प्रथम कश्मीर युद्ध (1947-1948): भारत-पाक संघर्ष की जड़ और विस्तृत विश्लेषण

First kashmir war (1947–1948)
First Kashmir War (1947–1948)

परिचय: 1947 का ऐतिहासिक संघर्ष

सन 1947 का भारत-पाक युद्ध, जिसे प्रथम कश्मीर युद्ध के नाम से भी जाना जाता है, भारत की स्वतंत्रता और विभाजन के तुरंत बाद लड़ा गया पहला सशस्त्र संघर्ष था। यह युद्ध मुख्य रूप से जम्मू और कश्मीर की रियासत के भविष्य को लेकर भारत और नवगठित पाकिस्तान के बीच हुआ। अक्टूबर 1947 में शुरू हुआ यह टकराव 1 जनवरी 1949 को संयुक्त राष्ट्र की मध्यस्थता से हुए युद्धविराम के साथ थमा। इस युद्ध ने न केवल कश्मीर समस्या को जन्म दिया, जो आज भी दक्षिण एशिया में तनाव का प्रमुख कारण है, बल्कि इसने क्षेत्र के भू-राजनीतिक मानचित्र को भी स्थायी रूप से प्रभावित किया।


युद्ध की पृष्ठभूमि: विभाजन और रियासतों का विलय

अगस्त 1947 में ब्रिटिश शासन की समाप्ति के साथ भारत का विभाजन हुआ और भारत व पाकिस्तान दो स्वतंत्र राष्ट्र बने। उस समय लगभग 565 रियासतों को यह स्वतंत्रता दी गई कि वे या तो भारत में शामिल हों, पाकिस्तान में, या स्वतंत्र रहें।

  • जम्मू और कश्मीर की विशेष स्थिति: जम्मू और कश्मीर रियासत, अपनी मुस्लिम बहुल आबादी और हिंदू शासक, महाराजा हरि सिंह, के कारण एक जटिल स्थिति में थी।
  • महाराजा हरि सिंह की दुविधा: महाराजा प्रारंभ में एक स्वतंत्र कश्मीर का सपना देख रहे थे और उन्होंने भारत या पाकिस्तान में विलय का निर्णय लेने में विलंब किया। उन्होंने पाकिस्तान के साथ एक “यथास्थिति समझौता” (Standstill Agreement) किया था, लेकिन भारत के साथ ऐसा कोई समझौता नहीं हुआ।

प्रथम कश्मीर युद्ध के प्रमुख कारण: क्यों छिड़ा संघर्ष?

इस ऐतिहासिक युद्ध के पीछे कई महत्वपूर्ण और आपस में जुड़े हुए कारण थे:

  1. कश्मीर का रणनीतिक महत्व: सिंधु नदी प्रणाली के उद्गम स्थल और मध्य एशिया से निकटता के कारण कश्मीर घाटी दोनों देशों के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण थी।
  2. पाकिस्तान की कश्मीर पर दावेदारी: पाकिस्तान, “द्वि-राष्ट्र सिद्धांत” (Two-Nation Theory) के आधार पर मुस्लिम बहुल कश्मीर को अपना हिस्सा मानता था और इसे हर हाल में पाकिस्तान में मिलाना चाहता था।
  3. महाराजा की अनिर्णयता: विलय पर महाराजा हरि सिंह के त्वरित निर्णय न लेने से उत्पन्न अनिश्चितता ने बाहरी हस्तक्षेप का मार्ग प्रशस्त किया।
  4. रियासत में आंतरिक अशांति: पुंछ जैसे क्षेत्रों में महाराजा के शासन के विरुद्ध विद्रोह पनप रहा था, जिसे पाकिस्तान से अप्रत्यक्ष समर्थन मिल रहा था।
  5. “ऑपरेशन गुलमर्ग”: पाकिस्तान समर्थित कबायली आक्रमण: यह युद्ध का तात्कालिक और सबसे बड़ा कारण बना।
    • आक्रमण की योजना: अक्टूबर 1947 में, पाकिस्तान ने “ऑपरेशन गुलमर्ग” नामक एक गुप्त योजना के तहत हजारों पश्तून कबायली लड़ाकों को जम्मू-कश्मीर पर आक्रमण करने के लिए भेजा।
    • पाकिस्तानी सेना की भूमिका: इन कबायलियों को पाकिस्तानी सेना द्वारा हथियार, प्रशिक्षण और रसद सहायता प्रदान की गई थी। कई पाकिस्तानी सैन्य अधिकारी भी इस आक्रमण का गुप्त रूप से नेतृत्व कर रहे थे।

युद्ध का घटनाक्रम: अक्टूबर 1947 से जनवरी 1949 तक

  • कबायली आक्रमण की शुरुआत (22 अक्टूबर 1947): हजारों कबायली लड़ाकों ने मुज़फ़्फ़राबाद और डोमेल पर कब्ज़ा करते हुए कश्मीर घाटी की ओर बढ़ना शुरू किया। उन्होंने बारामूला में भीषण लूटपाट और अत्याचार किए।
  • कश्मीर का भारत में विलय (26 अक्टूबर 1947):
    • कबायली आक्रमण की भयावहता और अपनी रियासत की सेना को कमजोर पड़ता देख, महाराजा हरि सिंह ने भारत से तत्काल सैन्य सहायता मांगी।
    • भारत ने सैन्य हस्तक्षेप के लिए रियासत के आधिकारिक विलय को शर्त रखा।
    • 26 अक्टूबर 1947 को, महाराजा हरि सिंह ने “विलय पत्र” (Instrument of Accession) पर हस्ताक्षर किए, जिससे जम्मू और कश्मीर कानूनी रूप से भारत का अभिन्न अंग बन गया।
  • भारतीय सेना का जवाबी प्रहार (27 अक्टूबर 1947):
    • विलय के तुरंत बाद, भारतीय सेना की पहली टुकड़ी (1 सिख रेजिमेंट) हवाई मार्ग से श्रीनगर पहुँची।
    • भारतीय सैनिकों ने वीरतापूर्वक श्रीनगर हवाई अड्डे को सुरक्षित किया और कबायलियों को शहर में घुसने से रोक दिया।
  • महत्वपूर्ण लड़ाइयाँ और सैन्य अभियान:
    • श्रीनगर की रक्षा: भारतीय सेना ने कबायलियों को श्रीनगर के बाहरी इलाकों से खदेड़कर शहर को बचाया।
    • शैलेटेंग का युद्ध (नवंबर 1947): यह एक निर्णायक मोड़ साबित हुआ, जहाँ भारतीय सेना ने कबायलियों को करारी शिकस्त दी।
    • पुंछ का घेरा और बचाव: पुंछ शहर लगभग एक वर्ष तक पाकिस्तानी सेना और कबायलियों से घिरा रहा, लेकिन भारतीय सेना ने सफलतापूर्वक इसकी रक्षा की।
    • गिलगित-बल्तिस्तान का पाकिस्तान के कब्जे में जाना: गिलगित एजेंसी के ब्रिटिश कमांडर मेजर विलियम ब्राउन ने महाराजा से विश्वासघात करते हुए विद्रोह कर दिया और इस क्षेत्र को पाकिस्तान में मिलाने की घोषणा की।
    • “ऑपरेशन बाइसन” (नवंबर 1948): भारतीय सेना ने अदम्य साहस का परिचय देते हुए टैंकों का उपयोग कर अत्यंत ऊँचाई पर स्थित ज़ोजिला दर्रे पर पुनः कब्ज़ा किया, जिससे लद्दाख का संपर्क कश्मीर घाटी से बना रहा।
  • युद्ध के विभिन्न मोर्चे: यह संघर्ष जम्मू, कश्मीर घाटी, लद्दाख, और आज के पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर (PoK) व गिलगित-बल्तिस्तान के क्षेत्रों में लड़ा गया।

अंतर्राष्ट्रीय हस्तक्षेप और युद्धविराम समझौता

जब युद्ध में नियमित पाकिस्तानी सैनिकों की संलिप्तता स्पष्ट हो गई, तो भारत 1 जनवरी 1948 को यह मामला संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (UNSC) में ले गया।

  • संयुक्त राष्ट्र आयोग (UNCIP) का गठन: UNSC ने भारत और पाकिस्तान के लिए संयुक्त राष्ट्र आयोग (UNCIP) का गठन किया।
  • संयुक्त राष्ट्र के प्रस्ताव: आयोग ने कई प्रस्ताव पारित किए, जिनमें युद्धविराम, पाकिस्तानी सेना व कबायलियों की पूर्ण वापसी, भारत द्वारा अपनी अधिकांश सेना हटाने और अंततः जनमत संग्रह कराने का सुझाव दिया गया।
  • युद्धविराम की घोषणा (1 जनवरी 1949): भारत और पाकिस्तान के बीच 1 जनवरी 1949 को आधिकारिक रूप से युद्धविराम लागू हुआ।
  • कराची समझौता और युद्धविराम रेखा (जुलाई 1949): 27 जुलाई 1949 को कराची समझौते के तहत एक युद्धविराम रेखा (Ceasefire Line – CFL) खींची गई, जिसने जम्मू और कश्मीर को दो भागों में विभाजित कर दिया। यही रेखा बाद में नियंत्रण रेखा (Line of Control – LoC) कहलाई।

प्रथम कश्मीर युद्ध के परिणाम और दीर्घकालिक प्रभाव

1947-48 के भारत-पाक युद्ध के अत्यंत दूरगामी और स्थायी परिणाम हुए:

  1. जम्मू और कश्मीर का विभाजन: युद्ध के परिणामस्वरूप रियासत का वास्तविक विभाजन हो गया। जम्मू, कश्मीर घाटी और लद्दाख भारत के नियंत्रण में रहे, जबकि एक बड़ा भूभाग (जिसे आज़ाद कश्मीर और गिलगित-बल्तिस्तान कहा जाता है) पाकिस्तान के अवैध कब्जे में चला गया।
  2. कश्मीर विवाद का जन्म: यह युद्ध कश्मीर विवाद की जड़ बना, जो आज तक भारत और पाकिस्तान के बीच निरंतर तनाव, अविश्वास और संघर्ष का मुख्य कारण है। जनमत संग्रह की शर्तें कभी पूरी नहीं हो सकीं, मुख्यतः पाकिस्तानी सेना द्वारा कब्ज़ाये गए क्षेत्रों से पूर्ण वापसी न करने के कारण।
  3. मानवीय त्रासदी: इस युद्ध में दोनों ओर के हजारों सैनिक शहीद हुए और अनगिनत नागरिक मारे गए या विस्थापित हुए। बारामूला जैसे शहरों में कबायलियों द्वारा की गई बर्बरता आज भी एक काला अध्याय है।
  4. सैन्यीकरण और हथियारों की होड़: इस युद्ध ने दोनों देशों के बीच स्थायी सैन्य शत्रुता की नींव डाली, जिससे दक्षिण एशिया में हथियारों की एक अंतहीन होड़ शुरू हुई।
  5. क्षेत्रीय और अंतर्राष्ट्रीय भू-राजनीति पर प्रभाव: कश्मीर मुद्दा दक्षिण एशिया की भू-राजनीति को गहराई से प्रभावित करता रहा है और यह अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भी चिंता का विषय बना हुआ है।

निष्कर्ष: एक अनसुलझी विरासत

प्रथम कश्मीर युद्ध (1947-48) भारतीय उपमहाद्वीप के इतिहास की एक निर्णायक घटना थी। यह न केवल दो नव-स्वतंत्र राष्ट्रों के बीच पहला बड़ा सैन्य टकराव था, बल्कि इसने एक ऐसी जटिल समस्या को भी जन्म दिया जिसका समाधान सात दशकों के बाद भी नहीं हो पाया है। इस युद्ध ने न केवल कश्मीर के भविष्य को, बल्कि पूरे दक्षिण एशियाई क्षेत्र की शांति और स्थिरता को भी स्थायी रूप से प्रभावित किया है। इसकी विरासत आज भी भारत-पाक संबंधों के लिए एक सतत चुनौती बनी हुई है। इस युद्ध का अध्ययन हमें विभाजन की जटिलताओं, रियासतों के विलय की चुनौतियों और अंतर्राष्ट्रीय कूटनीति की सीमाओं को समझने में महत्वपूर्ण अंतर्दृष्टि प्रदान करता है।