NCERT Solution Class 10 भूगोल Chapter 6 विनिर्माण उद्योग Notes in Hindi

 Class 10 भूगोल Chapter 6 विनिर्माण उद्योग 

Textbook NCERT
Class Class 10
Subject भूगोल Geography
Chapter Chapter 6
Chapter Name विनिर्माण उद्योग
Category Class 10 भूगोल Notes in Hindi
Medium Hindi
SourceLast Doubt

Class 10 भूगोल Chapter 6 विनिर्माण उद्योग Notes in hindi. जिसमे विनिर्माण, राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था में उद्योग का योगदान, औद्योगिक अवस्थिति, उद्योग का वर्गीकरण, कृषि आधारित उद्योग, वस्त्र उद्योग, सूती वस्त्र, पटसन उद्योग, चीनी उद्योग, खनिज आधारित उद्योग, लौह और इस्पात उद्योग, एल्यूमिनियम प्रगलन, रासायनिक उद्योग, उर्वरक उद्योग, सीमेंट उद्योग, ऑटोमोबाइल उद्योग, सूचना प्रौद्योगिकी और इलेक्ट्रॉनिक्स उद्योग, औद्योगिक प्रदूषण और पर्यावरणीय आदि के बारे में पढ़ेंगे

 Class 10 भूगोल Chapter 6 विनिर्माण उद्योग Notes in hindi

?अध्याय – 6?

विनिर्माण उद्योग

? विनिर्माण 

 मशीनों द्वारा बड़ी मात्रा में कच्चे माल से अधिक मूल्यवान वस्तुओं के उत्पादन को विनिर्माण कहते हैं। 

? विनिर्माण उद्योगों का महत्व 

विनिर्माण उद्योग से कृषि का आधुनिकीकरण करने में मदद मिलती है।  

विनिर्माण उद्योग से लोगों की आय के लिये कृषि पर से निर्भरता कम होती है।  

विनिर्माण से प्राइमरी और सेकंडरी सेक्टर में रोजगार के अवसर बढ़ाने में मदद मिलती है।  

इससे बेरोजगारी और गरीबी दूर करने में मदद मिलती है।  

निर्मित वस्तुओं का निर्यात वाणिज्य व्यापार को बढ़ाता है जिससे अपेक्षित विदेशी मुद्रा की प्राप्ति होती है।  

किसी देश में बड़े पैमाने पर विनिर्माण होने से देश में संपन्नता आती है। 

?राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था में उद्योगों का योगदान 

पिछले दो दशकों से सकल घरेलू उत्पाद में विनिर्माण उद्योग का योगदान 27 प्रतिशत में से 17 प्रतिशत ही है  क्योंकि 10 प्रतिशत भाग खनिज खनन, गैस तथा विद्युत ऊर्जा का योगदान है।  

भारत की अपेक्षा अन्य पूर्वी एशियाई देशों में विनिर्माण का योगदान सकल घरेलू उत्पाद का 25 से 35 प्रतिशत है। पिछले एक दशक से भारतीय विनिर्माण क्षेत्र में 7 प्रतिशत प्रति वर्ष की दर से बढ़ोतरी हुई है।  

बढ़ोतरी की यह दर अगले दशक में 12 प्रतिशत अपेक्षित है। वर्ष 2003 से विनिर्माण क्षेत्र का विकास 9 से 10 प्रतिशत प्रति वर्ष की दर से हुआ है।  

विदेशी विनिमय :-

 एक देश की मुद्रा को दूसरे देश की मुद्रा में बदलने की प्रक्रिया को विदेशी विनिमय कहते हैं।  

? विदेशी मुद्रा 

 मुद्रा का वह माध्यम जिसके द्वारा सरकार दूसरे देश से वस्तुएँ खरीदती व बेचती है।  

? उद्योग 

विनिर्माण का विस्तृत रूप उद्योग कहलाता है।  

? उद्योग की अवस्थिति को प्रभावित करने वाले कारक 

  उद्योगों की अवस्थिति के भौतिक कारक :-

अनुकूल जलवायु

शक्ति के साधन

कच्चे माल की उपलब्धता

उद्योगों की अवस्थिति के मानवीय कारक :-

श्रम

पूँजी

बाज़ार

परिवहन और संचार बैकिंग, बीमा आदि की सुविधाएँ 

आधारिक संरचना

उद्यमी

सरकारी नीतियाँ

?उद्योगों का वर्गीकरण 

 उद्योगों को निम्न प्रकार से वर्गीकृत किया जा सकता है। 

? प्रयुक्त कच्चे माल के स्रोत के आधार पर 

कृषि आधारित :- सूती वस्त्र, ऊनी वस्त्र, पटसन, रेशम वस्त्र, रबर, चीनी, चाय, काफी तथा वनस्पति तेल उद्योग। 

खनिज आधारित :- लोहा तथा इस्पात, सीमेंट, एल्यूमिनियम, मशीन, औज़ार तथा पेट्रोरासायन उद्योग।  

? प्रमुख भूमिका के आधार पर 

आधारभूत उद्योग :- जिनके उत्पादन या कच्चे माल पर दूसरे उद्योग निर्भर हैं जैसे :- लोहा इस्पात, ताँबा प्रगलन व एल्यूमिनियम प्रगलन उद्योग।  

उपभोक्ता उद्योग :- जो उत्पादन उपभोक्ताओं के सीधे उपयोग हेतु करते हैं जैसे चीनी, दंतमंजन, कागज, पंखे, सिलाई मशीन आदि।  

?पूँजी निवेश के आधार पर 

लघु उद्योग :-    जिस उद्योग में एक करोड़ रुपए तक की पूंजी का निवेश हो तो उसे लघु उद्योग कहते हैं।  

 बृहत उद्योग :-  जिस उद्योग में एक करोड़ रुपए से अधिक की पूंजी का निवेश हो तो उसे बृहत उद्योग कहते हैं।  

?स्वामित्व के आधार पर 

सार्वजनिक क्षेत्र के उद्योग :-  सरकार के स्वामित्व और प्रत्यक्ष नियंत्रण वाले उद्योग  जैसे :- SAIL, BHEL, GAIL आदि 

निजी क्षेत्र के उद्योग :-  जिनका एक व्यक्ति के स्वामित्व में और उसके द्वारा संचालित अथवा लोगों के स्वामित्व में या उनके द्वारा संचालित है  टिस्को, बजाज ऑटो लिमिटेड डाबर उद्योग आदि।  

 संयुक्त उद्योग :-  जो उद्योग राज्य सरकार और निजी क्षेत्र के संयुक्त प्रयास से चलाये जाते हैं  जैसे :- ऑयल इंडिया लिमिटेड।  

सहकारी उद्योग :-  जिनका स्वामित्व कच्चे माल की पूर्ति करने वाले उत्पादकों , श्रमिकों या दोनों के हाथ में होता है  लाभ – हानि का विभाजन भी अनुपातिक होता है  जैसे :- केरल का नारियल उद्योग और महाराष्ट्र का चीनी उद्योग।  

?कच्चे तथा तैयार माल की मात्रा व भार के आधार पर 

भारी उद्योग :-   वे उद्योग जो भारी और अधिक स्थान घेरने वाले कच्चे – माल का प्रयोग करते हैं  जैसे :- लोहा और इस्पात उद्योग, चीनी उद्योग, सीमेंट उद्योग आदि। 

हल्के उद्योग :-  जो कम भार वाले कच्चे माल का प्रयोग कर हल्के तैयार माल का उत्पादन करते हैं जैसे :- विद्युतीय उद्योग।  

?कृषि आधारित उद्योग 

 कृषि उत्पादों को औद्योगिक उत्पाद में बदलने वाले उद्योग कृषि आधारित उद्योग होते हैं।  

सूती वस्त्र, पटसन, रेशम, ऊनी वस्त्र, चीनी तथा वनस्पति तेल आदि उद्योग कृषि से प्राप्त कच्चे माल पर आधारित हैं।  

?वस्त्र उद्योग

भारतीय अर्थव्यवस्था में वस्त्र उद्योग का अपना अलग महत्त्व है क्योंकि इसका औद्योगिक उत्पादन में महत्त्वपूर्ण योगदान है।  

देश का यह अकेला उद्योग है जो कच्चे माल से उच्चतम अतिरिक्त मूल्य उत्पाद तक की श्रृंखला में परिपूर्ण तथा आत्मनिर्भर है।  

?सूती कपड़ा उद्योग 

पहला सूती वस्त्र उद्योग 1854 में मुम्बई में स्थापित की गई।  

महात्मा गांधी ने चरखा काटने और खादी के पहनावे पर जोर दिया जिससे बुनकरों को रोजगार मिल सकें।  

आरंभिक वर्षों में सूती वस्त्र उद्योग महाराष्ट्र तथा गुजरात के कपास केन्द्रों तक ही सीमित थे।  

कपास की उपलब्धता, बाज़ार, परिवहन, पत्तनों की समीपता, श्रम, नमीयुक्त जलवायु आदि कारकों ने इसके स्थानीयकरण को बढ़ावा दिया।  

कताई कार्य महाराष्ट्र, गुजरात तथा तमिलनाडु में केंद्रित है लेकिन सूती, रेशम, ज़री, कशीदाकारी आदि में बुनाई के परंपरागत कौशल और डिजाइन देने के लिए बुनाई अत्यधिक विक्रेंदीकृत हो गई।  

?भारत में सूती वस्त्र उद्योग के सामने समस्याएँ 

पुरानी और परंपरागत तकनीक 

लंबे रेशे वाली कपास की पैदावार का कम होना 

नई मशीनरी का अभाव 

कृत्रिम वस्त्र उद्योग से प्रतिस्पर्धा 

अनियमित बिजली की आपूर्ति 

?कपास उद्योग की प्रमुख समस्याएं 

बिजली की आपूर्ति अनियमित है 

मशीनरी को उन्नत करने की आवश्यकता है 

श्रम का कम निष्पादन 

सिंथेटिक फाइबर उद्योग के साथ कड़ी प्रतिस्पर्धा 

?पटसन (जूट) उद्योग 

भारत पटसन व पटसन निर्मित समान का सबसे बड़ा उत्पादक है। तथा बांग्लादेश दूसरा सबसे बड़ा निर्यातक भी है। भारत में पटसन उद्योग अधिकांशतः हुगली नदी के तट पर संकेंद्रित है।  

?भारत में अधिकांश जूट मिलें पश्चिम बंगाल में क्यों स्थित हैं 

भारत में सबसे अधिक पटसन का उत्पादन पश्चिम बंगाल में होता है।  

इस उद्योग को कच्चे पटसन के निस्तारण के लिए पानी की अधिक आवश्यकता पड़ती है जो हुगली नदी से पर्याप्त मात्रा में मिल जाता है।  

पश्चिम बंगाल, बिहार, उड़ीसा आदि पड़ोसी राज्यों से सस्ते मजदूर भी मिल जाते हैं। 

पटसन की चीज़ों के निर्यात के लिए कोलकाता का बन्दरगाह है।  

कच्चे माल की मिलों तक सुविधाजनक परिवहन के लिए रेलवे, रोड़वेज और जल परिवहन।  

एक बड़ा शहर होने के कारण कोलकाता बैकिंग बीमा आदि सुविधाएँ उपलब्ध कराता है।  

?भारत के जूट उद्योग के समक्ष चुनौतियाँ 

कृत्रिम रेशों से चीजें बनने लगी हैं।  

कृत्रिम रेशे से बनी चीजें सस्ती होती हैं।  

जूट की खेती पर व्यय बहुत हो जाता है।  

विदेशी स्पर्धा का मुकाबला बाजार में चुनौती के रूप में खड़ा है।  

बांग्लादेश अन्तर्राष्ट्रीय बाजार में चुनौती के रूप में खड़ा है। 

?चीनी उद्योग 

भारत का चीनी उत्पादन में विश्व में दूसरा स्थान है व गुड़ व खांडसारी के उत्पादन में इसका प्रथम स्थान है।  

चीनी मिलें उत्तर प्रदेश, बिहार, महाराष्ट्र, कर्नाटक, तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश, गुजरात, पंजाब, हरियाणा तथा मध्य प्रदेश राज्यों में फैली है।  

पिछले कुछ वर्षों से इन मिलों की संख्या दक्षिणी और पश्चिमी राज्यों में विशेषकर महाराष्ट्र में बढ़ी है।  

?दक्षिणी और पश्चिमी राज्यों में चीनी की बढ़ी मिलों के कारण 

गन्ने में सूक्रोस की अत्यधिक मात्रा हैं।  

ठंडी जलवायु 

सहकारी समितियाँ अधिक सफल हुई।   

?भारत में चीनी उद्योग के सम्मुख चुनौतियाँ 

उद्योग मौसमी प्रकृति का है, छोटी अवधि का होता है।  

गन्ने का उत्पादन प्रति हैक्टेयर कम है।  

✍  पुरानी मशीनों का होना 

खोई का अधिकतम इस्तेमाल न कर पाना 

परिवहन के साधनों के असक्षम होने के कारण गन्ने का समय पर कारखानों में न पहुँचना।  

?खनिज आधारित उद्योग 

वे उद्योग जो खनिज व धातुओं को कच्चे माल के रूप में प्रयोग करते हैं, खनिज आधारित उद्योग कहलाते हैं।  

?लौह तथा इस्पात उद्योग 

लौह तथा इस्पात एक आधारभूत उद्योग है क्योंकि अन्य सभी भारी, हल्के और मध्य उद्योग इनसे बनी मशीनरी पर निर्भर है। 

इस उद्योग के लिए लौह अयस्क, कोकिंग कोल तथा चूना पत्थर का अनुपात लगभग 4:2:1 का है।  

वर्ष 2016 में भारत 956 लाख टल इस्पात का विनिर्माण कर संसार में कच्चा इस्पात उत्पादकों में तीसरे स्थान पर था  यह स्पंज लौह का सबसे बड़ा उत्पादक है। 

✍  सार्वजनिक क्षेत्र के लगभग सभी उपक्रम अपने इस्पात को स्टील अथॉरिटी ऑफ इंडिया के माध्यम से बेचते है।  

भारत के छोटा नागपूर के पठारी क्षेत्र में अधिकांश लोहा तथा इस्पात उद्योग संकेन्द्रित है।  

?छोटानागपुर पठारी क्षेत्र में लौह और इस्पात उद्योग की आधिकतम सांद्रता होने के कारण 

लौह अयस्क की कम लागत 

नजदीक में उच्च श्रेणी के कच्चे माल की उपलब्धता 

सस्ते श्रम की उपलब्धता 

घरेलू बाजार में विशाल विकास क्षमता 

?भारत में लौह तथा इस्पात उद्योग पूर्ण विकास न हो पाने के कारण 

कोकिंग कोल की उच्च लागत और सीमित उपलब्धता 

श्रम की कम उत्पादकता 

ऊर्जा की अनियमित आपूर्ति 

कमजोर बुनियादी ढांचा 

?लोहा और इस्पात उद्योग को आधारभूत उद्योग कहे जाने के कारण 

कई अन्य उद्योग, लोहे और इस्पात उद्योग पर निर्भर हैं।  

लोहा और इस्पात उद्योग अन्य उद्योगों जैसे कि चीनी उद्योग या सीमेंट उद्योग आदि को मशीनरी प्रदान करता है।  

देश की औद्योगिक प्रगति इस उद्योग पर निर्भर करती है।  

बड़ी संख्या में लोगों को रोजगार प्रदान करता है।  

?लोहा और इस्पात उद्योग को भारी उद्योग कहे जाने के कारण 

लौह अयस्क, कोयला और चूना जैसे सभी कच्चे माल प्रकृति से भारी हैं।  

इस उद्योग के तैयार उत्पादों को परिवहन हेतु उच्च लागत की आवश्यकता होती है।  

?एल्यूमिनियम प्रगलन 

भारत में एल्यूमिनियम प्रगलन दूसरा सर्वाधिक महत्वपूर्ण धातु शोधन उद्योग है। यह हल्का, जंग अवरोधी, ऊष्मा का सूचालक, लचीला तथा अन्य धातुओं के मिश्रण से अधिक कठोर बनाया जा सकता है।  

भारत में एल्यूमिनियम प्रगलन संयंत्र ओडिशा, पश्चिम बंगाल, केरल, उत्तर प्रदेश, छत्तीसगढ़, महाराष्ट्र व तमिलनाडु राज्यों में स्थित है।  

इस उद्योग की स्थापना की दो महत्वपूर्ण आवश्यकताएँ है :-

नियमित ऊर्जा की पूर्ति 

कम कीमत पर कच्चे माल की उपलब्धता 

?रसायन उद्योग 

भारत के सकल घरेलू उत्पाद में रसायन उद्योग की भागीदारी लगभग 3 प्रतिशत है।  

यह उद्योग एशिया में तीसरा सबसे बड़ा व विश्व में आकार की दृष्टि से 12 वे स्थान पर है।  

भारत में कार्बनिक व अकाबर्निक दोनो प्रकार के रसायनों का उत्पादन होता है।  

कार्बनिक रसायन :-  कार्बनिक रसायन में पेट्रो रसायन शामिल है जो कृत्रिम वस्त्र, रबर, प्लास्टिक, दवाईयाँ आदि बनाने में काम आता है।  

अकार्बनिक रसायन :-  अकार्बनिक रसायन में सलफ्यूरिक अम्ल, नाइट्रिक अम्ल, क्षार आदि शामिल है।  

?उर्वरक उद्योग 

उर्वरक उद्योग नाइट्रोजनी उर्वरक (मुख्यतः यूरिया), फास्फेटिक उर्वरक तथा अमोनिया फास्फेट और मिश्रित उर्वरक के इर्द – गिर्द केन्द्रित है। 

हमारे देश में पोटेशियम यौगिकों के भंडार नहीं है  इसलिए हम पोटाश, का आयात करते हैं।  

हरित क्रांति के बाद इस उद्योग का विस्तार देश के कई भागों में हुआ है। 

?सीमेंट उद्योग 

 इस उद्योग को भारी व स्थूल कच्चे माल जैसे :-  चूना पत्थर, सिलिका और जिप्सम की आवश्यकता होती है।  

रेल परिवहन, कोयला व विद्युत आवश्यक 

इसका उपयोग निर्माण कार्यों में होता है।  

इस उद्योग की इकाइयाँ गुजरात में लगाई गई है क्योंकि यहाँ से खाडी के देशों में व्यापार की उपलब्धता है। 

?हमारे देश के लिए सीमेंट उद्योग का विकास अति महत्वपूर्ण है, क्यों 

भवन, फैक्टरियाँ, सड़कें, पुल, बाँध, घर आदि का निर्माण करने के लिए आवश्यक है। 

हमारा सीमेंट उद्योग उत्तम गुणवत्ता वाले सीमेंट का उत्पादन करता है। 

अफ्रीका के देशों में मांग रहती है।   

?मोटरगाड़ी उद्योग 

मोटरगाड़ी यात्रियों तथा सामान के तीव्र परिवहन के साधन हैं।  

उदारीकरण के पश्चात् नए और आधुनिक मॉडल के वाहनों का बाजार तथा वाहनों की माँग बड़ी हैं। 

यह उद्योग दिल्ली, गुड़गाँव मुंबई, पुणे, चेन्नई आदि शहरों के आस – पास स्थापित है।  

?भारत में उदारीकरण एवं प्रत्यक्ष विदेशी निवेश ने मोटरगाड़ी उद्योग में अत्यधिक वृद्धि करने के कारण 

उदारीकरण के पश्चात नए और आधुनिक मॉडल के वाहनों का बाजार बढ़ा है। 

वाहनों की माँग बढ़ी है  कार, स्कूटर, स्कूटी, बाईक ऑटो रिक्शा की संख्या में अपार वृद्धि हुई है।  

प्रत्यक्ष विदेशी निवेश के साथ नई प्रौद्योगिकी के उपयोग से यह उद्योग विश्वस्तरीय विकास के स्तर पर आ गया है।  

व्आज 15 इकाइयाँ कार, 14 इकाइयाँ स्कूटर, मोटरसाइकिल तथा ऑटोरिक्शा का निर्माण करती हैं। 

?सूचना प्रौद्योगिकी तथा इलैक्ट्रोनिक उद्योग 

 इलैक्ट्रोनिक उद्योग के अंतर्गत आने वाले उत्पादों में ट्रांजिस्टर से लेकर टेलीविजन, टेलीफोन एक्सचेंज, राडार, कंप्यूटर तथा दूरसंचार उद्योग के लिए उपयोगी अनेक उपकरण तक बनाए जाते हैं। 

भारत की इलैक्ट्रोनिक राजधानी के रूप में बेंगलूरू का विकास हुआ। भारत में सूचना और प्रौद्योगिकी उद्योग के सफल होने के कारण हार्डवेयर व सॉफ्टवेयर का निरंतर विकास हुआ है।

?भारत के सूचना प्रौद्योगिकी उद्योग का आर्थिक विकास में योगदान 

रोज़गार उपलब्ध करवाता है।

विदेशी मुद्रा अर्जित करता है।

कार्यरत महिलाओं की संख्या में वृद्धि हुई है।

हार्डवेयर और सॉफ्टवेयर का निरंतर विकास हो रहा है।

सॉफ्टवेयर प्रौद्योगिकी पार्क, विशेषज्ञों को एकल विंडो सेवा तथा उच्च आंकड़े संचार सुविधा प्रदान करते हैं। 

?प्रदूषण के प्रकार 

तापीय प्रदूषण

जल प्रदूषण

ध्वनि प्रदूषण

वायु प्रदूषण

 वायु प्रदूषण :-

उद्योगों द्वारा सल्फर डाई ऑक्साइड और कार्बन मोनो ऑक्साइड का उत्सर्जन। 

रासायनिक और पेपर उद्योग, ईंट भट्टे तथा रिफाइनरी द्वारा धुँआ निकलना। 

 जल प्रदूषण :-

औद्योगिक कचरे (कार्बनिक तथा अकार्बनिक) द्वारा प्रदूषण 

पेपर, रासायनिक, वस्त्र उद्योग तथा उद्योगों द्वारा प्रदूषण

तापीय प्रदूषण :-

कारखाने और तापीय संयंत्र द्वारा गर्म जल का नदी में गिरना 

ध्वनि प्रदूषण :-

सुनने की क्षमता प्रभावित होती है।

हृदय गति तथा रक्त चाप बढ़ जाता है।

?उद्योगों द्वारा पर्यावरणीय प्रदूषण को कम करने के लिए उठाए गए विभिन्न उपाय 

प्रदूषित जल को नदियों में न बहाया जाये। 

जल को साफ करके प्रवाहित करना चाहिए।

जल विद्युत का प्रयोग करना चाहिए। 

ऐसी मशीनरी का प्रयोग करना चाहिए जो कम ध्वनि करे।

?भारत में पर्यटन के बढ़ते महत्त्व 

विश्व का सबसे तेजी से बढ़ता हुआ तृतीयक क्षेत्र का उद्योग  कुल 2500 लाख नौकिरियाँ प्रदान करता है।

✍  कुल राजस्व सकल घरेलू उत्पाद का 40 प्रतिशत।

उद्योगों व व्यापार में वृद्धि का कारक।

देश के आधार भूत ढाँचे में सुधार। 

अर्न्तराष्ट्रीय बंधुता बढ़ाने में उपयोगी।

 हाल के वर्षों में पर्यटन उद्योग के कई नये स्वरूप जैसे मेडिकल टूरिज्म आदि का प्रचलन भी बढ़ा है।