NCERT Solution Class 11th Home Science Chapter – 12 वित्तीय प्रबंधन एवं योजना (Financial Management and Planning) Notes In Hindi

NCERT Solution Class 11th Home Science Chapter – 12 वित्तीय प्रबंधन एवं योजना (Financial Management and Planning)

TextbookNCERT
class11th
SubjectHome Science
Chapter12th
Chapter Nameवित्तीय प्रबंधन एवं योजना
CategoryClass 11th Home Science Notes in hindi
Medium Hindi
SourceLast Doubt
NCERT Solution Class 11th Home Science Chapter – 12 वित्तीय प्रबंधन एवं योजना (Financial Management and Planning) Notes In Hindi इस अध्याय को पढ़ने के बाद आप निम्न को समझ पाएँगे- वित्तीय प्रबंधन का अर्थ एवं संकल्पना, विभिन्न प्रकार की आय, पारिवारिक बजट बनाने में सम्मिलित चरणों की व्याख्या, बचत एवं निवेशों के अर्थ का वर्णन तथा सुदृढ़ निवेश के सिद्धांत।

NCERT Solution Class 11th Home Science Chapter – 12 वित्तीय प्रबंधन एवं योजना (Financial Management and Planning)

Chapter – 12

वित्तीय प्रबंधन एवं योजना

Notes

वित्तीय प्रबंधन (Financial Management)

किसी लक्ष्य की पूर्ति हेतु धन/ वित्त के कुशल तथा प्रभावी प्रबंधन को वित्तीय प्रबंधन कहा जाता है। (Financial management can be described as, the efficient and effective management of wealth (money) in order to fulfill the objectives)

एक परिवार के लिए वित्तीय प्रबंधन का तात्पर्य है- अपने धन का उचित प्रयोग, बचत एवं निवेश। किसी परिवार के लिए उसकी आय उस परिवार में रहने वाले सभी सदस्यों की सभी प्रकार की आय का जोड़ (Total) होता है। जो उस परिवार को वेतन, किराए, ब्याज, डिविडेंड, बोनस या फिर सेवानिवृत्ति के उपरान्त धन इत्यादि के रूप में प्राप्त होती है। परिवार की सभी प्रकार की आय का योजनाबद्ध तथा समुचित मूल्यांकन के उपरांत किया गया उपयोग ही वित्तीय प्रबंधन कहलाता है। वित्तीय प्रबंधन का मुख्य उद्देश्य, एक परिवार को उपलब्ध विभिन्न आय संबंधी साधनों के उचित उपयोग द्वारा अधिकतम संतुष्टि प्रदान करना होता है।

किसी परिवार का जीवन स्तर केवल उस परिवार के आय के स्रोतों पर ही निर्भर नहीं करता बल्कि वह इस बात पर भी निर्भर करता है कि उस परिवार की आय नियमित तथा स्थाई (regular and stable income) हैं या नहीं इसलिए जीवन स्तर बेहतर बनाए रखने के लिए धन का एक संसाधन के रूप में प्रबंधन करना जरूरी हो जाता है।
वित्तीय नियोजन (Financial Planning)

उपलब्ध वित्त/धन के विवेकपूर्ण उपयोग के लिए वित्तीय नीतियों के निर्धारण एवं क्रियान्वयन की प्रक्रिया वित्तीय नियोजन कहलाती है।

धन नियोजन, वित्तीय प्रबंधन का ही एक महत्वपूर्ण भाग है। वित्तीय प्रबंधन के नियोजन चरण में ‘बजट’ शब्द का प्रयोग किया जाता है। कोई भी परिवार जब अपना पारिवारिक बजट बनाता है तो उसका मुख्य उद्देश्य यह सुनिश्चित करना होता है कि- पारिवारिक आय का उपयोग इस प्रकार से किया जाए ताकि परिवार के सभी सदस्यों की वर्तमान आवश्यकताओं की पूर्ति के साथ-साथ परिवार के दीर्घकालिक लक्ष्यों को भी प्राप्त किया जा सकें। एक अच्छे बजट का निर्धारण तथा उसे प्रभावी ढंग से लागू करने से परिवारों के लिए अपने लक्ष्यों के प्राप्त करना काफी आसान हो सकता है।
वित्तीय नियोजन के लाभ (Benefits of Financial Planning)

• वित्तीय नियोजन द्वारा गैर जरूरी वस्तुओं एवं सेवाओं पर धन व्यय करने से बचा जा सकता है।
• वित्तीय नियोजन के कारण आय का कुछ अंश भावी उपयोग के लिए बचाया जा सकता है।
• ऋण लेने की परिस्थिति एवं आदत से बचा जा सकता है।

उपरोक्त दोनों बातें तभी संभव हो सकती है जब परिवार अपनी वित्तीय योजनाओं का समय-समय पर निरीक्षण तथा मूल्यांकन करता रहे। इसके अतिरिक्त कोई भी वित्तीय नियोजन केवल तभी सफल हो सकता है जब परिवार के सभी सदस्य उसका ईमानदारी तथा प्रतिबद्धता के साथ पालन करें।
प्रबंधन (Management)

अपने सीमित संसाधनों का कुशल तथा प्रभावी प्रयोग करते हुए लक्ष्यों की प्राप्ति की प्रक्रिया को प्रबंधन कहते है। अथवा लक्ष्यों या उद्देश्यों को प्राप्त करने के लिए उपलब्ध संसाधनों को नियंत्रित करने एवं प्रभावी रूप से कार्यावित करने की प्रक्रिया को प्रबंधन कहते है।

सरल शब्दों में कहे तो प्रबंधन से अभिप्राय है- अपने लक्ष्य एवं उद्देश्यों को प्राप्त करने के लिए उपलब्ध संसाधनों का बुद्धिमानीपूर्वक उपयोग करना। चूंकि इस अध्याय में हम परिवार के संदर्भ में पढ़ रहे हैं इसलिए हम संसाधनों की अपेक्षा पारिवारिक संसाधनों के विषय में समझने का प्रयास करेगे। पारिवारिक संसाधनों का तात्पर्य ऐसे संसाधनों से हैं जो एक निश्चित समयावधि के दौरान व्यक्ति अथवा परिवार को उपलब्ध होते हैं और जो उनके पारिवारिक लक्ष्यों को प्राप्त करने में मदद करते हैं।
पारिवारिक संसाधन निम्न प्रकार के हो सकते हैं-

• मानवीय संसाधन जैसे कि – ज्ञान, कौशल, स्वास्थ्य, समय और ऊर्जा,
• भौतिक संसाधन जैसे कि – आवास, धन तथा निवेश,
• सामुदायिक संसाधन जैसे कि सार्वजनिक पुस्तकालय, पार्क, सामुदायिक केंद्र, अस्पताल इत्यादि।

सामाजिक इकाई (social unit) होने के साथ-साथ परिवार एक उपभोग इकाई (consumption unit) भी है, जिसका एक प्रमुख उद्देश्य परिवार के सदस्यों के हितों के लिए परिवार के पास उपलब्ध वित्त का उचित प्रबंधन करना भी है। धन एक महत्वपूर्ण पारिवारिक संसाधन है। पर्याप्त धन के अभाव में कोई भी परिवार एक सुखद और सुविधापूर्ण जीवन व्यतीत नहीं कर सकता है। वर्तमान आवश्यकताओं की पूर्ति तथा भावी लक्ष्यों की पूर्ति के लिए धन प्रबंधन एक महत्वपूर्ण तथा अनिवार्य कौशल है।
पारिवारिक आय (Family Income)

“एक परिवार को निश्चित समयावधि के दौरान विभिन्न स्रोतों एवं साधनों से प्राप्त होने वाली मुद्रा, सेवाओं तथा सुविधाओं को पारिवारिक आय कहते हैं।”

दूसरे शब्दों में कहे तो पारिवारिक आय का तात्पर्य परिवार की सभी सदस्यों द्वारा एक निश्चित अवधि में अर्जित सभी प्रकार के आय के कुल योग से हैं। अर्थात् परिवार के सदस्य अपने ज्ञान, योग्यताओं एवं कौशल इत्यादि के कारण जो भी धन, सेवाएँ या सुविधाएँ कमाते हैं

उसे पारिवारिक आय कहते हैं। पारिवारिक आय दैनिक, साप्ताहिक, मासिक या वार्षिक हो सकती हैं। सरल शब्दों में कहें तो- एक वित्त वर्षीय आय का अर्थ परिवार की 1 अप्रैल से 31 मार्च तक प्राप्त आय से होता है।

पारिवारिक आय निम्न रूपों में हो सकती हैं-

• मजदूरी
• किराया
• उपहार
• सब्सिडी
• वेतन
• कारोबार से लाभ
• कमीशन
• ब्याज
• लाभांश
• पेंशन
• रॉयल्टी (स्वामित्व)
• दान
• बोनस
• आर्थिक सहायता
• चैरिटी
पारिवारिक आय को प्रभावित करने वाले कारक

1. परिवार में सदस्यों की संख्या: परिवार के कमाने वाले सदस्यों की संख्या जितनी अधिक होगी पारिवारिक आय उतनी अधिक होगी।
2. परिवार के सदस्यों को शिक्षा का स्तर: परिवार के सदस्यों का शिक्षा का स्तर जितना उच्च होगा उनकी पारिवारिक आय उतनी अधिक होगी।
3. समय का उपयोग: परिवार के कमाने वाले यदि अवकाश या अपने खाली समय के दौरान कोई आय सृजन संबंधी कार्य करते है तो इससे भी पारिवारिक आय में वृद्धि होती है।
4. परिवार के सदस्यों के गुण एवं कौशल: परिवार के सदस्यों के आय सृजन करने संबंधी गुण एवं कौशल जितने बेहतर होंगे उनकी पारिवारिक आय उतनी अधिक होगी।
धन/मुद्रा तथा उसके कार्य (Money and It’s Functions)

धन विनिमय का माध्यम हैं जो कि बैंक नोट तथा सिक्कों के रूप में होता हैं।
अथवा
मुद्रा वह है जो मुद्रा का कार्य करती हैं।
अथवा
धन/मुद्रा को उस वस्तु के रूप में परिभाषित किया जा सकता हैं जो वस्तुओं एवं सेवाओं के भुगतान में या अन्य व्यवसायिक दायित्वों के लिए व्यापक रूप से स्वीकार किया जाता है।
धन/मुद्रा के कार्य (Functions of Money) : धन के दो प्रमुख कार्य निम्नलिखित हैं-

यह विनिमय के माध्यम के रूप में कार्य करता हैं (It serves as a medium of exchange): धन/मुद्रा विनिमय के माध्यम के रूप में कार्य करती है। मुद्रा विनिमय के माध्यम के रूप में विनिमय सौदों को दो भागों, क्रय और विक्रय में विभाजित करती है। मुद्रा का यह कार्य आवश्यकताओं के दोहरे संयोग की कठिनाई को दूर करता है। लोग अपनी वस्तुओं को मुद्रा के बदले में बेचते और खरीदते हैं।

मूल्य का माप (Measurement of value): मुद्रा एक सामान्य मूल्य मापक के रूप में ही काम करती हैं जिसमें सभी वस्तुओं और सेवाओं के मूल्य व्यक्त किए जाते है। मुद्रा में व्यक्त कीमतों के आधार पर दो वस्तुओं के सापेक्षिक मूल्यों की तुलना (Relative comparision) करना सरल हो जाता है।

धन के उपरोक्त कार्यों की समझ के आधार पर हम कह सकते हैं कि-

धन एक ऐसी चीज हैं जो सामान्यतया वस्तुओं के बदले में स्वीकार्य होती हैं तथा जिसके संदर्भ में अन्य वस्तुओं का मूल्य निर्धारित किया जाता हैं।
धन/मुद्रा का महत्व (Importance of Money)

धन सब कुछ नहीं हैं परंतु आपको सब कुछ खरीदने के लिए धन की आवश्यकता होती हैं। (Money is not everything but you need money for everything.)

धन के महत्व को निम्न बिंदुओं के आधार पर समझा जा सकता हैं-

• धन विनिमय के माध्यम के रूप में कार्य करता है जिसके कारण यह वस्तु विनिमय प्रणाली (barter system) की समस्याओं को हल कर देता है।

• धन मूल्य के मानक के रूप में कार्य करता है जिसके कारण यह एक ही प्रकार की विभिन्न वस्तुओं के मूल्यों की तुलना करने को आसान बनाता जिसके कारण सर्वोत्तम विकल्प के चयन में आसानी होती है।

• धन/मुद्रा विभिन्न प्रकार के लेन-देन के मानक के रूप में कार्य करता है। इससे लेन-देन की जोखिम में कमी आती हैं तथा बचत और निवेश को भी बढ़ावा मिलता है जो पूँजी निर्माण का आधार होता है। अतः धन बेहतर जीवन स्तर के लिए जरूरी साधन है।

• मुद्रा के फलस्वरूप किसी वस्तु या सेवा का भुगतान पहले की अपेक्षा काफी आसान हो गया हैं। उदाहरण के लिए, कल्पना कीजिए कि आपने किसी से गेहूँ के रूप में ऋण लिया। इस ऋण को उसी गुणवत्ता वाले गेहूँ के रूप में लौटाना कितना कठिन है? मुद्रा इस कार्य को प्रभावशाली ढंग से पूरा करती है।

• मुद्रा की उत्पत्ति से धन का संचय बहुत आसान हो गया है। धन का कागजी मुद्रा (paper titles) के रूप में आसानी से संचय किया जा सकता है। वस्तु विनिमय प्रणाली संचित किया गया धन भावी निवेश का एक स्रोत है तथा निवेश संवृद्धि (growth) तथा समृद्धि (prosperity) का एक स्रोत है।
पारिवारिक आय के प्रकार (Types of Family Income)

पारिवारिक आय तीन प्रकार की होती है-

पारिवारिक आय (Family Income)

1. मौद्रिक आय (Money Income)
धन के रूप में प्राप्त आय
वेतन, मजदूरी, बोनस किराया, ब्याज, गिफ्ट चेक

2. वास्तविक आय (Real Income)

(i) प्रत्यक्ष आय (Direct Income)
• बिना कोई धन खर्च किए प्राप्त सेवाएँ, वस्तुएँ तथा सुविधाएँ
• परिवार के सदस्यों के कौशल, ज्ञान, गुणों का प्रयोग करके प्राप्त सुविधा अथवा वस्तुएँ
• सामुदायिक सुविधाओं का प्रयोग करके

(ii) अप्रत्यक्ष आय (Indirect Income)

जब लेन-देन का माध्यम (धन) शामिल हो
• धन खर्च करके प्राप्त सुविधाएँ, वस्तुए तथा सेवाएँ
• फ्रिंज बेनिफिट (सहायक लाभ)
• बार्टर (विनिमय तंत्र)

3. आत्मिक आय (Psychic Income)
• मौद्रिक तथा वास्तविक
• आय द्वारा प्राप्त संतुष्टि
मौद्रिक आय (Money Income)

एक निश्चित समयावधि तक कार्य करने के पश्चात् नकद धन के रूप में प्राप्त आय के मौद्रिक आय कहते है।
अथवा
“मौद्रिक आय से तात्पर्य उस क्रय शक्ति से है, जो मुद्रा के रूप में किसी निश्चित समय में एक परिवार को प्राप्त होती है।”

दूसरे शब्दों में कहे तो मौद्रिक आय, रूपयों तथा पैसों के रूप में अर्जित वह क्रय शक्ति हैं जो एक निश्चित अवधि में एक परिवार को प्राप्त होती है। किसी परिवार को मौद्रिक आय, मजूदरी, बोनस, वेतन, किराया, कमीशन, लाभांश, ब्याज, सेवानिवृत्ति आय रॉयलट्री इत्यादि के रूप में नकद धन के रूप में प्राप्त होती हैं।

मौद्रिक आय दैनिक जीवनयापन के लिए वस्तुओं तथा सेवाओं के क्रय के लिए खर्च की जाती हैं। अधिकतर परिवारों में मौद्रिक आय का कुछ भार भविष्य के इस्तेमाल के लिए संभाल कर रखा जाता हैं या भविष्य में अधिक लाभ कमाने के उद्देश्य से निवेश कर दिया जाता हैं।

हर परिवार में मौद्रिक आय की आवक तथा प्रवाह अलग-अलग होता है (money income varies from family to family)। जैसे कि- एक नौकरीपेशा व्यक्ति की आय नियमित (प्रतिमाह) होती हैं जबकि एक किसान की आय अनियमित होती हैं, क्योंकि किसान की आय तभी होती हैं जब वह अपनी फसल को बेचता है (साल में लगभग दो बार)।

अधिकतर परिवारों में धन एक सीमित संसाधन होता हैं, इसलिए धन प्रबंधन बहुत ही महत्वपूर्ण कार्य होता है। आय तथा व्यय के बीच उचित संतुलन बनाए रखना जरूरी हैं ताकि भविष्य में किसी भी प्रकार की वित्तीय समस्या का सामना न करना पड़े।

मौद्रिक आय बढ़ाने के कुछ उपाय
• बचत की आदत को बढ़ाना।
• घर पर खाना बनाकर कैंटीन अथवा ऑफिसों में भेजना।
• घर का कुछ भाग अथवा कमरा किराये पर देना।
• ट्यूशन पढ़ाना।
• घर पर पेइंग गेस्ट रखना।
• पार्टटाइम अथवा ओवरटाइम काम करना।
2. वास्तविक आय (Real Income)

वास्तविक आय का तात्पर्य उस आय से हैं जो धन के अतिरिक्त किसी सुविधा, सेवा या वस्तु के रूप में परिवार को एक निश्चित समयावधि के दौरान प्राप्त होती हैं। अथवा
“वास्तविक आय, सुविधाओं, सेवाओं तथा वस्तुओं का वह प्रवाह है जो पारिवारिक आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए एक निश्चित अवधि में उपलब्ध होता है। ” -ग्रास एवं क्रैण्डल

दूसरे शब्दों में कहे तो, कई बार कार्यस्थल पर दी गई सेवाओं के बदले मुद्रा के अतिरिक्त कुछ अन्य सुविधाएँ, सेवाएँ तथा वस्तुएँ भी प्राप्त होती हैं, इन्हीं को परिवार की वास्तविक आय कहते हैं।

वास्तविक आय दो प्रकार की होती है-

वास्तविक आय (Direct Real Income) : प्रत्यक्ष वास्तविक आय वह सेवाएँ तथा सुविधाएँ होती हैं जो एक परिवार के सदस्यों के फलस्वरूप अथवा सामुदायिक सेवाओं का प्रयोग करने के फलस्वरूप प्राप्त होती हैं, जैसे कि-

(a) प्रत्यक्ष वास्तविक आय (Direct Real Income) : प्रत्यक्ष वास्तविक आय वह सेवाएँ तथा सुविधाएँ होती हैं जो एक परिवार के सदस्यों को बिना धन व्यय किए अपने प्रयत्नों के फलस्वरूप अथवा सामुदायिक सेवाओं का प्रयोग करने के फलस्वरूप प्राप्त होती हैं, जैसे कि-
• परिवार के सदस्यों द्वारा अपने ज्ञान, कुशलता एवं गुणों का प्रयोग करके स्वयं कार्य करना जैसे कि- घर पर कपड़े सिलना, घर का टिफिन ले कर जाना, सब्जियाँ उगाना, पानी के नल अथवा बिजली के उपकरणों की मरम्मत स्वयं करना आदि।
• सामुदायिक सेवाएँ जैसे कि- लाइब्रेरी का प्रयोग, सरकारी अस्पताल, सरकारी विद्यालयों का प्रयोग करना।

(b) अप्रत्यक्ष वास्तविक आय (Indirect Real Income) : अप्रत्यक्ष वास्तविक आय उन सुविधाओं अथवा वस्तुओं के प्रयोग को कहते हैं जो एक परिवार को धन व्यय करने को पश्चात् प्राप्त होती है। उदाहरण के लिए, घर के काम को आसान करने के लिए नौकर रखना, अपने ज्ञान तथा कौशल का प्रयोग करते हुए कम मूल्य में अच्छी गुणवत्ता की सब्जियाँ तथा वस्तुएँ इत्यादि खरीदना। अप्रत्यक्ष वास्तविक आय निम्न रूपों में हो सकती हैं।

धन का प्रयोग करके परिवार के लिए सुविधा तथा सेवाओं का लाभ लेना।

फ्रिंज बेनिफिट/सहायक लाभ (Fringe Benefit) : कई बार कार्यस्थल पर कार्य करने के फलस्वरूप कुछ अन्य लाभ जैसे वर्दी, ड्राइवर, मेडिकल सुविधा, आवास, मील कूपन इत्यादि प्राप्त होना।

बारटर सिस्टम/वस्तुओं का आदान-प्रदान (Barter System) : कई बार परिवार के सदस्यों मित्रों अथवा अन्य परिवार के सदस्यों में वस्तुओं अथवा सेवाओं का आदान-प्रदान करते हैं। उदाहरण के लिए, एक परिवार सब्जियाँ उगाकर पड़ोसी को देता है बदले में पड़ोसी उस महिला के बच्चों को सब्जियों के बदले ट्यूशन पढ़ाती है।
प्रत्यक्ष वास्तविक आय बढ़ाने के कुछ उपाय

• घर में बागवानी करके सब्जियाँ उगाना।
• बच्चों को ट्यूशन न भेजकर घर में ही पढ़ाना।
• बिजली के उपकरणों की मरम्मत स्वयं ही करना ।
• कपड़ों की सिलाई घर पर ही कर लेना।
• घर पर अचार, पापड़, जैम आदि घर पर ही बना लेना।
• घर पर मेंहदी लगाना।
• मित्रों के साथ किताबे शेयर करना अथवा लाईब्रेरी का प्रयोग करना।
• घर के कार्य स्वयं करना।
• काम पर घर का टिफिन ले कर जाना।
• सार्वजनिक परिवहन अथवा कार पूल का प्रयोग करना।
• इलाज के लिए प्राइवेट अस्पताल की अपेक्षा सरकारी अस्पताल का प्रयोग करना।

अप्रत्यक्ष वास्तविक आय बढ़ाने के कुछ उपाय

• अपने मित्रों के साथ कार्य अथवा वस्तुएँ साझा करना जैसे कि- पुस्तकें, नोट्स इत्यादि एक-दूसरे से शेयर करना ताकि दोनों के धन का अतिरिक्त व्यय बच सके। इसके अतिरिक्त यदि कोई व्यक्ति किसी के बच्चों को मुफ्त ट्यूशन पढ़ाता है तो बदले में दूसरा व्यक्ति उसके लिए कोई ऐसा काम मुफ्त में कर दे जिसमें कि ट्यूशन पढ़ाने वाले व्यक्ति के धन की बचत हो सके।
• घर के कामों को आसान बनाने के लिए आया, नौकर, माली, ड्राईवर इत्यादि को काम पर रखना।
• कार्यस्थल से प्राप्त सुविधाओं जैसे कि- गाड़ी, पेट्रोल, बिजली या टेलीफोन के बिलों की प्रतिपूर्ति (reimbursement) का अधिक- से-अधिक लाभ उठाना।
मानसिक/आत्मिक आय (Psychic Income)

मानसिक आय का तात्पर्य उस खुशी एवं संतुष्टि के भाव से हैं जो व्यक्ति को कोई कार्य करने के उपरांत प्राप्त होती है।
अथवा
“मानसिक आय से तात्पर्य एक निश्चित समय में एक परिवार को मौद्रिक और वास्तविक आय के उपयोग से प्राप्त संतोष से है।” -ग्रास एवं क्रैन्डल

सरल शब्दों में कहे तो, मानसिक आय को संतोष के रूप में परिभाषित किया जा सकता हैं जो विभिन्न प्रकार की सेवाओं तथा वस्तुओं के स्वामित्व एवं उपयोग के फलस्वरूप प्राप्त होता है।

मानसिक आय का मुद्रा के रूप में आकलन कर पाना कठिन है। यह एक प्रकार की गुप्त आय है जो अगोचर एवं वस्तुपरक (intangible and subjective) होती हैं तथा यह जीवन की गुणवत्ता के संदर्भ में बहुत ही जरूरी होती है।

आत्मिक आय की गणना नहीं की जा सकती क्योंकि वह पूर्णत: व्यक्तिगत है। यह आय परिवार के दृष्टिकोण, रुचि व जीवन मूल्यों पर निर्भर करती है। कुछ व्यक्तियों को मनोरंजन पर जैसे- फिल्में देखना, पर्यटन स्थल पर घूमने आदि से सन्तुष्टि मिलती है जबकि कुछ लोग शेयरों में निवेश करने में सन्तुष्टि प्राप्त करते हैं।

आत्मिक आय बढ़ाने के कुछ उपाय

• वस्तुओं की खरीद से पहले दुकानदार से मोल-भाव करके डिस्काउंट मिलने पर संतुष्टि महसूस करना।
• अच्छी गुणवत्ता के उपकरण खरीदना तथा इस बात से संतुष्टि महसूस करना कि वह लम्बे समय तक बिना खराब हुए चलेंगे।
• धन के विवेकपूर्ण उपयोग द्वारा प्राप्त मानसिक संतुष्टि
आय प्रबंधन (Income Management)

आय प्रबंधन को उस प्रक्रिया के रूप में परिभाषित किया जा सकता हैं जिसमें आय का उचित नियोजन, नियंत्रण तथा मूल्यांकन किया जाता है।

आय प्रबंधन का मुख्य उद्देश्य आय के उपलब्ध स्रोतों से पूर्ण संतुष्टि प्राप्त करना होता है। आय समान होने के बावजूद किन्ही दो परिवारों की आवश्यकताएँ एवं इच्छाएँ एक जैसी नहीं होती। इसलिए प्रत्येक परिवार को अपने लक्ष्यों, आवश्यकताओं और इच्छाओं को ध्यान में रखकर ही व्यय की योजना बनानी चाहिए। सफल रूप से आय प्रबंधन के लिए यह जरूरी है कि परिवार अपनी आय के सभी उपलब्ध स्रोतों को पहचाने तथा उनका ईमानदारी से विश्लेषण करे।
बजट (Budget)

बजट को एक निश्चित अवधि के दौरान अनुमानित आय तथा व्यय के रूप में परिभाषित किया जा सकता है।

क्रम एवं रश के अनुसार, “बजट भूतकाल के व्यय, भविष्य के अनुमानित व्यय और वर्तमान के मदों पर निश्चित व्यय का लेखा-जोखा है।”
धन के उचित उपयोग के लिए बजट बनाना, वित्तीय नियोजन का एक आम तरीका है। बजट भविष्य में किये जाने वाले खर्चा/व्यय की योजना हैं तथा यह वित्तीय प्रबंधन प्रक्रिया का पहला चरण भी हैं। किसी भी बजट की सफलता निम्नलिखित बातों पर निर्भर करती है-

• बजट यथार्थवादी तथा लचीला (realistic and flexible) होना चाहिए।
• बजट उस समूह के लिए उपयुक्त (suitable) होना चाहिए जिसके लिए वह तैयार किया जा रहा है, अर्थात् बजट समूह की आवश्यकताओं तथा आशाओं के अनुरूप होना चाहिए।
• बजट प्रक्रिया के संपूर्ण क्रियान्वन के दौरान उसके विभिन्न चरणों के नियंत्रण एवं मूल्यांकन की गुणवत्ता पर।
बजट निर्माण के विभिन्न चरण (Steps in Making a Budget)

बजट निर्माण प्रक्रिया के निम्नलिखित पाँच चरण होते हैं-

1. आवश्यक वस्तुओं एवं सेवाओं की सूची बनाना (To Prepare A List of Commodities and Services Required) : पारिवारिक वजट बनाने के लिए सबसे पहले बजट की समयावधि निश्चित करके उस समयावधि में परिवार के विभिन्न सदस्यों की आवश्यकता अनुसार आवश्यक वतुओं तथा सेवाओं की सूची बना लेनी चाहिए। इसके लिए विभिन्न वस्तुओं तथा सेवाओं को निम्नलिखित वर्गों में बाँटा जा सकता हैं, जैसे कि-

• भोजन तथा संबंधित खाद्य पदार्थों की लागत
• मासिक बिलों का भुगतान के लिए
• घर के रख-रखाव के लिए
• शिक्षा के लिए
• कपड़ों के लिए
• चिकित्सा एवं उपचार के लिए
• यातायात के लिए
• आयकर तथा अन्य किस्तों के लिए
• व्यक्तिगत खर्चों के लिए
• बचत के लिए इत्यादि

2. वस्तुओं तथा सेवाओं की कीमत का अनुमान (Estimate the Cost) : बजट बनाने के दूसरे चरण में परिवार के लिए वांछित वस्तुओं के मूल्य का अनुमान लगाया जाता हैं। वस्तुओं की अनुमानित कीमत का अंदाजा लगाते समय बाजार की स्थिति का भी विशेष ध्यान रखना चाहिए। जैसे कि – यदि किसी वस्तु के दाम निरंतर बढ़ रहे है तो बजट में उस वस्तु का दाम अंदाजे के अनुरूप थोड़ा-सा बढ़ाकर लगाना चाहिए ताकि बजट के क्रियान्वयन के दौरान परेशानी न हो।

3. सम्भावित कुल आय का अनुमान लगाना (Estimate Total Expected Income) : बजट के तीसरे चरण में परिवार की कुल आय (निश्चित तथा संभावित) का अनुमान लगाया जाता है। हालांकि इस बात का विशेष ध्यान रखना चाहिए कि सबसे पहले सभी आवश्यक वस्तुओं की पूर्ति निश्चित आय के अंदर ही हो जाए तथा यदि आवश्यकता पड़ तो विलासिता वाली वस्तुओं की पूर्ति संभावित आय से हो जाए।

4. व्यय तथा आय को संतुलित करना (Balancing Expenditure and Income) : बजट बनाने के दौरान आय तथा व्यय में संतुलन होना बहुत जरूरी है। अक्सर ऐसा होता है कि पारिवारिक व्यय, पारिवारिक आय से अधिक होता है। ऐसी स्थिति में दोनों के बीच संतुलन बैठाने के लिए या तो कोई अतिरिक्त कार्य करके आय में वृद्धि की जानी चाहिए या वस्तुओं के क्रय में कटौती करके व्यय को कम किया जा सकता है।

5. बजट योजना का निरीक्षण एवं मूल्यांकन (Check Plans) : बजट बनाने के अंतिम चरण में इस बात का निरीक्षण एवं मूल्यांकन करना जरूरी होता है कि क्या बजट सफल रहेगा के नहीं। इसके लिए निम्न कारकों का ध्यान रखना चाहिए-

• बजट में परिवार के सभी सदस्यों की आवश्यकता का ध्यान रखा गया है या नहीं।
• बजट में किसी भी आकस्मिक स्थिति जैसे कि- दुर्घटना इत्यादि।
• करदान (solvency) की क्षमता बनी रहनी चाहिए, अर्थात् समय पर सभी करों एवं बिलों का भुगतान हो पाएगा या नहीं।
• राष्ट्रीय तथा अंतर्राष्ट्रीय आर्थिक परिस्थितियाँ जैसे कि- आर्थिक मंदी इत्यादि।
• परिवार के दीर्घकालीन लक्ष्यों का ध्यान रखा गया है या नहीं।

पारिवारिक बजट की योजना बनाने के लाभ (Advantages of Planning Family Budgets)
बजट बनाने के निम्नलिखित लाभ है-

1. बजट बनाने से परिवार को अपनी आय के उपभोग का अनुमान प्राप्त हो जाता है।
2. विभिन्न कार्यों के लिए निर्धारित की गई राशि का योग तथा कुल आय का संतुलन जाँचा जा सकता है।
3. बजट बनाने से परिवार को यह जानने में मदद मिलती है कि उन्हें किस व्यय को प्राथमिकता देनी है तथा किस कार्य के लिए धन बचन पर ही व्यय करना है। इससे परिवार द्वारा धन के अपव्यय को रोका जा सकता है।
4. यह दीर्घकालिन लक्ष्यों को प्राप्त करने में सहायक होता है।
5. यह धन व्यवस्थापन की शिक्षा प्रदान करता है।
6. बजट द्वारा आय का उचित निर्धारण किया जा सकता है।
7. बजट बनाकर चलने से परिवार पर ऋण का भार नहीं होता है।
धन प्रबंधन में नियंत्रण (Control in Money Management)

मुद्रा अर्थात् धन एक ऐसा सीमित साधन है, जिसे परिवार के लक्ष्यों तथा संसाधनों की पूर्ति के लिए खर्च किया जाता है। हमारे दैनिक जीवन में विभिन्न वस्तुओं एवं सेवाएँ के क्रय-विक्रय के लिए धन का ही प्रयोग किया जाता है। वित्तीय व्यवस्था के लिए योजना अर्थात् बजट बनाने के बाद धन का उचित प्रबंधन ही वित्तीय प्रबंधन का अगला चरण है। वित्तीय प्रबंधन मुख्य रूप से दो प्रकार का होता है-
• पहला, यह जाँचना कि योजना कितने अच्छे ढंग से आगे बढ़ रही है। तथा,
• दूसरा, यदि आवश्यकता हो तो उसमें उचित फेर-बदल करना अर्थात्स मायोजन करना।

बजट का निरीक्षण दो प्रकार से किया जा सकता है-

I. यह जाँचने कि योजना कितने अच्छे ढंग से आगे बढ़ रही है। (Checking To See How Well a Plan is Progressing)

जाँचने का महत्व (Importance of Checking) : जाँच करने से यह पता लगाया जा सकता हैं कि योजना ठीक ढंग से आगे बढ़ रही है के नहीं तथा समायोजन की कहाँ आवश्यकता हैं।

1. मानसिक तथा यांत्रिक निरीक्षण (Mental and Mechanical Checks) : मानसिक निरीक्षण के लिए विभिन्न उद्देश्यों के लिए सुरक्षित राशि को छोटी इकाईयों में बांट कर उनका वास्तविक व्यय के साथ मिलान करके देखते है। जैसे कि- किसी गृहिणी को 10,000 रुपए की राशि बड़ी प्रतीत हो सकती है परंतु जब उसी 10,000 रुपए में गृहिणी को अपने राशन, दूध का बिल, फल-सब्जियाँ, बच्चों की किताबें खरीदनी हो तो उसे उपलब्ध धनराशि के अंदर सभी वस्तुएँ क्रय करने के लिए बहुत ध्यान से हर वस्तु का चयन उनकी कीमत को ध्यान में रखत हुए इस प्रकार से करना पड़ेगा कि उपरोक्त सभी वस्तुएँ उसी 10,000 रुपए में खरीद ली जाए।

यांत्रिक निरीक्षण में निश्चित राशि को किसी विशेष उद्देश्य के लिए अलग से रख लिया जाता है। जैसे कि- वहीं गृहिणी रसोईघर से संबंधित सभी खर्चे के लिए एक निश्चित धन
राशि एक अलग पर्स में रख लेती है तथा रसोईघर से संबंधित सभी खर्चे उसी पर्स में रखे पैसो से करती है तथा बिल इत्यादि भरने के लिए राशि पहले ही अलग कर ले।

2. रिकॉर्ड तथा लेखा-जोखा (Records and Accounts) : रिकॉर्ड अथवा लेखा-जोखा प्रारूप में धन का विभिन्न मदों में वर्गीकरण व्यय के उपरान्त दर्ज या रिकॉर्ड किया जाता है। घर के खर्चों का लेखा-जोखा बहुत ही साधारण प्रकार से दैनिक खर्चों के आधार पर, साप्ताहिक खर्चों के आधार पर तथा मासिक खर्चों के आधार पर दर्ज किया जाता है।

इसके अतिरिक्त यदि किसी विशेष परियोजन के लिए धन व्यय किया जाता है तो उस परियोजन से संबंधित बिलों को दर्ज कर लिया जाता है। किसी परिवार के लिए खर्चों का लेखा-जोखा रखने का मुख्य उद्देश्य निर्धारित बजट की वास्तविक व्यय के साथ तुलना की जा सके। एकल पत्रक विधि (single sheet record) रिकॉर्ड रखने की एक सरल तथा लचीली विधि हैं। व्यय के रिकॉर्ड एकल पत्रक में रखे जाते हैं।
घरेलू हिसाब-किताब रखने के लाभ (Advantages of Keeping Household Records)

सीमित आय वाले परिवारों में अपने खर्चे का हिसाब-किताब रखना निम्न कारणों से अत्यंत जरूरी होता हैं-

1. हिसाब-किताब रखने से गैर जरूरी वस्तुओं और सेवाओं पर खर्च करने से बचा जा सकता है जिसके कारण बचत करना भी आसान हो
जाता है।
2. हिसाब-किताब रखने से इस बात का ज्ञान रहता है कि कौन सी वस्तु कौन से हफ्ते अथवा महीने में किस भाव पर खरीदी गई थी। अर्थात्हि साब-किताब रखने से बाजार भाव की तुलना संभव हो पाती है।
3. रिकॉर्ड रखने/बनाने के कुछ तरीकों के लिए बिल तथा रसीद रखने की आवश्यकता पड़ती हैं। इस प्रकार अदायगी (भुगतान) का प्रमाण हमारे पास होता हैं उत्पाद अथवा सेवा खराब होने पर उसके विषय में शिकायत दर्ज कराई जा सकती है।
4. व्यय का हिसाब-किताब रखने से अनिवार्य आवश्यकताओं तथा विलासिता संबंधित वस्तुओं पर किए गए खर्च को जाना जा सकता है। यदि व्यक्ति को इन खर्चों का ज्ञान न हो तो वह अक्सर विलासिता संबंधित वस्तुओं पर आवश्यकता से अधिक खर्च कर देता है। जिसके कारण परिवार की अनिवार्य वस्तुओं संबंधी आवश्यकता अधूरी रह जाती है अर्थात् हिसाब-किताब रखने से अपव्यय को कम किया जा सकता है।
5. हिसाब-किताब लिखने से आय और व्यय के बीच का अंतर ज्ञात रहता है जिसके चलते आय तथा व्यय में संतुलन बनाए रखना हो जाता है।
6. नियमित रूप से हिसाब-किताब लिखते रहने से इस बात का ज्ञान रहता है कि परिवार के पास कितना धन शेष बचा है। इससे परिक्षा के लक्ष्यों को प्राप्त करना आसान हो जाता है।
7. उधार लेने की आदत को रोका जा सकता है। कई परिवार अपने आसपास की दुकान से पूरे महीने राशन या अन्य सामग्री उधार लेते है तथा अगले महीने की शुरुआत में उधार चुकता करते है। यदि दुकानदार का नियमित रूप से हिसाब रखा जाए कौन-सी वस्तु कब कितनी और किस मूल्य पर खरीदी थी। तब दुकानदार से बिल के साथ हिसाब को आसानी से मिलाकर उधार संबंधी लेन-देन के विवाद से बचा जा सकता है।
8. महीने के अंत में विभिन्न आवश्यकताओं पर किए गए खर्चों को जोड़कर मासिक व्यय जाना जा सकता है। इससे परिवार की कुल आय और व्यय बीच के अंतर को जाना जा सकता है।
II. जहाँ आवश्यकता हो वहाँ उचित फेर-बदल करना। (Adjusting and Evaluating Wherever Necessary)

(a) समायोजन (Adjusting) : योजना को सही दिशा में रखने के लिए आवश्यकता पड़ने पर योजना का समायोजन करना बहुत जरूरी होता है। योजना के समायोजन की आवश्यकता तब पड़ती हैं जब कार्यांवित योजना अप्रभावी हो रही हो या कुछ ऐसी परिस्थितियाँ उत्पन्न हो जाए जो परिवार के नियंत्रण से बाहर हों, जैसे कि कोई आकस्मिक बीमारी या दुर्घटना, परिवार का बिना योजना के खरीदारी करना।
इसके अतिरिक्त बिना पर्याप्त जाँच के वास्तविक योजना तथा उसके वास्तविक निष्पादन में सही अंतर पता न चल सकने के कारण भी समायोजन की आवश्यकता पड़ती है।

(b) मूल्यांकन (Evaluation): योजना का मूल्यांकन धन प्रबंधन प्रक्रिया का अंतिम चरण होता है। धन के व्यय से प्राप्त संतुष्टि बजट की सफलता को निर्धारित करने का एक महत्वपूर्ण पहलू है। योजना का मूल्यांकन निम्न उद्देश्यों से किया जाता है, जैसे कि-

• व्यय किए गए धन का उचित मूल्य प्राप्त करना,
• देय तिथि (due date) से पहले बिल अदा करने की समर्थता,
• भविष्य के लिए व्यवस्था तथा परिवार की आर्थिक स्थिति में सुधार करना।
बचत (Savings)

“पारिवारिक आय का वह अंश जो भविष्य को सुरक्षित करने के लिए परिवार की कुल आय में से बचाया जाता है, बचत कहलाता हैं।”

सरल शब्दों में कहे तो- बचत पारिवारिक आय वह भाग होता है जो वर्तमान की आवश्यकताओं की पूर्ति के बाद भविष्य की आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए बचाया जाता है। बचत, आय तथा व्यय का अन्तर होता है।

आय – व्यय = बचत
Income – Expenditure = Saving

परिवार की भावी आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए बचत जरूरी हैं। इसके अतिरिक्त अर्थव्यवस्था के अस्तित्व एवं विकास के लिए भी बचत जरूरी हैं, क्योंकि बचत में पूंजी का संचयन किया जाता हैं। बचत की गई पूंजी जब बैंकों या अन्य वित्तीय संस्थाओं में जमा कराई जाती हैं तो बैंक वह धन व्यापार के इच्छुक लोगों को ऋण के रूप में देता हैं। इससे अर्थव्यवस्था का चक्र मजबूत होता जाता हैं।

बचत निम्न कारकों पर निर्भर करती हैं-

1. बचत करने की क्षमता (Ability to save): बचत करने की क्षमता परिवार की प्रति व्यक्ति आय पर निर्भर करती हैं। जिन परिवारों की प्रति व्यक्ति आय अधिक होती हैं वह कम प्रति व्यक्ति आय वाले परिवारों की अपेक्षा अधिक बचत कर पाते हैं।

2. बचत करने की इच्छा (Willingness to save): बचत करने की इच्छा परिवार के दीर्घकालिक लक्ष्यों पर निर्भर करती हैं। इसके अतिरिक्त बचत की इच्छा इस बात पर निर्भर करती हैं कि परिवार के सदस्य अपनी भविष्य की आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए किस हद तक अपनी वर्तमान विलासिताओं का त्याग कर सकते हैं।
बचत का महत्त्व (Importance of Savings)

1. पारिवारिक आवश्यकताओं की पूर्ति : समय के साथ-साथ पारिवारिक आवश्यकताएँ भी बदलती रहती हैं। जैसे विवाह के तुरंत बाद मनोरंजन तथा घूमने-फिरने पर अधिक खर्च होता है। कुछ वर्ष बाद वही दंपत्ति अपने बच्चों की शिक्षा पर धन व्यय करते हैं। उच्च शिक्षा तथा बच्चों के विवाह आदि में भी बहुत अधिक धन की आवश्यकता होती है। यह धन तभी उपलब्ध हो सकता है जब उसे नियमित रूप से निश्चित अवधि तक बचाया जाए।

2. आकस्मिक आवश्यकताओं की पूर्ति : किसी आकस्मिक दुर्घटना, शारीरिक असमर्थता या कोई गंभीर रोग होने पर या बुढ़ापे में असमर्थता, मनुष्य को आर्थिक रूप से कष्ट में डाल देती है। इसलिए जो परिवार/व्यक्ति नियमित रूप से बचत करता है वह व्यक्ति/परिवार, विपत्ति या दुर्घटना का बिना किसी आर्थिक परेशानी के सामना कर पाता है।

3. मितव्ययता की आदत : बचत से परिवार के सदस्यों में मितव्ययता की आदत पड़ जाती है। व्यय करने की कोई सीमा नहीं होती। मितव्ययी होने से मनुष्य सदा सम्पन्न और निश्चित रहता है।

4. उच्च जीवन स्तर : बचत की गई धनराशि से कुछ मँहगी भौतिक वस्तुएँ जैसे- कार या मकान खरीद कर जीवन स्तर ऊपर उठाया जा सकता है।

5. मनोवैज्ञानिक सुरक्षा : बचत की गई धनराशि से सुरक्षा की भावना उत्पन्न होती है, जिससे व्यक्ति का आत्म-सम्मान मनौवैज्ञानिक रूप से ऊँचा होता है।

6. वृद्धावस्था में आर्थिक सुरक्षा : वृद्धावस्था के लिए या नौकरी अथवा व्यवसाय से अवकाश प्राप्ति के बाद जीवन की आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए बचत की गई धनराशि सहायक होती है।

7. बचत से आय में वृद्धि होती है : बचत की गई राशि के उचित विनियोग से लाभांश या ब्याज की रकम बढ़ती जाती है। इससे अचल संपत्ति में वृद्धि होती है जो देश के उद्योग-धंधों में लगाई जा सकती है।

8. आमदनी बंद होने पर आर्थिक निर्भरता के लिए : भविष्य में नौकरी छूट जाने, व्यापार मंद होने या घाटा होने पर आय बंद हो सकती है। ऐसे समय में बचाई हुई राशि ही काम आती है।

9. व्यय पर नियंत्रण : बचत द्वारा अनावश्य व्यय पर नियंत्रण किया जा सकता है। जैसे कि कई बचत योजनाओं में नियमित रूप से प्रीमियम जमा करवाना अनिवार्य होता है। इसके लिए आय का कुछ भाग बचाना अनिवार्य होता है। इसके कारण परिवार में बचत की आदत पड़ती जाती है।
निवेश/विनियोग (Investment)

“आय का वह भाग जो हम किसी योजना अथवा किसी व्यवसायिक संस्था में लगाते हैं और जिस पर हमें ब्याज/लाभांश प्राप्त होता है, विनियोग कहलाता है।”

दूसरे शब्दों में कहे तो, निवेश का तात्पर्य इस आशा के साथ धन के प्रयोग से हैं ताकि भविष्य में अधिक लाभ कमाया जा सके। व्यवसाय के संदर्भ में निवेश का तात्पर्य हैं, अधिक उत्पादन के लिए धन का उपयोग करना है। धन को यदि घर में ही रखा जाए अर्थात् संचित किया जाता है तो उसे संचय कहते हैं। जैसे कि- यदि बचत किए गए धन को अलमारी या संदूक में रखा जाए तो यह केवल संचय कहलाता है। पर यदि बचत की गई राशि को किसी ऐसी योजना में लगाया जाए जिससे बचत पर लाभ के रूप में और अधिक धन कमाया जा सके तथा जमा राशि भी सुरक्षित रहे तो इसे विनियोग (investment) कहते हैं।

निवेश निम्न दो प्रकार की परिसंपत्तियों के रूप में हो सकता है-

1. वित्तीय परिसंपत्तियों (Financial Assets) : बचत को यदि बैंक खातों, डाक घरों अथवा वित्तीय साख समिति, संस्थाओं, शेयरों तथा प्रतिभूतियों में बीमा पॉलिसियों आदि में लगाया जाए तो इसके फलस्वरूप वित्तीय परिसंपत्तियों का निर्माण होता हैं। वित्तीय परिसंपत्तियाँ परिवार को वित्तीय सुरक्षा प्रदान करती हैं तथा आर्थिक संदर्भ में उत्पादक होती हैं।

2. भौतिक परिसंपत्तियों (Physical Assets) : भौतिक परिसंपत्तियों में बचत का तात्पर्य भूमि, संपत्ति, घर, सोना, घर-गृहस्थी के सामान आदि को खरीदने के लिए बचत का इस्तेमाल करना है। इस प्रकार का निवेश आर्थिक रूप से में उत्पादक नहीं होता है तथा इसके फलस्वरूप पूँजी निर्माण भी नहीं होता है। हालांकि इसका लाभ प्रायः दीर्घकालिक होता है।
निवेश के लाभ (Benefits of Investment)

1. समझदारी से किये गये निवेश के कारण धन में वृद्धि होती हैं। यदि आप अपना धन निवेश नहीं करते तथा उसे केवल संचित करके रख लेते हैं तो इस बात की पूरी संभावना हैं भविष्य में पैसे की कीमत गिरने (inflation) के कारण आपके धन का मूल्य कम हो जाएगा।
2. समझदारी से निवेश किये गये धन के कारण पूंजी में वृद्धि होती हैं।
3. यदि आप प्रौढ़ावस्था के दौरान धन को समझदारी से निवेश के रूप में कार्य पर लगाते हैं (make money work for you) तो इस बात की पूरी संभावना हैं कि सेवानिवृत्ति की आयु में आपके पास पर्याप्त मात्रा में धन होगा।
4. निवेश कि ऐसी बहुत-सी योजनाएँ हैं जिनसे आयकर बचाने में मदद मिलती हैं।
5. नियमित रूप से किये गए छोटे-छोटे निवेशों द्वारा बड़े आर्थिक लक्ष्य आसानी से प्राप्त किये जा सकते हैं।
विवेकपूर्ण निवेश के सिद्धांत (Principles Underlying Sound Investment)

बहुत से लोग तथा परिवार अपनी कई इच्छाओं को दबाकर बचत का संचयन करते-करते अपना पूरा जीवन व्यतीत कर देते हैं। इसलिए यह जरूरी हैं कि बचत किये गए धन का निवेश समझदारी से किया जाएं ताकि परिवार को अपने निवेश पर अच्छा लाभ प्राप्त हो सके तथा निवेश किया गया धन भी सुरक्षित रहे और आवश्यकता पड़ने पर आसानी से उपलब्ध हो सके। विवेकपूर्ण निवेश के लिए निम्न सिद्धांतों का विशेष ध्यान रखना चाहिए, जैसे कि-

1. मूल धन की सुरक्षा (Safety of the Principle Amount) : निवेश किये गए मूल धन पर लाभांश या ब्याज कमाने के साथ-साथ मूल धन का सुरक्षित रहना भी ज़रूरी है। विवेकपूर्ण निवेश के लिए मूलधन की सुरक्षा सबसे महत्वपूर्ण कारक है। निम्नलिखित उपायों द्वारा मूल धन की सुरक्षा सुनिश्चित की जा सकती हैं-

• राष्ट्रीय बचत प्रमाणपत्र, लोक भविष्य निधि (PPF), किसान विकास पत्र, बैंकों में सावधि जमा खातों में निवेश करके, सरकारी एवं निजी दोनों क्षेत्रों में प्रतिभूतियों (securities) में निवेश करके।
• विभिन्न भौगोलिक क्षेत्रों की कंपनियों में निवेश करके।
• विभिन्न कंपनियों में शेयरों एवं बंध पत्रों (bonds) में धन का निवेश करके।
• किसी कम्पनी की प्रतिभूतियों में निवेश से पहले उस कम्पनी की बाजार साख (market reputation) का अध्ययन करके।
• एक प्रकार की ही प्रतिभूतियों के क्रय की अपेक्षा विभिन्न प्रकार की प्रतिभूतियों में निवेश करना, जैसे कि- कृषि भूमि, रियल स्टेट, स्टॉक्स, बंधपत्र, सावधि जमा आदि।
• परिवेश तथा शैली (nresent business environment and trend) को समझना।

2. प्रतिलाभ की अधिक दर (Reasonable Rate of Return) : सामान्यत: किसी निवेश पर प्रतिलाभ की दर जितनी अधिक होती हैं, उस निवेश में जोखिम भी उतना ही अधिक होता हैं, अर्थात मूलधन की सुरक्षा एवं उस पर मिलने वाले लाभ की दर विलोमानुपाती रूप से संबंधित (inversely related) है। अधिकतर लोगों के लिए उच्च एवं अस्थिर आय की अपेक्षा आय की नियमितता ज्यादा महत्त्व रखती है। निवेश द्वारा नियमित आय सुनिश्चित करने के लिए प्रतिभूतियों में निवेश करना बेहतर होता है। अतः धन को निवेश करने से पहले व्यक्ति को विभिन्न योजनाओं एवं विकल्पों के अंतर्गत ब्याज की दर तथा संबंधित जोखिमों की तुलना कर लेनी चाहिए।

3. पूंजी की तरलता (Liquidity of Cash) : तरलता का तात्पर्य उस योग्यता से जिसके द्वारा अचानक आवश्यकता पड़ने पर पूंजी का मूल्य कम किये बिना धन वापस मिल सकता हैं के नहीं। कोई भी निवेश जितना अधिक तरल होगा उसकी कीमत उतनी ही अधिक होगी। निवेश की तरलता की दृष्टि से राष्ट्रीय बचत पत्र, निश्चित अवधि जमा योजना, जीवन बीमा पॉलिसी उपयुक्त रहती हैं, क्योंकि आवश्यकता पड़ने पर इन सभी माध्यमों में से धन वापस निकाला जा सकता हैं या उस पर ऋण प्राप्त किया जा सकता है।

4. वैश्विक स्थितियों के प्रभाव की पहचान (Recognition of Effect of Global Conditions) : वैश्विक व्यापार शैली में परिवर्तन वैश्विक अर्थव्यवस्था को प्रभावित करता है (change in global business trends have a impact on global economy)। वैश्विक कारोबारी परिस्थितियों पर विचार करके परिवार की संपूर्ण अर्थव्यवस्था पर अपनी बचत के प्रभाव को समझना चाहिए।

5. निवेश में धन/ प्रीमियम भरने की सुलभता एवं सुविधा (Easy Accessibility and Convenience) : निवेश के किसी भी माध्यम का चयन करते समय व्यक्ति को उस माध्यम से संबंधित सभी प्रकार की जानकारी ले लेनी चाहिए। अक्सर जानकारी के अभाव में व्यक्ति ऐसे माध्यमों में निवेश कर बैठता हैं जिसके लिए एक साथ अधिक प्रीमियम भरना कठिन हो जाता है अथवा उसे जमा करवाने का कोई आसान विकल्प नहीं होता है।

6. आवश्यकता/ लक्ष्य के अनुसार निवेश (Investing According of Needed/Goal) : निवेश किये गए धन की परिपक्वता (maturity of investment) की अवधि को भी ध्यान में रखना जरूरी होता हैं। निवेश करने से पहले अपने भावी लक्ष्यों के समय को ध्यान में रखना चाहिए तथा उन्हीं के अनुरूप किसी माध्यम में निवेश करना चाहिए। जैसे कि- यदि किसी व्यक्ति को अपने बच्चों की उच्च शिक्षा या शादी के लिए निवेश करना हैं तो उसे ऐसे माध्यम में निवेश करना चाहिए जो बच्चों की शादी या उच्च शिक्षा की आयु के आस-पास परिपक्व हो जाए।

7. आयकर में छूट (Tax Benefits) : ऐसी योजनाओं में निवेश करना बेहतर रहता जिनके परिणामस्वरूप कर में बचत होती है। जैसे कि- बीमा पॉलिसियों, कर्मचारी भविष्य निधि, पीपीएफ आदि में निवेश विशिष्ट सीमा सहित कर में छूट का प्रावधान देता है।

8. निवेश उपरांत सेवा (After Investment Service) : निवेश के माध्यम का चयन करते समय कम्पनी की ग्राहक देखभाल अथवा ग्राहक सेवा स्तर (standard of customer care and customer service) को भी ध्यान में रखना चाहिए। अच्छी ग्राहक सेवा में—

• प्रतिभूतियों का आसान नकदीकरण (easy encashability of securities)
• अच्छा संचार नेटवर्क (good communication network)
• ब्याज अथवा लाभांश की समय से उपलब्धता (timely dispatch of interest or dividend warrants)
• निवेश अवधि के पूरा होने के उपरांत देय राशि का समय पर वितरण (tiemly disbursal of the due amount after completion of investment priod.)
• पॉलिसियों, ब्याज दर आदि में परिवर्तनों के बारे में ग्राहक को अवगत कराते रहना शामिल है। (keeps the custome posted about changes in the policies, interest rate, etc.)
• एक ग्राहक हितैषी कंपनी ज़रूरत पड़ने पर निवेशक को आवश्यक समर्थन एवं संरक्षण भी प्रदान करती है। (provides support and protection to the investor)

9. समयावधि (Time Period) : लॉक इन अवधि अर्थात् वह अवधि जिसमें धन को एक निश्चित अवधि के बाद ही निकाला जा सकता हैं, एक महत्वपूर्ण पहलू है जिस पर किसी निवेश पर निर्णय लेने के पहले विचार किया जाना चाहिए। निवेश की अवधि जितनी लंबी होगी, वापसी की राशि उतनी अधिक होगी। उदाहरण के लिए, अधिकतर सावधि जमा योजनाओं में अल्पावधि जमा की तुलना में दीर्घकालीन जमाओं के लिए ब्याज की दर अधिक होती है। अंत निवेश से पहले व्यक्ति को अधिक ब्याज दर तथा अल्प अवधि निवेश के बीच चयन कर लेना चाहिए।

10. क्षमता (Capacity) : व्यक्ति को अपनी क्षमता से अधिक निवेश नहीं करना चाहिए ताकि निवेश अनावश्यक कठिनाइयों से मुक्त रह सके। जैसे कि कई बार अधिक लाभ के लालच में व्यक्ति या परिवार किसी ऐसे माध्यम का चुनाव कर लेता हैं जो उसके समार्थ्य से बाहर होता हैं, जैसे कि- अधिक प्रीमियम वाली बीमा योजनाएँ। इसलिए यह जरूरी हैं कि निवेश के लिए वर्तमान आवश्यकताओं का भावी आवश्यकताओं एवं सुरक्षा के बीच संतुलन बनाए रखना चाहिए।
बचत एवं निवेश के अवसर (Savings and Investment Avenues)

भारतीय निवेशकों को उपलब्ध कुछ प्रमुख बचत एवं निवेश के विकल्प निम्नलिखित हैं-

1. डाकघर (Post office) : भारत जैसे देश में जहां कि अधिकतर जनंसख्या गाँवों में निवास करती हैं और जहां पर बैंकों की पहुँच सीमित हैं वहां पर डाक घर बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं। डाक बांटने के साथ-साथ डाक घर विभिन्न प्रकार की निवेश योजनाएँ भी चला रहे हैं जिनमें से कुछ प्रमुख योजनाएँ हैं-

• 5 वर्षीय डाकघर आवर्ती जमा योजना (5 years post office recurring deposit scheme)
• डाकघर समयावधि जमा योजना (post office time deposit scheme)
• डाकघर मालिक आय योजना खाता (post office monthly income account)
• किसान विकास पत्र (kisan vikas patra)
• वरिष्ठ नागरिक बचत योजना (senior citizen saving scheme)
• 15 वर्षीय जनता भविष्य निधि खाता (15 years public provident fund account)
• राष्ट्रीय बचत पत्र (national saving certificates)

2. बैंक (Bank) : बैंक एक ऐसा वित्तीय संस्थान हैं जहाँ पर मुद्रा का व्यापारिक लेन-देन होता हैं वर्तमान समय में बैंक भी निवेश का एक प्रमुख, विश्वसनीय तथा जोखिमरहित माध्यम हैं, जो आकर्षक ब्याज दर पर विभिन्न प्रकार की निवेश योजनाएँ चलाते हैं।

बैंक के प्रमुख कार्य :

• जनता का धन जमा करना।
• जमा धनराशि की माँग होने पर चेक, ड्राफ्ट आदि के माध्यम से उसे वापस करना।
• जनता द्वारा निवेश किए गए धन को विभिन्न योजनाओं के लिए कर्ज के रूप में देकर उस पर ब्याज कमाना।

बैंक में धन जमा कराने के लाभ :

• बैंक खाते में जमा राशि घर पर रखी राशि की अपेक्षा सुरक्षित रहती है।
• बैंकों के माध्यम से पैसा एक स्थान से दूसरे स्थान पर भेजा या मंगवाया जा सकता है।
• आजकल लगभग सभी बैंक ग्राहकों को ATM (Automatic Teller Machine) के माध्यम से 24 घंटे अपने खाते से धन निकासी की सुविधा प्रदान कर रहे हैं। इसके साथ ही बैंक ग्राहकों को क्रेडिट और डेबिट कार्ड की सुविधा भी देते हैं जिनके द्वारा कभी भी धन निकाला जा सकता है तथा खरीददारी भी की जा सकती है।
• मूल राशि में वृद्धि के अतिरिक्त बैंक जमाकर्ता को और भी कई सुविधाएँ देते हैं, जैसे- ऋण देना, धन का स्थानान्तरण करना तथा मुद्रा की अदला-बदली करना (currency exchange)। आजकल सभी बैंक इंटरनेट तथा मोबाइल बैंकिंग की सुविधा प्रदान कर रहे है जिसके चलते अब घर बैठे ही बैंक संबंधी लेन-देन और खाते से संबंधित सभी जानकारियाँ प्राप्त की जा सकती है।
• बैंक में जमा धन राशि पर ब्याज भी मिलता है। (केवल चुनिंदा खातों पर)
• बैंक के माध्यम से लेन-देन करने पर पारदर्शिता बनी रहती है।
• बैंक में खाते की सहायता से विभिन्न प्रकार के बिलों का भुगतान ई.सी.एस. (Electronic Clearence System) द्वारा किया जा सकता है। इसी प्रकार ई.सी.एस. द्वारा वेतन, पेंशन, छात्रवृत्ति आदि बैंक के खाते में सीधा जमा हो जाती है।

बैंक में धन जमा कराने की हानियाँ :

• आयकर पर छूट नहीं मिलती।
• निवेश की अन्य योजनाओं जैसे कि भविष्य निधि अथवा जीवन बीमा योजना की अपेक्षा कम ब्याज दर।
• आजकल बैंकों की कई शाखाएँ जल्दी-जल्दी बंद होती जा रही है जिससे निवेशकर्त्ता में अविश्वास तथा अपने धन की सुरक्षा के प्रति चिंता हो जाती है।

बैंक की कुछ प्रमुख निवेश योजनाएँ: बचत खाता (savings account), निश्चित अवधि जमा खाता (fixed deposits), आवर्ती जमा खाता (recurring deposit account)

3. यूनिट ट्रस्ट ऑफ इंडिया (Unit Trust of India) : यूनिट ट्रस्ट ऑफ इंडिया (यूटीआई) की शुरूआत सन् 1963 में भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा कि गयी थी। इस ट्रस्ट के गठन का मुख्य उद्देश्य निवेशकों की छोटी-छोटी (saving) को एकत्रित करना और उन्हें (investment) के प्रति आकर्षित करना था। यह ट्रस्ट 10 रूपये के यूनिट जारी करता हैं। इस योजना में निवेश करने वाला व्यक्ति कम-से-कम 10 रूपये और अधिक-से-अधिक अपनी इच्छानुसार राशि लगा सकता है। ट्रस्ट लोगों द्वारा निवेश किये गए धन को विभिन्न योजनाओं में निवेश करता हैं तथा उनसे कमाये गए वार्षिक लाभ का 90% भाग यूनिट ट्रस्ट निवेशकों में विभाजित कर देता हैं। इस योजना में निवेश की गई धनराशि तथा उस पर मिला लाभांश भी आयकर से मुक्त होता हैं।

4. राष्ट्रीय बचत पत्र (National Savings Certificates (NSC) : राष्ट्रीय बचत पत्र योजना एक निश्चित आय निवेश योजना हैं जोकि देश के किसी भी डाकघर से खरीदी जा सकती हैं। इस योजना के तहत कोई भी व्यक्ति 100 रूपये या उसके गुणज में भुगतान करके प्रमाण पत्र खरीदा सकता हैं जोकि 5 साल में 146 रूपये 93 पैसे (प्रति 100 रूपये) के रूप में प्राप्त होता हैं। इस योजना के अंतर्गत ब्याज चक्र वृद्धि आधार पर हर 6 महीने पर मूलधन में जोड़ दिया जाता हैं। इस योजना में निवेश करने पर आयकर से छूट प्राप्त होती हैं। जमा अवधि पूरी होने पर इस बचत पत्र का भुगतान देश के किसी भी डाकखाने से करावाया जा सकता हैं।

5. म्यूच्यूअल फंड (Mutual Funds) : म्यूच्यूअल फंड योजना में अनेको निवेशक अपना-अपना धन निवेश करते हैं। कुल निवेशित धन को म्यूच्यूअल फंड के उद्देश्य के अनुरूप विभिन्न योजनाओं में पुनः निवेश कर दिया जाता हैं जैसे कि- शेयर बाजार, बॉण्ड, वित्तीय बाजार, सोना तथा रियल एस्टेट इत्यादि में। निवेश से कमाए गए लाभ या हानि को निवेशको द्वारा किये गए निवेश के आधार पर बांटा दिया जाता हैं।

6. भविष्य निधि योजना (Provident Funds) : नियमित वेतनभोगी कर्मचारियों की वृद्धावस्था को सुरक्षा प्रदान करने के लिये सरकार ने सेवानिवृत्ति लाभकारी योजना बनाई हैं, जिसे भविष्य निधि योजना के नाम से जाना जाता हैं। इस योजना का मुख्य लक्ष्य अनिवार्य रूप से बचत करना हैं। सेवानिवृत्ति के पश्चात् कुल ब्याज के साथ, वेतन में से अनिवार्य रूप से जमा किया हुआ पैसा कर्मचारी को चुकता कर दिया जाता है। इस योजना के तहत सभी सरकारी तथा गैर-सरकारी कर्मचारियों को अपनी नौकरी का पहला साल पूरा करने के बाद अपनी आय/सैलरी का एक निश्चित भाग जमा कराना होता हैं। इस योजना में निवेश किये धन पर वार्षिक दर से ब्याज दिया जाता है। आवश्यकता पड़ने पर नियमों के अनुरूप कर्मचारी को उसके द्वारा निवेश की गई राशि पर ऋण भी प्राप्त हो सकता हैं। इस योजना में निवेश किया गया धन आयकर से मुक्त होता हैं। वर्ष 2004 में सरकार ने सरकारी कर्मचारियों के लिए नई पेंशन प्रणाली की घोषणा की हैं।

7. चिट फंड (Chit Fund) : चिट फंड योजना में कुछ लोग मिलकर या कोई व्यवसायिक समूह एक कमेटी का गठन करता है और प्रतिमाह सदस्यों से एक निश्चित धनराशि जमा करते हैं। प्रत्येक माह एक निश्चित तिथि को सभी सदस्यों की मौजूदगी में पर्ची निकाली जाती हैं। जिस भी सदस्यों का नाम पर्ची पर निकलता है उसे महीने की पूरी जमा राशि दे दी जाती है। इस स्कीम का मुख्य उद्देश्य कमेटी के सदस्यों को बिना असुविधा के ऋण की सुविधा प्राप्त करवाना है। इसका मुख्य लाभ यह है कि सदस्यों को बिना ब्याज के एकमुश्त राशि प्राप्त हो जाती हैं। परंतु यह स्कीम आजकल इतनी सुरक्षित नहीं मानी जाती हैं, क्योंकि सदस्य अक्सर एकमुश्त रकम लेने के बाद हर महीने पैसा देने में अनाकानी करते हैं, मुकर जाते हैं अथवा किसी सदस्य की आस्मिक मृत्यु हो जाने पर उसको दिया पैसा अक्सर डूब जाता है। इस स्कीम में आयकर पर कोई लाभ नहीं मिलता।

8. जीवन बीमा एवं चिकित्सा बीमा (Life Insurance and Medical Insurance) :

• जीवन बीमा (Life Insurance) : यह बीमा योजना प्रत्येक आयुवर्ग तथा सभी वित्तीय वर्गों वाले लोगों के लिए उपयुक्त है, जो अपनी मृत्यु पश्चात् अपने परिवार को वित्तीय संकट से सुरक्षा प्रदान करना चाहते है। इस पॉलिसी के अन्तर्गत बीमा करवाने वाले व्यक्ति को पॉलिसी के नियम अनुसार नियमित धनराशि (प्रीमियम) का भुगतान करना होता है। यह प्रीमियम त्रैमासिक, अर्द्धवार्षिक या वार्षिक रूप से निश्चित वर्षों तक दिया जाता है। प्रीमियम की रकम कुल देय राशि और पॉलिसी धारक की आयु के अनुसार निर्धारित की जाती है। पॉलिसी धारक को एक व्यक्ति का नाम (जिसे बेनिफिश्यरी/नॉमिनी (Beneficiary/Nominee) कहते हैं) दर्ज करवाना होता है, जिसे पॉलिसी धारक की आकस्मिक मृत्यु के बाद बीमे की पूरी धनराशि मिलती है। इस प्रकार की बीमा पॉलिसी में बीमा कराने वाले को उसके जीवन काल में बीमा की धनराशि प्राप्त नहीं होती है। इस बीमा पॉलिसी के प्रीमियम की दर अन्य बीमा पॉलिसी की अपेक्षा कम होती है। यह बीमा पॉलिसी लेने पर आयकर से छूट भी मिलती है।

• चिकित्सा बीमा (Medical Insurance) : मानव जीवन हमेशा अनिश्चिताओं भरा होता है। कभी भी, किसी भी समय, कहीं पर भी किसी दुर्घटना या बीमारी के कारण व्यक्ति को लंबे समय तक महंगे इलाज की जरूरत पड़ सकती है। ऐसे समय में इस तरह की योजना व्यक्ति के लिए आपातकालीन दुर्घटना के समय तथा बीमारी के खर्चे के लिए अत्यंत सहायक सिद्ध होती है। यह मेडीक्लेम पॉलिसी एक प्रकार का स्वास्थ्य बीमा हैं, जिसके अन्तर्गत पॉलिसी धारक को सशर्त एक वर्षीय अस्थायी चिकित्सा (जिसमे अस्पताल, ऑपरेशन तथा डॉक्टर का खर्च शामिल होता है) का आश्वासन मिलता है। आजकल कई बीमा पॉलिसियों में व्यक्ति को इलाज के दौरान तथा इलाज के बाद के खर्चों का भुगतान भी किया जाता है। इस पालिसी को प्रतिवर्ष रिन्यू (renew) करवाना पड़ता है। इसमें आयकर 10% छूट भी मिलती है। इस बीमे को करवाने से पहले बीमा कम्पनी की सारे नियम व शर्तें ध्यान से पढ़ लेनी चाहिए।

9. पेंशन योजना (Pension Schemes) : पेंशन योजना भी एक प्रकार की बचत योजना हैं, जिसमें व्यक्ति अपनी नौकरी की संपूर्ण अवधि के दौरान अपने वेतन का एक निश्चित भाग योजना में जमा करता रहता है ताकि उसके सेवानिवृत्त होने के बाद उसे हर माह एक निश्चित आय प्राप्त हो सके। इस योजना में निवेश आयकर से मुक्त होता हैं। विभिन्न कम्पनियों द्वारा प्रदान की जाने वाली कुछ प्रमुख पेंशन योजनाएँ अस्पताल, निम्नलिखित है-

(a) एस.बी.आई. लाइफ एन्युटी प्लस (SBI Life Annuity Plus)
(b) एल.आई.सी. जीवन शान्ति पॉलिसी (LIC Jeevan Shanti Policy)
(c) सरकारी पेंशन योजनाएँ जैसे नेशनल पेंशन योजना (National Pension Scheme) तथा अटल पेंशन योजना (Atal Pension Scheme)

10. सोना, मकान तथा जमीन (Gold, House, Land) : बचत को जमीन, मकान और सोने के रूप में भी विनियोग किया जा सकता है। सोना, मकान तथा जमीन इत्यादि निवेश के अच्छे माध्यम हैं क्योकि अक्सर इन तीनों के दाम समय के अनुरूप बढ़ते ही है। सोने में निवेश के लिए सोने के आभूषणों को या सोने के टुकड़े को खरीदा जा सकता हैं। इसके अतिरिक्त सोने के गोल्ड फंड में भी निवेश किया जा सकता हैं। समय बीतने पर इन वस्तुओं का मूल्य भी बढ़ जाता है। इन पर सोच-समझकर किए हुए विनियोग से आर्थिक लाभ भी हो सकता है और आपातकालीन समय में इन्हें बेचकर या गिरवी रखकर आर्थिक सहायता भी प्राप्त की जा सकती है। ये विधियाँ प्राचीन काल से प्रचलन में हैं और गाँवों में रहने वाले लोगों के लिए अत्यन्त उपयोगी हैं।

11. नई योजना- प्रधानमंत्री वय वंदन योजना (New Scheme – Pradhan Mantri Vaya Vandana Yojana) : यह 60 वर्ष तथा उससे ऊपर के वरिष्ठ नागरिकों के लिए एक पेंशन योजना है। इस योजना के अंतर्गत वरिष्ठ नागरिकों को मासिक पेंशन विकल्प चुनने पर 10 के लिए 8% की गारंटीशुदा रिटर्न (वापसी) मिलेगी। अगर वार्षिक पेंशन विकल्प चुने तो 10 वर्षों के लिए 8.3% की गारंटीशुदा रिटर्न (वापसी) मिलेगी। गुड्स एंड सर्विस टैक्स (जीएसटी) से इस योजना को छूट दी गई है।
साख/क्रेडिट/ऋण (Credit)

साख/क्रेडिट को उस विधि के रूप में परिभाषित किया जा सकता हैं जिसके अंतर्गत ऋणदाता ऋणी को वस्तुएँ, मुद्रा या सेवाएँ इस शर्त पर प्रदान करता हैं कि वह भविष्य में उनका ब्याज संहित भुगतान करेगा।

अपनी आवश्यकताओं एवं दायित्वों के कारण कई बार ऐसी परिस्थितियाँ उत्पन्न हो जाती हैं जिनके चलते व्यक्ति/परिवार/कम्पनी को ऋण लेना पड़ता हैं। कई बार लोग किसी ऐसी वस्तु या सेवा के लिए भी उधार लेते हैं जिनकी कीमत उनके लिए एकमुश्त अदा करना मुश्किल होता है। ” क्रेडिट ” शब्द लैटिन भाषा के शब्द ‘क्रेडो’ से बना है जिसका अर्थ है- मैं विश्वास करता हूँ। (I believe)

सरल शब्दों में कहे तो, क्रेडिट का तात्पर्य वर्तमान में धन तथा माल अथवा सेवा प्राप्त करना और भविष्य में उनके लिए भुगतान करना है। यह एक प्रकार की स्थगित भुगतान की प्रक्रिया (process of postponed payment) है, जिसके लिए ऋण लेने वाले व्यक्ति को उच्च दर पर भुगतान करना पड़ता है।

क्रेडिट/ऋण लेने से क्रय शक्ति में वृद्धि होती है जिसके कारण उपलब्ध नकदी की अपेक्षा अधिक माल और सेवाओं का क्रय किया जा सकता हैं। हर व्यक्ति तथा परिवार को ऋण लेने से पहले कई बार सोचना चाहिए क्योंकि उधार ली गई राशि का भुगतान ब्याज संहित करना ही पड़ता है।
क्रेडिट की आवश्यकता (Need for Credit)

ऋण/क्रेडिट की आवश्यकता निम्न कारणों से पड़ती हैं-

• परिवार को अपनी ऐसी आवश्यकताओं अथवा दायित्वों के निर्वहन के लिए ऋण/क्रेडिट की आवश्यकता पड़ती हैं जिनके लिए भारी मात्रा में धन की एकमुश्त अदायगी की जरूरत होती हैं, जैसे कि बच्चों की उच्च शिक्षा के लिए पूरे कोर्स की फीस जमा कराने के लिए ऋण की आवश्यकता पड़ जाती हैं।

• यदि खरीदी जाने वाली वस्तु की तत्काल आवश्यकता हों परंतु उसकी आरंभिक लागत इतनी अधिक हो कि बचत न की जा सके, तो परिवार वस्तु को तत्काल लेने के लिए रुपये उधार लेते हैं। ऐसी स्थिति में परिवार को भुगतान अवधि के दौरान ऋण के माध्यम से खरीदी गई वस्तु को उपयोग करने का लाभ मिल सकता है।

• परिवार के किसी सदस्य की बीमारी या आपात संकट के कारण भी ऋण की आवश्यकता पड़ती है।

• बच्चों के विवाह अथवा सदस्य के निधन के दौरान धार्मिक रस्मों-रिवाजों का निष्पादन करने जैसी बाध्यताओं को पूरा करने के लिए भी ऋण आवश्यकता पड़ सकती हैं।
क्रेडिट के 4C (4C’s of Credit)

कोई भी ऋणदाता (बैंक अथवा वित्तीय संस्था) तभी ऋण देता है जब उसे विश्वास हो कि उधार लेने वाला ऋण को ब्याज सहित वापस कर देगा। किसी भी व्यक्ति अथवा परिवार को ऋण/क्रेडिट देने का निर्णय निम्नलिखित 4C पर निर्भर करता है-

1. चरित्र (Character) : चरित्र का तात्पर्य ऋण लेने वाले व्यक्ति की ऋण वापसी की इच्छा से हैं भले ही उसके लिए ऋण वापस करना उसकी सोच से कही अधिक असुविधाजनक क्यों न हो।

2. क्षमता (Capacity) : क्षमता का तात्पर्य ऋणी व्यक्ति या कम्पनी की तय समय पर ऋण वापसी या किस्त अदायगी की योग्यता से हैं। ऋण अदायगी के संदर्भ में क्षमता आय पर निर्भर करती है। ऋण को अदा करने के लिए परिवार की क्षमता का निर्धारण परिवार द्वारा प्राप्त आय तथा व्यय के बीच अंतर द्वारा किया जाता है।

3. पूँजी (Capital) : पूँजी का तात्पर्य ऋणी व्यक्ति या कम्पनी की कुल पूंजी हैं जोकि ऋण की कुल रकम से अधिक होनी चाहिए ताकि ऋणदाता को अपने ऋण की ब्याज सहित अदायगी का विश्वास रहे। यदि ऋणी व्यक्ति की आय ऋण चुकाने के लिए पर्याप्त नहीं पड़ती तो ऋणदाता उसकी पूंजी के माध्यम से अपने ऋण की वसूली कर सकता है।

4. संपार्श्विक/जमानत (Collateral) : संपार्श्विक/जमानत का तात्पर्य ऋणी व्यक्ति या कम्पनी की उस पूंजी से है जिसे वह ऋण लेने के लिए ऋणदाता के पास सुरक्षा/जमानत के रूप में गिरवी रखता हैं। यदि किसी कारण से ऋण की अदायगी न हो तो ऋणदाता जमानत के रूप में उसके पास रखी पूंजी को बेच कर अपने ऋण की वसूली कर सकता हैं।

5. ऋण के स्रोत : वाणिज्यिक बैंक, सहकारी बैंक तथा कृषि बैंक, क्रेडिट संघ आदि क्रेडिट (ऋण) लेने के मुख्य स्रोत हैं। इनके अतिरिक्त यदि व्यक्ति किसी स्व-सहायता समूह का सदस्य हो तो वह अपने समूह से भी क्रेडिट ले सकता है।
स्व-सहायता समूहों में ऋण देने की प्रक्रिया

स्व सहायता समूहों के सभी सदस्य हर महीनें कुछ धन देकर एक संग्रह निधि (corpus amount) का निर्माण करते हैं। इससे ज़रूरतमंद सदस्य को उसकी जरूरत तथा भुगतान क्षमता के आधार पर ऋण/क्रेडिट दिया जाता है। चूंकि इन समूहों के सदस्य एक दूसरे को अच्छी तरह जानते हैं इसलिए ऋण लेने के लिए किसी प्रकार की जमानत की आवश्यकता नहीं पड़ती तथा ब्याज दर भी मामूली होती है।

ऋण लेते समय ध्यान रखने योग बातें

• किसी भी वस्तु या सेवा के लिए ऋण लेते समय वस्तु अथवा सेवा से प्राप्त संतोष पर ही विचार नहीं करना चाहिए, अपितु ऋण के भुगतान के लिए पारिवारिक बजट में किए जाने वाले भावी समायोजनों के विषय में भी अच्छी तरह विचार कर लेना चाहिए।
• ऋण केवल तभी एक उपयोगी साधन बन सकता हैं जब उसकी अदायगी व्यक्ति अथवा परिवार की क्षमता में हो तथा उसके अन्य जरूरी खर्ची में कटौती न करनी पड़े।
• बिना सोचे-समझे लिया गया ऋण अक्सर परिवार अथवा कम्पनी के लिए आर्थिक समस्या ही उत्पन्न करता है।
• जहां तक संभव हो ऋण लेने से बचना चाहिए और यदि बहुत जरूरी हो तो ऋण न्यूनतम ब्याज दर पर ही लेने का प्रयास करना चाहिए।

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