भारत की विदेश नीति के पांच मुख्य सिद्धांत को विस्तार से बताएं

भारत की विदेश नीति के पांच मुख्य सिद्धांत निम्नलिखित हैं, जो भारतीय नीति निर्माण और अंतरराष्ट्रीय संबंधों में दिशा निर्धारित करते हैं:

  1. पंचशील सिद्धांत: यह सिद्धांत 1954 में भारत और चीन के बीच हुए “पंचशील समझौते” पर आधारित है। पंचशील के पांच सिद्धांत हैं:
    • आपसी सम्मान और क्षेत्रीय अखंडता का सम्मान: सभी देशों को एक-दूसरे की क्षेत्रीय अखंडता और राजनीतिक स्वतंत्रता का सम्मान करना चाहिए।
    • आपसी हितों का सम्मान: सभी देशों को एक-दूसरे के हितों का सम्मान करना चाहिए और उनका उल्लंघन नहीं करना चाहिए।
    • अंतरराष्ट्रीय विवादों का शांतिपूर्ण समाधान: सभी विवादों का हल शांतिपूर्ण तरीके से किया जाना चाहिए।
    • हस्तक्षेप न करना: एक देश को दूसरे देश के आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए।
    • समानता और आपसी लाभ: देशों के बीच रिश्ते समानता, परस्पर लाभ और सहयोग पर आधारित होने चाहिए।
  2. गुटनिरपेक्षता (Non-Alignment): भारतीय विदेश नीति के एक महत्वपूर्ण सिद्धांत के रूप में गुटनिरपेक्षता का अनुसरण किया गया। इसका उद्देश्य भारत को किसी भी सैन्य या राजनीतिक गुट से जोड़ने से बचाना था। यह सिद्धांत द्वितीय विश्व युद्ध के बाद उभरे शीत युद्ध की परिस्थितियों में खास महत्व रखता था, जिसमें अमेरिका और सोवियत संघ दो प्रमुख गुटों के रूप में सामने आए थे। भारत ने गुटनिरपेक्षता का अनुसरण करते हुए स्वतंत्र और स्वायत्त विदेश नीति बनाई, जिसमें दोनों महाशक्तियों के बीच तटस्थ रहने का प्रयास किया गया।
  3. अंतरराष्ट्रीय शांति और सुरक्षा के प्रति प्रतिबद्धता: भारत की विदेश नीति का एक और मुख्य सिद्धांत अंतरराष्ट्रीय शांति और सुरक्षा को बनाए रखना है। भारत ने हमेशा संयुक्त राष्ट्र जैसे अंतरराष्ट्रीय मंचों पर शांति, सहयोग और मानवाधिकारों के संरक्षण को प्राथमिकता दी है। भारत ने न केवल क्षेत्रीय बल्कि वैश्विक स्तर पर शांति के लिए सक्रिय भूमिका निभाई है, जैसे कि नॉन-प्रोलिफरेशन (न्यूक्लियर अप्रसार) का समर्थन करना और आतंकवाद के खिलाफ संघर्ष में भाग लेना।
  4. विकासशील देशों के साथ सहयोग: भारत ने हमेशा विकासशील देशों के साथ अपने रिश्तों को मजबूत किया है। विशेष रूप से अफ्रीकी देशों, एशियाई देशों और लैटिन अमेरिकी देशों के साथ भारत ने सशक्त राजनीतिक, आर्थिक और सांस्कृतिक संबंध बनाए हैं। भारत का यह दृष्टिकोण विकासशील देशों की सामाजिक-आर्थिक स्थिति को सुधारने और उनके अधिकारों के प्रति आवाज उठाने के लिए है।
  5. आर्थिक और सामरिक सहयोग: भारतीय विदेश नीति में आर्थिक और सामरिक सहयोग को भी महत्वपूर्ण माना गया है। भारत ने न केवल अपने आर्थिक विकास के लिए वैश्विक स्तर पर व्यापारिक समझौते किए हैं, बल्कि सामरिक दृष्टिकोण से भी सुरक्षा संबंधी समझौतों को बढ़ावा दिया है। जैसे भारत ने सैन्य सहयोग, विशेषकर आतंकवाद और सीमा सुरक्षा को लेकर कई देशों के साथ साझा प्रयास किए हैं। आर्थिक सहयोग के तहत, भारत ने क्षेत्रीय और वैश्विक आर्थिक संस्थाओं में सक्रिय भागीदारी निभाई है।

इन सिद्धांतों के माध्यम से भारत की विदेश नीति ने हमेशा शांतिपूर्ण, विकासात्मक और लोकतांत्रिक दृष्टिकोण को अपनाया है।