर्त्ता है। सरल शब्दों में कहें तो- ग्राही/प्राप्तकर्त्ता को किसी भी संचार कार्य के लक्ष्य के रूप में भी परिभाषित किया जा सकता है। ग्राही कोई भी व्यक्ति, समूह या संगठन हो सकता हैं। ग्राही प्राप्तकर्त्ता समूह जितना अधिक समरूप/सजातीय (homogeneous) होगा, संचार प्रक्रिया की सफलता की संभावना उतनी ही अधिक होगी।
5. सूचना का प्रभाव / प्रतिपुष्टि (Effect of Communication/Feedback) : कोई भी संचार प्रक्रिया तब तक अधूरी मानी जाती है जब तक की प्रसारित संदेश के संबंध में अनुक्रिया (feedback) प्राप्त नहीं हो जाती। प्रतिपुष्टि प्राप्त करना किसी भी संचार प्रक्रिया का अंतिम चरण होता है। यदि संदेश की प्रतिपुष्टि अपेक्षा के अनुरूप हो तो संचार प्रक्रिया चक्र पूरा हो जाता है। परंतु, यदि लक्षित दर्शकों/श्रोताओं की प्रतिक्रिया आशा के अनुरूप नहीं होती तो संदेश पर पुनर्विचार और संशोधन के उपरांत संपूर्ण संचार प्रक्रिया फिर से दोहराई जाती है। उदाहरण के लिए,

(i) कक्षा में कोई भी विषय या पाठ पढ़ाए जाने के बाद अक्सर शिक्षक विद्यार्थियों से पूछते है कि क्या उन्हें पाठ या विषय समझ में आया के नहीं? छात्रों से प्रश्न पूछने और उनका उत्तर जानने की यह क्रिया कि क्या विषय-वस्तु और पाठ समझे गए हैं, और किन विषयों को फिर समझाने की आवश्यकता है, प्रतिपुष्टि कहलाती है।
(ii) विभिन्न समाचार-पत्रों और पत्रिकाओं में छपे पाठकों के पत्र, प्रतिपुष्टि का ही एक रूप हैं।
(iii) टेलीविजन कार्यक्रमों टी.आर.पी., दर्शकों से प्राप्त प्रतिपुष्टि का ही एक रूप है।
संचार माध्यम (मीडिया) क्या है? (What is Media?)

संचार माध्यम/मीडिया वह साधन है, जो विभिन्न प्रकार की धारणाओं, विचारों, भावनाओं, नए अनुभवों इत्यादि को प्रेषित और प्रसारित करने के लिए संचार की विभिन्न विधियों का प्रयोग संचार माध्यमों के प्रभाव, उपयोगिता तथा महत्त्व का अनुमान इसी बात से लगाया जा सकता है कि, संचार रेडियो, टेलीविज़न, इंटरनेट, समाचार-पत्र इत्यादि में प्रसारित/प्रकाशित विभिन्न विज्ञापनों, कार्यक्रमों, लेखों आदि को सुनने, देखने या पढ़ने के बाद हम उनसे किसी-न-किसी रूप में जरूर प्रभावित होते है। विज्ञापन और कार्यक्रम, जिन्हें हम टीवी पर देखते हैं, थिएटर या टीवी पर जो फिल्में देखते हैं. अखबार में जो समाचार पढ़ते हैं, राजनेता का भाषण, कक्षा में शिक्षक द्वारा पढ़ाए गए पाठ या किसी उपकरण के ठीक से काम न करने पर की गई शिकायत या घर बैठे इंटरनेट द्वारा की गई खरीदारी जैसे विभिन्न कार्य करते है।

इन सभी में सामान्य बात यह है कि इन संदेशों को लोगों तक पहुँचाने के लिए किसी-न-किसी माध्यम का प्रयोग किया जाता है, जैसे कि जब हम किसी से मोबाइल फोन पर बात करते हैं, तो हवा उस माध्यम के रूप में काम करती है जिससे ध्वनि तरंग संचरित होती है।

इसलिए यदि संचार एक प्रक्रिया है तो, संचार माध्यम / मीडिया वह साधन है, जो किसी सूचना, संदेश या विचार इत्यादि को दूसरों तक पहुँचाने के लिए संचार की विभिन्न विधियों का प्रयोग करता है। वर्तमान समय में जनसंचार माध्यमों में -संचार के लिए आधुनिक प्रौद्योगिकी का बड़े पैमाने पर प्रयोग किया जा रहा हैं बहुत से लोगों का मानना है कि संचार माध्यम या मीडिया का अर्थ केवल रेडियो और टेलीविजन तक ही सीमित है। जबकि वास्तविकता यह है कि सभी प्रकार के उपग्रह संचार (satellite communication), कंप्यूटर और बेतार प्रौद्योगिकी (computer and wireless technology) भी संचार माध्यमों/मीडिया की ही श्रेणी में आते है। निरंतर हो रहे प्रौद्योगिकीय विकास के अनुरूप संचार माध्यमों में भी काफी परिवर्तन और विकास हो रहा है। प्रौद्योगिकीय विकास के कारण ही आज संचार प्रक्रिया के लिए मीडिया के रूप में असंख्य आधुनिक प्रौद्योगिकियाँ उपलब्ध हैं।
संचार माध्यमों का वर्गीकरण और कार्य (Media Classification and Functions)

संचार माध्यमों को मुख्य रूप से निम्न दो वृहत् श्रेणियों में वर्गीकृत किया जाता है-

संचार माध्यमों का वर्गीकरण (Classification of Media)

(a) पारंपरिक संचार माध्यम (Traditional Media)
(b) आधुनिक संचार माध्यम (Modern Media)
1. पारंपरिक संचार माध्यम (Traditional Media)

पारंपरिक संचार माध्यम का तात्पर्य उन माध्यमों से है जिनका प्रयोग पुरातनकाल से चला आ रहा है, इन्हें संचार के देशी माध्यम भी कहा जाता है। भारत भौगोलिक दृष्टि से बहुत ही बड़ा देश है जहाँ विभिन्न धर्म, साम्प्रदाय, जाति तथा अलग-अलग भाषाएँ बोलने वाले लोग वास करते है। आज भी भारत की जनसंख्या का बड़ा भाग ग्रामीण तथा दूरस्थ क्षेत्रों में ही वास करता है। ग्रामीण क्षेत्रों में सुविधाओं की कमी के कारण वर्षों से विभिन्न प्रकार के सरकारी तथा गैर-सरकारी विकास कार्यक्रमों के लिए स्थानीय मेलों और रेडियो जैसे पारंपरिक संचार माध्यमों के प्रयोग को ही प्राथमिकता दी जाती थी।

ग्रामीण क्षेत्रों के लोगों की आर्थिक एवं शैक्षणिक स्थिति को देखते हुए आज भी अंतर्वैयक्तिक संचार माध्यम को ही संचार का सर्वाधिक प्रयुक्त और प्रभावी माध्यम माना जाता है। इसके अतिरिक्त विभिन्न प्रकार के निम्नलिखित पारंपरिक लोक संचार माध्यमों का भी प्रयोग किया जाता है, जैसे कि-

(i) पारंपरिक लोक रंगमंच अथवा नाटक, जैसे जात्रा (बंगाल), रामलीला और नौटंकी (उत्तर प्रदेश). बिदेसिया (बिहार), तमाशा (महाराष्ट्र), यक्षगान, दशावतार (कर्नाटक) या भवाई (गुजरात)।

(ii) विभिन्न मौखिक साहित्य और संगीत के मिश्रित रूपों में मूलतः लोक या जनजातीय गीत और नृत्य, जैसे कि- बोल और भतियाली (बंगाल), स्ना और दादोरिया (मध्य प्रदेश), दूहा और गरबा (गुजरात), चकरी (कश्मीर), भांगड़ा और गिद्दा (पंजाब), कजरी, चैती (उ.प्र.) और आल्हा (उ.प्र. और बिहार.) पौडा और लावनी (महाराष्ट्र), बिहू (असम), मांड और पनिहारी तथा चारणों, भाटों (राजस्थान) द्वारा गाए जाने वाले गीत इत्यादि।

(iii) देश के उत्तर-पूर्वी और अन्य जनजातीय समूहों के ऐसे विभिन्न ढोल महोत्सव हैं, जिनमें ढोल की अत्यंत लयबद्ध तालों के साथ नाच और गाने का आयोजन होता है।

(iv) अनेक प्रकार के कठपुतली कार्यक्रम भी मनोरंजन के साथ-साथ संदेश पहुँचाने के लिए आम संचार माध्यम की भूमिका निभाते हैं। इसमें सबसे आम हैं, डोरी से नचाई जाने वाली कठपुतली अथवा ‘सूत्रधारिका’, जिसका प्रचलन मुख्यतः राजस्थान और गुजरात में है, और छाया पुतली, जो देश के दक्षिणी हिस्सों में अधिक प्रचलित है।
पारंपरिक संचार माध्यमों के कुछ उदाहरण

1. कठपुतली
2. लोक नृत्य
3. लोक रंगमंच
4. मौखिक साहित्य
5. मेले और त्यौहार
6. अनुष्ठान और प्रतीक
7 संकेत
8. पोस्टर
9. पत्र-पत्रिकाएँ
10. अन्य स्थानीय मुद्रित सामग्री।

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