जलवायु परिवर्तन और भारत की भूमिका
जलवायु परिवर्तन का प्रभाव
जलवायु परिवर्तन एक वैश्विक संकट है जो पृथ्वी के औसत तापमान में वृद्धि, चरम मौसम की घटनाओं, समुद्र स्तर में वृद्धि, और पारिस्थितिकी तंत्र पर हानिकारक प्रभाव डाल रहा है। यह मुख्यतः ग्रीनहाउस गैसों (कार्बन डाइऑक्साइड, मीथेन आदि) के अत्यधिक उत्सर्जन के कारण हो रहा है।
भारत जैसे विकासशील देशों पर जलवायु परिवर्तन का विशेष प्रभाव पड़ता है, क्योंकि इसकी बड़ी आबादी कृषि, जल संसाधन, और प्राकृतिक संसाधनों पर निर्भर करती है।
भारत पर जलवायु परिवर्तन के प्रभाव
- कृषि पर प्रभाव: अनियमित मानसून और सूखा फसलों को नष्ट कर सकते हैं, जिससे खाद्य सुरक्षा पर असर पड़ता है।
- जल संकट: हिमनदों के पिघलने और मानसूनी अनियमितता के कारण पानी की उपलब्धता घट रही है।
- तटीय क्षेत्र: समुद्र स्तर में वृद्धि के कारण तटीय इलाकों में बाढ़ और विस्थापन की समस्या बढ़ रही है।
- स्वास्थ्य पर प्रभाव: अत्यधिक गर्मी और बाढ़ जैसी आपदाओं से जन स्वास्थ्य पर नकारात्मक प्रभाव पड़ रहा है।
- जैव विविधता: प्राकृतिक संसाधनों और पारिस्थितिक तंत्र पर दबाव बढ़ रहा है।
भारत की भूमिका और प्रयास
भारत, जो विश्व का तीसरा सबसे बड़ा कार्बन उत्सर्जक है, जलवायु परिवर्तन के खिलाफ महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है। इसके तहत निम्नलिखित प्रयास किए गए हैं:
- पेरिस समझौता (Paris Agreement): भारत ने पेरिस समझौते के तहत यह प्रतिबद्धता जताई है कि वह 2030 तक अपनी GDP की कार्बन तीव्रता को 33-35% तक कम करेगा।
- राष्ट्रीय सौर मिशन: भारत अक्षय ऊर्जा स्रोतों को बढ़ावा देने के लिए सौर ऊर्जा के क्षेत्र में अग्रणी बन रहा है। भारत ने 2030 तक 500 गीगावाट नवीकरणीय ऊर्जा का लक्ष्य रखा है।
- इंटरनेशनल सोलर एलायंस (ISA): भारत और फ्रांस द्वारा शुरू किया गया यह संगठन, सौर ऊर्जा के उपयोग को बढ़ावा देने और ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन को कम करने के लिए कार्य करता है।
- हरित भारत मिशन: यह मिशन वनीकरण को बढ़ावा देता है और कार्बन उत्सर्जन को कम करने में मदद करता है।
- ई-मोबिलिटी और इलेक्ट्रिक वाहन (EV): भारत इलेक्ट्रिक वाहनों और बैटरी स्टोरेज प्रौद्योगिकी को अपनाकर जीवाश्म ईंधनों पर निर्भरता घटा रहा है।
- राष्ट्रीय अनुकूलन रणनीतियाँ: जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए भारत ने कृषि, जल संसाधनों, स्वास्थ्य, और बुनियादी ढांचे पर फोकस करते हुए विभिन्न योजनाएं लागू की हैं।
- प्लास्टिक प्रतिबंध: भारत ने सिंगल-यूज प्लास्टिक पर प्रतिबंध लगाकर पर्यावरणीय क्षति को रोकने की दिशा में कदम उठाया है।
भविष्य की चुनौतियाँ और समाधान
- चुनौतियाँ:
- ऊर्जा की बढ़ती मांग और जीवाश्म ईंधनों पर निर्भरता।
- वनीकरण और जैव विविधता को बनाए रखना।
- जलवायु न्याय को सुनिश्चित करना, क्योंकि गरीब और कमजोर वर्ग सबसे अधिक प्रभावित होते हैं।
- समाधान:
- हरित ऊर्जा निवेश बढ़ाना।
- जलवायु-अनुकूल तकनीकों और नवाचारों को बढ़ावा देना।
- समुदाय-आधारित जलवायु अनुकूलन योजनाएं लागू करना।
- वैश्विक मंचों पर जलवायु न्याय की वकालत करना।
निष्कर्ष
भारत ने जलवायु परिवर्तन से निपटने में अपनी प्रतिबद्धता को स्पष्ट किया है और इस दिशा में कई महत्वपूर्ण कदम उठाए हैं। हालांकि, यह एक दीर्घकालिक प्रयास है, जिसमें सरकार, उद्योगों और आम जनता की सामूहिक भागीदारी आवश्यक है। जलवायु परिवर्तन से निपटना केवल पर्यावरण संरक्षण का मुद्दा नहीं, बल्कि भारत के सतत विकास और समृद्धि का आधार भी है।