द्विध्रुवीयता और इसके वैश्विक प्रभावों की व्याख्या करें।

द्विध्रुवीयता (Bipolarity) उस अंतरराष्ट्रीय व्यवस्था को संदर्भित करती है, जिसमें विश्व में दो प्रमुख महाशक्तियाँ होती हैं जो अपने-अपने गुटों और गठबंधनों के माध्यम से शक्ति और प्रभाव का संतुलन बनाए रखती हैं। शीत युद्ध (1947-1991) के दौरान, दुनिया द्विध्रुवीय व्यवस्था का हिस्सा थी, जिसमें अमेरिका और सोवियत संघ दो प्रमुख महाशक्तियाँ थीं। ये दोनों देश अपनी-अपनी विचारधाराओं (पूंजीवाद और साम्यवाद) और राजनीतिक प्रणालियों के आधार पर दुनिया को विभाजित करने की कोशिश कर रहे थे।

द्विध्रुवीयता के वैश्विक प्रभाव

  1. दो गुटों में विभाजन:
    • शीत युद्ध के दौरान दुनिया मुख्यतः दो गुटों में बँट गई थी:
      • पश्चिमी गुट: अमेरिका के नेतृत्व में, जिसमें NATO (North Atlantic Treaty Organization) जैसे गठबंधन शामिल थे। इसमें पश्चिमी यूरोप, कनाडा, जापान और कई अन्य देश शामिल थे।
      • पूर्वी गुट: सोवियत संघ के नेतृत्व में, जिसमें Warsaw Pact और साम्यवादी देश (पूर्वी यूरोप के देश, चीन आदि) शामिल थे।
    • यह विभाजन यूरोप में विशेष रूप से स्पष्ट था, जहाँ पूर्वी और पश्चिमी यूरोप के बीच बर्लिन की दीवार एक प्रतीक थी।
  2. प्रॉक्सी युद्ध (Proxy Wars):
    • द्विध्रुवीयता के कारण, प्रत्यक्ष युद्ध से बचने के लिए, अमेरिका और सोवियत संघ ने दुनिया के विभिन्न हिस्सों में परोक्ष रूप से संघर्ष किया।
    • कोरिया युद्ध (1950-1953), वियतनाम युद्ध (1955-1975), और अफगानिस्तान युद्ध (1979-1989) इसके प्रमुख उदाहरण हैं। इन युद्धों में दोनों महाशक्तियों ने अपने सहयोगियों का समर्थन करके एक-दूसरे को कमजोर करने की कोशिश की।
  3. हथियारों की दौड़ (Arms Race):
    • अमेरिका और सोवियत संघ के बीच नाभिकीय हथियारों और अन्य उन्नत हथियारों की दौड़ शुरू हो गई। दोनों ही देश एक-दूसरे से अधिक शक्तिशाली हथियार विकसित करना चाहते थे, जिससे नाभिकीय युद्ध का खतरा बढ़ गया।
    • इस प्रतिस्पर्धा के कारण सैन्य खर्च में अत्यधिक वृद्धि हुई और कई देशों ने परमाणु हथियार विकसित करने की कोशिश की, जिससे वैश्विक सुरक्षा खतरे में पड़ी।
  4. गुटनिरपेक्ष आंदोलन (Non-Aligned Movement):
    • द्विध्रुवीयता के जवाब में, कई देशों ने एक तटस्थ मार्ग अपनाने का निर्णय लिया और गुटनिरपेक्ष आंदोलन की स्थापना की। भारत, मिस्र, और यूगोस्लाविया इसके प्रमुख संस्थापक थे।
    • गुटनिरपेक्ष आंदोलन का उद्देश्य था कि ये देश दोनों महाशक्तियों के गुटों में शामिल होने के बजाय स्वतंत्र रूप से अपनी नीतियाँ बनाएं और शांति और विकास के लिए काम करें।
  5. वैचारिक टकराव:
    • अमेरिका ने पूंजीवादी, लोकतांत्रिक प्रणाली को फैलाने का प्रयास किया, जबकि सोवियत संघ ने साम्यवादी और अधिनायकवादी विचारधारा को बढ़ावा दिया।
    • इस वैचारिक संघर्ष ने दुनिया को प्रभावित किया और कई देशों में विचारधारात्मक संघर्षों को जन्म दिया, जैसे कि लैटिन अमेरिका, अफ्रीका और एशिया के देशों में।
  6. अंतरिक्ष की दौड़ (Space Race):
    • हथियारों की दौड़ के अलावा, अमेरिका और सोवियत संघ के बीच अंतरिक्ष की दौड़ भी शुरू हुई। सोवियत संघ ने 1957 में स्पुतनिक उपग्रह लॉन्च किया, जबकि अमेरिका ने 1969 में चंद्रमा पर पहला मानव भेजा। यह भी उनके बीच प्रतिस्पर्धा का एक हिस्सा था।

निष्कर्ष

द्विध्रुवीयता ने दुनिया को लगभग आधी सदी तक प्रभावित किया, जिससे न केवल सैन्य और राजनीतिक संघर्ष बढ़े बल्कि कई क्षेत्रों में विकास और वैज्ञानिक प्रगति भी हुई। द्विध्रुवीय व्यवस्था का अंत 1991 में सोवियत संघ के पतन के साथ हुआ, जिससे दुनिया एकध्रुवीय (अमेरिकी वर्चस्व) व्यवस्था में प्रवेश कर गई।