क्रेडिट के 4C क्या है?
उत्तर –
क्रेडिट के 4C (4 C’s of Credit)
कोई भी ऋणदाता (बैंक अथवा वित्तीय संस्था) तभी ऋण देता है जब उसे विश्वास हो कि उधार लेने वाला ऋणको ब्याज सहित का देगा। किसी भी व्यक्ति अथवा परिवार को ऋण/क्रेडिट देने का निर्णय निम्नलिखित 4C पर निर्भर करता है –
1. चरित्र (Character) – चरित्र का तात्पर्य ऋण लेने वाले व्यक्ति की ऋण वापसी की इच्छा से हैं भले ही उसके लिए ऋण वापस कर उसकी सोच से कही अधिक असुविधाजनक क्यों न हो।
2. क्षमता (Capacity) – क्षमता का तात्पर्य ऋणी व्यक्ति या कम्पनी की तय समय पर ऋण वापसी या किस्त अदायगी की योग्यता से है। ऋण अदायगी के संदर्भ में क्षमता आय पर निर्भर करती है। ऋण को अदा करने के लिए परिवार की क्षमता का निर्धारण परिवार द्वारा प्राप्त आय तथा व्यय के बीच अंतर द्वारा किया जाता है।
3. पूँजी (Capital) – पूँजी का तात्पर्य ऋणी व्यक्ति या कम्पनी की कुल पूंजी से हैं जोकि ऋण की कुल रकम से अधिक होनी चाहिए ताकि ऋणदाता को अपने ऋण की ब्याज सहित अदायगी का विश्वास रहे। यदि ऋणी व्यक्ति की आय ऋण चुकाने के लिए पर्याप्त नहीं पड़ती तो ऋणदाता उसकी पूंजी के माध्यम से अपने ऋण की वसूली कर सकता है।
4. संपार्श्विक / जमानत (Collateral) – संपार्श्विक / जमानत का तात्पर्य ऋणी व्यक्ति या कम्पनी की उस पूंजी से हैं जिसे वह ऋण लेने के लिए ऋणदाता के पास सुरक्षा/जमानत के रूप में गिरवी रखता हैं। यदि किसी कारण से ऋण की अदायगी न हो तो ऋणदाता जमानत के रूप में उसके पास रखी पूंजी को बेच कर अपने ऋण की वसूली कर सकता हैं।
5. ऋण के स्रोत – वाणिज्यिक बैंक, सहकारी बैंक तथा कृषि बैंक, क्रेडिट संघ आदि क्रेडिट (ऋण) लेने के मुख्य स्रोत हैं। इनके अतिरिक्त यदि व्यक्ति किसी स्व-सहायता समूह का सदस्य हो तो वह अपने समूह से भी क्रेडिट ले सकता है।
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