NCERT Solution Class 11th Home Science Chapter – 10 हमारे परिधान (Our Apparel) Notes In Hindi
Textbook | NCERT |
class | 11th |
Subject | Home Science |
Chapter | 10th |
Chapter Name | हमारे परिधान |
Category | Class 11th Home Science Notes in hindi |
Medium | Hindi |
Source | Last Doubt |
NCERT Solution Class 11th Home Science Chapter – 10 हमारे परिधान (Our Apparel) Notes In Hindi इस अध्याय को पढ़ने के बाद आप निम्न को समझ पाएँगे- वस्त्रों के कार्यों और उनके चयन को प्रभावित करने वाले कारक, बच्चों/बच्चियों की वस्त्र संबंधी सामान्य आवश्यकताएँ, विभिन्न आयु वर्ग के बच्चों की विशेषताएँ तथा उनकी वस्त्र संबंधी आवश्यकताएँ, तथा विशेष आवश्यकता वाले बच्चों की वस्त्र संबंधी आवश्यकताएँ। |
NCERT Solution Class 11th Home Science Chapter – 10 हमारे परिधान (Our Apparel) Notes In Hindi
Chapter – 10
हमारे परिधान
Notes
भूमिका (Introduction) जब भी हम किसी व्यक्ति से पहली बार मिलते है तो हमारी शारीरिक आकृति, बोल-चाल के ढंग तथा व्यवहार आदि की अपेक्षा हमारा पहनावा ही व्यक्ति पर सबसे पहला प्रभाव डालता है। प्राचीन काल से ही वस्त्र हमारी मूल आवश्यकताओं में से एक रहे हैं। आदिकाल में मानव तन हकने के लिए घास, पत्ते, पेड़ों की छाल, जानवरों की खाल आदि का प्रयोग करता था। सभ्यता के विकास के साथ-साथ मानव ने प्राकृतिक देशों को तैयार करने की कला सीख ली। आधुनिक युग में वस्त्र केवल प्राकृतिक परिवर्तनों से बचने के लिए या शरीर ढकने के लिए ही नहीं पहने जाते बल्कि व्यक्तिव में निखार लाने एवं किसी विशेष वर्ग को दर्शाने के लिए पहने जाते हैं। आमतौर पर व्यक्ति की परख उसके पहनावे से की जाती है। वस्त्र व्यक्ति के व्यक्तित्व को अभिव्यक्त करने, प्रतिबिंबित करने, उसमें निखार लाने में सहायक होते हैं। वस्त्रों से व्यक्ति की सामाजिक प्रतिष्ठा और उसकी अभिरुचियों का अनुमान लगाया जा सकता है। वस्त्र हमारे लिए कई शारीरिक, मानसिक व सामाजिक कार्य करते हैं जो सम्पूर्ण व्यक्तित्व के लिए महत्वपूर्ण है। आज के समय में हम सब अच्छे रूप-रंग के महत्व को समझते है। पहने जाने वाले वस्त्रो के वास्तविक महत्व का मूल्यांकन करने के लिए यह जानना ज़रूरी है कि जो कपड़े हम पहनते हैं उनके बारे में हम क्या सोचते हैं। |
वस्त्रों के कार्य और उनका चयन (Clothing Functions and The Selection of Clothes) हम जो भी वस्त्र पहनने है वह किसी-न-किसी कारण या उद्देश्य से ही पहनते है, जैसे कि- मौसम से बचाव के लिए, किसी विशेष अवसर के लिए, व्यवसाय या क्रियाकलाप की प्रकृति के अनुरूप, संस्कृति, रीति-रिवाज इत्यादि के अनुसार। आमतौर पर लोग निम्न कारणों से विभिन प्रकार के वस्त्रों का चयन करते हैं- वस्त्रों के कार्य तथा उन्हें धारण करने के कारण (Functions / Reasons of Clothing) (1) शालीनता/मर्यादा के लिए (For Modesty) कपड़े पहनने का संभवत: सबसे प्रमुख कारण यह है कि हर सभ्य समाज में प्रत्येक व्यक्ति शालीन दिखाना चाहता है जिसके लिए कपड़े पहनना अनिवार्य होता है, अर्थात् वस्त्र धारण करने का मुख्य कारण शालीनता/मर्यादा हैं। हम सबने कई बार छोटे बच्चे को बिना कपड़ों के इधर-उधर घूमते देखा है और ऐसा करते हुए उन्हें कोई झिझक भी महसूस नहीं होती है। हालांकि जैसे-जैसे बच्चा थोड़ा बड़ा होता है उसके परिवार के सदस्य विशेषकर उसके माता-पिता उसे अपने शरीर को ढककर रखने की आवश्यकता के विषय में समझाते और सिखाते है। हर व्यक्ति की मर्यादा संबंधी धारणाएँ उस समाज द्वारा बनाई जाती हैं, जिसमें वह रहता हैं। प्रत्येक समाज के शालीनता संबंधी अपने अलग मानक होते है अर्थात् एक समाज में जिसे शालीनता समझा जाता है हो सकता है दूसरे समाज में उसे मर्यादा न समझा जाता हो, जैसे कि- कई समुदायों में महिलाओं का सिर न ढकना अमर्यादित माना जाता है जबकि कुछ समुदाय ऐसे भी है जहाँ पर महिलाओं द्वारा मोजे न पहनना तथा अपनी टाँगे को न ढँकना अश्लीलता माना जाता है, जैसे कि- रूस। (2) सुरक्षा के लिए (For Protection) कपड़े पहनने का एक प्रमुख कारण यह भी है कि, हम पर्यावरण से अपनी सुरक्षा के लिए भी कपड़े पहनते हैं, जैसे कि- मौसम की कठोर स्थितियों, धूल, मिट्टी तथा प्रदूषण इत्यादि से बचाव के लिए। कपड़े मौसम के अनुरूप बदलते रहते हैं, उदाहरण के लिए, गर्मी के महीनों में हम हल्के सूती कपड़े पहनते हैं, जबकि सर्दी के मौसम में अपने बचाव के लिए हम ऊनी कपड़ों का प्रयोग करते हैं। कपड़े हमें शारीरिक क्षति से भी बचा सकते हैं, जैसे कि- अग्निशमन कर्मी आग, धुएँ, तथा पानी से सुरक्षा के लिए विशेष प्रकार की पोशाक पहनते हैं। उसी प्रकार विभिन्न प्रकार के खेलों में जैसे कि- फुटबॉल, हॉकी और क्रिकेट के लिए ऐसी पोशाकों की आवश्यकता होती है जो कि खिलाड़ियों की सुरक्षा के लिए विशेष रूप से तैयार की जाती है। उदाहरण के लिए, आर्म गार्ड, लेग गार्ड्स, रिस्ट बैंड आदि इन्हें खिलाड़ी सामान्य वेशभूषा के साथ-साथ अपनी सुरक्षा के लिए पहनते हैं। (3) सामाजिक स्तर और प्रतिष्ठा के लिए (For Status and Prestige) कपड़े प्रतिष्ठा के प्रतीक भी होते हैं। किसी व्यक्ति के पहनावे से उसकी सामाजिक और आर्थिक स्थिति का अंदाजा लगाया जा सकता है। उदाहरण के लिए, प्राचीनकाल में राजा और दरबारियों के कपड़े आम जनता द्वारा पहनने जाने वाले कपड़ों से बिल्कुल अलग होते थे। हर व्यक्ति की स्वयं की पहचान के निर्माण में उसकी सामाजिक स्थिति और प्रतिष्ठा का बड़ा महत्व होता है। शालिन तथा अच्छे वस्त्र धारण करके व्यक्ति अपनी सामाजिक स्थिति तथा प्रतिष्ठा में वृद्धि कर सकता है जोकि अंततः उसकी स्वयं की पहचान की भावना को सकारात्मक रूप से प्रभावित करते हैं। धार्मिक त्योहारों तथा पारिवारिक कार्यक्रमों में लोगों द्वारा पहने गए कपड़े उनकी सामाजिक स्थिति को परिलक्षित करते हैं। आजकल लोगों की बेहतर होती आर्थिक स्थिति तथा नए-नए फैशन के वस्त्रों की उचित दामों पर सरल उपलब्धता के कारण अधिक-से-अधिक लोग इन्हें खरीद रहे है। इसके अतिरिक्त एक प्रकार के कपडे जैसे कि जीन्स, टी-शर्ट, सलवार-कुर्ता आदि की सभी वर्गों एवं आर्थिक स्तरों के लोगों के लिए अलग-अलग दामों में उपलब्ध हो रहे है। अतः हम कह सकते है कि, वस्त्र समाज के विभिन्न वर्गों के लोगों को सामान स्तर पर लाने का कार्य करते है जोकि सामाजिक समानता की दिशा में एक बड़ा कदम है। (4) श्रृंगार के लिए (For Adornment) कपड़े इसलिए भी पहने जाते हैं ताकि हम आकर्षक दिखाई दे सकें। आकर्षक वस्त्र व्यक्ति की समूह में उपस्थिति को बढ़ाते हैं। हर व्यक्ति चाहे वह किसी भी समाज या आर्थिक वर्ग से संबंध रखता हो चाहता है कि वह भी आकर्षक दिखने के लिए अच्छी तरह सजे-संवरे और श्रृंगार करे। कान छिदवाना, नाखून पॉलिश लगाना, गोदना, चोटी और जूड़ा बाँधना इत्यादि शारीरिक सज्जा के कुछ ऐसे रूप हैं जो आज भी काफी प्रचलित हैं। हर व्यक्ति की एक विशेष प्रकार के श्रृंगार की कामना उसके समाज द्वारा निर्धारित होती है जैसे की – आज भी कई समाजों में पुरुषों का कान छिदवाना अनिवार्य है। आजकल बाजार में विभिन्न किस्म के कपड़े उपलब्ध हैं जिनमें से अधिकांश का उपयोग पहनावे और परिधान के लिए किया जाता है। कपड़े की विशेषताओं का उनके विभिन्न प्रकार के उपयोगों और देखभाल संबंधी आवश्यकताओं से सीधा संबंध होता हैं। वर्तमान समय में कपड़ों एवं परिधानों के चयन के दौरान न केवल कपड़े की विशेषताएँ देखी जाती हैं बल्कि कपड़े का प्रचलित फ़ैशन के अनुरूप होना तथा कपड़े की सहायक सामग्रीयों (accessories) का भी विशेष तौर पर ध्यान रखा जाता हैं। (5) आत्म अभिव्यक्ति (Self Expression) पहनावे से आत्म अभिव्यक्ति भी की जा सकती हैं। वस्त्रों से आपको अच्छा अनुभव होता हैं। वे आपके भावों के बारे में बताते हैं। कुछ किशारों को अपने मित्रों में अपनी प्रतिष्ठा बढ़ाने के लिए कीमती और नए फैशन के कपड़े पहनना अच्छा लगता हैं। कुछ परिधान किसी व्यक्ति समूह के प्रति आपकी विद्रोह की भावना को दर्शाते हैं। जैसे कि- किशोर कई बार ऐसे वस्त्र पहनते हैं जिसका उन्हें पता हैं कि घर के बड़े लोग उनका अनुमोदन नहीं करेंगे। |
भारत में वस्त्रों (वेशभूषा) के चयन को प्रभावित करने वाले कारक (Factors Affecting Selection of Clothing in India) पहने जाने वाले वस्त्रों की आवश्यकताओं का निर्धारण तथा उनका चयन मुख्य रूप से उस क्षेत्र की भौगोलिक विशेषताओं, जलवायु और मौसम संबंधी विशेषताओं पर निर्भर करता है जहाँ उनका उपयोग किया जाना है। इसके अतिरिक्त वस्त्रों का चयन आसान उपलब्धता, पहनने वाले व्यक्ति की संस्कृति और इनसे भी अधिक पारिवारिक परंपराओं से भी प्रभावित होता है। सामान्य तौर पर वे कारक जो कपड़े के चयन को प्रभावित करते हैं उनका संक्षिप्त विवरण निम्नलिखित है- आयु (Age) • जिस व्यक्ति के लिए कपड़ों का चयन किया जाना हैं उसकी आयु तथा अवस्था को ध्यान में रखना बहुत जरूरी होता हैं। नवजात तथा बच्चों के लिए कपड़ों और परिधानों का चयन करते समय उनकी आयु तथा अवस्था को ध्यान में रखना और भी जरूरी हो जाता है। • चूँकि माता-पिता या परिवार के बड़े बुजुर्ग ही बच्चों के कपड़ों के संबंध में निर्णय लेते हैं, इसलिए उन्हें इस बात का विशेष ध्यान रखना चाहिए कि शिशु और छोटे बच्चे वयस्कों की संतुष्टि मात्र के लिए सजाए जाने वाले गुड्डे, गुड़िया नहीं हैं। उन्हें बच्चों की शारीरिक वृद्धि, क्रियात्मक विकास, लोगों और उनके चारों ओर की चीज़ों के साथ उनके संबंध, उनके द्वारा किए जाने वाले क्रियाकलापों के साथ-साथ उनकी सुविधा और सुरक्षा को भी ध्यान में रखकर वस्त्रों का चयन करना चाहिए। • जैसे-जैसे बच्चे बड़े होते हैं, अपने परिवार के बाहर के लोगों के साथ उनका संबंध और परस्पर क्रिया बढ़ती जाती है। दूसरे लोग जो कपड़े पहनते हैं और दूसरे लोग उनके कपड़ों को कैसे देखते हैं, इसके प्रति भी बच्चे सजग होने लगते हैं। • मध्य बाल्यावस्था के दौरान अपने मित्रों में समानुरूपता बच्चों के लिए काफी महत्वपूर्ण विषय होता है और उम्र के साथ इसका महत्त्व और अधिक बढ़ता जाता है। • वेशभूषा और परिधान बढ़ते हुए बच्चे में संबंधित और स्वीकृत होने की भावना का सृजन करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। जैसे-जैसे बच्चे बड़े होते जाते हैं उनके पहनावे का रूप भी बदलता जाता है और फिर धीरे-धीरे लड़के और लड़कियों के पहनावे में अंतर आने लगता हैं। • किशोरावस्था के दौरान तीव्र गति से होने वाले शारीरिक परिवर्तनों के कारण किशोर-किशोरियों के पहनावे में और अधिक अंतर आ जाता है। जैसे-जैसे किशोर अपनी सांस्कृतिक, सामाजिक मान्यताओं और समकालीन प्रवृत्तियों (contemporary trends) से परिचित होने लगते हैं वैसे-वैसे उनके कपड़ों के चयन में परिवर्तन आने लगता है। • अधिकतर किशोर का यह मानना होता हैं कि मित्रों तथा सामाजिक समूहों में उनकी लोकप्रियता और संबंध काफी हद तक उनके रूप-रंग पर ही निर्भर करते हैं और रूप-रंग ‘उचित कपड़ों’ के कारण ही निखारा जा सकता है। जलवायु और मौसम (Climate and Reason) • विभिन्न किस्म के कपड़े पहने का एक मुख्य उद्देश्य पर्यावरण और मौसम से शरीर को बचाना भी होता हैं। इसलिए बच्चों के लिए कपड़ों का चयन क्षेत्र की जलवायु के अनुरूप किया जाना चाहिए, जैसे कि- ठण्डे मौसम में पहने जाने वाले कपड़े गर्मी प्रदान करने वाले होने चाहिए जबकि गर्मी के दौरान पहने जाने वाले वस्त्र शरीर को शीतलता प्रदान करने वाले होने चाहिए। उसी प्रकार भारी वर्षा वाले क्षेत्रों में पहने जाने वाले वस्त्र जल्दी सूखने वाले तथा जल का अधिक अवशोषण न करने वाले होने चाहिए। • कुछ विशेष किस्म के कपड़े और पहनावे सालभर में मात्र 3-4 माह के लिए ही उपयोग किए जाते हैं अतः ऐसे कपड़ों को खरीदने से पहले उनकी कीमत और मात्रा पर भली-भाँति विचार कर लेना चाहिए। • कपड़े के चयन के दौरान बच्चों की शारीरिक वृद्धि दर को भी ध्यान में रखना जरूरी हैं अन्यथा अगले मौसम तक बच्चों के बड़े होने के कारण कपड़े उन्हें छोटे हो जाएँगे। अवसर (Occasion) • कपड़ों का चयन बहुत हद तक अवसर और दिन के समय (सुबह या रात) पर भी निर्भर करता है। यदि वस्त्र अवसर तथा स्थान के न पहने जाएं तो व्यक्ति अक्सर उपहास का ही पात्र बनता हैं। जैसे कि- योगा के दौरान पहने जाने वाले वस्त्र किसी उत्सव के दौरान पहने जाने वाले वस्त्रों की अपेक्षा काफी अलग होगे। इसलिए वस्त्रों का चयन करते समय इस बात का विशेष ध्यान रखना चाहिए कि उन वस्त्रों को कब और कहाँ पहनना हैं। • हर समाज में विभिन्न प्रकार के अवसरों के अनुरूप पहने जाने वाले वस्त्रों संबंधी कुछ अलिखित नियम और परंपराएँ होती हैं। जैसे कि- सभी स्कूलों की अपनी एक निश्चित यूनिफार्म होती हैं और इसके अतिरिक्त स्कूल में विद्यार्थियों द्वारा आभूषण इत्यादि पहनने की भी सख्त मनाही होती है। यदि स्कूलों में यूनिफार्म पहनना अनिवार्य न हो तो छात्र-छात्राएँ अपने आर्थिक स्तर का प्रदर्शन करने के लिए ऐसे-ऐसे वस्त्र पहनकर विद्यालय आना शुरू कर देगे जिनके कारण निम्न आय वर्ग के विद्यार्थियों में हीन भावना उत्पन्न हो जाएगी और वह विद्यालय के समूहिक क्रियाकलापों में अपेक्षित रूप भाग लेने में झिझकने लगेगे। इसके अतिरिक्त विद्यालय में और भी बहुत-सी अनुशासन संबंधी समस्याएँ उत्पन्न हो जाएगी। • सामाजिक समारोह और पारिवारिक कार्यक्रम/पार्टियाँ ऐसे अवसर होते हैं जब बच्चे अपना व्यक्तित्व उजागर करने के लिए ‘विशेष’ परिधान पहनना पसंद करते हैं। आजकल शादी-ब्याह जैसे पारिवारिक समारोहों में बच्चें भी पारंपरिक मानकों का अनुसरण करना पसंद करते है और वे वही कपड़े पहनने का प्रयास करते हैं जो अवसर के अनुरूप उपयुक्त दिखे। इसके अतिरिक्त धार्मिक मान्यताएँ और रीति-रिवाज भी कपड़े के चयन को प्रभावित करते हैं। • पहनावे के संदर्भ में शालीनता/मर्यादा और सुरक्षा, अवसर, क्रियाकलाप और दिन के समय के अनुसार भिन्न-भिन्न होती हैं। इसलिए सही समय पर सही कपड़े पहनना बहुत जरूरी होता है। फैशन (Fashion) “ फैशन” शब्द का तात्पर्य उस विशिष्ट शैली से है जो एक समयावधि के दौरान समान आयु वर्ग के लोगों के बीच काफी प्रचलित होती हैं। • आजकल टी.वी. तथा इंटरनेट के बढ़ते प्रभाव के कारण बच्चे भी फैशन के प्रति बहुत अधिक सचेत हो गए हैं। अक्सर फैशन महत्वपूर्ण व्यक्तियों जैसे कि- नेताओं, फिल्मी सितारों, खिलाड़ियों इत्यादि से प्रेरित होता है। फैशन कपड़े कि किस्म, रंग, कपड़े के डिजाइन, आकृति, परिधान की सिलाई या उप-साधनों, जैसे कि- स्कार्क्स, बैग, बैज, बेल्ट इत्यादि के रूप में परिलक्षित हो सकता हैं। • कुछ फैशन ऐसे भी होते हैं जो परिधान की किसी विशेषता को बहुत अधिक उजागर करते हैं, या केवल समाज के किसी विशिष्ट वर्ग क्षेत्र को प्रभावित करते हैं। ऐसे फैशन आमतौर पर ज़्यादा समय तक प्रचलित नहीं रह पाते। फैशन के इस प्रकार के रूप को फैड्स कहते हैं। आजकल के बच्चे और किशोर फैड्स (fads) रूपी फैशन से सबसे ज्यादा प्रभावित होते हैं। आय (Income) • व्यक्ति की आर्थिक स्थिति भी कपड़ों के चयन को काफी हद तक प्रभावित करती है। आर्थिक स्थिति का प्रभाव केवल वस्त्रों की खरीदारी के दौरान ही नहीं दिखता बल्कि यह विभिन्न उद्देश्यों के लिए कपड़ा कितना टिकाऊ है तथा उसे किस प्रकार की देखभाल एवं रख-रखाव की आवश्यकता होगी, जैसे कारकों में भी परिलक्षित होता है। • परिवार में बच्चों की संख्या, उनकी आयु में अंतर और लिंग भी कपड़े के चयन को प्रभावित करते हैं। • उच्च-आय वर्ग वाले परिवारों में बच्चों के परिधानों की बहुत ज़्यादा वैरायटी होती है, जैसे कि- विशिष्ट अवसरों पर उनके पास पहनने के लिए अलग-अलग प्रकार की कई पोशाकें होती हैं। जबकि मध्यम या निम्न आय वाले परिवारों में अक्सर बड़े बच्चों के कपड़ों को ही पुनः प्रयोग में लाया जाता है अर्थात् उन्हीं के कपड़े पुनः छोटे बच्चों द्वारा पहने जाते हैं जिससे कपड़ों पर व्यय में बचत होती हैं। • संभवत: इसी कारण से स्कूली बच्चों के लिए स्कूल यूनिफार्म निर्धारित की जाती है, ताकि छात्रों के बीच सामाजिक-आर्थिक अंतरों को कम किया जा सके। |
बच्चों की वस्त्र संबंधी मूल आवश्यकताओं को समझना (Understanding Children’s Basic Clothing Needs) जैसे-जैसे बच्चे बड़े होते हैं, वह उन हमउम्र मित्रों या वयस्कों की तरह कपड़े पहनना पसंद करते है जिन्हें वे पसंद (admire) करते हैं। अपने पसंदीदा व्यक्ति के अनुरूप कपड़े पहनने से बच्चा स्वयं को भावनात्मक रूप से उस व्यक्ति के जुड़ा हुआ महसूस करता हैं। बच्चों के कपड़े उनकी विभिन्न प्रकार की गतिविधियों के अनुकूल होने चाहिए, अर्थात् बच्चों को ऐसे कपड़े पहनाए जाने चाहिए जिनमें वे खेलते समय या कोई भी गतिविधि करते समय सुविधाजनक महसूस करें, क्योंकि यह उनके संपूर्ण विकास के लिए भी अनिवार्य है। बच्चों की शैशवावस्था से किशोरावस्था तक वस्त्र संबंधी विभिन्न आवश्यकताएँ निम्नलिखित है- आराम और सुविधा (Comfort) बच्चों के कपड़ों का आरामदायक होना मूल आवश्यकता है इसके अतिरिक्त- • बच्चों के कपड़े आरामदायक तथा सुविधाजनक होने चाहिए ताकि उन्हें लोट-पोट होने, घुटनों के बल चलने, पालथी मारने, ऊपर चढ़ने, भागने आदि क्रियाएँ करने में किसी भी प्रकार की परेशानी का सामना न करना पड़े। • बच्चों को ज्यादा चुस्त कपड़े नहीं पहनाए जाने चाहिए क्योंकि तंग फिटिंग के वस्त्र उनके शारीरिक क्रियाकलापों और स्वाभाविक रक्त प्रवाह में रुकावट डालते हैं। • कपड़ो में प्रयुक्त इलास्टिक भी ज्यादा कसी हुई नहीं होनी चाहिए अन्यथा बच्चों को दर्द होने लगता है। • बच्चों के लिए हल्के कपड़ों का चयन करना चाहिए जो एक्रिलिक और नायलॉन धागे से बने हुए हों, क्योंकि बच्चों के लिए भारी और बड़े कपड़ों को संभालना कठिन होता है और बच्चों को इनसे परेशानी भी होती है। • बच्चे शारीरिक रूप से बहुत ही क्रियाशील होते है। इसलिए आरामदायक शारीरिक क्रियाओं के लिए उनके कपड़ों का पर्याप्त ढीला होना अनिवार्य है। कमर के नीचे ढीले • कपड़ों की तुलना में कंधों से ढीले कपड़े अधिक आरामदायक होते हैं। • कपड़ों का गला पर्याप्त चौड़ाई वाला होना चाहिए ताकि बच्चों को गले में कोई खिंचाव न हो। • सिरों पर बैंड लगी आस्तीन आरामदायक नहीं होती है क्योंकि ये मुक्त रूप से शरीर को हिलाने-डुलाने में अड़चन डालती है। • बच्चों के कपड़े मुलायम और नमी-पसीना सोखने वाले होने चाहिए। • बच्चों के कपड़े उनकी कोमल त्वचा के लिए उपयुक्त होने चाहिए, जैसे कि- लड़कियों के फ्रॉक के लिए महीन मलमल कॉलर और छोटे लड़कों के लिए अधिक माँड लगी कमीज़ें पहनने में आरामदायक नहीं होती हैं। • बहुत ढीले कपड़े तंग कपड़ों की तरह ही आरामदायक नहीं होते हैं, इसलिए बच्चे की वृद्धि का ध्यान रखते हुए पर्याप्त गुंजाइश वाले सही फिटिंग के परिधानों का चयन करना चाहिए। • रैगलिन आस्तीन फिट आस्तीन की तुलना में अधिक आरामदायक होती हैं तथा यह बच्चों की शारीरिक वृद्धि के लिए भी उपयुक्त होती हैं। सुरक्षा (Safety) बच्चों के कपड़ों का आरामदायक तथा सुविधाजनक होने के साथ-साथ सुरक्षित होना भी बहुत जरूरी है। बच्चों के कपड़ों का सुरक्षित होना निम्न पर निर्भर होता है- • बहुत ढीले कपड़े न ही आरामदायक होते हैं और न ही सुरक्षित होते हैं, जैसे कि- रसोईघर में ढीले कपड़े आसानी से आग पकड़ सकते हैं। • लटके हुए कपड़े जैसे कि- दुपट्टे/कमरबंद/गुलुबंद और झालर इत्यादि तिपहिया साइकिल या घूमती वस्तु में आसानी से फँस सकते हैं। • चूँकि बच्चे अचानक ही यहाँ-वहाँ दौड़ लगा देते है इसलिए बच्चों के कपड़ों के रंग चटकीले होने चाहिए ताकि दूर से आता कोई भी वाहन या व्यक्ति उन्हें आसानी से देख सके। • जहाँ तक संभव हो 1 से 1½ के तक के बच्चों के वस्त्रों में ढीले बटन और झालर नहीं होनी चाहिए, क्योंकि इस आयु वर्ग के बच्चे हर चीज़ को अपने मुँह में डालते रहते हैं। स्व-सहायता (Self-Help) कपड़ों के संदर्भ में स्व-सहायता का तात्पर्य, बच्चे द्वारा स्वयं ही कपड़े पहनने तथा उतार सकने से है। स्वयं कपड़े उतारने एवं पहनने से बच्चों में आत्मविश्वास और आत्मनिर्भरता की भावना विकसित होती है। बच्चों के ऐसे बहुत से कपड़े होते है जिन्हें वह स्वयं पहन या उतार नहीं पाते, ऐसे कपड़े स्वयं कपड़े पहनने वाले बच्चे में निराशा की भावना ला सकते हैं। • परिधान का खुला भाग बच्चों के कपड़ों में स्व-सहायता की संभवतः सबसे अनिवार्य विशेषता है। बच्चों के परिधान का खुला भाग पर्याप्त बड़ा होना चाहिए ताकि बच्चा आसानी से परिधान पहन और उतार सके। आमतौर पर सामने से खुले कपड़ों को पहनाना और उतारना आसान होता है। • वस्त्र को खोलने और बंद करने के लिए लगे बटन इतने बड़े होने चाहिए कि बच्चा उन्हें आसानी से हाथ से पकड़ सके। • परिधान के अगले और पिछले हिस्से में कोई ऐसी पहचान होनी चाहिए ताकि बच्चा परिधान के अगले और पिछले हिस्से के बीच आसानी से अंतर कर सके। • छोटे टिच बटन, हुक, लूप और कमर पर या गले में लगे बो-टाई और धागे के लूप्स के साथ छोटे बटन परिधान को स्वयं पहनने/उतारने में बाधा डालते हैं। दिखावट (Appearance) हर बच्चें में अपने कपड़ों के प्रति अपने खुद के विचार होते हैं और उन्हें अपनी पसंद व्यक्त करने की स्वतंत्रता भी मिलनी चाहिए। छोटी उम्र से ही कपड़ों का चयन करने से उनमें भावी जीवन के दौरान उपयुक्त कपड़े चुनने की क्षमता विकसित हो जाती है। • घर से बाहर आने-जाने वाले बच्चों के परिधानों के रंग चटकीले और चमकीले होने चाहिए ताकि उन्हें खेल के मैदान या गली में आसानी से पहचाना जा सके। • वस्त्रों के प्रिंट में लाइने इस प्रकार की होनी चाहिए ताकि वह वांछनीय विशेषताओं को उजागर करे और अवांछित विशेषताओं को सकें। • कपड़े के प्रिंट का डिज़ाइन बच्चों की छोटी लंबाई के अनुरूप होना चाहिए। बड़े-बड़े प्रिंट और डिज़ाइन छोटे बच्चों के अनुरूप नहीं होते। आमतौर पर छोटे-छोटे चैक और हलके-फुलके तथा छोटे-छोटे सुंदर प्रिंट बच्चों के कपड़ों के लिए सर्वोत्तम होते हैं। • हालांकि बड़े डिज़ाइन देखने में आकर्षक हो सकते हैं, परंतु इनमें अक्सर बच्चों का व्यक्तित्व छुप जाता है। वृद्धि के लिए गुंजाइश (Allowance for Growth) बच्चों की शारीरिक वृद्धि और विकास को ध्यान में रखते हुए कपड़ों में वृद्धि के लिए गुंजाइश होनी चाहिए विशेषकर लंबाई बढ़ने के लिए। परंतु इसका मतलब यह नहीं है कि, बच्चों के माप की अपेक्षा बहुत बड़े कपड़े खरीद लिए जाए क्योंकि बहुत ढीले कपड़े न तो आरामदायक होते हैं और न ही सुरक्षित होते हैं। • ऐसे वस्त्रों को प्राथमिकता दी जानी चाहिए जो तंग न हो तथा जिनमें लंबाई बढ़ने का प्रावधान हो। • ऐसे कपड़े चुनें जो सिकुड़ते न हों। • पैंटों के निचले किनारे पर अतिरिक्त कपड़ा लगा होना चाहिए ताकि बच्चें की लंबाई बढ़ने पर पैंट को लंबा किया जा सके। • बच्चियों की स्कटों पर छोटा या बड़ा करने वाली पट्टियाँ होनी चाहिए। • रेगलिन आस्तीन सेट इन आस्तीनों की तुलना में बेहतर रहती है। • कंधे पर प्लेटें और चुन्नटें होने से शारीरिक चौड़ाई बढ़ने पर कपड़ों को ढीला करने की गुंजाइश रहती है। सरल देखभाल (Easy Care) • बच्चे उन कपड़ों से ज़्यादा आराम महसूस करते हैं जिनके गंदे होने की चिंता नहीं होती। • माताएँ भी बच्चों के लिए ऐसे कपड़ों को ज्यादा पसंद करती हैं, जिनके देख-रेख की अधिक आवश्यकता नहीं पड़ती, जिन्हें आसानी से धोया जा सकता है और इस्त्री करने की जरूरत नहीं होती या बहुत कम होती है। • दुहरी सिलाई (flat seam) सीधी सिलाई की तुलना में अधिक समय तक चलती है। • घुटने, जेब के कोने और कोहनियों जैसे खिंचने वाले हिस्सों को अतिरिक्त मजबूत बनाया जा सकता है। वस्त्र (Fabrics) • बच्चों के लिए ऐसा कपड़े उपयुक्त होते है जो मुलायम, अच्छी तरह बुने हुए, जिसकी देख-रेख करना आसान आसान हो, त्वचा के लिए आरामदायक हों, जो सिकुड़ते नहीं हो तथा जल्दी गंदे भी नहीं होते हैं। • बच्चों के लिए ऐसे वस्त्र नहीं लेने चाहिए जिन्हें बार-बार ड्राइक्लीन करना पड़े। • बच्चों के लिए प्रिन्टेड कपड़े, मोटे सूती और बुनावट वाले कपड़े उत्तम रहते है क्योंकि उनमें कम सिलवटें पड़ती है और वे गंदे भी कम होते हैं। • बच्चों के लिए सूती वस्त्र सबसे उपयुक्त माने जाते है क्योंकि यह धोने में आसान है और पहनने में आरामदायक होते है। • बच्चों को ऊनी कपड़े पहनाते समय विशेष देख-रेख की आवश्यकता होती है, क्योंकि ऊन बच्चों की मुलायम त्वचा पर प्रतिकूल प्रभाव भी डाल सकती हैं। जहाँ तक संभव हो ऊनी वस्त्रों और बच्चे की त्वचा के बीच कोई अन्य वस्त्र जरूर होना चाहिए। • बच्चों के लिए पोलीएस्टर, नायलोन और एक्रिलिक से बने कपड़े भी उपयुक्त रहते है, क्योंकि इस प्रकार के वस्त्र आसानी से पहने जा सकते हैं तथा उनकी देख-रेख भी आसान होती है। • शुद्ध पोलीएस्टर की तुलना में सूती और पोलीएस्टर के मिश्रण से बने वस्त्र बच्चों के लिए अधिक आरामदायक होते है क्योंकि इसमें पानी-पसीना सोखने की अधिक क्षमता होती है। |
बाल्यावस्था की विभिन्न अवस्थाओं में परिधान संबंधी आवश्यकताएँ (Clothing Requirements During Different Stages of Childhood) बाल्यावस्था की प्रत्येक अवस्था की अपनी कुछ विशेषताएँ होती हैं जिन्हें कपड़ों के चयन के दौरान ध्यान में रखना जरूरी होता है। शैशवकाल (जन्म से छह माह ) [Infancy (birth to six months)] शैशवास्था अर्थात् जन्म के प्रारंभिक महीनों के दौरान, ऊष्णता, आराम और स्वच्छता शिशु के लिए बहुत जरूरी होती है। इस अवस्था के दौरान शिशु मूल रूप से केवल सोते हैं, स्तनपान करते है और मल, मूत्र का त्याग करते हैं। अतः ऐसी अवस्था में बच्चों के कपड़े आरामदायक होने चाहिए। • शिशुओं के लिए ऐसे वस्त्रों को प्राथमिकता दी जानी चाहिए जो सामने की ओर से नीचे तक खुले हों या बड़े गले वाले हो जिससे कि सिर के ऊपर से कपड़े को न पहनाना पड़े। • गले के चारों ओर खींचने वाली डोरी के इस्तेमाल से बचना चाहिए क्योंकि ये डोरी शिशु के गले में उलझ सकती है। • बांधने के लिए प्रयुक्त किए जाने वाले हुक-बटन आदि इस तरह लगे हुए होने चाहिए ताकि उन तक आसानी से पहुँचा जा सके और वे इस प्रकार के हों कि वे किसी प्रकार से शिशु को चोट न पहुचाएँ। • शिशुओं के लिए पर्याप्त मात्रा में कमीज़ें और डायपर्स होने चाहिए क्योंकि इन्हें बार-बार बदलना पड़ता है। • शैशवास्था के दौरान शिशुओं की त्वचा बहुत ही नाजुक और संवेदनशील होती है इसलिए शिशुओं के लिए बहुत मुलायम, हल्के एवं पहनने एवं उतारने में आसान कपड़ों का प्रयोग करना चाहिए। • शिशुओं के कपड़े थोड़े से ढीले होने चाहिए, क्योंकि शरीर पर फिट आने वाले कपड़ों के कारण शिशु की त्वचा पर खरोंच पड़ सकती है। • शुद्ध ऊनी कपड़े शिशुओं की त्वचा को नुकसान पहुँचा सकते है इसलिए शिशु के ऊनी कपड़ों में ऊन तथा सूत का मिश्रण होना चाहिए। ऐसे वस्त्रों को फलालेन कहते हैं। • शैशवास्था के दौरान शिशुओं की शारीरिक वृद्धि बहुत तेजी से होती हैं इसलिए शिशुओं के लिए बिल्कुल पूरे माप के ही बहुत अधिक कपड़े नहीं खरीदने चाहिए। • शिशुओं के लिए डायपर्स/लंगोट की आवश्यकता हमेशा बनी रहती है। डायपर्स मुलायम, अवशोषी, आसानी से धोए जा सकने वाले और जल्दी सूखने वाले होने चाहिए। • • भारतीय परिवारों में घर पर ही सूती डायपर्स बनाना बहुत ही आम बात है। यदि डायपर्स को घर पर बनाने के लिए पुराने सूती कपड़ों का उपयोग किया जा रहा हो तो उन्हें प्रयोग से पहले अच्छी तरह रोगाणुरहित और विसंक्रमित कर लेना चाहिए। अजकल बहुत से परिवारों में घर पर बने डायपर्स की अपेक्षा बाजार में उपलब्ध डायपर्स का प्रयोग किया जाता हैं। इस प्रकार के डायपर्स शिशु के माप के अनुरूप होने चाहिए। • लगभग सभी संस्कृतियों में शिशुओं को बनियान पहनाना आम बात है। शिशुओं को पहनाई जाने वाली बनियान (सूती/ऊनी) का चयन मौसम तथा भौगोलिक स्थिति के आधार पर किया जाना चाहिए, जैसे कि- गर्म जलवायु के लिए सूती बनियान और सर्दी के लिए मुलायम सूती-ऊनी मिश्रण वाली बनियान उपयुक्त रहती है। • शैशवास्था के दौरान कमीज़ें और डायपर्स ही शिशुओं के मुख्य परिधान होते हैं। ऐसे में विभिन्न शैली में बनी सूती कमीजें जिन्हें आसानी से पहनाया जा सके, अधिक पसंद की जाती हैं। • ग्रामीण क्षेत्रों में शिशुओं को पहनाए जाने वाले वस्त्र आमतौर पर घर में प्रयोग किए गए पुराने कपड़ों को पुनः सिलकर तैयार किए जाते है। |
घुटनों के बल चलने वाली आयु (छह माह से एक वर्ष) [Creeping/Crawling Age (6 months to one year)] छह माह से एक वर्ष की आयु के दौरान बच्चा आत्मनिर्भर होने के लक्षण दिखाना शुरू कर देता है। इस अवस्था के दौरान बच्चे खड़े होने के लिए फर्नीचर इत्यादि का सहारा लेते है, वस्तुओं तक पहुँचने का प्रयास करते है। बच्चों को इन जैसे सभी क्रियाकलापों के लिए सुरक्षित और आरामदायक कपड़ों की आवश्यकता होती है। • इस आयु वर्ग बच्चों के लिए ऐसा परिधान होना चाहिए जिसमें वे आसानी से घूम-फिर सकें, अर्थात् ढीले और बाधा-मुक्त परिधान। ढीली फिट वाले परिधान आसानी से खिंच सकते हैं और उनमें बढ़ने की गुंजाइश रहती है। • शारीरिक मुद्रा के विकास की अवस्था होने के कारण बच्चों के लिए भारी पोशाक के चयन से बचना चाहिए, क्योंकि भारी पोशाक बच्चों की शारीरिक गति में बाधक हो सकती है। • इस आयु वर्ग के बच्चों के लिए कसकर बुने गए कपड़ों की अपेक्षा हल्के परिधान ज़्यादा उचित रहते हैं। हल्के वस्त्र खेलों के दौरान अधिक सुविधाजनक रहते है। • बच्चों को आवश्यकता से अधिक कपड़े नहीं पहनाए जाने चाहिए। • बच्चों के परिधान ऐसे कपड़ों से बनाए जाने चाहिए जो मुलायम, चिकने और आसानी से गंदा न होने वाले हो। इसके अतिरिक्त उनकी देख-रेख करना अर्थात् धोना और इस्त्री करना भी आसान होना चाहिए, जैसे कि – हल्के-फुल्के एवं लहरिया धारीदार बुने हुए कपड़े, इन्हें इस्त्री करने की आवश्यकता नहीं होती है तथा विशेष प्रक्रिया से परिष्कृत सूती और रेयान वस्त्र जो आसानी से नहीं सिकुड़ते हैं। • इस आयु वर्ग के बच्चे अपना अधिकतर समय खेल में बिताते हैं, जिसके कारण उनके कपड़ों जल्दी गंदे हो जाते है तथा उन्हें बार-बार बदलने की आवश्यकता होती है। इसलिए यह जरूरी है कि बच्चों के परिधान में खुले भाग सुविधाजनक हों, ताकि वस्त्रों को उतारना और पहनाना आसान हो जाए। • रोम्पर्स और सन सूट्स (rompers and sun-suits) परिधान जो बुने हुए होते हैं या बुनाई वाली सामग्री से बनाए जाते हैं, इस आयु वर्ग के बच्चों के लिए सबसे ज्यादा उपयुक्त होते हैं। • इस आयु वर्ग के बच्चों के लिए परिधानों का चयन करते समय परिधान के आकार और ढीलेपन जैसी विशेषताओं का भी विशेष ध्यान रखना चाहिए, ताकि परिधान बच्चे की गतिविधि में बाधा न पहुँचाएँ। • बच्चे की सरकने की अवस्था के दौरान यदि जमीन की सर्दी से बचाने की आवश्यकता हो तो मुलायम तली (sole) वाले जूते पहनाए जाने चाहिए। • शौचालय संबंधित प्रशिक्षण के लिए पहनाई जाने वाली प्रशिक्षण पैंट्स ऐसे कपड़े की होनी चाहिए जो कूल्हे पर अच्छी तरह आराम से फिट हो जाए। |
टोडलर अवस्था ( 1-2 वर्ष की आयु ) [Toddlerhood (1-2 years)] टोडलर अवस्था में बच्चे शारीरिक रूप से बहुत ही सक्रिय रहते हैं। वह हर समय घर पर तथा बाहर जाकर खेलना चाहते है। यह वह अवस्था होती है जब बच्चा अपने अधिकांश कार्य अपने-आप करना चाहते हैं। चूँकि इस अवस्था के दौरान बच्चे चलना शुरू कर देते हैं इसलिए वह जो भी चीज़ देखते हैं वहाँ अपने-आप पहुँचना चाहते हैं। इस अवस्था में जूते, मोज़े या चप्पल बच्चों के पहनावे के महत्वपूर्ण भाग बन जाते हैं। छोटे बच्चे के लिए जूते और मोज़े का पाँव में सही ढंग से फिट होना पाँव के आराम और विकास के लिए अनिवार्य है। • चलने की इस आरंभिक अवस्था में उचित प्रकार के जूतों का चयन बहुत ही महत्वपूर्ण होता है। जब बच्चा चलना शुरू करता है तो आमतौर पर लचीले तली वाले ऐसे जूते जिसके खुरदरे सोल की मोटाई 1/8 इंच हो, पहनाए जाते हैं। ये बिना एड़ी के या छोटी एड़ी के हो सकते हैं और पंजे वाला भाग भरा और फूला हुआ होता है। • बच्चों के लिए जूतों का चुनाव और पैर में उसकी फिटिंग पर विशेष ध्यान दिया जाना चाहिए क्योंकि बच्चे के पाँव की मुलायम उँगलियों को गलत फिटिंग से या खराब आकृति के जूतों से नुकसान पहुँच सकता है। जूतो की लंबाई, चौड़ाई पंजे की जगह की ऊँचाई और एड़ी की फिटिंग पर विशेष रूप से ध्यान दिया जाना चाहिए। • एक सही फिटिंग वाला जूता वही है जो बच्चे के पैर में आसानी से फिट हो। सही फिट के जूते संतुलन बनाने, चढ़ने और दौड़ने के दौरान शारीरिक कौशलों का सही निर्माण करने में सहायक होते हैं। • बच्चों की शारीरिक वृद्धि के अनुरूप उनके पैर भी जल्दी बड़े हो जाते हैं, इसलिए उनके जूतों को बार-बार बदलने की आवश्यकता होती है ताकि पाँव के विकास पर प्रतिकूल या हानिकारक प्रभाव न पड़े। • 1-2 वर्ष के बच्चे के लिए झबले (overalls) सबसे उपयुक्त परिधान माना जाता हैं। झबले संधि वाले भाग में थोड़ा बड़ा होना चाहिए ताकि डायपर्स ठीक से लगाया जा सके। • दो वर्ष की आयु के बच्चों के लिए स्व-सहायता विशेषताओं वाले परिधान का चयन करना महत्वपूर्ण हो जाता है, क्योंकि लगभग दो वर्ष की आयु के बच्चे अपने-आप कपड़े पहनना पसंद करते हैं। |
विद्यालय पूर्व आयु (2-6 वर्ष) [Preschool Age (2–6 years)] अन्य आयु वर्गों की तरह ही पूर्व विद्यालयी बच्चों के लिए कपड़ों के चयन में स्वास्थ्य, आराम और सुविधा का विशेष ध्यान रखना चाहिए हैं। चूंकि इस आयु वर्ग के बच्चे अपना अधिकतर समय खेलने में ही बिताते है इसलिए इनके लिए कपड़ों का चयन करते समय इस बात का विशेष ध्यान रखना चाहिए कि परिधान मजबूत हो ताकि वह रगड़ और टूट-फूट आसानी से झेल सके। • विद्यालय पूर्व आयु के बच्चों के कपड़े हल्की सामग्री से निर्मित होने चाहिए जिसे पहले से ही सिकुड़ाया (pre-shrunk ) गया हो और देखभाल करना भी आसान हो। • इस आयु वर्ग के बच्चों के लिए सूती वस्त्र सबसे उपयुक्त होते है। यह स्वास्थ्य की दृष्टि से अच्छा होने के साथ-साथ जल अवशोषी तथा धोने में भी आसान होते है। • इस आयु वर्ग के बच्चों के लिए खरीदे जाने वाले रेडिमेड परिधानों का डिज़ाइन ऐसा होना चाहिए जिनकी देखभाल आसानी से की जा सके, जैसे कि – छोटी बच्चियों के परिधान में झालर आदि लगी होती है जिससे परिधान को धोना और इस्त्री करना थोड़ा कठिन हो जाता है। • विद्यालय पूर्व बच्चों का परिधान ऐसा होना चाहिए कि वह कई बार धोने और पहनने के बावजूद भी ज्यों का त्यों बना रहे। • बच्चों को वस्त्र पहनाने से पहले यह निश्चित कर लें कि हुक/बटन, झालरें इत्यादि ठीक से सिले हों, परिधान पर लगी सजावटी सामग्री को इस्त्री कराना आसान हो और सीवन सपाट और अच्छी तरह बनाए गए हों। • इस उम्र के बच्चे तेज़ी से बढ़ते हैं इसलिए इनके लिए परिधान सीमित संख्या में ही खरीदने चाहिए। • विद्यालय-पूर्व बच्चे अपने पहनावे में रुचि दिखाना शुरू कर देते हैं जिसके कारण अपने परिधानों के रंग और फैशन के संबंध में उनकी व्यक्तिगत पसंद-नापसंद होती है। बच्चों का व्यक्तित्व भी उनके कपड़ों के चयन को प्रभावित करता है, जैसे कि- कुछ लड़कियाँ स्त्रियोचित शैली अधिक पसंद करती हैं और झालर वाली फ्रॉक पहनना पसंद करती हैं जबकि कुछ लड़कियाँ लड़कों की तरह कपड़े पहनना अधिक पसंद करती है। हालांकि पूर्व विद्यालयी आयु की लड़कियों की अपेक्षा लड़के अपने पहनावे पर अधिक ध्यान नहीं देते हैं परंतु वे दूसरे लड़कों की तरह ही कपड़े पहनना पसंद करते हैं। इस उम्र में लड़कियाँ लड़कों की तरह ही पैंट्स/जीन्स/शॉर्ट इत्यादि आराम से पहन सकती हैं जबकि लड़के अपनी हमउम्र लड़कियों वाले कपड़े नहीं पहनते। • हर बच्चे के व्यक्तित्व का सम्मान करते हुए उनकी वस्त्र संबंधी व्यक्तिगत पसंद-नापसंद का विशेष ध्यान रखना चाहिए फिर चाहे वे जुड़वाँ बच्चे ही क्यों न हों। एक समान दिखने वाले जुड़वाँ बच्चों को एक जैसे कपड़े नहीं पहनाने चाहिए जब तक उनकी यह अपनी इच्छा न हो। यह महत्वपूर्ण है कि पूर्व विद्यालयी आयु के बच्चे के कपड़े खरीदते समय उन्हें अपनी पसंद व्यक्त करने का अवसर दिया जाए। • बच्चे को अपने आप कपड़े पहनने और उतारने के लिए प्रोत्साहित करना चाहिए। इस प्रकार का प्रोत्साहन भविष्य में बच्चे को अधिक स्वतंत्र और आत्मनिर्भर बनने में सहायता करता हैं। पूर्व विद्यालयी आयु के बच्चों को अपने कपड़े स्वयं पहनने-उतारने के लिए प्रोत्साहित करने के साथ-साथ उनके लिए ऐसे वस्त्रों का चयन करना चाहिए जिनमें निम्न विशेषताएँ हों, जैसे कि- i) पूरा एक ही परिधान हो, ii) अगले हिस्से का खुला भाग काफी बड़ा/लम्बा हो जो आसानी से खोला जा सके, iii) बड़े बटन हों, iv) बड़ा और आरामदायक गला हो जिसमें कॉलर न हो और कंधे भी बड़े हों संक्षेप में कहें तो- विद्यालय-पूर्व आयु के बच्चों के लिए कपड़े पहनने में आरामदायक, रख-रखाव में आसान, प्रयोग में टिकाऊ हों जो शारीरिक वृद्धि के कारण बदलती आवश्यकताओं के लिए उपयुक्त हों, डिजाइन और रंग आकर्षक हों और आत्मनिर्भरता को बढ़ावा देते हों। |
प्रारंभिक स्कूली वर्ष (6-11 वर्ष) [Elementary School Years (6-11 years)] मध्य बाल्यावस्था को ही प्रारंभिक स्कूली वर्ष कहा जाता है। इस अवस्था में बच्चों की शारीरिक सक्रियता बहुत ज़्यादा होती है और लड़के एवं लड़कियाँ दोनों ही खेल-कूद में काफी रुचि रखते हैं। इस अवस्था के दौरान बच्चों के सामाजिक और भावात्मक विकास में परिधान महत्वपूर्ण भूमिका निभाते है। • मध्य बाल्यावस्था के दौरान बच्चे अपने मित्रों की स्वीकार्यता प्राप्त करने के लिए कुछ विशिष्ट कपड़ों के प्रति पसंद और नापसंद विकसित कर लेते हैं और माता-पिता को इस विकासात्मक परिवर्तन को समझना चाहिए। यदि बच्चे का परिधान उसके मित्रों के परिधान से बहुत अलग दिखाई देगा तो संवेदनशील बच्चा अपमान का अनुभव करेगा जिससे उसके विश्वास की कमी आएगी। • हर आयु वर्ग की तरह इस आयु वर्ग के बच्चों के लिए भी आरामदायक परिधान अनिवार्य होते है। इस अवस्था के दौरान लड़के विशेष रूप से बहुत ही सक्रिय हो जाते हैं और खुरदरे कपड़े पहनना पसंद करते हैं जो उनके किसी भी प्रकार के शारीरिक क्रियाकलाप या मैदानी खेल के दौरान भी खराब न हों। जबकि लड़कियाँ ‘लड़कों’ जैसे कपड़े पहनने के साथ-साथ स्त्रियोचित कपड़े पहनना भी पसंद करने लगती हैं। • इस अवस्था के दौरान लगभग सभी बच्चे अपनी पसंद के अनुरूप चयन किए गए कपड़े पहनना भी पसंद करते हैं। यदि वस्त्रों के चयन के दौरान उनके माता-पिता उन्हें वस्त्रों के चुनाव संबंधी कोई सुझाव दे तो बच्चे अक्सर उसे अनसुना करते है तथा जोर दिए जाने पर नाराज़ हो जाते हैं। कई बार बच्चे फैशन की चाह में ऐसे कपड़ों का चयन कर लेते हैं जो आरामदायक नहीं होते। • इस आयु वर्ग के बच्चों के लिए परिधान का चयन करते समय फिटिंग एक महत्वपूर्ण पहलू है। खराब फिटिंग वाले कपड़ों को बच्चे पसंद नहीं करते हैं। • शारीरिक रूप से अत्यधिक क्रियाशील होने के कारण इस आयु वर्ग के बच्चों के लिए ऐसे कपड़ों का चयन करना चाहिए जो आसानी से पसीना सोख सकें। • सूती, वॉइल आदि से बने वस्त्र इस आयु वर्ग के बच्चों के लिए सबसे उपयुक्त होते हैं। |
किशोर (11-19 वर्ष) [Adolescents (11-19 years)] • किशोरावस्था के दौरान होने वाले ‘वृद्धि स्फुरण’ (growth sprut) के कारण शरीर के भिन्न अंग अलग-अलग अनुपातों में तेजी से विकसित होते हैं। इसी कारण से प्रारंभिक किशोरावस्था के दौरान किशोरों के लिए एक समय पर कम परिधान खरीदने का सुझाव दिया जाता है अन्यथा कपड़े जल्दी छोटे पड़ जाएँगें। • किशोरावस्था के दौरान किशोरों के लिए कपड़ों की गुणवत्ता और बनावट से कहीं अधिक महत्वपूर्ण कपड़ों की फिटिंग और उनका प्रचलित फैशन के अनुरूप होनाnजरूरी होता है। • किशोरों के लिए कपड़ों का चयन बहुत ही कठिन कार्य होता है, क्योंकि इस अवस्था के दौरान हर बच्चा कुछ नया तथा सृजनात्मक पहनना चाहता है। हर किशोर चाहता है कि वह कुछ ऐसा पहनने जो उसे अपने मित्रों में कुछ अलग और विशिष्ट होने का एहसास प्रदान करें। हर किशोर चाहता है कि वह ऐसे वस्त्र पहने जिसका अनुसरण उसके सभी मित्र करें। किशोरों के लिए ऐसे वस्त्रों का चयन किया जाना चाहिए जो उनके व्यक्तित्व के निखारने के साथ-साथ उनके स्व-मान (self-respect) को बढ़ाने में भी सहायक हों। • प्रचलित फैशन के वस्त्र पहनने के साथ-साथ कई बार किशोर अपनी सृजनात्मकता (creativity) के चलते नए फैशन का सृजन भी करते हैं। अक्सर किशोर फैशन का इतना अंधाधुंध अनुसरण करते हैं कि वह अपने पहनावे पर बड़ी राशि खर्च करने से भी नहीं झिझकते। अपने हमउम्र साथियों की तरह या अपने आदर्श व्यक्ति की तरह कपड़े पहनना अपनी पहचान बनाने की भावना के लक्षण हैं। • खेलकूद या कसरत के लिए तैयार होते समय ऐसे कपड़े और जूते पहनने चाहिए जो आरामदायक हों और खिंचाव, छाले, मोच या पैर और टखने में सूजन जैसी समस्याओं से बचा सकें। • किशोरों के वस्त्र धोने में आसान होने चाहिए, ताकि वस्त्र संबंधी स्वच्छता द्वारा उन्हें त्वचा संबंधी परेशानियों जैसे कि- फोड़े-फुंसी इत्यादि से बचाया जा सकें। • किशोरों के परिधानों का डिजाइन ऐसा होना चाहिए जो उनकी गति में बाधक न बने। • किशोरों के परिधान ऐसे कपड़े के बने होने चाहिए जो आसानी से पसीना सोखने में सक्षम हों। • वस्त्र किसी भी प्रकार से असभ्य न दिखे। • वस्त्र मुलायम, खींचने योग्य तथा विभिन्न अंलकरणों से सुसज्जित होने चाहिए। • वस्त्र किशोर के शारीरिक आकार, लम्बाई तथा रंग के अनुरूप होने चाहिए। |
विशेष आवश्यकताओं वाले बच्चों के लिए कपड़े (Clothes for Children with Special Needs) अध्याय के अब तक के अध्ययन के आधार पर हम कह सकते है कि- व्यक्ति द्वारा पहना गया परिधान उसके व्यक्तित्व का परिचायक होता है तथा सुरक्षा प्रदान करने के अलावा परिधान बच्चे में स्वायत्तता और सक्षमता की भावना (sense of autonomy and competence) विकसित करने में भी सहायक होते है। अक्सर देखा गया है कि विशेष आवश्यकताओं वाले बच्चों की शारीरिक गतिविधियाँ सीमित होती है। ऐसी स्थिति में विशेष आवश्यकताओं वाले बच्चों की कपड़े संबंधी आवश्यकताएँ सामान्य बच्चों की अपेक्षा थोड़ी अलग होती है, जैसे कि- • विशेष आवश्यकताओं वाले बच्चों के लिए कपड़े पहनने और उतारने का कार्य बहुत महत्वपूर्ण होता है। अक्षमता के स्वरूप के आधार पर कुछ बच्चे स्वयं कपड़े पहनने में समर्थ होते हैं। इससे उन्हें भावात्मक संतुष्टि प्राप्त होती है तथा उनमें सम्मान की भाव भी जागृत होता है। परंतु यदि बच्चा बहुत गंभीर रूप से अक्षम हो तो उसकी देखभाल करने वाला व्यक्ति ही आमतौर पर कपड़ें बदलने में उसकी सहायता करता है। ऐसी स्थिति में कपड़े बदलने की प्रक्रिया में बहुत समय लगता है और यह थकानपूर्ण भी हो जाती है। इसलिए विशेष आवश्यकताओं वाले बच्चों के लिए परिधान का चयन उनकी अक्षमता के प्रकार और उससे संबंधित कठिनाइयों के अनुसार किया जाना चाहिए। • किसी भी प्रकार की अक्षमता से ग्रस्त बच्चे के वस्त्रों का आरामदायक होना बहुत ही जरूरी होता है, इसलिए गर्मी में सूती तथा सर्दियों में कॉडरॉय तथा सूती – ऊनी मिश्रण (काटस्कूल) से बने वस्त्रों का उपयोग बेहतर रहता है। • अक्षमता ग्रस्त बच्चों के लिए चुना गया परिधान मजबूत होना चाहिए ताकि यह बच्चे के चिकित्सा संबंधी उपकरण जैसे कि- व्हील चेयर इत्यादि में फंसकर फट न सके। उसी प्रकार केलिपर्स और ब्रेसेज़ (calipers and braces) के लिए परिधान में विशिष्ट क्षेत्र में दोहरी सिलाई (reinforcement) होनी चाहिए। • वस्त्रों का खुला भाग आसानी से खोलने लायक और बाँधने में आसान होना चाहिए। वस्त्रों को खोलने और बाँधने के लिए वेलक्रोज़ और कीचेन के साथ ज़िपर्स (vel cors and zippers with key chains) का प्रयोग किया जाना चाहिए। • परिधान धोने में आसान होने चाहिए। • कपड़े का पहनना और उतारना सरल होना चाहिए, अर्थात् गला बड़ा होना चाहिए, कमर की बैल्ट इलास्टिक वाली होनी चाहिए और खुली जेबें सामने की तरफ होनी चाहिए। • कपड़ों में सौंदर्यबोध (aesthetic appeal) का होना भी बहुत जरूरी है। अक्षमता ग्रस्त बच्चों के कपड़े भी सामान्य बच्चों के कपड़ों की तरह ही दिखने चाहिए अर्थात् जो अच्छी तरह सिले हुए हो परंतु पहनने में अपेक्षाकृत आसान हों। • ऐसे बच्चों के कपड़ों का रंग और प्रिंट लुभावना होना चाहिए ताकि उन्हें पहनने वाला बच्चा अच्छा अनुभव करे। • ऐसे बच्चों के लिए सबसे उपयुक्त परिधान वह है जो पहनने वाले और देखभाल करने वाले, दोनों की व्यक्तिगत आवश्यकताओं के अनुरूप बनाए गए हों। |
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