पारंपरिक और गैर-पारंपरिक सुरक्षा खतरों के बीच अंतर बताएं।

पारंपरिक और गैर-पारंपरिक सुरक्षा खतरों के बीच अंतर उनकी प्रकृति, उत्पत्ति, और प्रभावों के आधार पर किया जाता है। ये दोनों प्रकार के खतरे सुरक्षा को अलग-अलग दृष्टिकोणों से प्रभावित करते हैं। आइए इन्हें विस्तार से समझते हैं:

1. पारंपरिक सुरक्षा खतरे (Traditional Security Threats)

पारंपरिक सुरक्षा खतरों का संबंध राज्य और सैन्य संघर्षों से होता है। इन खतरों में आम तौर पर राज्यों के बीच युद्ध, सैन्य आक्रमण, और सशस्त्र संघर्ष शामिल होते हैं। इसका फोकस राष्ट्रीय संप्रभुता, क्षेत्रीय अखंडता, और सैन्य शक्ति पर होता है।

  • मुख्य विशेषताएँ:
    • राज्य-केंद्रित: पारंपरिक सुरक्षा खतरे मुख्य रूप से राज्य (nation-state) के विरुद्ध होते हैं और राज्यों के बीच आपसी प्रतिस्पर्धा या संघर्ष के परिणामस्वरूप उत्पन्न होते हैं।
    • सैन्य बल और हथियार: इन खतरों में सैन्य शक्ति और हथियारों का प्रयोग प्रमुख होता है, जैसे कि सैन्य आक्रमण, हवाई हमले, और परमाणु हथियारों का खतरा।
    • क्षेत्रीय और संप्रभुता की रक्षा: इन खतरों का उद्देश्य देश की संप्रभुता, क्षेत्रीय अखंडता, और सीमाओं की रक्षा करना होता है।
    • उदाहरण: द्वितीय विश्व युद्ध, भारत-पाकिस्तान युद्ध, शीत युद्ध, और परमाणु हथियारों की होड़ जैसे संघर्ष पारंपरिक सुरक्षा खतरों के उदाहरण हैं।
  • उदाहरण:
    • एक देश का दूसरे देश पर हमला करना।
    • सीमाओं पर सैन्य टकराव।
    • परमाणु हथियारों या मिसाइल कार्यक्रमों का विकास और उनकी तैनाती।

2. गैर-पारंपरिक सुरक्षा खतरे (Non-Traditional Security Threats)

गैर-पारंपरिक सुरक्षा खतरों का संबंध उन समस्याओं से होता है जो सीधे सैन्य संघर्ष से संबंधित नहीं होते लेकिन समाज, अर्थव्यवस्था, पर्यावरण, और मानव सुरक्षा पर गहरा प्रभाव डालते हैं। ये खतरे अक्सर राज्य की सीमाओं से परे होते हैं और वैश्विक या क्षेत्रीय स्तर पर प्रभाव डालते हैं।

  • मुख्य विशेषताएँ:
    • मानव-केंद्रित: गैर-पारंपरिक सुरक्षा खतरे आमतौर पर मानव जीवन, मानवीय कल्याण, और सामाजिक स्थिरता पर केंद्रित होते हैं। ये राज्य से अधिक मानव सुरक्षा को प्रभावित करते हैं।
    • गैर-सैन्य स्रोत: ये खतरे सैन्य स्रोतों से नहीं आते, बल्कि आर्थिक, सामाजिक, पर्यावरणीय, और तकनीकी कारकों से उत्पन्न होते हैं।
    • बहु-आयामी: ये खतरे बहु-आयामी होते हैं और समाज, पर्यावरण, अर्थव्यवस्था, और राजनीति से जुड़े होते हैं। इनका सामना करने के लिए व्यापक दृष्टिकोण और अंतरराष्ट्रीय सहयोग की आवश्यकता होती है।
    • उदाहरण: आतंकवाद, साइबर हमले, जलवायु परिवर्तन, महामारी, शरणार्थी संकट, मानव तस्करी, और जल संसाधनों पर विवाद।
  • उदाहरण:
    • आतंकवाद: आतंकवादी संगठनों द्वारा किया गया हमला, जैसे कि 9/11 का हमला, जो सीधे सैन्य टकराव नहीं है लेकिन समाज और सुरक्षा पर गहरा प्रभाव डालता है।
    • जलवायु परिवर्तन: यह एक गंभीर गैर-पारंपरिक सुरक्षा खतरा है जो ग्लोबल वार्मिंग, समुद्र स्तर में वृद्धि, और प्राकृतिक आपदाओं के माध्यम से वैश्विक स्थिरता को प्रभावित करता है।
    • महामारी: COVID-19 जैसी महामारियाँ न केवल स्वास्थ्य सेवाओं पर दबाव डालती हैं बल्कि आर्थिक और सामाजिक स्थिरता को भी बाधित करती हैं।
    • साइबर हमले: साइबर हमले और साइबर आतंकवाद, जो सरकारी और निजी नेटवर्क पर हमले करके देशों की सुरक्षा और गोपनीयता को प्रभावित कर सकते हैं।

पारंपरिक और गैर-पारंपरिक सुरक्षा खतरों के बीच अंतर सारणीबद्ध रूप में

विवरणपारंपरिक सुरक्षा खतरेगैर-पारंपरिक सुरक्षा खतरे
प्रकृतिराज्य-केंद्रित, सैन्य संघर्षमानव-केंद्रित, सामाजिक, आर्थिक, पर्यावरणीय
उत्पत्तिराज्यों के बीच टकराव, सीमाओं का उल्लंघनआतंकवाद, साइबर हमले, महामारी, जलवायु परिवर्तन
उद्देश्यक्षेत्रीय अखंडता और संप्रभुता की रक्षामानव सुरक्षा, सामाजिक स्थिरता, और विकास
प्रतिक्रियासैन्य बल और हथियारों का उपयोगअंतरराष्ट्रीय सहयोग, नीतिगत परिवर्तन, और दीर्घकालिक समाधान
उदाहरणयुद्ध, सीमावर्ती संघर्ष, परमाणु खतरेआतंकवाद, जलवायु परिवर्तन, साइबर अपराध, शरणार्थी संकट

निष्कर्ष

पारंपरिक और गैर-पारंपरिक सुरक्षा खतरों के बीच मुख्य अंतर उनकी प्रकृति और प्राथमिकताओं में है। पारंपरिक खतरे सैन्य और राज्य-केंद्रित होते हैं, जबकि गैर-पारंपरिक खतरे मानवीय, सामाजिक, और पर्यावरणीय मुद्दों से जुड़े होते हैं। आज की वैश्विक व्यवस्था में, दोनों प्रकार के खतरों से निपटने के लिए व्यापक दृष्टिकोण और अंतरराष्ट्रीय सहयोग की आवश्यकता है, क्योंकि आधुनिक समय में सुरक्षा केवल सैन्य शक्ति से परिभाषित नहीं होती, बल्कि आर्थिक, सामाजिक, और पर्यावरणीय स्थिरता भी उतनी ही महत्वपूर्ण होती है।